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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
2कारोपयुक्त पण छे. [40] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभामा रहेनारा अने साकारोपयोगमा वर्तता नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छे ? [-]] | हे गौतम : अहीं सत्तावीश भांगा कहेवा. अने ए प्रमाणे अनाकारोपयोगमां पण जाणवं. तथा ए प्रमाणे साते पृथिवीमां पण शतके जाणवी. मात्र विशेषता लेश्याओमा हे, ते आ प्रमाणे वे, गाथा-पहेली अने बीजी पृथिवीमां कापोतलेश्या छ, त्रीजीमा मिश्र उद्देशः ५ लेश्या-कापोत अने नील लेश्या छ, चोथामां नीललेल्या छे, पांचमीमां मिश्र-नील अने कृष्ण लेश्या छे. छठीमां कृष्ण लेश्या के ६।६७॥ अने सातमीमां परमकृष्ण लेझ्या छे. ॥ १७ ॥
चउसट्ठीप णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकृमाराणं केवइया ठिइठाणा पण्णत्ता?, गोयमा! असंखेज़ा ठितिठाणा पण्णत्ता, जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं 5 | पडिलोभा भंगा भाणियब्वा-सव्वेवि ताव होज लोभोवउत्ता, अहवा लोभोवउत्ता य मायोवउत्ते य, अहवा लोभोवउत्ताय मायोवउत्ता य, गएणं गमे नेयव्वं जाब थणियकुमाराणं, नवरं णाणत्तं जाणियवं॥(सू०४८)
[प्र.] हे भगवन् ! चोसठलाख असुरकुमारावासोमांना एक एक असुरकुमारावासमां बसता असुरकुमारोना स्थितिस्थानो केटलां कया! [उ०] हे गौतम! तोना स्थितिस्थानो असंख्येय कह्या हे.ते आ प्रमाणे:-ओछाम। ओछी स्थिति, ते एक समयाधिक, बे समयाधिक, इत्यादि नरयिकोनी पेठे जागवान के, विशेष ए के, भांगा प्रतिलोभ-उलटा कहेबाना के. अर्थात् असुरकुमारोना भांगामा लोभ प्रथम कहेबानो छे. ते आ प्रमाणे-ते वधाय पण असुरकुमारो लोभोपयुक्त होय, अथवा घणा लोभोपयुक्त अने एकाद मायोपयुक्त पण होय, इत्यादि ए गमबडे जाणवू. अने ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवं. विशेष ए के, तेओनं |
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