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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्ति ॥१५८॥ २ शतक उमेशः१ १५८॥ | प्रकाशवाला अने देवना रहेगणरूप पृथिवीशिलापट्टकने पडिलेहे-चारे बाजु तपासे , तेम करी बडीनीति अने लघुनीति करवा ना स्थान ने तपासे . पछी ते शीलपटक उपर डाभनो संथारो पाथरी, पूर्व दिशा तरफ मुख राखी पर्यकासने बेसी, दशे नख सहित बने हाथने मेगा करी, माथा साथे अडकावी, बन्ने हाथने जोडी आ प्रमाणे बोल्या:-अरिहंत भगवंतने यावत्-अचळ स्वरूपने प्राप्त पएलाओने नमस्कार थाओ. तथा अचळ स्थानने पामवानी इच्छावाला श्रमणभगवंत महावीरने नमस्कार थाओ. त्यां रहेला श्रमणभगवंतमहावीरने अहीं रहेलो हुं वांदु छु, त्यां रहेला श्रमणभगवंतमहावीर अहीं रहेला मने जूओ, एम करी भगवंतने वादी, नमी, आ प्रमाणे बोल्या के:-में पहेला श्रमणभगवंतमहावीरनी पासे कोइपण जीवनो विनाश न करचो, कोइपण प्रकारे कोइने दुःख न देव॒ एषो नियम ज्यांसुधी जींदगी टके त्यांसुधी लीधो हतो अने यावत्-'वस्तुनु ज्ञान, जेवी वस्तु होय तेज करवू, पण तेथी जुर्दु के उलटुं न समजवू' एवो पण नियम ज्यांसुधी जी त्यांसुधी पाळवानो निर्णय को हतो अने हमणा पण श्रमणभगवंतमहावीर | पासे ज्यांमधी जीq त्यांसुधी 'कोइने कोइपण प्रकारे दुःख न देवू' अने यावत् 'वस्तुनुं ज्ञान, सेना स्वभाव उपरथी करवू' पण तेथी जूदं न करघु एवा नियमो लडं डु तथा सर्व प्रकारनी खावानी वस्तुनो, सर्व प्रकारना पाणीनो, सर्व प्रकारना मेवा, मिष्टाननो, अने। सर्व प्रकारना मसाला तथा मुखवासोनो एम चारे जातना आहारनो ज्यांसुधी जीq त्यांसुधी त्याग करुं छु. वळी जे आ दुःखने न | देवा लायक यावत्-इष्ट, कांत अने प्रिय मारुं शरीर छ, तेने पण हुं मारा रेल्ला श्वासोच्छ्वासे त्याग करी दइश, एम करी | नेने संलेखना अने झूषणा करी, खान, पाननो त्याग कयों, तथा ते झाडनी पेठे स्थिर रही कालनी अवकांक्षा न करतां विहरे के, रहे थे. ॥१७॥ ARAT For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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