Book Title: Agam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface by Professor W. Schubring. The Nagari Text of the Vavahāra Satta has been prepared by me at Hamburg, Germany, as a transcription of my own critical edition published in 1918 as No. I of Vol. XV of "Studies in Oriental Research.” That edition contains, besides, some notes partly based on Malayagiris' Tika (T). The various readings of the four manuscripts oonsulted, among which, the palm leaf manuscript (P) of the Deocan College Library, Poona, of samvat 1934 (No. V 1917 ), deserves special mention, B & b are paper manuscripts of the Government Library, Berlin. The more important of these readings have found place here. Besides, those presented by the printed text edited by Raja Bahadur Lal sukhdev in Hyderabad (Deccan) have been carefully noticed, as this text represents another roduction. These varients are called H. 1919929199 Sale As to its contents & style, the Vayahára sütta is closely related with the Kappasatta publiBished in this series of 1912. Together with the Dasī or Dashashrutaskandha to be edited later on, both texts form & unity under the name Dasakappa-Vavahār. While, under the name of kappa, Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (Kalpa ) tho goneral as well as the particular rules of conduct are collected, the finer regulations as to the order of rank, the subordination & the procedure towards the transgressor, are comprehended as Vavahīra ( vyavabára). It is clear by itself that the prescripts first named must have an origin previous to those mentioned afterwards. Here with agrees the fact that the kappa zules call the monk niggantba, the vavahára rules bhikku, the latter being the term by far dominating in the rocond part of the Ayaránga and throughout in the Nisiha-sátta, which both can be proved to be not of the same age as our two texto. Walther schubring, Professor of Sanskrit, University of Hamburg, Germany. Site Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना. आ सूत्रनुं नाम व्यवहार सूत्र छे. आ सूत्र छेद सूत्र छे. अत्यार सुधीमां अर्थ, भावार्थ ने मूळ साथे ा छेद सूत्र 18 प्रथमज छपाय छे. हैद्राबादमां सूत्र छपाया छे तेमां शद्धार्थ नथी. फलफत्ताना वाबु साहेब के आगम समिति तरफथी छेद है। सत्र छपाया नथी. अमे १९१५ मां बृहत्कल्प ( वेदकल्प ) नामे छेद सूत्र प्रथम छपाषेल, त्यारपछी आ बीजुं छेद सूत्र व्यव-12 + हार बहार पाडवामां आवेल छे. आ सूत्र अमारे खरचे जर्मनीमा हेम्बगे युनीवरसीटीना संस्कृतना प्रोफेसर वोलथर इयबिना 18/ पासे शुद्ध मूळ (पाठान्तर ने शब्दकोप साथे) तैयार करावी छपावेल छे. छेद सूत्रोमां साधुनी वावत होवाथी आ सूत्र मुनी महाॐ राजाओने वाचवा लायक छ. बृहत्कल्प सूत्र छपाया पछी ते सूत्र घणा मुनी महाराजाओए अमारी पासेथी मंगावेल छे; तेम | र आ सुत्र मुनी महाराजाओने खास मनन करवा योग्य छे. ते साथे आवकोने यांचवाथी तेमांथी घणी जुदी जुदी वावतोनुं ज्ञान | मळशे. आ छेद सूत्र छपावानी अमारी मतलब जैनसूत्रज्ञाननो फेलाबो करवानी छे. आ सूत्रनुं मूळ जर्मनीमां १९१८ मां || अंग्रेजीमां उपला मोफेसरे छपावी प्रसिद्ध करेल छे. आ सूत्रनुं मूळ नीचेनी प्रतोने आधारे तेमणे रचेल छे. ने आ सूत्रमा दरेक से पाठान्तरमां ते प्रतोना नाम अमे नीचे वतावेल टुंका अक्षरोमां इंगेजी तथा गुजरातीमां आपेल छे, जेथी वांचकवर्गने | समजण पडशे. (१) T (टी) मलयगीरीनी टीका, २ P (पी) नामनी प्रत ते पुनानी डेकनकोलेजनी लाइब्रेरीनी ताडपत्रनी प्रत छ जे संवत १३३४ नी नंबर (५-१३१७) नी छे. (३) B (वी) ने (४) b (नानी वी) आ वे जर्मनीमां वरलीन R EASABASE Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नी गवर्नमेन्ट लाइबरीनी पागल पर लखेल सूत्रोनी प्रतो छे. तेमांथी मूळ धणुं खरं आ घूत्रमा लीधेल छे. (५) । (एच आ दक्षिण ऐद्राबादमां छपाएली मत छे. उपरनी प्रतोने आधारे आ सूत्रनु मूळ तथा पाठान्तर छपावेल छे. आ सत्रमा आवेल अपरा शब्दोनो कोश तथा शुद्धिपत्र पण अलग छपावी आ साथे सामेल करेल छे. आ सूत्रनी अनुक्रमणिका तथा तेमां भा येली वायतोनी कमावारी करी आ सूत्रमा छपावी छे जेथी अमुक वावत सूत्रमाथी तरत मळी शकशे. अमारा तरफथी छपावेल Hोनी जाहेर खबर पण आ सूत्रमा छपावेल ते उपर वांचकवर्गनुं ध्यान खेंचवा रजा लउछ. आ मन्त्र छपाववामां नजर चुकधी कोइपण भुल रही गइ होय तेमां सुधारो करी बांचवा तथा तेवी सुधारवानी बावतो अमने लखी मोकलवा तथा लें जारमा अमारा छपावेल सूत्र विरुद्ध टीकाओ छपावता पहेला अमारो खुलासो लेवा दरेक जैन बंधुने अमारी नन अरज छे. शुद्धिपत्रमा मूळमां भुल चुक रहेल ते सुधारी तेना उपर *आयु चिन्ह ते पत्रमा बतावेल छे जेथी मूळपाठ ते मुजब सुधारी वांचवाने सुलभ पडशे, तथा इंद्रावादवाळी पत्र साथे मेळवता केटलोक अर्थमां फेरफार मालम पडेल जे शुद्धिपत्रमा वताव्यो छे ते पांचवा अमारी नम्र अरज छे. PAKHRECRUCHARLSS) LSCREENSIROHASTROLOGER- 99 डाकटर जीवराज घेलाभाश् दोशी. ___L. M. & S. नवा दरवाजे-अमदावाद. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाबत. व्यवहार सूत्रनी अनुक्रमणिका. विषय. बाबत. विषय. M I १लो उद्देसो. पाने १थी २८. कुल सूत्रो ३९+२ अकृत्य स्थानक सेवी आलो तेमने PIआलोयणा ने पाय- पापस्थानक सेवनारने आलोयणा ने मायश्चित केम देवु ते बाबत श्चित सूत्रो १-२० मायश्चित आलोयणा ने प्रायश्चित परिहारी अकृत्य स्थानक सेवी आलोवे से परिहारी २१-२४ परिहारीने एकठा रहेवाने तप बाबत परिहारीने ५थी ५-१ तेने मायश्चित केम देवु ते बाबत IPगच्छ २५-३२ साधु विगेरेने फरी गच्छमां लेवा | गच्छ ६-२३ गच्छमां जुदा जुदा रोगथी पीडाता २३२-१थी-३३ बाबत साधुओने लेवा बाबत प्रायश्चित ३४-३७ साधुए दोष सेवी आलोचना केनी पासे |२३७-१थी ३९ करी मायश्चित लेवु ते बाबत मैथुन २४-२५ साधुए मैथुन सेववाना आळ बाबतनी II २जो उदेसो. पाने २९थी ४४. कुल मुत्रो ३०+१ तपास ने प्रायश्चित देवा बाबत al आलोयणा ने माय- बे साधुओ एकठा रही एक के बन्ने | आचार्य पदवी २६ एक पक्षी एटले गच्छमां रहेनार साश्चित साधुने १-२ अकृत्य स्थानक सेवी आलोवे तेमने धुए आचार्य उपाध्याय स्थापवा बाबत प्रायश्चित केम देवु ते बाबत परिहारी अपरिहारी परिहारी अपरिहारीनो संभोग (एका ,, ३-४ घणा साधुओ एकठा रही एक के घधा । १२७-३० जमवा) बाबत CAUSESCBAD ASSURESSESSES REC Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपय. वावस. III ३जो उद्देसो. पाने ४५थी ६१. कुल सूत्रो २९. पदवी १-२ सूत्रों गच्छाधिपतिपणुं केटला भणेला साधुने केवी रीते मळी शके ते बाबत उपाध्याय पशुं फेवा आचारवाळा साधुने मळी शके, केवाने न मळी शके तेबाबत आचार्य उपाध्यायपशुं फेवा आचारवाळा साधुने मळी शके, केवाने न मळी शके ते वावत ३ - ४ ५-६ " 23 " "2 11 ९ ७-८ छपवी केवा साधुने मळे के न मळे ते बाबत साधु दिक्षा लइ छांडे ने फरी दिक्षा कीए, तेने तेज दीवसे अमुक संजोगे आचार्यपणे उपाध्यायपणे स्थापना बाबत साधु दिक्षा छांडे ने फरी दिक्षा लीए ने ते वह सूत्री होय तो आचार्य उपाध्यायपणे स्थापवा घाषत. १० विषय. आचार्य ११-१२ पदवी १३ " 19 बावत. युवान साधु साध्वीप आचार्य उपाध्यायविना न रहेवा बाबत. साधु गच्छथी नीकळी मैथुन सेवी फरी दिक्षा लीधा पछी तेने क्यारे फरीने आचार्य वगेरे पदवी आपरी ते बावत. १४- १६ गणावच्छेदक तथा आचार्य उपाध्याय पदवी मुक्याविना मैथुन सेवे तेमने जाव जीव सुपी फरी ते पदवी न आ पवा घाघत. १५-१७ गणावच्छेदक, आचार्य उपाध्याय प वी मुकी मैथुन सेवी फुरी दिक्षा कीए तो पयारे तेमने आचार्य वगेरे पदवी देवी ते वाचत. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. बाबत. पदवी १८ साधु साधुनो वेश छोड्याविना गच्छथी नीकळी द्रव्य लींग छोडवा देशान्तरे जाय ते वळी फरी दिक्षा लीए तो क्यारे तेने आचार्य वगैरे पदवी देवी ते बाबत. " १९-२१ गणावच्छेदकने आचार्य पदवी मु क्याविना द्रव्य लींग छोडी मैथुन सेवे तेमने जाव जीव लगे ते पदवी न देवा बाबत. गणावच्छेदकने आचार्य पदवी मुकी द्रव्य लींग छांडी मैथुन सेवी फरी दि- क्षा लीए तो क्यारे ते पदवी देवी ते बाबत. २३-२५ साधु, गणावच्छेदक ने आचार्य, मुषा विषय. बाबत. बोले तेने जाव जीव सुधी पदवी न देवा बाबत. " २६-२८ घणा साधुओ, घणा गणावच्छेदको ने घणा आचार्यों ने उपाध्यायो दरेक जुठं बोले तेमने जाव जीव सुधी पद वी न देवा बाबत. , २९ घणा साधुओ, घणा गणावच्छेदको, 18/ घणा आचार्यों, घणा उपाध्यायो बधा जुटुं बोले ते सर्वेने जाव जीव सुधी पदवी न देवा बाबत. IV ४ थो उद्देसो. पाने ६२ थी ७८. कुल सूत्रो ३२ ॥ परिवार १-२-५-६ आचार्य उपाध्यायनो शियाळा, उना ला ने वर्षाकाळना परिवार बाबत. VEGECHESE SARESCHEMOCRECORRECERK " २०-२२ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -C4 * H . " विषय. चावत. विषय. वावत. आपवी ते वावत , ३-४-७-८ गणावच्छेदकनो उपर मुजवनो परि लीग की आचार्य उपाध्याय जाय वार. घणा आचार्यों, उपाध्यायो ने गणाव ते वखते अमुकने पोतानी पदवी आछेदकोनो शियाळे उनाळे ग्रामानुग्रा पवा कहे तेने ते पदवी केम आपवी ६ म विचरवानो परिवार ते वावत घणा आचार्यों, उपाध्यायो, गणाव वीदिक्षा १५-१७ आचार्य उपाध्याये नव दिक्षीतने वहीच्छेदकोनो ग्रामानुग्राम वर्षाफाळे रहे दिक्षा आपवा वावत वानो परिवार गच्छ १८ ज्ञान मेळववा साधुने वीजा गच्छमां आचार्य ११ ग्रामानुग्राम फरता साधुना आचार्य जवा बावत काळ फरे तो साधुए शु करवू | विचर, १९ घणा साधुओने स्थिवरनी आज्ञा लइ चोमासामां आचार्य काळ करे तो साथे विचरवा वावत शु करवु पदवी १३ आचार्य मरती वखते अमुकने पोतानी २०थी २३ साधुए आज्ञा विना न विचरवा बाबत पदवी आपवा कहे तेने ते पदवी केम | गुरुसेवा २४ गुरुनी शिष्ये सेवा करवा वापत ABARHECREECHECKECE " १२ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय गुरु शिष्य २५ २६ "" " " बावत, गुरु शिष्य साथै केम बर्तं ते बाबत वे साधुओ एकठा रहे तेमां एकने गुरु करी रहेवा बाबत २७-२८ वे गणावच्छेद को, बे आचार्यो, उपा ध्यायो साथ रहे तेमां दरेके एकने गुरु करी रहेवा बाबत ” २९-३०-३१ घणा साधुओ, घणा गणावच्छेदको, घणा आचार्यो, उपाध्यायो एकठा रहे ता दरेके एकने गुरु करी रहेवा बाबत ३२ घणा साधुओ, घणा गणावच्छेदको घणा आचार्यो, उपाध्यायो एकठा रदेता एकने गुरु करी रहेवा बावत. विषय. बाबत. V ५ मो उद्देसो. पाने ७९ थी ९०. कुल सूत्रो २१. परिवार १-२ 39 " 21 " 36 " साध्वीनी गोराणीनो शियाळा उनाकानो परिवार साध्वीनी गोराणीनो चोमासानो परिवार ३ ने ४ गणावच्छेदणीनो शियाळा उनाळानो परिवार ७८ गणावच्छेदणीनो चोमासानो परिवार ९ ग्रामानुग्राम फरती घणी गोराणीओने घणी गणावच्छेदणीओनो शियाळा नाळानो परिवार ग्रामानुग्राम फरती घणी गोराणीओने घणी गणावच्छेदणीओनो चोमासानो परिवार ५ मे ६ १० Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वावत. विषय. - - -- विषय. बावत. गोराणी ११ गामेगाम जता गोराणी काळ करे तो संमारे तो ते पदवी पर रहे ते वावत वीजी गोराणी नीमवा वावत स्थिवर १८ स्थिवर विसारेल आचारंग सूत्र केवी चोमासामां गोराणी काळ करे तो धी रीते फरी संभारे जी गोराणी नीमवा वावत आलोवयु १९ साधु साध्वीने दोष लागता कोनी, पदवी १३ गोराणी काळ करे त्यारे पोतानी प. पासे आलोचवू ते वावत दवी अमुकने आपका यावत वैयावच २० साधु साध्वीने १२ प्रकारनो संभोग , १४ गोराणी लींग छोडी जाय त्यारे अमु थया पछी केम वैयावच करवी ते वावत कने पोतानी पदवी आपवा वावत आचार स्थिवर ने जी- साधु साध्वीने साप करडतां केम ओ. आचार्य पदवी १५- नवो साधु, नवी साध्वी आचारंग सूत्र न कल्पी साधुनो २१ पड करावे ते वावत्तमां स्थिवर ने जीन || विसारे त्यारे केवा कारणे तेने आचा कल्पी साधुना आचार वाचत ये वगेरे पदवी आपवी के न आपवी | VI ६ हो उद्देसो. पाने ९२ थी १०१. कुल सूत्रो २४ ते वायत सगाने त्यां जवा वा. साधु साध्वीने सगाने त्यां स्थिवरनी स्थिवर आचारंग सूत्र विसारी पछी । वत १ रजा लइ जवा बात -.. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1067963Ebe HOSHIKSHABHI विषय, बावत. विषय. वावत. ..२-३ साध सगाने त्यां केटला ज्ञानवाळा | ममा रहेवा बाबत १९ दरवाजावाळा गाममा एकला न रहेवा साधु साथे जइ शके वावत ॐ सगानुं आहार पाणी साधु सगाने त्यां गया पछी कया " २० वहु सूत्री साधुने एक गढ ने एक द४ थी ९ आहार पाणी लइ शके ते वावत रवाजावाळा गाममां एकला रहेवा वावत अतिशय १० थी १४ आचार्य उपाध्यायना अतिशय , १५-१६ गणावच्छेदकना अतिशय हस्तकर्म २१ साधु हस्त कर्म करे तेने प्रायश्चित (अभण) साधुने गा- अभण साधुओने १ गढ ने १ वारणा मैथुन सेवे २२ साधु मैथुन सेवे तेने प्रायश्चित एममा रहेवा बाबत १७ वाळा गाममां केवी रीते एकहुं रहेवु | गच्छमां लेवी खराब आचारवाळी साध्वीने गच्छमां ते बाबत २३-२४ पाछी लेवा बावत । , १८ अभण साधुओने घणा गढ ने घणा द VII ७ मो उद्देसो. पाने १०२ थी ११४. कुल सूत्रो २७ रवाजावाळा गाममां केवी रीते रहे | गच्छमां लेवा वावत १ साध्वीए, साधुने पुण्याविना वीजा ते बाबत गच्छनी साध्वीने गच्छमां न लेवा है साधु बहु सूत्रीने गा- बहु सूत्री साधुने घणा गढ ने घणा । बाबत . Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. वायत. बाबत. विषय. साधुने पुछीने लेवा वावत , ८-९ साध्वीए साधुने पोताने अथ दिक्षा न साधुए, साध्वीने पुछीने के पुछया देवी पण वीजा साधुने अथ देवी विना वीजा गच्छनी साध्वीने गच्छमां | विहार विकट देशमा १० ध्वीए विकट जग्याए विहार न करवो । लेवा वावत , ११ साधुए करवो विसंभोगीपणु साधु४ साधु साध्वीए, साधुनु विसंभोगीपणुं विकट देशमा प्रायश्चित साधुने विकट देशमा जइ प्रायश्चित मोढामोढ करवा वावत ठेवू कल्पे-साध्वीने विकट देशमां गर साध्वीनुं ५ साधु साध्वीए, साध्वीनुं विसंभोगी याविना प्रायश्चित ले करपे. पणुं वीजी साध्वी साथे तेने कहेवरा सझाय विकाळे १४- साधु साध्वीए विकाळे सझाय न करवी वीने करवा वावत १५ साधुनी आज्ञाए साध्वीने फरवी करपे. दिक्षा ६ साधुए, साध्वीने पोताने अर्थे दिक्षा न देवी सझाय (असझायनी साधु साध्वीए असझायनी वेळाए ससाधुए साध्वीने वीजी साध्वीने अर्थे घेळाए) १६-१७ झाय न करवी सझायनी वेळाए करवी , दिक्षा देवी सझाय १८ साधुसाध्वीए पोताना शरीरनी अस Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. वापत. विषय. चावत.. झायए सझाय न करवी पण एक बीजाने उतरता साधुए भाहार पाणी कोनो वांचणी देवी. छांटवो ते बाबत । पदवी उपाध्यायनी १९ केटला वरसनी दिक्षावाला साधने उपा-स्थानकनी आज्ञा २४ स्थानकमां उतरतां पहेलां कोनी आशा साधुए मागवी ध्यायपणुं आप. पदवी आचार्य सपा- केटला वरसनी दिक्षावाला साधुसा- | | पंथे रहेता आज्ञा २५ पंथे रहेता आशा मागवा बाबत ध्यायनी २०ध्वीने आचार्य उपाध्यायपणुं आपq. | देशमा रहेतां आज्ञा कोइ देशना राजाए काळ को होय २६-२७ त्यारे कोनी आज्ञा साधुए मागवी कलेवर परठववा साधुसाध्वीए एक बीजानुं कलेवर | VILC मो उद्देसो. पान ११५ थी १२४. कूल सूत्रो १६ बाबत २१ परठववानी विधी. सेजा संथारो १ . सेजा संथारो वर्षारुतु पहेलाने पजो२ सेजान्तरनो आहार सेजान्तरना भाडे आपेल स्थानकमां सण पछी स्थिवरनी माझा मागी | २२ उतरतां तेनो आहार साधुए न लेचा छेवा बाबत बाबत , २-३ इकको सेजा संथारो शियाळे उनाळे " २३ सेनान्तरे वेची नाखेल स्थानकमां ] ने वर्षास्तुमा लेवा पायत AKASHAN Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , १३-१४ बाबत. विषय. विषय. बावत. सेजा सयारो स्थिरवास माटे लेवा आज्ञा मागवा बावत वावत. जुओ शुद्धि पत्रक उपगरण १२ साधुने गाममां खातर अर्थे जता उपसपगरण स्थिवरना ५ स्थिवरने शुं शुं उपगरण राखवा गरण कोइ साधुनु पडेलु जडे तो शुं फरपे ते वाचत फरवू ते वावत सेना संथारो ६-७ सेजा संथारोपाढीयारो के सेजान्तरनो, वियार के विहार भूमिमां जवां के प्रामालधणीनी आशा मागीने लइ जवा मानुग्राम जतां रस्तामां उपगरण जडे बावत तो शुं करवू ते वावत सेजा संथारो८ उपलो सेजा संथारो पाछो आप्या मर्यादाथी अधीक उपगरण बीजा यका लाववा पावत पछी फरी आज्ञा माग्या विना गाम न लइ जवा वावत उणोदरी तप १६ उणोदरी वप वापत स्थानफ सेजा संथारो स्थानफ सेजा संथारो प्रयमयी भाज्ञा IX ९ मो उद्देसो-पार्नु १२५ थी १४६. कूल सूत्रो ४७ ९-१० मागीने लेवा वावत सेजान्तरनो आहार साधुए सेजान्तरना परोणानो माहार ! सेना संयारो ११ सेजा थारो कोइ वखत लीधा पछी । १ थी ४ लेवा बावत ARR! ॐॐ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. बाबत. विषय. बाबत. , ५ थी ८ साधुए सेजान्तरना नोकरनो आहार ३१-३२ मीठाइनी. ३३-३४ रसोइलेवा बाबत यानी. ३५-३६ खावानी. उपली ९ यी १६ साधुए सेजान्तरना सगानो आहार दुकानोमांथी उपली चीजो वहोरवा वाचत ॐ ३६ थी ३६ लेवा बावत . . | पडिमां साधुनी साधुनी पडिमा * सेजान्तरनी दुकानो- सेजान्तरनी नीचेनी दुकानो तेमां तेनो | ३७ यी ४० नी चीजो भाग होय ने भाग न होय तेवी चीजो ) मोय पटिमा ४१-४२ मोय पडिमा नानी ने मोटी लेवा वाबत दात अन्न पाणीनी साधुने अन्न पाणीनी दात लेवा १७ थी ३६ १७-१८ तेलनी. १९-२० गोळनी. ४३-४४ वावत २१-२२ करियाणानी.२३-२४ कपडा | अभिग्रह साधुनो साधुनो अभिग्रह वेचवानी. २५-२६ सूत्रनी. २७-२८ | ४५ थी ४७ कपास के रुनी. २९-३० गांधीपणानी. [ x १० मो उदेसो. पार्नु १४७ थी १७४. कूल सूत्रो ५३ ॐ**1315 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3645% EURUS पावत. विषय. वावत. स्तुतस्कंध वेद कल्प ने व्यवहार. ३१ ।। पटिमा १ थी १/४ जव मध्य ने वज्र मध्य पडिमा ठांणागसमवायंग. ३२ भगवती. व्यवहार ५ व्यवहार पांच प्रकारना ३३ थी १६ नानी मोटी विमान पवि । चोभंगी ६ यी २३ ६ थी १३ पुरुपनी. १४-१५ आचार्य भक्ति विगेरे. ३७ चारणभावना. ३८ नी. १६ धर्माचार्यन। अंतेवासीनी. तेयणी सतक. ३९ मासी विष १७ अन्तेवासीनी १८-१९ धर्माचा भावना. ४० द्रष्टिविष भावना. ४१ र्यनी. २०-२१ धर्मना अन्तेवासीनी द्रष्टि वाद. ४२ सर्व सूत्रो. २२-स्थिवरभूमिनी.२३ शिष्यनीभूमी | वैयावच ४५ दस प्रकारनी वैयावच बावत। दिसा लघु साधुनी लघु साधुने केटला वर्षे दिक्षा न , ४४ पी ५३ ४४ आचार्यनी वैयावच. ४५ उपा.. २४-२५ देवी ने देवी ते चावत' ध्यायनी.४६ स्थिवरनी.४७ तपस्वीनी.* सूत्रो भणाववा साधुने नीचेना सूत्रो केटला वर्षे १८ शिष्यनी. ४९ रोगीनी. ५० साध२६ यी ४२, भणाबवा ते वाचत. २६-२७-२८ मिक साधुनी.५१ साधुना कुळनी. ५२ आचारंग. २९ सूयगडांग, ३० दशा साधुना गणनी. ५३ साधुना संघनी. +KRA Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो... २ . م ४५ यी ४७ م .. व्यवहारसूत्रनी अनुक्रमणिकानी कक्कावारी. उद्देसो. सूत्रो. विषय. अतिशय ( आचार्य १० थी १६ , (परिहारीने) गणावच्छेदकना) अभिग्रह , (कोनी पासे) आचार्य पदवी २६ उपंगरण (स्थिवरना) ,(आचारंग सूत्र " (पडीगएल) विसारे तो) १५-१६-१७ ।, (मर्यादायी अधीक) आचार्य (जोइए) ३ ११-१२ । । उणोदरी तप आचार्य ( काळ करे तो) ४ कलेवर (परठववा बाबत) आचार (स्थिवर ने जीन क. गच्छमां (फरी लेवाः) ल्पीनो सर्प करडे त्यारे) ५ आलोयणा १थी २० गच्छमां (फरी लेवा ५ ८ ८ ८. '१२ थी १४ लगाकर उकSASA5-555 م ७ १ २५ थी ३२ ३२-३३ م २ ६ थी २३ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रो. असो. सूत्रो. २६-२७ AEHISॐॐॐ विषय. उसो. रोगीने) गच्छ (बीजामा जर्बु ज्ञान माटे) गच्छमां (फरी लेवा पावत) गच्छमां (लेवा पावत) गुरु सेवा (शिप्ये करवी) गुरुनु शिष्य साये वर्तन गुरु फरीने रहे, ४ गोराणी (काळ कये, वीजी ५ नीमबा वावत) चौभंगी दात ( अन्न, पाणीनी) ९ दिक्षा (साधु साध्वीने देवा वायत) दिक्षा ( लघु साधुने ) १० ३७ थी ४० ४१-४२ १थी १/४ २५ १थी८ . 09000 २३-२४ १ यी ३ २४ २५ २६ थी १२ ११ १२ विषय. देशमा साधुने रहेवानी ७ राजानी आझा पडिमा (साधुनी) पडिमा मोय पडिमा १० पंथे रहेता आज्ञा लेवी पदवी, छए देवी ३ पदवी (दिक्षा मुकेल ने तेज दीवसे) पदवी (बहु सूत्रीने). ३ पदवी (मैथुन सेवनारने ३ । फरी आपवा बाबत) पदवी (मृखा बोले तेने)३ पदवी (आचायनी अमुकने ४ आपवा बावतं) १३ थी २२ ६ थी २३ ४३-४४ ६ थी ९ २३ थी २९ १३-१४ २४-२५ ' फर Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. सत्रो. १३-१४. २ . २० . ॐ विषय, ! उद्दसो. पदवी गोराणीनी ( अनु- ५ ने आपवा बावत). . 5 पदवी (साधु ने उपाध्या- ७, दयनी) : पदवी ('साधु साध्वी ने, ७, आचार्य उपाध्यायनी) परिवार (आचार्य वगेरेनो) ४ परिवार (गोराणी वगेरेनो) ५ . परिहारीने ( एका रहे, १ ने तप) परिहारीने (प्रायश्चित )२ ६ परिहारी (अपरिहारीने २ * एकग जमवा वावेत) १ थी १० १ थी १० २१.थी २४ विषय. उद्दसो. सूत्रो. ३७/१ थी ३९ १ थी४ ५-५/१. मैथुन ( साधुए सेववानी : २ २४-२५ तपास) मैथुन सेवनारने प्रायश्चित ६ २२ वही दिक्षा (नव दिक्षितने) ४ १५ यी १७ -व्यवहार (पांच प्रकारे) १० विकट. देशमा विहार ७ विकट देशमा प्रायश्चित ७ २१२-१३ | विचर(स्थिवरनी आज्ञाथी) ४ | १९ थी २३ विसंभोगीपणुं (साधु साध्वीk) ७ वैयाषच (संभोगी साधुनी)५ । वैयावच (१० प्रकारनी) १०. ४ थीं-५३ : २७ थी ३० प्रायश्चित १ थी २० ३४ थी ३७ - ra.aur.---.- Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 सूत्रो. उदेसो. सूत्रो. विपय. २६ थी ४२ १ यी ९ २२-२३ विषय. उद्देसो. सत्र (कयां केटली वये १० साधुने भणाववा) सेजांतरनो आहार न लेवो ७ (स्थानकमां उतरवा माटे) सेजांतरना परोणा सगा ९ वगेरेनो आहार लेवा बाबत १४-१५ २६ थी १८ १ थी १६ ३६ यी ३६ कनवर २४ १७ थी३६ सगा (ने त्यां साधुए जवा ६ बावत ने माहारपाणी लेवा वावत) सझाय (विकाळे) ७ सझाय (असहाय वखते, न करवा वाचत) स्थानक (मां उतरता ७ पदेला मामा लेवी) स्थानकनी ( आशा लेवी)८ साधु ( अभणने गाममां ६ रहेवा वावत) साधु (बहुसूत्रीने गाममां ६ रदेवा वावत) स्थिवर (आचारंग सूत्र ५ १ थी ४ ६ थी८ १७-१८ सेजांतरनी दुकानोनी चीजो९ लेवा वावत सेजा संयारो लेवा वावत ८ सेजां संथारानी प्रथमथी ८ आज्ञा मागवी सेजां संथारो लीषा पछी ८ आज्ञा लेवी हस्तकर्म NCCESCENGLCACHEREGREEN १९-२० विसारे) COR Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 ववहारसुत्तं. पढमो उद्देसओ. व्यवहार ते प्रवृति निवृतिरूप कहीए ते व्यवहार पांच विधिए छे ते मांहे मुख्य वे विधि कही तेना नाम१ आगम व्यवहारी तेना छ भेद का १ केवलज्ञानी । २ मनपर्यवज्ञानी । ३ अवधिज्ञानी । ४ चौदपूर्वि । ५ अभिन्न दशपूर्वि । ६ नवपूर्वि झाझेरा. २ श्रुत व्यवहारी ते दशाश्रुतकल्प, वृहतकल्प, व्यवहार ने निसिथ वगरे छेद सूत्रना जाण, श्रुत व्यवहारी अनेक भेदे ते आचारंगादिकना जाण जाणवा. अर्थ ॥ १ ॥ जे. जे कोइ । भि, साधु | मा. एक मासनुं । प. परिहार प्रायश्चितनुं । ट्ठा. स्थानक । प. अंगीकार करी । सेवीने । आ. आलोवतां थकां । अ. रहित । प. माया ( कपट ) रहितपणे । आ. आलोवतो थको । मा. एक मासनुं प्रायश्चित आये । प. माया (तारापणे ) सहित । आ. ओलोवता थकाने । दो. वे । मा. मासनुं प्रायश्चित आवे ॥ १॥ मूलपाठ ॥ १ ॥ जे भिक्खू मासियं परिहारट्ठाणं परिसेवित्ता यालोएका, अपलिउञ्चिय आलोएमाणस्स मासियं, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स दोमासियं ॥ १॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हार १ भावार्थ ॥ १ ॥ जे कोइ साधु साध्वी एक मासतुं प्रायश्चितनुं स्थानक अंगीकार करीने सेवीने आलोचतो थको जो ते माया (कपट) रहित आलोवे तो एक मासर्नु प्रायश्चित आवे ने जो माया सहित आलोवेतो ने मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥१॥ आ वावत उदाहरणे करी बतावे छे. कोइ एक तापस फलादिकनो अर्थी थको अटवीने विषे पेठो, तेणे नदी किनारे मुही एलो मच्छ दीठो. ते मच्छर्नु तापसे भक्षण कयु. ते खोराक पाचन न थवाथी शरीर जीर्ण थयु. तेवारे तापसे वैदनी सलाह लीधी. वैदे पुछ्यु के तमे | खाधु, त्यारे कपट करी कयुंके में फळ खाधां छे. वीजें कांइ खाधुं नधी. वैदे तापसने घी पायुं | पण तेथी रोग मटयो नहीं. पछी तापसे वैदनी फरी सलाह लेतां वैदे पूछयु के तमे शुं खाधेल ते खरेखलं कहो. ते वारे फरीने तापसे कपट रहित कडंके में मच्छ भोगव्यो छे. ते पछी रेच वमन वगेरे उपचार करी रोग शमान्यो. ए रीते जे साधु माया सहित आलोवे तेनी क्रिया सिद्ध न थाय, माया रहित आलोचना करे ते शुद्ध होय. जेम वैये तापसने शुद्ध कर्यो तेम आ18 चार्यरुपी वैद्य साधु साध्वीरुप तापसने प्रायश्चित रुपी वमन विरेचनादि दइने शुद्ध करे. तेम शुद्ध हुवा थका जन्म मरण 18 M व्याधि रहित मोक्षना अनंत सुख भोगवे ॥ ____ अर्थ ॥२॥ जे० जे कोइ । भि० साधु । दो० थे । मा० मासर्नु । ५० प्रायश्चितनुं । टा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवतो थको । अ० रहित । ५० माया रहित पणे (अणगोपवतो थको)। आ० आलोवेतो तेहने । दो० बे। मा० मासनं ४ प्रायश्चित आवे । प० माया सहित (गोपवतो थको)। आ० आलोवे तो तेहने । ते० जण । मा० मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥२॥ मूळपाठ ॥२॥जे निक्खू दोमासियं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, अपलिउञ्चिय आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिजञ्चिय आलोएमाणस्त तेमासियं ॥२॥ NAGA4%9555 AAAAECCASABASIRSS Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ २ ॥ जे कोइ साधु साध्वी वे मासनुं प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवतो थको जो माया ( कपट ) रहित आलोये तो वे मासतुं प्रायश्चित आवे ने जो माया कपट सहित आलोवे तो त्रण मासतुं प्रायश्चित आवे ॥ २ ॥ . अर्थ ||३|| जे० जेकोइ । भि० साधु । ते० त्रण | मा० मासनुं । प० प्रायश्चितनुं । द्वा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोयतो थको | अ० अण । प० गोपवतो थको एटले मायारहितपणे । आ० आलोवतो थको तेने । ते० त्रण | मा० मासतुं प्रायश्चित आये अने । प० माया सहित गोपवतो थको । आ० आलोवे तो तेने । चा० चार । मा० मासनुं प्रायश्चित आवे ॥ ३ ॥ मूलपाठ ॥ ३ ॥ जे जिक्खू तेमासियं परिहारहाणं परिसेवित्ता आलोएडा, अपलिञ्चिय यालोएमाणस्स तेमासियं, पलिउश्चिय आलोएमाणस्स चाजम्मासियं ॥ ३ ॥ भावार्थ ॥ ३ ॥ जे कोइ साधु साध्वी त्रण मासना प्रायश्चितना स्थानकने सेवीने आलोवतो थको माया कपट रहित आवे तो तेने त्रण मासनुं प्रायश्रित आवे ने माया सहित आलोवे तो चार मासनुं प्रायश्चित आवे ॥ ३ ॥ आ उपर एक उदाहरण कहे छे. जेम कोइएक शूरवीर पुरुषने संग्राममां घणा शस्त्र लाग्या तेथी दुखी थतां वैदने वोलाव्यो. वंदे जे जग्याए शस्त्र बताव्यां ते जग्याएथी शस्त्र बहार काढी साजो कर्यो पण ते शूरवीरे शस्त्र काढतां दुःखनी पीडाने लीधे एक शस्त्रनी जग्या बतावी नहीं. ते शस्त्र शरीरनी अंदर रहेवाथी दुर्बल थतो होवाथी फरी वैदने वोलावी ते शस्त्रनी जग्या बतावी, शस्त्र वहार कढाव्युं ते पछी ते शूरवीर वळवान थयो, तेम आचार्यरुपी वैद जे. आलोयणा दीए ते साधु शुद्ध रीते Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 공 ॥ आलोयां थकां साधु द्रव्यथकी शरीरे ने भाव थकी ज्ञान, दर्शन, चारित्त ने तप संयमे करी बळवंत होय एवी रीते शुद्ध आलोय हारने शूरवीर जाणवो ॥ अर्थ ||४|| जे० जेकोइ | भि० साधु । चा० चार। मा० मासनुं । प० प्रायश्चितनुं । द्वा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलो तो थको । अ. रहित । प० माया रहित । आ. आलोवे तो तेने । चा० चार। मा० मासनुं प्रायश्चित । प० माया सहित । आ० आलोवे तो । पं० पांच । मा० मासनुं प्रायश्चित आवे ॥ ४ ॥ मूळपाव ॥ ४ ॥ जे निक्खु चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं परिसेवित्ता आलोएका, अपंलि - चि आलो मास्स चाउम्मासियं, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स पञ्चमासियं ॥ ४ ॥ भावार्थ ||४|| जे कोइ साधु साध्वी चार मासनुं प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवतो थको मायारहित आलोवे तो चार मासनुं प्रायश्चित पामे ने माया सहित आलोवे तो पांच मासनुं प्रायश्चित पामे ॥ ४ ॥ आ उपर एक उदाहरण कहे छे. एक नगरमां वे माळी रहेता हता. महोत्सवने दिवसे वागमांथी फळ फूल लाव्या तेमांथी एके फळ फूल राजमार्गे न वेचचा काढतां संताडी राख्या तेने कांइ लाभ मळ्यो नहीं ने वीजा माळीए प्रगट रस्तामां फळ फूल वेचवा काढ्या. ते फळ फूलना वेचाणथी लाभ पाम्यो. तेम जे मूळ गुण उत्तर गुण विरोधे ते प्रगट निर्वाण फळ न पामे ने जे मूळ गुण उत्तर गुण शुद्ध रीते अतिचार रहित पाळे ते मुक्तिफळ पामे ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H उन्ड नऊऊन्य अर्थ ॥५॥॥ जे. जे कोइ । भि. साधु । पं. पांच । मा. मास योग्य । प. पायश्चितनुं । हा. स्थानक । प. सेवीने । आ. आलोचे तो। अ. रहितप.मायारहितपणे । आ. आलोवे तो।पं. पांच । मा.मासचेंज प्रायश्चित पामे। प. मायासहित। आ. आलोये तो ते आलोवताथकाने । छ. छ । मा. मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥५॥ । मृळपाठ ॥ ५॥ जे निक्खू पञ्चमासियं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, अपलि. उञ्चिय आलोएमाणस्त पञ्चमासियं, पलिनश्चिय आलोएमाणस्स छम्मा सियं ॥५॥ ___ भावार्थ ॥ ५ ॥ जे कोइ साधु साध्वी पांच मासना प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवतोथको मायारहितपणे आलोवे तू तो ते आलोवतां थकाने पांच मासचेंज प्रायश्चित पामे ने मायासहित आलोवे तो ते आलोवतां थकाने छ मासिक प्रायश्चित आवे ॥५॥ । अर्थ ॥६॥ ते. तेथी । प. उपरांत । प. मायासहित । वा. अथवा । अ. मायारहितपणे । वा. वळी । ते. तेने । चे. वळी । छ. छ । मा. मास ॥६॥ मृळपाठ ॥ ६ ॥ तेण परं पलिउचिए वा अपलिउचिए वा ते चेव बम्मासा ॥ ६ ॥ भावार्थ ॥६॥ ते उपरांत मायासहितपणे के मायारहितपणे आलोवे ते वन्नेने पण छ मास प्रायश्चित आवे ॥ ६॥ AKICHILPA SHAS Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SIS ॥केमके छ मास उपरांत प्रायश्चित नथी. जे जे तीर्थकरे जेटलो तप पोताने वारे कर्यो ते उपरांत मायश्चित नथी. ए एक .९ वचन आश्री एटले एकवार दोष सेववा आश्री अधिकार कह्यो. हवे बहु वचन आश्री एटले बहुवार दोष सेववा आश्री अधिहै कार कहे छे ॥ - अर्थ ॥७॥ जे. जे कोइ । भि. साधु । व. घणीवार दूषण लगाडी । वि. वळी । मा. एकमासवें । प. प्रायश्चितनुं । हा. स्थानक । प. सेवीने । आ. आलोवतो थको । अ. मायारहित । आ. आलोवेतो । मा. एक मासनुं प्रायश्चित आवे । प. माया १ सहित । आ. आलोवताने । दो. वे । मा. मासतुं प्रायश्चित आवे ॥ ७॥ मळपाठ ॥ ७॥ जे निक्खू बहुसो वि मासियं परिहारहाणं पमिसेवित्ता आलोएजा, अपलिजञ्चिय आलोएमाणस्स मासियं, पलिजञ्चिय आलोएमाणस्त दोमा सियं ॥७॥ भावार्थ ॥७॥ जे कोइ साधु साध्वी क्षणे क्षणे घणीवार दोष लगाडी एक मासर्नु प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवतो थको माया रहित आलोवे तो एक मास, प्रायश्चित आवे ने माया सहित आलोवेतो वे मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥७॥ ५ अर्थ ॥८॥ जे जे कोइ । भि० साधु । व० घणीवार दूषण लगाडे तो । वि० वळी । दो० बे । मा० मासर्नु । प० प्राय-12 है श्चितनुं । हा० स्थानक पामी । प० सेवीने । आ० आलोवे तो। आलोवतो थको । अ० मायारहितपणे । आ० आलोवतो 8॥ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थको । दो० वे । मा० मासनुं प्रायश्चित आवे । प० मायासहितपणे । आ० आलोवता थकाने । ते० त्रण | मा० मासनं प्रायश्चित आवे ॥ ८ ॥ मूळपाव ॥ ८ ॥ जे जिक्खू बहुसो वि दोमासियं परिहारट्ठाणं परिसेवित्ता आलोएका, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स दोमासियं, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स तेभासियं ॥ ८ ॥ भावार्थ || ८ || जे कोइ साधु साध्वी घणीवार दूषण लगाडीने वे मासनुं प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलो तो थको मायारद्दिव आलोवे तो वे मासनुं ने माया सहित आलोवे तो त्रण मासनुं प्रायश्चित पामे ॥ ८ ॥ अर्थ || ९ || जे० जे कोइ । भि० साधु । व० घणीवार दूषण लगाडीने । वि० वळी । ते० त्रण । मा० मासनुं । प० प्रायश्चितनुं । द्वा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवतो थको । अ० मायारहित । आ० आलोवतो । ते० त्रण | मा० मासनुं ने | प० मायासहित । आ० आलोवे तो । चा० चार । मा० मासनुं प्रायश्चित आवे ॥ ९ ॥ मूळपाठ ॥ ९ ॥ जे निक्खू बहुसो वि तेमासियं परिहारट्ठाणं परिसेवित्ता आलोएका, पलिउञ्चिय लोएमाणस्स तेमासियं, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स चाउमासियं ॥ ९ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A9- 5 बहार०१ भावार्थ ॥९॥ जे कोइ साधु साध्वी घणीवार दूषण लगाडीने वळी त्रण मासर्नु प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवतो 13/ ४॥ यको मायारहितपणे आलोवे तो त्रण मासर्नु ने माया सहित आलोवे तो चार मासर्नु प्रायश्चित पामे ॥९॥ ____ अर्थ ।। १० ॥ जे. जे कोई । भि० साधु साध्वी। व० घणीवार दूषण लगाडीने । वि० वळी । चा० चार मासर्नु । प० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवे । आलोवतो थको । अ० मायारहितपणे । आ० आलोवतो | थको । चा० चार । मा० मासनुं ने । प० मायासहित । आ० आलोवेतो आलोवता थकाने । पं० पांच । मा० मास, मायश्चित पामे ॥१०॥ मूळपाठ ॥ १० ॥ जे निक्खू बहुसो वि चाजम्मासियं परिहारद्वाणं पमिसेवित्ता आलो एजा, अपलिजञ्चिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं, पलिउञ्चिय आलोएमा. णस्स पञ्चमासियं ॥ १०॥ ___ भावार्थ ॥१० ॥ जे कोइ साधु साध्वी घणु दूषण सेवीने चार मासतुं प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलावे आलोवतो | ॐ थको जो माया रहितपणे आलोवे तो चार मासन ने माया सहित आलोवे तो पांच मासनुं प्रायश्चित पामे ॥१०॥ अर्थ ॥ ११॥ जे जे कोइ । भि० साधु । व० घणीवार दोष लगाडे । वि० वळी । पं० पांच । मा० मासर्नु । प० टू प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवे । आलोवतो थको । अ० मायारहित थको । आ० आलोवतो थको। SHRIRS-565656 2-ARI Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FORSEE S० पांच | मा० मासरों ने । प० मायासहितपणे । आ० आलोवता थकाने । छ० छ । मा० मासनु मायावा ॥ .. E मूलपाठ ॥ ११ ॥ जे निक्खू वहुसो वि पञ्चमासियं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, अपलिउश्चिय आलोएमाणस्स पञ्चमासियं, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स छम्मा सियं ॥ ११॥ भावार्थ ॥११॥ जे कोइ साधु साध्वी घणीवार दुपण लगाडीने वळी पांच मासवें पायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे, 2 आलोवतो धको मायारहित आलोवे तो पांच मासर्नु प्रायश्चित आवे ने मायासहित आलोवे तो छ मास→ प्रायश्चित आवे ।। ११ ॥ ___अर्थ ॥ १२ ॥ ते० ते । ५० उपरांत । ५० मायासहितपणे । वा० अथवा । अ० रहित । ५० माया (रहित) पणे । वा० वळी । ते० तेने । चे. पण । छ० छ । मा० मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥ १२ ॥ H/ मूळपाठ ॥ १२ ॥ तेण परं पलिउञ्चिए वा अपलिउश्चिए वा ते चेव छम्मासा ॥ १२॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ तेथी उपरांत मायासहित के मायारहितपणे आलोवे तोपण छमासनुं प्रायश्चित आवे. छ मास उपरांत प्रायश्चित नथी. जेम प्रथम का तेम जे तीर्थकरने वारे जेटलो उत्तको तप ते उपरांत प्रायश्चित नथी ॥ १२॥ हवे सवेर्नु भेल्लं प्रायश्चित कहे छे. ॐ - - E Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Y2-4 D - अ॥१३॥जेजे कोइ । भि० साधु । मा० एक मासर्नु । वा० अथवा । दो० बे । मा० मासर्नु । वा० अथवा । ते० हार०४त्रणमा० मासन । वा० अथवा | चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० वळी । एक एटला ५ प्रोक्त । प० प्रायश्चितना । द्वा० स्थानकांहेलं । अ० अनेरुं । प० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक | प० सेवीने । आ० आमोते । अ० मायारहितपणे । आ० आलोवतो थको तेने । मा० एक मासवें । वा० अथवा । दो० बे । मा० मासवें । वा० अथवा । ते त्रण । मा० मासर्नु । वा० अथवा । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० वळी प्रायश्चित आवे । ५० माया सहित । आ० आलोवेतो । दो० वे । मा० मासर्नु । वा० अथवा । ते० त्रण । मा० मासर वा० अथवा । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मास, । वा० अथवा । छ० छ । मा० माससेनं । वा० वळी प्रायश्चित आवे । ते० ते । ५० उपरांत । ५० माया सहित । वा० वळी । अ० माया रहित । वा० वळी । ते० * तेने । चे० वळी । छ० छ । मा० मासवें भायश्चित आवे । छ मास 'उपरांत प्रायश्चित नथी ॥ १३ ॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ जे जिक्खू मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा एएसिं .,परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएडा, अपलिउश्चिय आलोएमाणस्स मासियं वा दोमालियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स दोमा Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ALLAGE .. - सियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा छम्मासियं वा. तेण परं पलिउञ्चिए वा अपलिउञ्चिए वा ते चेव छम्मासा ॥ १३ ॥ भावार्थ ॥१३॥ जे कोइ साधु साध्वी एक मास, बे मास, त्रण मास, चार मास, पांच मासर्नु एटला पूर्वोक्त प्रायश्चितनुं 5 स्थानक मांडेलु कोइ (गमे ते) मायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे ते माया रहितपणे आलोवे तेने एक मास, वे मासर्नु, त्रण मासनु, चार मासन, पांच मासर्नु प्रायश्चित आवे, पण जो माया सहित आलोवे तो तेने बे मास, त्रण मास, चार, पांच ने । छ मासन प्रायश्चित आवे, ते उपरांत माया सहित के माया रहितपणे आलोवता थकाने पण छ मासनुं प्रायश्चित आवे. छ। मास उपरांत प्रायश्चित नथी ॥ १३ ॥ ___ अर्थ ॥१४॥ जे० जेकोइ । भि० साधु । व० घणीवार पण लगाडीने । वि० वळी । मा० एक मासर्नु । वा० अथवा । व०६ घणीवार दपण लगाडीने । वि० वळी । दो. वे मा० मासनुं । वा० अथवा । व० घणीवार दूषण लगाडीने । वि० वळी । तेत्रण | मा० मासन । वा० अथवा । व० घणीवार दुपण लगाडीने । वि० वळी | चा० चार। मा० मासन । वा० अयवा | व० घणीवार दुपण लगाडीने । वि० ली। पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० बळी । एक एहवा कह्या छे ते। ५० प्रायश्चितना। हा० स्थानक मांहेलुं । अ० अनेरुं । ५० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक । प० सेवीने। आ० आलोवे । तेमां। अ० माया रहित । आ० आलोवतो धको । मा० एक मासन । वा० अथवा । दो० थे। मा० मासनुं । वा० अथवा । ते. RECEO-CHAMPC KAISSIL . - - ---- Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हार०, त्रण । मा० मासर्नु । वा० अथवा । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु प्रायश्चित । वा० * वळी आवे । पण जो । प० माया सहितपणे । आ० आलोवे तो । दो० । मा० मासनुं । वा० अथवा । ते० त्रण । मा० ॐ मासर्नु । वा० अथवा । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० अथवा । छ० छ । मा० मासनुं । वा० वळी प्रायश्चित्त आवे । ते. ते । ५० उपरांत । ५० माया सहित । वा० अथवा । अ० माया रहित पणे । वा० वळी । ते० तेने । चे० वळी । छ० छ । मा० मासर्नु प्रायश्चित आवे ॥ १४॥ . मूळपाठ ॥ १४ ॥ जे भिक्खू बहुसो वि मासियं वी बहुसो वि दोमासियं वा बहुसो वि तेमासिय वा बहुसो विचाउम्मासियं वा बहुसो वि पञ्चमासियं वा एएसिं. परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएजा, अपलिउश्चिय आलोएमाणस्स मासियं वा दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स दोमासियं वा तेमासियं वा चाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा छम्मासियं वा. तेण परं पलिउचिए वा अपलिउञ्चिए वा ते चेव छम्मासा ॥ १४ ॥ 60P-RREk FREE-A-AA%-15 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BCCRE ___ भावार्थ ॥ १४ ॥ जे कोइ साधु साध्वी घणीवार दृषण लगाडीने एक मासमुं, वे मास, त्रण मासर्नु, चार मासनु, पांच मासर्नु एटलां पूर्वोक्त प्रायश्चितनां स्थानक मांहेल गमे ते प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे तेने माया रहित आलोवतां यकाने एक मासर्नु, वे मासर्नु, त्रण मासर्नु, चार मासन, पांच मासर्नु प्रायश्चित आवे ने माया सहित आलोवे तो बे मासर्नु, त्रण मास, चार मासर्नु, पांच मासजु, छ मासर्नु प्रायश्चित आवे. ते उपरांत माया सहित के माया रहित आलोवे तो पण | तेने छ मासर्नु प्रायश्चित आवे. (छ मास उपरांत आलोयणा नथी)॥ १४ ॥ हवे झाझेरा दोष सेववा आश्री कहे छे. अर्थ ॥ १५ ॥ जे. जे कोइ । भि० साधु । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । सा० कांइक अधिक । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० अथवा । सा० काइक अधिक | पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० वळी । ए० ए पूर्व कहा ते । प० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक माहिलं । अ० अनेरुं । प० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक । | ५० सेवीने । आ० आलोवे । अ० माया रहितपणे । आ० आलोवता थकाने । चा० चार । मा० मासर्नु प्रायश्चित आवे । या० अथवा । सा० झाझेरुं। चा० चार । मा० मासन। प्रायश्चित आवे । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० अथवा । सा० झाझेरु। पं० पांच। मा० मासर्नु प्रायश्चित आवे । वा० वळी। प० माया सहित । आ० आलोवतो थको। पं० पांच । मा० मासनुं । वा० अथवा । सा० झाझे। पं०पांच । मा० मासन । वा० अथवा । छ० छ। मा० मास । चा० वळी । तै० ते । ५० उपरांत । ५० माया सहित । वा० अथवा । अ० माया रहित सेवे । वा० तोपण । ते० तेने । ने० बळी। छ० छ। मा० मास ॥१५॥ -ENCE Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. वहार० मूळपाठ ॥ १५ ॥ जे निकखू चानम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पञ्चमालियं वा सारेगपञ्चमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, अपलिउञ्चिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा साइरेगपञ्चमासियं वा, पलिउञ्चिय आलोएमाणस्स पञ्चमासियं वा साइरेगपञ्चमासियं वा छम्मासय वा, तेण परं पलि उञ्चिए वा अपलिउञ्चिए वा ते चेव छम्मासा ॥ १५ ॥ भावार्थ ॥ १५ ॥ जे कोइ साधु साध्वी चार मासन अथवा चार मासथी कांइक अधिक अथवा पांच मासनु अथवा पांच मासथी कांइक अधिक ए पूर्वे कह्या ते प्रायश्चितना स्थानक, मांहेला अनेरा गमे ते प्रायश्चितना स्थानक सेवीने आलोवे तेमां माया रहित आलोवे तो चार मासर्नु, चार मास झाझेरानु, पांच मास, पांच मास झाझेरानुं प्रायश्चित आवे, पण जो माया सहित आलोवे तो पांच मासनु, पांचमास झाझेरानुं अथवा छ मासर्नु प्रायश्चित आवे ते उपरांत माया सहित के ६ माया रहित आलोवे तोपण तेने छ मासर्नु प्रायश्चित आवे. (छ मास उपरांत आलोयणानुं प्रायश्चित नथी)॥१५॥ है हवे दोपर्नु बहुवचनपणुं कहे छे. ___अर्थ ॥ १६ ॥ जे जे कोइ । भि० साधु । व० घणीवार दोष लगाडीने । वि० वळी । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० CAREOGRA-15R5REESCRESPE% SEBIHAR Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथवा | व० घणीवार | वि० वळी । सा० झाझेरुं । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा । व० घणीवार । वि० वळी । पं० पांच | मा० मासनुं | वा० अथवा | व० घणीवार । वि० वळी । सा० झाझेरुं । पं० पांच | मा० मासनुं । वा० वळी । ए० ए पाछळ कड्या ते । प० प्रायश्चितना । डा० स्थानक । अ० अनेरा । प० प्रायश्चितना । डा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवे | अ० माया रहित । आ० आलोवे तो । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा । सा० झाझेरुं । चा० चार। मा० मासनुं | वा० अथवा | पं० पांच | मा० मासनुं । वा० अथवा | सा० झाझेरुं (घं) । पं० पांच | मा० मासनुं । वा० अथवा । प० माया सहित । आ० आलोवेतो । पं० पांच | मा० मास । वा० अथवा | सा० घणुं झाझेरुं | पं० पांच | मा० मास । बा० अथवा । छ० छ । मा० मास । वा० वळी । ते० ते । प० उपरांत । प० माया सहित । वा० अथवा । अ० माया रहितपणे । वा० बळी | ते० ते साधुने । चे० बळी । छ० छ । मा० मास ॥ १६ ॥ मूलपाठ ॥ १६ ॥ जे भिक्खू बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि सारेगचाउम्मा सियं वा बहुसो वि पञ्चमासियं वा बहुसो वि साइरेगपञ्चमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता खालोएडा, अपलिउञ्चिय आलोएमाणस्स चाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा साइरेगपञ्चमासियं वा, पलिनश्चिय आलोएमाणस्स पञ्च मासियं वा साइरेग Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H बवहार ॥८॥ matogROSURUCREDIRECRUGRes पञ्चमासियं वा छम्मासियं वा, तेण परं पलिउचिए वा अपलिउञ्चिए वा ते ४ उद्देसओ. चेव छम्मासा ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६ ॥ जे कोइ साधु साध्वी घणीवार दषण लगाडीने चार मासमुं, कांइ झाझेरुं चार मासर्नु, पांच मासन, ६ झाझेरुं (घj) पांच मासनं, ए पाछळ कह्या ते पायश्चितना स्थानको मांहेलं अनेरुं प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे तेमां माया रहितपणे आलोवता थका चार मासन, झाझे चार मासन, पांच मासर्नु, झाझेरुं पांच मासतुं प्रायश्चित आवे 2 अने जो माया सहित आलोचे तो पांच मासन, झाझेरुं पांच मासर्नु, छ मासर्नु प्रायश्चित आवे, ते उपरांत माया सहित के माया रहित पणे आलोवतां थकां ते साधु साध्वीने निश्च छ मासर्नु प्रायश्चित आवे. (छ मास उपरांत प्रायश्चित नथी)॥१६॥ अर्थ ॥ १७॥ जे. जेकोई । भि० साधु । चा० चार । मा० मासन । वा० अथवा। सा० झाझेरुं । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मासन । वा० अथवा । सा० झाझेरुं । पं० पांच । मा० मासचें। वा० वळी । एक ए पाछळ कह्या ते । प० प्रायश्चितना । डा० स्थानको माहिलं । अ० वीजु । १० प्रायश्चितनुं । डा० स्थानक । प० सेवीने ।। आ० आलोवे । अ०माया कपट रहित पणे । आ० आलोवतो। ठ० (संघ समक्ष) परिहार तपने विषे । ठ० स्थापे । क० करवो । वे वैयावच करवा स्थापीने । ठ० प्रायश्चितने विषे स्थापेल ते साध । वि० वळी । प० वळी प्रायश्चित लगाडे सेवे । से० ते । वि० बळी । क. संपूर्ण प्रायश्चित लगाडे तो। त० तेहज परिहार तपमां । आ० आरोपवो। सि० होय । पु० जे 12 दोष प्रथम पहेला । प० लाग्यो होय ते । पु० प्रथम पहेलो। आ० आलोवे । पु० प्रथम जे दोष । ५० लाग्यो होय ते । ५० -1955 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पछी । आ० आलोचे । प० पछे । प० दोप लाग्यो होय ते । पु० पेहेलां । आ० आलोवे । प० पछी । प० दोप लाग्यो होय ते । प० पर्छ । आ० आलोवे । अ० (ए सर्व अपराध आलोवशुं एहवो पूर्वे संकल्प करे ) पण माया न चितवे । अ० पछी आलोववानी वेळाए पण न गोपवे । अ० आलोन्या पेहेला माया रहित चितवे पछी । प० आलोवती वेळा माया सहित आलोवे । प० आलोयां पहेलां माया सहित चितवे । अ० पछी आलोवतां थका माया रहितपणे आलोवे । प० आलोवतां पहलां माया सहित चितवे । प० पछी आळोवतो थको माया सहित आलोवे । अ० आकोव्या पहेलां माया रहित चितवे । प० पछी आलोववानी वेळाए पण न गोपवे । आ० एणी रीते आलोवतो थको ते आलोव्या पछी । स० सर्व । ए० ए पाप । स० आपणा | क० कीधा कर्मरूप ते प्रायश्चित | सा० एकठो करीने प्रायश्चित आपे । जे० जे कोइ साधु । ए० एम पूर्वोक्त । प० घणा मासनी प्रायश्चितनी रचनाए स्थाप्यो ते । प० स्थाप्यो थको । नि० छेलो प्रायश्चित तप । स० करतो थको । प० कोइएक वळी प्रायश्चित लगाढे वळी | से० ते । वि० वळी । क० प्रायश्चित संपूर्ण सर्व । त० त्यां परिहार तप मांहि । आ० आरोपवो । सि० होय ॥ १७ ॥ मूलपाठ ॥ १७ ॥ जे निवखू घाउम्मासियं वा साइरेगचाउम्मासियं वा पञ्च मासियं वा साइरेगपञ्चमासि वा एएस परिहारट्ठाणाणं श्रन्नरं परिहारट्ठाणं पकिसे - वित्ता आलोएका, अपलिञ्चिय आलोएमाणे ठवणिजं ववश्ता करणि Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥९॥ वेयावमियं वविए वि परिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आहेयवे सिया. पुव्विं पडिसेवियं पुत्रिं आलोइयं पुष्विं पडिसेवियं पच्छा खालोइयं, पच्छा पडिसेवियं पु िालोयं, पच्छा परिसेवियं पच्छा आलोइयं. अपलिउञ्चिए अपलिउञ्चियं, अपलिउञ्चिए पलिउञ्चियं, पलिउञ्चिए अपलिउञ्चियं, पलिजञ्चिए पलिउञ्चियं. अपलिउञ्चिए अपलिउञ्चियं आलोएमाणस्स सङ्घमेयं सकयं साहयि जे एयाए पट्टवाए पट्ठविए निविसमाणे पडिसेवे से विकसिणे तत्थेव रुहे सिया ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ जे को साधु साध्वी चार मासनुं, झाझेरुं चार मासनुं, पांच मासनुं, झाझेरुं पांच मासनं ए पाछळ कां ते प्रायश्चितनुं स्थानक मांहेलं अनेरुं (बीजु) प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे, माया रहित आलोवतां थका सकळ संघनी सन्मुख परिहार तपने विषे ( सकळ साधुना सघ समक्ष तपने विषे स्थापवाथी वीजा एम जाणे जे अमे एहवो दोप लगाढशुं तो अमने पण एहवो भारे तप आवशे) स्थापे, स्थापीने तेनी वैयावच करावे. ते परिहार तपने विषे स्थाप्यो साधु वळी संपूर्ण प्रायश्चित लगाडे तो तेने त्यांज ते परिहार तप मांहि आरोपवो हवे वळी ते वावत विशेषे कहे छे. ते घणा दोष गाडी मां जे प्रथम दोप लाग्यो छे ते प्रथम आलोवे १, मथम दोष लाग्यो होय ते पछी आलोवे २, पछी दोप लाग्यो उद्देसओ.! ॥ १ ॥ ॥ ९ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होय ते पहेलो आलोवे ३, पछी दोप लाग्यो होय ते पछी आलोवे ४, ए चार भांगा जाणवा. वळी सर्व अपराध आलोवशुं पहवा पूर्वे संकल्प करे ते बखते माया रहित चितवे पछी आलोवती वेळा पण गोपवे नही १, आलोच्या पहेला माया रहित चितये पछी आलोवती वखते माया सहित आलोवे २, आलोव्यां पहलां माया सहित चितवे पछी आलोक्तां थकां माया रहितपणे आलोचे ३, आलोव्यां पहलां माया सहित चितवे पछी पण आलोवती वेळा पाया सहित आलोवे ४, आळोव्या पहेला माया रहित चितदे ने आलोववानी वेळा पण न गोपवे. ए रीते आलोक्तां थकां ते आलोन्या पछे सर्वे पोताना कीधा कर्मरूप पापने एकठां करीने प्रायश्चित आपे. पूर्वात घणा मासनी प्रायश्चितनी रचनाने विषे स्थापेल साधु साध्वी ते स्थायी ते प्रायश्चित वद्दीने नीकळतो थको एटले छेलो प्रायश्चित तप करतो थको वळी फरीने कोइ दोष (प्रायश्चित ) सेवे तो ते साधुने संपूर्ण रीतेतिहां परिहार तपमांही फरी आरोपवो ॥ १७ ॥ अर्थ || १८ || जे० कोइ | भि० साधु । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा । सा० झाझेरुं । चा० चार । मा० मासनुं । वा० अथवा | पं० पांच | मा० मासनुं । चा० अथवा | सा० झाझेरुं । पं० पांच मा० मासनुं । वा० वळी | ए० ए पूर्वोक्त | प० प्रायश्चितना | हा० स्थानक मांहेलुं । अ० अनेरुं । प० प्रायश्चितनुं । द्वा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवे ते आलोवतो थको । प० माया सहित पणे । आ० आलोवतो थको । ठ० परिहार तपने विषे स्थापवो । ठ० स्थापीने । फ० करवा | वे० वैयावच करवाने स्थापे पछी । उ० प्रायश्चित तपने विषे स्थाप्यो ते तप वहेतां थकां कोइएक । वि० बळी | प० प्रायश्चित लगाडे (सेवे)। से० ते साधुने । वि० बळी | क० संपूर्ण रीते ते परिहार तपमांहि । त० त्यांज । आ० आरोपवो । सि० होय । पु० (जे दोप) प्रथम । प० लगाड्यो होय ते । पु० पहेलो । आ० आलोवे । पु० प्रथम । प० दोष लगाड्यो Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार उद्देसओ. CRECR होय ते । प० पछी । आ० आलोवे । ५० पछी । प० दोप लगाडयो होय ते । पू० प्रथम । आ० आलोवे । प० पछी दोष । & प० लाग्यो होय ते । प० पछी । आ० आलोवे । अ० सघळो अपराध आलोवशु एहवो पूर्वे संकल्प करे पण कोइ माया न 1 चितवे | अ० आलोवती वेळा पण न गोपवे । अ० आलोव्यां पहेला माया रहित चिंतवे अने । प० आलोवतीवेळा माया स हित आलोवे । ५० आलोच्यां पहेलां माया सहित चिंतवे । अ० आलोवतो थको माया रहित चिंतवे । प० आलोव्यां पहेलां , माया सहित चिंतवे । १० आलोवता थका माया सहित आलोवे । प० आलोव्या पहेलां माया सहित चितवे । ५० पछी आ लोववानी वेळाए माया सहित आलोवे । एणी रीते । आ० आलोच्या पछी । स० सर्व । ए० ए पाप । स० आपणा । क. कीधां कर्मरुप प्रायश्चित । सा० एकठा करीने । सर्व प्रायश्चित आपे । जे० जे साधु । ए० ए पूर्वोक्त । प० घणा मासिक | प्रायश्चित रचनाने विषे । प० स्थाप्यो थको पछी । नि० प्रायश्चित वहीने नीकळतां छेलो प्रायश्चित तप करतो थको वळी । हैं प. कोइ एक दोष लगाडे । से० ते साधुने । वि० बळी । क० संपूर्ण रीते । त. त्यांज तेहज परिदार तप मांहि फरी। . आ० आरोपवो प्रक्षेपवो । सि० होय ॥ १८ ॥ * मूळपाठ ॥ १८ ॥ जे जिक्खू चाजम्मासियं वा सारेगचाउम्मासियं वा पञ्चमासियं वा सारेगपञ्चमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, पलिउश्चिय आलोएमाणे उवणिज उवश्त्ता करणि वेयावमियं. उविए वि पमिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव थारुहेयवे सिया. पुद्धिं . RRECRA ॥१०॥ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडिसेवियं पुट्विं बालोऽयं, पुट्विं पमिसेवियं पच्छा आलोश्य, पच्छा पमिसं. वियं पुविं आलोय, पच्छा पमिसेवियं पच्छा आलोइयं. अपलिउञ्चिए अपलिजश्चियं, अपलिजश्चिए पलिउञ्चियं, पलिउञ्चिए अपलिउश्चियं, पलिउञ्चिए पलिउश्चियं. पलिजश्चिए पलिउञ्चियं आलोएमाणस्त सबमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ठविए निविसमाणे पमिसेवेइ से विकसिणे तत्थेव आरु हेयवे सिया ॥ १८॥ भावार्थ ॥ १८ ॥ जे कोइ साधु साध्वी चार मासर्नु, झाझेरु चार मासन, पांच मासर्नु, झाझेरुं पांच मासद् ए पूर्वो- क्त प्रायश्चितना स्थानक माहिलं अनेरुं वीजु प्रायश्चितनुं स्थानक सेवीने आलोवे, माया सहितपणे आलोवतो थको परिहार | तपने विपे पारळ मुजय स्थापवो, स्थापीने तेनी वैयावच करवी. ते साधु ते परिहार तपने विषे स्थाप्यो थको ते तप वहेतो | थको वीजं प्रायश्चित सेवे तो ते साधुने वळी संपूर्ण परिहार तपने विषे त्यांज आरोपवो. वळी ए वावत विशेप कहे छे. घणा | | दोष लगाडे ते माहिलो पथम दोप लाग्यो होय ते प्रथम आलोवे १, पहेलो दोष लाग्यो होय ते पछी आलोवे २, पछी दोप है| ४ लाग्यो होय ते पहेलो आलोवे ३, पछी दोप लाग्यो होय ते पछी आलोवे ४, वळी सघळो अपराध आलोक्शुं एहवो पूर्वे सं& कल्प करे पण माया न चिंतये ने आलोवती वखते पण माया न करे १, आलोव्या पहेला माया न करे पण आलोवती वखते ASEARGRE Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ॥१॥ यवहार माया करे २, आलोच्या पहेलां माया चितवे, आलोवती वेळाए माया नचितवे ३, आलोव्या पहेलां ने पछी माया चितो. ॥ आलोव्या पहेला माया सहित चितवे ने आलोव्यानी वेळाए माया सहित आलोवे, ए रीते आलोवतो थको आलोव्या पछी सर्व पोते कीधा कर्मरुप पापने वधा एकठा करीने सर्व प्रायश्चित आपे, एम घणीवार पूर्वोक्त घणा मासनी प्रायश्चितनी रचनात विले 2 स्थापेल साधु साध्वी स्थाप्या पछी प्रायश्चित बहीने नीकळताने छेलु प्रायश्चित करतो थको वळी कोइ एक दोष लगाडे तो। ते साधने बळी सर्व दोष माटे तेहज परिहार तपमांहि आरोपवो (प्रक्षेपवो)॥