________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१८॥
१ शतके | उद्देशः१
अने शुक्ल न्योनो आहार करे छे. मंथी सारा अने नरसागंधवागनो रसथी तिक्तादि (पांच) बधा रसवानानो अने स्पर्शथी | कर्कशादि (आठ) बधा स्पर्शवाळानो आहार करे छे. बाकी पूर्ववत् जाणवू. मेद आ छे के:-(प्र०) हे भगवन् ! तेओ केटला भागनो आहार करे अने केटला भागनो स्पर्श करे-अस्वाद ले-चाखे ? (1०) हे गौतम ! तेओ असंख्येय भागनो आहार करे | अने अनंत भागने चाखे. यावत्-(प्र०) हे भगवन् ! तेओए खाघेला पुद्गलो के रूपे वारंवार परिणाम पामे ? (उ०) हे | गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय विमात्रपणे विविध प्रकारे स्पर्शेन्द्रियपणे-परिणाम पामे बाकी बधुं नैरकियोनी पेठे जाणवू. यावत्-अचलि-| तकर्मने निर्जरता नथी. ए प्रमाणे यावत्-जलकायिक, अधिकायिक, वायुकायिक, तथा वनस्पतिकायिक सुधी जाणवू. विशेष ए के, जेनी जे स्थिति होप ते कहेवी. अने विविधपणे उच्छ्वास जाणवो. बेइंद्रियवाळा जीवोनी स्थिति कहीने. तेओनो उच्छ्वास विमात्राए कहेवो. (प्र०) बेइंद्रिवाळा जीवोनो आहारविषयक (पूर्ववत् ) प्रश्न करवो. अर्थात् हे भगवन् ! वेइंद्रियवाळा जीवोने केटले काळे आहारनो अमिलाप थाय छे ? (उ०) हे गौतम ! अनाभोगनिर्तित आहार तो पूर्वनी पेठे जाणवो, तेमां जे आभोगनिवर्तित | आहार छे तेनो अमिलाप विमात्राए असंख्येयसामयिक अंतर्मुहूर्त थाय छे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू यावद्-अनंतभागने चाखे छे. (प्र०) हे भगवन् ! जे पुलोने बेइंद्रियजीवो आहारपणे ग्रहण करे छे तो शुं तेओ ते बधा पुदलोने खाइ जाय छे, के बचाने नथी खाता ? (उ०) हे गौतम ! बेइंद्रिय जीवोनो आहार के प्रकारनो कसो छे, ते आ प्रमाणे:-रोमाहार-संवाद्वारा लेवातो आहार प्रक्षेपापहार-मुखमा प्रक्षेपाइने यतो आहार तेमां तेओ जे पुद्गलोने रोमाहारपणे हे छे ते बधा संपूर्णपणे खावामां आवे छे. अने जे पुद्गलो प्रक्षेपाहारपणे लेवाइ छ तेमांनो असंख्य भाग खावामां आवे छे अने वीजा अनेक भागो चखायाविना, तमेज स्पर्शाया
SARAKA4%*
For Private and Personal Use Only