________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
|ळे तेना पांच प्रकार कया छे. ते आ प्रमाणे:-धर्मास्तिकाय, नो धर्मास्तिकायनो देश, धर्मास्तिकायना प्रदेशो, अधर्मास्तिकाय, व्याख्याINIनो अधर्मास्तिकायनो देश अने अधर्मास्तिकायना प्रदेशो तथा अद्धासमय. ॥ १२०॥
२ शतके प्रज्ञप्तिः ा अलोगागासे णं भंते ! किं जीवा? पुच्छा तह चेव, गोयमा! नो जीवा जाव नो अजीपप्पपसा, एगे अजी
उद्देशः१. ॥१९७॥
ववव्वदेसे अगुरुयलहुए अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सवागासे अर्णतभागूणे ॥ (सू० १२१)।
[प्र०] हे भगवन् ! शुं अलोकाकाश ए जीवो छे ? इत्यादि पूर्ववत् पूछg, [उ०] हे गौतम! ते (अलोकाकाश) जीवो नथी यावत्-अजीवना प्रदेशो पण नथी. ते एक अजीव द्रव्यदेश छे, अगुरुलघु छे. तथा अगुरूलघुरूप अनंतगुणोथी संयुक्त छे अने अनंत भागथी ऊणुं सर्व आकाशरूप . [प्र०] हे भगवन् ! लोकाकाशमा केटला वर्ण छे? इत्यादि पूछq. (उ०] हे गौतम ! लोकाकाशमा वर्ण नथी, रस नथी, गंध नथी, यावत्-स्पर्श नथी. ते एक अजीव द्रव्यदेश छे, अगुरूलघु छे, अगुरूलघुरूप अनंत | गुणोथी संयुक्त छे अने सर्व आकाशना अनंत भागरूप छे. ॥ १२१॥ ६ धम्मत्यिकाए णं भंते! किं (के ) महालए पण्णते?, गोयमा! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे
लोयं चेव फुसित्ता णं चिट्ठइ, एवं अहम्मत्थिकाए लोयागासे जीवस्थिकाए पोग्गलत्थिकाए पंचवि एक्काभिलावा ॥ (मू. १२२)॥
[0] हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय केटलो मोटो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम! ते लोकरूप छे, लोकमात्र के, लोक प्रमाण छे, अने लोकने स्पर्शलो तथा लोकनेज अडकीने रहेलो छे. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश, जीवास्तिकाय, अने पुद्गलास्तिकाय ||
*%%%ASANSAR
For Private and Personal Use Only