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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
३ शतके उद्देशा४ ||२८४॥
॥२८४||
उद्देशक १. (आगना उद्देशकमा क्रिया संबंधे हकीकत कही छे. अने ते क्रिया, ज्ञानी मनुष्योने प्रत्यक्ष होय छे माटे तेज क्रियाविशेषने आश्राने तेने विचित्रपणे देखाडवा चोथो उदेशक कई :-) ___ अणगारे णं भंते ! भाषियप्पा देवं विउब्वियसमुग्घाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ?] गोयमा ! अत्धेगइए देवं पासइ णो जाणं पासइ १ अत्थेगहए जाणं पासइ नो देवं पासइ २ अत्थेगइए देवंपि पासइ जाणंपि पासइ ३ अत्थेगइए नो देवं पासइ नो जाणं पासइ ४ ॥ अणगारे गं भंते ! भावियप्पा देविं वेउब्बियसमुग्धापणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ, गोयमा! एवं चेव ॥ अणगारे णं भंते! |भावियप्पा देवं सदेवीयं वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहयं जाणरूवेणं जायमाणं जाणइ पासइ ?, गोयमा ! अत्थेगइए देवं सदेवीयं पासह नो जाणं पासइ, एएणं अभिलावेणं चत्तारि भंगा ४॥ अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुवस्स किं अंतो पासह पाहि पासइ चउभंगो । एवं किं मूलं पासह कंद पा० १, चउभंगो, मूलं पा खं, पा चउभंगो, एवं मूलेण बीजं संजोएयव्वं, एवं कंदेणवि समं संजोएयव्वं जाव बीयं, एवं जाव पुप्फेण समं* बीपं संजोएयव्वं ।। अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं फलं पा०वीयं पा., उभंगो॥ (सू० १५५)
[0] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, पक्रिय समुद्घातथी समवहत थएला अने यानरूपे गति करता देवने जाणे, जूए ?
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