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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२८॥
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www.kobatirth.org .. [प्र०] हे भगवन् ! जेणे संसारने रोक्यो रे, जेणे संसारना प्रपंचने रोक्यो छे, यावत्-जैनु कार्य, समाप्त थएल कार्यनी पेठे
२ शतके पूर्ण के तेवो मृतादी निग्रंथ शुं फरीने पण शीघ्र मनुष्यादिक भवोने न पामे ? [उ.] हे गौतम ! हा, पूर्व प्रमाणोनो मृतादी निग्रंथ फरीने पण तुरत मनुष्यादिक भवोने न पामे. [म.] हे भगवन् ! ते नियनो जीव कया शब्दथी बोलावाय! [उ०] हे गौतम! ते
उमेशः१ 'सिद्ध' कहेवाय. 'बुद्ध' कहेवाय. मूक्त कहेवाय. परंपरागत एक पगथीएथी बीजे अने बीजे पगथीएथी श्रीजे एवी रीते संसारना| |१२८॥ पारने पामेलो'-कहेव य. अने ते 'सिद्ध' 'बुद्ध' 'मुक्त' 'परिनिवृत' 'अंतकृत' तथा 'सर्वदुःख प्रत्पीण' कहेवाय. हे भगवन् ! ते पर प्रमाणे हे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छे, नमे छे अने संयम तथा आत्माने भाक्ता विहरे छे. ॥ ८९ ॥
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