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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥ १४७॥
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संयम यात्राने अने संयमना निर्वाहक आहारना निरूपणने अर्थात् एवा प्रकारना धर्मने कहोः ॥ ११ ॥
तए णं समणे भगवं महावीरे स्वंदयं कचायणस्सगोत्तं सयमेव पवाबेह जाव धम्ममातिक्खर, एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं एवं चिट्ठियवं एवं निसीतियब्वं एवं तुयद्वियन्वं एवं भुंजियव्वं एवं भासियव्वं एवं उट्ठाए २ पाणेहिं भूपहिं जीवेहिं सत्तेर्हि संजमेणं संजमियव्वं, अस्सि च णं अठ्ठे णो किंचिवि पमाइयव्यं । तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जति, तमाणाए तह गच्छह तह चिह्न तह निसीयति तह तुपहह तह मुंजइ तह भासह तह उट्ठाए २ पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेर्हि संजमेणं संजमियन्यमिति, अरिंस चणं अड्डे णो पमायइ । तए पां से खंदए कश्चाय० अणगारे जाते ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिए उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिए मणसमिए बयसमिए कायसमिए मणगुत्ते वइगुत्ते कायगुत्ते गुत्ते गुतिदिए गुत्तबंभयारी चाई लज्जू घण्णे खंतिखमे जिइंदिए सोहिए अणियाणे अप्पुस्सुए अबहिल्लेसे सुसामण्णरए दंते इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ कार्ड विहरइ ॥ ( सू० ९१) ॥ १२ ॥
पछी श्रमण भगवंत महावीर पोतेज ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजकने प्रत्रजित कर्यो अने यावत्-पोतेज धर्म को के:हे देवानुप्रिय ! आ प्रमाणे जनुं, आ प्रमाणे रहे, आ प्रमाणे रहेलं, आ प्रमाणे बेसकुं, आ प्रमाणे सुबुं आ प्रमाणे खानुं, आ प्रमाणे बोलवु अमे आ प्रमाणे उठीने प्राण, भूत, जीव तथा सन्चो विषे संयमपूर्वक चर्त्तनुं, तथा आ बाबतमां जरापण
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२ शतके उद्देशः १
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