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आधाकर्म दोषवाकारतो नयी अने यावत् हेतुथी एम को
व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥११४॥
१ शतके शः९
| सात कर्मप्रकृतिओने मजबूत बंधने बांधली करे छे, अने यावत् संसारमा वारंवार भमे थे. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं हुं कारण ? के यावत्-ने संसारमा वारंवार भमे के ? [उ०] हे गौतम ! आधाकर्म दोषयाला अन्नने खातो श्रमण निग्रंथ पोताना धर्मने ओळंगी जाय छे. अने पोताना धर्मने ओळंगतो ते श्रमण पृथिवीकायना जीवनी दरकार करतो नथी अने यावत्-त्रसकायना जीवनी दरकार | करतो नथी. तथा जे जीवोना शरीरने ते खाय छे ते जीवोनी पण दरकार करतो नथी. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कहुं छे के
आधाकर्म दोषवादा अन्नने खातो श्रमण आयुष्य सिवायनी सात प्रकृतिओने मजबूत बांधे छे. अने संसारमा वारंवार भमे छे. [प्र०] हे भगवन् ! प्रासुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निग्रंथ शुं बांधे छे ? अने यावत्-शेनो उपचय करे छ ? [उ.] हे | गौतम ! प्रामुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निथ आयुष्य सिवायनी अने मजबूत बंधाएली सात कर्म प्रकृतिओने पोची | करे छे. तथा एने संवृत अनगारनी पेठे जाणवो. विशेष ए के, आयुष्य कर्मने कदाचित् बांधे है, अने कदाचित् नथी बांधतो.
अने बाकी नधुं तेज प्रमाणे जाणवु यावत् संसारने ओळंगी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! तेनुं शु कारण ? के, ए यावत्-संसारने BIओळंगी जाय छे ? [उ.] हे गौतम ! प्रामुक अने निर्दोष आहारने खातो श्रमण निग्रंथ पोताना धर्मने ओळंगतो नथी, अने पोताना
धर्मने नहीं ओळंगतो ते श्रमण निग्रंथ पृथिवीकायिक जीवोनी दरकार करे ले, यावत्-त्रसकायना जीवोनी दरकार करे छे, अने जे द जीवोनां शरीरोनो ते आहार करे , ते जीवोनी पण ते दरकार करे . माटे ते हेतुथी यावन्-ते साधु संसारने ओळगी | जाय के. ॥७९॥
से नूर्ण भंते ! अधिरे पलोहा, नो थिरे पलोदृति, अथिरे भजइ, नो थिरे भजइ, सासए बालए यालियत्तं
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