SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ५॥ १ शतके उद्देशः ७ ।। ८५ ॥ जाणवू. [३०] हे गौतम ! से महर्षिक देवर्नु यावत्-मर्या पछी मनुष्यनुं पण आयुष्य जाणवू. ॥ ६१॥ जीवे भंते ! गम्भं वकमाणे किं सइंदिए वकमइ अणिदिए वक्कमइ ?, गोयमा! सिय सइंदिए वकमइ, सिय अणिदिए वचमइ, से केणद्वेणं ?, गोयमा! दम्विदियाई पडुश्च अणिदिए वक्कमइ, भाविंदियाई पडुच्च सई-। दिए वकमइ, से तेणढणं । जीवे णं भंते ! गम्भं वकममाणे किं ससरीरी वकमइ असरीरी वकमइ?, गोयमा! |सिय समरीरी प० सिय असरीरी वक्कमह, से केणद्वेणं, गोयमा! ओरालियवेन्वियआहारपाइं पडुच असरीरी २०, तेयाकम्मा० प० सम वक, से तेणष्टेणं! | जीवे गंभंते! गम्भं वकममाणे तपढमयाए किमाहारमाहारेइ ?, गोयमा ! माउओयं पिउसुक्कं तं तदुभयसंसिह कलुस किविसं तप्पढमयाए आहारमाहारेइ । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे किमाहारमाहारेइ ?, गोयमा ! जं से माया नाणाविहाओ रसविगईओ आहारमाहारेइ तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ । जीवस्स णं भंते ! गम्भगयस्स समाणस्स अस्थि उच्चारेइ वा पासवणेइ वा खेलेह वा सिंघाणेइ वा तेइ वा पित्तेइ वा!, णो इणढे समडे, से केणद्वेणं?, गोयमा ! जीचे गं गन्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ तं सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए अटिअद्विमिंजकेसमंसुरोमनहत्ताए, से तेणद्वेणं० । जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे पभू मुहेणं कावलियं आहारं आहारित्तए ?, गोयमा! णो इणद्वे समढे, से केण?णं, गोयमा! जीवे गं गभगए समाणे सव्वओ आहारेइ सम्बओ परिणामेइ सचओ उस्ससह सम्बओ निस्ससइ अभिक्खणं आहारेइ अभिक्खणं परिणामेइ अभिक्खणं उससइ अभिक्खणं निस्ससह माह तदेवदेसेणं ओयमाहारा पितह वा, णो इणहे समहा अटिअद्विमिंज For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy