________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥२६० ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सोहम्मवडेंसर विमाणे जेणेव सभा सुधम्मा तेणेव उवागच्छइ २ एगं पाये पउमवरवेश्याए करेइ एवं पायं सभाप सुहम्जाए करेइ फलिहरणेणं महया २ सद्देणं तिक्खुत्तो इंदकीलं आउडेइ २ एवं वयासी
हे भगवन् ! तमारो आशरो लइने, हुं स्वयमेव-मारी पोतानी जातेज देवेंद्र, देवराज शक्रने तेनी शोभाथी भ्रष्ट करना इच्छु हुँ, एम करीने ते चमर उत्तरपूर्वना दिग्भाग तरफ चाल्यो गयो। पछी तेथे वैक्रियसमुद्धात कर्यो यावत्-फरीवार पण ते वैक्रियसमुद्घातथी समवहत थयो. तेम करी ते चमरे एक मोई, घोर, घोर आकारवाळु भयंकर, भयंकर आकारवाळु, भास्वर, भयानक, गंभीर, त्रास उपजावे एवं, काळी अडधी रात्री अने अडदना ढगला जेवुं काळं तथा एक लाख योजन उंचं मोडु शरीर बनान्युं. तेम करी ते चमर पोतामा हाथने पछाडे छे, कूदे छे, मेघनी पेठे गांजे छे, घोडानी पेठे हेषारव करे छे, हाथीनी पेठे किलकिलाट करे छे, रथनी पेठे झणकार करे छे, भोंय उपर पग पछाड़े छे, भोंय उपर पाठु लगावे छे, सिंहनी पेठे अवाज करे छे, उछळे छे, पछाड़ा मारे छे, त्रिपदीनो छेद करे छे, डावा हाथने उंचो करे छे, जमणा हाथनी तर्जनी आंगळीवडे अने अंगुठाना नखवडे पण पोताना सूखने विडंबे छे, वांकु पहों करे छे, अने मोटा मोटा कलकलरवरूप शब्दोने करे छे. एम करतो ते चमर, एकलो, कोहने साधे लीधा विना परिघ रत्नने लइने उंचे आकाशमा उड्यो, जाणे अधोलोकने खळभळावतो न होय, भूमितळने कंपावतो न होय, तिरछालोकने खेचतो न होय, गगनतळने फोडतो न होय, ए प्रमाणे करतो ते चमर, क्यांय गाजे छे, क्यांय विजळीनी पेठे सबके ले, क्यांय वरसादनी पेठे वरसे छे, क्यांय धूळनो वरसाद वरसांवे छे, क्यांय अंधकारने करे छे, एम करतो करतो ते चमर उपर चाल्यो जाय छे, जतां जतां तेणे वानभ्यंतर देवोमां त्रास उपजान्यो, ज्योतिषिक देवोना तो वे भाग करी नाख्या अने आत्म
For Private and Personal Use Only
३ शतके उद्देशः २
॥२६०॥