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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१०६॥
[प्र०] हे भगवन् ! लाघव, कमइच्छा, अमूळ अनास्तिक, अने अप्रतिबद्धता; ए बधुं श्रमण निथोने माटे प्रशस्त है | [उ०] हे गौतम ! हा, लाघव, अने यावत्-अप्रतिबद्धता ए बधु निग्रंथो माटे प्रशस्त छ [प्र०] हे भगवन् ! अक्रोधपणु, अमानपर्ण, IRI
१ शतके अकपटपणु, अने अलोभपणु, ए बधुं श्रमण निग्रंथोना माटे प्रशस्त छ ? [उ.] हे गौतम : हा, अक्रोधपणुं, अमानपणुं, ए बधुं
उद्देशः ९ प्रशस्त छ. [प्र.] हे भगवन् ! कांक्षाप्रदोषक्षीण थया पछी श्रमण निग्रंथ अंतकर अने अंतिम शरीरबालो थाय ? अथवा पूर्वनी |
॥१०६ अवस्थामा बहु मोहबानो थइ विहार करे अने पछी संवरयुक्त थइने काल करे तो पछी सिद्ध थाय ? यावत्-सर्व दुःखना नाशने करे ? [उ०] हे गौतम ! हा, कांक्षाप्रदोषक्षीण थया पछी यावत्-सर्व दुःखना नाशने करे. ॥ ७५॥
अण्णउत्थियाणं भंते! एवमाइक्वंति एवं भासेंति एवं पण्णवेंति एवं परूवेति-वं खलुएगे जीवे पगेणं | समपणं दो आउयाई पक.रेति, तंजहा-इहभवियाउयं च परभविपाउयं च, जे समयं इहभवियाउयं| पकरेति तं समयं परभधियाउयं पकरेति, जं समयं परभवियाउयं पकरेति तं समयं इहभवियाउयं पकरेनि, इहभवियाउयस्म पकरणयाए परमवियाउयं पकरेइ, परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं ममाणं दो आउयाई पकरेति, सं०-इहभवियाउयं च परभवियाउयं च, से कहमेवं भंते ! एवं?, (ब) खलु गोयमा ! जपणं ते अण्णउत्थिया एवमातिक्खंति जाव परभवियाउयं च, जे ते एबमाम | मि ते एबमाइंस, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्वामि जाव परूवेमि-एवं खलु गगे जीवे एगणं समाणं गगं| आउयं पकरेति, तं०-इहभवियाउयं वा परभदियाउयं वा, ज समयं इहभवियाउयं पकरेति णोतं समय
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