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१ शतके
CAHRAI-
उद्देशः ५ ॥११॥
तीए बहमाणा नेरइया किंकोहोवउत्ता माणोवउत्ता मायोवउत्ता लोभोवउत्ता, गोयमा कोहोवउत्ते य माणोव्याख्या- वउत्ते य मायोवउत्ते य लोभोवउत्ते य, कोहोवउत्ता य माणोवउत्ता यमायोवउत्ता य लोभोवउत्ता य, प्रशसिः अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ते य, अहवा कोहोवउत्ते य माणोवउत्ता य, एवं असीति भंगा नेयव्वा, एवं
जाव संखिजसमयाहिया ठिई असंखेजसमयाहियाए ठिईए तप्पाउग्गुकोसियाए ठिईए सत्तावीसं भंगा भाणि| यब्बा ॥ (सू०४५) । संग्रहगाथार्थः-पृथिवी विगेरे जीवावासोमां स्थिति, अवगाहना शरीर, संहनन, संस्थान, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग अने उपयोग, ए दश स्थान संबंधे विचारघानुं छे. [प्र.] हे भगवत् ! ए रत्नप्रभा पृथिवीना बीशलाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासमा रहेनारा नैरयिकोना केटलां स्थितिस्थानो कयां छे अर्थात् एक एक निरयावासमा रहेनारा नैरयिकोनी केटली केटली उमर
कही छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओनां असंख्य स्थितिस्थानो कयां छे ते आ प्रमाणे:-ओछामा ओछी उपर दशहजार वर्षनी छे ते 8| एक समयाधिक वे समयाधिक ए प्रमाणे यावत्-जघन्य स्थिति असंख्येय समयाधिक तथा तेने उचित उत्कृष्ट स्थिति पण ए प्रमाणे दछे. [प्र०] हे भगवन् ! ए रत्नप्रभा पृथिवीनी त्रीश लाख निरयावासोमांना एक एक निरयावासामा ओडामा ओछी उमरमां वस
नारा नैरयिको शुं क्रोधोपयुक्त छ ? मानोपयुक्त छे ? मायोपयुक्त छे ? के लोभोपयुक्त छे? [उ०] हे गोतम ! ते बधाय पण क्रोधोपयुक्त होय छे. अथवा घणा कोधोपयुक्त अने एकाद मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मानोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोषयुक्त अने एकाद मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त अने मायोपयुक्त, अथवा घणा क्रोधोपयुक्त
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