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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२५॥
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| अमुरकुमारदेवो उंचे जाय छे अने यावत्-सौधर्मकल्पमुधी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! कह निश्रावडे-कोनो आश्रय करीने-ते
असुरकुमार देवो यावत्-सौधर्मकल्प सुधी जाय छे ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोई एक शबर जातिना लोको, बब्बर जातिना लोको, | ढंकण जातिना लोको, भुत्तुअजातिना लोको, पण्हजातिना लोको, अने पुलिंद लोको एक मोग जंगलनो, खाडानो, जलदुर्गनो के |
| उद्देशा२ ६ स्थलदुर्गनो, गुफानो खाडा अने वृक्षोथी गीच थएल भागनो अने पर्वतनो आश्रय करी एक मारा अने मोटा पण घोडाना लश्करने, & ॥२५॥ हाथीना लश्करने, योद्धाओना लश्करने, धनुष्यना लश्करने हंफाववानी हिंमत करे छे, एज प्रमाणे असुरकुमार देवो पण अरिहंतोने अरिहंतना चैत्योने अने भावित आत्मा साधुओनो आश्रय करी उंचे यावत् सौधर्मकल्पमृधी जाय रे. पण ते शिवाय जता नथी. [प्र.] हे भगवन् ! शुं बधाय अमुरकुमारो यावत्-सौधर्मकल्प सुधी उवे जाय छे ? [उ०] हे गौतम ! ए अर्थ समर्थ नथी-वधाय ला असुरकुमार देवो उंचे जाता नथी, किंतु दिव्य ऋद्धिवाळा असुरकुमार देवो उंचे सौधर्मकल्प सुधी जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं
ए अमुरेंद्र, असुरराज चमर पण कोइवार पूर्वे उपर यावत्-सौधर्मकल्पसुधी गएलो छ ? [उ०] हे गौतम ! हा, [प्र०] हे भगवन् ! नीचे रहेतो असुरेंद्र, असुरराज चमर केवो मोटो ऋद्धिवाळो छ, केवो मोटो कांतिवाळो के अने यावत्-तेनी ते ऋद्धि क्यां गड ? उ०] हे गौतम! पूर्वे कह्या प्रमाणे कुटाकारशालान दृष्टांत कहेचु. ।। १४२ ॥
चमरेणं भंते ! असुरिंदेणं असुररन्ना सा दिवा देविड्ढी तं चेव जाव किन्ना लद्धा पत्ता अभिसमन्ना|गया, एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे विंझगिरिपायमले बेमेले नामं संनिवेसे होत्था, वनओ, तत्थ णं बेभेले संनिवेसे पूरणे नामंगाहावती परिवसति अड्ढे दित्ते जहा ताम लिस्सी
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