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२ शतके
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२४॥
मेरइया आ० पा० उ० नीचेव जाव नियमा छरिसिं आ० पा० उ०मी०, जीवा एगिदिया वाथाया य निवाघाया य भाणियब्बा, सेसा नियमा छदिसि ।। बाउयाए णं भंते ! बाउयाए चेव आणमंति वा पाण
पाउनेशः१ मंति वा उससंति वा नीससंति वा, हंता गोयमा! वाउयाए णं जाव नीससति वा ॥ (सू० ८५)
प्र०] हे भगवन् ! ते जीवो केवा प्रकारनां द्रव्योंने बहारना अने अंदरना श्वासमां ले के ? तथा निःश्वासमां मृके छ ? [३०] ॥१४॥ | हे गौतम ! ठपथी अनंत प्रदेशवाळा द्रव्योने, क्षेत्रथी असंख्य प्रदेशमा रहेलां द्रव्योने काळथी कोइपण जातनी स्थितिवालां द्रव्योने तथा भावथी वर्णवाळी, गंधवाळा, रसवागं, अने स्पर्शवानां द्रव्योने बहारना अने अंदरना वासमां ले छे. तथा नेवांज द्रव्योने यहारना अने अंदरना निःश्वासमा मूके हे. [३०] हे भगवन् ! ते जीवो भावथी वर्णवाळा जे द्रव्योने बहारना अने अंदरना श्वासमा | ले छे तथा मूके छे ते द्रव्यो शुं एक वर्णवाळां छे ? [उ०] हे गौतम ! अही आहारगम जाणवो अने ते यावत्-पांच दिशा तरफथी |श्वास अने निःश्वासना अणुओ मेळवे . [म.] हे भगवन् ! नरयिको केवा प्रकारनां द्रव्योने बहारना अने अंदरना श्वासमा ले छे ? अने निःश्वासमा के छ ? [उ०] हे गौतम ते संबंधे पूर्व प्रमाणेज जाणवू अने नियमे छए दिशामांथी बहारना अने अंदरना श्वास अने निःश्वासना अणुओने मेळवे छे. जीवो अने एकेंद्रियो संबंधे एम कहे, के, तेओने जो काइ व्यापात न होय तो तेश्रो बधी दिशाओमांथी श्वास अने निःश्वासना अणुओ मेळवे छे. अने जो तेओने कांइ अडचण होय तो ते छए दिशामांथी वास अने | निःश्वासना अणुओ मेळवी शकता नथी, पण कोइवार ऋण दिशामाथी कोइवार चार दिशामांथी अने कोइवार पांच दिशामांथी श्वास द अने निश्वासना अणुओ मेळवे छे अने बाकी बधा जीवो चोकस छए दिशामांथी श्वास तथा निःश्वासनां अणुओ मेळवे छे. [प्र०]
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