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विनानो, रस विनानो, अने स्पर्श विनानो छ तथा गुणवी ते उपयोगगुणवाको के. [H०] हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकायमा केटला व्याख्या- रंग छे, केटला गंध छे, केटला रस छे अने केटला स्पर्श छेउ०] हे गौतम ! पुद्गलास्तिकायमां पांच रंग, पांच रस, वे गंध
२ शतके अज्ञप्तिः 18 अने आठ स्पर्श छे. ते रूपवाळो छे, अजीव छे, शाश्वत छे अने अवस्थित लोकद्रव्य . टुंकामां कहीए तो तेना पांच प्रकार छे:- उद्देशः१० ॥१९३॥ नद्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी, भावधी अने गुणथी पुद्गलास्तिकाय. द्रव्यथी पुद्गलास्तिकाय अनंत द्रब्यरूप ले, क्षेत्रथी ते मात्र लोकIX॥१९३॥
जेबडो छे, काळथी ते कदापि न हतो एम नथी अने यावत्-नित्य छ, भावथी ते रंगवाळो, गंधवाळो, रसबाको अने स्पर्शवाळो के तथा गुणधी ते ग्रहणगुणवाळो वे ॥११७ ॥
एगे भंते ! धम्मत्थिकायपदेसे धम्मत्थिकाएत्ति वत्तवं सिया?, गोयमा! णोहणद्वै समढे, एवं दोनिवि ति-| निवि चत्तारि पंच छ सत्त अट्ट नव दस संखजा, असंखेन्जा भंते ! धम्मस्थिकायप्पासा धम्मस्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया?, गोयमा! णो इण सम, एगपदेसूणेऽविय णं भंते ! धम्मस्थिकाए २ त्ति वत्तब्वं सिया?, णो तिणढे समठे, से केणढणं भंते! एवं बुचइ-एगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तब्वं सिया जाव एगपदेसूणेवि य णं धम्मत्थिकाए नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया?, से नूणं गोयमा ! खंडे चके सगले चके ?, भगवं! नोखंडे चके, सकले चके, एवं छत्ते चम्मे दंडे दूसे आउ पहे मोयए, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुचइएगे धम्मत्थिकायपदेसे नो धम्मत्थिकाएत्ति वत्तव्वं सिया, जाव एगपदेमणेविय णं धम्मत्थिकाए नो धम्मस्थि|काएत्ति वत्तब्वं सिया, से किंवातिए णं भंते ! धम्मस्थिकाएत्ति वत्तवं सिया?, गोयमा ! असंखज्जा धम्म
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