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भ्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०॥
३ शतके उद्देशः१: ॥२०१॥
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SCORTAMASSIONS
॥ अथ तृतयिं शतकम् ॥
उदेशक १. श्रीजां शतकेमा दश उद्देशाओ छ, जैमां नीचे प्रमाणे अधिकार आवशे.
केरिसविउठवणा' चमर' किरिय' जाणिथि नगर पाला य ।
अहिवई इंदियपरिसा ततियम्मि सए दसुदेसा ॥ २३ ।। (केरिसविउब्वण'ति) चमर नामना इंद्रमा विकर्षण शक्ति केवी छे ? इत्यादि प्रश्नना निर्वचन माटे प्रथम उदेशक हे (चमर'त्ति) चमरनो उत्पात जणाचवा बीजो उद्देशक छ (किरिय'त्ति) कायिकी वगेरे क्रियाओना जणावया त्रीजो उदेशक हे (जाण'त्ति) देवे विकुर्वेल यानने साधु जाणे ? इत्यादि अर्थना निर्णय माटे चोथो उद्देशक छे (इत्यि'त्ति) साधु वहारना पुद्ग-16 लोने लइने स्त्री वगेरेनां वैक्रिय रूपो करी शके इत्यादि अर्थना निर्णय सारुं पांचमो उद्देशक के. (नगर'त्ति) नगर संबंधी छट्टो उद्देशक छे (पालय'त्ति) लोकपालोना स्वरूपने कहेनारो सातमो उद्देशक छे (अंहिवईत्ति) असुर वगेरेना इंद्रो केटला छे ? ए वातने जाणवा माटे आठमो उद्देशक के (इंदिय'त्ति) इंद्रियोना विषय संबंधी नवमो उद्देशक छे (परिस'त्ति) चमरनी सभा संबंधी हकीकत जणावत्रा दशमो उद्देशक के.
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