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२ शतके उद्देशः१ १५७॥
8 महब्बयाई आरुहेइ २त्ता समणे य समणीओ य स्वामेह २ सातहारूवेहि घेरेहि कडाईहिं सद्धिं विपुलं पब्वयं व्याख्याप्रज्ञप्ति
सणियं २ दुरूहेड मेहगणसन्निवार्य पुढबीशिलावयं पडिलहेड २ उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ २ दन्भसंधारयं
संथरह २त्ता पुरत्थाभिमुहे. संपलियंकरिमन्ने करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मस्थए अंजलि कडु एवं ॥१५७॥
वदासी-नमोऽस्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोऽत्थु ण समणस्स भगवओ म. जाव संपाविउकामस्स, बंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इहगते, पासउ मे भय तत्वगए इहगयंतिक? बंदइ नमसति २ | एवं वदासी-पुन्विपि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सब्वे पाणाइवाए पञ्चक्रवाए जावजीवाए
जाव मिच्छादमणसल्ले पच्चक्खाए जावजीवाए, इयाणिपि य गं समणस्स भ० म० अंतिए सव्वं पाणाइवार्य | पञ्चक्वामि जायजीवाए जाव मिरछादसणसल्लं पञ्चक्वामि, एवं सब्ध असणं पाणं खा० सा. चउन्विहंपि आहारं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए, जपि य इमं सरीरं इ8 कंतं पियं जाव फुसंतुस्तिक एयंपिणं चरिमेहिं उस्सासनीसासेहिं वोसिरामित्तिकड्ड संलेहणाजूसणाजूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकखमाणे विहरति । ॥१७॥ _ पछी ने स्कंदक अनगार श्रमणभगवंत महावीरनी अनुमति लइने हर्षवाळा, संतुष्ट थइ, यावत्-विकसित हृदयवाळा थइने उभा
थया. उभा यह श्रमणभगवंतमहावीरने त्रणवार प्रदक्षीणा करी नमस्कार करी पोतानी मेळेज पांच महावतोने ग्रहण करे छे, ग्रहक करी ६ साधु अने साध्वीओने खमावे , खमावी देवा प्रकारना योग्य सविरो साथे विपुल पर्वत उपर धीमे धीमे चडी, मेघना समूहनी जेवा
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