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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥२१६ ॥
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आनप्राणपर्याप्तिवडे अने भाषामनः पर्याप्तिवडे पोताना शरीरने संपूर्णपणे रचे छे, ज्यारे ते तिष्यकदेव पूर्वोक्त पांच पर्याप्तिवडे पोताना शरीरनी बनावट पूरेपूरी करी ले छे त्यारे सामानिक समितिना देवो तेनी पासे आवी, हाथ जोडवापूर्वक दशे नखने भेगा करी माथे अडाडी, माथे अंजली करीने जय अने विजयथी वधावे छे अने पछी आ प्रमाणे कहे छे के अहो ! आप देवानुप्रिये दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकांति अने दिव्य देवप्रभाव लब्ध कर्यो छे, प्राप्त कर्यो छे, अने सामे आग्यो छे बळी जेवी दिव्य देवऋद्धि दिव्य देवकांति दिव्य देवप्रभाव आप देवातुप्रिये लब्ध कर्यो छे, प्राप्त कर्यो छे अने सामे आण्यो छे तेवी दिव्य देवऋद्धि, दिव्यदेवकांति देवेंद्र, देवराज शक्रे पण यावत् सामी आणी छे; अने जेवी दिव्य देवऋद्धि देवेंद्र, देवराज शके लब्ध करी छे, प्राप्त करी छे, सामी आणी छे तेवी दिव्य देवऋद्धि आप देवानुप्रिये सामी आणी छे तो हे भगवन् ! ते तीप्यकदेव केवी मोटी ऋद्धिवाळो छे अने केटलं विकुर्वण करी शके छे ? [उ०] हे गौतम ! ते तिप्यकदेव मोटी समृद्धिवाळो छे मोटा प्रभाववाळो छे. ते त्यां पोताना विमान उपर, चार हजार सामानिक देवो उपर, परिवारयुक्त चार पट्टराणीओ उपर त्रण सभाओ सात सेना उपर, सात सेनाधिपति उपर, सोळहजार आत्मरक्षक देवो उपर अने जाणा वैमानिक देवो तथा देवी उपर सत्ताधीशपथुं भोगवतो विहरे छे ते आबी महान् समृद्धिवाळो छे अने आटलं विकुर्वण करी शके छे जेम कोइ युवान पुरुष जुवान स्त्रीने हाथे काकडा वाळी पकडे जेथी तेओ संलग्न लागे तेम ते बीजां रूपो करी शके छे. ते शक्रनी जेटली विकुर्वणाशक्तिवाळो छे वळी हे गौतम! तिष्यक देवनी जे विकुर्वणा शक्ति छे ते तेनो विषय छे, विषयमात्र छे पण तेणे संप्राप्तिवडे विकुर्युं नथी, विकुर्वतो नथी अने विकुर्वशे पण नहि.
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३ शतके
उद्देशः १ ॥२१६॥