१८॥ अर्थ ॥ १९ ॥ जे जे कोइ । भि० साधु । ब० घणीवार लगाडीने । वि० वळी । चा० चार । मा० मासन प्रायश्चित । वा० अथवा । व० घणीवार । वि० वळी । सा० झाझेरु (घj)। चा० चार । मा० मासतुं प्रायश्चित । बा० अथा। ब० घणीवार । वि० वळी । पं० पांच । मा० मासने प्रायश्चित । वा० अथवा । ब० घणीवार । वि० वळी । सा० झाझेरु घणं । पं० पांच । मा०मासर्नु प्रायश्चित । वा० बळी । ए० ए पाछळ कह्या ते । प० प्रायश्चितना। हा० स्थानकमांहिलं । अ० अनेरुं। प. प्रायश्चितनं । डा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवतो थको । अ० मायारहितपणे । आ० आलोवतो थको ते आलोव्या पळी शंकरे ते कहे छे । ठ० परिहार तपने (प्रथम मुजव) विषे स्थापवो । ठ० स्थापीने । क. करवा । वे वैयावच एटले केटलाकने वैयावच करवा स्थापे । उ० प्रायश्चित तपने विषे स्थाप्यो ते । वि० वळी । प० दोष सेवे । से० ते । वि० वळी प्रायश्चित जेटलो । क. संपूर्ण सर्वे । त० त्यां तेज परिहार तपमांहि । आ० आरोपवो । सि. होय । पुर्वेपसे IP या दोष । पहेलो। आ० आलोवे १ । पु० पेहेलो । प० दोष लगायो होय ते । प० पछी । आ० आलोवे २। ६० पछी । प० दोष लाग्यो होय ते । पु० पेहेलो । आ० आलोवे ३ । ५० पछी । प० दोप लाग्यो होय ते । प० पछी । आ० RECORDCREGRECEOCHURESTEDO ISISGARH Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० अपराध सर्व आलोवशुं एहवो पूर्वे संकल्प करे पण माया न चिंतये । अ० आलोवतां पण न गोपवे १। ६ अ आलोव्यां पहेलां माया रहित चिंतवे । प० आलोवती वेळाए माया सहित आलोवे २ । प० आलोव्यां पहेलां माया स. A हित चितवतो थको । अ० माया रहितपणे आलोवे ३ । ५० पहेला माया सहित चिंतवे । प० आलोवता थका माया सहित . आलोये ४ । अ० आलोव्या पहेलां माया रहित चितवे । अ० पछी आलोववानी वेळाए पण न गोपवे । आ० ए रीते आलोवतो थको ते आलोव्या पछी । स० सर्व । ए० ए पाप । स० पोते । क० कीधेला ते । सा० एकठा करीने प्रायश्चित आपे । जे०, जे एणी रीते । (व० घणीवार । वि० वळी)। ए० ए पूर्वोक्त घण। मासना प्रायश्चितनी रचनाए । ५० स्थाप्यो । प० स्थाप्यो ? घको । नि० मायचित वहीने नीकळतो थको वळी । प० प्रायश्चित सेवीने । से० ते । वि० वळी प्रायश्चित लगाडे । क० संपूर्ण हूँ सर्व । त० त्यांज परिहार तपमांहि । आ० आरोपवो (प्रक्षेपवो)। सि० होय ॥१९॥ मृळपाठ ॥ १९ ॥ जे भिक्खू वहुसो वि चाजम्मासियं वा बहुसो वि सारेगचाउम्मा सियं वा बहुसो वि पञ्चमासियं वा वहसो वि साइरेगपञ्चमासियं वा एएसिं परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएडा, अपलिजश्चिय आलोएमाणे ठवणि विश्त्ता करणि वेयावडियं. ठविए वि पमिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयवे सिया. पुश्विं पमिसेवियं पुविं आलोश्यं, पुद्धिं BREAHBAISARDASHIEXT-10-15 Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ॥ १२ ॥ पडिसेवियं पच्छा आलोइयं पच्छा पडिसेवियं पुत्रिं आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, अपलिञ्चिए अपलिउञ्चियं, अपलिउञ्चिए पलिउ - चियं, पनिउञ्चिए पलिउञ्चियं, पलिउञ्चिए पलिउञ्चियं. अपलिउञ्चिए अपलिञ्चियं आलोएमाणस्स सङ्घमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्ट विनिसमा पडिसेबेइ से विकसि तत्थेव आहेय सिया ॥ १९ ॥ भावार्थ ॥ १९ ॥ जे कोइ साधु साधी घणीवार दोष लगाडे तेने चार मासनुं प्रायश्चित, घणीवार झाझेरुं चार मासनुं अथवा घणीवार पांच मासनुं अथवा घणीवार झाझेरुं ( घणुं ) पांच मासनुं एह पाछळ कह्या ते प्रायश्चितना स्थानको मांहेला कोइ पण प्रायश्चितनुं स्थानक सेवे सेवीने आलोवे ते केम आलोवे ते कहे छे, माया रहितपणे आलोवतां थका परिहार तपने विषे पूर्वनी पेरे स्थापको स्थापीने वैयावच करावीने प्रायश्चित तपने विषे स्थाप्यो ते तप वहेता थका वळी दोषे सेवे तो ते प्रायश्चित जेटलो संपूर्ण तेने त्यांज तेज परिहार तपने विषे आरोषवो, हवे ए बाबत विशेष कहे छे. पूर्वे सेव्या ते दोष पहेलाज १ H. adds ( एचमां वधारे छे ) एवं बहुसो वि. २ In the German Text ( जर्मन छापेल बुकमां) एयं पलिउश्चिए should be omitted (काढी नाखवा ) or put as ( मुकवा ) एयं अपलिउथिए, ३ In the printed German Text this Sutra is placed before 18 ( जर्मन छापेली बुकमां आ पाठ १८ मो छे ने १८ मो १९ मो छे.) उद्देसओ ॥ १ ॥ ॥ १२ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A आलीये १, पहेला सेव्या जे दोप ते पछी आलोवे २, पछी सेव्या जे दोष ते प्रथम आलोवे ३, पछी सेव्या जे दोप ते पछी आलोये ४. हवे वळी ए यावत विशेप कहे छे. अपराध सर्व आलोवशुं एहवो पूर्वे संकल्प करे पण काइ माया न चिंतवे ने पछी A आलोवतां पण न गोपवे १, आलोव्यां पहेलां माया रहित चितवे ने आलोवती वेळाए माया सहित आलोवे २, आलोव्या पहलां माया सहित चितवतो थको माया रहित पणे आलोवे ३, पहेलां माया सहित चिंतवे पछी पण आलोवतां थका माया 2 सहित आलोवे ४, ए रीते आलोव्यां पहेलां माया रहित चिंतवे ने आलोन्यानी वेळाए माया रहित आलोवे, ए रीते आलो| बता यकां ते आलोव्या पछी पोताना कीधा सर्व पापने एकठा करीने प्रायश्चित आपे. जे एम घणीवार ए पूर्वोक्त घणा मासना प्रायश्चितने विपे स्यापीने स्थाप्यो थको प्रायश्चित सेवीने नीकळतां थकाने वळी फरीने प्रायश्चित सेवीने ते प्रायश्चित | लगा तेने संपूर्ण तेहज प्रायश्चित मांहि आरोपवो (प्रक्षेपवो) होय ॥ १९ ।। अर्ध २० ॥ जे जे कोइ । भि० साधु । व० घणीवार । वि० वळी । चा० चार । मा० मासर्नु । वा० अथवा । १० घणीवार । वि० वळी । सा० झाझेर घणुं । चा० चार । मा० मासनं । वा० अथवा। ब० घणीवार । वि० वळी । पं० पांच । मा० मासनु । वा० अथवा । २० घणीवार । वि० वळी । सा० झाझेहें। पं० पांच । मा० मासर्नु । वा० वळी । । ए० ए पुर्वोक्त । प० प्रायश्चितना । डा० स्थानक मांहेलं । अ० अनेरुं । ५० प्रायश्चितनुं । हा० स्थानक । ५० सेवीने । आ० आलोचे ते आलोवतो थको । प० माया सहीत पणे । आ० आलोवतो थको । तर परिहार तपने विपे स्थापवो । ठ० स्थापाने । २० करवा । वे० वैयावच करवाने स्थापे पछी । उ० प्रायश्चित तपने विषे स्थाप्यो ते तप वहेता थकां कोइएक । CESAM-AS Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C उद्देसओ. ॥१॥ पवहार वि० वळी । प० प्रायश्चित लगाडे सेवे । से० ते साधुने । वि० वळी । क. संपूर्ण रीते ते परिहार तपमांहि । त० त्यांज। ॥१३॥ आ० आरोपवो । सि० होय । पु० प्रथम । ५० दोष लगाइयो होय ते । पु० पेहेलां । आ० आलोवे । पु० प्रथम । प० दोप लगाडयो होय ते । प० पछी । आ० आलोवे । प० पछी। प० दोष लगाडयो होय ते । पु० प्रथम । आ० आलोवे । * प० पछी दोष । प० लाग्यो होय ते । ५० पछी । आ० आलोवे । हवे केम आलोवे ते कहे छे । अ० माया रहितपणे 6 चितवे पछी । अ० ओलोववानी वेळा न गोपवे १। अ० पहेलां माया रहित चितवे पछी । प० आलोवती वेळा माया सहित आलोवे २।५० आलोव्यां पहेलां माया सहित चितवे पछी । अ० ओलवतां थका माया रहितपणे आलोवे ३। प० प्रथम माया सहित चितवे पछी पण । ५० माया सहित आलोवे ४। प० आलोव्या पेहेलां माया सहित चितवे । ५० पछी आलोववानी वेळाए माया सहित आलोवे । आ० एवीरीते आलोवतो थको ते आलोव्या पछी । स० सर्वे । ए० ए पाप । स० पोताना । क० कीधा प्रायश्चित । सा० एकठा करीने प्रायश्चित आपे । जे जे । (ए० एम।ब० घणीवार वळी)। ए० ए पूर्वोक्त घणा मासनी प्रायश्चितनी रचनाने विषे । प० स्थापीने । प० स्थाप्या थकां। नि० पाछो प्रायश्चित वहीने नीकळता थकां एटले छेल्लो तप करतां पण वळी जे कोइ। ५० प्रायश्चित लगाडे तो। से० ते । वि० वळी । प्रायश्चित लगाडे । क० है संपूर्ण सर्व । त० ते । परिहार तपमांहि । आ० आरोपवो । सि० होय ॥२०॥ मूळपाठ ॥ २० ॥ जे भिक्खू बहुसो वि चाउम्मासियं वा बहुसो वि साइरेगचाउम्मा. सियं वा बहुसो वि पञ्चमासियं वा बहुसो वि साइरेगपञ्चमासियं वा एएसिं |॥ १३ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2017 -07- परिहारट्ठाणाणं अन्नयरं परिहारट्ठाणं पमिसेवित्ता आलोएजा, पालेउञ्चिय आलोएमाणे ठवाणिजं ठवइत्ता करणिऊ वेयावमियं. ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयवे सिया. पुचि पमिसेवियं पुच्विं आलोश्यं, पुविं पमिसेवियं पच्छा आलोइयं, पच्छा पडिसेवियं पुद्धिं आलोश्यं, पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं. अपलिउञ्चिए अपलिउश्चियं, अपलिउञ्चिए पलिउश्चियं, पलिउश्चिए अपलिनश्चियं, पलिउञ्चिए पलिउश्चियं पलिउञ्चिए पलिउश्चियं - आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय जे एयाए पट्ठवणाए पट्टविए निवि समाणे पडिसेवेइ से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयवे सिया ॥ २० ॥ भावार्थ ।। २० ॥ जे कोइ साधु एम घणीवार चार मासर्नु अथवा घणीवार झाझेरुं चार मासर्नु अथवा घणीवार पांच ' मासनु, घणीवार झाझेरा पांच मासर्नु ए पूर्वोक्त प्रायश्चितनुं स्थानक मांहेलं अनेरुं प्रायश्चितनुं स्थानक ते सेवीने आलोवे ५ | ते आलोपतो थको माया सहित आलोवतो थको परिहार तपने विपे स्थापवो स्थापीने तेनी वैयावच करवी. ते साधु ते । १ Hndds ( एचमां वधारे ) एवं वहुसो वि after जे (पछी) 01- 7736456ESCO CHOREOG --1999 LIBRIO 21- ८ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार 1॥१४॥ RE-A- -96495500-19- परिहार तपने विषे स्थाप्यो थको ते तप वहेतो थको बीजुं प्रायश्चित सेवे तो साधने वळी संपूर्ण परिहार तपने विषे त्यांज उद्देसओ. आरोपवो. वळी ए बाबत विशेष कहे छे. घणा दोष लगाडे ते मांहिलो प्रथम दोष लाग्यो होय ते प्रथम आलोवे, पहेलो दोष लाग्यो होय ते पछी आलोवे, पछी दोष लाग्यो होय ते पहेलो आलोवे, पछी दोष लाग्यो होय ते पछी आलोवे, हवे केम आलावे ते कहे छे. माया रहिन चिंतवे पछी माया रहित आलवे १. प्रथम माया रहित चितवीने पछी माया सहित आलोवेर, ६ प्रथम माया सहित चितवे ने पछी माया रहित आलोवे ३, माया सहित चिंतवीने माया सहित आलोवे ४, आलोव्यां पहेलां माया सहित चितवे पछी आलोववानी वेळाए माया सहित आलोवे, एम प्रायश्चित आलावतो थको ते प्रायश्चित आलोव्यांत पछी पोताना कीधा सर्व पापने एकठा करीने प्रायश्चित आपे एवी रीते घणीवारनी पूर्वोक्त घणा मासनी प्रायश्चितनी रचनाने विषे स्थापीने, स्थाप्यो थको प्रायश्चित वहीने नीकळतो थको छेल्लो तप करतां वळी ते काइक प्रायश्रित लगाडेतो तेजे प्रायश्चित लगाडे तेने सर्व संपूर्ण तेहज परिहार तप मांहि फरी आरोपवो ॥ २०॥ हवे झाझानी विधिनो अधिकार कहे छे. अर्थ ॥ २१ ॥ ब० घणा । पा० परिहारी प्रायच्छितिया साध । ब० घणा । अ० अप्रायच्छितया साधु । इ० वांछे । ए. एकठा भेळा । अ० एकठा। नि० रहे । वा० अथवा । अ० एकठा। नि० बेसवाने । वा० अथवा । चे० चितव । नो० न । से० तेने वळी । क. कल्पे । थे० स्थिवर (ते जघन्य ३। मध्यम ५। उत्कृष्टी २० वर्षनी दीक्षावाळा साधु) ने । * अ० विना । पु० पुछे (पुछया विना)। ए. एकठा । अ० रहे । वा० अथवा । अ० एकठा। निबेसबुं । वा० वळी । चे० चितवq । क० कल्पे । ण्ह० बळी । थे० स्थिवरने । आ० पूछीने आज्ञा दीए तो। ए० एकठा । अ० रहेवू । वा० अथवा । ॥१४॥ अ० एकठा । नि० बेसबुं । वा० वळी । चे० चितवे । थे० स्थिवरनी आज्ञा होयतो । य० ण्डं वळी । से० ते । वि० विचरे । STE - - Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए० एम। ०६० बळी । क० कल्पे । ए० एकटा । अ० रहेतुं । वा० अथवा । अ० एकठा । नि० बेसवुं । वा० वळी । चे० चितवे | थे० स्थिरनी आज्ञा एम होयके । य० ६० बळी | से० ते । नो० न । वि० विचरो तो । ए० एम। हं० वळी । नो० न । क० कल्पे । ए० एकटा । अ० रहेधुं । वा० अथवा | अ० एकठा । नि० बेसवुं । वा० वळी | चे० चितवनुं । जां० जे कोइ | णं० बळी | थे० स्थिवग्ने । अ० विण । इ० को ( आज्ञा विना ) एकठा । अ० रहेवानुं । वा० अथवा । अ०] एकटा | नि० वेसवानुं । वा० वळी । चे० चितवे । से० तेने । सं० तेटला फाळ ( दीन ) नो । छे० दीक्षानो छेद । बा० अथवा । प० तप प्रायश्चित आवे । वा० वळी ॥ २१ ॥ 1 मूलपाठ ॥ २१ ॥ वहवे पारिहारिया वहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ अभिनिसेज्जं वा अनिनिसीहियं वा चेएसए. नो से कप्पइ थेरे अापुच्छित्ता एगयओ अनिनिसज्जं वा अजिनिसीहियं वा एत्तए, कप्पइ एह थेरे आपुच्छित्ता एगयो अभिनिसेज्जं वा अनिनिसीहियं वा एत्तए थेरा य एह से वियरेज्जा एव एवं कप्पइ एगययो अनिनिसेज्जं वा अनिनिसीहियं वा एत्तए थेरा य एह से नो वियरेज्जा एव एवं नो कप्पइ एगयत्रो अनिनिसेज्जं वा अत्तिनिसी१H (एचमां ) णं for से ( ने बदले ) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार हियं वा चेएत्तए, जो णं थेरेहिं विश्ले अन्निनिसेज्जं वा अनिनिसीहियं वा उद्देसओ. चेएइ, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ २१ ॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ घणा प्रायश्चित वाळा साधु, घणा प्रायश्चित नथी आव्या तेवा साधु एकठा भेळा रहेवा अथवा बेसवा वांच्छे, चितवे पण स्थिवर साधुने पुछया विना एकठा रहेवू के बेस चिंतवतुं न कल्पे. स्थिवरने पुछीने एकठा रहेवा बेसवान चितव, कल्पे. स्थिवर आज्ञा दीए के तमे विचरो तो एकठा रहेवा बेसवार्नु चितवq कल्पे ने जो स्थिवर एकठा विचरवानी | * आज्ञा न दीए तो एकठा रहे बेसवु एवी चितवणा करवी न कल्पे. जो स्थिवरना कह्याविना एकठा रहेवा, बेसवार्नु चितवे || हैं तो ते साधुने तेटला दीवसनो दीक्षानो छेद ( ओछा करे ) अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे ॥२१॥ अ अर्थ ॥२१॥५० परिहार । क. कल्पनी समाचारी ते तपने विषे । हि० रह्यो हुतो । भि० साधु । ब० अनेरा वीजा ४ बाहार गामादिकने विषे रह्यो छे । थे० स्थिवरनी । वे० यावचने काजे । ग. जाय । थे० स्थिवर (आचार्य)। य० वळी । से० तेने ते प्रायश्चितनुं तप । स० संभारे छे एटले ते आचार्य परिहारिने जाती वखते संभारे जे तमे परिहारी तप सहित छो * एह, संभारीने ते परिहारी साधुने कहे तमे परिहार तप मुकीने जाओ। पछी ते साधु समर्थ हशे तो मुकीने न जाय पण ए तप करीने जाय अने असमर्थ होय तो मुकीने जाय । हवे परिहारीयाने जावानो आचार कहे छे । क. कल्पे। से० तेने । ए. एक । रा. रात्रीनी । प० प्रतिज्ञा करीने । ज० जे । ज० जे । दि० दिशाए । अ० अनेरा । सा० साधु साध्वी । वि० १ F (एचमां) अविदिन्ने २ Hadds ( एचमां वधारे) एगयओ. The Same in T (टीमां) (एकान्ततः) SSCRESERECARE Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । विचरता होय । त० ते । त० ते । दि० दिशाने विपे । उ० अंगीकार करीने जाय । नो० न । से० तेहने । क. कल्पे । त०5 त्यां सुंदर आहार उपधी स्त्रीआदि देखीने । वि० विहार । व० वृतिए । व० वस रहेवू न कल्पे । क० कल्पे । से० तेहने । | त. त्यां । का० रोगादिक कारण । व० निमित्ते । व० वसवू ( रहे )। तं० ते स्थिवरादिक । च० f० वळी । का० कारण। नि० पुरुं थएथके । ५० अनेरा । व० कहे वोले । २० वसो रहो । अ० अहो आर्यो । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । | दु० चे । रा. रात्री । वा० वळी । ए० एम । से० ते वैयावच करवा गएल साधुने । क० कल्पे । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुवे । रा० रात्री । वा. वळी । व० वसवू । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । प० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री। वा० अथवा । द० वे । रा० रात्री । वा०वळी । व० वस न कल्पे । जं. जे कोइ । त० त्यां। प. उपरांत । एक एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० वे । रा० रात्री । वा० वळी । व० रहे ( कारणविना ) । से० तेने । सं० तेटली रात्रीनो । छे० दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० प्रायश्चित तप पण आवे । वा० वळी ॥ २२ ॥ मृळपाठ ॥ २२ ॥ परिहार कप्पट्ठिए जिक्खू बहिया थेराणं वेयावमियाए गच्छेजा. थेरा य से सरेजा कप्पइ से एगराइयाए पमिमाए जसं जसं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरन्ति तमं तसं दिसं उवलित्तए. नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए. तंसि च णं कारणंसि निट्टियंति परो वएका । वसाहि अजो एगरायं वा पुरायं वा. एवं से कप्पइ एगरायं वा पुरायं २LMCIA-CASESCALEPROGRAM ॐॐॐॐ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार० ॥ १६ ॥ वा वत्थए, नो से कप्पड़ परं एगरायाओ वा पुरायाओ वा वत्थए जं तत्थ परं एगराया वा पुरायाओ वा वसइ से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ २२ ॥ भावार्थ ।। २० ।। परिहार कल्पनी समाचारी परिहार तपने विषे रहेलो साधु बीजा बाहार गामादिकने विषे रहेल स्थिवनी वैयावचने का जाय ( गमन करे ) तैवारे तप लइने जाय के शुं करे ते भणी कहे छे, स्थिवर ( ते आचार्य ) ते साधु प्रायश्चितनुं तप संभारे एटले के बाहार जाती वखते परिहारीने आचार्य संभारे जे तमे परिहारी तप सहित छो ( वळी तेने कहे के ते तप तमे मुकीने जाओ, पछी जो ते साधु समर्थ होय तो तप करीने जाय ने असमर्थ होय तो मुकीने जाय. ( हवे परिहारीने जावानो आचार व हे छे ) ते साधुने एक रात्रीनी प्रतिज्ञा करीने रहेवुं कल्पे. ( अभिग्रह एटले प्रतिज्ञा करीने जावानुं कारण एट के वाटे जातां गोकुलादिकने विषे प्रचुर ( घणो ) गोरसादीक लाभे तो शाता जाणीने प्रतिबंध न उपजे तेथी कोइ कारणविना एक रात्री उपरांत रहेतुं न कल्पे एम करीने चाले ) वळी जे दिशाए अनेरा साधर्मिक साधु साध्वी विचरता होय ते दिशाने विषे अंगीकार करीने जाय. वळी त्यां सुंदर आहार उपधी वस्त्र आदि देखीने विहार निमित्ते वस रहेनुं तेहने न कल्पे. त्यां रोगादिक कारण निमित्ते तेने वसवुं ( रहेवुं ) कल्पे. ते स्थिवरादिक कारण पुरुं थए अनेरा कहे के अहो आर्यो एक रात्री अथवा बे रात्री रहो ? एम ते वैयावच करवा गयो ते साधुने एक रात्री अथवा वे रात्री वसवुं कल्पे. एक रात्री अथवा बे रात्री थकी उपरांत वसवुं कल्पे नहि. जे कोइ त्यां एक रात्री अथवा बे रात्री उपरांत (निष्कारणे ) वसे तो ते साधुने निष्कारणे एक बे रात्री उपरांत जेटली रात्री रहे तेटली रात्रीनो छेद अथवा प्रायश्चित तप पण पामे ॥ २२ ॥ 14 उद्देसओ ॥ १ ॥ ॥ १६ ॥ Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - अर्थ ॥२३॥ ५० प्रायश्चितरूप । क० कल्प समाचारीने विपे । हि० रह्यो होय ते । भि० साधु । व० वाहारना गामादिकने विषे रह्या ते । ३० स्थिवरने । वे० वैयावचने काजे । ग. जाय । थे० स्थिवर । य० वळी । ते साधुने । नो.18 न । स० संभारे परिहार तप वावत । क. कल्पे । से० ते परिहारिया साधुने । नि० परिहार तप चहेतां एटले ते तपश्चर्या है करता जाताने ( आकुळ व्याकुल थएलने )। एक एक । रा० रात्रीनी । प० पडिमा (अभिग्रह) करीने जाय । ज० जेणे ।। K. ज० जेणे । दि० दिशाने विपे । अ० अनेरा । सा० साधु साध्वी । वि. विचरता होय । त० ते । त० ते। दि० दिशाने | विपे । उ० अंगीकार करीने जाय । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । त० त्यां। वि० विहार । ५० वृतिए । ५० वसई । ल रहे न कल्पे । क० कल्पे । से० तेहने । त० त्यां। का० रोगादिक कारण । व० निमित्ते । व० वसवु रहेQ कल्पे। तं० ते & स्थिवरादिक । च० णं० वळी । का० कारण । नि० पुरुथए । प० अनेरो । व० कहे वोले । व० वसो रहो । अ० अहो ? | आर्यो । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० वे । रा० रात्री । वा० वळी । ए० एम । से० ते एटले वैयावच करवा | गएल साधुने । २.० कल्पे । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० थे। रा० रात्री । वा० वळी । व० रहेQ कल्पे । ४ नो० नहीं । से० तेने । क० कल्पे । ५० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० वे । रा० रात्री। वा० वळी । व० वसवू न कल्पे । ज० जे कोइ । त. त्यां। प. उपरांत | एक एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० बे। रा० रात्री। पा० बळी । व० बसे । से० ते । सं० जेटली रात्री उपरांत रहे तेटली रात्रीनो । छे० दीक्षानो छेद । वा० अथवा। प० परिहार (प्रायश्चित) तप पामे । वा० वळी ॥२३॥ - - - - Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार० ॥१७॥ & उद्देसओं KOREG E RROREA मूळपाठ ॥ २३ ॥ परिहार कप्पट्ठिए भिकखू बहिया थेराणं वेयावमियाए गच्छेजा. थेरा य नो सरेजा, कप्प से निविसमाणस्स एगराश्याए पडिमाए जसं जम दिसि अन्ने साहम्मिया विहरन्ति तमं तमं दिसं उवलित्तए. नो से कप्पड़ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए. तंसि च ण कारणंसि निट्ठियंसि परोवएजा। वसाह अजो एगरायं वा दुरायं वा. एवं से कप्पइ एगरायं वा पुरायं वा वस्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए. जं तत्थ परं एगरायाओ वा पुरायाओ वा वसइ, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ प्रायश्चित रुप कल्प समाचारीने विषे रह्यो होय ते साधु बाहरला गामादिकने विषे स्थिवरादिक रह्या छेतेनी वैयावचने काजे जाय ते वारे विद्या निमित्ते पड उत्तर करतां थका तथा घणी जातना संदेशा शिष्यने कहेता थकां गुर्वादिक आचार्य आकुळ व्याकुळ थया तेवारे ते आचार्यने सांभब्यु नही जे परिहार तप मुकीने साधु बहार जाय छे ते बारे ते परिहार तप बहेतो जाय ते साधुने एक रात्री (अभिग्रह ) प्रतिज्ञा करीने जावं कल्पे. ते कयां जाय ते कहे छे. जे जे दिशाने विषे अनेरा साधर्मिक साधु विचरता होय ते दिशाने विषे जाय, बळी त्यां सुंदर आहार उपधि वस्त्र आदी देखीने ॥१७॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार निर्मिते वसवं रहें तेने न कल्पे, पण त्यां रोगादिक निमिते तेने वसवुं कल्पे. ते स्थिविरादिक कारण पुरुं थए रात्री अनेरा कदेके अहो आर्यो एक रात्री अथवा वे रात्री रहो एम ते वैयावच करवा गएल साधुने क रात्री अथवा बसवूं कल्पे. तेने एक रात्री अथवा वे रात्री उपरांत वसवं कल्पे नहीं. जे त्यां एक श्री वे रात्री उपरांत वसे तेने एक बे रात्री उपरांत जेटली रात्री रहे तेटली रात्रीनो दीक्षानो छेद एटले तेटला दिवस दीक्षाना ओछा गणाय अथवा प्रायश्चितनो तप आवे ॥ २३ ॥ अर्थ || २४ || प० प्रायश्चितरुप | क० कल्प समाचारीनी । ट्टि० स्थितीने विषे रह्या होय ते । भि० साधु । व० बाहार ग्रामादिकने विपे रह्या छे । थे० स्थिवर तेनी । वे० वैयावचजे काजे । ग० जाय ते वारे । थे० स्थिवर । य० वळी । से० तेहने । स० तप मुकाववानुं संभाळे । वा० पण पछी जातीवेळा । नो० न । स० संभाळे एटले वीसरी गया । क० कल्पे । से० तेने । नि० परिहार तप करता जानार ( आबुळ व्याकुळ थएल साधुने ) । ए० एक । रा० रात्रीनी । प० प्रतिमा अभिग्रह विशेषे करीने जावुं । ज० जे । ज० जे । दि० दिशाए । अ० अनेरा । सा० साधु । वि० विचरता होय । त० ते । त० ते । दि० दिशाने विपे । उ० अंगीकार करीने जाय । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । त० त्यां । वि० विहार | व० रतिए । व० वसयुं रहेधुं न कल्पे | क० कलपे । से० तेने । त० त्यां । का० रोगादिक कारण । व० निमित्ते । व० वसवुं रहेवुं कल्पे । तं० ते स्थिवरादिक । च० णं० वळी । का० कारण । नि० पुरुथए । प० अनेरो । व० कहे चोले । व० वसो रहो | अ० अहो आर्थो । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा | दु० वे । रा० रात्री । वा० वळी । ए० एम। से० ते एटले | वैयावच करवा गएल साधुने । क० कल्पे । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० बे । रा० रात्री । वा० वळी | व० Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार ॥१८॥ समसार | उद्देसओ. ॥१॥ SEAR रहे कल्पे । नो० नहीं। से० तेने । क० कल्पे । प० उपरांत । ए. एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुबे । रा० रात्री। ६ वा० वळी । व० वसवू न कल्पे । जं. जे । त० त्यां । ५० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० बे। रा० रात्री । वा. वळी उपरांत । व० वसे तो । से० ते । सं० तेटली रात्रीनो। छे० दीक्षानो छेद । वा० अथवा । ५० परिहार तप पामे । वा० बळी ॥२४॥ मूळपाठ ॥ २४ ॥ परिहार कप्पट्ठिए भिकखू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेजा, थे रा य से सरेङ वा नो सरेजा, कप्पइ से निविसमाणस्स एगराइयाए पमिमाए जसं जसं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरन्ति तमं तमं दिसं उवलित्तए. नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए. तंसि च णं कारणंसि निट्ठियांस परो वएजा। वसाहि अजो एगरायं वा पुरायं वा. एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा पुरायाओ वा वत्थए. जं तत्थ परं एगरायायो वा दुरायाओ वा वसइ, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ २४ ॥ SACACAE रस-र %ADE Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ २४ ॥ प्रायश्चित तपरुप कल्प समाचारीनी स्थितिने विषे रह्यो साधु वहार गामादिकने विषे रह्या छे ते स्थिरादिकनी वैयावचने का जाय ते वारे स्थिवरने प्रथम सांभळ्युं हतुं जे ते साधुनो तप मुकावीशुं पण ते साधुने जाती वेळा स्थिवर तप मुकाववानुं संभाळवाने विसरी गया, ते परिहार तप वहेत्ता जनार साधुने एक रात्रीनो अभिग्रह करीने जे दीशाए वीजा साधु त्यां जावं कल्प. वळी त्यां सुंदर आहार उपधी वस्त्र आदी देखीने विहार निमित्ते वसवुं तेने न कल्पे, पण त्यां रोगादिक निमिते तेने वसनुं कल्पे. ते स्थिवरादिक कारण पुरुं थए अनेरा कहे हे आर्यो एक रात्री के वे रात्री रहो एम ते बेयावच करवा गएल साधुने एक रात्री अथवा वे रात्री वसवुं कल्पे. तेने एक रात्री के वे रात्री उपरांत रहेवुं न कल्पे. ते साधु त्यां एक रात्री अथवा वे रात्री उपरांत वसे तेने जेटली रात्री उपरांत वसे तेने, तेटली रात्रीनो दीक्षानो छेद एटले तेला दिवस दीक्षाना ओछा करे अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे ॥ २४ ॥ इहां एकला साधुने न रहेवा भणी ए कारण क. हवे इहां एकलविहारी आश्री कहे छे || अर्थ || २५ ॥ भ० साधु । य० वळी । ग० गण (संघाडामां ) थी । अ० नीकळीने । ए० एकल । वि० विहारीपणे । प० एकल विहारीनी प्रतिमा ( अभिग्रह ) विशेष प्रत्ये । उ० पढीवर्जी ( अंगीकार करी ) ने । वि० विचरे ते साधु वळी (प्रतिज्ञा अविधीए पढीवर्जी कांइ दोष लगाडी ) शुद्ध चाले नहीं ते वारे । से० ते साधु । य० बळी । इ० इच्छे | दो० चीजीवार | पिo वळी । तं० ए तेहज | ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरतुं वांछे तो केवी रीते गणमां लेवो ते कहे छे । पु० वीजीवार । आ० आलोवावे । पु० वीजीवार । प० पडीकमावे । पु० वीजीवार । छे० दीक्षा लीए । प० तप अथवा चारित्रना मायश्चितने विषे । उ० स्थापे ॥ २५ ॥ I ४ 67 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देसको यवहार ॥ १९ ॥ CASTROCI REC - मूळपाठ ॥ २५ ॥ भिक्खु य गणायो अवकम्म एगल्लविहारपडिमं उपसंपत्तिाणं विह- रेजा से य इच्छेन्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, पुणो आलोएडा पुणो पडिकोजा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा ॥ २५॥ भावार्थ ॥ २५ ॥ जे कोइ साधु (जघन्य १० पूर्वधर, उत्कृष्टो १४ पूर्वधर आठ गुणवालो ) गच्छथी नीकळीने एकल है विहारीपणे एकलविहारीनी प्रतिमा ( अभिग्रह ) विशेष प्रत्ये अंगीकार करीने विचरे ते साधु ते प्रतिमा अविधिए पडिवतां एक दोप लगाडे एटले शुद्ध न चाले ते वारे ते साधु वीजीवार तेज गच्छने अंगीकार करीने विचर वांच्छे तो तेने केली । रीते फरी गच्छमां लवो ते कहे छे. ते साधुने बीजीवार आलोवावे, फरी बीजीवार पडीकमावे, वळी बींजीवार दीक्षा (छेदी) लैवरावीने तप अथवा चारित्रना प्रायश्चितने विषे स्थापे ॥ २५ ॥ हवे गणावच्छेदक आश्री कहे छे ।। ___ अर्थ ॥ २६ ॥ ग० गणावच्छेदक (जघन्य १० पूर्वधारी उत्कृष्टो १४ पूर्वधारी आठगुणे करी सहित )। य० वळी । ग० गण (गच्छ ) थकी । अ० नीकळीने । ए० एकल । वि० विहारीपणे । ५० पडिया (अवग्रह) पडीवर्जीने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । ते साधु गणावच्छेदक बळी न शुद्ध रीते चाले एटले प्रतिमा अविधिए पडीवर्जी कांइक दोष लगाडे ते पछी । से० ते साधु । य० वळी । इ० वांछे । दो० बीजीवार । पि० वळी । त० तेहज । ग. गच्छने । उ० अंगी १ H. adds (एचमां वधारे) से य नो संथरेजा. ---CROGREECRE- RESISROCESCR- ॥१९॥ - Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RENCE - .- - कार करीने । वि० विचरg (तो ते साधुने गच्छमां केवी रीते पाछो लेवो ते कहे छे )। पु० वीजीवार । आ० आलोवावे । ? Y० वीजीवार । प० पटीकमाये । पु० वीनीवार । छे० दीक्षा छेदीने । प० तप अथवा चारित्ररुप प्रायश्चिते । उ० स्थापे ॥२६॥ मूळपाव ॥ २६ ॥ गमावच्छेश्ए य गणाओ अवकम्म एगल्लविहारपलिम उवसंपत्तिाणं । विहरेज्जा से य इच्छेङा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, पुणो आलोएडा पुणो पमिकमेजा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएजा ॥ २६ ॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ हवे गणावच्छेदक आश्री सूत्र कहे छे. गणावच्छेदक साधु जघन्य १० पूर्वधारी, उत्कृष्टो १४ पूर्वधारी, तथा आटगुणे करी सहित गच्छथी नीकळीने एकलविहारीपणे पडिमा पढीवर्जीने अंगीकार करीने विचरे ते गणावच्छेदक । साधुने पदिमा बहेतां कांइक दोप लागे ते पछी वीजीवार वळी तेज गच्छमां दाखल थवा इच्छे तो शी रीते गच्छमां तेमने लेवा 7 कहे छे. वीजीवार आलोवावे, पडिकमावे, दीक्षा छेदीने तप अथवा चारित्र रुप प्रायश्चित उपर फरी स्थापे ॥२६॥ ___ अर्थ ।। २७ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । य० वळी । ग० गच्छधकी । अ० नीकळीने । ए० एकल । वि. वि ।। उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । ते बळी न शुद्ध रीते चाले एटले पडिमा अविधिए पडित पर्जी काइक दोप लगाडे । से० ते । य० वळी । इ० वांछे । दो० वीजीवार । पि० वळी । त० तेज । ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरयु । ( तो ते साधुने गच्छमां केवी रीते पाछो लेवो ते कहे छे) । पु० वीजीवार । आ० आलो. १ II udds. ( एचमां वधारे ) से य नो संथरेज्जा. ५ २- ० +xa-०८- Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार उद्देसमो. 5 वावे । पु० बीजीवार । प० पडिकमावे । पु० बीजीवार । २० दीक्षा छेदीने । ५० तप अथवा चारित्ररुप प्रायश्चितने विषे । ॥ २०॥ उ० थापे ॥ २७ ॥ मूळपाठ ॥ २७ ॥ आयरियउवज्काए य गणाओ अवकम्म एगल्लविहारपडिमं उसंपति ताणं विहरेडा से य इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, पुणो आलोएज्जा पुणो पडिकमेजा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएजा ॥ २७ ॥ भावार्थे ॥ २७ ॥ एम आचार्य उपाध्याय गच्छथी नीकळीने एकल विहारीनी पडिमा अंगीकार करीने विचरे ते आजाचार्य उपाध्यायने पडिमा वहेतां कांइ दोष लागे तो बीजीवार वळी तेज गच्छमां दाखल थवा इच्छे तो शी रीते गच्छमां तेमने लेवा ते कहे छे. बीजीवार आलोवावे, पडिकमावे, बळी दीक्षा छेदीने तप अथवा चारित्र रुप प्रायश्चितने विषे स्थापे ॥ २७॥ हवे जे दोष लगाडे ते पासत्थापणे पडीवजे ते भणी हवे पासत्थानो सूत्र कहे छे. | अर्थ ॥ २८ ॥ भि० साधु । य० वळी । ग० गच्छने । अ० मुकीने। पा० पासस्था। वि० विहार । प० पडिमा। | उ० अंगीकार करीने । वि. विचरे । से० ते साधु । य० वळी पासत्थापणं मुकी। इ० इच्छे । दो० वीजीवार । पि० वळी । त० तेज । ग. गच्छमां आववो । उ० अंगीकार करीने । वि०विचरखं वांच्छे तो शं करे ते कहे छे । अ० छ । या० वळी । २० इहां । से० शेष चारित्र छतो छ तो तेहने । पु० वीजीवार । आ० आलोवावे । पु० बीजीवार । प० पडिकमाये । १H adds (एचमां वधारे) से य नो संथरेजा, % । २०॥ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पु० (मूळ गुण चारित्र गयुं होय तो) वीजीवार । छे० दीक्षा छेदीने । ५० तप अथवा नवा चारित्र रुप प्रायश्चितने विषे ।। उ० स्थापे ॥ २८ ॥ मृळपाठ ॥ २८ ॥ निक्खु य गणायो अवकम्म पासत्थविहारपडिमं नवसंपत्तिाणं वि हरेजा से य इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, अस्थि याइं थ सेसे, पुणो आलोएजा पुणो पमिकमेजा पुणो बेयपरिहारस्स जव. ट्ठाएजा ॥ २८॥ भावार्थ ॥ २८ ॥ साधु गच्छने मुकीने पासत्थापणुं पडीवीने ते साधु पाछो पासत्थापणु मुकवू वांच्छे तथा वीजी d वार तेहज गच्छमां आवी ते गच्छ अंगीकार करीने विचरवू इच्छे तो शुं करवं ते कहे छे. जो ते साधुमां शेष चारित्र छतो होय तो वीजीवार आलोवाये, पडिकमावे, वीजीवार दीक्षा छेदीने तपरुप प्रायश्चिते स्थापे एटले के साधु पासत्थापणुं | अंगीकार करीने अशुभ भाव पलटाणा ने वीजीवार शुभ भाव आवे तेवारे वीजीवार गच्छमांहि आववां इच्छे तेवारे शेष 3 आगळो चारित्र उतो होय तो तेदने फरीने आलोवावे ने फरी प्रायश्चित देवरावे पण जो मूळथी चारित्र गयुं होय तो मूळथी | IN दिक्षा देवी जेथी चतुर्विध संघने प्रतित उपजे ने भेद न पडे ॥ २८ ॥ अर्थ ॥ २९ ॥ भि० साधु । य० वळी । ग० गच्छने । अ० मुकीने । अ० पोताने । छ० छांदे चालवानी । वि० विहार । १० पडिमा । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । से० ते । य० वळी पोताने छांदे चालवानुं मुकी। इ० इच्छे । XAMIRACKeX-SEKAXSEX व- CESC-SCARS Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % उद्देसओ. % - का 90120CRECOLOGER- व १ दो० बीजीवार । पिवळी । त० तेज । ग० गच्छमां आवq । उ० अंगीकार करीने । वि० विचर वांछे तो शु कर ते वहार कहे। अ या ॥२१॥ . वळी । थ० इहां । से० शेष चारित्र छनो छे तो तेहने । पु० वीजीवार । आ० आलोवावे । पु० बीजी * वार । प० पडिकमावे । पु० (मूळ गुण चारित्र गयु होय तो) बीजीवार । छे० दीक्षा छेदीने । प० तप अथवा नवा चारित्र 5 रुप प्रायश्चितने विषे । उ० स्थापे ॥ २९॥ मूळपाठ ॥ २९ ॥ भिक्खू य गणाओ अवकम्म अहाछन्दविहारपमिमं उवसंपत्तिाणं विहरेजा से य इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, अस्थि याइं थ सेसे, पुणो आलोएडा पुणो पमिकमेजा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएजा ॥ २९ ॥ भावार्थ ॥ २९ ॥ साधु गच्छने मुकीने अहाछंदो एटले पोताने छांदे चालवानुं पडिव ने पोताना छांदे चालवानुं मुकी वीजीवार तेज गच्छमां आधीने गच्छ अंगीकार करीने विचरवू इच्छे तो शुं करवू ते कहे छे. जो ते साधुमां शेप चारित्र छतो 2 होय तो वीजीवार आलोवावे, पडिकमावे, वीजीवार दीक्षा छेदीने तप रुप प्रायश्चिते स्थापे ॥ २९ ॥ अर्थ ॥३०॥ भि० साधु । य० बळी । ग० गच्छने । अ० मुकीने । कु० कुशील । वि० विहार । ५० पडिमां । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । से० ते साधु । य० बळी कुशीलपणु मुकीने। इ० इच्छे । दो० वीजीवार । पिवळी । - % CA - २-०८ % ॥२ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -04 तक तेज । ग० गच्छमां आवयं । उ० अंगीकार करीने । वि०विचरयं । वांच्छे तो शुं करवं ते कहे छे। अछे। या० वळी । ध० इहां । से० शेप चारित्र छतो छे तो तेहने । पु० बीजीवार । आ० आलोवावे । पु० वीजीवार । १० पडिकमावे। प्र० (मूळ गुण चारित्र गयुं होय तो ) वीजीवार । छे० दिक्षा छेदीने । प० तप अथवा नवा चारित्र रुप प्रायश्चितने विषे । ५ उ० स्थापे ॥३०॥ मृळपाठ ॥ ३० ॥ निक्खु य गणाओ अवकम्म कुसीलविहारपडिमं उवसंपत्तिाणं विरेङा से य इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, अस्थि याई थ सेसे, पुणो आलोएडा पुणो पमिकमेजा पुणो छेयपरिहारस्त उब छाएजा ॥ ३० ॥ भावार्थ ॥ ३० ॥ साधु गच्छने मुकी कुशीलपणु पडिवर्जीने ते साधु पाछो कुशीलपणुं मुकवू वांच्छे तथा वीजीवार तेज है गच्छमां आधी ते गच्छ अगीकार करीने विचरवं इच्छे तो शुं करवू ते कहे छे. जो ते साधुमां शेष चारित्र छतो होय तो वीजी. ४ वार आलोवाये, वीजीवार पडिकमावे ने मुळ चारित्र गयुं होय तो बीजीवार दीक्षा छेदीने तपरुष प्रायश्चिते स्थापे ॥ ३० ॥ . ___अर्थ ॥ ३१ ॥ भि० साधु । य० बळी । ग० गच्छने । अ० मुकीने । ओ० उसन्न (एटले संजमथी थाकी)। वि० वि-% हार । प० पडिमा । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । से० ते साधु । य० वळी । इ० इच्छे । दो० वीजीवार । पि० वळी ।। त० ते । ए० ज । ग० गच्छमां आववा | उ० अंगीकार करीने । वि० विचर वांच्छे तो शु करे ते कहे छे । अ० छ । या० - 61-0. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार ॥२२॥ 95 उद्देसओ । %ERE-RE- वळी । थ० इहां । से० शेष चारित्र छतो छे तो तेहने । पु० चीजीवार । आ० आलोवावे | पु० वीजीवार । ५० पडिकमावे । पु० (मूळ गुण चारित्र गयुं होय तो) बीजीवार । छे० दीक्षा छेदीने । प० तप अथवा नवा चारित्र रुप प्रायश्चितने विषे । उ० स्थापे ।। ३१॥ मूळपाठ ॥ ३१ ॥ जिवखू य गणाओ अवकम्म ओसन्नविहारपमिमं उवसंपत्तिाणं विह रेजा से य इच्छेजा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विदरित्तए, अस्थि याई थ सेसे, पुणो आलोएडा पुणो पडिकमेङा पुणो छेयपरिहारस्स उव. ट्ठाएजा ॥३१॥ भावार्थ ॥२१॥ साधु गच्छने मुकीने उसन्नपणुं ( एटले संजमथी थाकवापj) पडिवीने ते साधु पाछो उसन्नपणुं गुकवा वांच्छे तथा वीजीवार तेज गच्छमां आवी ते गच्छ अंगीकार करीने विचरवू इच्छे तो शुं करवू ते कहे छे. जो ते साधुमां शेप चारित्र छतो होय तो बीजीवार आलोवावे, वीजीवार पडिकमावे ने मृळ चारित्र गयु होय तो वीजीवार दिक्षा छेदीने तपरुप प्रायश्चिते स्थापे ॥ ३१ ॥ अर्थ ॥ ३२॥ भि० साधु । य० वळी । ग० गच्छने । अ० मुकीने । सं० ससत्त ( परिचयरुप प्रतिबंध एटले परिचय राखा योग्य नहीं)। वि०विहार । प० पडिमा । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । से० ते साधु । य० वळी । इ० इच्छे। दो० वीजीवार । पि० बळी । त० तेज । ग० गच्छमां आवएँ । उ० अंगीकार करीने । वि०विचरवू वांछे तो शु करे ते कहे Core ॥ २ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - है। अ० छ । या० बळी । थ० इहां । से० शेप चारित्र छतो छ तो तेहने । पु० वीजीवार । आ० आलोवावे । पु० वीजीचार | ५० पडिकमा । पु० ( मुळ गुण चारित्र गयु होय तो) वीजीवार । छे० दीक्षा छेदीने । प० तप अथवा नवा चारि-ॐ वरुप प्रायश्चित ते विपे । उ० स्थापे ॥ ३२ ॥ मृळपाठ ॥ ३२ ॥ निवखू य गणाओ अवकम्म संसत्तविहारपमिमं उसंपत्तिाणं विह रेङा से य इच्छेजा दोचं पि तमेव गणं जवसंपत्तिाणं विहरित्तए, अत्थि याई थ सेसे, पुणो बालोएडा पुणो पडिक्कमेका पूणो छेयपरिहारस्स उव ट्ठाएजा ॥ ३२॥ भावार्थ ॥ ३२ ।। साधु गच्छने मुकीने संसत्तपणुं ( एटले जेनो परिचय राखवा योग्य नहीं) पडिवर्जीने ते साधु पाछो* ६ संसत्तपणुं मुकचा वांच्छे तथा वीजीवार तेज गच्छमां आवी ते गच्छ अंगीकार करीने विचरवू इच्छे तो शुं करवू ते कहे छे. जोते है है साधुमां शेष चारित्र छतो होय तो वीजीवार आलोवावे, वीजीवार पडिकमावे ने मूळ चारित्र गयु होय तो वीजीवार दिक्षा छ दीने तपरुप प्रायश्चिते स्थापे ॥३२॥ ___अर्ध ॥३२॥ भि० साधु । २० वळी । ग० गच्छथकी । अ० नीकळीने । प० पर । पा० पाखंडीनी । प० पडिमा (वेश)। है उ० अंगीकार करीने। वि०विचरे । से० ते । य० वळी । इ० भाव पलटाणे ( भेष छांडीने ) इच्छे ( वांच्छे )। दो० बीजी १]I. adds this sutra as extra (एचमां आ सूत्र वधारे छे) GA-HASHA-95RWARESISAR - - - - - Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार० ॥ २३ ॥ वार । पि० पण । त० तेहज । ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरतुं तो शी रीते लेवो ते कहे छे । न० नथी । णं० वाक्यालंकारे । त० ते साधुने । त० प्रत्यक्ष अनेरुं कारण । के० कोइ । छे० छेद चारित्रनो । वा० अथवा । प० तप प्रा यश्चितनो । वा० पण न पामे तो शुं करे ते कहे छे । न० अनेरो कोइ नही पण । ए० एकली । आ० आलोयणा देवी ॥ ३२-१ ॥ मूळपाठ ॥ ३२–१ ॥ जिक्खू य गणा यवकम्म परपासंडपमिमं जवसंपतित्ताणं विहरेता से य इच्छेका दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, नत्थि एं तस्स पत्तियं केइ बेए वा परिहारे वा नन्नत्थ एगाए आलोयणाए ॥३१-१॥ भावार्थ ॥ ३२-१ ॥ साधु बळी गच्छ थकी नीकळीने ( अणसरतादिक कारणे जेवी के राजा दुष्ट होय तेना कारणे ) पर पाखंडीनो लींग अंगीकार करीने विचरे, ( ते ज्यां लगी सथवारादिकनो साथ मव्यो नथी त्यां लगी तेज लींगे काळ क्षेपना करे जेम भगवतीना २५ मा सतकमां संजीयाना अधिकारे गृहस्थ लींगमां अन्य लींगमां छेदोपस्थापनीय चारित्र लाभे एम कर्तुं छे. कोइ कारण आश्री साधुने भेख मुकवो पढ्यो छे पण चारित्र चोखुं छे ने ते लींगमां कोइ नव दीक्षीतने छ मासनो काळ छेदोपस्थापनीको पुरो थयो होय तो तेज अन्य लींगमां नियठानी अपेक्षाए तथा ठाणांगनी चोभंगीनी अपेक्षाए तथा आ व्यवहार सूना १० मां उद्देसानी चौभंगीनी अपेक्षाए ते चारित्र स्थापी शके) ते साधु ते कारण पुरुं थए ते भेख छोडीने वीजीवार तेज गच्छमां आवकुं इच्छे तो, तेहने कइ विधिए पाछो गच्छमां दाखल करवो ते कहे छे, जो ते साधुने चारित्रना उसओ. ॥ १ ॥ ॥॥ २३ ॥ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SSC -- -- छेदन के तप प्रायश्चितनु कोइ पण प्रत्यक्ष कारण जणातुं नथी तो वीजें कांइ नहीं पण एकली तेने आलोपणा देवी ॥३२-२॥ वे जे साधु व्रत भांगे ते भणी कहे छे. 8 अर्थ ॥ ३३ ॥ भि० साधु ( साध्वी ) । य० वळी । ग० गच्छ थकी । अ० नीकळीने । ओ० व्रत पर्याय थकी परांग मुख थइने गृहस्थनी पर्याय ने पहोंचे पछी वळी शुभ परिणामे करीने । से० ते । य० वळी । इ० इच्छे । दो० वीजीवार । पि० चळी | त० तेज । ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचर, । तेने केवी विधिए लेवो ते कहे छे । न० नथी । कोइ अनेरा। पं० बळी । त० ते साधुने । ते प्रत्यक्ष अनेकै कारण । के० कोइ । छे. छेद । वा० अथवा । प० परिहार तप पण फोइ नधी तो शु करवू ते कहे छ । वा० वळी । न० एटलं विशेष कहे छे के वीजुं कांइ पण नहिं पण। ए० एकलो । से० एक शिप्यना परिछेदोपस्थापनाने विपे । उ० स्थापवो एटले मूळथी दीक्षा देवी केमके सर्व ग्रहस्थनी पर्याये पहोंच्यो छे ते भणी ।। ३३ ॥ मृळपाठ ॥ ३३ ॥ भिक्खू य गणाओ अवकम्म ओहावेजा से य इच्छेझा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए, नत्थि णं तस्से के छेए वा परिहारे वा नन्नत्थ एगाए सेहोवद्यावणियाए ॥ ३३ ॥ भावार्थ ।। ३३ । कोइ साधु गच्छथी नीकळीने व्रत पर्यायथी परांगमुख थइने गृहस्थनी पर्यायने विषे पोहोंच्यो, पछी १] udde. (एचमां वधारे ) तप्पत्तियं. ---- 11-- Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pउद्देसओ. बवहार शुभ परिणामे करी ते साधु बीजीवार तेज गच्छने विषे अंगीकार करीने विचर वांच्छे तो तेने कई विधिए पाछो गच्छमां ॥ २४ ॥ मलेवो ते कहे छे. अनेरो कोइ ते साधुनी विरुद्ध प्रत्यक्ष छेद अथवा तप प्रायश्चितनुं कारण नथी तो शंकर ते कहे छे. वीजें कांइ नहीं पण एक शिष्यना परिछेदोपस्थापनियने विषे उपस्थापवो एटले मूळथी दीक्षा देवी केमके सर्व ग्रहस्थनी पर्याये | पहोच्यो छे ॥ ३३ ॥ उपर प्रायश्चित सेवे तेने प्रायश्चित कह्यं; तो हवे प्रायश्चित कोण आगळ आलोवे तेनी विधि कहे छे.॥ __अर्थ ॥ ३४ ॥ भि. साधु । य० वळी । अ० अनेरो कोइ एक । अ० नहीं। कि० करवा योग्य (नहीं) ते । हा० स्थानक । से० (भला गुणने पाडीने ते ) सेवे सेवीने । इ० भाव पलटाणे इच्छे । आ० आलोववं ते क्यां आलोवे ते कहे छे। ज. ज्यां । अ० आपणा। आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । पा० दीठा तो। (क० कल्पे । से० ते पडिसेवी साधुने) । ते० तेहने । अं अंत समीपे । आ० आलोववो अथवा । प० पापने पाडवा भणी पडिकमवो अथवा । नि. निंदवो अथवा। ग० गरहयो । अथवा । वि० प्रायश्चित टाळीने निर्मळ होय । वि० आपणा आत्माने विशुद्ध करवा वळी । अ० (ए पापस्थानक) नहि । क० करुं एहवु कही । अ० सावधान थइने उठवू अथवा । अ० दूषणने अनुसारे मर्यादा यथायोग्य । ततपरुप । क० * कर्मने । पा० प्रायश्चितने । प० पडिवर्जवे करीने विचरवो वांच्छे बळी ॥ ३४॥ · मूळपाठ ॥ ३४ ॥ निक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं सेवित्ता इच्छेजा थालोएत्तए, ज त्थेव अप्पणो आयारयउवज्काए पासेजा, तेसन्तियं आलोएडा पमिकमेका १ Hadds (एच) पडिसेवित्ता. २ Hadds (एचमां वधारे) कप्पड़ से and has ( अने नीचेनो पाठ छे) तस्सन्तिय आलोएत्तए वा पडिक्कमिचए वा........(until) (ज्यां सुधी) पडिवज्जित्तए. ॥२४॥ Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निन्देता गरहेका विउहेका विसोहेजा अकरणयाए अब्जुट्ठेा अहारिहं तवकम्मं पायच्छित्तं पविजेता ॥ ३४ ॥ भावार्थ ॥ ३४ ॥ जे कोइ साधु अनेरो कोइएक न करवा योग्य स्थानक पोताना भला गुणने पाडीने सेवे, सेवीने आष्टीचा इच्छे तो कयां आलोवे ते कहे छे. ज्यां पोताना आचार्य, उपाध्याय दीठा त्यां ते पढिसेवी साधुने तेमनी अंत समीपं पापने आलोवो, पडिकमवो, निंदवो, गरहवो, निर्मळ करवो ने पोताना आत्माने विशुद्ध करवो कल्पे, वळी ए पापस्थानक नहीं करूं एवं कहीं सावधान थइने उठवुं अथवा यथायोग्य दूपणने अनुसारे ( मर्यादाए) तपरुप कर्मने प्रायश्चितवडे परिवर्जव करीने विचरयुं वांच्छे || ३४ || हवे आपणा आचार्य न मळे तो शुं करे ते कहे छे. अर्थ || ३५ ॥ नो० नहीं । चे० निश्चे । अ० आपणा पोताना । आ० आचार्यने । उ० उपाध्यायने । पा० दीठा (नहीं) तो शुं करे | ज० ज्यां । ए० बळी | सं० एकमांडले १२ प्रकारना संभोग सहित एकठा जावानुं होय ते । सा० साधर्मी गुण ग्राहीने गंभीर छे । पा० दीठा । व० बहु । सु० श्रुत छे । व० प्रायश्चितनी विधि आदि दइ ठाणांगादिक घणा । आ० आगमना जाण । कल्पे ते पढिसेवीने । त० ते संभोगीनी । अ० समीपे । आ० आलोववो । जा० ज्यां लगे। (पढिकमवो अथवा दिवो अथवा गरव अथवा प्रायश्चितने टाळी निर्मळ होय अथवा आपणा आत्माने विशुद्ध करवो वळी ए पापस्थानक नहीं करुं एवं कहीने सावधान थइने उठे अथवा दूपणने अनुसारे मर्यादाए यथायोग्य तपरुप कर्म प्रायश्चितने ) प ० पडिवर्जवे करीने वली ५॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार मूळपाठ ॥ ३५ ॥ नो चेव अप्पाणो आयरिय उवज्काए पासेजा, जत्थेव संजोइयं साह- उद्देसओ ॥२५॥ म्मियं पासेजा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्सन्तियं आलोएजा (जाव) पडि. __ . वजोजा ॥ ३५॥ भावार्थ ॥ ३५ ॥ जो पोतानो आचार्य उपाध्याय न देखे तो शुं करे ते कहे छे. जे साधर्मी गुणग्राही गभीर, वहु श्रुत || प्रायश्चित विधि ठाणांगादिक घणा आगमना जाण तेवा संभोगीक बार प्रकारना सभोगवाळा मांडळामानानी समीपे ते पडिसेवी साधुए जइने आलोवईं पडिकमवू, निंदवू, गरहवं, प्रायश्चित टाळी निर्मळ थइने आपणा आत्माने विशुद्ध करवो कल्पे, 8 वळी ए पापस्थानक नही करुं एम कहीने सावधान थइ उठीने दूषणने अनुसारे यथायोग्य मर्यादाए तपरुप कर्म प्रायश्चितवडे पडिवर्जवे करीने विचर, ॥ ३५ ॥ हवे एवा संभोगीक मळे नहीं तो कोनी पासे आलोवq ते कहे छ । ___ अर्थ ॥ ३६ ॥ नो० नहि । चे० निश्चे वळी । सं० एकमांडले एकठा जमवु एहयो । सा० सार्मिक साधुने देखे (नहि) बहु श्रुत घणा आगमना जाण तो शु करे ते कहे छे । ज० ज्यां। ए. वळी । अ० अन्य गच्छना साधु छे। सं० अन्नपाएणीना संभोगी छे । सा० वळी साधर्मिक समाचारीना धणी छे। पा० देखे । ब० बहु । सु० श्रुतने । ब० घणा । आ० आगमना जाण । कल्पे ते पडिसेवी साधुने । त० तेनी । अं० पासे । आ० आलोवq (अथवा पडिकमवू वळी)। जा. ज्यां लगे प्रायश्चितने । ५० पडिवर्जीने विचर, वळी ॥३६ ॥ २५॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2850-REC-FORल मळपाठ ॥ ३६॥ नो चेवे संभोम्मियं साइम्मियं, जत्थेव अन्नसंतोइयं साहम्मियं पासेजा वहुस्सुयं वन्नागमं, तस्सन्तियं आलोएडा (जाव) पमिवोजा ॥ ३६ ॥ भावार्य ॥ ३६ ॥ जो एक मांडले एकठा जमवं एहवो साधर्मीक साधु बहु सुत्री, घणा आगमनो जाण देखे नहिं तो है शुं करवू ते कहे छे. ज्यां अन्य गच्छनो साधु छे ते पोताना गच्छमां एक वीजा अन्नपाणीना संभोग सहित छे, वळी साध- है मॉक समाचारीनो धणी छे, बहु थुत तथा घणा आगमनो जाण छे तेवा साधुने देखे तो तेनी पासे आलोवयु, पडिकमवू ज्यांलगे प्रायश्चित पटिवर्जीने विचरवं कल्पे ॥ ३६ ॥ जो एहवो अन्य संभोगी पण न देखे तो साधु शुं करे ते कहे छे. ॥ ॐ अर्थ ॥ ३७ ॥ नो० नहिं । चे० निश्चे बळी । अ० अन्य । सं० संभोगीक देखे ( नहिं ) साधर्मीक बहुश्रुत घणा आगम. ॐ नो जाण तो शुं करवू ते कहे छे । ज० ज्यां । ए० वळी । सा० साधुनो । वि० वेश छे अथवा साधुनुं रुप छे तेहने पण हूँ प्रायश्चित लेधुं छे तेवा रुप साधु ते वली केहवा छे ते कहे छे । पा० देखे । व० बहु । मु० सुत्री । व० घणा । आ० आगमनो है जाण एवो देखीने कल्पे ते साधुने । त० तेनी । अ० पासे । अन्योअन्य । आ० आलोववो ( अथवा पडिकमवो अथवा पायर चित टाळी निर्मळ थर्बु अथवा आपणा आत्माने विशुद्ध करवो । वळी ए पाप स्थानक नहिं करुं एहेQ कहीने सावधान थइने ५ उठीने वळी दृपण अनुसारे मर्यादाए यथायोग्य तप कर्मने प्रायश्चितने)। जा० ज्यां लगे । प० पडिवर्जवे करीने विचरे वेळी ॥३७॥ ते १ Hudda ( एचमां वधारे ) णं. २ Hadds ( एचमां वधारे ) पासेज्जा बहुस्सुयं वभागमं. वकर Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ --- मूळपाठ ॥ ३७ ॥ नो चेव' अन्नसंजोइयं, जत्थेव सारूवियं पासेजा बहुस्सुयं बन्ना 18| उद्देसओ बबहार० ॥१॥ ॥२६॥ गमं, तस्सन्तियं आलोएडा (जाव ) पमिवोजा ॥ ३७॥ भावार्थ ॥ ३७ ॥ जो अन्य संभोगीक साधर्मीक बहु सूत्री घणा आगमना जाण एवा देखे नहिं तो शुं करे ते कहे छे. ज्यां साधुनो वेष अथवा रुप छे तेने पण प्रायश्चित लेवु छे तेवा साधुरुप बहु सत्री, घणा प्रायश्चित विधिवाळा आगमना जाण छे एहवाने देखीने तेनी समीपे अन्यो अन्य आलोवे, पडिकमे, प्रायश्चित सेवी निर्मळ थाय, पोताना आत्माने शुद्ध करे तथा । 5 ए पाप स्थानक करीश नहिं एहवं कहीने सावधान थइने उठे उठीने दूषण अनुसारे मर्यादा योग्य तपरुप कर्मर्नु प्रायश्चित पडिवर्जीने विचरवं कल्पे ॥ ३७ ॥ वळी एहवा सारुपी पण न देखे तो साधु शुं करे ते कहे छे ।। अर्थ ॥ ३७-१॥ नो० नहिं । चे० निश्च । णं० वळी । सा० साधुरुप पणने । पा० देखे (नर्हि)। ब० बहु । सु० सूत्री। ब० घणा । आ० आगमना जाणतो। ज. ज्यां । ए० वळी । स० साधुनी । उ० सेवाना करणहार ते श्रावक ते श्रावक कोण ते कहे छ । प० (पहेला संयम पाळी पछी पाछो संजमथी पडयो ते पडीने) पछी श्रद्धाए करीने ते पुरुष श्रमणोपासकपणो। क० पडिवर्जी ते. पुरुषने पछाकड कहीए। पा० देखे । व० (त्रण प्रकारना) वहु । सु० सुत्री । व० घणा । आ० आगमना जाण तो शुं करे ते कहे छे । क. कल्पे । से० ते पहिसेवीने । त. ते पूर्वोक्त श्रावक । अ० समीपे । आ० आलोववो । वा० अथवा । प० पडीकमवो । वा. वळी । जा. ज्यांलगे। पा० प्रायश्चितने । ५० पडिवर्जवे करीने विचरवो । वा० बळी ॥३७-१॥ R Hndas ( एचमां वधारे) . २ Hadds (एचमां वधारे) पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं. - - ४॥ २६॥ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र -- - - --- मूळपाट ॥ ३७-१॥'नो चेव णं सारुवियं पासेजा वहुस्सुयं बन्नागमं, जत्थेव समणो वासगं पच्छाकडं पासेजा वहुस्सुयं वन्नागमं, कप्पइ से तस्तन्तिए बालोए. सए वा पमिकम्त ए वा जाव पायच्छित्तं पनिवजोत्तए वा ॥ ३७-१॥ __भावार्थ ॥ ३७-५ ।। जो साधुरुप बहु सूत्री घणा आगमनो जाण न देखे तो शुं करे ते कहे छे. साधुनी सेवानो करणहार पछाकट श्रावक ( एटले जे श्रावके पहेलां संयम पाळी पछी संजमधी पडीने श्रद्धाए करीने श्रावकपणु अंगीकार कर्यु छे) बळी जे वह मुत्री अने आगमोना जाण छे तेवा श्रावकने देखीने ते साधुए ते श्रावक समीपे आलोववं, पडीकमवं, ज्यां लगे । प्रायश्चितने पटिवये करीने विचरg वळी कल्पे ॥ ३७-१॥ अर्थ ॥ ३८ ॥ नो० नहिं । चे० निश्चे । ण० वळी । स० श्रमणोपासक श्रावक । प० पछा। क० कडं एटले संजमधी पालो पटीने वळी श्रमणोपासक थयो पण जेणे संजममांहि घणां आगम शास्त्र पहेलां अवगाह्यां तो पण कर्मना उदयथी पाछो म पढयो तेहयो । पा० देखे ( नहीं)। व०त्रण प्रकारना बहु । सु० सुत्री । व० घणा । आ० आगमनो जाणतो शुं करे ते कहे छ । ज० ज्यां । ए० वळी | स० सर्वथी सम । भा० भाव छ पण रागादि इर्षावंत नथी एहवो समष्टि । चे० ( आपणापरना गुण अवगुण अवसर प्रस्तावनो जाण) एहवो ज्ञानवंत गृहस्थ । पा० देखे तो। क० कल्पे । से० ते पडिसेवी साधने १ Hadd ( एचमां) आ पाठ छे. २ A trace of समणोवासग is to be found in P B (पी. वी. मां “समणोवासग"छे) - Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ॥१॥ ६ समभाविक ज्ञानवंत गृहस्थनी । अं० समीपे । आ० आलोवq । वा० अथवा । ५० पडिकमवू एटले पापथी निवर्तवु । वा०वबवहार० ळी । जा. ज्यांलगे (पूर्वनी पेरे दूषणने अनुसरे मर्यादाए यथायोग्य तपरुप कर्मने)। पा० प्रायश्चितने । ५० पडिवनवे करीने ॥२७॥ विचरवू । वा० बळी ॥ ३८॥ 2 मूळपाठ ॥ ३८ ॥ नो चेव णं समणोवासगं पच्छाकम पासेजा बहुस्सुयं बन्जागर्म, जत्थेव सम्मंनावियाइं चेइयाइं पासेजा, कप्पइ से तस्सन्तिए आलोएत्तए वा पमिक___म्मेत्तए वा जाव पायच्छित्तं पमिवोत्तए वा ॥ ३८॥ भावार्थ ॥ ३८ ॥ जे कोइ समणोपासक पछाकडं ( एटले तेणे प्रथम साधुपणुं पाळी घणा आगमनुं ज्ञान मेळवी पछी सा८ धुपणुं छोडी श्रावकपणुं अंगीकार कर्यु तेने पछाकडंकहीए ) तेवो पछाकडं बहु सूत्री, घणा आगमनो जाण न मळे तो जे स मभाविक ग्रहस्थ एटले जेने राग तथा इर्षा नथी एहवो समद्रष्टि जे आपणापरना गुण अवगुणनो जाण एहवा ज्ञानवंत गृहस्थने * देखे तो ते पडिसेवी साधुने तेवा ज्ञानवंत गृहस्थ समीपे आलोवq, पडिकमवू ज्यां लगे दूषणने अनुसारे मर्यादाए यथा योग्य , रीते तपरुप कर्मनुं प्रायश्चित पडीवर्जीने विचरवं कल्पे ॥ ३८ ॥ हवे एहवो संभाविक गृहस्थ पण न देखेतो शुं करे ते कहे छ । अर्थ ॥ ३९ ॥ नो० नहिं । चे० निश्च । वळी । स० एहवो पूवोक्त समभावनो घणी। चे० एहवो ज्ञानवंत ग्रहस्थ पण | पा० देखे (नहि ) तो शुकरे ते कहे छे । व० वहार । गा० गाम । वा० अथवा । न० नगर । वा० अथवा । नि० निगम । वा० अथवा । रा० राज्यधानी । वा० अथवा । खे० खेड (कोट)। वा० अथवा । क० कबड (थोडी वस्ती)। SOCIETC969-94140+24 ॥२७॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वा० अथवा | मं० मंडप । वा० अथवा । प० पाटण | वा० अथवा | दो० द्रोण मुख । वा० अथवा । आ० आसम (आश्रम) । बा० अथवा | सं॰ संवाद ( खेडनावास ) । वा० वळी ज्यांलगे । सं० संन्निवेशने त्रिषे । वा० वळी । पा० पूर्व दीसे । अ० सां मुख करी । वा० वळी । उ० उत्तर दीशानी । अ० साहमुं मुख करी । वा० वळी । क० हाथनातळा । प० जोडीने | सि० मस्तकने विषे | आ० आवर्तन करीने । म० मस्तके चढावीने । अं० अंजली | क० करीने । कल्पे ते पडिसेवी साधुने । ए० एम | व० वचन बोलधुं । ए० ए । मे० माहरा । अ० अपराध । ए० एणीपेरे । इ० त्रणवार एम कहे । अ० हुँ । अ० अपराधी हुँ एम व्रणवार कहीने । अ० जघन्य २० । उत्कृष्टा १७० अरिहंतने । सि० अनंता सिद्धनी । अ० समीपे । आ० आलोवे | ( पडिकमे तथा निंदे आत्मानी साखे जे में भूडुं कीधुं । गर्हे गुरु साखे । मारो जीव दुर्गतिना दुख सहवा योग्य ते प्रायश्चित टाळवे निर्मळ होय । वळी आपणा आत्माने विशुद्ध करे वळी ए पापस्थानक नहीं करूं एवं कहीने सावधान थयो छेदूपण अनुसारे मर्यादाए यथायोग्य तपरुप कर्मने प्रायश्चितने ) । जा० ज्यांलगे । प० पडिवर्जीने एटले करीने विचरे ॥ ३९ ॥ ति० एम | वे० मे कां ॥ ९८ मृळपाठ ॥ ३९ ॥ नो चेत्र सम्मंजोवियाई चेइयाई पासेजा, वहिया गामस्स वा नगरस्त वा निगमस्स वा रायहाणीए वा खेडस्स वा कब्बडस्स वा मत्रस्स वा पट्टण - स्स वा दोषमुहस्स वा आसमस्स वा संवाहस्स वा संनिवेसस्स वा पाईयानि१ समभावियाई चेइयाई पासेज्जा taken from H (एचमांथी लीधुं ) २ Hadds (एचमां वधारे) कप्पड़ से Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ बबहार ॥