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व्याख्या
१ शतके
उरेशः६
॥७२॥
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॥७२॥
वन् ! स्पर्शायेल क्षेत्रने स्पर्श छे ? के स्पर्शाया विनाना क्षेत्रने पर्सेज छ ? [उ०] हे गौतम ! स्पर्शाएल क्षेत्रने स्पर्श छे, यायत् | चोकस ए छए दिशामा स्पर्श छे. ॥५१॥
लोयंते भंते ! अलोयंत फुसइ, अलोयतेवि लोयतं फुसह, हंता गोयमा! लोगते अलोयतं फुसह, अलोयंतेवि लोयंत फुसइ ३॥ तं भंते ! किं पुढे फुमइ अपुढे फुसइ ? जाव नियमा छरिसिं फुसइ । दीर्वते भंते! सागरंतं फुसइ सागरतेवि दीवंतं फुसइ ?, हंता जाव नियमा छद्दिसि फुमइ, एवं एएणं अभिलावेणं उदयंते पोयतं फुसइ, छिईते दृसंतं छायंते आयवंत जाब नियमा दिसि फुसइ ॥ (सू० ५२)॥
[प्र०] हे भगवन् ! लोकनो अंत अलोकना अंतने स्पर्श, अलोकनो पण अंत लोकना छेडाने स्पर्श ? [२०] हा, गौतम ! लोकनो छेडो अलोकना छेडाने स्पशे अने अलोकनो पण अंत लोकना छेडाने स्पर्श. [म.] हे भगवन् ! जे स्पर्शाय छे ते || | स्पृष्ट छ ? के अस्पष्ट छ ? [उ०] हे गौतम ! नियमपूर्वक छए दिशामा स्पर्शाय छे [प्र०] हे भगवन् ! बेटनो छेडो समुद्रना छेडाने | स्पशे ? समुद्रनो छेडो पण वेटना छेडाने स्पर्श ? [२०] हा, यावत्-नियम छ ए दिशामां स्पर्श. [अ०] ए प्रमाणे अभिलापवडे - पाणीनो छेडो बहाणना छेदाने स्पशे, छिदनो छेडो वस्त्रना छेडाने स्पर्श ? अने छायानो छेडो तडकाना छेडाने स्पर्शे ? [उ०] हे गौतम ! यावत्-नियमे छए दिशामा स्पर्श. ।। ५२॥
अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कजइ, हंता अत्थि, सा भंते! किं पुट्ठा कजा अपुट्ठा ४ कजइ ?, जाव निवाघाएणं छदिसि वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं । सा भंते !
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