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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपाख्याप्रज्ञप्तिः ॥१५६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हरिणनी आंखो उघडया पछी, निर्मळ प्रभात थया पछी अने राता अशोकनी जेवा प्रकाशवाळो, केसुडां, पोपटनी चांच, अने चणोठीना अरधा भाग जेवो लाल, कमळना समूहवाळा चनखंडोने विकसावनाशे, हजार किरणोवाळो तथा तेजथी तेजस्वी एवो सूर्य उग्या पछी श्रीश्रमण भगवंत महावीर पासे जइ, तेमने वांदी, नमी तथा तेओनी पर्युपासना करी, श्रमण भगवंत महावीरनी अनुमति लड़, पांच महाव्रतोने आरोपी, साधु तथा साध्वीओने खमावी, तेवा प्रकारना योग्य स्थविरो साथै विपुल पर्वत उपर धीमे धीमे चडी, मेघना समूहनी जेवा वर्णवाळा अने देवोनें उत्तरवाना ठेकाणारूप पृथिवीशिलापट्ट्कनुं प्रतिलेखन करी, तेना उपर डाभनो संथारो पाथरी, आत्माने संलेखना तथा झोषणथी युक्त करी, खानपाननो त्याग करी. वृक्षनी पेठे स्थिर रही मारे काळनी अवकांक्षा। न करतां विहरखुं जोइए. ए प्रमाणे विचार करी, प्रातःकाळ थया पछी यावत्-सूर्य उग्या पछी ज्यां श्रमण भगवंत महावीर विराज्या छे, त्यां जइ पर्युपासना करे छे. पछी 'हे स्कंदक' ! एम कही श्रमण भगवंतमहावीरे स्कंदक अनगारने आ प्रमाणे कछु के:- हे स्कं दक! रात्रीना पाछला पहोरे जागता जागता धर्म विषे चिंतन करतां तने आ प्रमाणे संकल्प थयो हतो के, हुं ए पूर्व प्रकारना उदार अने विपुल तपवडे बहु दुबळो थयो छु माटे यावत् भारे काळनी अवकांक्षा न करतां विहर ए उचित छे। अने ए प्रमाणे तें विचार करी सवार थतांज यावत् सूर्य उग्या पछी तुं शीघ्र मारा तरफ आव्यो छे. तो हे स्कंदक! तुं कहे के ए साची बात छे ? हा ए साची बात छे. देवानुप्रिय ! जेम सुख थाय तेम करो, पण विलंब न करो. ॥ १६ ॥ तए णं से खंदर अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ जाव हयहियए उट्ठाए उट्ठेइ २ समणं भगवं महा• तिक्खुत्तो आग्राहिणं पयाहिणं करेइ २ जाव नमसित्ता सयमेव पंच For Private and Personal Use Only २ शतके उद्देशः १ ॥१५६॥
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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