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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१४८ | २ अतके उहेशः १ X॥१४८॥ आळस न राखवी. पछी ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक मुनिए ते श्रमण भगवंत महावीरनो ए पूर्व प्रमाणेनो धार्मिक उपदेश सारी नारीते स्वीकार्यो. अन जे प्रमाणे महावीर आज्ञा दे छे ते प्रमाणे ते स्कंदक मुनि चाले छे, रहे में, बेसे छे, सुवे, खाय छे, बोले. छे, तथा उठीने प्राण, भूत, जीव अने सच्चो तरफ दयापूर्वक वर्ते छे तथा ए बावतमा जरा पण आळस राखता नथी, हवे ते कात्यायनगीत्रीय स्कंदक अनगार थया, तथा इर्यासमिति चालवामां सावधानतावाला, बोलवामां मावधानतावाळा, खानपान लाववामां अने लेवामा सावधानतावाला, पोताना सामानने तथा पात्रोने लेवामां अने मूकवामां काळजीवाळा, कळशे जवामा अने वडीनीति, लघुनीति करवामां मुख तथा कंठनो मेल काढवामां, नाखवामां, कोइपण जातनो मेल नाखवामा तथा नासिकानो मेल नाखवामा सावधान, शरीरनी क्रियामां सावधान, मन, वचन अने कायाने वश राखनार, सर्वने वश राखनार, इंद्रियने वश राखनार, गुप्त अमचारी, त्यागी, सरळ, धन्यथी क्षमाथी सहन करनार, जीतेंद्रिय, व्रत विगेरेना शोधक, कोइपण जातनी आकांक्षा विनाना, उतावळ विनाना, संयम सिवाय बीजे स्थळे चित्तने नहीं राखनार, सुंदर साधुपणामां लीन, अने दांत एवा स्कंदक अनगार आज निग्रंथ प्रवचनने आगळ करी विहरे छे. ॥ १२॥ | तए ण समणे भगवं महाधीरे कयंगलाओ नयरीओ छत्तपलासयाओ चेड्याओ पडिनिक्खमइ २ बहियाजणबयविहारं विहरति । तए णं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं घेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजह, जेणेव समणे भयवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणं भगवं | महावीरं वंदह नमसइ २.एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुम्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासिंयं भिक्खुपडिम For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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