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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ३२७२ |३ शतके उमेशः३ ॥२७॥ आरंभमों वर्ततो, संरंभमा वर्ततो अने समारंभमा पर्ततो जीव, पणा प्राणोने, भूतोने, जीवोने अने सच्चोने दुःख पमाडवामां, शोक कराषवामा, जूरावधामा टिपावबामा, पिटाववामां उस्त्रास पमाडयामां अने परिताप कराववामां वते हे-कारण पाय छे. हे मंडितपुत्र ! ते कारणे लइने एम कई डे के, ज्यांसुधी ते जीव, हमेशां मापपूर्वक कंपे के यावत्-ते ते भावने परिणमे छे त्यांसुधी ते जीवनी मरण समये मुक्ति थइ शकती नथी. ___ जीवे णं भंते ! सया समियं णो एयइ जाव नो तं तं भावं परिणमइ ?, हता मंडियपुत्ता! जीवे णं सया समियं जाब नो परिणमति । जापं च णं भंते ! से जीधे नो एयति जाब नो तं तं भाष परिणमति तावं च | तस्स जीवस्स अंते अंततिरिया भवइ!, हता! जाब भवति । से केणढणं भंते! जाप भवति?, मंडियपुत्ता! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयनि जाव णो परिणमइ तार्य चणं से जीये नो आरंभइ नो सारंभह नो समारंभइ नो आरंभे वइ णो सारंभे वह णो समारंभे वह अणारंभमाणे असारेभमाणे असमारंभमाणे आरंभे अवमाणे सारंभ अवमाणे ममारंभे अवमाणे बहणं पाणाणं ५ अदुखावणयाए जाव अपरियावणयाए वह । से जहानामए केइ पुरिसे सुकं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेजा, से नृणं मंडियत्ता से सुक्के तणहत्यए जायतेयंसि पक्वित्ते समाणे विप्पामेव मसमसाविजह?, हंता! मसमसाविनइ, से जहानामए के पुरिसे तत्तसि अयकवलंसि उदयचिंदू पक्खिवेजा, से नूर्ण मंडियपुत्ता से उदयबिंदू तत्तंसि अयक वल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धसमागच्छद?, हता! विद्धंसमागच्छा, *%%863 For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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