२८॥ HEREURRIERE9 -%4 % मुहे वा उदीणानिमुहे वा करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अञ्जलिं कई एवं वैएजा । एवइया मे अवराहा, एवश्कखुत्तो अहं अवरद्धो । अरहन्ताणं सिद्धाणं अन्तिए लोएडा (जाव) पडिवोजासि ॥ ३९ ॥ त्ति बेमि. भावार्थ ॥ ३९ ॥ वळी एहवो पूर्वोक्त समभावनो धणी एहवो ज्ञानवंत गृहस्थ पण न देखेतो तेवारे शुं करे ते कहे छे. वहारगाम अथवा नगर अथवा निगम अथवा राज्यध्यानी अथवा खेड अथवा कबड अथवा मंडप अथवा पाटण अथवा द्रोणमुख अथवा आसम अथवा संबाह अथवा सन्निवेशने विषे वळी पूर्व दीशाने विषे सामु मुख करी तथा उत्तर दीशाए सामुं मुख करी वळी हाथना तळां जोडीने मस्तकने विषे आवर्तन करीने मस्तके चढावीने अंजली करीने ते पडिसेवी साधुने एम वचननुं बोलq कल्पे जे ए मारो अपराध छे एणीपरे त्रणवार एम करके हुँ अपराधी छु एम वणवार कहीने (जघन्य २० उत्कृष्टा १७० ) अरिहंत तथा सिद्धनी समीपे आलोवे, पडिकमे, आत्मानी साखे में भंडं कींधु एम कही निंदे, गुरुनी साखे गर्दै, मारो जीव दुर्गतिना दुःख सहेवा योग्य ते प्रायश्चितने टाळवे करी निर्मळ होय एटले पाताना आत्माने विशुद्ध करे, बळी एहवा पापस्थानक करुं नहीं एहवं कहीने सावधान थइ उठे तथा दूषणने अनुसारे मर्यादाए यथायोग्य तपरुप कर्मने टू प्रायश्चित पडिवर्जीने विचरे ॥ ३९ ॥ एम सुधर्मास्वामि जंबूस्वामिने कहे छे जे जेम में महावीरदेव समीपे सांभळ्युं तेम में * तुज प्रत्ये कडं. %A4%A AE% % REECRECIE% १ Hadds कप्पइ से ( एचमां वधारे.) २ Hputs (एचमां छे) एवं वइत्तए. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ व्यवहार सूत्रना प्रथम उदेसे आलोयणानी विधि कही ते शा माटे के कोई गंभीर साधु होय, समाधिनो उपजावणहार ने ६ गुणनो ग्रहणहार होय ते आलोवनारना दोप जीवकाया जुदी होय तो पण कोइनी आगळ कहे नहि ते भणी एठली विधि कही ।। अर्थ ।। १ ।। व० व्यवहार सूत्रनो । प० प्रथम । उ० उद्देसो । सं० पुरो थयो ॥ १ ॥ मृळपाठ ॥१॥ ववहारस्त पढमो उद्देसयो समत्तो ॥१॥ भावार्थ ॥ १॥ व्यवहार सूत्रनो पहेलो उद्देसो पुरो थयो ॥१॥ ववहारस्स बिइओ उद्देसओ. __ व्यवहार सूत्रनो वीजो उद्देसो. ___ अर्थ ॥१॥ दो० वे जणा। सा० साधर्मीक एटले एक समाचारीना धणी । ए० एकठा भेळा होइने । वि० विचरे । त्यां विचरतां थकां । ए० ते माहेला एकने । त० त्यां विचरतां । अ० अनेरा । अ० अ । कि० कृत्य । हा० स्थानकने । ५० सेवे ने सेवीने । आ० आलोवे ( आ वे साधुमां एक अगीतार्थ होय ते ते पाप सेवीने आलोवे ते वारे तेने शुद्ध तप देवो एटले उपवास आंवेल आदिके करी ते प्रायश्चितने विशुद्ध करे पण तेने परिहार तप न देवो केमके ते परिहार तपने अजोग छे, वीजो जे गीतार्थ छे ते पाप सेवे तो तेने परिहार तप देवो)। ठ० यथायोग्य मायश्चितने विषे । ठ० स्थापे । ( ते परिहार तप योग्य Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साउद्देसओ. ॥२॥ अनुष्ठानने विषे स्थपावीने) क. (बीजो साधर्मिक साधु कल्पस्थिति हतो तेहने ते परिहारने ) करवा । वे. वैयावच करवाने स्थापे ॥१॥ ॥२९॥ मूळपाठ ॥ १॥ दो साहम्मिया एगय यो विहरन्ति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पमि सेवेत्ता आलोएज्जा, वणिज्ज ग्वइत्ता करणि वेयावडियं ॥१॥ ___ भावार्थ ॥ १ ॥ वे साधु एक समाचारीना धणी साधर्मिक एका भेळा थइ विचरे एम विचरतां थकां ते मांहेलो एक * त्यां विचरतां थकां अकृत्य (न करवा योग्य ) स्थानकने सेवे, सेवीने आलोवे तो तेने यथायोग्य प्रायश्चित तपने विषे स्थापे अने बीजो साधर्मिक साधुने तेनी वैयावच करवाने स्थापे (तेमां जो अगीतार्थ साधुए पाप सेव्यु होय तो उपवास आंविला दिक आपी तेनु पाप विशुद्ध करावे पण तेने परिहार तप न देवो केमके ते परिहार तपने अयोग्य छे. गीतार्थ साधु जो पाप + सेवे तो तेने परिहार तप देवो)॥१॥ प्रथम सूत्रे एकजण आश्री कपु. हवे बे जणा पाप सेवे तो शुं करे ते बहु आश्री कहे छे. अर्थ ॥२॥ दो बे जण । सा० साधर्मिक । ए० एकठा । वि०विचरता थका । दो० बेहु सार्पिक । वि० वळी । ते० ते । अ० अनेरा । अ० अकृत्य । द्वा० स्थानक । प० सेवे सेवीने । आ० बेहु जणा आलोवे ते वारे शुं करवू ते कहे छ । ए. ए वे जणमाथी एक जणने । त० त्यां। क० वडेरो। ठ० स्थापीने मुके ते स्थापीने पछी । एक एक जणने परिहार तप 1 पणे । नि० मुके तेवारे ते बेहु मध्ये एक परिहार तप पडिवर्जे ने वीजो वडेरो कल्पस्थिति हतो ते अनुपरिहारी थको रहे। Hadds (एचपां वधारे) च. २९॥ Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10-201012-10-2x49-10-11 अ० हये । ५० (जे कल्पस्थितिए रह्यो ते ) पाछळथी । से० पाप सेवनार ते । वि० वळी । नि० परिहार तप पडिवले - ( अने जेणे प्रथम तप पडिवों ते अनुपरीहारीपणे कल्प स्थितिए वडेरो थइने रहे ) ॥२॥ मृळपाठ ॥ २ ॥ दो साहम्मिया एगयो विहरन्ति, दो वि ते अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पमिसेवेत्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं वइत्ता एगे निविसेजा, अह प च्छा से वि निविसेज्जा ॥२॥ भावार्थ ॥ २॥ वंने साधर्मिक साधु एकठा विचरता होय ने ते वन्ने जणाए अनेरो कोइएक अकृत्य स्थानक सेव्यो ते सेवीने बेहजणा आलोवे तेबारे शुं करवं ते कहे छे. ते वेहु मध्ये एक जणने त्यां वडेरो स्थापे ने पछी एक जणने परिहार नपपणे मुके एटले एक पडिहारी तप पडिवर्ने एटले अंगीकार करे ने वीजो वडेरो अपडिहारी थको कल्प स्थितिए रहे. हवे जे कल्प स्थितिए रह्यो ते पछी परिहार तप पडिवले ने जेणे प्रथम परिहार तप वह्यो ते वडेरा तरीखे अपडिहारीपणे कल्प स्थितिए रहे ।। २ ॥ हवे घणा साधुमा एकजण पाप सेवे ते आश्री कहे छे ।। ___अर्थ ॥३॥ २० घणा । सा० एक समाचारीना धणी साधर्मिक साधु । ए० एकठा भेळा रहेता थका । वि. विचरता होय । ए० (तेओ एकठा रहेता थका तेओ मध्ये ) एक जण | त० त्यां । अ० अनेरो । अ० अ । कि० कृत्यना । हा० स्थानक प्रन्ये । प० सेवीने । आ० आलोए छे । ठ० ( आचार्य तेने) परिहार तपादिक योग्य अनुष्टानने विषे । ठ० रथापे । तेने स्थापीने पाउला वीजा साधुने । क० (ते प्रायश्चितना करणहारनी ) करवा । वे० वैयावच करवाने निमित्ते स्थापे ॥३॥ ROCRECOREA Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ॥ ३० ॥ मूळ पाठ ॥ ३ ॥ बहवे साहम्मिया एगया विहरन्ति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाएं परिसेवेत्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ववइत्ता करणिज्जं वेयावडियं ॥ ३ ॥ भावार्थ ॥ ३ ॥ घणा एक समाचारीना घणी साधर्मिक साधु एकठा ( भेळा ) रहेता थका विचरता होय, ते एकठा रहेता थका ते मध्ये एक जणे त्यां अनेशे अकृत्य स्थानक प्रत्ये सेवीने आलोवे त्यारे आचार्य तेने परिहार तपादिक योग्य अनुष्टाने विषे स्थापे, स्थापीने वीजा साधुने ते प्रायश्चित वहणहारनी वैयावच करवा माटे स्थापे || ३ || हवे सघळा पाप सेवे ते आश्री कहे छे. अर्थ ॥ ४ ॥ च० घणा । सा० एक समाचारीना धणी साधर्मिक । ए० एकठा । वि० विचरता थका । स० ते सघळा जण । वि० वळी । ते० त्यां विचरता थका । अ० अनेरो । अ० अ । कि० कृत्य । द्वा० स्थानक प्रत्ये । प० सेवे सेवीने । आ० ते आलोवे । ते आलोवता थका ते आचार्य । ए० ते मध्येना एकने । त० त्यां । क० कल्प स्थितिए वैयावच करवाने । ठ० स्थापीने । अ० शेष वीजा सबळा । नि० तप पडिवर्जे । अ० हवे । प० पछी तप पुरुं थाय ते वारे । से० ते वैयावच करवा एकजण रह्यो छे ते । वि० वळी । नि० तप पडिवर्जे (ने वाकीना जेणे तप कर्यो तेमनो एक तेनी वैयावच करे ) ॥ ४ ॥ मूलपाठ ॥ ४ ॥ बहवे साहम्मिया एगयओ विहरन्ति, सद्दे वि ते अन्नयरं किच्चद्वाणं पडिसेवेत आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ववइत्ता अवसेसा निविसेज्जा, यह पच्छा से विनिविसेज्जा ॥ ४ ॥ उद्देसओ ।। २॥ 1130 18 Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ ४ ॥ एक समाचारीना घणा साधर्मिक साधु एकठा विचरता थका ते सघळाए अनेरो अकृत्य स्थानक सेव्यो, सेवीने आलोवतो आचार्य ते मध्ये एकने कल्प स्थितिए वैयावच करवा स्थापे ने वीजा वधा तप पडिवले. ते तप पुरु थाय ते पछी ते वयावच करवा रहेल साधु तप पडिवजे ने वाकीना जेणे तप पुरो कर्यो ते पैकी एक तेनी वैयावच करे ॥ ४॥ हवे परिहार आश्री अधिकार कहे छे. अर्थ ॥ ५॥ ५० परिहार । क० कल्प । टि० स्थित । भि० साधु । गि० ग्लान 'थयो थको । अ० अनेरो । अ० । कि० कृत्य । टा० स्थानक । प० पडिसेवीने । आ आलोवे तेवारे । से० ते साधु तेणे पाप सेव्यो थको । य० वळी । सं० प परिहार तप निर्वाहि शके तो तेहने । ठ० परिहार तपादिक योग्य अनुष्टाने तेने । ठ० स्थापे । तेने स्थापीने पछी ते एक बीजो परिहारीयो स्थापीने । क० करवी । वे० तेनी वैयावच ॥५॥ मूळपाठ ॥ ५॥ परिहारकप्पट्ठिए निक्खू गिलायमीणे अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पमिसे वेत्ता आलोएज्जा, से य संथरेज्जा उवणिज्जं उवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं ॥५॥ __भावार्य ॥ ५॥ परिहार कलपस्थित साधु ग्लान (मांदो) थयो थको अनेरो अकृत्य स्थानक सेवीने आलोवे ते वारे लते साधु जो परिहार तप निर्वाही शके तो तेहने ते परिहार तपादिक योग्य अनुष्टाने स्थापवो स्थापीने एकवीजा परिहारीने ४ तेनी वयावच करवा निमित्ते स्थापयो ॥ ५ ॥ उपर मुजब करतां पण ते परिहार तप निर्वाही न शके तो शुं करे ते कहे छे. १ (५ ने ५-१) जर्मन बुकमा भेगा छे. २ P (पी एचमां) माणे. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥३॥ ववहार० अर्थ ॥५-१॥ से० ते अकृत्य स्थानक सेवे । य० पण । नो० न । सं० परिहार तप निर्वाही न शके तो ते वारे ते । ॥ ३१ ॥ अ० अण । प० परिहारि साधु तेनी । क० करे। वे० वैयावच एटले जे जे काम ते परिहारी साधुथी न थाय ते कार्य अण परिहारी साधु करे । पण जो पोते वळ सहित होय छतां । से० ते परिहारी साधु । ते० बळी । अ० अण। पा०परिहारीए। की. कीधेल । वे० वैयावच कार्य । सा० आस्वादे एटले अणपरिहारी पासे कार्य करावे तो ते अणपरिहारी पासे कार्य कराव्यानो। से० तेने । वि० वळी । क. संपूर्ण । त० त्यां पाछला प्रायश्चितमांहि । ए० वळी । आ० आरोपवो । सि० होय ॥ ५-१॥ * मूळपाठ ॥ ५-१॥ से य नो संथरेजा अणुपरिहारिएणं करणि वेयावमियं. से तं' अणुपरिहारिएणं कीरमाणं यावमियं साइडोजा', से वि कसिणे तत्थेव आ रुहेयवे सिया ॥ ५-१॥ भावार्थ ॥ ५-१॥ परिहारी साधु अकृत्य स्थानक सेवे पण परिहार तप निर्वाही न शके तो अणपरिहारी साधु तेनी यावच करे एटले जे जे कार्य परिहारी साधुथी न थाय ते ते कार्य अणपरिहारी साधु करे पण जो ते बळ सहित छतो ते परिहारी साधु अणपरिहारी साधु पासे वैयावच कराववा इच्छे तो ते अणपरिहारी पासे कामकाज कराव्यानो तेने संपूण । प्रायश्चितमा आरोपवो एटलेके प्रायश्चित वेहेतो ग्लान साधु अकृत्य स्थान सेवीने आलोवे तेवारे प्रायश्चित निर्वाही न शके तो १BH (वी एचमां) य. २.P (पी) पडिसेवेइ. CA-964-CRECRPORATEGORGEORE 8॥ ३१ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25-964GECER यावच करावतां तेने मायश्चित नहि आपg अने जो तप निर्वाही शके अने छती शक्तिए वैयावच पण अणपरिहारीया पासे करायं तेने मायश्चित आवे इत्यर्थः ॥५-१ ॥ ___अर्थ ॥ ६ ॥ ५० परिहार रुप । ककल्प | हि स्थितिनो धणी । भि० साधु । गि० रोगादिके करी ग्लानपणो 8 पाम्यो थको जे गणावच्छेदकनी पासे आव्यो छे । नो० न । क० कल्पे । त० ते । ग० गणावच्छेदकने । नि० ते साधु ग्ला नीने टोळा थकी बहार काढवो (न कल्पे ) तो शुं करे ते कहे छे । अ० अ । गि० लाने एटले साजा साधु | तक ते ग्लान साधुनी। क० करे । वे० यावच । जा० ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग । आ० आतंकादिक रोग धकी । वि.न । मु० मुकाय त्यां लगे यावच करे ने । त० ते रोगथी मुकाया । प० पछी । त० ते ग्लान साधुने । अ० घणो । ल० थोडो। ना० नाम मात्र ते चैयावच माटे । व० व्यवहार प्रायश्चितने विषे । प० स्थापवो । प्ति. होय ॥६॥ मृळपाठ ॥ ६ ॥ परिहारकप्पट्ठियं निक्खु गिलायमीण नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्ल निज्जहित्तए. अगिलाए तस्स करणि वेयावमियं जाव तओ रोगायनायो विप्पमुक्को, तओं पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियत्वे सिया ॥६॥ भावार्थ ॥ ६॥ परिहार रुप कल्प स्थितिनो साधु रोगादिके करी ग्लानपणो पाम्यो थको गणावच्छेदक पासे आव्यो १ II. & othor mst. ( एचने वीजामां ) °माणं. २ In Sutra 6 to 17 Mss and H (वीजी बुकोने एचमां ६ थी १७ सूत्रोमां) तत्तो रो" and तत्तो प° The letter तमओ often wanting in T. (टीमां" तओ" नथी) 4%95-96495570 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घवहार० ॥ ३२ ॥ होय तो गणावच्छेदकने ते साधुने संघाडा बहार काढवो कल्पे नहीं पण अग्लान साधु पासे तेनी वैयावच करावी तेने थला रोमी विमुक्त करी तेणे वैयावच करावी ते कारणे तेने नाम मात्र घणो थोडो व्यवहार प्रायच्छिते स्थापयो ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ७ ॥ अ० नवसुं प्रायश्चित तेनो । ट्ठ० वहणहार । भि० साधु । गि० रोगादिके करी ग्लानपणो पाम्यो जेहने ते गावच्छेदक समीपे आव्यो थको । नो० न । क० कल्पे । त० ते । ग० गणावच्छेदकने । नि० तेने गच्छ बहार काढवो एटले ते ग्लानने टोळा थकी बहार काढे तो ते शुं करे ते कहे छे । अ० अ । गि० गिलान पासे । त० तेनी । क० कराववी | वे वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० तेह | रो० रोग । आ० आतंकादिक रोग थकी । वि० न । सु० मुकाय त्यां लगे । त० तेवार । प० पछी । त० ते ग्लान साधुने । अ० घणो । ल० थोडो । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार प्रायश्चितने विषे । प० स्थापवो । सि० होय ॥ ७ ॥ मूळ पाठ ॥ ७ ॥ अवटुप्पं जिक्खुं गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निक्षूहित्तए. गिलाए तरस करणि वैयावमियं जाव तो रोगायङ्काओ विष्पभुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियद्वे सिया ॥ ७ ॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ ( चोरी करे, मांहोमांही लडे ते ) नवसुं प्रायश्चित तेहना वहणहार साधु रोगादिके ग्लानपणुं पाम्यो छे गावच्छेदकनीसमीपे आव्यो थको तेने गच्छ ( टोळा ) थकी बहार काढवो गणावच्छेदकने कल्पे नहीं पण अग्लान ( साजा ) साधु पासे ज्यां लगे ते रोग थकी न मुकाय त्यां लगी तेनी वैयावच कराववी. त्यार पछी ते ग्यान ( रोगी ) सा उद्देसओ. ॥२॥ ॥ ३२ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 44447xxx.~. धुने घणोज घोडो नाम मात्र व्यवहार गायतिने विषे स्थापवो ॥ ७ ॥ 1 अर्थ || ८ || पा० दसम्भुं प्रायश्चित तेना वहणहार | भि० साधु । गि० ग्लानपणुं पामीने गणावच्छेदक समीपे आव्यो थको । नो० न । क० कल्पे । त० ते रोगी साधुने । ग० गणावच्छेदके । नि० गच्छ थकी बहार काढवो । ( न कल्पे ) तो शुं करे ते कई छे । अ० अ । गि० ग्लानी साधु । त० ते ग्लानी साधुनी । क० करे । वे० वैयावच । जा. ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग | आ० आतंकादिक रोग । वि० न । मु० मुकाय त्यां लगे वैयावच करे ने । त० तेवार । प० पछी । एटले रोग थकी मुकाया पछी । त० ते ग्लान साधुने । अ० घणो । ल० लघु । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार प्रायश्चित विषे । प० स्थापना | सि० होय ॥ ८ ॥ मूलपाठ ॥ ८ ॥ पारञ्चियं भिक्खु गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निजूहिए. अगिलाए तस्स करणि वेयावमियं जाव तच रोगायङ्काओ विप्पमुको, तो पच्छा तस्स अहाल हुए नामं ववहारे पट्ठविय सिया ॥ ८ ॥ भावार्थ ॥ ८ ॥ ( घात करे, भोग सेवे ते ) दसमा प्रायश्चितनो वहणहार साधु रोगी थइने गणावच्छेदकने कने आयो थको तेने गच्छ बाहार काढयो कल्पे नहि पण तेनो रोग ज्यां सुधी मटे नहीं ने निरोगी थाय नहीं त्यां सुधी तेनी वैयावच करावबी ने ते रोगी साधुने रोग मध्या पछी तेने वैयावच कराववी पढी माटे घणुंज थोडं एटले नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चित आप ॥ ८ ॥ ए तपश्चर्यदिक आश्री कयुं हवे व्यग्रचित्तादिक चित भ्रम आश्री कहे छे || Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उहया पसओ. 1-964- ---- ववहार अर्थ ॥९॥ खि० व्यग्र । चि. चित्तनो धणी । भि० साधु । गि० रोगादिके करी ग्लानपणो पामीने गणावच्छेदक पासे आव्यो थको । नो० न । क. कल्पे । त० ते । ग० गणावच्छेदक तेने । नि० गच्छ बाहार काढवो तो शं करे ते कहे ॥२०॥ छ । अ० अ । गि० ग्लान साधु पासे । त० ते ग्लानीं साधुनी । क. कराववी । वे० चयावच । जा० ज्यां लगे। त० ते। रो० रोग । आ० आंतकादिकथी । वि.न । मु० मुकाय त्यां लगे वैयावच करे अने । त० तेवार । प० पछी। एटले रोग है थकी मुकाया पछी । त० ते ग्लानी साधुने । अ० घणुं । ल. थोडा । ना० नाम मात्र । ३० व्यवहार प्रायश्चिते । ५० स्थापवो। सि. होय ॥९॥ मूळपाठ ॥ ९॥ खित्तचित्तं निक्खू गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्त निज. हित्तए. अगिलाए तस्स करणिऊं वेयावमियं जाव तो रोगायङ्कायो विप्पमु को, तो पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियत्वे सिया ॥ ए॥ भावार्थ ॥९॥ व्यग्र चित्तवाळो (चितभ्रमना रोगवाळो ) साधु गणावच्छेदक पासे आवे तो तेने गच्छ बहार काढी मकवो गणावच्छेदने न कल्पे, पण तेनी वैयावच अरोगी साधु कने ते रोगथी मुकाय त्यां सुधी करावे ने रोगथी मुकाया पछी वैयावच रोगीपणामां कराववी पडी माटे नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चिते तेने स्थापे ॥९॥ हवे दर्षवंत (दत्तचित) चित्ते करीने रोग उपजे ते आश्री कहे छ । अर्थ ॥ १०॥ दि० दर्पवंत । चि० चित्ते करीने । भि० साधु । गि० रोगादिके ग्लानपणुं पामीने गणावच्छेदक समीपे 18 आवे | नो० न । क० कल्पे । त० तेहने । ग० गणावच्छेदकने । नि० गच्छथी बहार काढवो (न कल्पे)। अ० अ। गि० १॥३३॥ - - S ASEARCASREGAGAR Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - 1 ग्यान साधु पासे | त० तेनी । क० कराववी । वे० वैयावच । जा० ज्यां सुधी । त० ते । रो० रोग । आ० आतंक रोगथकी । बि० न | मु० मृकाय । त्यां सुधी वैयावच करावे अने । त० ते वार । प० पछी । एटले रोगथी मुकाया पछी । त० ते ग्लानी स्वाधुने । अ० वं । ल० थोडं । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार प्रायश्चितने विषे । प० स्थापवो । सि० होय ॥ १० ॥ मृळपाठ ॥ १० ॥ दित्तचित्तं निकखुं गिलायमीणं नोकप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निजहित्तए अगिलाए तस्स करणि वेयावडियं जाव तो रोगायङ्कायो विष्पमुको, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठविय सिया ॥ १० ॥ भावार्थ ॥ १० ॥ जे कोइ दर्पवंत ( लाभथी गांडछा ) चित्त रोगे करी साधु ग्लानपणुं पाम्यो थको गणावच्छेदक कने आव्यो होय तेने गणावच्छेदके गच्छ थकी बाहार काढवो कल्पे नहीं पण निरोगी साधु कने तेनो रोग न मुकाय त्यां सुवी तेनी वैयावच करावबी ने रोग मुकाया पछी वैयावच कराववा माटे तेने नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चित स्थापवो ॥ १० ॥ जल अधिष्टितकरी जे साधु ग्लान पामे ते आश्री कहे छे || 1 1 अर्थ ॥ ११ ॥ ज० जना । आ० प्रभावे करीने । भि० साधु । गि० रोगी थइने गणावच्छेदक कने आवे तेने । नो० न | कु० कल्पे | त० ते | ग० गणावच्छेदके । नि० तेने गच्छ वाहार काढवो पण । अ० निरोगी साधु पासे । त० तेनी । क० कराववी । ये० वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग । आ० आंतक रोग थकी । बि० न । मु० मुकाय त्यां लगे । त० तेवार । प० पछी । त० ते ग्लानी साधुने । अ० घणी । ल० थोडी । ना० नाम मात्र । प० व्यवहार प्रायश्चिते । प० स्थापयो । सि० होय ॥ ११ ॥ 人 Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SERER वहार ALS-5 5 -56 *2%A4%A5 । उद्देसओ मूळपाठ ॥ ११ ॥ अशाखाश्टुं भिक गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्त नि. हित्तए. अगिलाए तस्स करणिहां वेयावमियं जाव तो रोगायङ्कायो वि. प्पमुक्को, तओपच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्ठवियत्वे सिया ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ १२॥ जक्ष वळगवाथी रोगी थएल साध गणावच्छेदक कने आव्यो थको ते गणावच्छेदके ते रोगी साधुने । ₹ गच्छनी बाहार काढयो कल्पे नहिं पण निरोगी साधु कने ते साधु रोगथी मुकाय त्यां लगे तेनी वैयारच करावचीं अने रोगथी ४ • विमुक्त थएधी वैयावच करावी ते बदल तेने नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चिते स्थापे ॥ ११॥ अर्थ ॥ १२ ॥ उ० उन्मादे । प० पहोच्यो (वायुना जोरे)। भि० साधु । गि० ग्लानपणे गणावच्छेदकने आव्यो थको । नो० न । क. कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । नि० गच्छ बाहार काढयो । अ० ग्लानी नहीं एवा साधु कने । त. * तेनी । क० कराववी । वे० वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० ते साधु । रो० रोग । आ० आंतक (आवाधा) थकी। वि. ४ न । मु० मुकाय । त० तेवार । प० पछी । त० ते ग्लान साधुने । अ० घणो । ल० लघु । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार । प.प्रायश्चिते स्थापवो । सि० होय ॥१२॥ है मूळपाठ ॥ १२ ॥ उम्मायपत्तं शिक्खं गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयरस निहित्तए. अगिलाए तस्स करणिजं वेयावमियं जाव तओ रोगायङ्कायो वि ३४॥ प्पमुक्को, तो पच्छा तस्स अहालहुलए नाम ववहारे पट्टवियन्वे सिया ॥१२॥ A Iया % E Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ १२ ।। उन्मादे करी ग्लानपणो पामी कोइ साधु गणावच्छेदक कने आव्यो थको ते गणापच्छेदके तेने गच्छधी वाद्दार काढवो कल्पे नहि, पण ज्यां मुधी रोगथी ते साधु मुकाय नहीं त्यां सुधी निरोगी साधुकने तेनी वैयावच करायी ने रोगथी मुकाया पछी वैयावच करावा माटे नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चित आपq ॥ १२॥ । अर्थ ।। १३ ।। उ० वाघ सिंहादिक उपसर्ग । ५० प्राप्त । भि० साधु । गि० ग्लानी थको । गणावच्छेदक कने आवे । | नो० न । फ० कल्पे । त० ते । ग० गणावच्छेदकने । नि० गच्छ वाहार काढवो (न कल्पे ) । अ० अ । गि० ग्लानी कने । है त० तेनी । क० करावी । वे० वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग। आ० आंतक थकी । वि० न । मु० मुकाय । त० ते वार । ५० पछी । त० तेगे । अ० घणो । ल० थोडो । ना० नाम मात्र । ३० व्यवहार प्रायश्चिते । प० स्था- १ पयो । सि. होय ॥ १३ ॥ मृळपाठ ॥ १३ ॥ जवसग्गपत्तं भिक्खू गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निहित्तए. छागिलाए तस्स करणिज वेयावडिगं जाव तओ रोगायकायो विप्पमुक्को, तओ पहा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियत्वे सिया ॥१३॥ भावार्थ ॥ १३ ॥ वाघ सिंहादिकना उपसर्गथी ग्लानी थएल साधुने गणावच्छेदके गच्छधी बहार काढवो कल्पे नहिं ४ पण निरोगी साधु कने ते उपला रोगथी मुकाय त्यां सुधी तेनी वैयावच करावी रोगथी मुकाया पछी वैयावच करावी माटे तेने नाम मात्र थोडो व्यवहार प्रायश्चिते स्थापवो ॥ १३ ॥ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ० ॥ ३५ ॥ अर्थ ॥ १४ ॥ सा० क्रोधादिके (लेषादिक अधिकरण ) सहित । भि० साधु । गि० रोगी थइने गणावच्छेदक कने आवे तो । नो० न । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । नि० गच्छथी बाहार काढवो । अ० नहि । गि० रोगी (निरोगी ) साधु पासे । त० तेनी । क० कराववी । वे० वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग | आ० आतंक थकी । वि० न । मु० मुकाय । त० ते वार । प० पछी । ततेने । अ० घणो । ल० थोडो । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार प्रायश्चिते । प० स्थापवो । सि० होय ॥ १४ ॥ मूलपाठ ॥ १४ ॥ साहिगरणं निक्खुं गिलायमीणं नो कप्पर तस्स गणावच्छेइयस्स निजू हित्तए अगिला तस्स करणिं वेयावमियं जाव तओ रोगायङ्कायो विमुक्का, ओ पहा तस्स अहालहसए नामं ववहारे पट्टविय सिया || १४ || भावार्थ || १४ || क्रोधादिके सहित ग्लानी साधु गणावच्छेदक कने आव्यो थको तेने गच्छ बाहार गणावच्छेदके कावो कल्पे नहि, पण ते निरोगी थतां सुधी तेनी वैयावच निरोगी साधु पासे कराववी ने रोग मटया पछी वैयावच करावी माटे तेने नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चित आप ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ १५ ॥ स० घणा । पा० प्रायश्चित आव्या तेणे करी भयभ्रांत थथो । भि० साधु । गि० ग्लानपणुं पामीने गणावच्छेदक ने आव्यो । नो० न । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । नि० गच्छथी बहार काढवो । अ० नहि । गि० रोगी एटले निरोगी साधु पासे । त० तेनी । क० कराववी । वे० वैयावच । जा० ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग । आ० उद्देसओ. ॥२॥ ॥ ३५ ॥ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आतंक थी । वि० न । मु० मुकाय । त० ते वार । प० पछी । त० तेने । अ० घणो । ल. थोडो । ना० नाम मात्र । व०४ 18 व्यवहार प्रायश्चितने विपे । प० स्थापवो । सि० होय ।। १५ ।। मूळपाठ ॥ १५ ॥ सपायच्छितं भिक्खं गिलायमीणं नो कप्पइ तरस गणावच्छेइयस्त निङ्गाहित्तए. अगिलाए तस्स करणिड वेयावडियं जाव तयो रोगायङ्काओ विप्पमुक्को, तो पहा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियत्वे सिया ॥१५॥ भावार्थ ॥ १५ ॥ घणु प्रायश्चित आववाथी भयभ्रांत थइ ग्लानी पामेल साधु गणावच्छेदक कने आव्यो धको ते गणावच्छेदके तेने गच्छ वहार काढयो न कल्पे, पण निरोगी साधु पासे ते रोगथी मुक्त थतां सुधी तेनी वैयावच कराववी ने 8 रोगधी मुक्त थया पछी तेने नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चिते स्थापवो ॥ १५ ॥ अर्थ ।। १६ ।। भ० भात । पा० पाणी । प० न लेवाथी एटले अणसण कीधे थके । विख० व्यग्र चित्तवाळो । भि० साधु । तु गि ग्लान पाम्यो धको । नो० न । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । नि० गच्छयी वहार काढयो। अं० नहीं। गि रोगी एटले निरोगी साधु पासे । त० तेनी । क० कराववी । वे वैयावच । जा. ज्यां लगे। त० ते । रो० रोग। भा० आंतकवाकी । वि० न । मु० मुकाय । त० ते वार । ५० पछी । त० तेने । अ० घणो । ल० थोडो । ना० नाम मात्र । ५ २० व्यवहार प्रायश्चिते । ५० स्थापयो। सि० होय ॥१६॥ +CCESPEG राम BASAHESALESTEE Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार उद्देसओ. ॥२॥ 4% A -%Sakur-x---x-CARAK मूळपाठ ॥ १६ ॥ भत्तपाणपडियाइक्खित्तं निकलुं गिलायमीणं नो कप्पइ तस्स गणाव च्छेइयस्स निहित्तए. अगिलाए तस्स करणिहां वेयावडियं जाव तयो रोगाय काओ विष्पमुक्को, तओ पहा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियत्वे सिया॥१६॥ भावार्थ ॥१६॥ अणसण करीने व्यग्रचित्त (वायुए भ्रमित) थएलो साधु ग्लानपणुं पामीने गणावच्छेदक पासे आवे तो तेने गच्छथी बहार गणावच्छेदके काढवो कल्पे नहिं पण निरोगी साधु कने तेनी सेवा करावे ने रोग मटाडे. रोग मध्या पछी नाम मात्र व्यवहार प्रायश्चित आपे ॥ १६ ॥ अर्थ ॥ १७ ॥ अ० (लक्ष्मी देखी) लोभ । जा० प्राप्त । भि० साधु । गि० ग्लानी थको। नो० न । क. कल्पे । त० तेने । ग. गणावच्छेदके । नि० गच्छबहार काढवो न कल्पे । अनि । गि० रोगी साधु कने । त० तेनी । क० कराववी । वे० वैयावच । जा. ज्यां लगे । त० ते । रो० रोग । आ० आंतक थकी। वि० न। मु० मुकाय । त० ते वार। प० पछी । त० तेने । अ० घणो । ल० लधु । ना० नाम मात्र । व० व्यवहार प्रायश्चिते । प० स्थापनो । सि० होय ॥ १७ ॥ मूळपाठ ॥ १७ ॥ अट्ठजायं जिक्खू गिलायमीणं नोकप्पइ तस्स गणावच्छे यस्त निजा हित्तए. अगिलाए तस्स करणि वेयापावमियं जाव तओ रोगायकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्त अहालहुसए नामं ववहारे पट्टवियत्वे सिया ॥ १७ ॥ SRASACAEX ॥३६॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __भावाथै ॥ १७ ॥ लक्ष्मीना लोभे करीने जे साधु ग्लानपणुं पामीने गणावच्छेदकः समीपे आव्यो थको गणावच्छेदक १ नेने गच्छ बहार काढयो कल्पे नहीं, पण निरोगी साधु पासे तेनी वैयावच करावी तेने रोगथी विमुक्त करवो ने रोगथी मुक्त धया पन्छी नाम मात्र पण व्यवहार प्रायश्चिते तेने स्थापवो ॥ १७ ।।। अर्थ ॥ १८ ॥ अ० नवमां प्रायश्चितनो वहणहार । भि० साधु । अ० नथी । गि० ग्रहस्थनो लिंग एटले ग्रहस्थना लिंग१विना । नो० न । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । उ० संजमने विपे स्थापवो ॥ १८ ॥ मृळपाठ ॥ १७ ॥ अणवट्टप्पं भिक्खु अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावलेइयस्स उवट्ठा वेत्तएं ॥१८॥ भावार्य ॥ १८ ॥ नवमा प्रायश्चितना वहणहार साधुने ग्रहस्थनो लिंग कर्याविना तेने गणावच्छेदके संजमने विषे स्थापनो कल्प नहिं ।। १८ ॥ (हवे केम कल्पे ते कल्पना अधिकारनो समुचय संग्रहनयनो सूत्र कहे छ ). ___अर्थ ॥ १९ ।। अ० नवमा प्रायश्चित वहेनारं । भि० साधुने । गि० गृहस्थना लिंग सरखो लिंग करीने । क० कल्पे । त० ते साधुने । ग० गणावच्छेदके । उ० संजमने विपे स्थापयो ।। १९ ॥ ४ मृळपाठ ॥१९॥ अणवट्ठप्पं भिक्खू गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावलेइयस्स उवट्ठावेत्तए ॥१९॥ १ Tho order in !P B (पी वीमां नीचे मुजब छे) १८, २०-१५-२१ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ॥ ३७ ॥ भावार्थ ॥ १९ ॥ ( तो केवी रीते कल्पे ते कल्पवानो अधिकार संग्रह नयने मते नीचे मुजब कहे छे). ते नवमा प्रायश्चित वहणहार साधुने ग्रहस्थना लिंग सरखो लिंग करीने गणावच्छेदके तेने संजयने विषे स्थापवो कल्पे. ( गृहस्थ लिंग करी फरी दीक्षा देवानुं कारण एछे जे तेनो दोष लोकमांहि प्रगट छे. ते गृहस्थ लिंग पहेरवाथी लोकमां प्रतित उपजे तेथी संघनी साखे आचार्य तेने प्रायश्चित आपे ॥ १९ ॥ अर्थ | २० || पा० पारंचित १० मुं प्रायश्चितनो वहणहार । भि० सा । अ० गृहस्थ लिंग कीधाविना । नो० न । क० कल्पे | त० तेने । ग० गणावच्छेदके । उ० संजमने विषे स्थापवो न कल्पे ॥ २० ॥ मूलपाठ ॥२०॥ पारञ्चियं निक्खु अगिदिभूयं नो कप्पड़ तस्स गणावलेइयस्स उवट्ठावेत्तए ॥२०॥ भावार्थ ॥ २० ॥ पारंचित एटले १० मुं प्रायश्चितवाळा साधुने ग्रहस्थ लिंग कीधाविना तेने गणावच्छेदके संजमने विषे स्थापal कल्पे नहि ॥ २० ॥ अर्थ ॥ २१ ॥ पा० पारंचिय प्रायश्चितवंत । भि० साधुने । गि० ग्रहस्थनो लिंग करीने । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । उ० संयमने विषे स्थापवो कल्पे ॥ २१ ॥ मूलपाठ ||२१|| पारश्चियं भिक्खुं गिहिनूयं कप्पड़ तस्स गणावबेइयस्स उवद्यावेत्तए ॥ २१ ॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ पारंचि प्रायश्चितवंत साधुने गृहस्थ लिंगे करीने तेने गणावच्छेदके संजमने विषे स्थापवो कल्पे ॥ २१ ॥ अर्थ || २२ || अ० नवा मायश्चितनो धणी । भि० साधु । अ० गृहस्थ लिंग अणकीधे । वा० वळी । गि० ग्रहस्थ उद्देसओ ॥ २ ॥ ३७ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिंग कीधे यके । वा० वळी । क० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । उ० संजमे स्थापयो । ज० ज्यां । त० ते । साधुना। ग० गणने । ५० प्रतित । सि० होय ॥ २२ ॥ मूळपाठ ॥ २२ ॥ अणवठ्ठप्पं भिक्खं अगिहिभूयं वा गिहिनूयं वा कप्पइ तस्स गणाव इयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्ल पत्तियं सिया ॥ २२ ॥ भावार्य ।। २२ । नवमा प्रायश्चित्वाळा साधुने ग्रहस्थ लिंग कर्याविना के ग्रहस्थ लिंग करीने गणावच्छेदके जो ते साधुना गण ( गच्छ-संध ) ने तेनी मतिति उपजे तो तेने मंजमने विषे स्थापवो कल्पे ॥ २२ ॥ ( कोई आचार्यने प्रायश्चित लाग्या हाय ने तना शिप्य कहे जे अमारा आचायेन ग्रहस्थ लिंग करशो तो कलेप उत्पन्न थशे, छानो प्रायश्चित प्रगट यशे ने 12 लोकमां शंका अप्रतिति उपजशे, एहरे कारणे गृहस्थ लिंगे न स्यापे.) ___ अर्थ ॥ २३ ॥ पा० पारंचित । भि० साधु । अ० ग्रहस्थ लिंग अणकीधे । वा० अथवा । गि० ग्रहस्थ लिंग कीधे । वा० वळी । फ० कल्पे । त० तेने । ग० गणावच्छेदके । उ० संजमे स्थापवो । ज० जेम । त० ते साधुना । ग० गणने । प० प्र. तित । सि० होय ।। २३ ॥ मूळपाठ ॥ २३ ॥ पारश्चियं भिक्खु छागिहिनूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावलेइ यस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्त पत्तिय सिया ॥ २३ ॥ १1 II adds (टी. एचमां वधारे छे) पारश्चियं भिक & omits therefore sutra 23 (२३ मुं सूत्र लख्यु नथी) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ॥२॥ ieCEBORDEREDEO भावार्थ ॥ २३ ॥ पारंचित प्रायश्चितवाळा साधुने ग्रहस्थलिंग कर्या विना के ग्रहस्थलिंग करीने गणावच्छेदके तेने सं३८ ।। जमने विषे स्थापवो कल्पे जेथी ते साधुना गणने प्रतिति उपजे ॥ २३ ॥ हवे उपला प्रायश्चित केवा दोष सेव्याधी आवे ते । कहे छे. एक साधु बीजा साधुने अभ्याख्यान देवा निमित्ते अकृत्य स्थानक मैथुनादिक सेवे तो केम आलोवे ते कहे छे ॥ अर्थ ॥ २४ ॥ दो० वे । सा० साधर्मिक साधु । ए० एकठा । वि० विचरता थका । एक एक साधर्मिक ते बीजा अनेरा साहमीने अभ्याख्यान (आळ) देवा निमित्ते । त० त्यां । अ० अनेरा मैथुनादिक । अ० अ। कि० कृत्य । हा० स्थानक । प० सेवीने । आ० आलोवे । ते केम आलोवे ते कहे छ । अ० हवे । णं० वळी । भं० हे पूज्य ? । अ० अमुक । सा० साधु । स० संघाते । इ० ए । का० कारणे । १० मैथुनादिके करी चारित्रनी विराधना कीधी (एटले में अकृत्य स्थानक सेव्यो) ते वारे ते आचार्य शुं करे ते कहे छे । से० ते । य० वळी । तेने । पु० पुछे। किं० केम । प० ते स्थानक सेव्यो के नथी सेव्यो । से० ते साधु । य० वळी । व० कहे । प० सेव्यो तेने । प० प्रायश्चितनी। प० प्राप्ती करवी । से० ते । य. वळी । व० कहे । नो० नथी। प० सेन्यो तो तेने । नो० न करवी । प० प्रायश्चितनी । ५० प्राप्ति एटले प्रायश्चित न देवो । : जं० जे । से० ते 'प० प्रमाणे । व० बोले । से० तेने वळी । १० प्रमाण धकी निश्चे । घे० ग्रहवो हाय । से० ते शिष्ये पू. * छयु । कि० केम शा भणी । आ० एम कडं । भं० हे पूज्य ? । गुरु कहे छे के ते । स० साची। प० प्रतिज्ञा । व० व्यवहार भगवंते कह्यो छे ॥ २४ ॥ मूळपाठ ॥२४॥ दो साहम्मिया एगो विहरन्ति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडि सेवित्ता आलोएडा। अहं णं जन्ते अमुगेणं साहुणा सद्धिं इमम्मि कारणम्मि 156X9C 90 ॥३०॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पमिसेवी से य पुछियते । किं परिसेवी ? से य वएका । परिसेवी, परिहारपत्ते से य वएका । नो परिसेवी, नो परिहारपत्ते. जं से पमाणं वयइ से पमापाओ वेयवे'. से किमाहु जन्ते ? सच्चपइन्ना ववहारा ॥ २४ ॥ भावार्थ ॥ २४ ॥ वे साधर्मिक साधु एकठा भेळा विचरता थका ते मध्ये एक साधर्मिक साधु वीजा अनेरा साधर्मिक ने अभ्याख्यान देवा निमित्त अनेरा मैथुनादिक अकृत्य स्थानक सेवे तो ते केप आलोवे ते कहे छे. ते एम कहे, हे पूज्य ? में अमुक साधु संघाचे अभ्याख्यान देवा माटे मैथुन आदिक करी चारित्रनी विराधना कीधी एटले अकृत्य स्थानक सेन्यो छे त बारे ते आचार्य केम करे ते कहे छे. ते मैथुन सेवनार साधुए पोते दोष आलोव्या पछी ते वीजो साधु जेना उपर आळ मुक्युं छे तेने न्याय आपका माटे ( तेहने त्यां घणा दीलासाने सहते करीने) पूछे केम ? तमे मैथुन स्थानक सेव्यो के नथी संध्यो ? तेना जवायां सेव्यानुं कहे तो तेने प्रायथित आपे ने एम कहे के मैंतो नथी सेव्यो तो तेने प्रायश्चित आपे नहि. जे साचुं कहे तेनी साथै साचा प्रमाणे वर्तचुं. ( आचायें आ वावतमां मैथुन क्रिया कया ठामे, कये दिवसे, कइ वेळा, केवी इत्यादिक एकवार, घणीवार पूछीने निर्णय करीने प्रायश्चित आपवो ). अहिं शिष्य पूछेछे, हे भगवंत ? एम शा भणी धुं ? भगवंत कहे छे के ए साची प्रतिज्ञा व्यवहार प्रायश्चित कह्यो एटले जेणे मैथुन सेन्युं तेमे अप्रतिसेवी न करवो ने अ१H (एचमां ) से तत्थ पुच्छियन्वे । किं पडिसेवी अपडिसेवी ? २ H (एचमां) से य प्प (for तप्प १ मा ३ H ( एनमा वधारे) adds सिया, 444 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार नमय KCAREERA ६ प्रतिसेवीने प्रतिसेवीन करवो, जो तेम करे तो आचार्यने एटलोज प्रायश्चित आवे, केमके अछता आळ दीए तो पछी बीजें उद्देसओ. व्रत न रहे ॥ २४ ॥ उपला सूत्रमा अछता आळ देनारने प्रायश्चित कयु ते तो गण छोडीने मैथुन सेववा जाय ते जता थका Amem विषय उपसमे ते वारे शुभ कर्मने उदये करी पाछो आवे ते अधिकार कर छे. 8 अर्थ ॥ २५ ॥ भि० साधु । य० वळी । ग० गच्छ थकी। अ० नीकळीने । ओ० (मोहने उदये अथवा भोगावळी कर्मने उदये) असंजम गमन । पे० करवा निमित्ते । व० जाय । से० ते । य० वळी साधु कदाचित जाता थकां मार्गे चालवे करीने ( विषयने उपसमवे करीने शुभ कर्मने उदये करीने )। अ० विण सेव्यु । ते साधु वळी पाछो आवीने वळी । इ० वांछे । दो० बीजीवार । पि० वळी । त० ते । ए० ज । ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरतुं वांछे तेवारे ते अवसरे । त० त्यां । णं० वळी । थे० स्थिवरने । इ० एवा । रू० रूपे एहवो माहोमांहि । वि० विवाद । स० उपजे । तेबारे स्थिवरने कलेष मन थाय ते माटे गच्छना साधुने अथवा जे चारित्रीओ ते साधुनी संघाते मोकल्यो होय तेनी खबर भणी अथवा जेहनी लज्जाए करी सेवी न शके ते भणी मोकल्यो होय तेने पुछे पुछीने द्रव्य क्षेत्र काल भावादिक प्रमाण जोइ निश्चय करवो ते कहे छे । इ० ए साधु । भो० अहो आर्यो । जा० तमे जाणोछो के । कि० केम । प० पडिसेवी छे एटले तेणे दोष सेव्यो छे अथवा नथी दोष सेव्यो एहवं उपला स्थिवरोने पुछ्चा पछी । से० ते दोष सेवनारने । य० वळी । पु० पूछे के । किं० केम । प० ते दोष सेव्यो के नथी सेव्यो । से० ते । य० वळी । व० एम बोले । ५० सेव्यो छे तो। प० तेने प्रायश्चित । प० देवो । से० ते । य० वळी । व० एम बोले । नो० नथी । प० सेव्यो तो । नो० न । प० प्रायश्चित । ए० देवो । जं. जे । से० ते । प० प्रमाण । व० बोले । से० तेना वळी । प० प्रमाणथीं । घे० निश्चय करी ग्रहवो होय । से० ते शिष्य पूछेछे । कि० शा Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ k rt-1 भणी एम । आ० कां । भ० हे पृज्य ! ! गुरु कहे 2 तीर्थकरे ए व्यवहार प्रायश्चित कयु केमके । स० ते साची । ५० प्रतिज्ञाए, | करी कहे छे माटे । २० व्यवहार कह्यो एटले प्रतिज्ञाए सेवीने अप्रतिसेवी करवो नहीं ॥ २५ ॥ भूळपाठ ॥ २५ ॥ निक्खू य गणाओ अवकम्म ओहाणुप्पेही वोजो, से ये अणोहाइए श्वेता दोच्चं पि तसेव गणं उवसंपजिाताणं विहरित्तए, तत्थ णं थेराणं इमे. यारूवे विवाए समुप्पडित्था। इसं जो जाणह किं पमिसेवी ?" से य पुडियवे । किं पमिसेवी ? सेय वएझा । पमिलेवी, परिहारपत्ते. सेय वएजा। नो पमिसेवी, नो परिहारपत्ते. जं से पमाणं वयइ से पमाणाओ घेयवे'. से किमाहु जन्ते ? सच्चपइन्ना ववहारा ॥ २५ ॥ भावार्थ ॥ २५ ॥ साधु पोताना गच्छथी नीकळीने मोहने उदए अथवा भोगावळी कर्मना उदयथी असंजम सेवा निमित्त जाय, ते साधु जाता थका (साक्षीरुपे माकलेल साधु साथे) मार्गे चालतां थकां विपयने उपसमवे करीने शुभ कमेने उदये करीने विपय सेव्याविना ते साधु ते गच्छमां पाछो दाखल थवा इच्छे ते वारे तेणे असयम सेव्यो के नथी सेन्यो । १ 11 (एचमा ) पेहाए गच्छेजा. २ Hands ( एचमां वधारे ) आहच. ३ Hadds ( एचमां वधारे ) से य ४ म (एचमा) मा णं अज्जोजा'. ५H adds (एचमां वधारे) अपडिसेवी ? ६ Hadds ( एचमां वधारे ) सिया. Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर० ४०॥ ॐॐॐ---- | एहलो स्थिवरोमां विवाद उपजे, पण स्थिवरोमां क्लेश न होवा भबी जे गच्छनो साधु अथवा जे चारित्रीयो ते साधु संघाते |E) उद्देसमो. मोकल्यो होय तेने पूछे, पूछीने द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव प्रमाणे जोइ निश्चय करवो. अहो आर्यो ? तमे जाणोछो जे एणे ॥२॥ विपय सेव्यो अथवा नथी सेव्यो ? वळी तेज साधुने पूछे के तमे विषय सेव्योके नथी सेव्यो ? एम पूछता जो ते कहेके हार सेव्यो छे तो तेने प्रायश्चित देवो ने जो ते पछतां कहेके नथी सेव्यो तो प्रायश्चित देवो नहि. (सेववाना परिणाम थया पण सेव्यो नथी तो भगवती सूत्रे कयु छे तेम परिणामनो प्रायश्चित ए व्यवहार प्रायश्चित छे माटे देवो नहि. बळी अकृत्य सेवीने आलोवे तो आराधिक थाय). ते साधु जे प्रमाणे बोले ते प्रमाणथी निश्चय करी ग्रहवो. शिष्य कहे छे, हे पूज्य ? एम शा भणी कहुं ? गुरु कहे छे तीर्थकरे ए व्यवहार प्रायश्चित का केमके ते साची प्रतिज्ञाए करी कहे छे एटले प्रतिज्ञाए करी कहेनार सेवीने अप्रतिसेवी न करवो ॥ २५॥ अर्थ ॥ २६ ॥ ए. एक । प० पक्षी । एटले गच्छमां वर्तनारा । भि० साधुने । क. कल्पे | आ० बीजा आचार्य । उ० उपाध्याय । इ० थोडा । दि० काळलगे । वा० अथवा । अ० जावजीव लगे। वा० वळी । उ० स्थापवो । वा० अथवा । धा० धारवो । वा० बळी । तेनु कारण कहे छे । ज० जेम । वा० बळी । त० तेना । ग० गच्छने । १० प्रतित । सि. उपजे ॥२६॥ मूळपाठ ॥२६॥ एग पक्खियस्स निक्खुस्स कप्पश् थायरिय उवज्कायाण इत्तरियं दिसं वा. अणुदिसं वा उदिसित्तए वाधारेत्तए वा, जहा था तस्स गणस्स पत्तियं सिया ॥२६॥ ४०॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ एक पक्षी एटले एक गच्छवर्ती साधुओने आचार्यन उपाध्यायर्नु मरण उपजे तो ( सनाथपणा माटे || Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mi-tearsit एटले गच्छनी चिता न थाय ने कलेप न उपजे ते माटे ) गणनी प्रतिति माटे जो पदवी योग्य पुरुप न मळे तो तेवो पुरुप मजना सभी वीजाने थोडाकाळ लगे आचार्य उपाध्यायपणे स्थापवो कल्पे. आरीते स्थापेल आचार्य उपाध्यायने इत्तरिय कहीए. ने जो वोइ पदची योग्यने गुणवंन गळे तो तेने जावजीव लगे स्थापवो कल्पे, तेवाने जावजीववान कहीए ॥ २६ ॥ अर्थ ॥ २७ । १० घणा । प. प्रायच्छितिया । व० घणा। अ० अ। १० परिहारिया साधु । इ० इच्छे वांछे। एक एफ.टो । ए० एक । मा० मास । वा० अथवा । दुवे । मा० मास । वा० अथवा । तिव्रण। मा० मास । वा० अथवा । च० चार | मा० मास । वा० अथवा । पं० पांच । मा० मास । वा० अथवा । छ० छ । मा० मास । वा० बळी । व० रहेवू । ते० ते । अ० अन्यो । अ० अन्य । सं० एकठा (वैयावच करतां) जमे । अ० माहोमांहि । नो० न । सं० (वैयावच न करे तो) जमे ( नहि ) । मा० मासने अंते । त० तेवार । प० पछी । स० सर्वे । वि० वळी । ए० एकठो । सं० जमवो ॥ २७॥ मृळपाठ ॥ २७ ॥ वहवे परिहारिया बहवे अपरिहारिया इलेगा एगयो एगमासं वा मासं वा तिमासं वा चउमासं वा पञ्चमासं वा छम्मासं वा वत्थए. ते अन्नमन्नं संभुञ्जन्ति अन्नमन्नं नो संभुञ्जन्ति मासं, तो पहा सवे वि ए गयओ' संजुञ्जन्ति ॥ २७ ॥ १। (एच ) एगो २ एगमासं वा to छम्मासं वा in H. (एचमां) after नो संभुञ्जन्ति ( पछी). ३ मासंते तत्तो प"H ( एचमां छे) e Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ.. ला॥२॥ भावार्थ ॥ २७ ॥ घणा परिहारिया एटले दुषण लगाडी प्रायश्चित लीए तेवा साधु ने घणा अपरिहारीया साधु एकठा व- सवा इच्छे तो ते अन्योअन्न वैयावचादिक कारणे ( एक एक मास उपर पांच पांच रात्री वसीने पछी) मांहो मांहि एकठं ॥४१॥ जमवू पण वीजा जे चैयावच करता नथी तेमणे अन्योअन्य जमवू नहि. ते एक मास उपर पांचदीन, बे मास उपर, पण मास हा उपर, चार मास उपर, पांच मास उपर, छ मास उपर पांच दीन एम ए छ मास पछी सर्वेए एकहुँ जमवं. (विशेषे खुलाशो नीचे मुजब छे. परिहारीने अपरिहारी मांहो मांहे एकठा किंहालगे जमे तो कहे ज्यां लगे तप पुरो थाय. ते वार पछी अकेका मास उपरे पांच पांच दीन जमे ते एम करतां छ मास उपरवळी एक मास जमवू. एकठा जमतां आहारादिक वेहेंची लेवो पडे 2. अने ते तो तपस्वी छ जेनुं शरीर क्षीण थयुं छे तेथी पांच रात्री एकठा जमवानुं कर्तुं छे ने एकठा जमवानुं कारण वैयावचादिक छे) ॥ २७ ॥ उपर प्रायश्चित बहे ते कडं तेने स्थिवरनी आज्ञाविना आहारादिक देवो न कल्पे, ते भणी इहां स्थिवरनी आज्ञा सहित आहार देवो लेवो कल्पे ते कहे छे॥ अर्थ ॥ २८ ॥ ५० परिहार । क० कल्प । ढि० स्थितिए रहेल | भि० साधुने । नो० न। क. कल्पे । अ० अशन । वा० अथवा । पा० पाणी । वा० अथवा । खा० खादीम । वा० अथवा । सा० स्वादीम | वा० वळी । दा० देवो । वा० अ-। ४ थवा । अ० अनेरा पासे । दा० देवाडवो । वा० बळी । थे० स्थिवर । य०० वळी । २० आज्ञा आपे तो शुं आज्ञा आपे तो के । इ० आ अन्न । ता० बळी । अ० हे आर्यो । तु० तमे । ए० ए परिहारी साधुने । दे० देजो। वा० अथवा । अ० * अनेरा पासे देवहावजो । वा० वळी । ए० एम आज्ञा दीधे थके । से ते साधुने । क. कल्पे । दा० अन्न वगेरे देवो। वा० ॐ वळी । अ० अनेरा पासे । दा. देवराववो । वा० वळी । फ० कल्पे । से० ते परिहारी आहारनो। ले० लेप मात्रनी। अ० ॥४१॥ Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्विनी आज्ञा लइने | अ० तमारी आज्ञा है । हे भगवंत । तं० ते । ले० लेपनी (एटले विगयादिक आहार लेवानी ) । ए० एम स्थिरनी आज्ञा मागीने । से० ते साधुने । क० कल्पे । ले० लेप । अ० समाचरवो ॥ २८ ॥ 1 मृळपाठ ॥ २८ ॥ परिहार कप्पट्टियस्स निक्खुस्स नो कप्पर असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउँ वा अणुपदानं वा. थेरा य णं वएका । इमं ता असो तुमं एएसिं देहि वा एहि वा ? एवं से कप्पइ दानं वा अणुप्पदाडं वा. क इसे लेवं अणुजाणावेत्तए । अणुजाणह तं' लेवाए ? एवं से कप्पड़ लेवं अणुजांणावेत्तए ॥ २८ ॥ भावार्थ ॥ २८ ॥ परिहार ( प्रायश्चित ) कल्प आचारनी स्थितिए रहेल साधुने अन्न, पाणी, मेवो ने मुखवास देवो अथवा अनेरा पासे देवडाववो कल्पे नहि, पण जो स्थिवर एम आज्ञा आपे जे हे आर्यों ? तमे आ अन्न ए परिहारी साधुने देजो अथवा अनेरा पासे देवढावजो तो एम आज्ञा दीधे थके ते साधुने अन्न देवो अथवा अनेरा पासे देवडाववो कल्पे. ते परिहारी साधु स्थिवरनी आज्ञा लइने विगयादिक आहार लीए ते कहे छे. हे भगवंत विगयनो आहार लेवानी आपनी आज्ञा है ? एम पुछी आज्ञा मागीने ते साधुने लेप एटले विगयादिक आहार लेवो कल्पे ॥ २८ ॥ उपर परिहारीने अश्ना१ भी b (वामां ), 11 ( एचमां ). २ Hadds ( एचमां वधारे) अंते, ३ II ( एचमां ) समासेवित्तए. 1. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धवहार० ४२ ॥ दिक देवो लेवो कह्यो छे ते परिहारी कोइक कारणे स्थिवरनी वैयावच करे ते भणी वैयावदनी विधिनो अधिकार कहे छे || अर्थ ॥ २९ ॥ प० परिहार । क० कल्प । ट्टि स्थितवंत । भि० साधु । स० पोताना । प० पात्रा लइने । ब० स्थानकनी बहार पोताना | थे० साधुनी । वे० आहारादिक वैयावचने अर्थे । ग० जाय एटले ते परिहारी साधु स्थिवर साधुनी वैयावच करतां पोताना पात्रमां पोतानो आहार पाणी लावी भोगवे ने स्थिवरना पात्रने विषे स्थिवरने आहार पाणी लावी दीए के के कोने विगादिक सरसनिरस आहार लेवानो होय ते माटे जुदा जुदा पात्रमां आहार पाणी वहोरी लावे हवे । थे० स्थिवर साधु । य० णं० वळी ते साधुने आहार बहोरवा जातो देखीने एम जाणे जे बीजीवार स्थिवर काजे आहार लेवा जता ते आतुर थशे अथवा तेने खेद थशे एम जाणीने । व० एम कहे । प० तमारा पात्रमां मारो आहारपाणी लेता आवजो । अ० हे आर्य । अ० अमे । अ० पण ते आहार । भो० जमशुं । वा० वळी । पा० पाणी पीशुं । बा० बळी । एम स्थिवरे को थके । ए० एम। से० ते परिहारी साधुने । क० कल्पे । प० स्थिवरनो पण आहारादिक लेवो. हवे केम जमे ते विधि कहे छे । त०] त्यां । नो० न । क० कल्पे । अ० अपरिहारी साधुने । प० परिहारी साधुना । प० पात्रने विषे । अ० अश्नादिक । वा० वळी | पा० पाणी । वा० वळी । खा० खादीम । वा० वळी । सा० स्वादीम | वा० बळी ४ चार वाना | भो० जमवा । वा० अथवा पा० पाणी पीवाने न कल्पे तो केम जमवुं कल्पे ते कहे छे । वा० बळी । क० कल्पे । से० ते स्थिवरने | स० आपणो । वा० वळी । प० पात्रमां आहार लइ जमवो । अथवा स० पोतांनो वा० बळी । प० मात्रीयो तेने विषे । ( पोताना । वळी । कमंडल एटले पाणीना भाजनने विषे अथवा पोताना वळी वे हाथना खोवाने विषे लइने जमवो । अथवा | पोताना वळी ) । पा० हाथ उपरे । वा० बळी । उ० लह । उ० लइने । भो० जमवो कल्पे । वा० । 'उद्देसओ. ॥ २ ॥ ॥ ४२ ॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ****++ अथवा | पा० पाणी पीवाने कल्पे । वा० बळी । ए० ए । क० कल्प आचार । अ० अपरिहारी अने । प० परिहारी श्री माणो ॥ २९ ॥ मूळपाठ ॥ २९ ॥ परिहारकप्पट्ठिए निक्खू सएणं पडिग्गहेणं वहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेता. थेरा यं णं वएा । परिग्गाहे' असो, अहं पि भोक्खामि वा पाहामि वा, एवं से कप्पइ पकिग्गाहेत. तत्थ नो कप्पइ अपरिहारिएणं परिहारियस्स परिग्गसि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा जोतए वा पायए वा, कप्पइ से सरांसि वा पमिग्गसि सयंसि वा पलाससि पाणिसि वा उद्ध उद्धट्टु जोत्तए वा पायएँ वा. एस कप्पो अपरिहारियस परिहारिया ॥२९॥ १ II (एच) अप्पणो for थेराण means porliaps (एनो अर्थ) अप्पणो थेराणं, थेराणं omitted by T (टी मां नथी). २ 11. adds (एचमां वधारे) से II omits (एचमां नथी) नं. ३ HE (एचमां) ग्गाहेहि . ४P (पी) गाहेत्तर. ५ (एच) पीत्तए (for पिइत्तए), ६ II adds (एचमां वधारे) सयंसि वा कमण्डलगंसि वा सयंसि वा खुम्भगंसि वा सयंसि वा. ७ H (एच) पाणियंसि. ८ T has (टीमां छे) स्वकीये वा खुच्चए (see (जुओ) ३०) instead of पाणौ वा (ने बदले ) ८ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥ ४३ ॥ भावार्थ || २९ || परिहार कल्प स्थितिना साधु स्थिवर साधुनी वैयात्रच करतो होय ते वारे पोताने माटे आहारपाणी पोताना पात्रमाही लावे ने स्थिवरना पात्रमां स्थिवर माटे आहारपाणी लावे केमके कोइने विगयादिक सरस निरस आहार पाणी लेवानो होय माटे दरेकनो जुदा जुदा पात्रमां आहारपाणी लावी आपीने भोगवे. दवे स्थिवर साधु ते परिहारी साधुने आहारपाणी वहोरवा जातां एम जाणे जे बीजीवार मारे माटे ते साधुने आहारपाणी लेवा जातां आतुरताने खेद थशे एम जाणी ते परिहारी साधुने स्थिवर कहे ने हे आर्य तमारा पात्रमां अमारो आहारपाणी पण भेगो लेता आवजो. अमे ते महार जमशुं ने पाणी पीथं, एम स्थिवर कहे तो ते परिहारीने स्थिवरनो आहार (पाणी) पण पोताना पात्रमां भेळो लाववो कल्पे, वे मज ते विधि कहे छे. अपरिहारी साधुने परिहारी साधुना पात्रने विषे अश्नादिक चार वाना जमवा के पाणी पीधुं कल्पे नहि पण स्थिरने पोताना पात्रमां आहार लइने जमवो कल्पे अथवा पोताना मात्रीयाने विषे अथवा कमंडल एटले (लोट) पाणीना भाजनने विषे अथवा पोताना बे हाथना खोवाने विषे अथवा हाथ उपर लइने जमवुं कल्पे. ए कलप आचार अपरिहारीने परिहारी आश्री जाणवो ॥ २९ ॥ ए परिहारी पोताने अर्थ आहारपाणी माटे जाय एम क. हवे आचार्यने अर्थे जाय ते श्री कहे . अर्थ ॥ ३० ॥ प० परिहार | क० कल्प । ट्ठि० स्थितिवाळो । भि० साधु । थे० स्थिवरना । प० पात्र लइने | ब• उपाधी बहार | थे० स्थिवरनी । वे० वैयावचने अर्थे आहारने काजे । ग० जातो होय ते वारे । थे० स्थिवर । य० णं० बळी | व० कहे । प० तमारो आहार पण एज पात्रमां लावजो । अ० हे आर्य । तु० तमे । पि० पण । प० पछी । भो० आहारिदिक भोगवजो । वा० अथवा । पा० पाणी पीजो। वा० वळी । ए० एम। से० तेने को थके ते साधुने । क० कल्पे । प० उद्देसओ ॥ २ ॥ ॥ ४३ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AREASEARS | लेवो । त० त्यां । नो० न । क० कल्पे । ५० परिहारी साधुने । अ० अपरिहारीना । प० पात्रने विषे। अ० अश्नादिक । वा०% वळी । पा० पाणी । वा० वळी । खा० खादीम । वा० वळी । सा० स्वादीम । वा० वळी । चारवाना। भो० भोगववा है 5/ (जमवा)। वा० अथवा | पा० पाणी पीवो । वा० वळी । क० कल्पे । से० ते साधुने । स० पोताना । वा० वळी। प० पा बने विपे । अथवा । स० पोताना । वा० वळी । १० मात्रीए (अथवा पोताने वळी कमंडळ ते पाणीनु भाजन तेने विपे अथवा पोताना वळी खोवामां अथवा पोताना रळी)। पा० हाथ उपरे । वा० वळी । उ० लइ । उ० लइने । भो० आहार जमवो । चा० अथवा । पा० पाणी पीयूँ । वा० २ळी । ए० ए । क० समाचारी । प० परिहारी एटले प्रायश्चितना धणीनी ने । अ०१ अप्रायश्चितना धणीनी ॥ ३० ॥ त्ति० एम । वे० ९ कहुं हुं ॥ मृळपाठ ॥ ३० ॥ परिहारकप्पट्ठिए निक्खू थेराणं पमिग्गहएणं बहिया थेराणं वेयावमि याए गच्छेजा. थेरा य णं वएजा । पमिग्गाहे अजो, तुमं पि पच्छा नोकखसि वा पाहिसि वा, एवं से कप्पइ पमिग्गाहेत्तए. तत्य नो कप्पर परिहारिएणं अपरिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा पाणं वा खाश्मं वा सामं वा जोत्तए वा पायए वा, कप्पर से सयंसि वा पमिग्गहंसि, सयांस वा पलासगंसि पा१ H omit (एचमां नधी) णं. २ म. (एच) पीत्तए. ३ H. adds us in २९ (२९ मुजव) एचमां वधारे छे. T has : (टी मां छे) स्वकीये वा पलाशके स्वकीये या कमठे स्वकीये वा खलुच्चके. EHRAICAESARLAGAIREKASISARAL Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहान ॥४४ RECER 4551 : णिसिवा उडु उड्ढ नोत्सए वा पायए वा. एसलेस कप्पो परिहारियस्स उद्देसमो. ॥२॥ __ अपरिहारियायो ॥३०॥-त्ति बेमि. भावार्थ ॥ ३० ॥ परिहार कल्प स्थितिनो साधु स्थिवरना पात्रने लइने उपाश्रयनी बहार स्थिवरनी वैयावचने अर्थे । आहारने काजे जातो होय ते वारे तेने जातो देखीने परिहार कल्प स्थितिमा साधुने ते स्थिवर एम कहे, हे आर्य साधु ! तमारो आहार पण मारा आहार साथे एज पात्रमा लावजो ने तमे पण ते आहार पछी भोगवजो ने पाणी पीजो. एम को थके ते स्थिवरने पात्रे आहार लाववो कल्पे पण तिहां परिहारीने अपरिहारी स्थिवरना पात्रने विषे अश्नादिक चार प्रकारनो आहार जमवो के पाणी पी, कल्पे नहिं पण ते परिहारी साधुने पोताना पात्रमां, मात्रीयामां, कमंडळ (लोट) मां, खोवामा के पोताना हाथमां लइने अश्नादिक जमवो ने पाणी पीयूँ कल्पे. ए समाचारी परिहारीने अपरिहारीनी जाणवी ॥३०॥ एम हुं कहुं छु ॥ अर्थ ॥ व० व्यवहार सबनो। वि० बीजो । उ० उद्देसओ । स० पुरो थयो ॥२॥ .. मूळपाठ ॥ ववहारस्स बिइयो डद्देसयो समत्तो ॥२॥ भावार्थ ॥ व्यवहार सूत्रनो बीजो उद्देसो पुरो थयो ॥२॥ % -ACCASSAGAR % १F (एचमां) पाणियंसि. २ H. (एच) पीत्तए. ३ B. b F (वी. वी. एचमां) एस. ४ B (बी) कप्पे. ॥४४॥ % Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स - ववहारस्स तइओ उद्देसओ. व्यवहार सूत्रनो त्रीजो उदेसो. __ अर्थ ॥१॥ भि० साधु । य० बळी । इ० वांछे । ग० टोळा (गच्छ ) नु नायकपणुं । धा० धारवा । भ० हे भगवंत । च. निश्चे । से० ते साधु । अ० आचारंगादिकने निसीथादिक सूत्र संग्रहरहित अने शिष्यादिक परिवार रहित छे तो । ए. एम । नो० न । से० तेने । फ० कल्पे । ग. गच्छना नायकपणाने । धा० धारचो । भ० हे भगवंत । च० निश्चे। से० ते । प० आचारंग निसीधादिक श्रुत संग्रह सहित अने शिप्यादीक परिवार सहित छे तो । ए० एम । से० तेने । क० कल्पे । ग० गच्छ नायकपणु । घा० धारयु ॥१॥ मूळपाट ॥ १ ॥ निक्खू य इच्छेजा गणं धारेत्तए, भगवं च से अपलिच्चए, एवं नो से कप्पइ गणं धारेत्तए. जगवं च से पलिच्छन्ने, एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए ॥१॥ __ भावार्थ ॥ १ ॥ साधु गच्छ नायकपणुं धारवा इच्छे तो हे भगवंत ! ते साधु आचारंग निसींथादिक सूत्र संग्रह रहित छे । तो गच्छ नायकपणु धारी शके ? भगवंत कहे छ एम छे तो तेने गच्छ नायकपणु धारदुं न कल्पे. पण हे भगवंत ? जो ते आ-18 चारंग निसीयादिक सूत्र संग्रह सहितने शिष्यादि परिवार सहित होय तो ते गच्छ नायकपणुं धारी शके ? भगवंत कहे छे हा, एम तेने गच्छ नायकपणुं धारचु कल्पे ॥ १॥ गच्छ नायकपणुं आज्ञा मागीने धार कल्पे माटे स्थिवरनी आज्ञा मागे ते कहे छे. 12 १H ( एच ) °च्छन्ने. FASTESTECREACEAESALMERCES Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार मूळपाठ ॥ ३ ॥ तिवासपरियाए समणे निग्गन्थे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले उद्देसओ. ।४६॥ (G ॥३॥ पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अकखयायारे' अनिन्नायारे असबलायारे असंकिलिहायारचित्ते बहुस्सुए बन्नागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्जायत्ताए जदिसित्तए ॥३॥ भावार्थ ॥३॥त्रण वर्षनी दीक्षा पर्यायवाळा, जे आचारमां, १७ भेदे संजममां, प्रवचनमां, प्रायश्चित देवामां अने सं15 ग्रह ( अनेक प्रकारना वस्त्रादिकनो ) करवामां कुशळ, जेनो आचार खंडीत थयो नथी, जेनो आचार भेदाणो नथी, जेने कोई 1 पण सवळो दोष लाग्यो नथी, जे क्रोधादिके मेलो थयो नथी तथा जे चारित्रवंत, बहुसूत्री, घणा आगमनो जाण छ ने जे 18| जघन्य आचारंग निसीथ आदिक सूत्रार्थनो धारक ने उत्कृष्टो पूर्व भणेळ छे तेवा साधुने उपाध्यायनी पदवी देवी कल्पे ॥३॥ हवे.एवो गुण न होय तेवाने उपाध्यायनी पदवी आपवी कल्पे नहि ॥ अर्थ ॥ ४ ॥ स० ते । चे० वळी । ण. निश्चे । से० ते साधुने । ति त्रण । वा० वरस । ५० दीक्षा लीधा थयाने । स० श्रमण । नि० निग्रंथने । नो० नथी । आ० आचार पाळवामां । कु० कुशळ । नो० नथी । सं० १७ भेदे संजम पाळवामां । कु० कुशळ । नो० नथी । प० प्रवचन (सिद्धांत) मां। कु. कुशळ । नो० नथी । प० गच्छनी सर्व चिंतानी प्रज्ञाने विषे । १H (एच) अकखुया (60 always in 8-8 ) ३-८ मां ते मुजव. २ म (एचमां) चरित्ते (so always in IP॥४६॥ 15.8-8) ३-८ मां ते मुजव. FACRORESEAR नव Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 121 कु.० दायो । नो० नथी । स० गच्छनी सार संभाळादि वस्तुना कार्यने विपे । कु० कुशळ । नो० नथी । उ० पाणेसणादिक उपग्रहने विष । कु० कुशळ । ख० खंडाणो छ । आ० आचार जेहनो । भि० भेदाणो छ । आ० आचार जेहनो । स० सवळा मांहिलो सबळो । आ० दोप लाग्यो के जेने । सं० क्रोधादिके करी मेलो थयो छे । आ० आचार। चि० चारित्र जेहनो । अ० बोटा । गु० मूत्रनो जाण । अ० थोटा । आ० आगमनो जाण तेने । नो० न । क० कल्पे । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी कल्पे नहि ॥४॥ मूळपाठ ॥ ४ ॥ स चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले नो सं जमकुसले नो पवयणकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो नवग्गहकुसले खयायारे चिन्नायारे सवलायारे संकिलिट्ठायारचित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो क प्पइ उवज्जायत्ताए जदिसित्तए ॥४॥ भावार्थ ॥ ४ ॥ जे साधु आचारमा, संजममां, सिद्धांतने विपे, गच्छनी सर्व चिंतानी प्रज्ञाने विपे, गच्छनी सार संभाकादिक वस्तुना कार्यना संग्रहने विपे, तथा पाणेसणादिक उपग्रहने विषे कुशल नथी तथा जेनो आचार खंडीत थयो छे, जेनो की आचार भेदाणो छे, जेने सवळो दोप लाग्यो छे, क्रोधादिके जेनो चारित्र मेलो थयो छे, जे थोडा सूत्र तथा आगमनो जाण | के तेवा श्रमण निग्रन्थ व्रण वरसनो दीक्षित होय तोपण तेवाने उपाध्यायनी पदवी आपची कल्पे नहि ॥४॥ हवे वळी एहवी पदवीना विशेपना सूत्र कहे छे । -16--04-20-05 AASASRAEBASASTE -- Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥ ४५ ॥ अर्थ ॥ २ ॥ भि० साधु । य० वळी । इ० वांछे । ग० गच्छ नायकपणुं । धा० धारकुं । नो० न । से० तेने । क० कल्पे | थे० स्थिवरने | अ० अण । आ० पुछीने । ग० गच्छ नायकपणुं । धा० धारवुं तो केम कल्पे ते कहे छे । क० कल्पे । से० ते साधुने । थे० स्थिवरने । आ० पुछीने । ग० गच्छ नायकपणाने । धा० धारवो । थे० स्थिवर । य० वळी । से० तेने । वि० आज्ञा दीए तो । ए० एम। से० ते साधुने । क० कल्पे । ग० गच्छ नायकपणाने । धा० धारवो। थे० स्थिवर । य० वळी । से० तेने । नो० न । वि० आज्ञा दीए नहि तो । ए० एम। से० तेने । नो० न । क० कल्पे । ग० गच्छ नायकपणाने । धा० धारवो । ज० जे को साधु | थे० स्थिरने । अ० विण । वि० कहये । ग० गच्छ नायकपणुं । धा० धारतो । से० ते । गच्छना नायकपणाना धारणहारने । सं० जेटला दिवस आज्ञा विना गच्छ नायकपणुं घरे तेटला दिवसनो । छे० छेद । वा० अथवा | प० तप विशेष प्रायश्चित आवे । वा० वळी । ( जे० जे । ते० ते । सा० साधर्मिक । उ० आज्ञाए । वि० विचरे । न० नथी । णं० वळी । ते तेने । के० कोइ पण | छे० चारित्रनो छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित । वा. पण नहि ) ॥ २ ॥ मूळपाठ ॥ २ ॥ जिक्खू य इच्छेका गणं धारेतर, नो से कप्पइ थेरे ऋणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पड़ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेतए थेरा य से वियरेखा एवं से कपइ गणं धारेत्तए, थेरा य से नो वियरेता, एवं से नो कप्पर गणं धारेत्तर. जसं येरेहिं विइस गणं धारेका, से सन्तरा छेओ वा परिहारो वां ॥२॥ *१ H adds ( एचमां वधारे ) [ जे ते ] साहम्मिया उठाए विहरंति नत्थिणं तेर्सि केइ छेओ वा परिहारो वा. उद्देसओ. ॥ ३ ॥ ॥॥ ४५ ॥ Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2%8RSS भावार्थ ॥ २॥ जे कोई साधु गच्छ नायकपणुं धारवा वांछे तेने स्थिवरने पूछयाविना गच्छ नायकपणुं धार, कल्पे नहि. ४ स्थिवरने पूछीने गच्छ नायकपण धारवं कल्पे. स्थिवर जो तेने आज्ञा दीए तो तेने गच्छ नायकपणुं धार, कल्पे. जो स्थिवर* | तेने आमा न दीए तो तेने गच्छ नायकपणुं पारयु कल्पे नहिं. जे कोइ स्थिवरने कह्याविना गच्छ नायकपणुं धरे तो तेने जेट ला दिवस आज्ञाविना गच्छ नायकपणुं धारे तेटला दिवसनो छेद अथवा तपनुं पायश्चित आवे. (जो ते साधर्मिकनी आज्ञाए । ४ विचरे तेने चारित्रनो छेदके तपनुं प्रायश्चित नथी)॥२॥ ए गण पदवीनो धरवो कह्यो ते तो आचारवंत होय ते भणी इहां ॐ पदवीना धरणहारनो आचार कहे छे. अर्थ ।। ३ ॥ ति० त्रण । वा० वर्ष । प० जेने दीक्षा लीधा थया छ । स० ते श्रमण | नि० निग्रंथने । आ० (त्रण है वर्षे ) आचार पाया । कु० कुशल डायो छ । सं० १७ भेदे संजमने विषे । कु० कुशळ छ । प० आचारंग निसीय आदिक सत्रायने विप । कु.० कुशल छे । ५० प्रायश्चित देवाना अवसर दिने अनेक प्रकारनी प्रज्ञाने विषे । कु० कुशळ डाह्यो छे । सं० ५ * अनेक प्रकारना गच्छना क्षेत्र सादिक अर्थने विषे तेना संग्रहने विषे । कु० डाहो छे। उ० पाणेसणादिक उपग्रहने विषे। ते कु० कुशल थयो छे । वळी जेहेनो आचार केवो छ । अ० नथी । ख० खंडाणो । अ० नथी । भि० भेदाणो आचार जेहनो। अ० नथी । स० सवळा माहिलो सवको दोप लाग्यो जेहवे । अ० नथी । सं० क्रोधादिके मेलो थयो । आ० आचार जेहनो। चि० चारित्रवंत । व० घणा । रसु० सूत्रनो जाण । २० घणा । आ० आगमनो जाण । ज० जघन्य थोडो । गं० वळी । आ० आचारंग अने । क० निसीध अध्ययन सूत्रार्थनो । ध० धारक । ( उत्कृष्टो पूर्व सुधी भण्यो )। क० कल्पे तेमे । उ० स्पाध्यायनी पदवी । उ० देवी कल्पे ॥३॥ Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार उद्देसओ.. SECREOGRECR-60-ROM मूळपाठ ॥ ३ ॥ तिवासपरियाए समणे निग्गन्थे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अकखयायारे अनिन्नायारे असबलायारे असंकिलिहायारचित्ते' बहुस्सुए बन्नागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पई उवज्जायत्ताए जदिसित्तए ॥३॥ भावार्थ ॥३॥त्रण वर्षनी दीक्षा पर्यायवाळा, जे आचारमां, १७ भेदे संजममां, प्रवचनमां, प्रायश्चित देवामां अने संग्रह ( अनेक प्रकारना वस्त्रादिकनो) करवामां कुशळ, जेनो आचार खंडीत थयो नथी.जेनो आचार भेदाणो नथी, जेने कोई पण सबळो दोष लाग्यो नथी, जे क्रोधादिके मेलो थयो नथी तथा जे चारित्रवंत. बहमूत्री, घणा आगमनो जाण छ ने जे जघन्य आचारंग निसीथ आदिक सत्रार्थनो धारक ने उत्कृष्टो पूर्व भणेल छे तेवा साधने उपाध्यायनी पदवी देवी कल्पे ॥३॥ ४. हवे.एवो गुण न होय तेवाने उपाध्यायनी पदवी आपवी कल्पे नहि ॥ अर्थ ॥ ४॥ स० ते । चेवळी । ण. निश्चे । से० ते साधुने । ति० त्रण । वा० बरस । ५० दीक्षा लीधा थयाने । स० श्रमण । नि० निग्रंथने । नो० नथी । आ० आचार पाळवामां । कु० कुशल । नो० नथी । सं०१७ भेदे संजम पाळवामां। कु० कुशळ । नो० नथी । ५० प्रवचन (सिद्धांत) मां। कु. कुशल । नो० नथी । प० गच्छनी सर्व चितानी प्रज्ञाने विषे । १H (एच) अकखुया(so always in 3-8) ३-८ मां ते मुजब. २ म (एचमां) चरित (Bo always in है.8-8) ३-८ मां ते मुजव. BECAMEREसरला ॥४६॥ Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कु०टायो | नो० नथी । स० गच्छनी सार संभाळादि वस्तुना कार्यने विषे | कु० कुशळ । नो० नथी । उ० पाणेसणादिक उपग्रहने विषे | कु० कुशळ । ख० खंडाणो छे । आ० आचार जेहनो । भि० भेदाणो छे । आ० आचार जेहनो । स० सवळा मांहिलो सो | आ० दोप लाग्यो हे जेने । सं० क्रोधादिके करी मेलो थयो छे । आ० आचार | चि० चारित्र जेहनो । अ० चोटा | गु० सूत्रानो जाण । अ० थोडा । आ० आगमनो जाण तेने । नो० न । क० कल्पे । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी कल्पे नहि || ४ || मूलपाठ ॥ ४ ॥ स चैत्र णं से तिवासपरियाए समये निग्गन्थे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवयकुसले नो पन्नतिकुसले नो संगहकुसले नो जवग्गहकुसले खयायारे भिन्नायारे सवलायारे संकिलिट्ठायारचित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो क पइ उवज्जायन्ताए उद्दिसित्तए ॥ ४ ॥ भावार्थ ॥ ४ ॥ जे साधु आचारमां, संजममां, सिद्धांतने विषे, गच्छनी सर्व चितानी प्रज्ञाने विषे, गच्छनी सार संभाजादिक वस्तुना कार्यना संग्रहने विषे, तथा पाणेसणादिक उपग्रहने विषे कुशळ नथी तथा जेनो आचार खंडीत थयो छे, जेनो आचार भेदाणी छे, जेने सबको दोप लाग्यो छे, क्रोधादिके जेनो चारित्र मेलो थयो छे, जे थोडा सूत्र तथा आगमनो जाण छे तेवा श्रमण निग्रन्थ व्रण वरसनो दीक्षित होय तोपण तैवाने उपाध्यायनी पदवी आपवी कल्पे नहिं ॥ ४ ॥ हवे वळी एहवी पदवीना विशेषना सूत्र कहे छे ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार 18/उद्देसओ. on SIROHOREOGRERECRICK अर्थ ॥ ५॥ पं० पांच । वा० वर्ष । प० प्रवर्जा लीधा थया छे तेवो । स० श्रमण । नि० साधु ते । आ० आचारने विषे । कु० कुशळ । सं० संजम पाळवामां । कु० कुशळ । प० प्रवचनमां । कु० कुशळ । प० गच्छनी सर्व चिंतानी प्रज्ञाने विषे। कु० कुशळ । सं० गच्छनी सार संभाळादि वस्तु ना कार्यने विषे । कु० कुशळ । उ० पाणेसणादीक उपग्रहने विषे । कु० कुशळ। अ० नथी । कख० खंडाणो । आ० आचार जेहनो। अ० नथी । भि० भेदाणो । आ० आचार जेहनो। अ० नथी। स० | सवळो दोष लाग्यो जेहने । अ० क्रोधादिके करी नथी । सं० मेलो थयो । आ० आचार । चि० चारित्र जेहनो । ब० बहु । सु० सूत्री । ब० घणा। आ० आगमनो जाण । ज० जघन्य । द० दसा श्रुत स्कंध । क० बृहत् कल्प । व० व्यवहार सूत्रनो। ध० धरणहार छे तेने । क० कल्पे आ० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी कल्पे ॥५॥ मूळपाठ ॥ ५॥ पञ्चवासपरियाए समणे निग्गन्थे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले “पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अकखयायारे अजिन्नायारे असबला. यारे असंकिलिट्ठायारचित्ते बहुस्सुए बन्नागमे जहन्नेणं दसकप्पववहारधरे क प्पइ आयरिय उज्जायत्ताए उद्दिसित्तए ॥५॥ भावार्थ ॥ ५॥ पांच वर्षनी प्रवर्ध्या (दीक्षा) लीधेल श्रमण तपस्वी साधु जे आचारने विषे कुशळ छे, जे संजम पाळवामां, प्रवचनमां, गच्छनी सर्व चितानी प्रज्ञाने विषे, गच्छनी सारसंभाळादिवस्तुना कार्यने विषेपासणादिक उपग्रहने विषे कुशळ छे, जेनो आचार खंडाणो; भेदाणो नथी, जेने सबळो दोष लाग्यो नथी, क्रोधादिके जेनो चारित्र आचार मलीन नथी, वळी 11४७॥ Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे बहु सूत्री तथा घणा आगमनो जाप छे ने जधन्यदशाश्रुत, वेदकल्प ने व्यवहार सूत्रनो घरणहार छे तेने आचार्य उपाध्यायपणुं आपनुं कल्पे ॥ ५ ॥ अर्थ ॥ ६ ॥ स० तेने सघळा मळी । चे० वळी । णं० निथे । से० ते साधुने । पं० पांच । वा० वरस । प० दीक्षा लघाने थया है ते । स० श्रमण | नि० निग्रंथने । नो० नथी । आ० आचारने विषे | कु० कुशळ । नो० नथी । सं० संजमपां | कु० कुशळ | नो० नथी । प० प्रवचनमां | कु० कुशळ । नो० नथी । प० गच्छनी चिंतानी प्रज्ञाने विषे । कु० कुशळ । नो० नथी । सं० गच्छनी सारसंभाळादि वस्तुना कार्यने विषे । कु० कुशळ । नो० नथी । उ० पाणेसणादि उपग्रहने विषे | कु० कुशळ | ख० खंडाणी छे । आ० आचार जेहनो । भि० भेदाणो के । आ० आचार जेहनो । स० सचळा दोपवाळो । आ० आचार छे जेनो । सं० क्रोधादिके मेलो थयो छे । आ० आचार | चि० चारित्र जेहनो । अ० थोडा । सु० सूत्रनो जाण । अ० थोडा | आ० आगमनी जाण । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायपणो । उ० देवो ( कल्पे नहि ) ॥६॥ I मूलपाठ ॥ ६ ॥ सच्चैव पं से पञ्चवास परियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवय़णकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे निन्नायारे सवलायारे संकिलिट्ठायारचित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो कप्प प्रायरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ६ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह र० ॥ ४८ ॥ भावार्थ ॥ ६ ॥ वधा मळी पांच वर्षना दिक्षित श्रमण साधुने जेनो आचार वगेरे कुशळ नथी, जे संजम पाळवामां, प्रवचनमां, गच्छनी सर्व चिंतानी प्रज्ञाने विषे, गच्छनी सार संभालादि वस्तुना कार्येने विषे, पाणेसणादिक उपग्रहने विषे कुशल नथी, जेनो आचार खंडाणो भेदाणो छे, जैने सबको दोष लाग्यो छे, क्रोधादिके जेनो चारित्र आचार मलीन छे क्ळी जे अल्पसूत्री, अल्प (थोडा ) आगमनो जाण तेने आचार्य उपाध्यायपणुं आप कल्पे नहि ॥ ६ ॥ हवे वळी एज बाबत विशेष कहे छे ॥ अर्थ ॥ ७ ॥ अ० आठ । घा० वरस | प० प्रवर्ज्या लीघाने थया छे तेत्रो । स० भ्रमण | नि० निग्रंथ । आ० आचारने विषे | कु० कुशळ डाह्यो छे । सं० संजममां । कु० कुशळ छे । प० प्रवचनमां | कु० कुशळ छे । प० गच्छनी सर्व चितानी प्रज्ञाने विषे | कु० कुशळ हे | सं० गच्छनी सार संभाळादि वस्तुना कार्यने विषे । कु० कुशळ छे । उ० पाणेसणादीक उपग्रहने विषे | कु० कुशळ छे । अ नथी । क्ख० खंडाणो । आ० आचार जेहनो । अ० नथी । भि० भेक्षणो । आ० आचार जेहो । अ० नथी । स० सर्वळो दोष लाग्यो जेहने । अ० नथी । सं० क्रोधादिके मेलो । आ० आचार | चि० चारित्र जेनो । व० बहु । स्सु० सुत्री । व० घणा । आ० आगमनो जाण । ज० जघन्य । ठा० ठाणांग । स० समवायांगनो । ६० जाण । क० कल्पे । ते साधुने । आ० आचार्यनी । प० पदवी । ( उ० उपाध्यायनी पदवी । प० प्रवर्तकनी । थे० स्थिवरनी | ग० गणीनी ) । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदनी ए सघळी पदवी । उ० देवी कल्पे ॥ ७ ॥ मूळपाठ ॥ ७ ॥ अट्ठवासपरियाए समये निग्गन्थे यायारकुसले संजमकुसले पवयपकुसले पन्नतिकुसले संगहकुसले जवग्गढ़कुसले अक्खयायारे अभिन्नायारे अस उद्देसओ ॥३४ ॥ ४८ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - वलायारे असंकिलिट्ठायारचित्ते वहुस्सुए वन्नागमे जहन्नेणं गणसमवायपरे कप्पइ आयरियत्ताए (जाव) गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए ॥७॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ आठ वर्पनी प्रवा लीधा थएल जे श्रमण तपस्वी निग्रंथ ( साधु ) आचारने विषे कुशळ छे, संजममां, मवचनमां, गच्छनी सर्व चिंतानी प्रज्ञामां, गच्छनी सार संभागदि वस्तुना कार्यने विषे, पाणेसणादिक उपग्रहने विषे कुशल स, जेनो आचार खंडाणो भेदाणो नधी, जेहने सवळो दोप लाग्यो नथी, क्रोधादिके करी जेनो चारित्र मेलो थयो नथी, वळी जे बहुसुत्री ने घणा आगमनो जाण छे ने जघन्यठाणांग समवायंगनो जाण छे तेवा साधुने आचार्य पदवी १ (उपाध्यायनी 2 पदवी ५ जे उपाध्याय ज्ञान, दर्शन, चारित्रने विषे प्रवतावे, प्रतिलेखणा अणकरताने प्रमाद टळावी शिखामण दीए, अतिचार लागे तेने आलोयण लेबरावे ने यथाशक्ति तप करवान कहे, पवादिकनी पदवी ३ ते आचार्यना उपदेश मुजव वैयावचने विषेसाधुने प्रवर्ताये, स्थिवरनी पदवी ४ जे संजमने विषे स्थिर करे, गणिनी पदवी ५जे सुत्रार्थ भणावे)ज्यांलगे गणावच्छेदनी पदवी ६जे आपेशनानो धी, साधुना टोळानी सार संभाळ राखे, साधुनो समुदाय ग्रहीने गच्छना आधार माटे नवा क्षेत्र उपधि उपगरणनी गोखणाने अर्धे देशमा उध्यम फरया भणी विचरे ने उपगरण गच्छ सारु एकठा करीने आणी आपे एम छए पदवी | देवी कल्प ॥ ७॥ अर्थ ॥ ८ ॥ स० ते सघळा । च्चे० वळी । निश्चे । णं० वळी । से० ते साधुने । अ० आठ । वा० वरस । प० प्रवर्ध्या लीधा पद छे तेवा । स० श्रयण । नि० निग्रंथ साधुने । नो० नथी । आ० आचारने विषे । कु० कुशळ । नो० नथी । सं० -- Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. 1१ ॥३॥ वडार संजममां । कु० कुशळ | नो० नथी। प० प्रवचनमा । कु. कुशळ | नो० नथी। प० गच्छनी चिंतानी प्रज्ञाने विषे । कु० ॥४९॥ कुशळ । नो० नथी । सं० गच्छनी सार संभाळादि वस्तुना कार्यने विषे । कु० कुशल । नो० नथी । उ० पाणेसणादि उपग्र हने विषे । कु० कुशळ । ख० खंडाणो छ। आ० आचार जेहनो । भि० भेदाणो छ। आ० आचार जेदनो । स० सबळा दोषवाळो। आ० आचार छे जेनो। सं० क्रोधादिके करीने मेलो थयो छे। आ० आचार । चि. चारित्र जेहनो। अ० अल्प । सु० सुत्री। अ० अल्प । आ० आगमनो जाण । नो० न । क. कल्पे । आ० आचार्यनी पदवी । जा. ज्यां लगे। ग. गणावच्छेदकनी पदवी । उ० देवीन कल्पे ॥८॥ 8 मूळपाठ ॥८॥ सच्चेव णं से अट्ठवासपरियाए समणे निग्गन्थे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पक्ष्यणकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे जिन्नायारे सबलायारे संकिलिट्ठायारचित्ते अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियत्ताए (जाव) गणावच्छेइयत्ताए उदिसित्तए ॥ ८॥ भावार्थ ॥ ८॥ प्रवा लीधाने आठ वर्ष एल श्रमण निग्रंथ (साधु ) जे आचारपां कुशळ नथी ज्यां लगे क्रीधादिके जेनो चारित्र मेलो थयो छे, जे थोडा सूत्र तथा थोडा आगमनो नाण छे तेने आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी आपवी कल्पे नहिं ॥ ८॥ए पदवी कही ते पदवीनो धणी गुणवंत होय तेने कोइक कारणे तेज दिवसे उपली पदवी देवी ते कहे छे ।। । ४९।। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ॥ ९ ॥ नि० विनाश पामेल । प० पर्यायनो धणी एटले पूर्वे घणा वर्प दिक्षा पाळीने ते दिक्षामां कर्म योगे पाछो । सपी वैराग्य योगे फरी दीक्षा लीए ते निरुद्ध पर्याय कहीए लेने । स० श्रमण । नि० निग्रंथने । क० कल्पे । त० तेज । दि.* दिवसे । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी कल्पे । से० ते । कि० केम एम | आ० कछु । मं० हे भगवंत । Pते फारण कई छ । अ० छ । णं० वळी । थे० ते स्थिवर साधुना पूर्वना । त• तथा । रु० रुप । कु० कुळ । ते कुळ केवा छे। ५ या करणहार है। प० प्रतितना एटले ते कूळ प्रतित कार्य छे ( स्नेह उपजावणहार छे) । थे० दान तथा प्रतितने विषे धीर्य , है। ये० साधुनो जेने विश्वास छे.। सं० समयनो जाण गुणवंत छे । स० प्रमोदना । क० करणहार छे । एटले जेने घेर साध , आवे खुशी थाय हर्प प्रमोद उपजे । अ० नाना मोटा घरना सर्वेने दान देवानी अनुज्ञा दीधी छे अथवा नानो मोटो साधुने * सर्वने सरखो दान दीए छे । व० बहु । म० मतना जाण छे एटले घणा साधुना मत छे ते सपळाने पूछे अथवा जे कोइ म-, तना साधु सघळा आवे तेने दान लेवानी आज्ञा | भ० छे । ते० ते । कुळ । क. केवां छे । ते. ते कुळ । ५० प्रतित या.छे । ते० ते कूळ । थे० धीर्यवंत छे । ते. ते कुळ । वे० विश्वास करवा योग्य छ । ते० ते कुळ । सं० साधुने जावा . योग्य टेने । ते ते कुळ । स० प्रमोदना । क० करणहार छे । ते कुळवळी केवा छे । (ते. तेने । अ० सघळाने सर्वथा । बानी आज्ञा सरखी दीवी छे वळी ते कूळ केवा छे। ते० तेने । व० घणा प्रकारनी। म० आज्ञा दीधी छे । एटले घणा प्रकारनी घणाने सरखी आज्ञा दीधी छे एटले जे साधुने हीतकारी उपधी उपगरण आपे छे)। जं. जे । से. ते एहवा कूळनो धणी । नि० निरुद्ध । प० पर्यायनो धणी जेणे पूर्वे दीक्षा लीधी ते । स० श्रमण । नि० निग्रंथने । क. है HI फल्पे । मा० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी । त० तेज । दि० दीवसे ॥९॥ EXRBARHARAF%EX Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SA 5455- मूळपाठ ॥ ए ॥ निरुद्धपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ तदिवसं शायरियउवज्जायत्ताए उद्देसओ. पवहार ॥३ ॥ ॥ ५० उदिसित्तए. से किमाहु जन्ते ? अस्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कमाणि पत्तियाणि थेआणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अणुमयाणि बहुमयाणि भवन्ति, तेहिं कमेहिं तेहिं पत्तिएहि तेहिं थेडोहि तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरहिं जं से निरुद्धपरियाए समणे निग्गन्थे, कप्पइ आयरियजवज्जायत्तए उदिसित्तए तदिवसं ॥ ए॥ भावार्थ ॥९॥ एकवार दीक्षा लइ पर्याय (दीक्षा) नो विनाश करी फरी दीक्षा लीए तेने निरुद्ध एटले विनाशित TA पर्यायनो साधु कहीए, ते श्रमण नियांथने तेज दिवसे कारणे आचार्य उपाध्यायनी पदवी देवी कल्पे । तेने शा माटे तेज दिवसे ल पदवी देवी कही एवं शिष्य पूछे छे तेनो उत्तर भगवंत कहे छे. ते स्थिवर साधुने पूर्वना तथारुप कुळ छे ते कुळ केवा छे ते कहे " छे, ते कुळ प्रतितकारीया (विश्वास बेसे तेवा) छे, दान आपवामां धीर छे, विश्वासु छे, गुणवंत छे, साधु वारंवार वहोरखा पधारे तेमां खुशी थाय तेवाने वहोरावता दोष न लगाडे तेवां छेने जेमां साधुने वहोराववानी घरना नाना मोटा वधाने १ ( एचमां) तदि.२ Halways ( एचमां हमेशां) आई.३। (एचमां) .४ F adds (एचमां वधारे) तेहिं अणुमएहिं तेहिं बहुमएहि. %A9- 0575 4-ॐॐॐ ) Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - te -- - -- --- अनुज्ञा दीधी छे, जेमां नाना मोटा वधा साधुने सरखी रीते समपणे दान दीए छे, जेमां वधा जणने जे साधु आवे तेमने सछळा घणु दान दीए एवी आज्ञा के. वळी ते कूळ केयां छे तोके ते कूळ प्रतितकारीया छे, धीर्यवंत छे, विश्वास करवा योग्य छे, ते साधुने जावा योग्य छे तथा साधुने प्रमोदना करणहार छे, जेमा सघळाने जोइए तेटलं दान देवानी आज्ञा सरखी रीते ते कुळमां आज्ञा दीधी छे ते मुजय गच्छने योग्य उपधि, उपगरण वोहोरावे छे, उपर मुजवना जे कोइ साधु जेणे प्रथम दीक्षा लीधेल ने पछी तेनो विनाश करेल ते निरुद्ध पर्यायना धणी श्रमण निथ जेणे फरी दिक्षा ग्रहण फरी ले तेने तेज दिवसे उपला कारणने लीधे आचार्य, उपाध्यायनी पदवी देवी कल्पे जेथी ते गच्छ सीदाय नही ने साधुना कुलभष्ट थाय नही ॥९॥ उपला सूत्रमा घणा भणेल पण दीक्षाए भांगेल ने तेज दिवसे पदवी आपवी कही. हवे दीक्षाए भां| गेल चिनानो पण ओर्छ भणेणाने पदवी देवा आश्री कहे छ । | अर्थ ॥ १० ॥ नि० प्रथम दिक्षानो विनाश करी । वा० त्रण उणा के पुरा वरस । १० फरी जेने दीक्षा लीधाने थया ते । स० श्रमण । नि० नियांथने । क० कल्पे । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय पदवी कारणे । उ० आपवी । जो तेना आचार्य काळ करी गया होय ने तेजो । स० बहु सूत्रीना लक्षणे संपूर्ण होय तो । क० कल्पे । त० तेने । णं० वळी । आ० आचारंग सूत्र तथा । क. निमीय सूत्र । दे० देशधकी । अ० भण्यो । (भ० छे)। से० ते । य० वळी । अ० हुँ भणीश एम चितवे । ति० एम । अ० भणे ते पारे । ए० एम। से० तेने । क० कल्पे । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । उ० देवी । से० ते । य० वळी । अ० हुं भणीश । ति० एम कहीने पदवी लइ पछी । नो० न । अ० भणे (भणे नहितो)। ए० एम। से० ते साधुने । नो० न । क. कल्पे । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय पदवी । उ० देवी कल्पे नहिं ॥ १० ॥ . RESRAE SECRE - --- PRA SH --- . १ . Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5- उद्देसभो. ॥३॥ IMGESC- A मूळपाठ ॥ १० ॥ निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गन्थे कप्पइ आयरियनवज्जायत्ताए उसहार० ॥५१॥४ दिसित्तए समुछेयकप्पंसि. तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अवट्ठिए , से य अहि. किस्सामि ति अहिजोका, एवं से कप्पइ आयरियउवज्जायत्ताए उदिसित्तए. से य अहिजिस्सामि त्ति नो अहिजोजा, एवं से नो कप्पइ आयरियउव. कायत्ताए उदिसित्तए ॥१०॥ भावार्थ॥१०॥ हवे प्रथम दिक्षा भांगनारने फरी दिक्षा लीधाने थोडा वरस थया छे तेवा श्रमण निग्रंथ साधने आचार्य काळगत थए आचार्य, उपाध्याय पदवी देवीं कल्पे । जोके ते साधु बहुसुत्री नथी पण भणवा समर्थ छे तथा समचयपणे ते आचारंग तथा निसीथना केटलाक अध्ययनो ते भण्यो छे ने बाकीना भणीश एम चितवे छे. ते जो भणे तो तेने आचार्य ४ उपाध्यायनी पदवी आपवी कल्पे ने हुँ भणीश एम कही पदवी लइने पछी भणे नहीं तो ते साधुने आचार्य उपाध्यायनी ल पदवी देवी कल्पे नहिं ॥ १०॥ उपर पदवी केम देवी ते कडं. हवे साधु युवान छे ने युवान साधुने आचार्य, उपाध्याय विना न रहेवू ते कहे छे॥ अर्थ ॥ १२॥ नि. निग्रंथ साधु ते केवा छे । णं० वळी । न० नाहनो । १० दीक्षाए करी त्रण वरसे करी बाळक । तक यौवनपणे करी सहित छे । ग. गणमां । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । वी. काळ करी गया छे तो। नोना १ Hadds ( एचमां वधारे) भवइ. HTOCHॐॐॐड A % % % Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 से ते नवा दीक्षित साधुने । 2.0 कल्पे । अ० विना । आ० आचार्य विना । उ० उपाध्याय विना । हो० रहेQ कल्पे नहिं । " क. कल्पे । से० ते नवा तरुणने । पु० पहेला । आ० आचार्य । उ० स्थापीने । त० तेवार । प० पछी। उ० उपाध्यायने ई स्थापीने आचार्य उपाध्याय सहित रहेg कल्पे । से० ते । कि० केम । आ. कहुं । भं० हे भगवंत ? भगवंत कहे छे ते साधु । दीक्षाए नयो छे, बाळक तरुण जोवनपणे करी सहित छे । तेनो आचार्य काळ करे तो ते तरुण साधुने आचार्य विना रहे कल्पे नहि माटे । ढ० वेना | सं० संगे सहित होय । स० श्रमण । नि० निग्रोथ । ते बेहु ते कह्या । तं० ते । ज० कहे । आ. आचार्ये करी । उ० उपाध्याये करी । य० वळी संग्रहीत ( सहित) होय ॥ ११ ॥ मृळपाठ ॥ ११ ॥ निग्गन्थस्स णं नवसहरतरुणस्स' आयरियउवज्काए वीसम्नेजा, नो से कप्पइ अणायरिय उवज्जायस्स होत्तए. कप्पइ से पुवं आयरियं उदिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्जायं. से किमाहु जन्ते ? सुसंगहिए समणे निग्गन्थे, तंजहा । आयरिएणं जवज्झाएण य ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ ११ ॥ वळी ते निग्रंथ साधु जे दीक्षाए नाना छे, यौवनपणे सहित छे तेवा साधुने तेमना आचार्य उपाध्याय पाळ करी गया होय तो ते नवा दीक्षित साधुने आचार्य उपाध्याय विना रहेवू कलो नहि. प्रथम आचार्यने पछी उपाध्यायने । स्थापीने ते नया तरुण साधुए रहेवू कल्पे ते शुं कारणे हे भगवंत ? एम शिष्ये पूछ्यु ते वारे भगवंत कहे छे के ते साधु दी १ । ( पचमां) तरुणगस्स. २ 3 (वी) वीम्म ३ P (पी) होतए. ८२... Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उखयो.. चवहार क्षाए नवा छे बाळ तरुण यौवनपणे करी सहित छे माटे तेना आचार्ये काळ को होय तो ते तरुण साधुने आचार्य विना ॥५२॥ रहे कल्पे नहिं माटे ते साधु श्रमण निग्रंथने ते आचार्य उपाध्याय ते बहुना संगे करीने रहेवू कल्पे ॥ १२॥ उपर मुजब साधु आश्री अधिकार कह्यो. हवे साध्वी पण नवी तरुण होय ते भणी नवी बाळकी साध्वीनो अधिकार कहे छे ॥ अर्थ ॥ १२ ॥ नि० साध्वी । णं० वळी । न० नवी बाळक । ड० दीक्षाए करीने हीन ( थीडा ) वर्षनी एटले बाळक । त० तरुणी तेना | आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । (प० पवर्तिणी (गुरणी)।वी० काळ करे तो । नो० न । से. ते । तरुणी नवी साध्वीने । क. कल्पे । अ० विना । आ० आचार्ये । ( अ० विना)। उ० उपाध्याये एटले आचार्य उपाध्यायविना (अ० विना । ५० गुरणीजी । य० वळी)। हो० रहेQ कल्पे नहि । फ० कल्पे । से० तेने । पु० प्रथम । आ० आचा यने । उ० स्थापीने । त० तेवार । (प० पछी)। उ० उपाध्यायने स्थापीने । त० तेवार । प० पछी । प० पर्तिणी एटले गुरवणीने ( वडेरीने ) स्थापे । से० ते । किं० शा माटे । आ० कर्तुं । भ० हे भगवंत । भगवंत कहे छ । ति० ए त्रणे करीने । सं० संग्रहित होय । स० श्रमणी साध्वी । नि० निथी आर्या । तं० ते । ज० कहे छे । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायने । प० पवर्तिणी । य० वळी ॥ १२ ॥ मूळपाठ ॥ १५ ॥ निग्गन्थीएं णं नवमहरतरुणीए आयरियनवज्काएं वीसम्भेजा, नो से ___ कप्पइ, अणायरियउवज्काइयाएँ होत्तएँ. कप्पइ से पुवं आयरियं उदिसावेत्ता १ Padds (पीमां) य. २ H adds (एचमां) पवित्तिणी य. ३ म. adds (एचमां) अपवित्तिणीए य. ४ P (पी) होतिए. RECORREARSA Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KIR तओ' उवज्जायं तओ पछा पवत्तिणिं. से किमाहु लन्ते ? तिसंगहिया सम णी निग्गन्थी, तंजहा । आयरिएणं उवज्काएणं पवत्तिणीएं य ॥ १२ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ साध्वी नवी वाळक दीक्षाए करीने थोडा वर्षे करी वालीका तरुणी तेनो आचार्य उपाध्यायने पवर्त्तगणी काल कर तो ते नवी तरुणी साध्वीने आचार्य उपाध्यायने गुरणीजी (गोराणी ) विना रहेQ कल्पे नहि. प्रथम आचायने स्थापे ते पछी उपाध्यायने ने ते पछी गुरुणीजीने स्थापवी कल्पे. हे भगवंत ते एम केम कडं एहवु शिष्ये पूछे थके भगवंत | ग्रंथी (साध्वी ) आचार्य, उपाध्यायने पवत्तणी (गुरणीजी) एत्रणे करीने सहित होय ॥ १२ ॥ उपला सूत्रे ते तरुणीने आचार्यादिकविना रहेg नहिं कडं तेतो मोहने वशे करी पाछी पडे ते भणी हवे वळी पाछी दीक्षा लीधा | पछी पदवी देवी ते आधी कहे छे ।। अर्थ ॥ १३ ॥ भि० जे कोइ साधु । य० वळी । ग० गच्छ थकी । अ० नीकळीने । मे० मेहुण । प० सेवे सेवीने फरी | दीक्षा लीधा पछी । नि० ण । सं० वर्ष लगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी । नो० न । क० कल्पे देवी ते कहे छे । आ० आचार्यनी । चा० बळी | जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी । वा० वळी । ए पदवी । उ० देवी। वा० अथवा । धा० धारखी । वा० बळी न कल्पे पण हवे कल्पे ते कहे छे । ति व्रण । सं० वर्ष । वी० अतिक्रम्ये थके । च० चोथो । सं० वर्ष । प० प्रवयों। ठि० मन धर्मने विपेम्धिर थयं छे। उ० उपसम्यो छे विपयथी आत्मा । उ० निवयों छे विपय कपायना फलुप ? II udds ( एचमां वधारे ) पच्छा. २ P (पी) पवि. -C-E Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावथी। प० विशेषे विषयादिकथी निवर्यो । ए० एम । से० ते साधुने । क० कल्पे। आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा का बबहार/ जा० ज्यां लगे । ग० गणनी अधिपतिनी पदवी. ए छ पदवीने विषे । वा० वळी । उ० स्थापवो । वा० अथवा । धा० धारवो || उद्देसमो. ॥५३॥ कल्पे । वा० वळी ॥ १३ ॥ ॥३॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ निक्खू य गणाओ अवकम्म भेहुणं पडिसेवेजा, तिमि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावच्छेइयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा. तिहिं संवच्छरेहिं वीइकन्तहिं चउत्थगसि संवच्छरांस पट्ठियंसि ठियस्स उवसन्तस्स उवरयस्स पमिविरयस्स एवं से कप्पइ आयरि यत्तं वा (जाव) गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १३ ॥ भावार्थ ॥ १३ ॥ जे साधु गच्छथी नीकळीने मैथुन सेवे सेवीने वळी फरी दीक्षा लीए तेने दीक्षा लीधा पछी त्रण वरस लगे उपरना कारणे ते साधुने पदवी न देवी ते कहे छे. न कल्पे तेने आचार्यनी पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी एमछ पदवी आपवीं के धारवी कल्पे नहीं. हवे केम कल्पे ते कहे छे. वण वर्ष वीत्या थकां चोथं वर्ष बेठे थके ते साधुनुं मन स्थिर थयुं छे, जेनो आत्मा विषयथी उपशम्यो छे, जे विपय कपायना कलुष भावथी निव? छे, जे विशेपे विषयादिकथी १ F (एचमां) मेहुणधर्म. २ Hadds (एचमां वधारे) उवट्टियंसि. ३ Hadds (एचमां वधारे) निम्विकारस्स. ५३॥ MOSTS:%ESAMAY Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ B A ० धमेन निवत्यों ने विपय विकार रहीत थयो छे एम ते साधुने आचार्यनी पदवी, (उपाध्यायनी, प्रवर्तकनी, स्थिवरनी, गणीनी) * ज्यां लगे गणावच्छेदक एटले गणना अधिपति जे गणनी सार संभाळ राखे, वस्त्रादिक आणी आपे तेनी पदवी ए छ पदवीने विष स्थापयो धारवो कल्पे ॥ १३ ॥ ए सामान्य साधु आश्री कर्वा हवे गणावच्छेद आश्री कहे छे॥ अर्थ ॥ १४ ॥ग० गणावच्छेदकने । ग० गणावच्छेदकनी पदवी। अ० विण । नि० मुकये । मे० मैथुन । प० सेवे तो । जा० जावजीव लगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी । नो० न । क० कल्पे। आ० आचार्यनी! वा० अथवा । जा० व्यांलगे । ग० गणावच्छेदकनी । वा० वळी । ए छ पदवी । उ० आपवी। वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥१४॥ मूळपाठ ॥ १४ ॥ गणावच्छेइए गणावच्छेश्यत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पमिसेवेजा, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेतए वा ॥ १४ ॥ भावार्थ ॥ १४ ॥ गणावच्छेदक पोतानी गणावच्छेदकनी पदवी मुक्या विना मैथुन धर्म सेवे तो जावजीवलगे तेने आचार्य 18/ पदवी ज्यांलगे गणना अधिपतिनी पदवी ए छ पदवी देवी के धारवी कसे नहिं ॥ १४ ॥ अर्ध ॥ १५ ॥ ग० गणावच्छेदक । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । नि० मुकीने छांडीने । मे० मैथुन । ध० धर्म । प० सेवे है + सेवीने फरी दीक्षा लीए तेवारे । ति० त्रण । सं० वरसलगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न। क० पल्पे। आ० आचार्यपणे । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे। ग० गणावच्छेदकपणे | वा० बळी । उ० स्थापवो । वा० अथवा । LOGERCECTEpiCrote URRECAREER 1-%A5%25BERec Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घवह र० 1148 11 1 धा० धारो | वा० बळी | कल्पे नहिं । ति० त्रण | सं० वर्ष । वी० अतिक्रमे थके । च० चोथुं । सं० वर्ष । प० प्रवयुं होय । ठि० मन स्थिर थयुं छे । उ० उपसम्यो छे विषयथी आत्मा । उ० निवत्य विषय कषाय कलुष भावथी । प० विशेषे विषयादिकथी निवत्यों । ए० एम। से० ते साधुने । क० करपे । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यां लगे । ग० गच्छना अधिपतिनी पदवी । वा० वळी । उ० आपवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी कल्पे ॥ १५ ॥ मूळ पाठ ॥ १५ ॥ गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं परिसेवेजा, तिमि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा ( जाव ) गणाव - वेश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेतए वा. तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कन्तेहिं चउत्थगंसि संवरंसि पट्ठियंसि), ठियस्स उवसन्तस्स उवरयस्त्र परिविरयस्स एवं से कप यरियन्तं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ १५ ॥ भावार्थ ॥ १५ ॥ गणावच्छेदक गणावच्छेदकनी पदवी मुकीने मैथुन धर्मने सेवे सेवीने फरी दीक्षा लीए नेवारे त्रण वरस लगे तेने आचार्य, उपाध्याय ज्यांलगे गणावच्छेदकनी पदवी आपवी के धारवी कल्पे नहि. त्रण वर्ष वित्या पछी ने चोथुं वर्ष वे छे जेवारे मैथुन थकी तेनुं मन स्थिर थयुं छे, तेनो आत्मा विषयथी उपशम्यो छे, विषयकषायना कलुष भावथी ते निव १ Hadds (एचमां बधारे) उवट्टियंसि २ Hadds ( एचमां वधारे) निव्विकारस्स. उद्देसओ ॥३७ ॥ ५४ ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यों में, विशेपे विषयादिकथी निवत्यों छे, विपयविकार रहित थयो छे एम यया पछी तेने आचार्य ज्यां लगे गणावच्छेदकनी । पदवी आपवी अथवा धारवी कल्पे ॥ १५ ॥ हवे आचार्यना वे मुत्र कहे छ । ___अर्ध ॥ १६ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायपणु। अविना । नि० मुक्या विना। मे० मैथुन। ५० धर्म । प० सवै । तो तेने | जा० जावर्जीव लगी । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० नहिं । क० कल्पे । आ० आचार्यनी । वा० अथवा । जा. ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी । ए छ पदवी । वा० वळी । उ० स्थापवी । वा० अथवा । धा० धारवी कल्पे नहिं । वा० वळी ॥ १६ ॥ मूळपाट ॥ १६ ॥ आयरियनवज्काए आयरियनवज्कायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पमिसेवेजा, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावबइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥१६॥ आचार्य उपाध्याय, आचार्य उपाध्यायनी पदवी मुकयाविना मैथुन सेवे तो तेने जावजीव लगे आचार्यनी पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी आपत्री अथवा धारवी कल्पे नहि ॥ १६ ॥ अर्थ ।। १७ । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । नि० मुकीने । मे० मैथुन । ५० धर्म । ५० सेये ने पछी दीक्षा लीए तेने । ति० त्रण । सं० वरस लगे । त० तेने । त० ते । १० पदवी देवी । नो० न । क० कल्पे ते क.हे छे। आ० आचार्यनी पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । १० Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 उद्देसओ. वबहान ॥५५ -04-2-OCT-CEOC उ० देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० ३ली कल्पे नहि । ति० वग। सं० वर्ष । वी० अतिकम्ये । च. चोथो । सं० वर्ष । प० प्रबयो । ठि० पन स्थिर श्युं छे । उ० आत्मा विषय थकी उपसरयो छे । उ० विषय कषाय कलुप भाव निवर्यो *छे। प०विशेष विषयादिकथी निवर्यो छे। ए० एम | से० तेने । क. कल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा० ₹ ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० बळी । उ० ए पदवीए स्थापवो । पा० अथवा । धा० धारवो । वा. वळी ॥१७॥ सूळपाठ ॥ १७॥ आयरियउवज्जाए आयरियावज्जायत्तं निविखवित्ता मेहुणधम्भ पमिसेवेजा, तिमि संवबराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा. तिहिं संवहरेहिं वीइक्वन्तेहिं चउत्थगंसि संक्रांस पट्ठियंसि' ठियस्स उवसन्तस्स उवरयस्त पडिविरयस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उदि सित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ आचार्य उपाध्याय, आचार्य उपाध्यायनी पदवी मुकीने मैथुन धर्म सेवे, पछी वळी दीक्षा लीए तेने | त्रण वरस लगे आचार्य उपाध्याय ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी देवी के धारवी कल्पे नहि.त्रण वरस अतिक्रम्ये थके ने १H adds (एचमां बधारे) उवद्वियंसि. २ Hudds ( एचमां वधारे) निविकारस्स. OGESHOCRORED Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KARNISTRICASSA- चोयं वरस वेठे थके मन स्थिर थयुं छे, आत्मा दिपय थकी उपशम्यो छे, विपय कपाय कलुप भावथी ते निवयों छे, विशेषे ४ विपयादिकधी निवत्यों है, विषय विकार रहिन थयो छे एम होय तो तेने आचार्य उपाध्याय ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी १ देवी अथवा धारवी कल्पे ॥ १७ ॥ उपर गच्छ माहे थकानो अधिकार कह्यो, ते तो गच्छ छोडीने पण जाय ते भणी गच्छ छोटीने देशांतर जाय एटले के प्रथम सत्रे लिंग यको मैथुन सेवे ने हवे द्रव्य लिंग छोडी देशान्तरे जइ मैथुन सेवे ते ५ आधी कई छे. ___ अर्थ ॥ १८ ॥ भि० साधु । य० वळी । ग० गच्छ थकी । अ० नीकळीने । ओ० मैथुन सेववा भणी द्रव्य लिंग छांडवाने देशांतरे जाय ने मैथुन सेवे । ति० त्रण । सं० वरस लगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न। क.० फल्पे | आ० आचार्यनी । वा० अधवा । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । उ० आपवी।। या० अथवा । धा० धारवी । या० वळी कल्पे नहिं । ति० त्रण । सं० वरस । वी० अतिक्रम्ये हुवे । च० चोथु । सं० वरस । प० प्रबयों । टि० मन विषय थकी स्थिर थयुं । उ० आत्मा विषय थकी उपसम्यो छे । उ० निवयों विषय कपायादिक कलुप भावधी । प० विशेष विषयादिकधी निवत्यो । ए० एम। से० ते साधुने । क. कल्पे । आ० आचार्यपणे । बैं वा० अथवा । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकपणे । वा० वळी । उ० स्थापवो । वा० वळी । धा० धारवो। वा० । वळी कल्पे ॥ १८ ॥ मूळपाठ ॥ १८ ॥ निक्खू य गणाओ अवकस्म ओहायइ, तिमि संवबराणि तस्स तप्प त्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणावलेश्यनं वा उदिसित्तए वा । BAR Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० । ५६ ॥ %%1 * The dyo % 4. धारे वा. तिहिं संवरेहिं वीइकन्तेहिं चउत्थगंसि संवासि पट्टियंसि वियरस जवसन्तस्स उवरयस्स पनिविरयस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा ( जाव ) गणावश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत वा ॥ १८ ॥ Ha || १८ || साधु गच्छमांथी नीकळीने विषय सेववा द्रव्य लिंग छांडवा भणी देशांतरे जाय, जइने मैथुन सेवी पछी दीक्षा लीए. दीक्षा लीघाने त्रण वरस थया छे तो तेने आचार्य उपाध्याय ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी आपवी के धारवी कल्पे नहि. व्रण वरस पुरा थए ने चोथुं वर्ष प्रवर्ते छे, वळी ते साधुनुं मन विषय थकी उपशांत ययुं छे, विषय क पाय थकी निवग्र्यो छे, विषय थकी विशेषे निवत्यों छे ने विकार रहित थयो छे, एम होय तो आचार्य पदवी ज्यां लगे गणा बच्छेदक पःची तेने आपकी के धारवी कल्पे ॥ १८ ॥ ए सामान्य साधु आश्री कहुँ. हवे गणावच्छेदक आश्री कहे छे । अर्थ ॥ १९ ॥ ग० गणावच्छेदक । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । अ० विना । नि० मुकये । ओ० द्रव्य लिंग छांडीने ते गणावच्छेदक मैथुनादि असंजमपणुं आदरे । जा० जावजीव लगे । त० तेहनी । त० ते । प० पदवी प्रत्ये | नो० न । क० कल्पे | आ० आचार्यनी पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० बळी । उ० देवी । वा० अथवा | धा० धारवी । वा० वळी कल्पे नहि ॥ १९ ॥ १ H. adds ( एचम वधारे ) उवट्टियंसि. २ Hadds निव्विकारस्स. | उद्देसओ. ॥ ३ ॥ ॥ ५६ ॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (44. २. ४. मूळपाट ॥ १९ ॥ गणावबेइए गणावबेइयत्तं अनिक्खिवित्ता ओढाएका, जावजी - वाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड़ आयरियन्तं वा ( जाव ) गणावलेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ १९ ॥ भावार्थ ||१९|| जे कोइ गणावच्छेदक गणावच्छेदकनी पदवी मुक्याविना ते गणावच्छेदक विषय सेववा द्रव्य लिंग छांडे ने असंयमपणुं आदरे जावजीव लगे आचार्य उपाध्याय ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी देवी के धारवीं कल्पे नहि ||१९|| अर्थ || २० || ग० गणावच्छेदक | ग० गच्छना नायकनी पदवी । नि० मुकीने । ओ० ( ते गण नायक ) द्रव्य लिंग कीने मैथुनादि असं आदरे तेने । ति० त्रण | सं० वर्ष लगे । त० तेहने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । फः कल्पे | आ० आचार्यपणुं । वा० अथवा । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदक पदवी | वा० वळी । उ० स्थापत्री । 1 चा० अथवा | धा० धारवी कल्पे नहि तो केम कल्पे ते कहे छे । वा० वळी । ति० त्रण | सं० वरस | वी० अतिक्रम्ये । च० चौधुं | सं० चरस | प० बेटे । टि० मन स्थिर थाय । उ० विपयथी उपशांत आत्मा । उ० निवर्त्यो विपयथी । प० विपयथी शेन । ए० एम । से० तेने । क० कल्पे । आ० आचार्य पदवी | वा० वळी । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी | बा० बळी | उ० स्थापवी । वा० अथवा | घा० धारवी कल्पे । वा० वळी ॥ २० ॥ मूळपाठ ॥ २० ॥ गणावलेइए गणावलेइयत्तं निक्खिवित्ता श्रोहाएका, तिमि संवबराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पर आयरियन्तं वा ( जाव ) गणावबेइयत्तं Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार० ॥ ५७ ॥ वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा. तिहिं संवारेहिं वीइक्कन्तेहिं चउत्थसि संवरांसि पट्टियंसि' ठियस्स उवसन्तस्स उवरयस्स परिविरयस्स एवं से क ts आयरियतं वा (जाव) गावडे इयतं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ||२०|| भावार्थ ॥ २० ॥ गणावच्छेदक गणावच्छेदकपणुं मुकीने लिंग छोडी मैथुन सेवे ते पाछी दिक्षा लीए तेने दीक्षा लीधाने त्रण वर्ष लगे आचार्य, उपाध्याय ज्यांलगे गणावच्छेदक पदवी तेने आपवी के धारवी कल्पे नहि. त्रण वरस पुरा थए ने चोथुं वरस वे पछी मन स्थिर थाय, आत्मा विषयथी उपशांत थाय, विषयथी निवर्ते, विशेषे निवर्ते ने विकार रहित थाय त्यारे आचार्य उपाध्याय के ज्यांलगे गणावच्छेदक पदवीए स्थापवो के ते पदवी धारवी कल्पे ॥ २० ॥ हवे उपरना गणावच्छेदनी माफक आचार्यना वे सूत्र कहे छे । अर्थ | २१ || आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायपणुं । अ० विना । नि० मुकये । ओ० द्रव्य लिंग छांडी मैथुनादिक असंजम सेवे तेने । जा० जावजीव सुधी । त० ते आचार्यने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्यनी पदवी । वा० अथवा | जा० ज्यांलगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा धा० धारवी । वा० बळी ॥ २१ ॥ १ Hadds (एचमां वधारे) उबट्टियंसि २ Hadds (एचमां वधारे) निव्विकारस्स. उद्देसओ. ॥ ३ ॥ ॥ ५७ ॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मळपाठ ॥ २१॥ यायरिय उवज्जाए यायरियउवज्जायत्तं' अनिक्खिवित्ता ओहाएका. जावड़ीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियतं वा (जाव) गणावलेइ__ यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २१ ॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ आचार्य उपाध्याय आचार्य उपाध्यायपणु मुक्याविना द्रव्गलिंग छांडी पैथुन सेवेतो जावजीवलगे तेने ६ आचार्य ज्यांलगे गणायच्छेदकनी पदवी देवी के धारवी कल्पे नहिं ॥ २१ ॥ अर्थ ॥ २२ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायनी पदवी । नि• मुकीने । ओ० द्रव्य * लिंग छांटी मैथुन सेवी फरी दीक्षा लीए ते वारे । ति० त्रण । मं० वरसलगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी । नो० न । क. कल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । उ० स्थापवी । हवा. अथवा । धा० धारवी । वा० बळी । तो केम कल्पे ते क छ । दीक्षा लीधा पछी । ति० त्रण । सं० वरस । वी० पुरा घया । च० चोथं । सं० वरस । ५० शरु थयु छ । ठि०मन स्थिर थाय । उ० विपयथी उपशांत आत्मा। उ० निवयों | विपयथी। प० विपयथी विशेपे निवत्यों । ए० एम। से० तेने। क० कल्पे। आ० आचायपणुं । वा० अथवा । जा० ज्यालगे। ग० गणावच्छेदकपणुं । वा० बळी । उ० देQ । वा० अथवा । धा० धारदुं । वा० वली कल्पे ॥ २२ ॥ १ I. has (एचमां छे) आयरिए आयरियत्तं. २ H. has a separate sutra for (एचमां जुदो पाठ) उवज्झाए (माटे) CIRCIA ७२-NCRESCR-ACRPGC-CONSCIENCACREGI 91-FC G Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TEC२- रहार ५८॥ 42-ARER मूळपाठ ॥ २२ ॥ आयरियउवज्काए आयरियजेवज्जायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएजा, उद्देसओ. ॥३॥ तिमि संवतराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा (जाव) गणाबल्लेइयत्तं वा नदिसित्तए वा धारेत्तए वा. तिहिं संवबरेहिं वीइक्कन्तेहिं चनस्थगंसि संवबरंसि पट्ठियंसि वियस्स उवसन्तस्स उवरयस्स पमिविरयस्स एवं से कप्पइ आयरियतं वा (जाव) गणावलेश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २२ ॥ भावार्थ ॥ २२ ॥ जे आचार्य उपाध्याय आचार्य उपाध्यायपणुं मुकीने द्रव्यलिंग छांडीने मैथुनादिक आदरीने फरी दीक्षा | लीए ते वारे त्रण वरस लगे तेने आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदक पदवी आपवी के धारवी कल्पे नहि, त्रण थए चोथु वर्षे वेठे ज्यां लगे मन विकार रहित थयु होय तो आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवी तेने स्थापवी के धारवी कल्पे ॥ २२ ॥ उपला सूत्रमा चोथा व्रतना खंडणहारने पदवी देवा आश्री कां. ते मैथुन सेवनार मुखावाद बोले तेने पदवी न आवे ते अधिकार कहे छे. १H has ( एचमां )आयरिए आयरियत. २ H adds ( एचमां वधारे)निम्विकारस्स. ३ H has a separatesutra for (एचमां जुदो पाठ छे) उवज्झाए (माटे) Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17 अर्थ || २३ || भि० साधु | य० बळी | व० बहु । सु० सूत्री । व० घणा । आ० आगमनो जाण । व० घणा । व० घणाज | आ० गाट | गा० गाढ | का० कारणे । मा० माया सहित । मु० जुहुँ । वा ० वोले । अ० अ । सु० सत्य भाखे । पा० पापी । जी० जीव । जा० जाव जीव लगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्य पदवी । जा० ज्यां लगे | ग० गच्छना नायकनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा | धा० धारवी । वा० वळी । को नहि || २३ || मृळपाठ || २३ || निक्खू य वहुस्सुए वन्नागमे बहुसो बहुआ गाढागाढेसु कारणेसु माई मुसाबाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियतं वा ( जाव ) गणावद्वेश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ जे कोइ साधु बहु सूत्री होय एटले जघन्य आवश्यक, आचारंगने निशीथनो जाण, मध्यम वृहत्कल्प, व्यवहारनो धरणहार, उत्कृष्टो ९ पूर्व, १० पूर्व धारी, घणा आगमनो जाण, घणा घणा गाढा गाढ कारणे माया कपट सहित असत्य बोले, असत्य भाखे ते पापी जीवने ज्यां लगे जीवे त्यां लगे आचार्यनी, उपाध्यायनी, प्रवर्तक्रनी, स्थिवरनी, गणीनी, गणावच्छेदकनी पदवी देवी के तेने धारवी कल्ले नहि ॥ २३ ॥ उपर सामान्य साधु आश्री कहुं, हवे गणावच्छेदक आश्रीं कहे छे ॥ १. H has ( एचमां ) बहुसु. -OREAN Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहार ० ५९ ॥ अर्थ ॥ २४ ॥ ग० गणावच्छेदक । ब० बहु । सु० सूत्री । व० धणा । आ० आगमनो जाण । ६० घणीवार । ब० घणाज | आ० गाढागाढ | का० कारणे । मा० माया । मु० मुखावादना । वा० बोलणहार । अ० अ । सु० सत्यभाखी । पा० पापी । जी० जीव । जा० नावजीवलगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० वळी । जा० ज्यांलगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवीए । वा० वळी । उ० स्थापवो । वा० अथवा । धा० धारवो । वा० बळी ॥ २४ ॥ मूळपाठ ॥ २४ ॥ गणावबेइए बहुस्सुए बन्नागमे बहुसो बहुआ गाढागाढेसु कारणेसु माई मुसाबाई सुई पावजीवी, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्प आयरियतं वा (जाव) गणावश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥२४॥ भावार्थ ॥ २४ ॥ गणावच्छेदक वहु सूत्री घणा आगमनो जाण घणीवार घणा गाढागाढ कारणे माया कपट सहित जू बोले, असत्य भाखे ते पापी जीवने जावजी लगे आचार्य पदवी ज्यांलगे गणावच्छेदक पदवीए स्थापवो के धारवो कल्पे नहि || २४ || हवे आचार्यनो सत्र कहे छे. अर्थ || २५ || आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । व० बहु । सु० सूत्री । व० घणा । आ० आगमनो जाण । व० घणा प्रकारे । व० घणीवार । आ० गाढागाढ | काव् कारणे । मा० माया । मु० मुखा । वा० बोले । अ० असत्यभाखे । पा० 1 पानी । जी० जीव । जा० ज्यांलगे । जी० जीवे त्यांसुधी । त० तेने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । क० कल्पे | उद्देसओ' ॥। ३ ५. ॥॥ ५९ ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - 18579081980 - आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे । ग० गणावच्छेदक पदवी । वा० वळी । उ० स्थापवी । वा० अथवा । ३ धा० धारवी । वा० वळी कल्पे नहिं ॥ २५ ॥ . मूळपाठ ॥ २५॥ यायरियजवज्काए' बहुस्सुए वनागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसाबाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ यायरियतं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेसए दा ॥२५॥ भावार्थ ॥ २५ ॥ आचार्य बह सूत्री घणा आगमनो जाण घणे प्रकारे घणीवार गाढागाढ कारणे कयट सहित जुटुं ले बोले, उत्सूत्र भाग्ये, पापकर्मे करी जीये तेने जायजीव लगे आचार्य पदवी ज्यांलगे गणावच्छेदक पदवीए तेने स्थापवो के धाम रखो कल्पे नहि ॥ २५ ।। उपरना सूत्रम एक. वचन आश्री कह्यु. हवे वहुवचन आश्री कहे छे. अर्थ ॥ २६ ॥ ५० घणा । मि० साधु । व० बहु । सु० सुत्री । व० घणा । आ० आगमना जाण । व० घणा प्रकारे । टू २० घणीवार । भा० गाढागाढ । का० कारणे | मा० माया । मु० कपट । वा० बोले । अ० अ। सु० सूत्र भाखे । पा० * | पापी | जी० जीव | जा. ज्यांलगे। जी. जीवे त्यां सुधी। ते० तेमने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये। नो० न। क. कल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० अधवा । जा० ज्यांलगे। ग० गणावच्छेदक पदवी । वा० वळी । उ स्थापची। वा० अथवा । धा० धारवी । वा० बळी कल्ये नदि ॥२६॥ १ ।। ( पच ) आयरिए and has a soparate sutra for (जुदो पाठ छे ) उवज्झाए (माटे) --- ५ . ५ . ८ -%CE Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ६० ॥ मूळपाठ ॥ २६ ॥ बहवे जिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआ गाढागाढेसु कारमाई मुसावाई सुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ यरियतं वा (जाव) गावडेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २६ ॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ घणा साधुओ घणा सूत्र, घणा आगमना जाण घणे प्रकारे घणीवार गाढागाढ कारणे माया कपटे जु बोले, सूत्र भाखे ते पापी जीवने जावजीवलगे आचार्य ज्यांलगे गणावच्छेदकनी पदवी देवी के धारवी कल्पे नहि ॥ २६ ॥ ए सामान्य साधुओ आश्री कयुं. हवे गणावच्छेदक आश्री कहे छे. अर्थ ॥ २७ ॥ च० घणा | ग० गणावच्छेदको । व० बहु । सु० श्रुत । ब० घणा । आ० आगमना जाण । ब० घणी - वार । ब० घणा । आ० गाढागाढ | का० कारणने विषे । मा० माया सहित । मु० जुहुँ । वा० वोले । अ० जोतिषादिक अ । सु० सूत्र भाखवे करी । पा० पापकर्मे करी जीवे छे तेमने । जा० जाव | जी० जीवलगे । ते० तेमने । त० ते । प० पदवी प्रत्ये । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्यनी पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे । ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥। २७ ॥ मूळपाठ ॥ २७ ॥ बहवे गणावश्या बहुस्सुया बन्जागमा बहुसो बहुआ गाढा गाढेस कारणे माई मुसावाई सुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो उद्देसओ ॥ ३॥ ॥ ६० ॥ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *- कप्पइ आयरियतं वा (जाव) गणावलेश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारत्तए वा ॥२७॥ भावार्थ ॥ २७ ॥ घणा गणावच्छेदक बहु श्रुत, घणा आगमना जाण, घणीवार घणाज गाढागाढ कारणे माया कपट H ने जुटुं बोले तथा जोतिपादिक असूत्रने भाखवे पापकर्मे करी जीवे छे तेहमने जावजीव लगे आचार्य पदवी ज्यां लगे गणा13 यच्छेदकनी पदवी आपबीके धारवी कल्पे नहिं ॥ २७ ॥ ___ अर्ध ॥ २८ ।। ३० घणा । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । व० बहु । मु० श्रुत । व० घणा । आ० आगमनाजाण । व० घणा प्रकारे । २० घणा । आ० गाढागाढ । का० कारणने विषे । मा० माया कपटे करी । मु० जूटुं । वा० वोले । अ० अ । मु० सुन्न भाख । पा० पापकर्म करी । जी० जीवे । जा० जायजीव लगे । ते० तेमने । त० ते । प० पदवी । नो० न। का० फल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे। ग० गणावच्छेदकनी पदवी । वा० वळी । उ० स्थापवी। वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥ २८ ॥ मूळपाट ॥ २८ ॥ वहवे आयरियउवज्काया वहुस्सुया वन्नागमा बहुसो वहुधागाढा गाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं १11 (एचमां ) आयरिया. २ F (एचमा जुदो पाठ) separate उवज्झाया into a separate sutra. 4-FECER-CE-NR-LR *5* 4%9 7 - ३- २ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वनह र० नो कप्पइ आयरियतं वा (जाव) गणावलेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धा- उद्देसओ रेत्तए वा ॥ २८॥ भावार्थ ॥ २८ ॥ घणा आचार्य उपाध्याय बहु श्रुत घणा आगमना जाण घणे प्रकारे घणीवार गाढागाढ कारणे माया । कपटे जुडं बोले असूत्र भाखे एम पापकर्म करी जीवे तेमने जाव जीव लगे आचार्य अथवा गणावच्छेदक पदवी देवीके धारवी कल्पे नहि ॥२८॥ उपर घणा आश्री जुदं जुई का. हवे सर्व आश्री भेळो अधिकार कहे छे । ___ अर्थ ॥ २९ ॥ व० णा । भि साधु । व० घणा । ग० गणावच्छेदक । व० घणा । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । | व० घणा । मु० सूत्रना जाण (त्रण प्रकारे ते जघन्य, मध्यम ने उत्कृष्ट)। व० घणा । आ० आगमना जाण । व० घणे प्रकारे । व० घणीवार । आ० गाढागाढ | का० कारणे । मा० माया कपटे । मु० जुटुं। वा० बोले । अ० अ। सु० सूत्र | भाषी । पा० पापकर्म करी । जी० जीवे तेने । जा० जाव । जी० जीव लगे । ते. तेमने । त० ते । प० पदवी। नो० न । 81 सर्व जणाने । क० कल्पे । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा | जा० ज्यांलगे। गगणावच्छेदकनी पदवी। वा० वळी । उ० आपवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी कल्पे नहिं ॥ २९ ॥ त्ति० एम । बे० हुं कहुंछु । मूळपाठ ॥ श्ए ॥ बहवे शिक्खुणो वहवे गणावलेइया बहवे आयरियनवज्काया बहु स्या बन्नागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई । ६१॥ Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पर आयरियत्तं वा (जाव) गणावबेइयत्तं वा जदिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २५ ॥ त्ति वेमि ॥ ___भावार्थ ॥ २९ ॥ घणा साधु, घणा गणावच्छेदक, घणा आचार्य, घणा उपाध्याय, बहु सूत्री, घणा आगमना जाण घणे प्रकारे, घणीवार गाहागाढ कारणे माया कपटे जुहूं वोले, वैद्य ज्योतिपादिक असूत्रने भारलवे करी पापकर्म करी जीवे , 1 तमने जावनीव लगे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थिवर, गणि के गणावच्छेदक ए छ पदवी मांहेली कोइ पण पदवी आपवी , के धारवी कल्पे नहि ॥ २९ ॥ एम हु कहुं हुं ।। अर्थ ।। व० व्यवहार सूबनो । त० बीजो । उ० उद्दसो । स० पुरो थयो ॥ ३॥ मृळपाठ ॥ ववहारस्त तइयो उद्देसयो समत्तो ॥ ३ ॥ . भावार्थ ॥ व्यवहारसूत्रनो बीजो उद्देसो पुरो थयो ॥ ३ ॥ AAAAAAAERE - CROR-SASARALES Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घवहार० ॥ ६२ ॥ ॥ ववहारस्स चउत्थो उद्देसओ ॥ ॥ व्यवहार सूत्रनो चोथो उद्देसो ॥ अर्थ ॥ १ ॥ नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायने । ए० एकलापणे । हे० शीयाळाने विषे । गि० उनाळाने विषे । च० चालबुं ॥ १ ॥ मूलपाठ ॥ १ ॥ नो कप्पइ यरियउवज्जायस्स एगाणिस्स हेमन्तगिम्हासु चरिये ॥ १॥ भावार्थ ॥ १ ॥ आचार्य, उपाध्यायने शीयाळा उनाळामां एकलापणे चालवं कल्पे नहिं ॥१॥ हवे केम कल्पे ते कहे छे ॥ अर्थ ॥ २ ॥ क० कल्पे | आ० आचार्यने । उ० उपाध्यायने । अ० पोतासहित । वि० वे जणाने । हे. शीयाळे । गि० उनाळे | च० विचरतुं ॥ २ ॥ मूळ पाठ ॥ २ ॥ कप्पइ आयरियजवज्यायस्स अप्पविश्यस्स हेमन्तगिम्हासुचरिए ॥ २ ॥ भावार्थ || २ || आचार्य उपाध्यायने (आचार्य उपाध्यायनी पदवी माटे ) पोता सहित बे जणाए शीयाळा उनाळामां चाल कल्पे || २ || हवे गणावच्छेदक आश्री कहे छे ॥ १H has (एचमां छे ) चारए | Bb चरितए in sutras 1-4. उद्देसओ 11 8 0 ॥ ६२ ॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ॥ ३ ॥ नो० न । क० कल्पे । ग० गणावच्छेदकने । अ० पोता सहित । वि० वे जणने । हे० शीयाळे । गि० Hउनाले । च० चालवु ॥ ३ ॥ मृळपाठ ॥ ३ ॥ नो कप्पइ गणावलेइयस्स अप्पविश्यस्स हेमन्तगिम्हासु चरिए ॥३॥ भावार्थ ॥ ३ ॥ गणावच्छेदकने पोता सहित ये जणाने शीयाळे उनाळे चालवु कल्पे नहिं ॥३॥ हवे केम कल्पे ते कहे छे॥ अर्थ ॥ ४ ॥ क० कलो । ग० गणावच्छेदकने । अ० पोता सहित । त० जण जणाने । हे० शीयाळे । गि० उनाळे । | च० चालवू ॥ ४ ॥ मृळपाठ ॥ ४ ॥ कप्पर गणावळेश्यस्त अप्पतइयस्स हेमन्तगिम्हासु चरिए ॥ ४ ॥ भावार्थ ॥ ४ ॥ गणावच्छेदकने पोता सहित ऋण जणने शीयाळे उनाळे विचरचं कल्पे (केमके गणावच्छेदकने गच्छ A सारु वस्त्र पात्रादिक शेप काळे गयेपीने पोहोचता करे ते माटे वणजण कह्या ॥४॥ हवे चोमाम रहेवानो अधिकार कहे छे ॥ ___अर्थ ॥ ५॥ नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्यने । उ० उपाध्यायने । अ० पोता सहित । वि० वेने । वा० वर्षाफाळे । व० रहेषु ॥ ५॥ भृळपाठ ॥ ५॥ नो कप्पइ आयरियउवज्कायस्स अप्पविइयस्स वासावासं वत्थए ॥५॥ भावार्थे ॥ ५ ॥ आचार्य उपाध्यायने पोता सहित वे जणने वर्पाकाळे रहे, कल्पे नहिं ॥५॥ EMAIL-नाव RECOR-CREL5626044069544 - 4 - :- - Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्वहार 947-GRESC उद्देसओ ४॥४॥ 55%A5 ECORE----CO2 अर्थ॥६॥क० कल्पे । आ० आचायने । उ० उपाध्यायने । अ० पोता सहित । तत्रण जणने । वा० वर्षाकाळे। व० रहेQ ॥६॥ मूळपाठ ॥ ६॥ कप्पइ थायरियउवज्जायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥६॥ भावार्थ ॥६॥ आचार्य उपाध्यायने पोता सहित त्रण जणने चोमासामा रहेवू कल्पे ॥६॥ हवे गणावच्छेदक आश्री कहेछ । अर्थ ॥७॥ नो० न । क० कल्पे। ग० गणावच्छेदकने। अ० पोता सहित । तत्रण जणाने । वा० वर्षाकाळे । | व० रहेवू ॥ ७॥ मूळपाठ ॥ ७ ॥ नो कप्पइ गणावलेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥ ७ ॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ गणावच्छेदकने पोता सहित त्रण जणने वर्षाकाळे वसवं कल्पे नहि ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ ८॥ क० कल्पे । ग० गणावच्छेदकने । अ० पोता सहित । च० चार जणाने । वा० वर्षाकाळे । ३० रहेवू ॥८॥ मूळपाठ ॥ ८॥ कप्पइ गणाव इयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए ॥ ८॥ भावार्थ ।। ८ ॥ गणावच्छेदकने पोता सहित चारजण संगाथे चोमासु रहेQ कल्पे ॥ ८ ॥ एटला भेळा होय तो केम कल्पे ते कहे छ । अर्थ ॥ ९॥ से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा । न० नगर (ज्यां कर नहिं) नेविषे । वा० अथवा । नि० द निगमने विषे । वा० अथवा । रा० राज्यधानीने विषे । वा० अथवा । खे० धुडनो कोट होय ते खेड कहीए तेने विषे । वा० E ॥ ६३॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4-CHANNEL- 11--00 2 अथवा । क० फवट (पर्वत उपर बसे ते ) ने विपे । वा० अथवा । म० मंडप ( नवु शहेर वश्यु होय ते ) ने विपे । वा० अ६ वा । प० पाटण ( वधी वस्तु मळे तथा खपे तेवा ) ने विपे । वा० अथवा । दो० द्रोण मुख (जळनो मार्ग, स्थळनो मार्ग आवी मके ते) ने विपे । वा० अथवा । आ० तापसादिकना आश्रमने विपे । वा० अथवा | सं० संवाहने विषे । वा० अथवा। सं० सन्निवेश ( सराह प्रमुख ) विपे । वा० वळी । व० घणा । आ० आचार्य । उ० उपाध्यायने । अ० पोता सहित । वि० वे जणाने । व० घणा । ग. गणावच्छेदकने । अ० पोता सहित । त० त्रण जणने । क० कल्पे । हे० शीयाळो । गि० उनाळो। च० विचरयं । अ० एक । अ० वीजानी । नि० नेश्राए एटले एक आचार्यने वे शिष्य होय तो वीजाने पण वे शिष्य गणवा ॥९॥ मृळपाठ ॥ ९॥ से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेमसिं वा क व्यमंसि वा मवसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहसि वा संनिवेसंसि वा वहणं आयरियउवज्कायाणं अप्पविइयाणं वहूर्ण गणाव बइयाणं अप्पतइयाणं क पइ हेमन्तगिम्हासु चरिएं अन्नमन्नं निस्साए ॥ ९॥ भावार्थ ॥ ९ ॥ ते गामने, नगरने, निगमने, राज्यधानीने, खेडने, कवडने, मंडवने, पाटणने, द्रोण मुख, आसमंने, संवाहने, संन्निवेशने विपे घणा आचार्य, उपाध्याय पोता साथे वे जणाने घणा गणावच्छेदकने पोता साथे त्रण जणाने मांडो-* मांहि शीयाळे उनाळे विहार करवो कल्पे ॥९॥ १H (एचमां) चारए. B. b (वा वी) चरित्तए. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SASARAIC अर्थ ॥१०॥से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा । न० नगरने विषे । वा० अथवा । नि० निगमने विषे । वा० मउद्देसओ. पवहार० ॥६४ ॥ अथवा । रा० राज्यधानीने विषे । वा० अथवा । खे० खेडने विषे । वा० अथवा । क० कबडने विषे । वा० अथवा । म० ॥४॥ मडंवने विषे । वा० अथवा । प० पाटणने विषे । वा० अथवा । दो० द्रोण मुखने विषे । वा० अथवा । आ० आसमंसिने विषे । वा० अथवा । सं० संबाहने विषे । वा० अथवा । सं० संन्निवेशने विषे। वा० बळी । ब० घणा | आ० आचाये । 1 ध्यायने । अ० पोता सहित । त० त्रण जणाने । ब० घणा । ग० गणावच्छेदकने । अ० पोता सहित । च० चार जणने । क० कल्पे । वा० वर्षाकाळे । व० रहे । अ० माहोमांहे । नि० एक बीजानीनेश्राए॥१०॥ मूळपाठ ॥ १० ॥ से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेमसिं वा कब्बडंसि वा मडंबसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहसि वा संनिवेसंसि वा वहणं आयरियउवज्कायाणं अप्पतइयाणं बहूणं गणाव. बेश्याणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अन्नमन्नं निस्साए ॥ १० ॥ भावार्थ ॥१०॥ ते गामने विषे ज्यां लगे संनिवेषने विषे वळी घणा आचार्य, उपाध्यायने पोता सहित त्रण जण, घणा गणावच्छेदकने पोता सहित चार जणने चोमाम अन्यो अन्यनी नेश्राए रहे कल्पे ॥१०॥ उपला दस सूत्रे आपणा शिष्य + जूदा जूदा गणवा कह्या. ते आचार्य कने रहेवानो अधिकार कह्यो. हवे वडेरा काळ करे ते कहे छे ।। ॥६४॥ PESARRORNCRy-kRESHrudrror-4-4-29 C CES) Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECE अर्थ ॥ ११ ॥ गा. एक गामथी । अ० वीजे गाम । द्० विचरतां थकां । भि० साधु । य० वळी । ज० जेने। पु०8 सभागळ ! क० करीने ( स्तु, वंध फाळे ) । वि० विचरे ते आचार्य । उपाध्याय । आ० कदाचित । वी. काळ करे अने । अ. होय । या० इवां समुदाय मांदि । थ० वळी । अ० वीजो । के० अनेरो कोइ आचार्य । उपाध्याय । गणि । प्रवर्तक प्रमुख ते । ३० ते पदवीए स्थापया योग्य ने ते पदवी अंगीकार करीने वडो करवा योग्य कल्पे । से० तेहने वळी । उ० अंगीकार | करीने विचरखं । न० न होय । या० इहां । थ० वळी । अ० अनेरो । के० कोइ गणि प्रमुख । उ० वडो करवा योग्य । त० १ ते । अ० पोताना । क. आत्मानो आचार कल्प । अ० शीख्यो नथी (पुरो भण्यो न होय तो)। क० कल्पे । से० तेने । ए० एक। रा० रात्रीनी । प० प्रतिज्ञा अंगीकार करीने । ज० जेणे । ज० जेणे । दि० दिसे । अ० अनेरा । सा० साधर्मिक साधु । वि० विचरता होय । त० तेणे । त० तेणे । दि० दीसे । उ० अंगीकार करीने जाय । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । त० त्यां सुंदर आहार उपधि वस्ती आदी देखीने । वि० विहार । व० निमित्ते । व० रहेवं कल्पे नहिं । क० कल्पे । से० तेने । त. त्यां । का० रोगादिक कारण । व० निमित्ते । व० रहेवू । तं० ते । च० f० वळी । का० कारण । नि० पुरुं थए थके । १० चीजो कोइ । व० बोले । २० वसो रहो । अ० हे आर्य । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० थे । रा० रात्री । पा० बळी । ए० एम। से० तेने । क. कल्पे । ए. एक । रा० रात्री । वा. अथवा । दु० थे। रा० रात्री । वा० वळी । व. र यसबुं । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । प० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० बे । रा० रात्री। वा० वळी । ० रहेवू । जं. जे । त० त्यां । १० उपरांत । ए० एक। रा० रात्री। वा० अथवा। दु० बे। रा० रात्री। वा० वळी । अधिको । २० रहेतो । से० तेने । सं० सेपांतर ते तेटली रात्रीतुं । छे० छेद । वा० अथवा । प० तप मायश्चित आवे । वा० वळी ॥११॥ Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार० ॥ ६५ ॥ मूळ पाठ ॥ ११ ॥ गामाणुगामं दूइकमाणी निक्खू य जं पुरओ कट्टु विहरई आहच्च वीसम्ने, अस्थियाई थ अने केइ उवसंपऊणारिहे, से उवसंपतियवे. नत्थ याई थ अन्ने केइ उवसंपद्मणारिहे, तस्स अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पर से एगराइयाए पकिमाए जसं जसं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरन्ति तसं तसं दिसं' उवलिए. नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पर से तत्थ कारणवत्तियं वत्थ. तंसि चणं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएका । वसाहि अको एगरायं वा पुरायं वा एवं से कप्पइ एगरायं वा पुरायं वा वत्थए, नो से कपइँ परं एगरायाच्यो वा पुरायाओ वा वत्थए जं तत्थ परं एगरायाचो वा पुरायाओ वा वस, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११ ॥ भावार्थ || ११ || एक गामथी बीजे गाम विचरता थका साधु रुतुबद्ध काळे आचार्य उपाध्याय जेहने आगळ करीने विचरे ते आचार्य उपाध्याय कदाचित काळ करे छते जो इहां समुदाय मांहि बीजो कोइ आचार्य, उपाध्याय, गणी, प्रवर्तक ४ H (एच ) 'माणे. २ HE (एचमा ) विहरेज्जा से य आ. ३ T (टी) वीसु. ४H (एचमां ) कप्पइ सेयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ५P (पी) असते. ६ (एच) दिसिं. ७ H (एच) एगरायं वा दुरायं वा परं वत्थए. उद्देसओ 118 11 ॥ ६५ ॥ Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CA C-2016 - | प्रमुख रे तो तेने आचार्य पदवीए स्थापयो, अंगीकार करावी वडेरो करवो. एम तेने अंगीकार करीने साधुने विचर कल्पे. में पण जो कोई गणी प्रमुख वडेरो करवा योग्य होय नहि तो, ने ते साधु पोते आचार कल्प पूरो भण्यो होय नहिं तो तेने र एफ. रात्रीनी प्रतिज्ञा अंगीकार करवी करीने जे जे दीशाए अनेरा साधर्मिक साधु विचरता होय ते ते दीशाए अगीकार कराने विचरयुं कल्पे. ते साधुने त्यां सुंदर आहार उपधि वस्ती आदि देखीने विहार निमित्ते रहेg कल्पे नहिं. रोगादिक कारणे * त्यां वसवें रहे कल्पे. ते रोगादिक कारण पुरुं थए वीजो साधु एम वोले, हे आर्य साधु ? अत्रे एक रात्री अथवा वे रात्री क्या वे रात्री रहेगुं वल्पे, पण एक रात्री के वे रात्री उपरांत त्यां तेने रहे कल्पे नहि. जे साधु ४ त्या एक रात्री अथवा वे रात्री उपरांत बसे तेने तेटली रात्रीनो छेद अथवा तपनो प्रायश्चित आवे ।। ११ ॥ अर्थ ॥ १२ ॥ वा० वकिाळने विपे । ए० चोमासानो निर्धार कहे छ । भि० साधु । य० वळी । जं० जेहने । पु० आगळ | फ० करीने । वि. विचरे । ते साधुना आचार्य वळी । आ० कदाचित । वी० काळ करे । अ० छ। या० इहां * (समुदायमादि ) । थ० वळी । अ० वीजो । के० कोइ आचार्य उपाध्याय । उ० तेने आचार्य पदवीए स्थापवा योग्य तो है 1. कल्पे | से० तेने । उ० अंगीकार करीने वडो स्थापचो होय | न० न होय । या० इहां । २० वळी । अ० वीजो। ३० फोद अनेरी । उ० पदवीए स्थापया योग्य ( होय नहिं )। त० ते वळी । अ० पोते । क. आचारनो अजाण । अ० नथी। स. पुरो भण्यो । क० कल्पे । से० तेहने वळी । ए० एक । रा० रात्रीनी । ए० प्रतिज्ञा अंगीकार करीने । ज० जेणे । ज.पू नेणे । दि० दीशाने विपे । अ० अनेरा । सा० साधर्मिक । वि० विचरता होय । त० ते । त० ते । दिदीशे । उ० अंगी-2 फार फरी विचरवू । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । त० त्यां । वि० विहार । व० निमित्ते । व० रहेg कल्पे नहिं । क० MA --- -%2-- 4 -or- Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार-कल्पे । से० तेने । त. त्यां। का० रोगादिक कारण । व० निमित्ते । ३० रहेवू । तं० ते । च० णं० बळी । का० कारण ।। उसओ. ॥६६ || नि० एकै थए । ५० बीजो कोइ । ५० बोले । ५० वसो रहो । अ० हे आयें । ए० एक । रा० रात्री। वा० बळी । द० ॥४॥ सारा० रात्री। वा० वळी । ए० एम। से० तेने । क. कल्पे । ए० एकरा० रात्री । वा० अथवा । दुबे। रा० रात्री। वा० बळी । व० रहेवं कल्पे । नो० नहीं। से० तेने । क० कल्पे । ५० उपरांत । ए० एकारा० रात्री । वा० अथवा । ढ० वे । रा० रात्री । वा० वळी । व० वसवं कल्पे नहि । जे. जे। त० त्यां । ५० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुबे । रा० रात्रीं । वा०वळी उपरांत । व० रहेतो। से० तेने । सं० सेपांतर तेटली रात्रीनो। छे० छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित आवे । वा० वळी ।। १२ ॥ मूळपाठ ॥ १२ ॥ वासावासं पङोसवियो निक्खू य जं पुरओ कट्ट विहरइ आहच्च वीसम्नेजा, अत्थि याइं थ अन्ने केश जवसंपऊणारिहे", से उवसंपङियत्वे. नत्थि याइं थ अन्ने केइ उवसंपळणारिहे, तस्स अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पर से एगराश्याए पडिमाए जसं जलं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरन्ति तमं तमं दिसं नवलित्तए. नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ १H (एच ) विए. २ F (एच) विहरेजा से य आ. ३ T F (टी ने एच ) वीसु. ४ F (एच) कप्पइ ॥६६॥ सेयं उपसंपज्जित्ताण विदरित्तए. -जर-%A-CEC% -- -----Fory-SCREE Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARRER-ACTerCREE अल्सन से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए. तसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परोवएजा। वसाहि यो एगरायं वा पुरायं वा. एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वथए, नो से कप्पइ' परं एगरायाओ वा पुरायायो वा वत्थए. जं तत्थ परं एगरायाओ वा पुरायायो वा वस, से सन्तरा बेए वा परिहारे वा ॥ १२॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ वर्षाकाळने विप चोमासानो निर्धार कहे छे. साधु जेने आचार्य, उपाध्याय आगळ करीने विचरे ते 8 साधना आचार्य ( उपाध्याय ) कदाचित काळ करे तो जो त्यां कोई समुदाय मांहि आचार्य (उपाध्याय ) पदवी आपवाटू योग्य होय तो तेने आचार्य पदवी अंगीकार करावीने ते पदवीए वडेरा तरीखे स्थापवो कल्पे. जो त्यां कोई आचार्य पदवीए स्थापया योग्य न होय तो ते साधु जे पोते आचारनो अजाण तथा पुरो भण्यो नथी तेने एक रात्रीनी प्रतिज्ञा अंगीकार करीने 13 जे दीशाए अनेरा साधर्मिक विचरता होय ते दीशा अंगीकार करवी कल्पे पण विहार निमित्ते तेने त्यां रहेवू न कल्पे. रोगादीक कारणे त्यां रहे कल्पे. ते कारण पुरु थए वीजो कोइ साधु कहे के हे आर्य ? अहीं एक रात के वे रात वसो रहो तो - तेने एक रात के वे रात त्यां रहे कल्पे, पण एक रात के वे रात उपरांत तेने त्यां रहेवू न कल्पे. जो ते त्यां एक रात्री अ-|| वा ये रात्रीची अधिक रहे तो तेने जेटला दिवस रहे तेटला दिवसनो छेद अथवा तपनुं मायश्चित आवे ॥ १२ ॥ प्रथम सत्रो आचार्यादिक काळ करे ते आधी कह्या. हवे ते आचार्यादिक काळ करता थकां पदवी देवी ते भणी पदवी देवानुं सूत्र कहे छे ॥ || १]] ( एच ) एगरायं वा दुरायं वा परं व. Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ॥४॥ पवहार० ___ अथ ॥ १३ ॥ आ• आचार्य । उ० उपाध्याय । गि० रोगादिके करी ग्लानता पामताने काळ आव्यो जाणीने । अ० अ- ०६७. नेरा उपाध्याय वगेरेने । व० कहे छे । अ० हे आर्यों ?।म० मुजने । णं० वळी । का० काळ । ग० प्राप्त । स० यया पछी । अ० एहने । स० मारी पदवीने विषे स्थापजो । से० ते । य० जो। स० पदवी योग्य होय तो । स० ते पदवीए स्थापवो । से० ते । य० वळी । नो० न । स० पदवी योग्य होय तो । नो० न । स० ते पदवीए स्थापवो नहिं । अ० होय । या० अहीं । थ० वळी । अ० अनेरो । के० कोइ । स० ते पदवी आपवा योग्य तो । से० तेने । स० ते पदवीए स्थापवो । न० नथी। या० इहां । थ० वळी । अ० अनेरो । के० कोइ । स० पदवी आपवा योग्य तो । से० तेनेज । चे० वळी । स० स्थापवो । तं० तेने । २० X० वळी । स० पदवीए स्थाप्या पछी । १० वीजा साधु । च० एम कहे । दु० दुष्ट । स० छे पदवी । ते० ताहरी । अ० हे आर्य। नि० ते पदवी तमे मुकी दीओ। त० ते साधु । ण० बळी । नि० मुकेतो ते पदवी मुकता थकाने । न० नथी । के. कोइ । छे० छेद (दीक्षानो) । वा० अथवा । प० परिहार तप पण नथी । वा० वळी । जे जे । सा० साधर्मिक साधु तेने । अ० / ते पदवी मुकावाने विषे । क० यथा कलप । नो० न । उ० उठाडवा । वि० प्रवर्ते न उठेतो। स० सर्वने तथा । ते० तेने । त० ते । प० पदवीना धरणहारने । छे० दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० तपर्नु प्रायश्चित आवे । वा० बळी ॥ १३ ॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ आयरियउवज्काए गिलायमाणे अन्नयरं वएका । अङो ममंसि एं। कालगयंसि समर्माणसि अयं समुफसियवे. से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, १H (एच) मए, b (बी ) ममस कालगयस्स अ, २ P. B (पी, ची) समीणसि. ॥६७॥ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ५.--- - ५ - सेय नो समुझसणारिदे नो समुक्कासियव्वे. अस्थि याई थ अन्ने केइ सगुकातणारिहे से समुक्कासियव्वे, नस्थि याई थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कासियत्वे. तंसि च णं समुचिट्ठसि परो दएका । दुस्समुक्टुिं ते अओ, निक्खियाहि ? तस्स णं निक्खिवमाणरस नस्थि केइ छेए वा परिहारे वा. जे साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरन्ति सव्वति तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे दा ॥ १३ ॥ भावार्थ ।। १३ ।। आचार्य उपाध्याय रोगी थको काळ आध्यो जाणीने वीजा उपाध्याय वगेरेने एम वाहे हे आर्यों ? काळ बरू त्यारे आने आचार्य पदवी आपजो. ते जो आचार्य पदवी आपवा योग्य होय तो तेने ते पदवी आपवी. जो ते पदवी आपया योग्य न होय तो तेने ते पदवी आपवी नही. जो कोई वीजो ते पदवी आपदा योग्य होय तो तेने ते पदवी आपवी. जो कोइ ते पदवी आपवा योग्य न होय तो प्रथम कह्या तेनेज ते पदवी आपवी. तेने पदवी आप्या पछी गच्छना वीजा साधु एम कहे जे ए ताहरी पदवी दुष्ट छे माटे हे आर्य ? तमे ते पदवी मुकी दीओ एवं कहेवाथी ते साधु ते पदवी है १b H (वी एच ) च. २ H (एच) क. ३ (एच) जे तं सा अहा णो अभुटेन्ति तेसि सव्वेसिं. Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15ASABAS- पवहार० मुकतो थको तेने दीक्षानो छेद के तपनुं प्रायश्चित आवे नहि. जे साधर्मिक साधु तेने पदवी मुकवा योग्यने ते पदवी 1६८॥ मुकावा प्रवर्ते नहि ते सर्वेने तथा ते पदवीना धरणहारने दीक्षानो छेद अथवा तपर्नु प्रायश्चित आवे ॥१३॥ ___अर्थ ॥ १४ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । ओ० चारित्रलिंग मुकीने जाय जाता थकां । अ० अनेराने । व० एम। तू कहे । अ० हे आर्य ?|म०।० वळी । ओ० लिंग मुकी भोग निमित्ते। स० जाउंछ । मारी आचार्य पदवीए । अ० आने । स० स्थापजो । से० तेने। य० वळी । स० परिक्षा करी ते पदवी आपवा योग्य होय तो उपाध्याय विगेरे । स० ते पदवीने विषे स्थापे । से० ते। य० बळी । नो० न । स० स्थापवा योग्य होय तो। नो०न । स० ते पदवीए स्थापयो । अ० छे । या० इहां । थ० वळी । अ० अनेरो । के० कोइ । स० पदवी योग्य तो। से० तेने । स० ते पदवीने विषे स्थापवो । न० नथी। या. इहां । थ० वळी । अ० अनेरो। के० कोइ । स० ते पदवी योग्य तो । से० तेने। चे० वली । स० ते पदवीए स्थापवो । तं तेने । व० णं० वळी । स० स्थाप्या पछी । प० गच्छनो बीजो साधु । व० एम कहे । दु० दुष्ट छे । स० पदवी । ते. ताहरी । अ० हे आर्य ? | नि० ते पदवी तसे मुकी दीओ । त० ते साधुने । उपर मुजव कह्याथी । गं० वळी । नि० ते पदवी मुकताने बळी । ननथी । तेने । के० काइ। छे० दीक्षानो छेद । पा० अथवा । प० तपर्नु प्रायश्चित । वा० बळी । जेजे । सा० साधर्मिक साधु तेने । अ० ते पदवी मुकावाने विषे । क० यथा कल्प । नो० न । उ० उठाडवा । वि० प्रवर्तेन उठे तो । स० सर्वने तथा । ते तेने एटले । तते। प० पदवीना धरणहारने । छे० ८ दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० तपनुं मायश्चित आवे । वा० वळी ॥ १४ ॥ SANGALOREACCORALORE ERE Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7-% ACR4 % मूळपाठ ॥ १४ ॥ आयरियउवज्जाए ओहायमाणे' अन्नयरं वएजा । अजो ममंसि एं योहावियंसि समापंसि अयं समुक्कसियव्वे. से य समुक्कसणारिदे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियत्वे. अत्थि याइं थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्कसियव्वे, नत्थि याई थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे. तंसि वणं समुकिट्ठसि परो वएडा । दुस्समुक्किट्ठ ते अजो, निक्खिवाहि ? तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि के छेए वा परिदारे वा. जे साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरन्ति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिदारे वा ॥ १४ ॥ भावार्य ॥ १४ ॥ आचार्य उपाध्याय चारित्र लिंग मुकीने जाय ते वारे अनेरा साधुने एम कहे हे आर्यो ? हुं चारित्र | लिंग मुकी आचार्य पदवी मुकी जाउँछं. तमे ए मारी आचार्य पदवी आ साधुने आपजो. ते साधु आचार्य पदवी आपवा १H adis ( एचमां वधारे ) गच्छेजा. २ म (एच) मए. ३ T. (टी) तसिं च. F ( एचमां) तंसि च ४ H. ट(एच) जे तं साह अहा णो अन्नन्ति तेसि सव्येसिं. E+KE+ E+ + + Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PREGNREGA-ब- सोय जणायतो उपाध्याय विगेरे परिक्षा लइ ते पदवी तेने आपे. जो ते पदवी आपवा योग्य न जणाय तो तेने ते पदवी / उसमो. आपे नहि. अने ते पदवी जो त्यां बीजो कोइ योग्य साधु जणाय तो तेने आपे. जो त्यां बीजो कोइ योग्य न जणाय तो ॥४॥ तेज साधने ते पदवी आपे. ते पदवी आपेळ साधुने गच्छना बीजा साधु एम करके ते ताइरी पदवी दुष्ट छे माटे हे आर्य ? ते पदवी तं मकी दे. ते उपरथी ते साधु ते पदवी मुकेतो तेने दीक्षानो छेद के तपर्नु प्रायश्चित आवे नहि. जे सार्मिक साध | तेनी पदवी मुकाववाने प्रवर्ते नहि ते सर्वने तथा ते पदवीना धरणहारने दीक्षानो छेद अथवा परिहार (तप प्रायश्चित ) तप | आवे ॥१४॥ उपर पदवीवंत साधुनो अधिकार कझो. ते अवसरनो जाण होय ते नव दीक्षित आश्री आचार्यनो आचार कहेछ। ___अर्थ ॥ १५ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । स० नवदीक्षितने एकठो करवा योग्य (छेदोपस्थापना योग्य जाणीने ) ययो एह जाणतो थको ते जाणतां थकां । जा० ज्यांलगे । च० चार । रा० रात्री तथा । पं० पांच । रा० रात्री 8/ दीन यया पछे पण । क० छ जीवणीयादि सूत्रार्थ प्राप्त । भि० साधुने । नोन । उ० उठावण न करे एटले त्यां सुधी महाका व्रत न दीए तो ते आचार्य ने प्रायश्चित आवे । क० ते सूत्रार्य प्राप्त होय तेने कल्पे । अ० छ। या० इहां । से० ते। के० कोरमा०पितादिक वडा ते जेनी संघाते भेळी दीक्षा लीधी छे पण । क. बडो पडिकमणो छ जीवणीयादिकना सत्रा नी प्राप्ति यइ न होय ने स्थिरपणे थावणहार छे तेने काजे दीन पांच तथा दीन दस तथा पंदर रात्री लगे सूत्रार्थ प्राप्तीPI वाळा साधुने व्रत-तपने विषे उठावण न करेने पेला षडाने घणो आदर करीने भणावे पछी साथेज महाव्रतने विषे उवठाण 18 करे तो ते आचार्यने प्रायश्चित नहिं ते कहे छ । न० नयी । अहिं । से० ते आचार्यने । के० कोइ । छे० छेद चारित्र । वा. अथवा । प० तप पण । वा० बळी न पामे । पण केम पामे ते कहे छे। न० नथी। या० इहां । से० ते । के० कोइ। मा० - ब Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पितादिक पटो जेनी संघाते मेळी दीक्षा लीधी छ । क० छ जीवणीयादी - सूत्राथै प्राप्ततो । से० तेने एटले आचार्यने । सं० | एटला दीवसनो । २० दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित पामे । वा० वळी ॥ १५ ॥ मळपाठ ॥ १५॥ आयरियउवज्काए' सरमाणे जावं घउरायपञ्चरायाओ कप्पागं जि खं नो उवट्ठावेइ. कप्पाए अत्थि याइं से केइ माणणिो कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा. नत्थि याइं से केइ भाषणिो कप्पाए, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ १५॥ भावार्य ॥ १५ ॥ आचार्य उपाध्याय जे नवदीक्षित एकठो करवा (एटले छेदोपस्थापनीय चारित्र आपवा) योग्य थयो H एम जाणतो धको चार रात्री पांच रात्री उपरांत ते नवदीक्षित जे छ जीवणीयादि सूत्रार्थ प्राप्त साधुने उवठाण न फरे एटले महानत दीए नहितो आचार्यने प्रायश्चित आवे पण जो ते साधुए पितादिक वडानी संघाते भेळी दीक्षा लीधी होय तेने ते भणाची पांच, दस के पंदर रात्री पछी बन्नेने साये उवठाण करे तो आचार्यने छेद। चारित्र के तप प्रायश्चित आवे नहि, Mण जो उपर मजव पितादिक वडेरासाथे नवदीक्षितने उवगण करवानुं न होय ने नवदीक्षितने उवठाण करे नहितो आचा- * ने जेटला दीन उवठाण न करे तेटला दीननो दीक्षानो छेद के परिहार तप आवे ॥१५॥ I adds ( एचमां वधारे ) य. २ H has (एचमां ) परं instead of जाव ( ने बदले ). ३ १ (एचमां) 1 चउरायाओ पश्चरायाणं. IPES Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KAKlecut %ESAB ( अर्थ ॥ १६ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । अ० न । स० संभाळे एटले प्रमादादिक दोषने उदये करी नवदीक्षित सो महाव्रतने विषे उवठाण योग्य थयो छे एहवं ते न संभारे ने । प० उपरांत । च० चार । रा० रात्री पांच रात्री पछी। क० IC॥४॥ छजीवणीया सत्रार्थ प्राप्त थयुं छे जेहने एहवा । भि० साधुने । नो० न । उ० उवठाण न करे ते आचार्यने प्रायश्चित आवे । क० नवदिक्षित जेने सूत्रार्थ प्राप्त थयो छे तेनी साथे । अ० छ । या० इहां । से० ते सूत्रार्थ प्राप्त साधुने । के० कोइ । है मा० पितादिक वडा करी मानवा योग्य जेनी संघाते दीक्षा लीधी छे ने जेने वडो करवो छे ते भणी । क० ते सूत्रार्थ प्राप्त थयो नथी पण थावणहार छे तेने काजे दीन पांच तथा दस तथा पंदर रात्री लगे सत्रार्थनी प्राप्तिवाळा साधुने उवठाण नहिं पण आदर करी भणावे पछी बेहुने संघाते उवठाण करे तो इहां न संभारता पण । न० नथी इहां । से० ते आचार्यने । के० कोइ । छे० छेद । वा० अथवा । प० परिहार तप । वा० बळी न पामे । न० नथी । या० इहां । से० ते सूत्रार्थ प्राप्त साधुने । के. कोइ एक । मा० वडेरो पितादिक वडेरो करवा योग्य । क० सत्रार्थ प्राप्त न होय तो विसरीने उवठाण न करे तो । से० तेने । सं० जेटली रात्री राखे तेटली रात्रीनो। छे छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित पामे । वा० बळी ॥१६॥ %AA मूळपाठ ॥ १६ ॥ आयरियउवज्काएं असरमाणे परं चउरायायो कप्पागं जिक्खं नो . उवट्ठावेइ. कप्पाए अस्थि याई से केइ माणणिो कप्पाए, नत्थि से केश छेए १P Hadds (पी. एचमां वधारे) य.२ म. adda (एचमां वधारे) पश्चरायाओ. Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R - - - वा परिहारे वा. नत्थि याई से केइ माणणिो कप्पाए, से सन्तरा जेए वा । परिहारे वा ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६ ॥ आचार्य उपाध्याय कांइक प्रमादना उदए संभाळे नहिं जे नवदिक्षित साधु उठावण योग्य थयो छे । ने चार राषी, पांच रात्री पछी पण ते नवदीक्षित जे छ जीवणीयादिक सूत्रार्थ प्राप्त थयो छे तेने उवठाण करे नहीं तो ते | आचार्य उपाध्यायने प्रायश्चित आवे. वळी ते नवदिक्षित साधु साथे पीतादिक वडा करीने मानवा योग्य साधु वीजा छे । जेनी साथै तेणे दीक्षा लीधी छे, वळी ते सूत्रार्थ प्राप्त थया नथी पण थनार छे तेने काजे दीन ५-१०-१५ रात्री लगे नव-11 दीक्षित नेणे सूत्रार्थनी प्राप्ति करी छे तेने उवठाण न करे पण वडेरा पितादिकने भणावी बेहुने संघाते उठावण करे. अहीं 3 अणसंभारता पण ते आचार्यने नवदीक्षितने उवटाण न करे तोपण छेद प्रायश्चित के तपन प्रायश्चित आवे नहीं पण जो ते नवदिक्षित साथे रितादिक वडेरा करवा योग्य कोइ साथे उवठाण करवा योग्य होय नहिं तो ते विसरीने नवदीक्षितने उवसटाण कर नहि तो आचार्यने जेटली रात्री उवठाण न करे तेटली रात्रीनो दीक्षानो छेद अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे ॥ १६ ॥5 हये बळी सांभळ्या अण सांभळ्या आधी अधिकार कहे छे॥ ___ अर्थ ॥ १७ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । स० जाणतो थको । वा० वळी । अ० विसरत्तो थको एटले नवदीशक्षितने उवठाण एटले वढी दीक्षा देवानं जाणतो थको अथवा अण जाणतो थको । वा० वळी । प० (सात दीन चार मास तथा छ मास) उपरांत । द० दस । रा० रात्री लगे । क० महाव्रत रुप कल्प आचारने विषे । क० छ जीवणीयादिक सूत्रार्थ प्राप्त ययो । भि० साधुने । नो० न । उ० महाव्रतने विपे उवठाण न करे तो आचार्यने प्रायश्चित । क० सूत्रार्थ प्राप्त साधुने । ECA-%A3-54RENCER.-ECCAS Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ७१ अ० । या. इहां । सेते । के० कोइ । मा० पितादिक वडा जेणे संघाते दीक्षा लीधी छे तेने वडो करवा भणी बां। करतेने सत्रार्थ भणावे तो। न० नथी । से० तेने । के० कोइ । छे० छेद । वा० अथवा । ५० परिहार (तप प्रायश्चित ) ।उद्देसओ. वा वळी । न नथी । या. इहां । से० ते । के० कोई । मा० पितादिक बडो । क. सूत्रार्थ भणाववा-लायक तो। सं० |॥४॥ एकवर्ष लगे । त० तेने । त० ते । प० पदवी । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्य पदवी । उ० देवी कल्पे नहि ॥ १७॥ मूळपाठ ॥ १७ ॥ आयरियउवज्काए' सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसरायकप्पाओ .कप्पागं जिक्युं नो उवट्ठावेइ. कप्पाए अस्थि याइं से केश माणणिो कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा. नत्थि याई से के माणणिजे कप्पाए, संवहरं तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरिय उदिसित्तए ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ आचार्य उपाध्याय नवदीक्षितने दीक्षा देवानो दिवस नथी त्यारे संभाळे ने दीक्षा देवानो दिवस के ते दिने सभाळता नथी. वळी (सात दिन तथा चार मास तथा छ मास उपरांत)१० रात्रि लगे महावत रुप कल्प आचार I ६ तथा छ जीवणीयादिक सूत्रना अर्थने प्राप्त थया साधुने महावतने विष उठावण न करतो आचार्थने प्रायश्चित आवे पण जो सूत्रार्थ प्राप्त साधुना काइ पित दिक वडा होय जेनी संघाते ते साधुए दीक्षा लीधी छे ने तेने वडेरो करवो ते भणी ते १P Hadds (पी. एचमां वधारे) य. २ Hadda (एचमां वधारे ) वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणितं वा गणावच्छेइयत्तं वा, . है॥७१॥ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REG साधनो पिता सत्रार्थ भणे त्यांमुधी उठावण करे नहि तो ते आचार्यने काइ दीक्षानो छेद अथवा तपर्नु प्रायश्चित आवे नहिं. पण जो कोइ पितादीफ बढेरो सुत्र मणाववा लायक न होय तो आचार्यने एक वरस लगे आचार्य वगरे पदवी देवी कल्पे 4 नहि ॥ १७ ॥ ए नवदिक्षित साधुना आचारनो अधिकार कह्यो. ते साधुतो भणवाने अर्थे अनेरा गच्छने विषे पण जाय ते 4. भणी इहां भणवाने अनेरा टोळे जाय ते अधिकार कहे छे ॥ अर्थ ॥ १८ ॥ मि० साधु । य० वळी । ग० गच्छथकी । अ० अंडी नीकळे (वृहत कल्पमां कयु छे तेम )। अ० 18 अनेरो । ग० गच्छने । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरे । तं० तेवारे । च० वळी । के० कोइएक । सा० साधर्मिक साधु तेने । पा० देखे देखीने तेने । व० साधु एप पुछे । कं० शुं । अ० अहो आर्यो । उ० कया गच्छने अंगीकार करीने । वि० विचराछो । जे जे साधु । त० तेयार पछी त्यां । स० सर्व । रा० रत्नादिक साधुनी नेत्राए छु एम । तं० तेने । व० कहे । रा. रत्नादिक साधु । तं तेने। च० कहे । अ० अहो । भ० हे पूज्य । क० केनी। फ० नेश्राए विचरो छो। जे जे । त. त्या ते गच्छमां । स० स। व० बहु । सु० सुत्री। तेनी नेश्राए विचरुं छ। एम। तं० तेने । व० कहे। जं० जेम । चाचळी । से० ते । भ० (वह श्रुत) भगवंत । व० कहेशे । त० तेनी। आ० आज्ञा । उ० उववाय । व० वचन । निक निदेश । चि० रदिश ।। १८ ।। मूळपाठ ॥ १८ ॥ निवखू य गणाओ अवकम्म अन्नं गणं जवसंपत्तिाणं विदरेजा, तं च केइ साहम्मिए पासित्ता' वएगा। कं अजो जवसंपत्तिाणं विहरसि ? १ 11. aelds (Qचमा वशरे ) तं. USERSEEDERESTER intertex-ALAchAR- Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहार ० ।। ७२ । जे तत् सव्वराइणीए तं वएका. राइणीए तं वएका । यह जन्ते कस्स कप्पाए ? जे तत्थ सङ्घबहुसुए तं वएका, वासे जगवं वक्खड़ तस्स आणाउववायवयणनिसे चिट्ठिस्सामि ॥ १८ ॥ भावार्थ ॥ १८ ॥ साधुच्छने छांडीने ( बृहत कल्पमां कहुँ छे तेम) अन्य गच्छमां ज्ञानादिक निमित्ते जइ रहे केमके ते गच्छमां गीतार्थ छे माटे ते गच्छ अंगीकार करीने विचरतो थको ते वारे ते साधुने कोइ साधर्मिक साधु देखीने पूछे के हे आर्य साधु ? कया गच्छने अंगीकार करी विचरोछो ते वारे ते गच्छमां जे सर्व रत्नादिक साधु तेना नाम कहीने ते तेने कहे ते साधुओनी नेश्राए रहुं छं. रत्नादिक साधु तेने कहे अहो पूज्य केनी नेथाए विचरो छो ? ते वारे ते कहे जे ते गच्छां बहुत तेनी नेाए विचरुं छं. जेम वळीं ते भगवंत कहेशे तेम तेनी आज्ञा वचन प्रमाणे रहिथं ॥ १८ ॥ ए साधु भणवा आश्री कहुँ, तेतो जुदो पण विचरे ते भणी इहां जुदा विहार करे तेनी विधि कहे छे ॥ अर्थ ॥ १९ ॥ च० घणा । सा० साधर्मिक । इ० वांछे । ए० एकठापणे । अ० विचरवो । चा० रहेको । चा० चालवो । क० कल्पे । नो० न । ०हूं० तेने । थे० स्थिवरने । अ० विना । आ० पुछये । ( पुछ्याविना ) । ए० एकठा । अ० विचरखुं चा० एकठा रहे । चा० चालबुं ( कल्पे नहि ). तो हवे केम कल्पे ते कहे छे । क० कल्पे । ०६० वळी । थे० स्थिवरने | आ० पूछीने । ए० एकठा । अ० विचरवो । चा० भेळा रहेवो । चा० चालवो । थे० स्थिवर । य० वळी । से० तेहने । वि० आज्ञा आपे तो । ए० एम। हं० तेने । क० कल्पे । ए० एकठा । अ० विचरत्रो । चा० रहेवो । चा० चालवो | ये० स्थिवर । य० बळी | से० तेने । नो० न । वि० आज्ञा आपे तो । ए० एम। ०० तेने । नो० न । क० कल्पे । ए० एकठा । उद्देसओ ॥ ४ ॥ ।। ७२ ।। Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० विचरो । चा० रहेको । चा० चालवो । जं० जे कोइ । त० त्यां । थे० स्थिवरनी । अ० आज्ञा विना एकठा । अ० विचरं । चा० रहें | च० चालबुं करे । से० तेने । सं० जेटला दिवस आम्झा विना विहार करे तेटला दिवसनो । ० दीसानो छेद | वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित पण पाये । वा० वळी ॥ १९ ॥ मूलपाठ ॥ १९ ॥ वढ्वे साहम्मिया इबेजा एगयओ अनिनिवारियं चारए. 'कप्पर नो हं थेरे अापुवित्त गयो अभिनिचारियं चारए, कप्पइ हं येरे आपुवित्ता एगयो अनिनिचारियं चारए. थेरा य से वियरेता एव पहं कप्प एगयो अनिनिचारियं चारए, थेरा य से नो वियरेजा एवं पहं नो कप्पइ एगयओ अनिनिचारियं चारए जं तत्थ थेरेहिं अविइसे अनिनिवारियं चरन्ति, से सन्तरा ए वा परिहारे वा ॥ १९ ॥ भावार्थ ॥ १९ ॥ घृणा साधर्मिक साधु एकटा विचरवा, रहेवा चालवा इच्छे तो स्थिवरने पूछया विना तेम विचरयुं, रहें के चालवं कल्पे नहि. स्थिवरने पूछीने एकठा विचरयुं, रहेवु, चालबुं कल्पे. जो स्थिवर आज्ञा आपेतो एकटा विचरतुं रहें, चालबुं कल्पे ने स्थिवर आज्ञा आपे नहिं तो उपर मुजब एकठा विचरखुं, रहेवुं, चालबुं कल्पे नहि, जो कोइ साधु त्यां (एच) एवं ४H (एच ) जे. १H (एच) जो हूं कप्पर. २ Hadds ( एचमां वधारे ) णं. ३ ૧૩ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ववहार ०७३ स्थिवरनी आक्षा विना एकठा विचर रहे चालवार्नु करे तेने जेटला दिवस आज्ञा विना विहार करे तेने तेटला दिवसनो छेद अथवा सपर्नु प्रायश्चित आवे ॥ १९॥ ए आज्ञा सहित विचरतुं का. हवे आज्ञा विना विचरे तो तेने प्रायश्चित कहे छे॥ ___अर्थ ॥२०॥ च० आज्ञा विना चालवाने । प. प्रवयो। भि० साधु । जा० ज्यांलगे । च० चार । रा. रात्री। अथवा । पं० पांच । रा० रात्री । वळी । थे० स्थिवरने । पा० देखीने । स० ते (आज्ञा विना प्रवया ते ) सत्यपणे । च० वळी । ए० ए रीते । आ० आलावे । स० ते (आज्ञा विना प्रवो ते) सत्यपणे । च० वळीं । ए० ए रीते । प० पडिकमे । स० ते (आज्ञा) सत्यपणे । च० वळी । ए० ए रीते आज्ञा । ओ० उवग्रहीने । (लइने) । पु० पूर्वलीज । अ० आज्ञाने विषे ।। चि० रहे । अ० हाथनी हथेलीनी रेखा मुकाय एटलो थोडो । ल० काळ । अ० पण । ओ० आज्ञा विना रहे नहिं ॥ २० ॥ मूळपाठ ॥ २० ॥ चरियापविढे भिक्खू जाव चउरायपञ्चरायायो थेरे पासेजा, सच्चेव आलोयणा स चेव पमिकमणा स चेव ओग्गहस्स पुवाणुन्नवणा चिट्ठइ अहा लन्दमवि ओग्गहे ॥ २० ॥ भावार्थ ॥२०॥ आज्ञा बिना चालवाने प्रवयों साधु ज्यांलगे चार, पांच रात्री वळी विचरीने स्थिवरने देखीने मनी आज्ञा विना विचर्यो ते सत्यपणे आलोवे, पडिकमे, आज्ञा लइने पुर्वली आज्ञाने विषे रहे ने हाथनी हथेळीनी रेखा मु. काय तेटलो काळ पण आज्ञा विना रहे नहिं ॥२०॥ १H (एचमां) चउरायं वा पञ्चरायं वा. ५पानत. ॥७३॥ Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A २१॥च० आज्ञा विना चालवाने । ५० प्रवयो । भि० साधु । ५० उपरांत । च० चार । रा० रात्री। अथवा । H० पांच । रा० रात्री बळी । आज्ञा विना रहीने । थे० स्थिवरने । पा० देखीने । पु० वळी । आ० आलोवे । पु० वळी। १० पटिकमे । पु० वळी । छे० (स्थिवर तेने ) जेटला दिवस आज्ञा विना रहे तेटला दिवसनो छेद अने। प० प्रायश्चितने वि० स्थाप ते केवी रीते ते कहे छे । भि० साधु । भा० संजमना भावने राखवाने । अ० अर्थे एटले त्रीजु व्रत राखयाने अर्थ । दो० वीजीवार । पि० वळी । ओ० आज्ञा । अ० मागीने । सि० रहेg होय । वळी ते साधु केवी रीते रहे ते याद है । अ० आज्ञा दीओ । भ० हे भगवंत । मि० मुजने । एहवी । ओ० आज्ञा अवग्रहीने रहेवू पण ते आज्ञारुप अवग्रह विना । अ० हाथनी रेखा सुकाय एटलो थोडो । लं० काळ पण । धु० निश्चे । नि० न रहे । जे पूज्यनी । वे० आज्ञा विना ४ न रहेयं एम वचने कहीने । त० तेवार । प० पछी । का० कायाए फरी । सं० फस्यो तप प्रमुखने ॥ २१ ॥ मूळपाठ ॥ २१॥ चरियापविढे भिक्खू परं चनरायपञ्चरायाओ थेरे पासेड़ा, पुणो यालोएडा पुणो पडिकमेजा पुणो छेयपरिहारस्त जवट्ठाएजा. निक्खूनावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुन्नवेयवे सिया। अणुजाणह भन्ते मियो- . ग्गहं अहालन्दं धुवं नितियं वेट्टियं, तो पन्ना काय संफासं ॥ २१ ॥ १H (एचमां) चरायं वा पञ्चरायं वा. २ (एचमां) छेयस्स परि'. ३ H adds ( एचमां वधारे) कप्पड़ से । एवं वदित्तए. ४ T H adds (टी. एचमां वधारे ) निच्छइयं. 1-0 RLSHREASO. + % E Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HEROES वहार०/भावार्थ ॥२१॥ कोई साधु आज्ञा विना बीजा गच्छमां चालवाने प्रवयों आज्ञा विना चार रात्री अथवा पांच रात्री उद्देसओ ७४ ॥ उपरांत रह्यो, पछी स्थिवरने देखीने फरी आलोवे, फरी पडिकमे, आज्ञा विना जेटला दिवस बीजा गच्छमा रह्यो तेटला ॥४॥ दिवसनो छेद प्रायश्चित अथवा तपर्नु प्रायश्चित स्थिवर आपे ते शी रीते ते कहे छे. साधु संजमना भावने राखवाने अर्थे (त्रीजुं व्रत राखवाने ) वीजीवार स्थिवरनी आज्ञा मागीने रहे. वळी ते साधु केवी रीते रहे ते कहे छे. ते साधुने एम कहेQ कल्पे के हे भगवंत ? वीजा गच्छमां रहेवानी आज्ञा मुजने आपो तो रहुं. आज्ञा विना अनेरा गच्छमां हाथनी रेखा सुकाय | तेटलो काळ पण रहे, नहिं ( रहेवा इच्छवु नहिं ), पछी आज्ञा विना रह्यो ते माटे फायाए करी तपने फरसे ॥ २१॥ ए | आज्ञा विना विचरवा आश्री कह्यु ॥ अर्थ ॥ २२ ॥ च० चालवा थकी। नि० निवत्यो । भि० साधु । जा० ज्यांलगे । च० चार । रा० रात्री। पं० पांच । रा० रात्री । थे० स्थिवर तेने । पा० देखे । देखीने । स० ते सत्यपणे । च० वळी । ए० ए रीते । आ० आलोवे । स० ते सत्यपणे । च० वळी । ए० ए रीते । ५० पडिकमे । स० ते सत्यपणे । च० वळी । ए० ए रीते आज्ञा । ओ० उवग्रहीने | (लइने)। पु० पुर्व लीज । अ० आज्ञाने विषे । चि० रहे । अ० थोडी । ल० वार । अ० पण । ओ० आज्ञा विना रहेनहिं ॥२२॥ मूळपाठ ॥ २२ ॥ चरियानियट्टे निक्खू जाव चउरायपञ्चरायाओ थेरे पासेजा, सच्चेव । आलोयणा सञ्चेव पमिकमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुवाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालन्दमवि ओग्गहे ॥ २५ ॥ 154 ७४॥ - ECEOS Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ २२ ॥ जे साधु वीजा गच्छमां आज्ञा विना चालवा थकी निवत्यो ज्यांलगे चार रात्री, पांच रात्री आज्ञा |DI बिना वीजा गच्छमा रह्या पछी स्थिवर तेने देखे देखीने सत्यपणे (आज्ञा विना वीजा गच्छमां रह्यो माटे) आलावे पडि-18 कमे आशा लइने पूर्वली आज्ञाने विपे रहे ने हाथनी हथेलीनी रेखा मुकाय तेटलो काळ पण आज्ञा विना वीजा गच्छमां है रहे नहिं ।। २२ ॥ अर्थ ॥ २३ ॥ च० चालवा थकी । नि० निवत्यो । भि० साधु आज्ञा विना। ५० उपरांत | च० चार । रा० रात्री ।। पं० पांच | रा० रात्री पछे । थे० स्थिवर तेने । पा० देखे देखीने । पु० वळी । आ० आलोवे । पु० वळी । प० पडिकमे । ६ पु० वळी । छै० जेटला दिवस आज्ञा विना रह्यो ते दिवसनो छेद अथवा । प० परिहार तपे स्थिवर तेने । उ० स्थापे । पछी 5 केवी रीते रहे ते कहे छे । भि० साधु । भा० संजमना भावने राखवाने । अ० अर्थे । दो० वीजीवार । पि० वळी । ओ० ले 14 आशा । अ० मागीने । सि० रहे । कल्पे ते साधुने एम फहेवू । अ० आज्ञा दीओ । भ० हे पूज्य ? | मि० मारे । ओ० आज्ञा 1] लइने रहे, पण आज्ञा विना । अ० थोडो । लं० काळ पण । धु० निश्चे । नि० न रहेवू । वे० पूज्यनी आज्ञा विना रहेवाथी श्री निवयों है एम वचन कहीने । त० ते वार । प० पछी । तप प्रमुखने । का० कायाए करी । सं० फरसे ॥ २३ ॥ मूळपाठ ॥ २३ ॥ चरियानियट्टे जिक्खू परं चउरायपञ्चरायायो थेरे पासेजा, पुणो. आलोएडा पुषो पडिक्कमेड़ा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएजा. निक्खुजा Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 956UCER- C उद्देसओ. वकार० वस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अणुन्नवेयवे सिया। अणुजाणह जन्ते मिओ ॥४ ॥ ।७५ ॥ ग्गहं अहालन्दं धुवं नितियं वेउहियं, तो पन्जा कायसंफासं ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ आज्ञा विना चाळवा थकी निवयों साधु आज्ञा विना चार रात्री अथवा पांच रात्री उपरांत बीजा | al गच्छमा रहे पछी स्थिवर तेने देखे देखीने ते बीजीवार आलावे, पडिकम्मे, जेटली रात्री आज्ञा विना रह्यो तेटली रात्रीनो || | छेद अथवा तप प्रायश्चित स्थिवर तेने आपे. वळी ते साधु आज्ञाव्रत राखवा भणी संजमना भावे बीजीवार स्थिवरनी आजा मागीने बीजा गच्छमां रहे. कल्पे ते साधुने एम कहेवुके हे भगवंत पूज्य मने बीजा गच्छमा रहेवानी आज्ञा दीओ एम कहीने आजा मळेथी बीजा गच्छमां रहे कल्पे पण आज्ञा विना हाथनी हथेलीनी रेखा सुकाय तेटलो काळ पण रहेवू नहि, रहेवा इच्छ नहि. जे साधु पूज्यनी आज्ञा विना रहेवाथी निवयों छे ते साधु ते वार पछी कायाए तप प्रमुखने स्पर्शे ॥२३॥ अर्थ ॥ २४ ॥ दोबे। सा० साधर्मिक साधु । ए० एकठा थइने । वि. विचरे छे। तं० ते। ज० कहे छे तेमां से एक शिष्य छे ने । य० वळी । रा० एक रत्नादिक गुरु छे । य० वळी । त० त्यां ते बहु माहे । से० ते शिष्य । अ० अने राने । प० श्रुत शिष्यनो परिवार घणो छ । रा० वडा गुरुने । अ० थोडो छे श्रुत शिष्य परिवार । से० शिष्यने । त० तेवार | हि पछी । रा. रत्नादिक गुरुने । उ० अंगीकार करीने सेवा वडाइ देवी एटले घणी सेवा करवी एम घणे गुणे करी अंगीकार करीने विचरे । भि० भिक्षानुं संविभाग आपे । उ० तथा विनयादिक वैयावच करवा भात पाणी । च. आदी। द० आणी आपनो । क० वढाने यथायोग्य कल्प नीपजे । गुरुने भक्त आणी दीए अने विनयादिक सर्व कार्य करे ॥ २४ ॥ १ Hadds ( एचमां बधारे) कप्पइ से एवं वदितिए, २ H adds ( एचमां वधारे) निच्छइयं. ॥ ७५॥ Geector Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ RECEN4% AE% मृळपाठ ॥ २४ ॥ दो साहम्मिया एगयो विहरन्ति, तंजहा । सेहे य राइणीए य. तत्थ __ सेहतराए पलिबन्ने, राणीए अपलिबन्ने. सेहतराएणं राइणीए जवसंपङियत्वे, निक्खोववायं च दलयइ कप्पागं ॥ २४ ॥ भावार्य ॥ २४ ॥ वे साधर्मिक साधु एकठा थइने विचरे छे ते कहे छे, तेमां एक शिष्य छे ने एक रत्नादिक गुरु छ तेमां ४ शिष्यने भणेला शिष्योनो परिवार घणो छे ने गुरुने तेवो परिवार थोडो ले. ते शिष्य जेनो शिष्य परिवार घणो छे तेणे रत्नादिक गुरुने रत्नादिक गुल्नी समीपे आवीने सेवा वडाइ देवी, घणी घणी सेवा करवी एम घणा गुणे करी अंगीकार परीने विचरे, भिक्षामा संविभाग करे, विनय वैयावचादिक करे, भात पाणी आणी आपे एम वडाने यथायोग्य कल्प नीपजे तेम भक्त आणी दीए अने विनयादिक सर्व कार्य करे ॥ २४ ॥ एम शिष्य आश्री कयु. हवे गुरु घणा शिष्य परिवारे होय तो शुं फरे ते कहे जे ॥ . अर्थ ॥ २५ ॥ दो० थे । सा० साधर्मिक साधु । ए० एकठा । वि० विचरे । तं ते कहे छ । से० शिष्य | य० तथा । रा० रत्नादिक गुरु । य० वळी । त० ते वे मांहि । रा० गुरु छे ते । प० तेने शिष्य परिवार घणो छ । से० शिष्य । अ० अन्यतर एटले वीजा शिष्यने । अ० शिष्य परिवार थोटो छे। इ० इच्छा आवे तो । रा० ते गुरु । से० ते शिष्यने । उ० अंगीकार करीने पढीवर्ने एटले पासे राखे । इ० इच्छाए । नो० न । उ० पडिवले एटले इच्छा न होयतो न पासे राखे । इ० इच्छा होयतो । भि० साधुने । उ० आहार पाणी वैयावच । द० करे । क० वडा साधुनी। इ० इच्छा न आवे तो। नोन भात पाणी। द० आणी आपे वैयावच न करे। क० वडो साधु ॥२५॥ .4ARC*4 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 COCCE % E CASI मूळपाठ ॥ २५ ॥ दो साहम्मिया एगयओ विहरन्ति । तंजहा । सेहे य राइणीए य. 1 उद्देसमो. ॥४॥ तत्थ राइणीए पलिछन्ने, सेहतराए अपलिबन्ने. इला राणीए सेहतरागं उवसंपङाश् इबा नो उवसंपजाइ, इजा निक्खोववायं दलयइ कप्पागं इडा नो दलयइ कप्पागं ॥ २५ ॥ भावार्थ ॥ २५ ॥बे साधर्मिक साधु एकठा विचरे तेमां एक शिष्य छे ने बीजो गुरु छे तेमां गुरुने घणा शिष्यनो परि| वार छे ने शिष्यने शिष्य परिवार ओछो छे. जो गुरुनी इच्छा थाय तो शिष्यने अंगीकार करी पासे राखे, इच्छा न आवे # तो शिष्यने पासे राखे नहीं. इच्छा आवे तो शिष्यने आहार पाणी आणी आपी वैयावच करे ने बडा साधुनी इच्छा न आवे तो भात पाणी आणी न आपे ने वैयावच न करे ॥२५॥ साधु कह्या ते सरखा दावे न रहे ते भणी हवे सरखाने रहेचानो अधिकार कहे छ । अर्थ ॥ २६ ॥ दो बे। भि० साधु । एक आहार पाणी भेळा सहित एकठा । वि०विचरता । नो० न । हं० वळी। IPI क० कल्पे (न कल्पे) तेमने बेहुने एकने वडेरो कर्या विना। अ० माहोमांहि । उ० अंगीकार करीने । वि० विचर, कल्पे | नहि । क० कल्पे । हं० वळी । अ० लधुए। रा० रत्नादिक वडेराने । अ० माहोमांहि । एकेकने वडापणे । उ० अंगीकार || करीने । वि०विचर ॥ २६ ॥ १H Omits ( एचमां नथी) कप्पागं. D ७६॥ C लाल % AD% Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ मूळपाठ ॥ २६ ॥ दो भिक्खुणो एगययो' विहरन्ति, नो पहं कप्पइ अन्नमन्नं उवसंप जित्ताणं विहारित्तए. कप्पर पहं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपजिताणं विहरित्तए ॥ २६ ॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ वे साधु साथै विचरता थका सरखाए वढेराने माहोमांहि वंदणा कर्या विना रहेवं कल्पे नहि. लघुए चडेराने मांदोमांहि बंदणादिक करीने माहोमांहि एकेकने वढापणे अंगीकार करीने विचर, कल्पे ॥ २६ ॥ उपर सामान्य साधु आधी कपु. हवे गणावच्छेदक आश्री कहे छे । अर्थ ॥ २७ ॥ दो वे । ग० गणावच्छेदक । ए० एकठा । वि० विचरे छे । नो० नहिं । ण्हं० वळी । क० कल्पे एकवीजाने वढेरो कर्या विना । अ० माहोमांहि । उ० अंगीकार करी । वि० विचरवू न कल्पे। क. कल्पे । हं० वळी । अ० लघुए । रा० मोटा वडेराने । अ० माहोमांही एकेकने वडापणे । उ० अंगीकार करीने । वि० विचर, कल्पे ॥ २७ ॥ मृळपाठ ॥ २७ ॥ दो गणावलेइया एगययो विहरन्ति, नो एहं कप्पइ अन्नमन्नं उवसं पजित्ताणं विहरित्तए. कप्पइ एहं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपत्तिाणं विहरित्तए ॥ २७ ॥ १r. H (टी. एचमां ) एगओ. २ H always ( एचमां हमेशां) आहा. -ॐनमल -EASE Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बगहार० ३७७ ।। भावार्थ ॥ २७ ॥ वे गणावच्छेदक साथे विचरता थकां सरखाए वडेरो करी मांहोमांही वंदना कर्या विना रहेवु कल्पे fade सरखे भावे रहेतुं न कल्पे, लघुए मोटा वढेराने वंदना करी मांहोमांही विचरतुं कल्पे ॥ २७ ॥ अर्थ ॥ २८ ॥ दो० वे | आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । ए० एकठा । वि० दिचरे छे । नो० नहि । ०६० बळी | क० कल्पे एक वीजाने वडेरो कर्या विना एटले सरखे भावे । अ० मांहोमांहि । उ० अंगीकार करीने । वि० विचरतुं न कल्पे | कं० कल्पे । ०६० बळी । अ० लघुए । रा० मोटा वडेराने । अ० मांहोमांहि एकेकने वढापणे । उ० अंगीकार करीने । ० विकल्पे ॥ २८ ॥ यरियउवज्जाया एगयओ विहरन्ति नो एवं कप्पइ अन्नमन्नं उवसंपत्तिाणं विहरित्तर. कप्पइ एवं अहारापियाए अन्नमन्नं उवसंपकित्ताणं विहरितए ॥ २८ ॥ मूळपाठ ॥ २८ ॥ दो भावार्थ ॥ २८ ॥ एम आचार्य उपाध्याय एकठा विचरे छे तेमणे अन्योअन्य एक बीजाने वडेरो कर्या विना एटले सरखे भावे विचर कल्पे नहि. लघुए वडेराने वंदना करीने रहेवुं कल्पे ॥ २८ ॥ उपर वे साधु आश्री कहुं, हवे घणा साधु आश्री कहे छे ।। अर्थ ।। २९ ।। ब० घणा । भि० साधु । ए० एकठा । वि० विचरे तेने । नो० नहिं । ०६० वळी । क०. कल्पे । अ० उद्देसओ 11 8 11 ॥७७॥ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ० २ -C-61-04- 11 -2-- १. अन्यो अन्य वडेरो कर्या विना | उ० अगीकार करीने । वि० विचरg (कल्पे नहिं)। क. कल्पे । ण्ड० वळी । अ० लघुए । रा० वढेरा साथे वंदणा करी । अ० पाहोमांहि । उ० अंगीकार करीने । वि० विचर कल्पे ॥ २९ ॥ 5. मुळपाठ ॥ २७ ॥ ववे निक्खुणो एगययो विहरन्ति, नो एहं कप्पइ अन्नमन्नं जवसं पजित्ताणं विहरित्तए. कप्पर एहं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उरसंपत्तिाणं विहरित्तए ॥ ए॥ भावार्थ ।। २९ ॥ घणा साधुओ एकठा थइ विचरे तेमणे अन्योअन्य वडेराने कर्या विना अंगीकार करीने विचरवू कल्पे हैं | नदि. लघुए वडेराने अंगीकार करीने विचर, फल्पे ॥ २९ ॥ ___ अर्ध ।। ३० ॥ २० घणा । ग० गणावच्छेदक । ए० एकटा । वि० विचरे छ। नो० नहिं । हं० वळी । क० कल्पे एकवीजाने वडेरो फर्या विना । अ० माहोमांहि । उ० अंगीकार करी । वि० विचरवू न कल्पे । क० कल्पे । ६० वळी । अ० लघुए । रा० मोटाने वढेरो करी । अ० माहोमांहि । उ० अंगीकार करी । वि० विचर, कल्पे ॥ ३०॥ मूळपाठ ॥ ३० ॥ वहवे गणावलेइया एगयो विहरन्ति, नो एहं कप्पइ अन्नमन्नं उव संपत्तिाणं विहरित्तए. कप्पइ महं अहाराणियाए अन्नमन्नं जवसंपजि. ताणं विहरित्तए ॥ ३०॥ 01-24. Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5ना उद्देसमो. ॥४॥ 14-2- पहार भावार्थ ॥ ३० ॥ घणा गणावच्छेदक एकठा विचरे छे तेमने मांहोमांहि एकेकने वडेरो कर्या विना विचर कल्पे नहीं. पण लघुए मोटाने वडेरो करी तेने वंदणा करी माहोमांहि विचर कल्पे ॥ ३०॥ अर्थ । ३१ ॥ व० घणा । आआचार्य । उ० उपाध्याय । ए० एकठा । वि०विचरे छे। नो० नहि। ण्ह० वळी । क. कल्पे एक बीजाने वडेरो कर्या विना। अ० माहोमांहि। उ० अंगीकार करी। वि०विचर न कल्पे। क० कल्पे । ण्ह० वळी । अ० लघुए । रा० मोटाने वडेरो करी । अ० माहोमांही । उ० अंगीकार करी । वि० विचरवं कल्पे ॥ ३१ ॥ मूळपाठ ॥ ३१ ॥ बहवे आयरियनवज्काया एगययो विहरन्ति, नो एहं कप्पइ अन्नमन्नं उवसंपतित्ताणं विहरित्तए. कप्पइ एहं अहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपति त्ताणं विहरित्तए ॥३१॥ भावार्थ ॥ ३१ ॥ घणा आचार्य उपाध्याय एकठा विचरे छे, एक बीजाने वडेरो कर्या विना माहोमांहि एकठा विचर, न कल्पे, पण लघुए मोटाने वडेरो करी तेने वंदणा करी एकठा विच कल्पे ॥३१॥ अर्थ ॥ ३२ ।। ब० घणा । भि० साधु । ब० घणा । ग० गणावच्छेदफ । ब० घणा | आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । लिए. एकठा । वि० विचरे । नो० न । ण्ह० वळी । क. कल्पे । अ० माहोमांहि बडेरो कर्या विना। उ० अंगीकार करीने । 