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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥१०३॥
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गुरुए, नो लहुए, गुरुयलहुए, नो अगुरुयलहुए। एवं सत्तमे घणवाए सत्तमे घणोदही सत्तमा पुढवी, उवासंतराई सव्वाई जहा सत्तमे ओबासंतरे, (सेसा) जहा तणुबाए, एवं ओवासवायघणउदहि पुढवी दीवा य सागरा वासा । नेरइयाणं भंते! किं गुरुया जाव अगुरुलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया गुरुयलहुयावि अगुरुलहुयावि से केणद्वेणं० १, गोयमा ! वेउब्वियतेयाई पडच नो गुरुया नो लहुया, गुरुयलहुया, नो अगुरुयलहुया, जीवं च कम्मणं च पडूच नो गुरुया नो लहुया नो गुरुयलहुया अगुरुयलहुया, से तेणद्वेणं जाव बेमाणिया, नवरं णाणत्तं जाणियव्वं सरीरेहिं । धम्मत्थिकाए जाव जीवत्थिकाए चंउत्थपरणं । पोग्गलत्थिकाए णं भंते । किं गुरुए। लहुए गुरुयलहुए अगुरुयलहुए ?, गोयमा ! णो गुरुए नो लहुए गुरुयलहुएवि अगुरुयलहुएवि से केणट्टणं० १, गोयमा ! गुरुयलहुपदत्र्वाई पडुच नो गुरुए नो लहुए गुरुयलहुए नो अगुरुयलहुए, अगुरुयलहुयदवाई पडुच नो गुरुए नो लहुए नो गुरुयलहुए अगुरुपलहुए, समया कम्माणि य चउत्थपदेणं । कण्हलेसा णं भंते! किं गुरुया जाव अगुरुयलहुया ?, गोयमा ! नो गुरुया नो लहुया गुरुयलहुयाबि अगुरुयलहुयावि, से केणट्टेणं० ?, गोयमा ! दव्वलेसं पडुच ततियपदेणं, भावलेस पहुच चउत्थपदेणं, एवं जाव सुकलेसा, दिडीदंसणनाणअन्नाणसण्णा चउत्थपदेणं णेयव्वाओ, हेडिल्ला चत्तारि सरीरा नायव्या ततियपदेणं, कम्म य चउत्थयपपणं, मणजोगो वइजोगो चउत्थएणं पदेणं, कायजोगो ततिएणं पदेणं, सागारोवओगो अणागारोवओगो चउत्थपदेणं, सच्चपदेसा सव्वदच्वा सव्वपज्जवा जहा पोग्गलत्थिकाओ, तीतद्धा अणागयद्धा सब्बद्धा चउत्थपूर्ण
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१ शतके उद्देशः ९ ॥ १०३ ॥