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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२३७|| www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हवे ते ईशानकल्पमा रहेनारा घणा वैमानिक देवो अने देवीओए आ प्रमाणे जो के, बलीचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ बालतपस्वी तामलिना शरीरने हीले छे, निंदे हैं, खिसे छे, अने तेना शरीरने आडु अबलं जेम फावे | तेम ढसडे छे. त्यारे ते वैमानिक देवो पूर्व प्रमाणे जोवाथी अतिशय गुस्से भराणा अने कोथी मिसिमिसेमाणा मिसमीसाट करता (वैमानिक) देवोए देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे जइने बने हाथ जोडीने-दशे नखने भेगा करीने माथे अंजलि करी ते इंद्रने जय अने विजयथी वधाव्यो. पछी तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:- हे देवानुप्रिय ! बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ, आप, देवानुप्रियने काळने प्राप्त थरला जाणी, तथा ईशानकल्पमां इंद्रपणे उत्पन्न थएला जोइ ते असुरकुमारो घणा गुस्से भराणा अने यावत्-तओए आपना मृतक देहने ढसडीने एकांतमां मूक्यूं पछी जेओ त्यांची आव्या हता त्यां पाछा चाल्या गया. ज्यारे ते देवेंद्र, देवराज ईशाने ते ईशानकल्पमां रहे नारा बहु वैमानिक देवो अने देवीओद्वारा ए वातने सांभळी अने अवधारी, त्यारे तेने घणो गुस्सो थयो अने यावत्-क्रोधथी मिसमिसाट करतो, त्यांज देवशय्यामां सारी रीते रहेला ते ईशान इंद्रे कपालमां त्रण आड पंड तेम भवां चडावी, ते बलिचंचा राजधानीनी बराचर सपक्षे अने सप्रतिदिशे जो जे समये देवेंद्र देवराज शक्रे ईशने पूर्व प्रमाणे बलिचंचा राजधानीनी बराबर साम-नीचे जोयुं अने सप्रतिदिशे जोयुं तेज समये ते दिव्य प्रभाववडे बलिचंचा राजधानी अंगारा जेबी थइ गड़, आगना कणीया जेवी थइ गड़, राख जेवी थइ गइ, तपेली रेतीना कणिया जेवी थइ अने अति उष्ण लाइ जेवी थइ गइ. हवे | ज्यारे ते बलिचंचा राजधानीमा रहेनारा घणा असुरकुमार देवो अने देवीओ ते बलीचंचा राजधानीने अंगारा जेवी थएली अने यावत्- खूब तपेली लाय जेवी थएली जोह, तेवी जोइने असुरकुमारो भय पाम्या, सुकाइ गया, उद्वेगबाळा गया अने भयथी व्यापी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः १ ॥२३७॥
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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