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१ शतके उद्देशः४
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४ दुक्खाणमतं करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा, से तेणटेणं गोयमा! जाव सम्वदुक्खाणमंतं करेंसु०, पडुप्पव्याख्या
तन्नेवि एवं चेव, नवरं सिज्झतित्ति भाणियब्वं, अणागवि एवं चेव, नवरं सिस्सिंतित्ति भाणियन्वं, जहा छडम प्रज्ञप्तिः
त्थो तहा आहोहिओऽवि, तहा परमाहोहिओवि, तिन्नि तिन्नि आलावगा भाणियब्बा । केवली गंभंते! मणूसे तीतमणंतं सासयं समयं जाव अंतं करेंसु?, हंता सिन्झिसु जाव अंतं करेंसु, एते तिन्नि आलावगा भाणियव्वा छउमत्थस्स जहा नवरं सिझिसु सिज्झति सिज्झिस्मति । से गूणं भंते ! तीतमणतं सासयं समयं पडप्पन वा सासयं समय अणागयमणतं वा सासयं समयं जे केइ अंतकरा वा अंतिमसरीरिया वा सव्वदुक्खाणमंतं करेंसु चा करेंति वा करिस्सति वा सव्वे ते उप्पन्ननाणदसणधरा अरहा जिणे केकली भक्त्तिा तओ पच्छा सिझंति जाब अंत करेस्संति वा ?, हंता गोयमा तीतमणतं सासयं समयं जाव अंतं करेस्संति वा। सेनूर्ण भंते! उप्पनाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्थुत्ति वत्तब्वं सिया?, हंता गोयमा! उप्पन्ननाणदसणधरे अरहा जिणे केवली अलमत्थुत्ति वत्सव्वं सिया । संवे भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ चउत्थो उद्देसो समत्तो॥१-४॥ (सू० ४३) ॥
[प्र०] हे भगवन् ! 'ए पुद्गल वीतेला अनंत अने शाश्वात काळे हतुं' एम कही शकाय! [उ०] हे गौतम! हा, ए पुद्गल वीतेला अनंत अने शाश्वत काळे इतुं एम कही शकाय. [प्र०] हे भगवन् ! ए पुद्गल वर्तमान शाश्वतकाळे छे, एम कहेवाय ! [उ०]
हे गौतम ! हा, एम कहेवाय. (पूर्वोक्त प्रश्न प्रमाणेज कहेवू) [प्र०] हे भगवन् ! ए पुदुल अनंत अने शाश्वत भविष्यकाळे थशे-4 दि रहेशे-एम कही शकाय? [उ०] हे गौतम ! हा, एम कहेवाय. ए प्रमाणे स्कंध साथे पण त्रण आलापक कहेवा. तथा जीव साथे ४
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