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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
शतक उद्देशः ॥२१७॥
+CARKAR*
जति णं भंते। तीसए देवे माहिडिए जाव एवायं च णं पभू विउवित्तए सकस्स गं भंते ! देबिदस्स | देवरलो अवसेसा सामाणिया देवा केमहिदिया तहेव सब्वं जाव एसणं गोयमा सकस्स देविंदस्स देवरन्नो
एगमेगस्स सामाणियस्स देवस्स इमेयारूवे विसयमेत्ते बुइए, नोचेवणं संपत्तीए विउब्बिसु विउम्पिति वा विउ- |व्विस्संति वा, तायसीसा यलोगपालअग्गमहिसीण जहेब चम- रस्स, नवरं दो केवलकप्पे जवुद्दीवे २, अण्णं चेव, सेवं भंते २त्ति दोचे गोयमे जाव विहरति (म० १२९)।
[प्र.] हे भगवन् ! जो तिष्यकदेव एवी महान् ऋद्धिसंपन्न छ अमे आटलं अधुं विकुर्वण करी शक के तो देवेंद्र, देवराज शक्रना बाकीना-वीजा बधा सामानिक देवो केवी मोटी ऋद्धिवाला छे ? [उ.] हे गौतम ! तेज प्रमाणे नधुं जाणवू, यावत्-हे गौतम ! देवेंद्र देवराज शक्रना प्रत्येक सामानिक देवोनो एविषय छ, विषयमात्र के, पण संप्राप्तिथी कोइए विकुब्धू नथी, विकुर्वतो नथी अने विकुर्वशे पण नहीं. शक्रना त्रायविंशक देवो विषे, लोकपालो विपे, अने पट्टराणीओ विषे चमरनी पेठे कडे. विशेष ए के तेओनी विकुर्वणशक्ति आखा वे जंबूद्वीप जेटली कहेवी अने बाकी बधुं तेज प्रमाणे कहे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, एम कही चीजा गौतम विहार करे हे. ॥ १२९ ॥
भंतेत्ति भगवं तच्चे गोयमे वाउभूती अणगारे समण भगवं जाव एवं बदासी-जति णं भंते ! सके देधिदे। देवराया एमहिइढिए जाव एवइयं चणं पभू विउवित्तए ईसाणे णं भंते ! देविदे देवराया केमहिदिए.१ एवं तहेव, नवरं साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे २, अवसेसं तहेव (सू०१३०)॥
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