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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२७॥
शतके उमेशः३ | ॥२७॥
परहस्तपारितापनिकी. [प्र०] हे भगवन् ! प्राणतिपात क्रिया केटला प्रकारनी कही छे ? [36] है मंडितपुत्र प्राणातिपात क्रिया बे प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे:-स्वहस्तप्राणातिपातक्रिया अने परहस्तप्राणातिपातक्रिया. ।। १४९ ।।
पुब्धि भंते! किरिया परछा वेदणा पुन्धि वेदणी पच्छा फिरिया!, मंडियपुत्ता! पुब्धि किरिया पच्छा वेदणा, णो पुब्धि वेदणा पच्छा किरिया ।। (सूत्रं १५०)।
[प्र०] हे भगवन् ! पहेलां क्रिया थाय अने पछी वेदना थाय के पहेला वेदना थाय अने पछी किया थाय ? [उ०] हे मंडितपुत्र ! पहेलो क्रिया थाय अने पछी वेदना थाय, पण पहेला घेदना थाय अने पछी क्रिया थाय' एम न बने. ॥ १५० ।।
अस्थि णं भंते! समणाण निग्गंधाण किरिया काइ, हता! अस्थि । कहं णमंते! ममणाणं निग्गंथाण | किरिया कजइ ?, मंडियपुत्ता! पमायपचया जोगनिमित्तं च, एवं खलु समणाणं निग्गंधाणं किरिया कजति ॥ (सूत्रं १५१)॥
[0] हे भगवन् ! श्रमण निर्गथोने क्रिया होय ! [उ०] हे मंडितपुत्र ! हा होय. [प्र.] हे भगवन् । श्रमण निगथोने केवी | रीते क्रिया होय ? [उ.] हे मंडितपुत्र! प्रमादने लीथे अने योगना-शरीरादिकनी प्रवृत्ति निमित्ते श्रमण निग्रंथोने पण क्रियाओ होय छे.॥ १५ ॥
जीवे णं भंते ! सया समियं एयति वेयति चलति फंदर घट्टइ खुम्भह उदीरइ तं भावं परिण|मति ?, हन्ता ! मंडियपुत्ता! जीवे णं सया समिय एयति जाव तं तं भावं परिणमइ । जावं च ण भंते ! से जीवे
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