2वि.विचर, कल्पे नहीं। एटले सरखे दावे कल्पे नहि तो केम कल्पे ते कहे छे। क० कल्पे। हं० वळी । अ० लघुए। रा० बडेराने वंदणा करी । अ० माहोमांहि । उ० अंगीकार करीने । वि०विचरखं कल्पे ॥३२॥ त्ति० एम। बे० हुं कहुंछु ॥ बाग ... .. .. 153414 ।। ७८॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाट ॥ ३२ ॥ वहवे भिक्षुणो वहवे गणावलेइया वहवे आयरियनवज्काया एगयओ, विहरन्ति, नो एहं कप्पइ अन्नमन्नं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए. कप्पइ एहं यहाराइणियाए अन्नमन्नं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए ॥ ३२ ॥ ति बेमि ॥ भावार्थ ॥ ३२ ॥ घणा साधुओ, घणा गणावच्छेदक, घणा आचार्य, उपाध्याय एकठा विचरे तेमने माहोमांहि वडेरो कर्या विना अंगीकार करीने विचरवं कल्पे नहिं ( चोमास वडेरो करीने रहेQ कल्पे ) सरखे दावे एटले एक वीजाने सरखी वंदणा करी रहेषु कल्पे नहि. लघुए वडेराने वंदणा करी (शीयाळो उनाळो) एक वीजाने अंगीकार करीने रहेQ कल्पे ॥३२॥ एम मुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे के जेम में श्री महावीर देव पासे सांभळयुं तेम में तुज प्रत्ये कधु ॥ अर्थ ॥ व० व्यवहारनो । च० चोयो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥ ४ ॥ मूळपाठ ॥ ववहारस्त चउत्थो उद्देसओ समत्तो ॥४॥ भावार्थ ॥ व्यवहारसूत्रनो चोथो उद्देसो पुरो थयो ॥ ४ ॥ RADHAARA ॥ (एच) गओ. २ Haors (एचमां वधारे) वासावासं वत्थए कप्पइ पवित्तिए क. ३P B, Hadds (पी.बी एचमां वधारे ) हेमन्त गिम्हासु. ४ In H follows (एचमा छेवट)ति बेमि. १४ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार० ॥ १९ ॥ ववहारस्स पञ्चमो उद्देसओ. व्यवहार सूत्रनो पांचमो उदेसो. अर्थ ॥ १ ॥ नो० न । क० करुपे । प० प्रवर्तणी साध्वीने । अ० पोता सहित । वि० वे जणीने । हे० शीयाळा | गि० उनाळाने विषे । चा० चालबुं ॥ १ ॥ मूळपाठ ॥ १ ॥ नो कप्पर पवत्तिणी अप्पबिइयाए हेमन्तगिम्हासु चारए ॥ १ ॥ भावार्थ ॥ १ ॥ प्रवर्तणी साध्वीने शीयाळे उनाळे पोता सहित बे जणीए विचरतुं न कल्पे ॥ १ ॥ अर्थ ॥ २ ॥ क कल्पे । प० प्रवर्तणी साध्वीने । अ० पोता सहित । त० त्रण जणीने । हे० शीयाळे । गि० उनाळे । चा० चाल ॥ २ ॥ मूळ पाठ ॥ २ ॥ कप्प पवत्तिणीए अप्पतइयाए हेमन्तगिम्हासु चारए ॥ २॥ भावार्थ ॥ २ ॥ प्रवर्तणी साध्वीए पोता सहित त्रण जणीए शीयाळे उनाळे चालवं कल्पे ॥ २ ॥ अर्थ || ३ || नो० न । क० कल्पे । ग० गणावछेदणीने । अ० पोता सहित । त० त्रण जणीने । हे० शीयाळे । गि० उनाळे | चा० चालबुं ॥ ३ ॥ १ Halway ( एचमां हमेशा ) पवि PB b in same cases. पी. वी. वीमां कोइक जग्याए . ) . उद्देसओ ॥ ५ ॥ ॥ ७९ ॥ Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाठ || ३ || नो कप्पड़ गणावलेइणीए अप्पतश्या ए हेमन्तगिम्हासु चारए ॥ ३ ॥ भावार्थ || ३ || गणावच्छेदणीने पोता सहित त्रण जणीने शीयाळे उनाळे चालधुं कल्पे नहीं || ३ || अर्थ || ४ || क० कल्पे | ग० गणात्रच्छेदणीने । अ० पोता सहित । च० चारजणीने । हे शीयाळो । गि० उनाळो । चा० चालं ॥ ४ ॥ मृळपाठ ॥ २ ॥ कप्प‍ गावडे इपीए अप्पचउत्थाए हेमन्तगिम्हासु चारए ॥ ४ ॥ भावार्थ || ४ || गणावदणीने पोता सहित चार जणीने शीयाळे उनाळे चालबुं कल्पे ॥ ४ ॥ उपर शीयाळा उनाळानी आटा दीननी बात कही, हवे चोमासापां केम रहेषु ते कहे है | अर्थ ॥ ५ ॥ नो० न | क० कल्पे । प० प्रवर्तणीने । अ० पोतासहित । त० व्रणजणीने । वा० चोमासुं । व० रहें ॥५॥ सृळपाठ || ५ || नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पतझ्याए वासावासं वत्थए ॥ ५ ॥ भावार्थ ॥ ५ ॥ प्रवर्तणीने पोता सहित त्रण जणीए चोमासुं रहेवं कल्पे नहीं ॥ ५ ॥ अर्थ || ६ || क० क्ल्पे | प० प्रवर्तणीने । अ० पोता सहित । च० चारजणीने । वा० चोमासे । व० रहेनुं ॥ ६ ॥ मूलपाठ ॥ ६ ॥ कप्पड़ पवत्तिणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए ॥६॥ भावार्थ || ६ || प्रवर्तणीए पोता सहित चार जणीए चोमासुं रहेतुं कल्पे ॥ ६॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवहार ० ॥ ८० ॥ अर्थ ॥ ७ ॥ नो० न | क० कल्पे । ग० गणावछेदणीने । अ० पोता सहित । च० चार जणीने । वा० चोमासुं । व० रहेवुं न कल्पे ॥ ७ ॥ मूळपाठ ॥ ७ ॥ नो कप्पइ गणावलेइणीए अप्पचउत्थाए वासावासं वत्थए ॥ ७ ॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ गणावछेदणीए पोता सहित चार जणीने चोमासु रहेवुं कल्पे नहीं ॥ ७ ॥ अर्थ ॥ ८ ॥ क० कल्पे | ग० गणावच्छेदणीने । अ० पोता सहित । पं० पांच जणीने । वा० चोमासु । व० रहेवु कल्पे ॥ ८ ॥ मूलपाठ ॥ ८ ॥ कप्पइ गावडेइणीए अप्पपञ्चमाए वासावासं वत्थए ॥ ८ ॥ भावार्थ ॥ ८ ॥ गणावच्छेदणीने पोता सहित पांच जणीने चोमासु रहेवुं कल्पे ॥ ८ ॥ उपर एक आश्री कछु हवे घणी आश्री कहे छे || अर्थ ॥ ९ ॥ से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा | न० नगरने विषे । वा० अथवा । नि० निगमने विषे । वा० अथवा | रा० राज्यधानीने विषे । वा० वळीं । व० घणी । प० प्रवर्तणीने । अ० पोता सहित । त० त्रण जणीने । व० घणी । ग० गणावच्छेदणीने । अ० पोता सहित । च० चार जणीने । क० कल्पे | हे० शीयाळे । गि० उनाळे । चा० विचरतुं । अ० एक बीजानी । नी० नेश्राए ॥ ९ ॥ उद्देसओ. ॥ ५ ॥ ८o Bbv Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐॐॐR- X-A-MECTRESSESE मृळपाठ ॥ ९ ॥ से गामसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणिसि वा वहणं पवत्ति पीणं अप्पतइयाणं वहणं गणावलेइणीणं अप्पचउत्थाणं कप्पक्ष हेमन्तगिम्हासु चारए अन्नमन्नं नीसाएं ॥९॥ भावार्थ ॥ ९ ॥ ते गामने ज्यां लगे संनिवेशने विष घणी प्रवर्तणीने पोता सहित त्रण जणीने, घणी गणावच्छेदणीने पाना सहित चार जणीने शीयाळे उनाळे माहोमांहि एक एकनी नेश्राए विचरतुं कल्पे एटले आपणी शिष्यणी सहित रहेQ पण अनेरानी न गणवी ॥ ९॥ हवे चौमासा आश्री कहे छे ॥ ___अर्थ ॥ १० ॥ से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा । न० नगरने विपे । वा० अथवा । नि० निगमने विषे । वा० अथवा । रा० राज्यधानीने विपे । वा० वळी । व० घणी । प० प्रवर्तणीने । अ० पोता सहित । च० चार जणीने । व० घणी । ग० गणायच्छेदणीने । अ० पोता सहित । पं० पांच जणीने । क० कल्पे । वा० चोमासु । व० रहे, । अ० एक वीजानी । नी० नेश्राए ॥ १० ॥ मृळपाठ ॥ १० ॥ से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणिसि वा बहूणं पवत्ति पीणं अप्पचउत्थाणं वहणं गणावलेइणीणं अप्पपञ्चमाणं कप्पश् वासावासं १H (एचमां) निस्साए. . HAR KOM Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार नारी दा वत्थए अन्नमन्नं नीसाएं ॥१०॥ भावार्थ ॥ २०॥ ते गामने विषे ज्यां लगे सन्निवेशने विषे घणी प्रवत्तणीए पोता सहित चार जणीने, घणी गणावच्छे- al दणीने पोता सहित पांच जणीने चोमासु एक बीजानी नेश्राए रहेQ कल्पे एटले पोतानी शिष्यणी सहित रहेवू पण अनेरानी अधिक ओछी नेथा गणवी नहि ॥१०॥ उपर विचरवा आश्री कडं ने विचरतां थका कोइ एक काळ पण करे, इहां प्रवत्तणी 8 प्रमखे काळ कीधा पछी पाछली केवी रीते विचरे ते अधिकार कहे छे॥ ६ अर्थ ॥११॥ गा० ग्रामानुं ग्राम । दु० जाती थको । नि० साध्वी । य० वळी । जं० जेहने । पु० आगळ | का० क रीने । वि०विचरे । सा० ते वडी साध्वी । आ. कदाचित । वी. काळ करे तो । अ०छे। या. इहां । थ० वळी । का० | कोइएक आचारंग निसीथनी भणनारी । अ० अनेरी साध्वी तेने । उ० अंगीकार करी एटले वडेरी करी तेनी आज्ञा मांहे चाले । एवी योग्य छे तो कल्पे । सा० ते भणनारी साध्वीने । उ० अंगीकार करी वडेरी करी तेनी आज्ञामांहे विचरतुं । न० नथी। या० इहां । थ० बळी । का० कोइ आचारंगादिकनी भणनारी । अ० अनेरी साध्वी । उ० वडेरी करवा योग्य नथी तो। ती तेने । य० वळी । अ० पोते । क० आचारंगादिक निसीथना अध्ययनने विषे । अ० अ। स० समर्थ एम । क० कल्पे । सा० तेने । ए० एक । रा० रात्रीनी । ५० प्रतिज्ञा धारीने । ज० जे । ज० जे । दिदिशाए । अ० अनेरी | सा० साधर्मिक साध्वी आचारंग निसीथनी भणनार वडेरी थइने । वि० विचरे छे। त० ते । त० ते । दि० दिसे । उ० जावु ( कल्पे)। नो० १० (एचमां) निस्साए. Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - K ELEONE मा० ने । क० कल्पे । त० त्यां । वि० विहार । ३० निमिते ( अर्थे ) । ३० प्रवर्तQ रहे । क० कल्पे । सा० ते । IF साधीओने । त० त्यां । का० कोइ रोगादिक कारण | व० निमिते । व० रहेQ । तं० ते साध्वीने । च• f० वळी । का० १ कारण । नि० पुरु थए । १० अनेरी साध्वी । व० कहे । च० वसो रहो । अ० अहो आर्य । ए० एक । रा. रात्री । वा०५ अथवाद। रा० रात्री । वा० बळी । ए० एम । सा० तेने । क. कल्पे । ए० एक । रा० रात्री। वा० अथवा | मैं ० रात्री। वा० बळी । व० रहेवू | नो० न । सा० तेने । क० कल्पे । प० उपरांत । ए० एक। रा० रात्री।। वळी । द० । रा० रात्री वा० बळी उपरांत । व० रहेवू । जं० जे कोइ साध्वी । त० त्यां। १० उपरांत । एक एफ । रा० रात्री । वा० अथवा । दु० वे । रा० रात्री । वा० वळी उपरांत । व० वसे तो । सा० तेहने । सं० जेटली | रात्री रहे तेटली रात्रीनो । छे० छेद । चा० अथवा । प० तपर्नु प्रायश्चित पण आये । वा० वळी ॥ ११ ॥ मळपाठ ॥ ११ ॥ गामाणुगामं दूश्जमाणी निग्गन्थी य जं पुरओ काउं'विहरइ सा आहच्च वीसम्भेजा, अस्थि याई थ काइ अन्ना उवसंपजाणारिहा सा उवसंप किया. नस्थि याइं थ काइ अन्ना उवसंपङाणारिहा तीसे ये अप्पणो कप्पाए १H ( एच ) यह विहरेज्जा. २ ( एच ) वीसु. ३ H adds ( एचमां वधारे ) कापइ (सा). ४ H_adda (एचपां वधारे ) सिया. ५ omits ( एचमां नथी) तीसे य. MARKELA-CAS Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्थए अन्नमन्नं नीसाए॥१०॥ बबहार० १८१॥ ASCHICHERUG%********** भावार्थ ॥ २०॥ ते गामने विषे ज्यां लगे सनिवेशने विषे घणी प्रवत्तणीए पोता सहित चार जणीने, घणी गणावच्छे- र दणीने पोता सहित पांच जणीने चोमासुं एक बीजानी नेश्राए रहेQ कल्पे एटले पोतानी शिष्यणी सहित रहे, पण अनेरानी दा P अधिक ओछी नेश्रा गणवी नहि ॥ १०॥ उपर विचरवा आश्री कयु ने विचरतां थका कोइ एक काळ पण करे, इहां प्रवर्तणी || प्रमुख काळ कीधा पछी पाछली केवी रीते विचरे ते अधिकार कहे छे॥ र अर्थ ॥११॥ गा० ग्रामानुं ग्राम । दू० जाती थको । नि० साधी । य० वळी । जं० जेहने । पु० आगळ । का० कतीने वि०विचरे । सा० ते बढी साध्वी । आ० कदाचित । वी० काळ करे तो । अ० छे । या० इहां। थ० बळी । का० । कोइएक आचारंग निसीथनी भणनारी । अ० अनेरी साध्वी तेने । उ० अंगीकार करी एटले वडेरी करी तेनी आज्ञा मांहे चाले एवी योग्य छे तो कल्पे । सा० ते भणनारी साध्वीने । उ० अंगीकार करी वडेरी करी तेनी आज्ञामांहे विचर । न० नथी। ६ या० इहां । २० वळी । का० कोइ आचारंगादिकनी भणनारी । अ० अनेरी साध्वी । उ० वडेरी करवा योग्य नथी तो। ती० तेने । य० वळी । अ० पोते । क. आचारंगादिक निसीथना अध्ययनने विषे । अ० अ। स० समर्थ एम । क. कल्पे । सा० तेने । ए. एक । रा० रात्रीनी। प० प्रतिज्ञा धारीने । ज० जे । ज० जे । दि० दिशाए। अ० अनेरी । सा० साधर्मिक । साध्वी आचारंग निसीथनी भणनार वडेरी थइने । वि० विचरे छे । त० ते । त० ते । दि० दिसे । उ० जावु ( कल्पे)। नो० १ म (एचमा) निस्साए. 18/" <१ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18/न । सा तेने । क० कल्पे । त० त्यां । वि० विहार । व० निमिते ( अर्थे )। व० प्रवर्तवु रहेQ । क. कल्पे । सा० ते । द साध्वीओने । त० त्यां । का० कोइ रोगादिक कारण | व० निमिते । ५० रहेg । त० ते साध्वीने । च• णं० वळी । का० कारण । नि० पुरुं थए । प० अनेरी साध्वी । व० कहे । व० वसो रहो । अ० अहो आर्य । ए० एक । रा० रात्री । वा०* अथवा । । रा० रात्री । वा० बळी । ए० एम | सा० तेने । क. कल्पे । ए० एक। रा० रात्री। वा० अथवा | # 1x/ रा० रात्री । वा० बळी । व० रहे । नो० न । सा० तेने । क० कल्पे । १० उपरांत । ए० एक। रा० रात्री। न वळी । ८०ये। रा० रात्री। वा० वळी उपरांत । ३० रहे । ज० जे कोइ साध्वी । त० त्यां। १० उपरांत । एक IMI T० रात्री । वा० अथवा । दु० । रा० रात्री । वा० वळी उपरांत । व० वसे तो । सा० तेहने । सं० जेटली रानी रहे तेटली रात्रीनो । छे० छेद । वा० अथवा । प० तपन प्रायश्चित पण आवे । वा० वळी ॥ ११ ॥ मळपाठ ॥ ११ ॥ गामाणुगामं दूङमाणी निग्गन्थी य जं पुरओ काउं'विहरइ सा आहच्च वीसम्भेजा, अस्थि याइं थ काइ अन्ना उवसंएजाणारिहा सा उवसंप किया. नस्थि याइं थ काइ अन्ना उवसंपळणारिहा तीसे ये अप्पणो कप्पाए १H ( एच ) कट्ठ विहरेज्जा. २ - ( एच ) वीसु. ३ H adds ( एचमां वधारे ) कप्पइ (सा). ४ + adda (एचमा थारे ) सिया. ५H omits ( एचमां नथी ) तीसे य. XSECRESSESAXY 9C%A7%EOCare+ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार ० ८२ ॥ असम' कप सा एगराइयाए पडिमाए जसं जसं दिसं अन्नाओ साहमिणीओ विहरन्ति त तसं दिस उवलित्तए नो सा कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थ, कप सा तत्थ कारणवत्तियं वत्थए. तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वा । वसाहि को एगरायं वा दुरायं वा एवं सा कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो सा कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए, जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसई, सासन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ ११ ॥ - भावार्थ ॥ ११ ॥ एक गामथी बीजे गाम साध्वीओ जाती थकी, जेने आगळ करीने ते साध्वीओ विचरे छे ते वडी साध्वी कदाचित काळ करे तो ते टोळामां बीजी- कोइ साध्वी आचारंगादिक निसीथनी भणनार एवी साध्वी होय के जेने वडेरी करी तेनी आज्ञामांहि चाले एवी योग्य होय तो तेने वडेरी करी तेनी आज्ञामां वीजी साध्वीओए चालबुं कल्पे, जो ते टोळामां कोइ वडेरी करवा योग्य साध्वी न होय ने वाकीनी साध्वीओ आचारंगादिक निसीथना अध्ययने विषे अजाण छे (एच) दिसिं, ३ Hadds ( एचमां वधारे ) णं. ४ H (एचमां ) २ १ (एच) ता एवं सा कप्पइ एग परं after दुवा (पछी ) उद्देसओ ॥५॥ ॥ ८२ ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नातं साचीओने ज्यां रहे त्यां एक रात्रीनी प्रतिज्ञा धारीने जे जे दिशाए अनेरी सार्मिक साधी आचारंग निसीथादिनी । भगनारी बटेरी थइने विचरे हे त्यां जावू कल्पे. ते साध्वीने ज्यां तेओ छे त्यां विहार निमित्चे रहेQ कल्पे नहिं, रोगादिक यारण रहेगुं कल्प पण ते कारण पुरुं थए जो वीजी साधीओ कहे, अहो आर्यो ? एक रात्री अथवा वे रात्री अने वसो रहो । मनो एक रात्री अथवा वे रात्री रहे कल्पे पण एक रात्री के वे रात्री उपरांत रहे कल्पे नहि, जे त्यां एक रात्री अथवा वे | रात्री उपगंन रहे तेने जेटली रात्री रहे तेटली रात्रीनो छेद अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे ॥ ११ ॥ उपर मुजव आडे दीवसे , चटेरी काळ करे ते आधी का. हवे चोमासापां साध्वीओ रहे त्यारे वडेरी काळ करे ते आधी कहे छे. अर्थ ॥ १२ ॥ वा० वर्षाकाळने विपे । ५० रहेवानो निर्धार कर्यो छे त्यां । नि. साध्वीओने । य० वळी । ज० जे तेने। पृ० आगळ । का० परीने । वि० विचरे । सा० ते साध्वी वळी । आ० कदाचित । वी० काळ करे ते टोळामांहि । अ० छे। 18 या० इहां । ५० वळी । का० कोइ आचारंगादिक भणनारी साध्वी । अ० अनेरी तेने । उ० अंगीकार करीने विचरीए एवी गच्छ मध्ये होय तो वाकीनी साध्वीने कल्पे । सा० ते भणनारी साध्वीने । उ० अंगीकार करीने विचर | न० नथी। या० उहां। य० वळी । का० कोइ । अ० अनेरी साध्वी । उ० अंगीकार करवा अथवा चडेरी करवा योग्य । ती० तेने । य० वळी । . पोते । क. आचारंग निसीथादिकने विपे । अ० अज्ञान छे एम ते साध्वीने । फ० कल्पे । सा० तेने । ए० एक । रा० रात्रीनी। प० पटिमा करीने । ज० जेजजे। दि० दिशाए । अ० अनेरी । सा० साधर्मिक साध्वी । वि०विचरे छे। त० ते । त० ते । दि० दिसे । उ० जावू पण । नो० न । सा० ते साधीने । क० कल्पे । त० त्यां । वि० विहारने । व० अर्थे । शुभ आहारादिक जाणीने । व० वसवंक० कल्पे । सा० ते साध्वीओने । त० त्यां। का० कोइ रोगादिक कारण । व० Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमित्ते । व० रहे । त० ते साध्वीने । च० ज० वळी । का० कारण | नि० पुरुं थए । ५० अनेरी साध्वी। व० कहे । व० बबहार०४ सो रहो । अ० अहो भार्या । ए. एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुबे । रा० रात्री । वा० वळी। ए. एम । सा० 2.६सजा. 18३ ॥ कल्पे । एक एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुबे । रा० रात्री । वा० वळी । व० रहेवू । नो० न । सा० तेने। * कल्पे । ५० उपरांत । ए० एक । रा० रात्री । वा० वळी । दु० बे। रा० रात्री । वा० बळी उपरांत । व० रहे । जं. कोड साध्वी । त० त्यां। प० उपरांत । ए. एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दुबे । रा० रात्री । वा० वळी उपरांत । व० सेतो सा० तेने । सं० जेटली रात्री रहे तेटली रात्रीनो। छे० छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित आवे । वा. वळी ॥१२॥ मळपाठ ॥ १२ ॥ वासावासं पङोसविया निग्गन्थी य जं पुरओ कोउं विहरइ सा आहच्च वीसम्नेजा, अस्थि याइं थ का अन्ना उवसंपजाणारिहाँ सा उवसंपजियवा. नत्थि याइं थकाइ अन्ना उवसंपणारिहा तीसे ये अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ सा एगराइयाए पडिमाए जमं जणं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ वि. हरन्ति तसं तसं दिसं उवलित्तए. नो सा कप्पर तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, H. ( एच ) कटु २ म.( एचमा) वीसु.३ H. adds (एचमां वधारे ) कप्पइ. ४ H adds ( एचमां वधारे) * सिया. ५. omita (एचमा नथी) तीसे य, ६ म (एचमां) ताए एवं से कप्पई एग. ७ म (एचमां ) दिसिं. Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कप्पड़ सा तत्थ कारणवत्तियं वत्थए, तसि च णं कारणंसि निट्ठियांसि परो वएगा। वसाहि' अङो एगरायं दा दुरायं वा. एवं सा कप्प३ एगरायं वा दुरायं वा वस्थए, नो सा कप्पड़ परं एगरायाओ वा दुरायायो वा वत्थए. जं तत्य परं एगरायायो वा पुरायाओ वा वसइ, सा सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ १२ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ वर्पाकाळमां रहेवानो निश्चय कर्यो छे त्यां साध्वीओ जेने आगळ करी वडेरी करी विचरे छे ते साध्वी में कदाचित ते टोळामां काळ करे तो वीजी कोइ आचारंग निसीथादिक भणनारी साध्वी ते टोळामां होय तो तेने वडेरी करी गीकार करी विचरj कल्पे. जो कोइ वडेरी करवा योग्य साध्वी होय नहिं ने पोते आचारंग निसीथादिकनी अजाण छ तो है ने एक रात्रीनी प्रतिक्षा करीने जे जे दिशाए अनेरी साधर्मिक साध्वी विचरे छे ते ते दिशाए जावु कल्पे, पण ज्यां छे त्यांज 1 आहारादिफ जाणीने रहेQ कल्पे नहि. ज्यां लगे रोगादिक कारणे एक वे रात्री रहेवं कल्पे पण ते उपरांत रहे, कल्पे नहि. * से एक ये रात्री उपरांद त्यां वसे तेने जेटला दिवस वसे तेटला दिवसनो छेद अथवा परिहार तप आवे ।। १२ ।। उपर वडेरी २ फाल फरे ते आधी का. ते वडेरी काळ य.रे त्यारे पोतानी पदवी अमुकने देनो एम कही जाय, ते पदवी देवानो अधिकार कहे छे." अर्थ ।। १३ ।। १० मवर्तणी । य० वळी । गि० रोगादिके करी ग्लान पामती थकी । अ० अनेरा आचार्यादिक अथवा : गणावच्छेदक प्रमुख साध्वीने । २० यहे । म० मुजने । ६० वळी । अ० अहो आर्या ? । का० काळ । ग० गए । स० थके। १ H adds ( एचमां वधारे ) गं. २ F (एचमां.) परं after दुवा (पछी.) RECENT وووور Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देस वहार ॥८४॥ अ० आने अमुकडीने । स. पदवी देजो। आचार्य पारखं करीने । सा० ते । य० वळी पदवी । स० देवा योग्य छे तो तेने। | स० पदवी दीए । पारखं करतां । सा० ते । य० वळी । नो० न । स० पदवी देवा योग्य न होय तो तेने नो० न । स० पदवी देवी । तो शुं करवू ते कहे छे । अ० छ । या० इहां गच्छमाहे । थ० वळी । अ० अनेरी साध्वी। का० कोह आचारंगादिकनी जाण । स० वडेरी करवा योग्य होय तो पारखीने । सा० तेने । स० ते पदवीने विषे स्थापवी कल्पे । नः नथी। या० इहां। थ० बळी । अ० अनेरी । का. कोइ । स० भणेली पदवी आपवा योग्य (न होय तो)। सा० तेनेज (जेने वडेरीए स्था- 1AI पवा कहेल तेने )। चे० वळी । स० स्थापवी । ता० ते साध्वीने । व० णं० वळी । स० वडेरी स्थापी तेने । ५० बीजी साध्वी । व० एम कहे । दु० दुष्ट । उ० कही पदवी । ते० ताहरी । अ० हे आर्या । नि० मुकीदे ताहरी पदवी । ता० तेवारे ते का साध्वी । णं० वळी । उपर मुजब बीजाए कहे थके । नि० पोतानी पदवी मुकती थकी वळी । न० नथी। के० कोइ । छे० । छेद । वा० अथवा । प० परिहार तप । वा. वळी । जा जे (पक्ष करी) ते । सा० साधर्मिक साध्वीनी । अ० पदवी मुकावा छोडावाने विषे । नो० न । उ० प्रवर्ते उठेन । वि०मकावे तोते । स० सर्व साध्वीओने । ता० ते प्रत्ये । त० ते । प० पदवीथी न उठे तेटला दीननो । छे० छेद । वा० अथवा । प० परिहार तप । वा० वळी ॥ १३ ॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ पवत्तिणी य गिलायमीणो अन्नयरं वएजा । मंए णं अजो कालगयाए समाणीए अयं समुक्कसियवा. सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियवा, सा य नो १ म (एच) माणी. २ म (एच) अज्जो मएणं का.. AE%EOबाय SEARCCristo ४ ॥८४ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ H-१.२- - -M M - ५ ५- समुक्कसणारिहा नो समुक्कसियवा. अस्थि याइं थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा समुक्कसियन्वा, नत्थि याइं थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कासियवा. ताए व णं समुक्किट्ठाए परो वएका । दुस्समुकिटं ते अजो, निक्खिवाहि ? ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा. जायों साहम्मिणीओ अहाकप्पं नो उट्टाए विहरन्ति सवासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा ॥१३॥ भावार्य ।। ५३ ॥ प्रवर्तणी रोगादिक ग्लान पामती थकी अनेरा आचार्यादिकने अथवा गणावच्छेदणीने कहे अहो । | आर्या ? मुजने काळ गए थके हुँ कहुं छु ते साध्वीने मारी पदवी देजो. जो आचार्यने पार करतां ते पदवी देवा योग्य जणाय तो तेने पदवी देवी. जो ते साध्वी पार करतां पदवी योग्य जणाय नहि तो तेने पदवी देवी नहि. तो शुं करे ते कहे | छे. ए टोळा मध्ये कोइ एक वीजी साध्वी आचारंगादिकनी जाण पार करतां वडेरी करवा योग्य जणाय तो तेने ते पदवीने | विप स्थापची कल्पे. जो ते टोळा मध्ये कोइ एक भणेली, पदवी आपवा योग्य कोइ साध्वी होय नहिं तो मरनार वडेरीए जे । साधीने नीमवा कहेल तेने ते पदवीए स्थापवी. तेम कर्या पछी स्वपक्ष परपक्षना साधु साध्वी ते साध्वीने एम कहे के तारी पदी दुष्ट छे. हे आर्या ? तमे ते पदवी मुकी दीओ ते वारे जो ते साध्वी ते पदवी मुके तो तेने कांइ छेद के तपनुं प्रायश्चित १॥ क. २ n aeds ( एचमां वधारे) तं. ३ C. (जमेन बुकमां) अहाकप्पेणं. ४ म (एच) णो अव्भुटेन्ति तसि सव्वसि' (wrong for "तासि सव्वासि "जोइए.) ५.२. - - Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥ ८५ । आवे नहि, पण जो तेनो पक्ष करी साधर्मिक साध्वीओ ते पदवी मुकवा प्रवर्ते ( उठे ) नहि, ते सर्वने जेटला दिवस ते पदवीथी उठे हिला दिवसनो छेद अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे || १३ || अथ ॥ १४ ॥ प० प्रवतणी । य० वळी । ओ० द्रव्य लिंगनो छांडवो एटले मोह कर्मने उदये ( मैथुन सेववा भणी ) द्रव्य लिंग छांडवा देशान्तरे जाय ते वारे । अ० अनेरी गणावच्छेदणीने । व० एम कहे । म० मुजने । णं० वळी । अ० अहो आर्या | ओ० (मैथुन सेववा निमित्ते ) चारित्र मुकवानो कारण छे । स० ते चारित्र मुकता थका । अ० आ साध्वीने मारी पदवीने विषे । स० स्थापजो । एम कह्या पछी । सा० तेनी । य० वळी । स० परिक्षा जोतां ते पदवी योग्य जणायतो । स० पदवीए स्थापवी । सा० ते । य० वळी । नो० न । स० परिक्षा जोतां पदवी योग्य न जणाय तो । नो० न । स० [तेने । पदवीए स्थापवी । हवे शुं करे ते कहे छे । अ० छे । या० ए टोळामां । थ० वळी । अ० अनेरी । का० कोइ । स० पारखं करतां पदवी देवा योग्य । सा० तेने पदवीए । स० स्थापवी । न० नथी । या० इहां । थ० वळी । अ० ते टोळामांही अनेरी । का० कोइ । स० पदवी आपवा योग्य तो । सा० जे प्रवर्तणीए कहेल तेने । चे० वळी । स० पदवीए स्थापवी । ता० ते साध्वीने | व० णं० बळी | स० पदवीवंतने । प० अनेरा साधु साध्वी एम । व० कहे । दु० दुष्ट छे । स० . पदवी । ते० ताहरी । अ० हे आर्या । नि० (तुं ते पदवी) मुकीदे । ता० तेम कहेवाथी । णं० वळी । नि० ते पदवी ते साध्वी "मुकती थकी । न० नथी । के० कोइ तेहने । छे० छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित । वा० वळी । जा० ज्यांलगे तेनो पक्ष करीने । सा० साधर्मिक साध्वीओ । अ० ते । क० पदवी मुकाववाने विषे । नो० न । उ० प्रवर्ते । वि० विचरे । ( उठे उदेसओ ॥५॥ ॥ ८५ ॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनऊ- 22-WALIFE तो)। स० सर्वने । ता० तेने । त० ते । प० पदवीना धरणहार प्रत्ये जेटला दिवस पदवी मुकाववा उठे नहिं तेटला दिवस-५ | नो । ठे० छेद । वा० अधवा । प० तपनुं प्रायश्चित । वा० वळी आवे ॥ १४ ॥ मळपाव ॥ १४ ॥ पवत्तिणी य ओहायमीणां अन्नयरं वएका । मए णं अजो ओहावि याए समाणीए अयं समुक्कसियत्वा. सा य समुक्कसणारिहा समुक्कासियत्वा, साय नो समुक्कसणारिहा नो समुक्कसियवा. अत्थि याई थ अन्ना काइ समुक्कतणारिहा सा समुफसियवा, नास्थ याइं थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कासियत्वा. तए व णं समुकिट्ठाएँ परो वएजा। पुस्समुकिळं ते अडो, निक्खिवाहि ? ताए णं निक्खिवमाणाए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा. जाओं साहम्मिणीओ अहाकैप्पं नो' उट्ठाए विहरन्ति सव्वासिं तासि तप्पत्तियं बेए वा परिहारे वा ॥ १४॥ REAR-OREIGN , १PH (पी. एच ) माणी. २ F (एच) अज्जो मए णं ओ'. ३ म (एच ) क. ४ म. adda (एचमां वधारे)तं. M५. . (जर्मन चुकमां) अहाकप्पेणं. ६ म (एचमां) णो अब्भुटेत्ति तेसि सव्येसि (wrong for "तासि सव्वार्सि" जोइए). Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार ० ॥ ८६ ॥ भावार्थ ॥ १४ ॥ प्रवर्त्तणी मोह कर्मने उदये चारित्र छांडी (मैथुन सेववा ) देशान्तरे जाय ते वारे गणावच्छेदणीने एम कहे जे हे आर्या (मैथुन सेववा निमित्ते ) मारे चारित्र मुकवानो कारण छे तेथी ते चारित्र मुकतां थकां आ साध्वीने मारी पदवी स्थापनो. जो परिक्षा करतां ते साध्वी ते पदवीए स्थापना लायक जणाय तो ते पदवी तेने आपवी. जो खातरी करते पदवीने लायक न जणाय तो ते पदवी तेने आपवी नहि. जो बीजी कोइ साध्वी आ पदवीए स्थापना योग्य जणाय तो ते खातरी करी ते पदवी आपवी. जो कोइ पण साध्वी ते पदवी योग्य न जणाय तो मूळमां जे साध्वीनी प्रवर्तणीए भलामण करेल तेने ते पदवी आपबी. पछी ते पदवीवंतने अनेरीं साध्वीओ एम कहे जे हे आर्या ए तारी पदवी दुष्ट छे ते मुकी दे. जो साध्वी उपर जब कवाथी ते पदवी मुकीदीए तो तेने छेदके तपनुं प्रायश्चित आवे नहि. जो बीजी साध्वीओ तेनो पक्ष करीने ते पदवी मुकवामां मदद करे नहिं तो ते सर्वने ते पदवी मुकाय नहि तेटला दिवसनो छेद अथवा परिहार तप प्राfood || १४ || आचारंगादिक सूत्रना जाणनारने ते पदवी आपवी तेथी योग्य अयोग्यनो अधिकार कहे छे ।। अर्थ ॥ १५ ॥ नि० साधु वळी । न० नवो दीक्षाए । ड० वरसे करी बाळक । त० यौवन अवस्थाए करी सहित । आ० आचारंग । प० कल्प ते निसीय एहवे । ना० नामे । अ० अध्ययनने । प० विसार्यो । सि० होय । से० तेने । य० वळी । पु० स्थिवर पूछेळा के० के | ते० तें । अ० अहो आयें । का० शा कारणे । आ० आचारंग । प० कल्प निसीथ । ना० एहवे नामे | अ० अध्ययन | प० विसाय छे । किं० शुं । आ० आबाधा रोगने कारणे । प० प्रमादने कारणे । से० ते विसारणहार साधु | य० बळी | व० बोले । नो० न । आ० आबाधा कारणे विसार्यो । प० प्रमादने कारणे विसार्यो । जा० जाव । जी० जीव लगे । त० तेहने । त० ते । प० प्रत्ये एटले ते पदवीना धरणहारने । नो० न । क० कल्पे । आ० आचार्यनी पदवी । 1 उद्देसओ ॥५॥ । ८६ ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ वा. अथवा । जा० ज्यां लगे । ग. गणावच्छेदकनी पदवी । वा. वळी । उ० देवी नहिं । वा० अथवा । धा० धारवी । वा पण नहि. . सं० ते विसारणहार साधु । य० वळी । व० कहे । आ० रोगादिक कारणे विसो छ । नो० न । प० प्रमादने कारणे । ६ ० तेने एटले विसर्या छ तेने । य० वळी । सं० संमाळीने ठाम आणी । ति० वळी । सं० पदवी दीए । ए० एम । से०६ 1 नेने । क० फल्पे । आ० आचार्यनी । वा० अथवा । जा. ज्यां लगे | ग० गणावच्छेदकनी पदवीने विषे । वा० वळी । उ० स्थापना । वा० अथवा । धा० धारवो । वा. वळी ।। से० ते । य० वळी । सं० भणशु (संभार)। ति० एम कहीं। नो० न । सं० संभारे । ए० एम । से० तेने । नो० न । क० फल्पे । आ० भाचार्यपणुं । वा० वळी । जा० ज्यां लगे । ग० गणावच्छेदक पदवीए । वा० वळी । उ० स्थापवो । वा० मशवा । पा० धारवो । वा० वळी ।। १५ । मृळपाठ ॥ १५ ॥ निग्गन्थस्स' नवडहरतरुणस्स आयारपकप्पे नाम अज्जयणे परि व्भटे सिया, से य पुछियव्वे । केण ते अजो कारणेणं यारपकप्पे नामं अज्जयणे परिज?, किं आवाहेणं पमाएणं ? से य वएजा। नो आबाहेणं १H adds (एचमां वधारे) णं. २ F (एच) °णगस्स. ३ Falways ( एचमां हमेशां) आयारकप्पे in sutras 14 14 to 18 (१४ यी २८ सूत्रोमां ). ४ १ (एच) का before अज्जो (अज्जो पहेलां). ५ F adds (एचमां वधारे) सिया. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार० ॥ ८७ ॥ पमाएणं, जावजीवं' तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा ( जाव ) गणावश्यत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा. से य एका । आबाहेणं नो पमाएणं, से य संववेस्सामी ति संग्वेजा, एवं से कप्पइ यायरियत्तं वा ( जाव ) गणावलेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा. सेय संठवेस्सामी ति नो संग्वेजा, एवं से नो कप्पड़ आयरियत्तं वा ( जाव ) गणावलेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १५ ॥ भावार्थ ॥ १५ ॥ दीक्षा करी नवो, वरसे करी बाळक, यौवन अवस्थाए करी साधु आचारंग तथा निसीथना अध्ययन विसरे (भूली जाय ), पछी ते विसरी गएल साधुने स्थिवर पूछेके शा कारणे हे आर्य आचारंगने निसीयना अध्ययन तुं विसरी गयो. झुं रोगादि कारणे के प्रमादे ? ते साधु कहे रोगादिक कारणे नहिं पण प्रमादने कारणे विसरी गयो हतो. तेने जाव जीवलगे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थिवर, गणि, गणावच्छेदकनी पदवीं देवी कल्पे नहि ते तेणे धारवी पण कल्पे नहि. ते विसरी गएल साधु एम कहेके रोगादिक कारणे आचारंग, निसीथ बिसरी गयो हुं पण प्रमादथी युं नथी तो फरी ते पाठ भणी ठाम आणे तो तेने आचार्यनी ज्यां लगे गणावच्छेदकनी पदवीए स्थापवो अथवा धारवो १H (एचमां ) 'ज्जीवाए. | उद्देसओ ॥५॥५ ॥ ८७ ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पे. ते साधु जो भणीश अथवा भणेलं संभारीश एम कही भणे के संभारे नहिं तो तेने आचार्य पदवी ज्यां लगे गणावच्छे भादक पदवीए स्थापवो के धारवो कल्पे नहि ॥ १५ ॥ उपर साधु आश्री कयु, हवे साध्वी आधी कहे छे ।। अर्थ ॥ १६ ॥ साध्वीं । न० नवदिक्षित । १० वाळक । त० यौवनपणे वये करी ते । आ० आचारंग । प० निसीय एहवे । ना० नाम । अ० अध्ययन । प०विसरी। सि० जाय । सा० ते विसरी जनार साध्वीने स्थिवर । य० वळी। पू० प्रछे। 18 में० बळी । का० कारणे । हे आर्या ? । आ० आचारंग । १० निसीय । ना० नामे । अ० अध्ययन । प० विसार्यो। कि० । आ० रोगादिककारणे । ५० प्रमादने कारणे । सा० ते साध्वी। य० बळी।व०कहे।नोन।आरोगादिक कारणे विसाये। ममादनेकारणे विसार्यों छे तो। जा० जाव । जी० जीव लगे । ती० तेने । तते । १० पदवी । नोन । क० कल्पे 40 प्रवर्तणीनी पदवी । वा० अथवा | ग० गणावच्छेदणीनी पदवीए । वा० वळी । उ० स्थापवी। वा० अयवा । धा० धारवी.।) वा० वळी ॥ सा० ते साध्वी । य० वळी । व० एम कहे के । आ० रोगादिक कारणे विसरी गइ पण । नो० नहीं। ५० प्रमादना कारणे । सा० ते साधी । य० वळी जेणे विसायं छे ते । सं० संभारीने ठेकाणे आणशुं । ति० एम कही। सं० संभारीने । टेकाणे आणे | ए० एम । से० तेहने । क. कल्पे । १० प्रवतेणीपणो । वा० अथवा | ग. गणावच्छेदणीपणो । वा०वळी । उ० देवो । वा० अयवा । धा० धारवो । वा० वळी ।। सा. ते साची । य० वळी । सं० संभारीश । ति० एम कही । नो० न । सं० संभारे ठाम न आणे । ए० एम । से० ) | तेने । नो० न । क० कल्पे । प० प्रवर्गणीनी । वा० अथवा । ग० गणावच्छेदणीनी पदवी । वा० बळी। उ० देवी। वा० RS- CIENCE Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसमो है अथवा । धा धारवी । वा० वळी ॥ १६ ॥ पवहार० ॥८॥ मूळपाठ ॥ १६ ॥ निग्गन्थीए नवमहरतरुणाएं आयारपकप्पे नाम अज्जयणे परिब्लट्टे सिया, सा य पुजियवा । केण में कारणेणं आयारपकप्पे नाम अज्जयणे परिब्जट्टे, किं आबाहेणं पमाएणं ? सा य वएडा। नो आबाहेणं पमाएणं, जावजीवं तीसे तप्पत्तियं नो कप्पइ पवत्तिणित्तं वा गणावलेइणितं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा। सा य वएजा । आबाहेणं नो पमाएणं, सा य संग्वेस्सामी ति संवेडा, एवं से' कप्पा पवत्तिणित्तं वा गणावलेइणित्तं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा. सा य संवेस्सामी तिनो संठवेजा, एवं से नो कप्पर पवत्तिणित्तं वा ग. पावलेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ १६॥ . १H adds ( एचमां वधारे ) . २ F ( एच ) "णियाए. ३ Homits (एचमां नथी) मे and adds ( अने Mउमेरे छे) अज्जा after का (पछी). ४ Hndda (एचमां वधारे) सिया. ५H (एच) ज्जीवाय. ६ (एचमा) सा. HEAR 1८८ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NEXT- २--- भावार्थ ॥ १६ ॥ साली नव दिक्षित वाळक यौवनपणे पये की ते साध्वी आचारंग निसीथ सूत्रना अध्ययन विसरी है। हाय, परी स्थिवर ते साम्बीने पूछे, शा कारणे तमे हे आर्या ? आचारंग निसीथना अध्ययन विसरी गया. शुं रोगादिक का-२ कारण के प्रमादना कारण ? तेना उत्तरमा ते साध्वी कहे के रोगादिक कारणे विसरी गइ नथी पण प्रमादने लीधे तो जावजीवर गधी ते साधीने प्रवर्तणीनी अथवा गणावच्छेदणीनी पदवी तेने देवी के धारवी कल्पे नहि. ते विसरी गएल साध्वी एम कहे जे रोगादिक कारणे विसरी गइर्छ पण प्रमादना कारणे विसरी गई नथी ने विसरी है। गएल पाई संभाली ठेकाणे आणे तो तेने प्रवर्तणी के गणावच्छेदकणीनी पदवी आपवी के धारवी कल्पे । ते साी एम काहे के हुं संभारीश ने पछी विसरी गएल ठाम आणे नहिं तो तेने प्रवर्तणीनी अथवा गणावच्छेदणीनी पदवी आपली के धारची कल्पे नहि ॥ १६ ॥ उपर युवान आश्री अधिकार कह्यो. हवे वृद्ध आश्री कहे छे ॥ अर्थ ॥ १७ ॥ थे- स्थिवर ( घरहा )। थे० ६० । भृ० वरस । प० थयाने । आ० आचारंग । प० निसीथ । ना० है नामे । अ० अध्ययन । प. विसार्या । सि. छे । क० कल्पे । ते. ते स्थिवरने । सं० संभारे तो । वा० अथवा । अ० वि। सार्या न संभारे तो । वा० वळी । आ० आचार्य पदवी । वा० अथवा । जा. ज्यांलगे। ग० गणावच्छेदक पदवी । वा० वळी । उ० संभारे तो देवा । न संभारे तो न देवी । वा० अथवा । धा० धारवी कल्पे । वा० वळी । धारवी कल्पे नहिं ॥१७॥ मृळपाठ ॥ १७ ॥ थेराणं थेरजूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्जयणे परिब्नटे सिया. कप्पर तेसिं संठवेत्ताण वा असंवेत्ताण वा थायरियत्तं वा (जाव ) गणाव -- ॐॐॐॐॐ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार० ॥ ८९ ॥ बेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ स्थिवर साधु घरडा थवाथी आचारंगने निसीथना अध्ययन विसारे ते स्थिवर जो फरी ते अध्ययन संभारे तो तेने आचार्य के गणावच्छेदकनी पदवी देवी के धारवी कल्पे पण न संभारे तो तेम करवुं कल्पे नहि ||१७|| उपर संभारे ते पदवी देवी कही. जे न संभारे तेने न देवी कही. ते संभारे तो केवी रीते संभारे ते कहे छे । अर्थ ॥ १८ ॥ थे० स्थिवर ते गच्छमां । थे० स्थिवर । भू० भूमि । प० प्राप्त थयाने । आ० आचारंग । प० निसीथ । ना० नामे | अ० अध्ययन । प० विसार्या । सि० होय ने बळ होय तो । क० कल्पे । ते० ते स्थिवरने । सं० बेठाथका । वा० अथवा | सं० सुता थका । वा० अथवा उ० उभा थका । वा० अथवा । पा० पसवाडो करीने (ओठींगण दइने ) बेठा थका । वा० बळी | आ० आचारंग । प० निसीथ । ना० नामे । अ० अध्ययन । दो० वीजीवार । पि० वळी । त० त्रीजीवार । पि० वळी । प० वांछे । वा० वळी । प० संभावो । वा० वळी ॥ १८ ॥ परिव्नट्टे सिया. कप्पइ तेसिं संनिसानं वा संतुयट्ठाण वा उत्ताणयाण वा पासिल्लयाण वा व्यायारपकप्पं नामं अज्जयणं दोच्चं पितच्चं पिपडिपुत्तिए वा परिसारत्तएं वा ॥१८॥ सूळपाठ ॥ १८ ॥ थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अजय १GE (जमेन बुकमा ) समाण. H (एच) क्षेण वा उत्ताणेण वा तुपट्टाणेण वा आ. पासि वा woti P (पीमां नथी ). २ H (एच) सरि'. उद्देस " 60 Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ || १८ || स्थिरग्ने स्थिवर भूमि प्राप्त थयाने एटले उपरे पहोच्याने आचारंग निसीथ अध्ययन विसरी गया ने तेने छतो बळ होय तो ते स्थिर बेटों बेटा संभारे ने घणी वखत घडपणने लीधे न बेसाय तो सूता थकां अथवा उभां वा अढेलोको आचारंग निसींध नामे अध्ययन वीजीवार श्री गीवार संभारखानुं इच्छे ॥ १८ ॥ उपर साधु साध्वीने मृन्त्र भणवा आश्री कां. ते साधु साध्वीने १२ प्रकारनो संभोग होय ने संभोग करतां उपाध्यायादिकने कांइ दोष लागे तेथी आलोवे ते आलोववानी विधि कहे छे || अर्थ || १९ ॥ जे० जे कोइ । नि० साधु । य० वळी । नि० साध्वी । य० वळी । सं० सेज्या उपधि आदिक १२ प्रकारनुं लें देवं ते संभोग कहीए ते संभोग । सि० करवां कोई उपाध्यायने दोप लागे तो ते केम आलोवे ते कहे छे । नो० न । ०६० बळी तेने । क० कल्पे | अ० मांहोमांहि । अं० एकेकनी समीपे जइने साधु साध्वीनी साथे । आ० आलोवनुं । अ० छे । या० इहां । ०६० बळी | के० कोइ । आ० आलोववा । रि० योग्य । क० कल्पे । ६० वळी । त० तेनी । अ० समीप | आ० आलोववो । न० नथी । या० इहां । ०६० वळी । के० कोइ ( एहवा गुणवाळा ) अनेरा साधु । आ० आलोयत्रा । रि० योग्य ( पूर्वोक्त गुणे करी सहित न होय तो ) । ए० एम । ई० तेने । क० कल्पे । अ० मांहोमांहि । अं० समीपे जइ । आ० आलोवचो ।। १९ ।। मूलपाठ ॥ १९ ॥ जे निग्गन्धा य निग्गन्धीओ य संजोइया सिया, नो एवं कप्पइ अन्नमन्न Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12-%-करनाल उद्देसमोर ववहार स्स अन्तिए आलोएत्तए. अस्थि याई एहं केइ आलोयणारिहे, कप्पर एहं तस्स ५० ॥९॥ अन्तिए आलोइत्तए; नत्थि याई एहं केइ आलोयणारिहे, एव एहं कप्पइ अन्नमन्नस्स अन्तिए आलोएत्तए ॥ १९॥ भावार्थ ॥१९॥जे कोइ साधु अथवा साध्वीने १२ प्रकारनी सेज्या उपधि आदिक चीजो एकवीजाने लेवा देवानो रीवाज छे तेने संभोग कहीए. ते संभोग करतां कांइ दोष लागे तो एक बीजाए माहोमांहि एक बीजानी समीपे आलोववं कल्पे नहि. जो त्यां कोइ आलोयणा आपवा योग्य होय तो तेनी पासे आलोयणा लेवी कल्पे. जो त्यां कोइ आलोयणा आ पवा योग्य होय नहि तो एकवीजानी समर्मापे आलोववं कल्पे ॥ आलोयणा आपनार साधु केवो योग्यतावाळो होय ते कहे छे. न (१ ज्ञानादिक पांच आचार सहित आहार आलोवाना दोपनो धारणहार. २ आगमादिक ५ व्यवहार सहित प्रायश्चि। तनो जाण, बहु श्रुत जघन्य आचारंग निसीथनो धरणहार. मध्यम बृहत्कल्प व्यवहारनो धरणहार, उत्कृष्टो ९-१० पूर्वनो धरणहार. ३ जघन्य त्रण वर्षनी प्रवानो धणी, मध्यम ५ वर्षनी प्रवर्ध्यावाळे, उत्कृष्टो २० वर्षनी प्रवानो धणी. १४ द्रव्यभावथी अचपल (स्थिवर ) व्रतनो धणी. ५ जे अतिचार गोपवावे नहि ने सम्यकप्रकारे आलोवावे. ६ प्रायश्चित दइ शुद्ध करावे. ७ आलोच्या दोष अनेरा आगळ न कहे ८ घणा शास्त्रनो जाण, प्रबळ बुद्धिनो धणी, सुपात्र प्राप्ति छेद जेने, सत्यवादि, महाभाग्यवंत, सत्यभावी, आलोव्या दोष कहे नहि. वत्रीस जोग संग्रहना गुणे करी सहित)॥१९॥ M९० १ F (एच) या इत्य णं केइ. २ (एच) या इत्थ ण्हं केइ अन्ने आ... जानAA - - Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न -CRACK न उपर जे आलोवणा लीए तेनी वैयावच करवी ते भणी वैयावच आश्री कहे छे ॥ अर्थ ॥ २० ॥ जे जे कोइ । नि० साधु । य० वळी । नि० साध्वी । य० बळी जेने । सं० १२ प्रकारना संभोग । सि० तेमणे मांदोमांहि आलोवणा लीया पर्छ । नो० न । ६० वळी । क० कल्पे । अ० मांहोनांहि । अ० साधु साध्वी स. मीपं जाने । पे० यावच । का० करवी ( कल्पे नहिं ) । अ० छ । या० इहां । ६० वळी । अनेरो साधु । के० कोइ एक । ५० वयावचनो । क० करणदार । क० कल्पे । ६० वळी ते कने । वे० वैयावच । का० कराववी । न० नथी । या० इहां ।।। 16 ई० बळी । के० कोड अनेरो । वे वैयावचनो । क० करणहार । ए० एम । हं० वळी । क० कल्पे । अ० भाहोमांहि । ० चयापच । का० करावी ॥१०॥ मूळपाठ ॥ २० ॥ जे निग्गन्या य निग्गन्यीयो य संभोश्या सिया, नो एहं कप्पइ अन्न मन्नेणं' यावच्चं कारवेत्तएं. अत्थि याई एहं केइ वेयावञ्चकरे कप्पइ एहं वे. यावचं कारवेत्तण, नत्थि याई एहं केइ वेयावच्चकरे एव एहं कप्प३ अन्नम न्नेणं वेयावच्चं कारवेत्तए ॥ २० ॥ भावार्थ ॥ २० ॥ साधु साध्वीने एक वीजाने १२ प्रकारनो संभोग छे तेमने माहोमांहि आलोयणा लीधा पछी माहोमांदि एक वीजानी पासे जइने वैयावच करवी कल्पे नहि. जो न्यां कोई एक चीजो साधु वैयावच करनार होय तो तेनी पासे १11 (एच) अन्नान्नस्स अतिए,२11 (एच)कारत्तए.३Hudds (एचमा वधार) तण. टाल- म Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ F - -%A5%4-9 - - - वहार० । वैयावच कराववी कल्पे. जो त्यां कोइ वैयावचनो करणहार होय नहिं तो माहोपांहि यावच ( रोगादिक कारणे ) कराववी | उद्देसओ. ॥११ कल्पे ॥२०॥ एम वैयावच करतां मंघटो धाय ते भणी संघटादिकनी शंका भांगवा भणी कहे ले. अर्थ ॥ २१ ॥ नि० साधु । च० णं० वळी साध्वी । रा० रात्रे । वा० अथवा । वि० संध्यावेळा । वा० वळी । दी. दीर्घ लांवो सर्प । प० फरस्यो । लू० डंख दीधो ते वारे ते । ई० साध्वी । वा० बळी । पु० पुरुप ग्रहस्थ तेने हाथे करी । ओ० डंखनुं ओषड करावे । पु० पुरुष (साधु )। वा० बळी । इ० स्त्री पासे डंखनु । ओ० ओषड करावे । ए० एम। से० ते (स्थिवर कल्पीने अपवाद मार्गे)। क० कल्पे । ए० एम। से० ते स्थिवर कल्पी । चि० रहे। प० परिहार तप । च० पण । से० ते । नन । पा० पामे । ए० ए। क. कल्प आचार ते । थे० स्थिवर । क० कल्पीनो कह्यो । ए० एम। से० जिन कल्पीने । नो० न । ३.० कल्पे । ए० एम । से० जिन कल्पी । नो० न । चि० अपवाद सेवे। प० प्रायश्चित । च० वळी । नो० न । पा० पामे । ए० ए। क० आचार । जि० जिन । क० कल्पीनो कह्यो ॥ २१॥त्ति० एम। बे० हुँ कहुं छु। मूळपाठ ॥ २१॥ निग्गन्थं च णं रायो वा वियाले वा दीहपट्ठो'लूसेजा, इत्थी वा पार सस्स ओमावेजा पुरिसो वा इत्थीए ओमावेजा. एवं से कप्पर, एव से चिट्ठइ, १ F (एच) पुट्टो. २ F adds (एचमां वधारे ) तं. -- - 5 -0 OCES- 95-EG । ९१ .C Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ** परिहारं च से ने पाउणइ-एस कप्पे थेरकप्पियाणं. एवं से नो कप्पर, एवं से नो चिट्ठइ, परिहारं च नो पाजणइ-एस कप्पे जिण कप्पियाणं ॥२१॥ त्ति बेमि.. भावार्थ ॥ २१ ॥ साधु अधवा साध्वीने रात्रे अथवा संध्यावेळा लांवो सर्प फरस्यो करडयो होय तो ते साध्वी पुरुष पासे । औपध कराये ने इरुप ( साधु ) स्त्री पासे औषध करावे. एम ते स्थिवर कल्पी साधु साध्वीने अपवाद मार्गे करवु कले, एम ते स्थिवर पल्पी साधु साची अपवाद सेवतां रहे पण भष्ट न थाय ने परिहार तप पण न पामे, ए स्थिवर कल्पीनो आचार। कालो. हये जिन कल्पीनो आचार कहे छे. जिन कल्पीने उपर मुजब अपवाद मार्गे पण ओपड करावयु के अपवाद सेववो न कल्पे ने एम अपवाद न सेवे ते प्रायश्चित न पामे. ए आचार गिन कल्पीनो कह्यो !!२१॥ एम सुधर्मा स्वालिए जंबू स्वामिने क[.. अर्थ ॥ ५॥ ६० व्यवहार सूत्रनो । पं० पांचपो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥५॥ मूळपाठ ॥ ५॥ ववहारस्स पञ्चमो उद्देसयो समत्तो ॥५॥ भावार्य ॥ ५ ॥ व्यवहार मूत्रनो पांचमो उद्देसो पुरो थयो ॥ ५॥ - - - - -- Premi-her १ (एचमां ) णो for से न (पदले). २ (एच) कप्पो. - Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II घवहार SAEC %95 % उद्देसी ववहारस्स छठो उद्देमओ व्यवहार सूत्रनो छठो उद्देसो. अर्थ ॥१॥ भि० साध साध्वी । य० वळी । इ० इच्छे। ना० पोताना सगाने । वि. घेर । ए.जावू । नो० न तेने । | क० कल्पे । थे० स्थिवरने । अ० पुछयाविना । ना. सगाने । वि० घेर । एक जावं (न कसे)। क० कल्पे ते साधुने । | थे० स्थिवरने । आ० पुछीने । ना० सगाने । वि. घेर । ए. जावू ( कसे)। थे० स्थिवर । य० वळी । से० तेने । वि० | आज्ञा आपे तो । ए० एम । से तेने । क. कोना सगाने | वि०घेर। ए. जावू । थे० स्थिवर । य० वळी । से० ते साधुने । नो० न । वि० रजा आपे तो । ए० एम | से० तेने । नोन। क. कले। ना० सगाने । वि० घेर । ए० जावु । ज० जे कोइ । त० त्यां। थे० स्थिवरनी । अ० आज्ञाविना । ना० सगाने । वि० घेर । ए० जाय तो । से० तेने । सं० जेल टला दिवस जाय तेटला दिवसनो । छे० छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित । वा० वळो आवे ॥१॥ मूळपाठ ॥ १॥ निक्खू य इलेजा नायविहं एत्तए, नो कप्पइ धेरै अणापुलित्ता नाय. विहं एत्तए, कप्पर थेरे आपुहिता नायविहं एत्तए. थेरा य से वियरेजा, एवं से कप्पइ नायविहं एत्तए, थेरा य से नो वियरेजा, एवं से नो कप्पड़ १P always (पीमां हमेशां) B mostly (बीमां घगुखरू) एतए.२ n adds (एचमा वधारे) से. - -ॐ ॐ ... Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 -1 540-% नायविहं एत्तए. जं तत्थ थेरेहिं अविइले नायविहं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥१॥ भावार्य ॥ १॥ कोइ साधु साध्वी पोताना सगाने घेर जवा इच्छे तो स्थिवरने पूछया विना जाय नहि. स्थिवरने | पूछीने जाय. स्थिवर आज्ञा आपे तो जाय, आशा आपे नहि तो न जाय. जे आज्ञा विना जाय तेने जेटला दिवस जाय नतेटला दिवसनो छेद अथवा तपनो प्रायश्चित आवे ॥१॥ स्थिवर परस्पर सबळी वात जाणे ने जानार संघाते जाणिता साधुने मोफले माटे स्थिवग्ने पूछीने सगाने त्यां जवानु कयु. हवे केटलो भणेलो जाय ते कहे छ. . अर्थ ॥ २ ॥ ० न । सं० ते साधने । क० कल्पे । अ० थोडा । सु० सूर ज्ञानीने । अ० अल्प । आ० आगमना जाणने । ए० एकलाने । ना० स्वजनने । वि० घेर । ए० जावु (न कल्पे ) ॥२॥ मूळपाठ ॥२॥ नो से कप्पर अप्पसुयस्त अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहं एत्तए ॥२॥ भावार्थ ॥२॥ पोटा सूत्र तथा थोडा आगमना जाण साधुने एकलाने पोताना सगाने घेर जावं कल्पे नहि ॥२॥ अर्थ ॥ ३ ॥ फ० कल्पे । से० ते साधुने । जे जे कोइ । त० त्यां । व० बहु । सु० सूत्री । ५० घणा । आ० आगमदाना जाण होय । ते.ते साधनी । स०साथे। ना० न्यातिलाने । वि०घेर । ए० जावु ॥ ३ ॥ १ (एच) जे. २. जमेन बुकमा सूत्र २ थी ९ नो, पहेला सूत्रमा समावेश को के. ८२-५. ८- - -- 52% Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वबहार० ।। ९३ ।। मूलपाठ ॥ ३ ॥ कप्पड़ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्नागमे तेण सद्धिं नायविदं एत्तए ॥ ३ ॥ भावार्थ || ३ || ते साधु बीजा बहु सूत्री, घणा आगमना जाण साधु संगाथे सगाने घेर जानुं कल्पे ॥ ३ ॥ हवे उपर जब त्यां जाय तो आहार पाणी शी रीते लीए तेनी विधि कहे छे ॥ अर्थ || ४ || त०] त्यां । से० ते साधुना । पु० पहेलां । ग० गया ( पेहेलां ) । पु० प्रथम । उ० उतर्या । चा० चोखा । प० पछी । उ० उतरी | भि० दाळ तो । क० कल्पे । से० ते साधुने । चा० चोखा । प० लेवा । नो० न । से० तेने । क० कल्पे | भि० दाळ | प० लेवी ॥ ४ ॥ मूळपाठ ॥ ४ ॥ तत्थ से बागरुपेणं पुवांउत्ते चाउलोदणे, पठाउने जिलिङ्गसूत्रे, कप्पइ से वाउलोदणे पग्गा हत्तंए, नो से कप्पइ जिलिङ्गसूत्रे परिग्गाहेत्तए ॥ ४॥ भावार्थ ॥ ४ ॥ त्यां ते साधुना गया पहेला चोखा उतर्या होय पछी दाळ उतरी होय तो चोखा वहोरखा कल्पे पण दाळ वरवी कल्पे नहि ॥ ४ ॥ अर्थ | ५ || त० तिहां ते साधुना । पु० पहेलां । ग० गया पेहेलां । पु० पहेलां । उ० उतरी होय । भि० दाळ अने । १ (एच) पुब्बाओते. २ पच्छाओते. ३ पडिगाहित्तए, This text of H conforms to a passage in Dasa XI of the Data (Darasruta Kandha ) आवो पाठ दसाश्रुत स्कंध सूत्रमा ६ठा उदेसाना ११ मां पाठमा छे. उद्देसओ ॥ ६ ॥ ॥ ९३ ॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 प० पछी | उ० उतरा । चा० चोखा | क० कल्पे । से० ते साधुने । भि० दाळ । प० लेवी । नो० न । से० तेने । फ० कल्पे | चा० चोखा । प० लेवा ॥ ५ ॥ मूलपाठ ॥ ५ ॥ तत्थ पुष्वागमणेणं पुवाउत्ते जिलिङ्गसूवे, पलाउने चाउलोदणे, कप्पइ से जिलिङ्गसूवे पमिग्गाहेत्तए, नो से कप्पइ चाउलोदणे परिग्गाहेत्तए ॥ ५ ॥ भावार्थ ।। ५ ।। त्यां ते साधुना गया पहेला प्रथम उतरी होय दाळ ने पछी उत्तरा होय चोखा तो तेने दाळ लेवी फल्पे पण चोखा लेवा कल्पे नहि ।। ५ ।। अर्थ ॥ ६ ॥ त० त्यां'। से० तेना । पु० पूर्व । ग० गया ( पहेलां ) | दो० वन्ने चोखाने दाळ । वि० वळी । पु० पहेली | उ० उतयां होय । क० कल्पे । से० ते साधुने । दो० ते बन्ने । वि० बळी । प० लेवा ॥ ६ ॥ मूळपाठ || ६ || तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पुवाउत्ते कप्पइ से दो वि परिग्गाहत्तए ॥ ६ ॥ भावार्थ ॥ ६ ॥ त्यां ते साधुना गया पहेला चोखा ने दाळ वन्ने प्रथम उतर्या होय तो ते बन्ने बोहरवा करपे ॥ ६ ॥ अर्थ || ७ || त० त्यां | से० ते साधुने । पु० पहेला | ग० गयोने । दो० बेहु । वि० वळी । प० पाउळथी । उ० उतर्या होय तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । दो० बन्ने । वि० वळी । प० लेवा ॥ ७ ॥ मूलपाठ ॥ ७ ॥ तत्थ से पुवागमणेणं दो वि पढाउत्ते नो से कंप्पइ दो वि परिग्गाहेत्तर ॥७॥ *** -***** Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BEAC पबहार उदेसमोर 7- -% % % Aster भावार्थ ॥ ७॥ त्यां वे साधु गया पहेला ते वन्ने एटले चोखाने दाळ पाछळयी उा तो ते बन्ने एटले चोखाने दाळ लेबां से नहि ॥७॥ अर्थ ॥ ८॥ जे जे जे वस्तु सर्वे । से० ते साधुना । त० त्यां । पु० पहेलो । ग० गया (पहेलां)। पु० प्रथम । उ० उतरी होय। से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवी ॥८॥ मूळपाठ ॥ ७ ॥ जे से तत्थ पुवागमणेणं पुवाउत्ते, से कप्पइ पग्गिाहेत्तए ॥७॥ ___ भावार्थ ॥ ८ ॥ जे जे वस्तु ते साधुना गया पहेला उत्तरी होय ते साधुने लेवी कल्पे ॥८॥ ___ अर्थ ॥ ९॥ जे जे । से० ते साधु । त० त्यां । पु० पूर्वं । ग० गयाने एटले साधु त्यां प्रथम गयो ने सर्व वस्तु । प० पछी । उ० उत्तरी तो। नोन । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवी ॥९॥ मूळपाठ ॥ ए॥ जे से तत्थ पुवागमणेणं पडाउत्ते, नो से कप्पर पमिग्गाहेत्तए ॥९॥ __ भावार्थ ॥९॥ जे साधु त्यां प्रथम गयो ने पछी सर्व वस्तु उतरी तो तेने ते वस्तुओ लेवी कल्पे नहि ॥९॥ उपर मुजबनो आचार तो आचार्य जाणे. तेने अतिशय होय ते आचार्यना पांच अतिशय कहे छे॥ अर्थ ॥१०॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । ग. गणिना। पं० पांच । अ० अतिशय । ५० कह्या । तं० ते। ज. 18 कहे छे । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । अंकमांहि । उ० उपाश्रय (मांहि)।पा० पग । नि० ग्रही। नि० ग्रहीने । १० 5 पुंजतो थको । वा० अथवा । प० विशेषे प्रमाणतो थको । वा० वळी । नो० न । अ० तीर्थकरनी आज्ञा अतिक्रमे ॥ १० ॥ % 80 % Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न कस. मृळपाठ ॥ १०॥ यायरियउवज्कायस्स गर्षसि पञ्च अश्सेसा पन्नचा, तंजहा। (८) आयरियउबज्जाए अन्तो अवस्सयस्त पाए निगिज्जिय निगिज्जिय पप्फो. डेमाणे वा एमोमाणे वा नो' अइक्कम ॥ १० ॥ भावार्थ ।। १० । आचार्य, उपाध्याय, गणिना पांच अतिशय कह्या ते कहे छे. आचार्य, उपाध्याय उपाश्रय मांहि पग ग्रही ग्रहीने पुंजे अथवा विशेष प्रमानें तो तीर्थकरनी आज्ञा अतिक्रमे नहि ॥ १० ॥ ___ अर्थ ।। ११ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । अं० मांहि । उ० उपाश्रय ( माहि) । उ० बहीनीत अथवा । पा० लघुनीत वळी । वि० शरीर थकी वेगळी करतो धको । वा० बळी । वि० धरती विशुद्ध करवो थको । वा० बळी । नो० न । अ० सीथकरनी आज्ञा अतिक्रमे ।। ११ ॥ मूळपाठ ॥ ११ ॥ (२) आयरियउवज्काए अन्तो अवस्सयस उच्चारपासवणं विगिश्च माणे वा विसोहेमाणे वा नो अइक्कमइ ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ ११ ॥ आचार्य, उपाध्याय, उपाश्रय माहि वडीनीत, लघुनीत शरीरथी घेगळी करतो थको, धरती विशुद्ध | १ H. alwayo ( एचमां हमेशां ) णातिकमइ. २ जर्मन बुकमा दसथी चौद सूत्रोनो समावेश नंवर वेना सूत्रमा करेल छे. C-SCCC Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ करतो थको. तीर्थकरनी आज्ञा अतिक्रमे नहिं (केमके तेमने एकज वखत बहार-ठंडीलदिके जइ शकाय. वारंवार जइ शकाय ॥९॥ नहि केमके ग्रहस्थादिक विनय वारंवार साचवी न शके ने जेथी जैन धर्मनी लघुता थाय)॥११॥ क्ष अर्थ ॥ १२ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । प० समर्थ होय । वे० वैयावच करवाने । इ० इच्छा होय तो। क० ६] वैयावच करे । इ० इच्छा न होय तो । नो० न । क. वैयावच करे ॥१२॥ मूळपाठ ॥ १२ ॥ (३) आयरियउवटाए पभू वेयावडियं श्वो करेजा इला नो करेजा ॥१२॥ ____ भावार्थ ॥ १२ ॥ आचार्य, उपाध्याय वैयावच करवाने समर्थ होय वो इच्छा होय तो वैयावच फरे ने इच्छा न होय । तो वैयावच करे नहिं ॥ १२॥ अर्थ ॥ १३ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । अ० मांहि । उ० उपाश्रय मांहि । एक एक । रा. रात्री । वा० अथवा । दुवे । रा० रात्री। वा० बळी । व० वसतो थको । नो० न । अ० आज्ञा अतिक्रमे (नहि.)॥१३॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ (४) आयरियउवजाए अन्तो उवस्सयस्त एगरायं वा दुरायं वा । वसमाणे नो अइक्कमइ ॥ १३ ॥ भावार्थ ॥ १३ ॥ आचार्य, उपाध्याय उपाश्रयमांहि एक रात्री के चे रात्री रहेतां मामा अतिक्रमे नहि ॥ १३ ॥ १ म. (एच) इच्छाए. frREADERS निस ॥१५॥ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ||१४|| प्रा० आचार्य । उ० उपाध्याय । वा० बाहार । उ० उपाश्रय बहार । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा । दृ० मे । रा० रात्री । वा० बळी | व० वसो कोवळी । नो० न । अ० आज्ञा उलंघे नहि ॥ १४ ॥ मृळपाव ॥ १४ ॥ ( ५ ) आवरियजवाए वाहि उवस्यस्स एगरायं वा दुरायं वा मा नो अइक्कमइ ॥ १४ ॥ भावार्थ ॥१४॥ आचार्य, उपाध्याय उपाश्रयनी बाहार एक रात्री अथवा वे रात्री वसतो थको आज्ञा अतिक्रमे नहि ॥ १४ ॥ अर्थ || १५ || ग० गणावच्छेदक ना । णं० बळी | ग० गणि एटले टोळाना । दो० वे । अ० अतिशय । प० कथा | ० दु० वे । रा० ते । ज० कई छे । ग० गणाच्छेदक । अं० मांहि । उ० उपाश्रयमांहि । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा | रात्री | वा० बळी | ब० वसतो थको । नो० न । अ० आशा अतिक्रमे ॥ १५ ॥ मूलपाठ ॥ १५ ॥ गात्रइयस्त णं गणंसि दो अइसेसा पन्नता, तंजहा । ( १ ) गणाव - इए अन्तो वस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमा नो अइक्कमइ ||१५|| ' भावार्थ || १५ || गणावच्छेदकना गणी ( टोळा ) ना वे अतिशय कक्षा ते कहे छे, गणावच्छेदक उपाश्रयमांहि एक रात्री के वे रात्री वळी वसतो थको आज्ञा अतिक्रमे नहि ॥ १५ ॥ 11. (एच) पातिकम. २ जर्मन बुकमा १५ ने १६ सूत्रोनो समावेश त्रीजा सूत्रमां कर्यो छे. छ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घवहार" ॥ ९६ ॥ अर्थ ॥ १६ ॥ ग० गणावच्छेदक । बा० बाहार । उ० उपाश्रय ( बाहार ) । ए० एक । रा० रात्री । वा० अथवा | दु० बे । रा० रात्री । वा० वळी । व० रहेतो थको । नो० न । अ० अतिक्रमे आज्ञा ।। १६ ।। मूळ पाठ ॥ १६ ॥ (२) गणावडेश्ए बाहिं उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे नो अक्कम ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६ ॥ गणावच्छेदक उपाश्रयनी बाहार एक रात्री के बे रात्री वसतो थको आज्ञा अतिक्रमे नहि ॥ १६ ॥ एगणना अधिकारीनो अधिकार कह्यो. तेनो टोळो अणभण्यो विचरे नहि ते माटे हवे अणभण्यानो व्यवहार आश्री अधिकार कहे छे । अर्थ ॥१७॥ से० ते । गा० गामादिकने विषे । वा० अथवा जा० ज्यां लगे । रा० राज्यधानीने । वा० विषे । ए० एक । व० कोट गढ । ए० एक । दु० बारणं ( दरवाजो ) होय । ए० एकज । नि० नीकळवानो । प० एकज पेसवानो मार्ग छे । नो० न | कव् कल्पे । व० घणा । अ० अभण । सू० सूत्रना एटले आचारंग निसीथ भणनार नहि ( अगितार्थ ) ने । ए० एकठा । व० रहेवुं ( कल्पे नहिं ) । अ० छे । या० वळीं । इहां । ए६० वळी । के० कोइ । आ० आचारंग । प० निसीथना । ध० भणनारा साधु | न० नथी । या० वळी इहां रह्यो थको एने । व्ह० वळी । के० कांइ पण । छे० छेद दिक्षानो । वा० १H (एच) णातिकमइ. उद्देसओ. ०६॥ ॥ ९६ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथवा । १० तपनो प्रायश्चित पण नथी। वा० वळी । न० नधी । या० वळी इहां । हं० वळी । के० कोइ । आ० आचारंग । १० निसीथनां । ध० भणनार तो। से० तेने। सं० जेटला दिवस रहे तेटला दिवसनो । छे० दिक्षानो छेद । वा० अयया । प० परिहार । तप प्रायश्चित । वा० बळी ॥ १७ ॥ मृळपाठ ॥ १७ ॥ से गामंसि वा जाव रायहाणिसि वो एगवगडाए एगवाराए एगनि क्खमणपवेसाए नो कप्पइ वहणं अगडसुयाणं एगयओ वत्थए. अत्थि याई एहं के आयारपकप्पधरे नत्थि याइं एहं केइ छेए वा परिहारे वा, नत्थि याइं एहं केइ आयारपकप्पधरे से सन्तराँ छेए वा परिहारे वा ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ ते गामने विपे, ते नगरने विपे, राज्यधानीने विषे ज्यां लगे सन्निवेपने विषे, एकज गढने विपे, एकज जेने वारणु ( दरवाजो) छे एकज निकळवा, प्रवेश करवानो मार्ग छे, त्यां घणां आचारंगादिक नहिं भणनारा अगितार्थ साधुने एकठा रहे कल्प नहि. जो इहां कोई आचारंग निसीधना जाण साधु होय तो तेनी साथे रहेतां कांइ पण दिक्षानो छेदकं तपनुं मायश्चित आये नहिं पण जो आचारंग निसीथना भणनारा कोइ त्यां न होय तो तेने जेटला दिवस त्यां रहे तेटला १H alwayb in eutras 17-20 ( एचमां हमेशां १७ थी २० सूत्रमा) जाव संनिवेसंसि वा. २ H always in Sutras 17-18 ( एचमां हमेशां सूत्र १७ थी १८ मां) आयारकप्प'. ३ । ( एच ) धरे सव्वेसि तेसिं २ त. RECER-RECRऊरन्टर %25-45455 ७ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - उद्देसओ. विहार दिवसनो दीक्षानो छेद अथवा तपर्नु प्रायश्चित आवे ॥ १७ ॥ उपर एम एक वंडी (गढ) तथा एक द्वारवाळा गामनो अधि. । ९७ कार कह्यो. हवे घणा गढ, वारणादिवाळा गामने विषे रहे तेनो अधिकार कहे छे । ___अर्थ ॥ १८ ॥ से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा । जाज्यां लगे । रा० राज्यधानीने विषे । वा. वळी । अ० जुदा जुदा । व० गढ । अ० जुदा जुदा । दु० दरवाजा । अ० जुदा जुदा । निकनीकळवाना । ५० पेसवाना मार्ग छे। नो. न । क. कल्पे । व० घणा । वि० बळी । अ० नहिं । ग. भणनार । सु. आचारंग निसीथनो अभण । अगीतार्थने । ए. एकहुं । व० रहेQ । अ० छे । या० इहां । हं० बळी । के० कोइ । आ० आचारंग । प० निसीथनो। ध० भणनार । जे जे । त० त्रीजी । र० रात्री सुधीमां । सं० आचारंग निसीथना भणनार ते समिपे एकठा आवी रहे । न० नथी। या इहां । ई० वळी । तेने । के० कोइ । छे. दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित । वा० वळी न पामे । न० नथी। या० इहां । हं० वळी । के० कोइ एक । आ० आचारंग । १० निसीथनो । ध० भणनार । जे जे सर्व । त० त्रीजी । २० रात्री सुधीमां । सं० ते भणनार समीपे आवीने न वसे तो । स० ते सघळाने । ते ते । तते । प० प्रत्यक्ष तेहनी पदवीहै नो । छे० जेटला दिवस रहे तेटला दिवसनो छेद । वा० अथवा । प० तपर्नु प्रायश्चित आवे । वा० बळी ॥ १८ ॥ मूळपाठ ॥ १८ ॥ से गामंसि वा (जाव ) रायहाणिसि वा अभिनिवगडाए अनिनिपु वाराए अनिनिक्खमणपवेलणाए नो कप्पइ बहूण वि अगडसुयाणं एगयो वथए, अस्थि याई एहं केइ आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ नत्थि | | ९७॥ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- 7 -4 MARA -K याइं एहं केइ ए वा परिहारे वा, नत्थि याई एहं के आयारपकप्पधरे जे तत्तियं रयणिं संवसइ सवेसिं तेसिं तप्पत्तियं ठेए वा परिहारे वा ॥१८॥ भावार्थं ॥ १८ ॥ ते गामने विपे ज्या लगे सन्निवेशने विषे बळी जुदा जुदा गढ होय, जुदा जुदा दरवाजा होय, जुदा हैं || जटा नीयळवा पेसवाना मग होय त्यां घणा आचारंग निसीथना अभण, अगिताधने एकठा रहेg कल्पे नहि. जो इहां फोइ एक आचारंग निसीयना मणगार होय तो तेनी स.थे त्रण रात्रि एकठा आगीने रहेg कल्पे ने एम करवामां तेओ दीक्षानो छेद के तपन प्रायश्ति पाम नतिजा त्यां वोइ आचरिंग निसीथना भणनार नथी तो जे साधु व्रण रात्रि त्यां वसे नो ते सघळाने ते पदवीनो जेटला दियम त्यां रहे तेटला दिवसनो छेद अथवा तपनुं प्रायश्चित आवे. (आनो सार नीचे मुजय. ते गामादिक्ने विपे जुदा जुदा गवाहादिक होय त्यां घणां अगितार्थने एकठा रहेg कल्पे नहि. जो वस्तिना अभावे तथा आहारादिफ न मळे ते कारणे गितार्थ, अगितार्थ घणाजण एकठा न रहि शके तो गितार्थनी नेश्राए अगीताथ जुदा जुदा रहे पण अगितार्थ त्रीजे दहाडे गीतार्थ साथे रहे कलो. ए केवा रीते ते कहे छे. आचार्य अगितार्थनी सार संभाळ माटे एक | गितार्थने मोकले तेनी साथे अगितार्थ रहे तेमां प्रायश्चित आये नहि. हवे जो त्रीजे दहाडे गितार्थ त्यां आवीने न रहे अथवा | ते गितार्थने सपीपे अगितार्थ आवीने रहे नहिं पण एकलो रहे तो ते दरेक अगितार्थने प्रायश्चित आये ) ॥ १८ ॥ उपर अ. | गितार्थ आधी पायु. ये वहु श्रुतीए केम रहेवू तेना आचारनो अधिकार कहे छे ।। अर्थ ॥ १९ ॥ से दे। गा० गामने विपे । वा० अथवा। जा० ज्यां लगे । रा० राज्यधानीने विषे । वा० वळी । .-- Cre . Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसमो M अ० जुदा जुदा । व० गढ । अ० जुदा जुदा । दु० दरवाजा छे । अ० घणा। नि.नीकळवाना मार्ग । प० घणा पेप्सवाना वहार 15 मार्ग छे । नो० न । क. कल्पे । ५० बहु । सु० सत्रीने । ब० घणा। आ० सिद्धांतना जाणने । ए० एकाकीपणे । भि० .९८॥ KA साधुने । व० वस, कल्पे नहिं तो। किं० शुं कहेQ । अं० कोमळ आमंत्रणे । पु० वळी । अ० अल्प । आ० आगमना धणीने । अ० अल्प । सु० सूत्रना धणीने ॥ १९ ॥ मूळपाठ ॥ १९ ॥ से गामंसि वा (जाव) रायहाणिसि वा अनिनिव्वगडाए अभिनिदुवा राए अनिनिक्खमणपवेसणाए नो कप्पइ वहुसुयस्स बन्नागमस्स एगाणि यस्स निक्खुस्स वत्थए, किमङ्गपुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स ? ॥ १९ ॥ भावार्थ ॥ १९ ॥ ते गामने विषे ज्यां लगे संन्निवेषने विषे घणा गढ़ छे. घणा दरवाजा छे. घणा निकळवा पेसवाना मार्ग छे त्यां बहुसूत्रीने, घणा आगमना जाण साधुने एकाकिपणे रहे कल्पे नहि. जो उपला साधुने रहेवू न कल्पे तो वली अल्पसूत्रने अल्पागमना जाणनी वाबत तो कहेज ? एटले तेमने तो एकाकीपणे रहेवं कल्पेज नहि ॥ १९ ॥ उपर न रहेवा आश्री का. हवे रहेवा आश्री कहे छे॥ अथे ॥ २०॥ से० ते । गा० गामने विषे । वा० अथवा । जा. ज्यांलगे । रा० राज्यधानीने । वा० विषे । ए० एक । M० गढ छे । एक एक । दु० दरवाजो छे। एक एक । नि० निकळवानो। प० पेसवानो मार्ग छे। क० कल्पे । ब० बहु । | सु० सूत्रीने । व० घणा । आ० आगमना जाणने । ए० एकाकिपणे । भि० साधुने । ५० रहेQ कल्पे । दु० बने । का० काळ SHEKCAष्टवनगर ॥ ९८॥ " Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एटले अहोरात्री सांज सवारे | भि० साधुना । भा० भावस्वरुप क्रियादि भावनाने विषे । प० जागतो धको ॥ २० ॥ मूलपाठ ॥ २० ॥ से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा एगवगमाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स चन्नागमस्त एगाणिस्स निक्खुस्स वFree कालं भिक्खुनाचं परिजागरमाणस्स ॥ २० ॥ भावार्थ || २० || ते गामने विषे ज्यां लगे संन्निवेशने विषे एक गढ, एक दरवाजो छे, एक नीकळवा पेसवानो मार्ग त्यां बहुत्री अने घणा आगमना जाण साधुने एकाकिपणे रहेवुं कल्पे ज्यां रह्यो थक्को बन्ने काळ एटले अहोरात्र साधुनी क्रियानी भावनाने विषे जागतो थको प्रमाद रहित सावधानपणे विचरे || २० || उपर अनाचार सेववानो निषेध क पण एम करतां कोई अनाचार सेवे तो तेने प्रायश्चित आवे. ते भणी इहां आश्रय लइ प्रायश्चित सेवे तेने प्रायश्चित कहे छे. अर्थ || २१ ॥ ज० ज्यां | ए० ए | व० घृणा । इ० स्त्री । य० वळी | पु० पुरुष । य० नळी । प० मैथुन कर्म प्रारंभता होय (उदीरणादि 'मोहने उदये करी ) । त० त्यां देखीने । से० ते । स० साधु । नि० निग्रंथ । अ० अनेरा । अ० अचित | सो० श्रोत बस्रने विषे । सु० शुक्र । पो० पुदगळ | नि० काढतो । ६० हस्त । क० कर्म । प० सेववाने | १० विषे । आ० पाये । मा० एक मासनुं । प० प्रायश्चितनुं । ट्टा० ठाम । अ० गुरुप्रायश्चित ॥ २१ ॥ १ II (एचमां ) उभओ. Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ofock. X नवहार ९९ ॥ मूळपाठ ॥ २१ ॥ जत्थ' एए' बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पाहावेन्ति तत्थ से समणे नि- से उद्देसजो ॥६॥ ग्गन्थे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे हत्थकम्मपडि सेवणपत्ते बावजाइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं ॥ २१ ॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ जे जग्याए घणां स्त्री पुरुषो मोहना उदयथी मैथुनकर्म प्रारंभ करता होय ते देखीने ते श्रमण साधु । अनेरा अस्ति श्रोत रखने विषे सक्र (वीर्य) ना पुदगळ काहे तो ते काढतो थको ते हस्तकर्म सेवतो थको एक मासन प्रायश्चित गुरु प्रायश्चित पामे ॥ २१ ॥ उपर हस्तकर्मनो भाव आणी सेववानुं कयु. तेतो कोइ मैथुननो पण भाव आणी सेवे ही ते भणी मैथुननो भाव आणीने सेवे तेने प्रायश्चित कहे छे. l Xt-tyaKEN अर्थ ॥ २२ ॥ ज० ज्यां । ए० ए । व० घणी । इ० स्त्री। य० वळी । पु० पुरुषो । य० बळी । प० मैथुनकर्म भता छ । त० त्यां देखीने । से० ते । स० श्रमण | नि० निग्रंथ । अ० अनेरा । अ० अचेत । सो० श्रोतने विषे मैथुन सेववा आसक्त भावनी प्रतिज्ञा करीने । सु० सुक्र । पो० पुदगळ सुक्र जोणितादि । नि० काढे काढतो थको। मे० मैथुन । ५० वर्मरूप भाव आणीने । से० सेवना । ५० करे तो । आ० पामे । चा० चार मासर्नु । प० प्रायश्चितर्नु । ठा० ठाम । अ० गुरु प्रायश्चित ॥ २२ ॥ १H (एचमां) जे तत्य व ॥ ९९॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपाठ ॥ २२ ॥ जत्थ' एए' वहवे इत्थीयो य पुरिसा य पाहावेन्ति तत्थ से समणे निग्गन्थे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुकपोग्गले निग्याएमाणे मेहुण पडि सेवणपत्ते आवजाइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ २२ ॥ भावार्थ ।। २२ ।। जे ते ठामे घणां स्त्री पुरुषो मैथुननो प्रारंभ करता होय त्यां तेमने देखीने श्रमण निग्रंथ अनेरा अचित । श्रीतने विषे मधुन सेवचा आसकत भावनी प्रतिज्ञा करीने शुक्र पुद्गळ (शुक्र योनिमांथी ) काहे, काढतो थको मैथुन कर्मरुप भाव आणीने सेवना करे तो ते चार मासिक प्रायश्चितनो ठाम गुरु प्रायश्चित पामे ॥ २२ ॥ उपर मैथुन सेवतां प्रायश्चित H) आय एम का ते प्रायश्चितियाने केवी रीते राखे एटले अनेरा गणनी साध्वीने लेवानी विधि कहे छे ।। व अर्थ ॥ २३ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधु । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । नि० कोइ एक साध्वी अनेरा गच्छ यकी आवीने । खु० खंडाणो छे आचार जेहनो । स० एकवीस सवळा मांहिला सवळा दोप लाग्या छे । भि० भेदाणो दे आचार जेनो। सं० क्रोधादिके मेलो छे। आ० आचार । चि० चारित्र जेनो। त० ते । ठा० स्थानक । अ० अण| आ० आलोये । अ० अण| प० पटिकमे । अ० अण | नि० निदे । अ० अण । गगरहवे । अ० अण । वि. प्रायश्चित टाळी निर्मळ करे । अ० न । वि० पोताना आत्माने विशुद्ध करे । अ० नहिं । क० करुं ए पापस्थानक एहवं कही । अ० न । अ० १ II ( एच ) जे तत्य. MISHRSISTER SHES Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ca %CECO पहाण सावधान थइने उठे । अ० दुषणने अनुसारे । पा० यथा योग्य मायश्चित । अ० न । १० पडिवर्जे । उ० महा व्रतने विषे .18 दसमा० १००॥ ठगवण करवो । वा० अथवा । सं० एक मांडले जमवं । वा० अथवा । . एक स्थानकमां भेल्लं वसव । वा० वळी । ते० तेहने । इ० थोडा । दि० काळनी पदवी । वा० अथवा । अ० जाव जीवनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी। वा० अथवा । भधा० धारवी । वा० बळी न कल्पे ॥ २३ ॥ मूळपाठ ॥ २३ ॥ नो कप्पक्ष निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा निग्गन्येि खुयायारं सब लायारं जिन्नायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्त ठाणस्त अणालोयावेत्ता अपमि. कमावेत्ता अनिन्दावेत्ता अगरहावेत्ता अविन्द्यावेत्ता अपिसोहावेत्ता अकरणाए अणब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायबित्तं अपडिवजावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जि. त्तए वा संवसित्तए वा तेर्सि इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ।। साधु अथवा साध्वीए अनेरा गणथी आवेल साध्वी खंडाणो छे आचार जेने, २१ सवळा दोप ला. १H adds ( एचमां वधारे) अन्नगणाओ आगयं. २ म (एच) चरितं. ३ F adds (एचमां वधारे) पुच्छित्तए १०. वा वाइवए वा. ४ म (एच) तीसे. R ESCRE * Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H गेल जेने, भेदाणो में आचार जेनी, क्रोधादिके करी मलो छे चारित्र आचार जेनो, वळी ते साध्वीए ते स्थानकने आलो11 व्युं, पटिकम्युं, निदयुं, गईयु नधी, निर्मळ कर्यु नथी, आत्माने विशुद्ध कर्यो नथी, नहिं करुं ए पाप स्थानक एवं कही सा. सवधान पद उठी नधी, दुपणने अनुसारे यथायोग्य प्रायश्चित पडिवयु नधी तो तेची साध्वीने साता पूछवी, सूत्रादिकनी || यांची देवी, महावत आरोपy, एक मांडले जमवू, स्थानमा साथे रहेवू तथा तेने थोडा काळनी के जावजीवनी पदवी देवी के धारवी फल्पे नहि ।। २३ ॥ उपर मुजब कल्पे नहिं एम कयु. हवे केम कल्पे ते कहे छे. र अर्थ ।। २४ ॥ क० कल्पे । नि० साधु । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । नि० कोइ एक साध्वी । अ० अन्य । ग० गच्छनी । आ० आवी । खु० खंडाणो छे। आ० आचार जेने। स० सवळो। आ० दोप लाग्यो छ जना भि० भेदाणो छ । आ० आचार जेनो । सं० क्रोधादिके मेलो थयो छे । आ० आचार । चि० चारित्र जेहनु । त० ते । [2] टा० स्थानफने । आ० आलोवीने । ५० पडिकमीने । नि० निंदीने । ग० गरहीने । वि० निर्मळ करीने । वि० विशुद्ध क-18] | रान । अ० नहीं । क० करुं ए पाप स्थानक एहवं कहीने । अ० सावधान थइने उठे । अ० दुपणने अनुसारे । पा० माय-14. श्चित । प० अंगीकार करीने । उ० महावत ने संजमने विपे उवठाण करवं । वा० अथवा । सं० एक मांडले सघात ज चा० अथवा । सं० एक स्थान के एकटा रहेवं वा० अथवा । ते. तेने। इ० थोडा। दि० काळनी पदवी । वा० अथवा । अ० जावजीवनी पदवी (अथवा नाना मोटानी अपेक्षाए परंपरानी पदवी)। वा० वळी। उ० देवी। वा० अथवा । धा० . धारवी । वा० वळी (फल्पे)॥ २४ ॥ त्ति० एम । बे० हुँ कहुं हुं ॥ २ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपाठ ॥ २४ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा निग्गन्धि अन्नगणायो आगयं बबहार 18 उद्देसमो. ४१०१॥ खुयायारं सबलाया जिन्नायारं संकिलिदायारचित्तं तस ठाणस्स आलोयावेत्ता पमिकमावेत्ता निन्दावेत्ता गरहावेत्ता विउट्टावेत्ता विसोहावेत्ता अकरणाए अब्भुट्ठावेत्ता अहारिहं पायबित्तं पविजावेत्ता उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा संवसित्तए वा तेसिं इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २४ ॥ त्ति बेमि ॥ भावार्थ ॥ २४ ॥ साधु अथवा साध्वीने अन्यगणनी साध्वी ते साध्वी केवी छे तो के खंडाणो छ आचार जेनो, स १ (एच) चरिचं. २ B adds (एचमां वधारे) पुच्छित्तए वा वाइत्तए वा. ३ म (एच) तीसं. ४ H has | two eutras more, they conform to 28 &24, except निग्गन्थ for निग्गन्धि. The text of course goes with the variants of 28 &24. In both ratras तीसं. (एचमां वे सूत्र वधारे छे ते २३-२४ जेवा छे. फेर एटलो छे जे “निग्गन्यि" ने बदले “निग्गन्धं" शब्द प्रक्यो छे. वाकी २३-२४ मुजब पाठान्तर छे, बने सत्रोमां "वीसं" H" तेसि " ने बदले में ). ५ F add ( एचमां वधारे ) सि मि. ॐनच १०२० Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15) पळा दोप लाग्या जेने, भेदाणी छे आचार जेनो, क्रोधादिके मेलो छे चारित्र आचार जेनो, ते स्थानकने आलोवी, पहि- 8 फी, निदी, गरही, निर्मळ फरी, विशुद्ध करीने, नहिं फरु ए पापस्थानक एह कहीने सावधान थइ उठीने, दुपण ते अनु- हूँ सारे प्रायश्चित अंगिकार करीने आवे तेने ( समाधिनुं पुछवू, सूत्र वंचाव), महावते स्थापचुं, एकठा एक मांडले जमवं, एक ४ स्थानके रदेवू तया तेने थोडा काळनी जावजीव लगे नाना मोटानी अपेक्षाए पदवी देवी के धारवी कल्पे ॥ २४ ॥ एम मुधर्मास्वामि जंप स्वामिने फहे छे जे, जेम में महावीर देवकने सांभळ्युं तेम में तुज प्रत्ये कयुं ॥ अर्थ ॥ ६ ॥ व० व्यवहार सूत्रनो । छ० छठो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥ ६ ॥ मुळपाठ ॥ ६ ॥ ववहारस्स छट्ठो उद्देसयो समत्तो ॥ ६ ॥ भावार्य ॥ ६ ॥ व्यवहारसूत्रनो छट्ठो उद्देसो पुरो थयो ॥६॥ ARRORTS Kucces. wr Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- E वहार० २०२।। उद्देसओ ॥७॥ XA रन-%97 %२५ -F% ॥ ववहारस्स सत्तमो उद्देसओ॥ व्यवहार सूत्रनो सातमो उद्देसो अर्थ ॥१॥ जे. जे । नि० साधु । य० वळी । नि० साध्वीने । य० वळी । स. १२ प्रकारनो संभोग तेणे करी संभोगी। सि०ले ते मांहि । नो० न । क कल्पे । नि० साध्वीने । नि० आपणा गुरु साधने । अ० विण। पू० पूछये । नि० साध्वाने । अ० अनेरा | ग. गच्छ थकी। आ० आवी ते कहेवी छे । ख० खंडाणो छ । आ० आचार जेहनो । स० सबळो दोष लाग्यो छे जेने । भि० भेदाणो छ । आ० आचार जेहनो। सं० क्रोधादिके करी मेलुं छे । आ० आचार। च० चारित्र जनु । त० ते । ठा० स्थानक । अ०विण । आ० आलोन्ये । जा. ज्यांलमे । पा० प्रायश्चितने । अ० विण । ५० पडिवज । पु० समाधिनु पुछq । वा० अथवा । वा०वांचना देवी । वा० अथवा । उ० महाव्रतने विषे उठाववो । वा० अथवा । सं० एक मांडले जमवु । वा० अथवा । सं० एक स्थानके वसतुं । वा० अथवा । ती० तेने। इ० थोडा काळनी। दि० पदवी। वा० अथवा । अ० जावजीवनी । दि० पदवी । वा. वळी । उ० देवी । वा० अथवा । धा. धारवी । वा० वळी कल्पे नहिं ॥१॥ मूळपाठ ॥१॥ जे निग्गन्था य निग्गन्थीओ य संनोइया सिया. नो कप्पइ निग्गन्थीणं निग्गन्थे अणापुलित्ता निग्गन्धि अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं % E +7 -% ।१०।। E Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन्नायारं संफिलिट्ठायारचित्तं तस्स गणस्स अणालोयावेत्ता (जाव) पायचित्तं अपमिवजावेत्ता पुलित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुजित्तए वा । संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥१॥ भावार्य ॥ १ ॥ जे कोइ साधु साध्वीने १२ प्रकारना संभोग छे ते पेकीनी साध्वीने वीजा गच्छनी साध्वी खंदाणो छे आचार जेनी, सबळा दोप लाग्या ये जेने, भेदाणो छे आचार जेनो, क्रोधादिके करी मेलो ययो छे आचार. जेनो तेवी साध्वी ते स्थानकन आलोव्या विना, पडिकम्या विना, प्रायश्चित लीधा विना आवे तो तेवी साध्वीने पोताना गुरुने पूछया विना तेने साता न पूछवी, वांचणी न देवी, महाव्रत आरोपवु नहिं, एक मांडले तेनी साथे न जमवं. एक स्थानके तेनी साथै वसव नहिं तथा तेने योढा काळनी के जावजीवनी पदवी देवी के धारवी कल्पे नहिं ॥१॥ उपर मुजब न कल्पे एम । यधुं तो हवे केम कल्पे ते कई ॥ अर्थ ॥ २॥ जे० कोइ । नि० साधु । य० वळी । नि० साध्वी। य० वळी । सं० १२ प्रकारना संभोगे करी सं1) भोगि । सि० तेने । क० कल्पे । नि० साध्वीने । नि० पोताना गुरुने । आ० पूछीने । नि० साध्वी । अ० अनेरा । ग. गच्च्यी । आ० आवी छे । खु० खंडाणो छ । आ० आचार जेनो । स० सबळा दोष लाग्या छे जेने । भि० भेदाणो छ । IS आ० आचार जेनो। सं० क्रोधादिके मेलो थयो छे। आ० आचार। च० चारित्र जेहनो। त० ते । ठा० स्थानक। भा० ? (एचमा ) चरितं. ॐॐॐॐॐ २ -- Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसमो. बवहार० ॥१०३॥ *904GEE आलोवीने । जा. ज्यांलगे । पा० प्रायश्चित । प० पडिवर्जीने । पु० समाधिनुं पूछ । वा० अथवा । वा० वांचना देवी । वा० अथवा | उ० महाव्रतने विषे उठावq । वा० अथवा । सं० एक मांडले जमवु । वा० अथवा । सं० एक स्थानके वसव॑ । पा० अथवा । ती० तेने । इ० थोडा काळ नी । दि० पदवी । वा० अथवा । अ० जावनीवनी । दि० पदवी । वा० बळी । उ. देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥२॥ मूळपाठ ॥ २॥ जे निग्गन्था य निग्गन्थीओ य संलोइया सिया, कप्पर निग्गन्थीणं ." निग्गन्थे आपुलित्ता निग्गन्धि अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं जिन्नायारं संकिलिट्ठायारचरित्तं तस्स वगणस्स आलोयावेत्ता (जाव) पायबित्तं पडि. वजावेत्ता पुलित्तए वा वाएत्तए वा वट्ठावेत्तए वा संगुञ्जित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥२॥ भावार्थ ॥ २ ॥ जे कोइ साधु अथवा साध्वी जे १२ प्रकारनो संभोग करे छे तेवी साध्वीने पोताना गुरुने पुछीने बीजा गच्छमाथी आवेल साध्वी खंडाणो छे आचार जेनो, जेने सबळा दोष लागेल छे, भेदाणो छे आचार जेनो तथा क्रोधादिके | १Hadds the above sutra (एचमा) उपलं सत्र वधारे हे ने जर्मन चुकमा २ ने ३ सत्र १ ना भेगां आपेल छे. C ॥१०३॥ RECO Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K - 4K मलो भयो रे आचार जेनो पण जेणे ते स्थानकने आलोव्यो छे, पडिकम्यो छे, तथा प्रायश्चित पडिवों छे एवी साध्वीने 8. साता पृथ्वी, यांचना देवी, महावतने विपे स्थापवी, एक मांडले जमवू, एक स्थानके रहे, तथा तेने थोडा काळनी अथवा जावनीव मुर्धानी पदवी देवी के धारची कल्पे ॥ २ ॥ उपर साधुने पूछी साध्वीए अनेरा गच्छनी साध्वीने लेवानुं क{. हवे . साध केवी रीते अनेरा गच्छनी साध्वीने लीए ते आधी कहे छे ॥ अर्थ ॥ ३ ॥ जे. जे कोइ । नि० साधु । य० वळी । नि० साधी । य० बळी । सं० १२ प्रकारनो संभोग । सि० क.. रवायाळी तेने । क० पल्लं । नि० साधुने । नि० साध्वीओने । आ० पूछीने । वा० अथवा । अ० अण । पु० पुछीने । वा० ५ वळी । नि० साध्वी । अ० अनेरा । ग० गच्छनी । आ० आवी होय । खु० खांटो छे । आ० आचार जेनो । स० सवळो दाप लाग्यो में जेने । भि० भेदाणो छ । आ० आचार जेनो । सं० क्रोधादिके करी मेलो थयो छे । आ० आचार । चि. चारित्र जेनो । त० ते । ठा० स्थानके । आ० आलोवीने । जा० यावत । पा० प्रायश्चित । ५० पडीवीने । पु० साता पुछवी । वा० अथवा । वा० वांची देवी । वा० अथवा । उ० महाव्रतने विषे स्थापवी । वा० अथवा । सं० एफ मांडले जमवू । वा० अथवा । सं० एक स्थानके रहेधुं । वा० अथवा । ती० तेहने । इ० थोडा काळनी । दि० पदवी । वा० अथवा । | अ0 जावजीव सुधीनी। दि० पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । या० बळी करपे । त० ते अनेरा गच्छवाळी साीने । च० वळी । नि० साध्वीओ । नो० न । इ० वांछे तो ते साध्वी । से० पोताने । नि० जाय । ठा० स्थानके (जाय)॥ ३ ॥ .44% Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवदार० ॥१०४॥ मूलपाठ ॥ ३ ॥ जे निग्गन्था य निग्गन्धीओ य संजोइया सिया, कप्पइ निग्गन्धा निग्गन्धीओ आपुहिता वा अणापुहित्ता वा निग्गन्धि अन्नगणा आगयं खुयायारं सबलायारं जिन्नायारं संकिलिट्ठायारचित्तं तस्स गणस्स आलोयावेत्ता (जाव ) पायवित्तं परिवजावत्ता पुत्तिए वा वाएत्तए वा जबट्ठावेत्तए वा संभुत्तिए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसि - तए वा धारेत्तए वा तं चं निग्गन्धीओ नो इबेजा, सेवमेव नियं ठाणं ॥३॥ भावार्थ || ३ || जे कोइ साधु साध्वी जेने १२ प्रकारनो संभोग करवो कल्पे छे ते साधुए साध्वीओने पूछीने अथवा पुछयाविना पण बोजा गच्छमांथी कोइ साध्वी खंडीत आचारवाळी, सबळा दोषवाळी, भेदाणो हे आचार जेनो, क्रोधादिके करी मेलो थयो छे चारित्र आचार जेनो पण जेणे ते स्थानकने आळोवेल हे ज्यांळगे प्रायश्चित लीधुं छे ए साध्वीने साता पुछवी, वांचणी देवी, महात्रते स्थापवी, एक मांडले जमवुं ने एक स्थानके रहेतुं तथा तेने थोडा काळनी अथवा जावजीवनी पदवी आपवी के धारवी कल्पे पण जो ते आवेल साध्वीने जो साध्वीओ इच्छे नहि तो ते पोताना गच्छमां पाछी जाय ॥३॥ १H (एच) सयमेव. उद्देस ॥७३७५ ॥ १०४ ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपर साध सावीने संभोगीपणु कयु. तेती विसंभोगी पण होय ते भणी आहारादिक विसंभोगी करवानी विधि कहे छे ॥ a अर्थ ॥ ४ ॥ जे जे कोइ । नि० साधु । य० वळी । नि० साध्वी । य० वळी । सं० १२ प्रकारना माहोमांहि संभोगी। मिले । नो० न । ६० वळी तेने । क० कल्पे नहिं साधुने । पा० परोक्ष जे पूंठ पाछळ एटले नहिं । पा० सन्मुख (वीजा + स्थानक ) । सं० संभोगाने । वि० वि । सं० संभोगीपणो। क० करवो न कल्पे तो केम करवो कल्पे ते फहे छे । क० कल्पे । ई० वळी तेने । प० मोटामोढ । पा० पोतानी सन्मुख । सं० संभोगी साधुने । वि० विसंभोगी एटले आहारपाणी 15 जुदो । क० करवो । ज० ज्यां । ए० वळी पोते । अ० माहोमांहि सन्मुखपणे । पा० देखे । त० त्यां। ए० वळी । ए० ४ एम । २० कहे । अ० हुं । णं० वळी । अ० अहो आर्य । तु० तमारी । सं० संधाते । इ० । का० कारणे । प० प्रत्यक्ष | व मोटामोट पोताने स्थानके सन्मुखपणे । सं० आहारपाणीनो संभोग तेनो । वि० विसंभोग । क० करुंछ एम करतां । से० ते । - य० बळी । ५० मिध्यादुप्कृत दइ फरी नहिं करुं एम कहेतो एम कह्या पछी । ए० एम । से० ते साधुने । नो० न । क08 कलपे । ५० माहोमाई । पा० सन्मुख पोताना स्थानके । सं० संभोगीनुं । वि० विसंभोगपणुं । क० करवू कल्पे नहिं । से० 18 ते । य० वळी । नी० न । प० पासत्था साथे संभोग नहि करूं एहवो वचन न कहे अने मिथ्यादुष्कृत अने पश्चाताप न र करती । ए० एम । से० तेने । क० कल्पे । ५० प्रत्यक्ष मांहोमांहि । पा० पोताना स्थानके सन्मुख । सं० संभोगिपणानो । वि० विसंभोगीपणुं । क० कर, ( कल्पे ) ॥ ४ ॥ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ विहार ॥ ७॥ मूळपाठ ॥ ४ ॥ जे निग्गन्था य निग्गन्धीयो य संजोइया सिया, नो एहं कप्पइ' पारो कखं पामिएकं संभोइयं विसंजोगं करेत्तए, कप्प हं पञ्चकखं पामिएकं संजोइयं विसंजोगं करेत्तए. जत्थेव थन्नमन्नं पासेजा तत्थेव एवं वएका । अह णं अजो तुमाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पञ्चकखं संभोगं विसंजोगं करोमि. से य पमितप्पेजा एवं से नो कप्पर पञ्चकखं पामिएकं संजोश्यं विसंजोगं करेत्तए. सेय नो पमितप्पेङा एवं से कप्पइ पञ्चकखं पामिएकं संजोश्यं विसंजोगं करेत्तए ॥४॥ भावार्य ॥ ४ ॥ जे कोइ साधु साध्वी जेमने माहोमांहि १२ प्रकारना संभोग कल्पे छे ते पैकी साधुने परोक्ष रीते तथा । वीजा स्थानके सन्मुख कह्या विना संभोगी (आहार भेगो) साधुने विसंभोगी (आहारपाणी जूदो) करवो कल्पे नहि. सं. भोगी साधुने तेज स्थानके प्रत्यक्ष रीते तेनी सन्मुख कहीने तेने विसंभोगी करवो कल्पे. ज्यां पोते तेने माहोमांहि सन्मुख देखे त्यांज तेने एम कहे, हे आर्य ? हवे हुं तमारी साथे आवा कारणथी तमारो संभोग इवेथी नहि करूं एम मोदामोड तेनी स. १Hadda (एचमां वधारे) निग्गन्थे after कप्पइ (पछी). २ Hadds (एचमां वधारे) पाडियक for पाडिएक ( ने बदले ). नवराज 1१०५॥ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्व कहीं पछी तेने विसंभोगी करवो. पछी जो ते संभोगी साधु पोते एम कहे जे हवे पासत्यादिक साथे संभोग करीश में नहि ने फरेल कार्य माटे मिच्छामि दुकडं दइ पश्चाताप करे तो तेने मोढामोढ ने तेनी सन्मुख कही संभोगीने विसंभोगी फरवो फल्प नहिं, पण जो ते पश्चाताप न करे तो मोढामोढ तथा तेने सन्मुख कही संभोगीने विसंभोगी करवो कल्पे ॥ ४ ॥ उपर है साधु सार्वानुं साधु साधेनुं आहारपाणी छांढवा विषे कयु. हवे साधु सावानुं साध्वी साथेनुं विसंभोगीपणुं (आहारपाणी है छांटवार्नु ) वताये छे. ____ अर्थ ॥ ५ ॥ जा० जे कोइ । नि० साध्वी । वा० वळी । नि० साधु । वा० बळी । सं० १२ प्रकारना संभोगी । सि० के ते मांदि । ना० न । हं० वळी । क० कल्पे साध्वीने । प०.प्रत्यक्ष सन्मुख । पा० पोताना स्थानके । सं० संभोगी डू पणे ते साध्वीने । वि० विसंभोगी पणे । क. करवी न कल्पे तो केम कल्पे ते कहे छे । क० कल्पे । हं० एम। पा० परोक्ष. पणे एटले बीजी साध्वी पासे । पा० ने साध्वीने स्थानके कहेवरावीने । सं० संभोगीपणाने । वि० विसभोगीपणो । क० करचो कल्पे।। 18 ज० जे । ए० वळी । ता० ते । अ० पोताना । आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । पा० देखीने । त० त्यां । ए० वळी । ए० । | एम | २० कहे । अ० हवे । गं० वळी । भं० हे भगवंत ? । अ० अमुक साध्वीनो । अ० हे आर्य ? । स० मारी संघाते । इ० ॥ IPए । का० कारणे । पा० पूट पाउळ । पा० तेने पोताने स्थानके कहेबरावीने । सं० संभोगीपणानो । वि० विसंभोगीपणो में । ० का छे । हये । सा० ते साध्वी । य० वळी । से० ते ५० पश्चाताप करे तो । ए० एम | से० ते साध्वीने । नो० न।। फ० कल्पे । पा० परोक्षपणे वीजी साध्वीनी साखे । पा० पोताने स्थानके । सं० संभोगीपणानुं । वि० विसंभोगीपणु। * प.० यारघु कल्पे नहि । सा० ते साध्वी । य० वळी । से० ते । नो० न । ५० मिथ्या दुकडं दीए तो। ए० एम । से० ते * Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HD B56-1969kG E ववहार साध्वीनो । क० कल्पे । पा० पूंठ पाछळ वीजी साध्वीनी साखे । पा० पोताने स्थानके । सं० संभोगीपणानो । वि० विसंभो-18 उद्देसो ॥१०६॥ गीपणो । क० करवो कल्पे ॥५॥ मूळपाठ ॥५॥जायो निग्गन्थीयो वा निग्गन्था वा संनोइया सिया, नो एहं कप्प पच्चकखं पाडिएकं संनोइयं विसंभोगं करेत्तए, कप्पइ एहं पारोकखं पामिएक संनोश्यं विसंजोगं करेत्तए. जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय उवज्काए पासेजा, तत्थेव एवं वएगा। अह णं जन्ते अमुगीए अजाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोकखं पाडिएकं संजोगं विसंजोगं करेमि. सा य से पडितप्पेङा एवं से नो कप्पइ पारोकखं पामिएकं संजोइयं विसंनोगं करेत्तए. सा य से नो पडितप्पेजा एवं से कप्पइ पारोकखं पामिएकं संनोश्यं विसंभोगं करेत्तए ॥५॥ भावार्थे ॥ ५॥ जे साध्वी साधने संभोगीपणु छे ते पैकी साध्वीने वीजा साध्वीन मोढा मोढ सन्मुख पोताना स्थाHनके एटले रुबरु कही तेनु संभोगीपणानुं विसंभोगीपणुं कर कल्पे नहि. पण परोक्षरीते वीजी साध्वी संघाते तेना स्थानक ॥१०६ १ H adds ( एचमां वधारे) निग्गन्थी (निग्गन्थीओ is meant)(जोइए.) AK-4-- Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + ・トイスト・ビーイートすがしい。 +- SHE कंबरावीने संभोगीपणानुं विसभोगीपणुं करवु कल्पे एटले आहार पाणी भेगा होय ते जूदा करवा कल्पे. ते साध्वी पोताना आचार्य उपाध्याय देखीने एम कहे के आर्यो ! में अमुक साध्वीनो अमुक कारणे परोक्ष रीते तेने कहेवरावीने आहारपाणी | जुमो कयों छे, ते पश्चाताप करतो परोक्ष तेने स्थानके कहेवरावी तेनो आहार पाणी जुदो करवी कल्पे नहिं पण जो ते पिल्या दुप्कृत दीए नहि तो परोक्ष रीते तेने स्थानके कहेवरावी तेनो आहार पाणी जुदो करवो कल्पे ॥ ५॥ हवे साधु दिक्षा दिए तेथी साधुने दिक्षा देवानी विधि कहे है॥ अर्थ ॥ ६ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधुए । नि० साध्वीने । अ० पोताने । अ० अर्थे । प० दिक्षादेवी । वा० प्रथया । मुं० मुंट करवो । वा० अथवा । से० शिष्यणी करवी । वा० अथवा । उ० संजमने विषे उवठाणु करवू । वा० अथवा । सं० एक स्थान के एक्टुं रहेवू । वा० अथवा । सं० एक मांडळे जमवू । वा० अथवा । ती० तेने । इ० थोडा । दि० कालनी पदवी । या० अथवा । अ० जाव जीव मुधीना । दि० कालनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० बळी कल्प नहि ॥ ६॥ मूळपाठ ॥ ६॥ नो कप्पइ निग्गन्थाणं निग्गन्थि अप्पणो अट्ठाए पवावेत्तए वा मुकावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संजुञ्जित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ६॥ १ ll adds ( एचमां वधारे ) सिकखावेत्तए वा. - -टमाटर PLETEGORK Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥२०७॥ संजमने भावार्थ ॥ ६ ॥ साधुए साध्वीने पोताना अर्थे दिक्षा देवी, मुंड करवो, आचार शीखववो, शिष्यणी करवी, विषे उवठाणकर, एक मांडले जमवुं, एक स्थानके एकटुं वसवुं के तेने थोडा काळनी के जावजीवनी पदवी देवी के धारवी कल्पे नहि ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ७ ॥ क० कल्पे | नि० साधुने । नि० साध्वीने । अ० अनेराने । अ० अर्थे । प० प्रवर्णादेवी । वा० अथवा | जा० ज्यांलगे । सं० एक मांडले जमवुं । वा० अथवा । ती० तेने । इ० थोडा । दि० काळनी पदवी । वा० अथवा | अ० जावजीवना । दि० काळनी पदवी । वा० वळी । उ० देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी कल्पे ॥ ७ ॥ मूळपाठ ॥ ७ ॥ कप्पइ निग्गन्थाएं निग्गन्थि अन्नो अट्टाए पवावेतए वा (जाव ) संभुजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसंवा अणुदिसं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा ॥७॥ भावार्थ || ७ || साधु साध्वीने बीजीने अर्थे प्रवर्जा देवी, मुंडन करवुं ज्यां लगे पदवी देवी के धारवी कल्पे ॥ ७ ॥ हवे साध्वी साधु दिक्षा दीए ते कहे है । 1 अर्थ ॥ ८ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साध्वीए । नि० साधुने । अ० पोताना । अ० अर्थे । प० वर्ज्या देवी । वा० अथवा | मुं० मुंडन करवुं । वा० बळी । जा० ज्यांलगे । उ० पदवी देवी | वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥ ८ ॥ 5 उद्देसओ. ॥७॥ ॥१०७॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाठ ॥ ८॥ नो कप्पइ निग्गन्धीणं निग्गन्धं अप्पणो अट्ठाए पवावेत्तए वा मुएमावे ___ त्तए वा (जाव ) उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ८॥ भावार्य ॥ ८ ॥ साध्वीए साधुने पोताना अर्थे दीक्षा देवी, मुंडन करवु अथवा पदवी देवी के धारवी कल्पे नहिं ॥ ८॥ अर्थ ॥ ९॥ क० कल्पे । नि० साध्वीने । नि० साधुने । नि० साधुने । अ० अर्थे । ५० दीक्षा देवी । वा० अथवा । मुं० मुंडन फरवो । वा० अथवा । जा. ज्यांलगे । उ० पदवी देवी । वा० अथवा । धा० धारवी । वा० वळी ॥९॥ मूळपाठ ।। ९ ॥ कप्पइ निग्गन्थीणं निग्गन्थं निग्गन्थाणं अट्ठाए पवावेतए वा मुएमा वेत्तए वा (जाव ) उदिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥९॥ . भावार्थ ॥ ९ ॥ साध्वीने साधुने, साधुने अर्थे दीक्षा देवी, मुंडन कर, ज्यांलगे पदवी देवी अथवा धारवी कल्पे ॥९॥ ये सालाने विहार करवानी विधि कहे छे ॥ अर्थ ॥ १० ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साध्वीने । वि० विकट | दि० दिशाए विहार करवो । वा० अथवा । अ० ते 2 अणु यी विकट । दि० दिशाने विपे । वा० बळी । उ० जावो । वा० अथवा । धा० धारवो । वा० वळी कल्पे नहिं ॥१०॥ मूळपाठ ॥ १०॥ नो कप्पइ निग्गन्थीणं विइकिट्टियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥१०॥ (Hadar the following two Eutras vias &9 ( आठ ने नव सूत्रो एचमां । Sakck -- Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P-RS5 ववहार 4-% -1-% 1 -1- -1 1 उद्देसमो. भावार्थ ॥१०॥ साध्वीने विकट दिशाए, घणी विकट दिशाने विषे विहार करवो अथवा धारवो कल्पे नहि केमके त्यां संजमनी विराधना थाय ॥ १०॥ हवे साधुने विहार करवानी विधि कहे छ । का अर्थ ॥ ११॥ क. कल्पे । नि० साधुने । वि.विकट । दिदिशाए विहार करवो । वा० अथवा । अ० घणी विकट । दि० दिशाने विषे । वा० वळी । उ० जावो । वा० अथवा । धा० धारयो । वा० वळी कल्पे ॥ ११ ॥ मूळपाठ ॥ ११ ॥ कप्पइ निग्गन्थाणं विइकिट्ठियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ ११ ॥ साधुने विकट के घणी विकट दिशाने विषे जावू के धारवं कल्पे ॥ ११ ॥ हवे विकट दिशाने BE: विषे क्षमावानो अधिकार कहे छे. अर्थ ॥ १२॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधने । वि० विकट देशने विषे । पा० कठोर वचनादिकना उपना पायश्चित । त्यो बेठो । वि० खमाव_ कल्पे नहिं ॥१२॥ मूळपाठ ॥ १२ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाणं विकिट्ठाई पाहुडाइं विओसवेत्तए ॥ १५ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ साधुने विकट देशने विषे कठोर वचनादिकनुं प्रायश्चित लइ त्यां बेठा खमाव_ कल्पे नहिं ॥ १२ ॥ अर्थे ॥ १३ ॥ क० कल्पे । नि० साध्वीने । वि०विकट देशने विषे । पा० कठोर वचनादिकना उपना प्रायश्चित । वि० &ा॥२०८॥ त्यां बेसी खमाववं कल्पे ॥ १३ ॥ name +9 E POR- CTOL - . -- 5-4.- Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपाठ ॥ १३ ॥ कप्पइ निग्गन्धीणं विइकिटाई पाहुडाई विओसवेत्तए ॥ १३ ॥ ___ भावार्थ ॥ १३ ॥ साध्वीने विकट देशने विषे कठोर वचननो प्रायश्चित कइ ते देशने विषे रही खमावq कल्पे ॥ १३ ॥ जे खपाये ते सज्झायादिक कर माटे सज्झाय करवानी विधि कहे छे. ___अर्थ ॥ १४ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधुने साध्वीने । वि० वि । का० काळे । स० सज्माय । क० करवी : कल नहि ॥१४॥ मूळपाठ ॥ १५ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाणं 'विइकिट्ठए काले सज्जायं करेत्तए ॥ १४ ॥ भावार्य ॥ १४ ॥ साधु ( साध्वी ) ने विकाळे सध्झाय करवानो उपदेश करवो नहिं ने समाय करवी पण नहि. (वि. फटकालना ये मेद १ कालिक ने २ उत्कालिक. कालिक विकट ते पेहेली पोरसी पछी ने पाछला चोया पोहोर पेहेलां. उकाबिक विकट वे सांस सारे चे पोहोर अर्ध रात्ति ते ॥ १४ ॥ ___ अर्थ ॥ १५॥ क० कल्पे । नि० साध्वीने । वि० पोरसी प्रमुख पाछळी सर्व । का० काळने विषे । स० पांच प्रकारनी । समाय । क० करवी कल्पे ते । नि० साधुनी । नि० नेश्राए कल्पे ॥ १५॥ १ . H. ( टी. एचमां पाठ नीचे मुजब छे ) निगन्याण वा निग्गन्थीण वा विइगिट्टे (किट्ठाए म एचमां) काले तु सम्झायं उद्दिसितए रा करेचए वा. । Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ ववहार. ॥१०९॥ मूळपाव ॥ १५ ॥ कप्पइ निग्गन्थीणं 'विइकिट्ठए काले सज्जायं करेत्तए निग्गन्थ निस्ताए ॥ १५ ॥ भावार्थ ।। १५ ॥ साध्वीने विकट काळे सज्झाय उपदेशवी अथवा करवी कल्पे ते साधुनी निश्राए (आज्ञाए) कल्पे ॥१५॥ अर्थ ॥ १६॥ नोन । क. कल्ये । नि० साधने । वा० अथवा । नि० साध्वीने। वा. वळी । अ० असझायनी वेनाए । स० सझाय । क० करवी ॥ १६॥ मूळपाठ ॥ १६ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा असज्काइए सज्जायं ___करेत्तए ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६॥ साधु साध्वीने असज्ञायनी वेळाए सज्झाय करवी कल्पे नहि ॥१६॥ अर्थ ॥ १७ ॥ क० कल्पे । नि० साधुने । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । स० सज्झायने काळे । स० सज्झाय । क० करवी ॥१७॥ मूळपाठ ॥ १७ ॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा सज्जाए सज्जायं करेत्तए ॥१७॥ भावार्थ ॥ १७॥ साधु साध्वीने सज्ञायने काळे सज्ञाय करवी कल्पे ॥१७॥ १T (टीमां) विइगिहे. (एचमां ) फिट्टाए.२ H (एचमा ) अदिसित्तए वा. ३ म (एचमां) वा. +91-75% ।१०९ Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना 6 क % e अर्थ ॥१८॥ नो०न । फ० कल्पे । नि० साधुने । वा० अथवा । नि० सांध्वीने । वा० बळी । अ० आपणा शरीर यी उपनी । अ० असझायने विपे । सं. सज्ञाय । क. करवीन कल्पे । क० फल्पे । हं० वळी । अ० एकबीजाने । वा० यांचना । द० देवी ।। १८ ॥ मृळपाठ ॥ १८ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अप्पणो असज्जाइए सज्जायं करेत्तए. कप्पक्ष एई अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए ॥१८॥ ___ भावार्थ ॥ १८ ॥ साधु साध्वीने पोताना शरीरनी उपनी असज्ञाइने विषे सज्ञाय करवी कल्पे नहिं पण माहोमांहि एफ-1 वीजाने वांची देवी कल्पे ॥ १८ ॥ ये साध्वीने गुरुविना रहे, नहिं ते अधिकार कह छे ॥ । अर्थ ॥ १९ ॥ ति० त्रण | वा० वर्पनी । ५० प्रवाना धणीने । स० श्रमण तपस्वि । नि० निग्रंथ साधुने अने । ती०४ बीस । वा० वर्पनी । ५० प्रवर्जावाळी । स० श्रमणि । नि० साध्वीने । क० वल्पे । उ० उपाध्यायपणो । उ० देवो ॥१९॥ __ मूळपाठ ॥ १९ ॥ तिवासपरियाए समणे निग्गन्थे तीसंवासपरियाए समणीए निग्गन्थीए । कप्प३ उवज्जायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ १५ ॥ भावार्य ॥ १९ ॥ त्रण वर्षनी दिक्षावाळा श्रमण निगंथने अने ३० वर्पनी दिक्षावाळी श्रमणी निग्रंथीने उपाध्यायपणु आफ्वं यल्पे ॥१९॥ --16 Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसमो.. ७॥ पवहार० अथे ॥ २०॥ पं०पांच । वा० वर्षनी। प० प्रवाना धणी । स० श्रमण । नि०निगंथने । स०६०वा. वरसनी।। ११०॥६० प्रवावाली । स० श्रमणी । नि० साध्वीने । क० कल्पे । आ० आचार्यपणे । उ० उपाध्यायपणे। उ० स्थापना कल्प ॥२०॥ 4 मूळपाठ ॥ २० ॥ पञ्चवासपरियाए समणे निग्गन्थे सद्विवासपरियाए समणीए निग्ग न्थीए कप्पइ 'आयरियनवज्कायत्ताए उदिसित्तए ॥ २० ॥ भावार्थ ॥ २० ॥ पांच वरसनी रिक्षावाला श्रमण नियंथने अने साठ वरसनी दिक्षावाली श्रमणी साध्वीने आचार्यपणे उपाध्यायपणे स्थापवी कल्पे ॥ २० ॥ हवे साधु साध्वीनी वैयावच आश्री कहे छे । ___अर्थ ॥ २१ ॥ गा. एक गामथी । अ० बीजे गाम । द० विहार करता । भि० साधु । य० वळी साध्वी । आ० कदाचित । वी० काळ करे तो । त० तेना । च० वळी । स० शरीरने । के० कोइ । सा० साधर्मिक साधु । पा० देखे तो ते सा. धर्मिक साधु ( साध्वीने )। क. कल्पे । से० तेने । तं ते साधु साध्वीना । स० शरीरने । से० ते । न० न होय । सा० वस्त्रादिके सहित । इ० एम । शरीर वस्त्रादिके। क. करीने ते शरीरने एकांते अचित ठामे । थं० थडिलने । ब० घणुं । फा० फ्रामुक निर्दोष । प० जोइने । प० पुंजीने । प० परठवे । अछे। या० इहां । थ० वळी । के० कोइ । सा० साधर्मिकनो । सं० छतो । उ० उपगरण | जा० जाति एटले वसपात्रादिक उपधि । प० भोगववा योग्य छेतो तेने । क० कल्पे । से० ते । सा० सागारीनो अवग्रह मागीने । क० आचार्य थको । ग० ग्रहेने दो० वीजीवार । अ० पण । ओ० आचार्यनी आज्ञा । २ म. (एच) आयरियचाए. 5*55px LADPUR ॥११॥ Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - the अ. मार्गाने । ५० भोगये अथया । १० छांडे ॥ २१ ॥ मृळपाठ ॥ २१ ॥ गामाणुगामं इइमाणे निक्खू य आहच्च वीसम्नेजा तं च सरीरगं केइ साहम्मिए पासेजा, कप्पइ से तं सरीरगं से न सागारियमिति कट्टु थएिमल्ले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमङित्ता परिद्ववेत्तए. अस्थि याई थ केइ साहम्मियसन्तिए उवगरणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओ गहं अणुनवेत्ता परिहारं परिहारेत्तए ॥२१॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ एक गामथी बीजे गाम विहार करता साधु साध्वी कदाचित काळ करे तेहना शरीरने कोइएक सा. थर्मिक साधु देखे तो ते साधर्मिक साधुने ते साधु साध्वीना शरीरने वस्त्रादिके दांकीने ते शरीरने एकांते अचित निर्दोष थे-५ टोल भृमिने जाइ पूंजीने परठव कल्पे जो इहां कोइ उपगरणनी जाति ते वस्त्र पात्रादिक उपधि साधर्मिक साधुने भोगववा है. योग्य होय तो ते चीजो सागारिक लइने बीजीवार आचार्यनी आज्ञा मागीने भोगववी अथवा छांडवी कल्पे ॥ २१ ॥ हवे स्थानकनी विवि कहे ॥ ___अथे ॥ २२ ॥ सा० सेध्यांतर (जेना उपाश्रये साधु रहेता होय ते )। उ० उपाश्रय वेचे नहिं पण । व० भाडे । प० । ___ ॥ ( एचमा ) वीमु. २ H also T ( एच ने टीमां ) मा सागारियं । ति कट्ट तं सरीरगं एगन्ते अचित्ते बहु फामुए थण्डिले पनि Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार ॥११॥ उद्देसओ. ॥७॥ 2 CHER-ENCE दीए । से० ते सेण्यतिर । य० बळी । व० जेने भाडे दीए तेने । व० एम कहे । इ० ए । य० वळी । इ० ए। य० बळी । ओ जग्याने विषे । स० श्रमण । नि० निगंथ । १० बसे छे ते जग्या मुकीने भाडे आप्यु छे एम कहे तो । से० ते। सा० सेज्यांतरने घेर आहारने अर्थे । पा० जq नहिं । से० ते सेज्यांतर । य० वळी । नो० न एम । व०कहे (केमके आखी जग्या भाडे आपी छे) पण । व० जेणे आखी जग्या भाडे लीधी छे ते भाडुत एम । व. कहे ए पासे जग्याने विषे श्रमण निग्रंथ रहे छे तेम रहे एम कहे तो । से० ते । सा० भाडुत सेज्यांतरनो आहार । पा० लेवो कल्पे नहि । जो। दो० मालेक तथा भा डुत बन्नो । वि० वळी । ते. ते । २० कहे के साधु जे जग्यामां वसे छे त्यां भले रहे तो ज्यां लगे । दो० ते बन्ने । वि० वळी 8 ते । सा० सेज्यांतरना घेर आहार पाणी । पा० छांडवो ॥ २२ ॥ मूळपाठ ॥ २२ ॥ सारिए' उवस्सयं वकएणं पनओजा, से य वकइयं वएगा। इमम्हि य इमम्हि य ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्ति, से सारिए पारिहारिए. से य नो वएजा, वक्कइए वएको, से सारिए पारिहारिए. दो वि ते वएगा, दो वि सारिया' पारिहारिया ॥२२॥ १F always in 22 & 28 (एचमा २२-२३ मां) सागारि. २ (एचमां) इमंमि य २.३ " (एचमां) परि. ४] ४ Hadds ( एचमां वधारे ) एवं. ५H adds ( एचा वधारे ) इमंमि य २ उवासे समणा निग्गन्धा परिवसन्ति. ६ H (एच) एवं. ७ H adds ( एचमां वधारे) जाव. * ॥११॥ Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्य ॥ २२ ॥ सेज्यांतर उपाश्रयने भाडे आपे पण तेम करती वखते भाडे राखनारने ते फहेके भाडे आपेल जग्यामां आ अमुक ठेकाणे श्रमण नियंथ वसे छे एटली जग्या मुकीने भाडे आपशुं तो ते सेज्यांतरनो आहारपाणी वोहोरवो कल्पे नाहि. ने सेध्यांतर आयुं मकान भाडे आपेल होय तेथी उपर मुजब ते कहे नहि पण भाडे लेनार एम फहेके आ भाडे लीधेल 14 जन्यामां एक पासानी जम्यामां श्रमण साधु विचरो एम कहे तो ते भाडे लेनार सेज्यांतरनो आहारपाणी वोहोरवो कल्पे नहि. | जो मालेक. अने भाइत बन्ने उपर मुजब कहे तो ते वन्नेने सेज्यांतर गणी तेमना आहारपाणी छांडवा ॥ २२ ॥ उपर भाडे १. आपदा आश्री का. हये आखं मकान वेची नाखे तो सेज्यांतर टाळवा आश्री अधिकार कहे छ । ___ अर्थ ॥ २३ ॥ सा० सेज्यांतर (जेने उपाश्रये साधु रहेता होय ) । उ० उपाश्रयने । वि० वेंचे वेचतो । से० ते । य० वळी । फ० जेने येचाण कयों तेने । व० एम कहे । इ० ए उपाश्रयनो । य० वळी । इ० एनो । य० वळी आटलो । ओ०* Pा भाग । स० श्रमण । नि० निगंध साधुने । ५० वसवा देवो तो । से० ते वळी । सा० सेध्यांतर (जे उपाश्रयनो मालेक छे) रानो आधारपाणी । पा० छांडवो । से० ते मालेक । य० वळी । नो० न एम । व० कहे । क. वेचाण लेनार एम । व० Pई आटली जग्या श्रपण साधुने रहेवा माटे राखवी तो । से० ते वेचाण लेनारने । सा० सेज्यांतर गणी तेनो आहार पाणी।। १ पा० छांटवो । दो० जो मालेकने वेचाण लेनार बन्ने । वि० वळी । ते. ते एम उपर मुजव । व० कहेतो ज्यांलगे। दो० ते १ को वि० बळी ते सा० रोज्यांतर गणी तेना आहारपाणी । पा० छांडवा ॥२३॥ Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15 उद्देस ववहार० ॥११२॥ %AREER मूळपाठ ॥ २३ ॥ सारिए' उवस्सयं विकिणेजा, से य कइयं वएजा। इमम्हि य इम. म्हि य ओवासे समणा निग्गन्था परिवसन्ति, से सारिए पारिहारिप . से य नों वएजा, कइए वएका से सारिए, पारिहारिए. दो वि ते वएक्जा, दो वि सारिया' पारिहारिया ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ जे कोइ सेज्यांतर उपाश्रयने वेची नाखे पण तेम करती वखते ते वेचाण लेनारने एम कहेजे आटली जग्या श्रमण निगंथने रहेवा माटे छे तो ते वेचनारने सेज्यांतर गणी ते सेज्यांतरना घरनो आहारपाणी लेवो नहि. जो त वेचनार सेज्यांतर एम न कहे पण वेचाण लेनार एम कहे जे आ जग्या श्रमण निगंथने माटे रहेवा देजो तो ते वचाण लनारने सेजांतर गणी तेनो आहारपाणी लेवो नहि. जो वेचनार ने लेनार बन्ने एम कहे. ज्यां लगे बन्नेने सेजांतर गणी तेमनो आहारपाणी बन्नेनो लेवो नहि ॥ २३॥ उपर सेज्यांतरनो आहारपाणी न लेवा आश्री का. हवे ते स्थानकनी आज्ञा मागवानी विधि कहे छे॥ -4- अर्थ ॥ २४ ॥ वि० विधवा । धु० बेटी वळी । ना० पीताने। कु. घेर । वा० रहेनारी श्राविका । सा० छ । वि० ज तहना । ओ० (अवग्रह) आज्ञा । अ०मागवी होय। किं. शं कहेवं । पु० वळी । पि० पीतानो । वा० २२ मां पाठान्तर मुजब २३ मां जाणवो. OCTOR ॥११॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथवा भा० भाइनो | वा० अथवा पु० पुत्रनो । वा० बळी | से० ते । वि० बळी | या० जे । बेहुनी । ओ० आना | ओ० लंबी ॥ २४ ॥ मृळपाव ॥ २४ ॥ विवधूया नायकुलवासिणी, सा वि यावि श्रग्गदं श्रणुन्नवेयवा. किमङ्ग पुण पिया वा जाया वा पुत्ते वा, से वि यावि ओग्गहे योगेहियवे ॥ २४ ॥ भावार्थ ॥ २४ ॥ विधवा टीकरी पीताने घेर रहे छे, जे श्राविका पण छे तेनी आज्ञा मागवी तेनी साथे तेना पीता के भाइ के पुत्र एम बेहुनी आज्ञा मागी स्थानकमां उतरनुं ॥ २४ ॥ ए वस्तीने विषे अवग्रह मागवो को ते तो विहार करतां पण साधु रहे त्यां अटवीमां रहेतां आज्ञा मागवी ते कहे छे. अर्थ || २५ || ५० पंथ विषे । वि० वळी रहतां । ओ० अवग्रहनी आज्ञा । अ० मागवी होय ॥ २५ ॥ मृळपाठ ॥ २५ ॥ पहिए ́ वि ओग्गहं" अणुन्नवेद्वे ॥ २५ ॥ भावार्थ ॥ २५ ॥ पंथने विषे रहेतां त्यां पण अवग्रहनी आज्ञा मागवी, एटले मार्गने विषे वृक्षादिकनी तथा वृक्षादिकने ( एचमां ) से य दोवि उग्गहं ओगिव्हियन्त्रा. १) (एच) नियं. २ Hadd ( एचमां वधारे) सिया. ३ ४1 1 (पीवी) दिए, I. ( टी ) पहे. ५ . हो यन्त्रो. ६ H adds ( एचमां वधारे) सिया. ***** Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार० ॥११३॥ विषे प्रथम पंथी आदिक रहेतो होय तेनी अवग्रहनी आज्ञा मागवी || २५ || उपर स्थानकनी आज्ञा मागवी कही. हवे देशादि - कने विषे आज्ञा मागी रहेवानो अधिकार कहे छे । अर्थ ॥ २६ ॥ से० ते साधु वळी साध्वी । २० राजा । प० काळकरे । वीजानो राज्याभिषेक थयो छे । सं० प्रथमना राजानी स्थिति तुटी नथी । अ० दावो करनार भाइओना समभाग थया नथी । अ० अन्य वसता हता ते राजा प्रमुख विछेद या नथी । अ० हजी कोइ बीजा देशना राजाए । प० राज्य लीधुं नथी । साधुनुं त्रीजुं व्रत राखवाने अर्थे । स० ते साधुने । चै० वळी तेज | ओ० आगलो अवग्रह । पु० जे पूर्वली । अ० आज्ञाए करी । व० पाछला वर्णवे सहितं । चि० रहेवो केटलो काळ ते कहे छे । अ० ज्यांलगे । ल० थोडोकाल । अ० वळी । ओ० पूर्वला राजानी आज्ञाए एटले ज्यां लगे नवो राजा आवतां लगे ॥ २६ ॥ 1 1 मूलपाठ ॥ २६ ॥ से 'ऊपरियट्टेसु संथमेसु घोगमेसु अघोहिन्ने अपर परिग्गहिएसु सच्चैव योग्गहस्स पुवाणुन्नवणा चिट्ठइ श्रदालन्दमविग्ग ॥ २६ ॥ भावार्थ || २६ || ते साधु साध्वीए, राजाए काळ कर्यो ने बीजानो राज्याभिषेक कर्यो छे एम राज्यमां फेरफार थयो १ (एच) राय. उस 116 11 ॥११३॥ Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण दजु प्रथमना राजानी स्थिती तूटी नथी, भाइयोना भाग वेच्या नथी, अन्य वंशना राजा विच्छेद यया नथी, इजु ते देशानुं बीजा वंशना राजाए राज्य लीधुं नथी तेने विषे साधुनुं त्रीजुं व्रत राखवाने अर्थे आगला राजानी अवग्रहनी आशाए यां कंगे बीजो राजा राज्यपर आये त्यां लगे रहें कल्पे ॥ २६ ॥ अर्थ ॥ २७ ॥ से० ते साधु वळी साध्वी । र० राज्य । प० फेरफार थयो एटले नवो राजा गादिए मेठो । अ० पूर्वला राजानी स्थिति तूटी है । वो० सगा संबंधीए भाग वेहेंची लीधा छे । वो० अन्य वंशना राजा प्रमुख विच्छेद थया छे । प० बीजा देशना राजाए । प० राज्य लीधुं छे । भि० साधुनुं । भा० न्रीजुं व्रत राखवाने । अ० अर्थे । दो० वीजीवार । पि० बळी | ओ० अवग्रहनी | अ० आज्ञा मागी रहेतुं । सि० होय || २७ ॥ ति० एम। वे० हुं कहुं हुं ॥ मूळ पाठ || २७ || से 'रेपरियहेस असंथडेसु वोग मेसु वोहिनेसु परपरिग्गहिएसुनि कखुनात्रस्स अट्टाए दोच्चं पि श्रोग्गहे अणुन्नवेयवे सिया' ॥ २७ ॥ त्ति बेमि भावार्थ || २७ || ते साधुए राज्यमां फेरफार थतां एटले जुनो राजा गुजरी जतां नवो राजा थयो एटला पूर्वका रा जानी स्थिति तृट्टी, सगासंबधीए भाग वहेंची लोधा, अन्य वंशना हता ते राजा प्रमुख विच्छेद थया, बीजा राजाए राज्य H (एच) राय, २ II adds ( एचमां वधारे ) 'बेमि Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ० ॥ ११४ ॥ लइ लीधुं तो साधुनुं त्रीजुं व्रत राखवाने अर्थे, बीजीवार नवा राजानी आज्ञा मागवी || २७ ॥ एम सुधर्मास्वामि कहे छे, जेम में महावीर देव समिपे सांभळ्युं हतुं तेम हे जंबू ? तुज मत्ये कर्तुं ॥ अर्थ || ७ | व० व्यवहारनो । स० सातमो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥ ७ ॥ मूळ पाठ ॥ ७ ॥ ववहारस्स सत्तमो उद्देस समत्तो ॥ ७ ॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ व्यवहार सूत्रनो सातमो उद्देसो पुरो थयो ॥ ७ ॥ उद्देसओ. IJA ॥११४॥ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ववहारस्स अट्ठमो उद्देसओ ॥ व्यवहारसूत्रनो आठमो उद्देसो. अर्थ || १ || गा० बरने विषे । उ० रुतुबद्धकाळ । प० आषाढमास (पावस) वर्षारुतु पहेलां अने कार्तिक चोमासु । वि० पटिकम्या पर्छ (पजुसण पछी ) । ता० ते । गा० घर । ता० तेना । प० प्रदेश ( मांहि बहार थको दूर जग्या दूर आसनने विषे ) । दा० ते स्थानकना । उ० अवकाशना आंतराने विषे । ज० जे जे । से० सेज्या । सं० संधारो । ल० मळे । त० ते । त० ते । म० माहरो । ए० बळी । सि० छे । थे० स्थिवर । य० बळी | से० तेने । अ० आज्ञा दीएतो । त० ते संज्या संथारो | ए० बळी | सि० तेनोज होय । थे० स्थिवर । य० बळी | से० तेने । नो० न । अ० आज्ञा दीएतो । ए० एम | सं० तेने । क० कल्पे ( सज्ञायादिक ) । आ० दिवस । रा० रात्रीए । से० सेजा । सं० संथारो । प० ग्रहवो || १ || मृळपाव ॥ १ ॥ गाहा' उर्दू पोसविए. ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवास - न्तराए जमिपं सेासंथारगं लभेता, तमिणं तमिणं ममेव सिया. थेरा य से अणुजाणेजा, तस्सेव सिया. थेरा य से नो अणुजाऐका, एवं से कप्पइ १ II (एच) गिद्द . २ 11 (एच) उडु ३H (एम) गिहाए ४ nutin T. ( टीमां नथी ) ५ H adde ( एच वधारे ले ) नो तस्सेव सिया. : Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार .८ ॥ %ARSE SECa आहाराशणियाए सेजासंथारगं परिग्गाहेत्तए ॥१॥ उद्देसओ. भावार्थ ॥ १॥ आषाडमास पावस वर्षारुतु पहेलां ने कार्तिक चोमासु पडिकम्या पछी घरने विषे, ते घरनी मांहिला के 12 वहारला प्रदेश के दूर आसनने विषे, ते स्थानकना अवकाशना आंतराने विषे जे जे सेज्या संथारो मळे ते ते म्हारी वस्तु छे । कहे, पण जो गुरु तेने आज्ञा दीए तो ते सेजा संथारो प्रमुख तेने लेवा कल्पे ने जो स्थिवर ते चीजो लेवानी | आज्ञा न आपे तो तेने लेवा कल्पे नहि. एम तेने आज्ञा लीधा पछी रात्रि दीवस सेजा संथारो लेवो कल्पे ॥ १॥ उपर सेजा संथारो लेवानी विधि कही. हवे हळवो सेजा संथारो लेवो ते आश्री कहेछ ।। अर्थ ॥२॥ से० ते । अ० यथायोग्य । ल० लधुकाय योग्य । से० सेजा। सं० पाट । ग० गवेषे (शोधे)। ज० जे । च० वळी । कि० कोइ समर्थ छे । ए० एक । ह० हाथे करीने । ओ० उपाडीने उपाडीने। जा. ज्यांलगे ग्रहीने । ए० एक दहाडाना पंथे (विसामे )। वा० अथवा । दु० वे दहाडाना पंथे । वा० अथवा । ति० त्रण दहाडाना पंथे । वा० अथवा मार्गे । प० वहीश (एटले गाममां न मळेतो परगामथी एक दिवसथी त्रण दिवसना पंथ थकी आणq कल्पे ) । ए०ए। मे० माहरे । हे० शीयाळे । गि० उनाळे । भ० होशे ॥२॥ मूळपाठ ॥२॥ से अहालहुसगं सेडासंथारगं गवेसेजा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं A-AGACANCERAL ॥११५॥ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PLEASEARC ओगिज्ज' जाव एगाहं वा ज्यादं वा तियाहं वा परिवहित्तए, एस मे हेम न्तगिम्हासु नविस्सई ॥२॥ भावार्य ॥२॥ ते साधु लघु हलका पाट संघारो गर्वपे ( शोधे ) जे ते एक हाथे उपाडीने एक दहादाना, वे दहाहाना अथवा प्रण दहाटाना पंथे ( मार्गे) लइ जवा समर्थ छे एवो हलको सेजा संथारो शीयाळा उनाळा माटे मेळवे (अथवा ते गाममां न मने. तो परगामी एकथी त्रण दिवसना पंथे करी मेळवे ) ॥२॥ ____ अर्थ ॥ ३ ॥ से० ते साधु । य० वळी । अ० यथायोग्य । ल० नानो हलको । से० पाट । सं० डाभादिक संथारो । ग. गगे । ज० जे पाट प्रमुख । च० वळी । कि० कोइ साधु साध्वी समर्थ होय । ए० एक । ह० हाथे करी। ओ० उपा हीने । जा० ध्यांलगे | ए० एक दहाडाने पंथे २ । (एक विसामे )। अ० मार्गे । ५० वही शके ( एटले जो गाममांहि न 8 मळे तो परगामी एक दीनी त्रण दीनने पंथ थकी आणवो कल्पे )। ए० ए पाट प्रमुख । मे० भारे । वा० वर्षाकाळने 8 न माटे । भ० काम आवशे ॥ ३ ॥ __ मूळपाठ ॥ ३ ॥ से य अहाल हुसगं सेजासंथारगं गवेसेजा, जं चक्किया एगेणं हत्थेणं १H ( एचमां ) ओगिज्झिय २. २ Hudds (एचमां वधारे) अद्घाणं. ३ जर्मन बुकमां आ सूत्र ३ जा पछी मुकेल हे. SM Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥११६॥ MUCHECCAऊ ओगिक' जाव एगाहं एगाहं अद्धाणं परिवहित्तए, एस मे वासावासासु नविस्सई ॥३॥ उद्देसओ. KAKKAISE भावार्य ॥३॥ ते साधु नानो हलको पाट संथारो गधे के जे एक हाथे करीने उपाडीने एक दिवस (बे दिवस, त्रण दिवस) ना पंथने विषे मार्गे वही शकवा समर्थ होय. ते पाट संथारो मारे वर्षास्तुमा कामनो होशे. (गाममां न मळे तो बहारथी लावे)॥३॥ न अर्थे ॥ ४ ॥ से० ते साधु । अ० यथायोग्य । ल० लघु हलको। से० पाट । सं० संथारो। जा० गवेषे । जं. जे । च० बळी । कि० कोइ समर्थ होय । ए० एक । ६० हाथे करी । ओ० ग्रहीने २। जा. ज्यांलगे । एक एक दहाडाना पंथे । वा० अथवा । दु० वे दिवसना पंथे । वा० अथवा । ति त्रण दिवसना पंथे । वा० अथवा । च० चार दिवसना पंथे । वा० अथवा । पं० पांच दिवसना पंथे । वा० बळी एटला वळी । अ० पंथ यकी आणे अथवा । १० वही शके एटले गाममां न मळे तो परगामथी आणे । ए० ए सेजा संथारो । मे० माइरे । ०वधती । वा० वर्षास्तु । भ० कामनो होशे ॥ ४॥ . म (एचमां) ओगिज्झिय २. P without २(पीमां (२) नथी), २ T. F (टी. एचमां) एगाई वा दुयाह वा तियाई वा अ.३म (एचमां) वासासु.४ This sutra is put before 2 in G. Edition ॥११६ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** मूळपाठ ॥ ४ ॥ से अहालहुसगं सेकासंथारगं जाएगा,' जं चक्किया एगेणं हत्येणं ओगिक जाव एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा चजयाहं वा पञ्चगाहँ वा अ द्वाणं परिवत्तिए, एस मे बुढावासासु भविस्सइ ॥ ४ ॥ भावार्थ पे ॥ ४ ॥ साधु लघु हलको जेवो पोताने जोइए तेवो पाट संथारो गवेषे जे एक हाथे करी उपाडीने एक दहादाना, चे दद्दाटाना, त्रण दहाटाना, चार, पांच दहाडाना एटला दूर पंथने विषे उपाडवा समर्थ होय ( अथवा गाममांथी न मनोपरगामी लावे ) जेथी ते पाट संथारो मारे वधती वर्षारुतुमां काम आवे ॥ ४ ॥ । अर्थ | || थे० स्थिवरने | थे० स्थिवरनी । भू० भूमिकां । प० प्राप्त हुवाने एटला उपगरण मेळवावा । क० कल्पे । द० दांदी | वा० अथवा | भ० भंड ते पात्रा । वा० अथवा । छ० छत्र ( ते मस्तकने विषे धरवानो कपढो ) । वा० अथवा | म० मात्रीयो ( पेशावनुं भाजन ) । वा० अथवा | ल० काकडी | वा० अथवा | चे० वस्त्र पछेडी | वा० अथवा | च० चर्म । बा० अथवा | च० चर्मनो । प० कटको । वा० वळी | अ० नथी । वि० विरह एटले घरनो धणी ज्यां छे त्यां । ओ० वा स्थानके उपली चीजो | ठ० मुकीने स्थिवर साधु । गा० गृहस्थना | कु० घेर । पि० भातपाणीने । प० अर्थे । प० घरमां पेसे | वा० अथवा | नि० नीकळे । वा० वळी | क० कल्पे । ०६० वळी ते साधुने । सं० भिक्षा लड्ने । चा० पाछो वळे ते १H (एच) गवेसेज्जा, २H (एच) ओगिज्झिय २० ३ H (एच) पञ्चाहं वा दूरमवि अ Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनहार० ॥११७॥ वारे ने घेर उपगरण क्या छे तेनी । दो० बीजीवार । पि० वळी । ओ० आज्ञा । अ० मागीने उपगरण ( वापरखा योग्य भोगवे अथवा ) । प० छांडे ॥ ५ ॥ मूळ ॥ ५ ॥ บ येरभूमिपत्ताणं कप्पइ दण्डए वा एलए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठा' वाले वा चम्मे वा चम्मपलिज्ञेयण वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिएमवायपमियाए पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा. कप्पइ एह ँ संनियट्टचारीणं दोघं पि ओग्गहं श्रणुन्नवेत्ता परिहरित्त ॥ ५ ॥ भावार्थ ॥ ५ ॥ स्थिवर स्थिरवास रह्या तेने दांडो, पात्रा, छत्र ( ते माथे ढांकवानुं कपड़े ), ( माटीनुं भाजन), मात्रीयो, लाकडी, ( बेसवानी पाटली ), वस्त्र ( पछेडी ), (पछेडीनो पडदो बांधवानी दोरी), चर्म, ( चर्मनी कोथळी), चर्मनो कटको ए चीजो राखवी कल्पे, हवे स्थिवर एकला छे तो उपला उपगरण ज्यां घरनो घणी छे तेवा स्थानके मुकीने गृहस्थने घेर अन्नपाणीने अर्थ पेसे अथवा नीकळे अने भीक्षा लइने पाछा फरतां जेने घेर उपगरण मुक्यां छे तेनी बीजीवार आज्ञा मागीने ते उपगरण (भोगवे के ) छांडे ॥ ५ ॥ उपर उपगरण लेवा आश्री कहुँ. हवे उपगरण लेवानी विधि कहे छे. १ H ( एचमां ) 'यं. २ Hadds (एचमां वधारे) भिसि वा. ३ Hadds (एचमां वधारे) चेलचिलिमलिं वा. ४ H (एच) म्ं. ५ Hadds (एचमां वधारे) चम्मकोसं वा. ६ H (एच) भत्ताए वा पाणाए वा ७ H (एच) से. ८ Hadds (एचमां बधारे ) परिहारं. उद्देसओ. ॥ ८ ॥ ॥ ११७ ॥ Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ॥ ६ ॥ नो० न । क. कल्पे । नि० साधु । वा० वळी । नि० साध्वीने । वा० वळी । पा० पादीयारो। वा० अथवा । सा० सेज्यांतर । सं० संबंधी । वा० वळी । से० पाट पाटला । सं० संथारो डाभादिकनो । दो० वीजीवार । अ०५ वळी । ओ० अवग्रह (आशा) । अ० माग्याविना । १० वीजे स्थानके के गाम । नी० लइ जवो वळी कल्पे नहिं ॥ ६ ॥ मूळपाठ ॥ ६ ॥ नो कप्पर निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा पाडिहारियं' वा सागारिय सन्तियं वा सेजासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता वहिया नीहरित्तए ॥६॥ ५ भावार्य ॥ ६ ॥ साधु अथवा साध्वीने पाटीयारा अथवा सेनांतरना यको पाट पाटला के संथारो वीजीवार मालधणीनी आशा माग्याविना पीना स्थानके के वहारगाम लइ जवो कल्पे नहि ॥ ६ ॥ हवे केम कल्पे ते कहे छे ॥ ___अर्थ ॥ ७ ॥ क० कल्पे । नि० साधुने । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । पा० पाढीयारो । वा० अथवा । र HI सा० सेप्यांतर । सं० संबंधी । वा० वळी । से० पाट पाटला | सं. संथारो । दो० वीजीवार । अ० वळी । ओ० आज्ञा । । म०मागीने । १०वहार । नी०काढयो कल्पे ॥७॥ TA addr (एचमां वधारे) वा सागारियसन्तियं वा, E0 no separate sutra in pat for it ae in G. Edition (माटे तेनु नवु मत्र जर्मन चुक मुजब मुन्यु नथी.) Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षहार० ॥११८॥ क मूळपाठ ॥ ७॥ कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा पाडिहारियं वा सागारियस- से उद्देसओ न्तियं वा सेजासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता बहिया नीहरित्तए ॥७॥ य ॥८॥ भावार्थ ॥ ७ ॥ साधु साध्वीने पाढीयारो ने सेजांतर थको लीधैल सेजा संथारो वीजीवार आशा मागीने बहार लइM जबो कल्पे ॥७॥ उपर लेवानी विधि कही. हवे ते उपगरण पाछा सोंपे ने पाछा सोप्या पछी वळी भोगववानी विधि अर्थ ॥ ८॥ नो० न । क. कल्पे । नि० साधने । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । पा० पाढीयारो । वा० । * अथवा । सा० सेज्यांतर । सं० थको। वा० बळी । से० पाट । सं० संथारो । स० सर्वे पोतानो । अ० पाछो आपीने । दो० बीजीवार । अ० वळी तेनी । ओ० आज्ञा । अ• माग्या विना। अ० भोगववो न कल्पे । क. कल्पे । अ० आज्ञा मागीने ॥८॥ १ Instead of words "कप्पइ अणुन्नवेत्ता" at the end of sutra 6, has a separate sutra 7. Thacos of this in P Bb (एच ने P Bb मां ६ ठा सुत्रने छेडे "कप्पइ अणुन्नवेत्ता" ने बदले ७ मो सुत्र अलग आपल छे). २ A8 H. Adda (एचमां वधारे) "वा सागारियसन्तियं वा" so no separate eutra is put for it as in G. Edition (जर्मन बुकनी माफक उपला शब्दनु नवु मुत्र मुक्युं नयी) ॥११८॥ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - + - %+ - X - मूळपाठ ॥ ८॥ नो कप्पक्ष निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पाडिहारियं' वा सागारिय सन्तियं वा सेजासंथारगं सबप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि' ओग्गरं अणणुन्न वेत्ता अहिट्टित्तए, कप्पश् अणुनवेत्ता ॥ ८॥ भावार्थ ।। ८ । साधु साध्वीने पाढीयारो के सेज्यांतरनो थको सेजा संथारो प्रथम लीधेल ते पाछो तेमने सोंपीने वीजी चार तेमनी आज्ञा माग्या विना भोगवयो न कल्पे. आज्ञा मागीने भोगवे ॥ ८ ॥ उपर पाट पाटला वगेरे आश्री कयु. हवे स्थानक आश्री अधिकार कई ।। अर्थ ॥ ९ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधु । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । पु० प्रथमथीज । ए० । मावळी धानी आज्ञा माग्याविना । ओ० अवग्रह सेजा संथारो प्रमुख । ओ० ग्रहवोने । त• ते वार । प० पछी । अ० आज्ञा ।। मागी कल्पे नहि ॥ ९॥ ? As I adds (एचमां वधारे ) "वा सागारियसन्तियं वा" 80 10 separate sutra is pub for it as in G. Edition (जमन सत्र मुजय तेथी नवं सुत्र मुक्यं नथी.)२H (एच) पचप्पिणीत्ता.३H adds (एचमा वधारतमा 8 dartuns of those words ill has a Eeparato Entra (एचमां उपळा शब्दोने बदले नीचे मजब नवं सत्र )"कापड ।। # निगन्याण वा निगन्धीण वा पादिहारियं वा सागारियसन्तियं वा सेज्जासंधारगं पचप्पिणिचा दोच्च पि तमेव भोगहें अणुन्नवेत्ता अहिहित्तए. - - -- - Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार मळपाठ ॥ ९॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पुत्वामेव योग्गहं योगि उद्देसमो १११९॥ हित्ता तओ पहा अणुन्नवेत्तए ॥९॥ ॥८॥ भावार्थ ॥ ९ ॥ साधु साध्वीने स्थानक सेजा संथारो (आज्ञा विना) प्रथमथीज ग्रहीने ते वार पछी आज्ञा मागवी 12 IP कल्पे नहि ॥९॥ र्थ ॥१०॥क. कल्पे। नि० साधुः। वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० बळी । पु० प्रथमथीज। ए.वळी । ओ० स्थानक सेजा संथारा प्रमुखनी । अ० आज्ञा मागीने । त० तेवार । ५० पछी । ओ० ते चीजो लेवी कल्पे ॥१०॥ मूळपाठ ॥ १० ॥ कप्पर निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा पुवामेव योगहं अणुन्नवेत्ता तओ पहा ओगिएिहत्तए ॥ १० ॥ भावार्थ ॥ १० ॥ साधु साध्वीने स्थानक सेजा संथारो लेवानी आशा मागीने तेवार पछी ते चीजो लेवी कल्पे ॥ १० ॥ Pउपर समुच्चय कपु. हवे विशेष कारण कहे छ । अर्थ ॥ ११ ॥ अ० हवे | पु० वळी । ए० एम । जा० जाणे । इ० ए जिन मतने विषे। ख० निश्च । नि० साध । वा. अथवा । नि० साध्वीने । वा. वळी । नो० नथी। मु० मळवा सुलभ । पा० पाढीयारा । से० सेजा (स्थानक पाट पाटला)। सं० डामादिक संथारो सुलभ मळ्यो नहीं केमके वीजा पंथीलोक स्थानक वगेरे ला लीए तेथी बीजो न मळे । HESSASS+++ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ति० एम | फ० करीने । ए० एम । हं० इत्यादिफ कारणे । क० कल्पे । पु० प्रथम ( एटले धणीनी आज्ञा माग्या विना)। ए. वळी । ओ० स्थानकादिक । ओ० लइने । त० तेवार । ५० पछी । अ० आज्ञा ले एम करतां कदाचित सेजा संथारानो , धणी कोपे ते वारे आचार्य साधुने वारे । मा० एम न करो । २० वे वाना न करो । अ० हे आर्य । व० करो तमे एटले एकतो एनी यस्ती ग्रहीने बीजो । म० फरस कठोर वचन भाखोलो एम न करो एम । अ० मीठे वचने करीने बन्नेने संतोप । सि. माहे ॥ ११ ॥ मूळपाट ॥ ११ ॥ यह पुण एवं जाणेजा । इह खलु निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा नो सुलने पामिहारिए सेजासंथारए त्ति कटु एव एवं कप्पइ पुवामेव ओग्गहं योगिव्हिता तओ पहा अणुन्नवेत्तए. मां वह अजो, वह अणुलोमेणं, अणुलोमेयवे सिया ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ ११ ॥ हवे वळी एम जाणे जे इहां जिनमतने विष निश्चे साधु साध्वीने स्थानक पाट पाटला डाभादिक संधारो मुलभ न मळे केमके पंथि आदिफ उतरवार्नु स्थानक वगेरे प्रथमथी लइ लीए जेथी एह, वीजु न मळे माटे एम ते । १H omits ( एचमां नयी) पाठि. २ F (एचमां) मा दुइओ अज्जो वचियं अणु. ३ P वयि. ४ Thin sutra Min G. Elition is put with 10 ( दसना भेगुं आ सूत्र जर्मन बुकमां .) Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHESHRE 18 उद्देसमो. यवहार कारणे पहेला स्थानक आदिकनी घणीनी आज्ञा माग्याविना उपली चीजो लीए ने तेवार पछी धणीनी आज्ञा लीए. एम ॥१२०॥18/ करतां कदाचित सेजा आदिकनो धणी सेज्यांतर कोपे ने साधुने सेज्यांतरने माहोमांहि बोलाचाली थाय ते वारे आचार्य | ८॥3 साधुने वारे ने कहे तमे एम न करो हे आर्यों ? तमे वे वाना करोछो ते एक तो एहनी वस्ती (स्थानक) ग्रही रह्या छो ने बीजु तेने कठोर वचन कहो छो एम वे वाना करोमां एम मीठे वचने करी करी बन्नेने आचार्य संतोष पमाडे ॥ ११ ॥ उपर स्थानकनो अधिकार कह्यो ते साधु गौचरी करे ने तेम करतां कोइएक उपगरण नाखी दे ते भणी हवे उपगरण नाख्यानो अधिकार कहे छे॥ अथे ॥ १२ ॥ नि० साधु । णं० बळी । गा० ग्रहस्थना। कु० घरने विषे। पिआहारने । प. अर्थे । अ० पेसे । ४ अ० यथायोग्य । ल० कोइएक नाना (मोटा)। उ० उपगरणनी । जा० जाति । १० पडीगइ । सि० होय (विसरी होय)। तं० ते उपगरणने । च० वळी । के० कोइएक । सा० साधर्मिक । पा० देखे । क० कल्पे । से० तेहने । सा० गृहस्थनो (छ) है यको । क. एम कहीने । ग. गृहीने जल जीहां। ए. वळी ते । अ० माहोमांहि । पा० देखे । त० तिहाँ । ए० वळी । मा ए० एम । व० कहे । इ० ए प्रत्यक्ष । भे० हे। अ० अहो आर्यों ?। किं० शुकाइ । १० जाणो छो ए उपगरण तमारो छ के कहनो छे ते वार पछी । से० ते साध साध्वी। य० बळी। व० बोले । ९० हा ओळख्यं ते वारे जेहन छ। त० तेहन । ए० वळी । प० देवो । सि० होय । से० ते । य० वळी । व०कहे। नोन । प० जाणीए अमे ए उपगरण केहर्नु छे तो। मत० ते । नो० न । अ० पोते । ५० भोगवे। नोन । अ० अनेराने । दा०दीए । ए० एकांत जग्या । ब० घणी । फा० फ्रासुक निदोषे । यं० यंडिळनी जग्याए । प० परठववो। सि० होय ॥१२॥ ॥१२० -पाकाऊन सरकार Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाठ ॥ १५ ॥ निग्गन्थस्स णं' गाहावइकुलं पिएमवायपमियाए अणुपविट्ठस्स अहा लहुसए उवगरणजाए परिजढे सिया. तं च केइ साहम्मिए पासेजा, कप्पड़ से सागारक; गहाय जत्थेव अन्नमन्नं पासेजा तत्थेव एवं वएका । इमे में अजो किं परिन्नाए ? से य वएजा। परिन्नाए, तस्सेव पडिणिजाएयव्वे सिया. से य वएका । नो परिन्नाए, तं नो अप्पणा परिभु जा" नो अन्न मन्नस्स' दावए. एगन्ते बहुफासुए थएिमले परिट्ठवेयव्वे सिया ॥ १२ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ साधु ग्रहस्थने घेर आहारने अर्थे पेसे त्यां कोइ नानी ( मोटी) उपगरणनी जाति पड़ी जाय जे 1 उपगरण कोर एक साधर्मिक साधु देखे ते साधर्मिक साधुने ग्रहस्थना थकी ते वस्तु ग्रहीने ज्यां माहोमांहि साधु एक वीजाने : देव त्या एम कहे हे आर्यो ? तमे आ उपगरण केहेना छे ते वावत कांइ जाणो छो ? ते साधु कहे हा अमे ओळख्यो ए M अमारो उपगरण टे तो ते उपगरण तेने आपे, जो ते एम कहेके ए कहेनो छे ते अमे जाणता नथी तो ते उपगरणनो लाव६ नार साधु पोते ते न भोगये तेमज अनेरा साधुने दीए नहीं पण एकांत घणी फ्रासुक (निर्दोप) थंडीलनी जग्याए (प्रदेश : १H omits ( एचमां नथी ) गं. २ । (एच ) 'म्मिया. ३ H adds (एचमां वधारे ) ते. ४ १ (एच) इमं ते. 1५11 (एच) 'मुखए.६11 (एच) अन्नसि.७। (एच) पदेसे पटिलेहिता परि. Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M . नहार पर 8॥८॥ पहिलेहीने ) परठवे ॥ १२ ॥ एतो उपगरण विसरी जवानुं गौचरी गया आश्री कड्यु. तेतो सज्ञाय पण करे ते भणी इहां समायनी भूमिकाने विषे कोइ उपगरण विसरी जाय ते आश्री कहे.छे । १ अर्थे ॥ १३ ॥ नि० साधने । ण. वळी । ब० (गामादिक ) वाहार । वि०वियार । भ० भूमिमांथी । वा० अथवा । वि०विहार । भ० भूमिमांधी । वा. वळी । निकनीकळतां थकां । अ० यथा योग्य । ल० लघु । उ० उपगरणनी। जा० जाति । प०विसारेल । सि० होय । तं० ते । च० वळी । के० कोइ एक । सा० साधर्मिक साधु । पा० देखे । क. कल्पे । से०तेने । सा० गृहस्थ । क. थकुँ । ग० ग्रहीने । ज. ज्यां । ए० वळी ते । अ० माहोमांहि । पा० देखे । त० त्यां। ए. वळी । ए० एम। व० कहे । इ० ए प्रत्यक्ष । भे० हे। अ० आयें ?। किं० शु कोइ । प० जाणो छो के आ उपगरण केनो छे। से० ते । य० वळी । व० कहे। १० हा ओळख्यो । त० ते जेहनो होय तेहने। ए० वळी । प० देवो । सि० होय । ४० ते । य० वळी । व० कहे । नो० न । प० जाणीए ए केहेनो छे तो। तं० ते । नोन । अ० पोते लावनार । प० भो| गवे नहि । नो० न । अ० अनेराने वळी । दा० दीए । ए० एकांत । ब० घणी । फा० निर्दोष । ५० थंडीलनी जग्याए । प० परठववो । सि० होय ॥ १३ ॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ निग्गन्थस्स णं' बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खन्तस्स अहाल हुसए उवगरणजाए परिब्भटे सिया. तं च केश साहम्मिए पासेजा, १H omits ( एचमां नथी) णं. २H (एच) 'म्मिया. SIC ।१२१॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊ र २ - कप्पड़ से सागारकर्म गहाय जत्थेव' अन्नमन्नं पासेजा तत्थेव एवं वएगा। श्मे में अजो कि परिन्नाए ? से य वएजा। परिन्नाए, तस्सेव पमिणिजाएयत्वे सिया. से य वएडा । नो परिन्नाए, तं नो अप्पणा परिभु जानो अन्नम न्नस दावए. एगन्ते बहु फासुए थएिमले परिद्ववेयत्वे सिया ॥ १३ ॥ ___ भावार्थ ॥ १३ ॥ साधु बहार वियार भूमीके विहार भूमीने विषे निकलता थका कोइ लघु उपगरणनी जाती विसरी जाय ते चीजने कोद साधर्मिक साधु देखे तो ग्रहस्थना थकी ते चीज लेवी कल्पे. पछी ज्यां माहोमांही साधु एकवीजाने देखे त्यां एम याहे अहो आर्यों ? भा उपगरण तमारो छे ? जो ते एम कहे के ते उपगरण ओळख्यो तो ते जेहनो होय तेने सोंपी दीए. जो ते एम कहे के अमे जाणता नथी जे ए कहेनो छे तो ते उपगरणनो लावनार पोते भोगवे नहि, वीजा साधुने आपे नहि, पण एकांते घणी निदोष यंटिलनी जग्याए (पुंजीने ) परठवे ॥ १३ ॥ ते साधु साध्वी तो विहार करे ते भणी विहार क.. रतां उपगरण पढे ते अधिकार कहे छे ।। र अर्थ ॥ १४ ॥ नि साधुने । णं० वळी । गा. एक गामधी । गा० वीजे गाम । दृ० विचरतां थकां । अ० अनेरो कोइ। उ० उपगरण | जा० जाती । १० विसरी । सि० जाय । त० ते उपगरण । च० वळी । के० कोइ । सा० साधर्मिक साधु ।। { II udes ( एचमां वधारे ) ते. २ H ( एच ) ते. ३ म (एच) भुञ्जए. ४ (एच) अन्नेहिं. ५ हूँ (एचमा ) पदेसे पहिलेहिचा परि'. ***- KHERE -ASS Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C उद्देस - 18] पा० देखे । क. कल्पे । से० ते वस्तु । सा० गृहस्थ । क. थकी जाणीने तेनी आज्ञा मागीने । ग० ग्रहे । दू० घणे दूर वेगळे । यवहार a ए. वळी । अ० मागें। प० जाय । जा ज्यां। ए० वळी । अ० माहोमांहि । पा० देखे । त० त्यां। ए. वळी । एक एह॥१२२॥ Q । ३० कहे । इ०ए। भे० हे। अ० आर्यों आ उपगरण कोन छे ते बाबत । कि०° । प० जाणो छो। से० ते । य० वळी । व० कहे । प० हा जाणुं छं तो। त० ते । ए० वळी । प० तेने आप । सि० होय । से० ते । य० वळी । व० कहे। नो० न । १० जाणीए ते उपगरण केनो छे । तं ते । नोन । अ० पोते । प० भोगवे । नो० न । अ० अनेराने । दा० दीए । ए० एकांते । ब० घणी । फा० निर्दोष । ५० थंडीले । प० परठव | सि० होय ॥१४॥ | मूळपाठ ॥ १४ ॥ निग्गन्थस्स णं' गामाणुगामं दृश्जमाणस्स अन्नयरे उवगरणजाए प रिब्भटे सिया. तं च केश साहम्मिए पासेजा, कप्प से सागारकम् गहाय दूरमेवयद्धाणं परिवहित्तए. जत्थेव अन्नमन्नं पासेजा, तत्थेव एवं वएडा। श्मे में अजो किं परिन्नाए ? से य वएजा। परिन्नाए, तस्सेव पमिणिजाएयव्वे सिया. से य वएजा । नो परिन्नाए, तं नो अप्पणा परिभु का नो अन्नमन्नस्स दा वए. एगन्ते बहुफासुए थएिमले' परिट्टवेयव्वे सिया ॥ १४ ॥ १H omits ( एचमां नथी) णं.२ " (एच) दरमवि अ.३ F ( एच) ते. ४ म (एच) भुञ्जए. ५ H (एच) अन्नहि.६ म (एच) परसे पडिलेहिता परि. CROSECOGRESSECCC gaye CROCE ॥१२२ Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कन्ट भावार्थ ॥ १४ ॥ साधु एक गामथी वीजे गाम विचरतां यकां कोइ उपगरण विसरी जाय तेने कोइ साधु देखे तो गृहसस्य य ते उपगरण तेने ले कल्पे, पछी दूर मार्गे जाय ने ज्यां वीजा साधुने देखे ते वखते एम कहे के, हे आर्यो ? आ उ19 पगरण तमाशे में ? ते साधु एम कह के अमारो छ तो तेमने दीए. ते साधु एम कहे के अमारो नथी तो ते उपगरण लावनार 18 साधु पोते न भांग तेम अनेराने पण ते उपगरण दीए नहिं पण एकांत घणी निर्दोप थंदीलनी जग्याए (पूंजीने) परठवे ॥ १४ ॥ यं साधुने मर्यादायी अधिक उपगरण लाववानो अधिकार कहे छे. अर्थ ॥ १५ ॥ फ० कल्प | नि० साधुने । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । अ० अधिको । प० पात्रो इहां है पाताना शब्द आदि दइने वखादिक उपगरण जाणवा जुओ निसीथ सूत्रनो १८ मो उदेसो । अ० माहोमांहि । अ० अर्थे । धा० राखया । वा० अथवा । प० ग्रहवा । वा० वळी । सो० अमक साध्वीन नाम लइ तेवा । वा० f० वळी । धा० आपशु अथवा । अ०९ पोनेन । वा० णं० वळी । धा० राखीश एम करीने राख्यु छे पण समुच्चय लीधुं नथी ते भणी हवे इहां विधि IMI कई छे। अ० अनेराने। वाण. वळी । धा० आपशं । नो० नसे. तेने साधु साध्वीने । क. कल्पे । ते० तेइने जेने अर्थ लीधो रे । अ० विना । पु० पुछे । अ० विना । आ० निमंत्रये एटले निमंत्र्यां विना । अ० माहोमांहि । दा० देवो । वा० K:अथवा । अ० विशेग देवो न कल्पे । वा० वळी । क. कल्पे । से० ते साधुसाध्वीने । ते. जेने निमित्ते लीधुं छे तेने । आ० 1 पूछीने । आ० आमंत्रीने । अ० माहोमांहि । दा० अनेराने देवो । वा० अथवा । अ० विशेपे देवो । वा० वळी ॥ १५ ॥ मूळपाट ॥ १५॥ कप्पक्ष निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अरेगपमिग्गहं अन्नमन्नस्स SHESExt Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार ॥१२३ ॥ अट्टाए धारेत्तए' वा परिग्गहित्तए वा सो वा णं धारेस्सइ अहं वा णं धारेस्सामि अन्नो वा णं धारेस्स. नो से कप्पइ ते पापुहिय अणामन्तिय अन्नमन्नेसिं दाउ वा अप्पाउं वा. कप्पड़ से ते आपुहिय आमन्तिय अन्नमन्नेसिं दाजं वा अप्पयानं वा ॥ १५ ॥ भावार्थ ॥ १५ ॥ साधु साध्वीने अधिको पात्र आदि दइने वस्त्रादिक उपगरण निसीथ सुत्रना १८ मां उद्देसा मुजव मांहोमांहि एक वीजाने अर्थे लइ घणा दूर मार्गे जावुं कल्पे, ते चीज अमुक साध्वीनुं नाम लइने तेने आपशुं अथवा हुं पोतेज राखीश अथवा अनेराने आपशुं एम करीने लीधी पण समुच्चय लीधी नथी तो ते चीज बीजाने आपवानी विधि कहे छे, जेने माटे ते चीज लीघी छे तेने पूछया विना अने तेने निमंत्रण कर्याविना मांहोमांहि देवी के विशेषे देवी कल्पे नहि, पण जेने मालधी छेतेने पूछी आमंत्रीने मांहोमांहि अनेराने ते चीज देवी के विशेषे देवी कल्पे ।। १५ ।। उपर उपगरण आश्री क§ ते तो आहार करे. ते भणी इहां आहारनी विधि आश्री अधिकार कहे छे ।। अर्थ ॥ १६ ॥ अ० आठ | कु० ( कुर्केट ) कुकडीना । अं. अंडा ( इंडा ) दिक । प० प्रमाण । ए० एहवा एटले जे कवळ ( कोळीआ) मुखमांहि आवे एहवा । क० कवळनो जे । आ० आहार । आ० करतो (लइने ) श्रमण । नि० निग्रंथ १H (एचमां ) हाए दूरमवि अद्धाणं परिवहित्तए २H (एच) अन्ने. उद्देसओ. ॥ ८ ॥ ॥ १२३ ॥ Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ फवल आहारनी अपेक्षाए ८ कवल ते । अ० अल्प । आ० आहारी भगवते कह्या। वा०१२ । कु० कुकडीना । अ० इटां। प० प्रमाण | ए० एड्वा कोळीया जे मुखमांहि आवे एहवा । क० कवळ लइ । आ० आहार जे । आ० लीए तेने श्रमण | नि० नियने । अ० अर्ध माटेरी । ओ० उणोदरी कही। ३२ कवल आहारनी अपेक्षाए । सो०१६ । कु० कुकटीना । अं० इडां । प० प्रमाण । ए० एहवा जे कोळीया मुखमां आवे एहवा १६ । क. कवळ । आ० आहार । आ० लीए एटले आहारतो यको श्रमण । नि० निग्रंथ । दु० वे भाग प्राप्त उणोदरी जाणवी । च० २४ । कु० कुकडीना । अं०५ रंटा । ५० प्रमाणे । ए० एहवा जे कवळ मुखमांहे आये । क० एहवो कवळ । आ० आहार । आ० लीए आहारतां थका । नि० साधुने | ओ० उणोदरी कहीए । ए० ३१ । कु० कुकडीना। अं० इडां। प० प्रमाण । एक जेहवा । क. कवळ । । आ० आहार । आ० करतो । नि० साधुने । कि० काइ । उ० उणी । ओ० उणोदरी कहेवी । व० ३२ । कु० कुकडीना। है अ० इटा । १० प्रमाण । ए० जेवा । क. कवल | आ० आहार । आ० करतो श्रमण | नि० नियंथने । ५० प्रमाण | प० प्राप्त आहार होय । ए० ए । ए० एक । वि० पण । क० कवल । ऊ० उणो । आ० आहार । आ० आहारतो थको । स० श्रमण । नि० निगंधने । नो० नहीं । प० प्रकाम रस । भो० भुक्त । त्ति० वळी । व० करतो । सि० थको एहवो अत्यंत * आहारी न कहीए । उणोदरी कडीए ॥ १६ ॥ त्ति० एम । वे० ९ कहुं हुं । मृळपाठ ॥ १६ ॥ अट्ठ 'कुक्कुमियएफप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निग्गन्थे I always (एचपां हमेशां ) कुकुड. २ H always (एचमां हमेशां ) समणे नि'. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + 15 उद्देसमो. ॥८ ॥ ॥१२४॥ E5 ESCAR अप्पाहारे. बारस' कुक्कुमित्रएकप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निग्गन्थे अवलोमोयरिया. सोलस कुक्कुमिअएमप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निग्गन्धे दुनागपत्ते. चवीसं कुक्कुमिएप्पमाणमेने कवले आहार आहारेमाणे निग्गन्थे ओमोयरिया. एगतीसं कुक्कुडिअएप्पमाणमेत्ते कवले थाहारं आहारेमाणे निग्गन्थे किंचूणोमोयरिया. बत्तीसं कुक्कुमिअएमप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे निग्गन्थे पमाणपत्ते. एत्तो एगेण वि कउलेणं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे निग्गन्थे नोपकामनो त्ति वत्तवं सिया ॥ १६ ॥ त्ति बेमि RUSSE% % %% भावार्थ ॥ १६ ॥ कुकडीना इंडाना जेवडा आठ कोळीया एटले आठ कवल आहार जे श्रमण साधु करे तेने भगवंते अल्प आहारी कद्या. उपर मुजव १२ कोळीयानो आहार करनार साधुने भगवंते अर्ध माठेरी उणोदरि कही. उपर मुजब १६ १H (एच) दुवालस. २ F (एच) पत्तोमोयरिया. ३ एग° to किंचू not in F (एचमां “एग"° थी "किचू"" W१२४॥ सुधी नीं), ४ म (एच) घासेणं. ५ (एचपां) पकामरसभोई.६ F adds ( एचमां वधारे )त्ति बेमि. Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फवल आहार करनार साधुने से भागे उणोदरी कही. २४ कवल आहारी साधुने उणोदरी कही, ३१ कवल आहारी साधुने फांइ उणी उणोदरी कही ने ३२ कवल आहारीने प्रमाण प्राप्त आहारी कह्या. एम एक कवळ जेटलो उणोदरी करनार साधुने प्रकाम रस कृत न कहीए एटले अत्यंत आहारी न कहीए, उणोदरी कहीए ॥ १६ ॥ एम हुं हुं हुं ॥ अर्थ ॥ ८ ॥ व० व्यवहार सूत्रनो । अ० आठमो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥ ८ ॥ मृळपाट ॥ ८ ॥ ववहारस्समो उद्देस समत्तो ॥ ८ ॥ भावार्थ || ८ || व्यवहारसूत्रनो आठमो उद्देसो पुरो थयो ॥ ८ ॥ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहार० ११२५॥ TECHH SEAणसा-अर ॥ ववहारस्स नवमो उद्देसओ ॥ उद्देसओ. व्यवहारसूत्रनो नवमो उद्देसो P ॥९ ॥ अर्थ ॥ १ ॥ सा० सेज्यांतरनो । आ० परोणो । अं० माहे। व० धर (घरमांहे )। भुं० जमतो होय । नि० परोणाने अर्थे आहार नीपजान्यो छे ते । नि० आहार सेजांतर परोणाने दीए । ते परोणो जमीने बाकी वधेल आहार। पा० पाढीयारो । त० तेने । दा० दीए । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवो ॥१॥ मूळपाठ ॥१॥ सारियस्स आएसे अन्तो वगमाए जुञ्जइ निट्ठिए निसट्टे पामिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥१॥ भावार्थ ॥ १ ॥ सेजांतरनो परोणो घरमांहे जमतो होय ते परोणा माटे आहारपाणी नीपजाव्यु छे ते आहार सेजांतर परोणाने दीए, परोणो जमीने चाकी वधेल आहार पाढीयारो सेजांतरने दीए. ते आहार साधुने सेजांतर वहोरावे तो कल्पे नहि केमके ते आहार सेजांतरने परोणाए पाढीयारो आप्यो छे ॥१॥ अर्थ ॥२॥ सा० सेजांतरना । आ० मेमान । अं० मांहि । व० घरमांहि । भुं० जमे । नि० ते मेमानने अर्थे आहार १T. H. have सागरि always in sutras 1 & 30 (१थी ३० मधीना सत्रमा टी. ने एचमां हमेशा "सागरि" पाठ छे. २F alreys (एचमां हमेशां) णिसिटे. રિલા AP Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 नीपजावीने । नि० सेजांवरे मेमानने जमवा ते आहार दीघो । भ० अ । पा० पाढीयारो दीघो एटले मेमानने जमतां जे आहार उगरे ते आहार तमारो एटले सेजांतरनो के एम कहीने दीघो ते अपाढीयारो आहार । ते आहार । त० साधुने । दा दीपनो । ए० एम। से० ते साधु साध्वीने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ २॥ मृळपाठ ॥ २ ॥ सारियस्स आएसे अन्तो वगमाए भुअइ निट्टिए निसडे अपामिहारिए, तदा दावए, एवं से कप्पइ पनिगात्तए ॥ २ ॥ भावार्थ || २ || सेजांतरनो मेमान घरमांहि जम्यो तेने अर्थे आहार नीपजान्यो छे ते आहार सेजांतरे मेमानने जमवा आप्यो. जपता जे आहार उगरे ते तमाशे एटले सेजांतरनो हे एम करीने आप्यो ते अपाढीयारो आहार सेजांतर साधुने आपे तो साधु साध्वीने लेबो फल्पे ॥ २ ॥ अर्थ ॥ ३ ॥ सा० सेजांतरनो । आ० मेमान । वा० बाहार । व० घर बाहार । भुं० जमतो होय । नि० ते मेमान माटे आहार नींपजावीने । नि० ते मेमानने आहार सेजांतरे दीधो होय । पा० वधेल आहार मेमाने सेजांतरने पाढीयारो आयो होय । तं० ते सेज्यांतरे | दा० देतां थका । नो० न । से० ते साधु साध्वीने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ३ ॥ अइ निट्ठिए निसट्टे पामिहारिए, मूळपाठ ॥ ३ ॥ सारियस्स आपसे बाहिं वगमाए तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनि गात्तए ॥ ३ ॥ M Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पबहार ॥१२६॥ -- - भावार्थ ॥३॥ सेजांतरनो मेमान तैना घर वाहार जमतो होय तेने माटे सेजांतरे आहार नीपजावी मेमानने आप्यो लाउद्देसओ. तेमांथी जमतां वधेल आहार मेमाने पाढीयारो एटले पोता थको सेजांतरने दीए तो साधुने सेजांतर देता थकां साधुए लेवो कल्पे नहिं ॥३॥ ____ अर्थ ॥ ४ ॥ सा० सेजांतरनो । आ० मेमान । बा० बाहार । व० घरवाहार । भु० जमतो होय । नि० ते मेमान अर्थे । यो । नि० मेमानने जमवा दीघो । अ० अ । पा० पाढीयारो होय एटले जमतां वध्यो ते आहार मेमान सेजां. तरने तमारो छे तमारी मरजीमां आवे तेम करो एम कही आपे । त० तेमांथी । दा० दीए । ए० एम । से० तेने । क. कल्पे । ५० लेवो ॥४॥ मूळपाठ ॥ ४ ॥ सारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुञ्ज निदिए निसट्टे अपामिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥४॥ भावार्थ ॥४॥ सेजांतरनो मेमान घरबहार जमतो होय तेना माटे आहार निपजाव्यो ते मेमान जम्यो, जमतां उगरो आहार अपाढीयारो एटले पोता थको न राखता सेजांतरने आप्यो, ते आहार साधुने दीए तो साधुने लेवो कल्पे ॥४॥ उपर मेमानना चार सूत्र कह्यां तेना घरमां दास प्रमुख छे ते भणी इहां दास प्रमुखनो अधिकार कहे छे । अर्थ ॥ ५॥ सा० सेजांतरना । दा० दास । वा० अथवा । वे० नफर । वा० अथवा । भ० चाकर। वा० अथवा । ॥१२६॥ | भ० भातपाणी आपीने कार्य करावे । वा० वळी । अं० अंदर । व० घरमांहि । भुं० जमता होय । नि० तेमने अर्थे आहार | - -- - - 4% Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44. नीपजावीने । नि० आहार जमवा दीघो होय । पा० ते आहार पाढीयारो छे एटले नोकर थको छे । तं ते साधुने । दा० दीए तो एम | नो० न | से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ५ ॥ मृळपाट || ५ || सारियस्स दासे वा वेसे' वा जयए वा इन्नए वा अन्तो वगमाए निट्टिए निसट्टे पारिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ ५ ॥ भावार्थ ॥ ५ ॥ सेजांतरना दास, नफर, चाकर भात पाणी अर्थे काम करनार नोकर घरमां जमता होय तेमने अर्थे आहार नीपजाबी तेमने दीघो होय, जमता आहार वधे ते नोकर थको पाढयारो होय ते साधुने आपे तो ते साधुने लेवो फल्पे नहि ॥ ५ ॥ अर्थ || ६ || सा० सेजांतरना । दा० दास । वा० अथवा । घे० नफर । वा० अथवा | भ० चाकर । वा० अथवा | भ भातपाणी दइ कार्य करावे ते नोकर । वा० वळी । अं० अंदर । ष० घरमां । भुं० जमतो होय । नि० तेमने माटे आहार नीपजावीने । नि० तेमने जमवा दीधो । अ० अ । पा० पाढीयारो होय एटले नोकर थको न होय । त० तेमांथी साधुने । दा० आपे तो । ए० एम | से० ते साधु साध्वीने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ६ ॥ always (बी. एचमां हमेशां ) पेसे. ३ HE (एचमां ) भाइण. १ H always (एचमां हमेशां ) इवा. २b २२ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहार० २१ मूळपाव ॥ ६ ॥ सारियस्स दासे वा वेसे वा जयए वा भइन्नए वा अन्तो वगमाए भुञ्जइ निट्टिए निसट्टे अपामिहारिए, तम्दा दावए, एवं से कप्पर पनिगाहेत्तर ॥६॥ भावार्थ ॥ ६ ॥ सेजांतरना दास, नफर, चाकर, नोकर, घरमां जमता होय तेमने काजे आहार निपजाव्यो ते आहार तेमने जमवा आप्यो ने जमतां वधेल आहार अपाढीयारो नोकरोए सेजांतरने आप्यो ते आहार सेजांतर साधुने आपे तो साधुने लेवो कल्पे ॥ ६ ॥ अर्थ ॥ ७ ॥ सा० सेजांतरना । दा० दास । वा० अथवा | वे० नफर ( परदेश जाय ते) । वा० अथवा | भ० चाकर ( गुलाम ) । वा० अथवा । भ० भात पाणीने अर्थे चाकरी करे तेवा चाकर । वा० वळी । बा० बहार | व० घर बहार | भुं० जमतो होय । नि० तेमने निमित्त आहार निपजावी । नि० तेमने दीधो छे । पा० ते आहार जमतां वधेल नोकरोए सेजांतरने पाढीयारो एटले पोता थको आप्यो होय तेमांथी । त० तेने ( साधुने ) । दा० दीए तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ७ ॥ मूलपाठ ॥ ७ ॥ सारियस्स दासे वा वेसे वा भयए वा भइन्नए वा बाहिं वगमाए भुञ्ज‍ निट्टिए निसट्टे पारिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पर पनिगाहेत्तए ॥ ७ ॥ १ (एच) भतिण. २ H (एच) भईणी. उद्देसओ.. ०९ ॥ ॥१२७॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ ७ ॥ सेजांतरना दास, नफर, चाकर, नोकर घर वहार जमता होय तेमने अर्थे आहार निपजाव्यो होय ते 5 | तेमने जमवा दीधो पछी जमतां वध्यो ते चाकर धको पाढीयारो सेजांतरने आप्यो होय तो ते आहार साधुने सेनांतर वहोरावे IF तो साधुने तेवो पाढीयारो आहार लेवो कल्पे नहिं ॥७॥ व अर्ध ॥ ८ ॥ सा० सेजांतरना । दा० दास । वा० अधवा । वे० नफर । वा० अथवा । भ० चाकर । वा० अथवा । भ० नाफर । या० बळी । वा० वद्दार । ३० घर वाहार । ४० जमता होय । नि० तेमने काजे आहार नीपजावी । नि० आहार जमवा दीधो ते आहार । अ० अ । पा० पाढीयारो आप्यो होय एटले नोकर धको राख्यो न होय ते आहारमांथी । त० साधुने । दा० देतां थकां । ए० एम । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ८॥ मूळपाठ ॥ ८॥ सारियस्स दासे वा वेसे वा नयए वा भन्नए' वा बाहिं वगमाए भुञ्ज निट्ठिए निसट्टे अपामिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पर पमिगाहेत्तए ॥८॥ भावार्थ ॥ ८ ॥ सेजांतरना दास नफर चाकर नोकर घर वाहार जमता होय तेमने निमित्ते आहार निपजावी तेमने दीधो होय ते तेमना जमतां वध्यो ते अपाढीयारो चाकरे सेजांतरने आप्यो होय ने पोता थको राख्यो न होय ते आहार सेजांतर साधुने यहोराये तो साधुने ते आहार लेवो कल्पे ॥ ८ ॥ उपर दास प्रमुखनो अधिकार कह्यो हवे स्वजनादिक आश्री चार / सूत्र कहे है ॥ १४ (एच) भगिणि. STAGGESCHOCHORE Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार० १२ अर्थे ॥ ९॥ सा० सेजांतरना । ना० स्वजन नातीला । सिछे। सा० सेजांतरना। ए० एकज । व० घरमा । अं० उद्देसओ.अंदर सेजांतरना घरमांहि । ए० एकज । प० घरनो चुलानो । सा० सेजांतरथी। च० वळी । उ० पोतानी आजीविका करे 18॥९॥ छ । त० तेमांथी। दा०दीए. तो। नो० न । से० ते साधने ।क० कल्पे । प० लेवो केमके ते पिंडमां सेजांतरनो अंश छे माटे ॥९॥ . मूळपाठ ॥ ९॥ सारियनायए' सिया सारियस्स एगवगमाए अन्तो एगपयाए सारियं चोव- | जीव, तम्हा दावए, नो से कप्पश् पनिगाहेत्तए ॥९॥ भावार्थ ॥ ९ ॥ सेजांतरना स्वजन (नातीला) होय, सेजांतरना एक घरमां, सेजांतरना घरमा एकज चुलानो, सेजांतरनुं | जळ (पाणी) प्रमुख ले छे तेथी सेजांतरने लीधे आजीविका करे छे तेमना आहार मांहेलो आहार दीए तो साधुने लेवो कल्पे नहि केमके सेनांतरनो पिंड छे माटे ॥९॥ अथे॥१०॥ सा० सेजांतरना। ना० स्वजन तथा नातिला। सि० होय । सा० सेजांतरना । ए० एकज । व० घरमांहि । अं० मांहि सेजांतरना घरमांहि । अ० जुदा जुदा। प० पचवाना (रांधवाना) चुलाने विषे रांधी भोजन जमे छ । । BI सा० सेजांतरनो जळ प्रभख लइ । चवळी । उ० आजीविका करे । त० तेमांथी। दा० दीए तो। नो० न । स० तत १F always (एचमां हमेशां) सागारियस्स णायए.२ Halways ( एचमां हमेशां) सागारियस्स after अन्तों and (अने) बाहि ( पछी).३ T. Halways (टी. एचमां हमेशां) च उप 18/॥१२॥ SAB535ASEARCH Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -- । साधुने । फ० कल्पे । प० आहार लेवो न कल्पे ॥ १०॥ मूळपान ॥ १० ॥ सारियनायए सिया सारियस्स एगवगमाए अन्तो अभिनिपयाए ___सारियं चोवजीवश्, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ १० ॥ भावार्य ॥ १० ॥ सेध्यांतरना स्वजन तथा न्यातिला होय ते सेज्यांतरना एकज घरमांहि सेज्यांतरनाज घरमांहि जुदा जुदा रांधवाना चलाने विपे रांधीने जमे छे, सेज्यांतर- पाणी प्रमुख लइ पोतानी आजीविका करे छे तेमाथी उगरेल आ-* हार दीए तो साधुने लेबी कल्पे नहि ॥ १० ॥ अर्थ ॥ ११ ॥ सा० सेज्यांतरना । ना० स्वजन नातिला | सि० होय । सा० सेज्यांतरना । ए० एक । व० घरमांहि । घा यहार । सेज्यांतरना घरनी वाहार । एक एक । ५०चुले रांधी जमे छे। सा० सेज्यांतरना।० वळी । उ० आहार पाणी उपर जीव छ । त० तेमांधी । दा० दीएतो । नो० न । से० साधुने । क० कल्पे । ५० लेवो ॥ ११॥ मृळपाठ ॥ ११ ॥ सारियनायए सिया सारियस्स एगवगमाए बाहिं एगपयाए सारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ ११ ॥ भावार्य ।। ११ । सेजांतरना सगा संबंधी होय, सेजांतरना एक घर माहे सेजांतरना घर वाहार एक चूले रांधीने जमे छे 8 A ने सेनांतरना आहार उपर आजीविका चाले छ जेधी ते आहारमाथी साधुने आहार आपे तो तेने कल्पे नहि ॥ ११॥ - - -- - --- Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार ॥१२९॥ पाऊऊक अर्थ ॥१२॥ सा० सेज्यांतरना । ना० स्वजननातीला। सि० होय । सा० सेजांतर संबंधी । एक एक। व० घर ४ उद्देसओ. | माहे । बा० बहार सेज्यांतरना रसोइना घरथी बहार । अ० जुदा जुदा। प० रांधवाना चूला होय पण । सा० सेजांतरना आहार जल उपर । च० वळी । उ० आजीविका करे छे। त० तेमांथी। दा० दीए तो। नोन। से० ते साधने । क० * कल्पे । ५० आहार लेवो ॥ १२ ॥ मूळपाठ ॥ १५ ॥ सारियनायए सिया सारियस्स एगवगमाए बाहिं अनिनिपयाए सा रियं चोवजीवश्, तम्हा दावए, नो से कप्पर पमिगाहेत्तए ॥ १२ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥ सेजांतरना स्वजन होय, सेजांतरना एक घरनी बहार जुदा जुदा चूला होय पण सेजांतरना आहार | पाणी उपर आजीविका चलावे तेमाथी साधुने आपे तो ते साधुने आहार लेवो कल्पे नहिं ॥ १२ ॥ उपर एक घर आश्री ६ का. हवे जूदा जूदा घर आश्री कहे छे॥ अर्थ ॥ १३॥ सा० सेजांतरना । ना० सगा। सि. होय । सा० सेजांतरना । अ० जुदा जुदा । व० घरने विषे पण । एक एक । दु० वारणुं छे । ए० एकज । नि० निकळवार्नु । प० एकज पेसवानो मार्ग छे। अं० मांहे सेजांतरना घर मांहे। ए. एक । प० रांधवानो चूलो छ । सा० सेज्यांतरनो जळ प्रमुख मळे छे । च० वळी तेणे करी । उ० आजीविका करे छ। ६ त० तेमांथी । दा० आहार आपे तो । नो० न । से० ते साधुने । फ० कल्पे । प० आहार लेवो ॥ १३ ॥ If ॥१२९॥ Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * * मूळपाठ ॥ १३ ॥ सारियनायए सिया सारियस्स अनिनिवगमाए एगवाराए एगनिक्ख मणपवेसाए अन्तो एगपयाए सारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पर पमिगाहेत्तए ॥ १३ ॥ भावार्थ ॥ १३ ॥ सेजांतरना सगां होय, सेज्यांतरना जुदा जुदा घरने विषे एक वारणुं छे, एकज नीकळवानो तथा एकज' पेसवानो मार्ग है, सेजांतरना घरमांहि रांधवानो एकज चूलो छे ने सेजांतरना उपर जेनी आजीविका छे तेमांथी आपे तो ते साधने आहार वोहोरवो कल्पे नहिं ॥ १३ ॥ ___अर्थ ॥ १४ ॥ सा० सेनांतरना । ना० स्वजन नातिला । सि० होय । सा० सेजांतरना । अ० जुदा जुदा । ५० घरने | विपे । ए० एक । दु० कारणु छे । ए० एक । नि० निकळवानो । १० पेसवानो मार्ग छे । अं० मांहि सेजांतरना घर मांहि । अ० जुदा जुदा । प० रांधवाना चुला है । सा० सेजांतरना उपर । च० वळी । उ० तेनी आजीविका छे । त० तेमांयी। दा० आपेतो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेबी ॥१४॥ मूळपाठ ॥ १४ ॥ सारियनायए सिया सारियस्स अभिनिवगमाए एगदुवाराए एगनि क्खमणपसाए अन्तो अनिनिपयाए सारियं चोवजीवश्, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ १४ ॥ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसमो.. ॥९॥ - पवहार० भावार्य ॥१४॥ सेजांतरना सगा होय, सेजांतस्ना जुदा जुदा घरने विपे एक दरवाजो छे, एक नीकळवा पेसवानो मार्ग ॥१३०|| छे, सेजांतरना घरमां जूदा जूदा रांधवाना चला छे ने सेजांतरना उपर जे सगानी भाजीविका चाले छे तेमांथी आहार आपे तो साधुने लेवो कल्पे नहिं ॥ १४ ॥ अर्थ ॥१५॥ सा० सेजांतरना । ना० स्वजन । सि० होय । सा० सेजांतरना। अ० जुदा जुदा । व० घरने विषे । एक एक । दु० बारणांने विषे । ए० एक । निकनीकळवा । १० पेसवानो मार्ग छे। बाबाहार सेजांतरनो । ए० एकज । प० रांधवानो चुलो छ । सा० सेजांतर । च० बळी उपर । उ० जेनी आजीविका छे । त। तेमांथी । दा०.दीए तो। नो० ४न । से० ते साधुने । क० कल्पे आहार । प० लेवो ॥१५॥ मूळपाठ ॥ १५॥ सारियनायए सिया सारियस्स अनिनिष्वगमाए एगदुवाराए एगनि क्खमणपवेसाए वाहिं एगपयाए सारियं चोवजीवश्, तम्हा दावए, नो से क प्पइ पनिगाहेत्तए ॥१५॥ ___ भावार्थ ॥ १५ ॥ सेजांतरना स्वजन होय सेजांतरना जुदा जुदा घर माहे एक बारणुं छे, एकज नीकळवा पेसवानो मागे छे, बहार सेजांतरनो एकज रांधवानो चलो छे. सेजांतरना उपर जे सगावहाकानी आजीविका चाले छे तेमांथी आहार दीए तो ते साधुने लेवो कल्पे नहि ॥ १५ ॥ . ॥१३०॥ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECR + + __ मर्य ॥ १६ ॥ सा० सेजांतरना । ना० सगा । सि० होय । सा० सेजांतरना । अ० जुदा जुदा। व० घरने । ए० ए-11 ५ का । दु० वारण है । ए० एक । नि० नीकळवा । प० पेसवानो मार्ग के । ना० बहार सेजांतरना । अ० जूदा जूदा । प० 'रांधवाना चुला छ । सा० सेजांतर उपर । च० वळी । उ० आजीविका के जेनी । त० तेमांयी। दा० दीए तो । नो० न । से ते साधुने । क० कल्पे । १० आहार लेवो ॥ १६ ॥ मूळपाठ ॥ १६ ॥ सारियनायए सिया सारियस्स अभिनिवगमाए एगवाराए एगनि क्खमणपवेसाए वाहिं अनिनिपयाए सारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६ ॥ सेजांतरना सगां होय, सेजांतरना जुदा जूदा घरमा एक बारणं रे, एकज नीकळवा पेसवानो मार्ग छे, X/ ने बहार संजांतरने रांधवाना जुदा जुदा चुला छे ने ते.सगा सेज्यांतर पर जीवे छे तेमांथी आपेतो साधुने ते आहार लेवो । कसे नदि ॥ १६ ॥ हवे सेजांतरनी पोतानी वस्तुभो वेचाय के ते कहे छ । अर्थ ॥ १७ ॥ सा० सेजांतरनी । च० वळी । कि० तेक वेचवानी । सा० शाळा छे त्यां । सा. सरखी वस्तु । व० क्रय विक्रय । ५० युकत है एटले त्यां कोइ तेल वेचे ले तेमां सेजांतरनो भाग छ । त० तेमांथी वेचनार । दा० दीए तो । नो० न। से० ते साधुने । क० कल्ले । प० लेवी ॥ १७ ॥ AS Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार ॥१३॥ 1965SESAR+ CHDABECASS मूळपाठ ॥ १७ ॥ सारियस्स चक्कियासाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से उद्देसओ कप्पश् पमिगाहेत्तए ॥ १७ ॥ भावार्थ ॥ १७॥ सेजांतरनी तेल वेचवानी शाळा छे त्यां सरखी वस्तु क्रय विक्रय थाय छे एटले ते सेजांतर तथा अनेरा तेल वेचे छे ते मांहि सेजांतरनो भाग सहित छे ते वेचणहार दीए तो साधुने ते चीज लेवी कल्पे नहिं ॥१७॥ का अर्थ ॥ १८ ॥ सा० सेजांतरनी। च० बळी घांचीनी । कि० तेल-घी वेचवानी । सा० शाळा छे । नि० नथी । सा० तेमां सेजांतरनो भाग नथी एम । व० क्रय विक्रयनो । प०करणहार (सेजांतरविना)। त० तेमांथी बीजो कोइ कांड गोळ प्रमुख । दा० दीए तो। ए० एम । से० ते साधुने । क. कल्पे । प० लेवो ॥१८॥ मूळपाठ ॥ १८॥ सारियस्स चक्कियासाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पई पमिगाहेत्तए ॥ १८ ॥ भावार्य ॥१८॥ सेजांतरनी तथा घांचीने तेल वेचवानी शाळा छे तेमां सेजांतरनो भाग नथी ने ते क्रय विक्रयनो करणहार ( वेचनार धणी) कांइ गोळ प्रमुख दीए तो ते साधुने लेवो कल्पे ॥ १८ ॥ अर्थ ॥ १९ ॥ सा० सेजांतरनी । गो० गोळ वेचवानी। सा० दुकान । सा० तेमां सेजांतरनो भाग छे। व० क्रय विक्रय । प० करणहार । त० तेमांथी । दा० आपे तो । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । प० ते गोळ लेवो ॥१९॥ 19/॥१३१॥ - - SOC Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ ॥ १९ ॥ सारियस्स गोलियसाला साहारणवक्यपत्ता, तम्हा दावए, नो से कप पडिगात्त ॥ १९ ॥ भावार्थ ।। १९ ।। सेजांतरनी गोळनी दुकान छे तेमां सेजांतरनो भाग के एम ते गोळनुं क्रय विक्रय ( देवाण ) थाय मांधी गोळ आपे ते साधुने लेवो कल्पे नहिं ॥ १९ ॥ अर्थ ॥ २० ॥ सा० सेजांतरनी । गो० गोळनी । सा० दुकान हे पण । नि० नथी । सा० सेजांतरनो भाग तेमां । व० एम क्रय विक्रय । प० थाय छे। त० तेमांथी । दा० कोइ दीए तो । ए० एम। से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेबुं ॥ २० ॥ मूलपाठ ॥ २० ॥ सारियस्स गोलियसाला निस्साहारणवक्कयपत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ परिगात्तए ॥ २० ॥ भावार्थ || २० || सेजांतरनी गोळनी शाळा छे तेमां तेनो भाग नथी ने ते दुकाने बेचाण थाय छे तेमांथी कोइ गोळ हराये तो ते साधुने लेवो कल्पे ॥ २० ॥ अर्थ ॥ २१ ॥ सा० सेजांतरनी । वो० क्रियाणानी । सा० शाळा छे । सा० तेमां सेजांतरनो भाग छे । व० एम क्रय विक्रय । प० थाय छे । त० तेमांधी । दा० दीए तो । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । प० लेवुं ॥ २१ ॥ - 1. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ ॥९॥ वबहार० मूळपाठ ॥ २१ ॥ सारियस्स वोधियसाला' साहारणवकयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से ॥१३२॥ कप्प पमिगाहेत्तए ॥ २१ ॥ भावार्य ॥ २१॥ सेजांतरनी क्रियाणानी दुकान के तेमां तेनो भाग छे ते दुकाने वेवाण थाय छे तेमांयी क्रियाणं वोहोरावे तो साधुने लेलै कल्पे नही ॥ २१ ॥ अर्थ ॥ २२ ॥ सा० सेजांवरनी । वो० क्रियाणानी । सा० दकान छे । नि० नयी तेमां । सा० सेजांतरनो भाग एम । ४० क्रय विक्रय । ५० थाय छे । त० तेमांथी । दा०दीए तो । ए० एम । से० ते साधुने । क. कल्पे । प० लेवें ॥२२॥ मूळपाठ ॥ २२ ॥ सारियस्स वोधियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ २२ ॥ ___ भावार्थ ॥ २२ ॥ सेजांतरनी क्रियाणानी दुकान छे पण तेमां तेनो भाग नथी ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी करियाणु वहोरावे तो ते साधुने लेबु कल्पे ॥ २२ ॥ अर्थ ॥ २३ ॥ सा० सेजांतरनी । दो० कपडा वेचवानी । सा० दुकान छे । सा० तेमां सेजांतरनो भाग छे। व० क्रय विक्रय । प० थाय छे । त. तेमांथी। दा० आपे तो । नोन। से० तेने । क. कल्पे । प० लेवं ॥ २३ ॥ १F (एच) बोधिय in 21 & 22 (२१-२२ मां) ।१३।। Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ** मृळपाठ ॥ २३ ॥ सारियस्स दोसियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, ना स कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ सेनांतरनी कपडानी दुकान छे तेमां तेनो भाग छे ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी कोइ वहोरावे तो ५ सेजांतरनो भाग हे माटे साधुने ले कल्पे नहिं ॥ २३ ॥ अर्थ ॥ २४ ॥ सा० सेजांतरनी । दो० कपडा वेचवानी । सा० दुकान छ । नि० नथी । सा० भेजांतरनो भाग तेमां । * ५० क्रय विक्रय । प. थाय छे । त० तेमांथी सेजांतर विना वीजो कोइ । दा. वोहरावे तो। ए० एम । से० ते साधुने ।' क० फल्पे । प० लेवू ॥ २४ ॥ मृळपाट ॥ २४ ॥ सारियस्स दोसियसाला निस्ताहारणवक्यपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ २४ ॥ __ भावार्थ ॥ २४ ॥ सेजांतरनी कपढां वेचवानी दुकान छे तेमां तेनो भाग नथी ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी सेजां. उतरविना वीजो कोइ कापट बोहोरावे तो साधुने लेबु कल्पे ॥ २४ ॥ . अर्थ ॥ २५ ॥ सा० सेजांतरनी । सो० सूत्रनी । सा० शाळा छ । सा० तेमां, सेजांतरनो भाग छ । व० क्रय विक्रय । :५० याय रे । त० तेमांयी कोइ । दा० आपे तो पण । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० वोहोर ।। २५.।। ॐ52 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार ॥१३३॥ 4%SECREGACASSETTE मूळपाठ ॥ २५ ॥ सागारियस्त सोत्तियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो उद्देसओ. से कप्पर पनिगाहेत्तए ॥ २५ ॥ __ भावार्थ ॥ २५ ॥ सेजांतरनी सूत्रनी दुकान छे तेमां सेजांतरनो भाग छे ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी कोइ साधुने । - वोहोरावे तो साधुने ते वोहरवू कल्पे नहिं केमके सेजांतरनो दुकानमां भाग छे ॥ २५ ॥ ___अर्थ ॥ २६ । सा० सेजांतरनी । सो० सूत्र वेचवानी । सा० दुकान छे तेमां । नि० नथी । सा० सेजांतरनो भाग । व० क्रय विक्रय । प० थाय छे । त० तेमांथी सेजांतर विना कोइ । दा० वोहोरावे तो। ए० एम । से० तेने । क. कल्पे । प. वहोरवू ॥२६॥ मूळपाठ ॥ २६ ॥ सागारियस्त सोत्तियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, __ एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ २६ ॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ सेजांतरनी सूत्रनी दुकान छे तेमां तेनो भाग नथीं ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी सेजांतर विना बीजो कोइ वोहरावे तो साधुने ते सूत्र वोहोरखं कल्पे ॥ २६ ॥ १ From 25 to 28 new eutras are given in F (एचमा २५ थी २८ सूत्रो नवां छे) ॥३३॥ %ARAC-GRESववव Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K अर्थ ॥ २७ ॥ सा० सेजांतरनी । वो० रुने कपास वेचवानी । सा० दुकान छे तेमां । सा० सेजांतरनो भाग छ । व०६ क्रय विक्रय । ५० याय छ । त० तेपांथी । दा० दीए तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवें ॥ २७ ॥ मृळपाठ ॥ २७ ॥ सागारियस्ल बोमियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥७॥ __ भावार्थ ।। २७ ॥ सेनांतरनी रुने कपासना दुकान छे तेमां तेनो भाग छे तेमांथी कोइ वोहोरावे तो साधुने लेबु 8 कल्पे नहि ॥ २७ ॥ अर्थ ॥ २८ ॥ सा० सेजांतरनी । वो० रुनी । सा० दुकान छे तेमां । नि० नथी । सा० सेजांतरनो भाग । व० क्रय विक्रय । प० धाय । त० तेमांधी । दा० चोहारावे तो । ए० एम । से० तेने । क० कल्पे । प० वोहोरई ॥ २८ ॥ , मूळपाठ ॥ २८ ॥ सागारियस्स वोमियसाला निस्साहारणवक्यपजत्ता, तम्हा दावए, ___एवं से कप्पइ पमिगादेत्तए ॥ २८॥ भावार्थ ॥ २८ ॥ सेजांतरनी रुनी दुकानमा तेनो भाग नधी ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांयी कोइ रु वोहरावे तो । साधुने बोहोर कल्पे ॥ २८ ॥ ___अर्थ ।। २९ ।। सा० सेजांतरनी। गं. गांधीपणानी। सा० दुकान छे तेमां । सा० सेजांतरनो भाग छ । व० क्रय ४ विक्रय । १० थायात० तेमांधी । दा० कोई दीए तो। नो० न। से० तेने । क० कल्पे । प० लेQ ॥ २९ ।।. AREK** * Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ.. पवहार मूळपाठ ॥ २९ ॥ सारियस्स गन्धियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से ॥१३४॥ कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥२९॥ भावार्थ ॥ २९ ॥ सेजांतरनी गांधीपणानी दुकान छे तेमां तेनो भाग छे ते दुकाने वेचाण थाय छे तेमांथी कोइ वोहोरावे तो साधुने लेबु कल्पे नहिं ॥ २९ ॥ अर्थे ॥ ३० ॥ सा० सेजांतरनी । गं० गांधीपणानी । सा० दकान छे। नि० तेमां नथी । सा० सेजांतरनो भाग । २० क्रय विक्रय । प० थाय छे । त० तेमांथी । दा० दीए तो । ए० एम । से० तेने । क. कल्पे । प० लेवें ॥ ३०॥ मूळपाठ ॥ ३० ॥ सारियस्स गन्धियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं __ से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥३०॥ ___ भावार्थ ॥ ३० ॥ सेजांतरनी गांधीपणानी दुकान के तेमां तेनो भाग नथी तेमांथी कोइ कांई चीज वोहोरावे तो ते 2 चीज साधुने लेवी कल्पे ॥ ३० ॥ अर्थ ॥ ३१ ॥ सा० सेजांतरनी । सो संखडी (मीठाड) वेचवानी। सा० दकान छे। सा० तेमां सेजांतरनो भाग छ। व० क्रय विक्रय । प० थाय छे। त० तेमांथी। दा०कोइ वोहरावे तो। नो० न। से० ते साधुने । क० कल्पे । ५० लवा॥३१॥ 19॥१३४ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RE% 4 है मृळपाठ ।। ३१ ।। 'सागारियस्स सोमियसाला साहारणवक्यपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ ३१ ॥ भावार्थ ॥ ३१ ॥ संजांतरनी मीठाइनी दुकान छे तेमां सेजांतरनो भाग छे ते दुकानमां वेचाण थाय छे तेमांथी मीठाइ योदोराये तो साधुने लेवी न कल्पे ॥ ३१ ।। अर्थ ।। ३२ ।। सा० संजांतरनी । सो० मीठाइनी । सा० दुकान छे तेमां । नि० नथी । सा० तेनो भाग। व० क्रय है विक्रय । प० थाय छे । त० तेमांथी । दा० कोइ दीए तो । ए० एम । से० तेने । क० कल्पे । ५० लेवी ॥ ३२॥ ___ मूळपाठ ॥ ३२ ॥ सागारियस्स सोमियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ ३२ ॥ ___ भावार्य ।। ३२ ॥ संजांतरनी मीठाइनी दुकान छे तेमां तेनो भाग नथी ते दुकाने वेचाण चाले छे तेमांथी कोइ वोहो रापे तो साधुने ते मीठाइ लेवी कल्पे ॥ ३२ ॥ हवे अन्नादिक नीपजाववानो अधिकार कहे छ । ___अर्थ ॥ ३३॥ रसोयाने घेर अन्नादिक अनेराना नीपजे जेमां । सा० सेजांतरनो । ओ० अन्न उपधिनो । सं० भाग छ। त० तेमांधी । दा० आपे तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवो ॥ ३३ ॥ १ In H. ३१ and ३२ are added ( एचमां ३१-३२ सूत्र वधारे छे) % : % Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 56 | उद्देसमो. पवहार ॥१३५॥ - 4 मूळपाठ ॥ ३३ ॥ सारियस्स ओसहीयो संथमाओ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पमि गाहेत्तए ॥ ३३ ॥ भावार्थ ॥३३॥ रसोयाने त्यां वीजाना अन्नादिक नीपजे छे तेमां सेजांतरनो आहार उपधिमां भाग छे तेमांथी वोहो| रावे तो साधुने ते अन्नादिक वोहोर कल्पे नहिं ॥ ३३ ॥ अर्थ ॥ ३४ ॥ रसोयाने घेर अनेराना अन्नादिक नीपजे तेमां । सा० सेजांतरनो । ओ० अन्नादिक उपधि तेमां । अ० नयी । सं० सेजांतरनो भाग तो । त० तेमांयी । दा० आपे तो । ए० एम । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेवु ॥ ३४॥ मूळपाठ ॥ ३४ ॥ सारियस्स योसहियो असंथमायो, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पनिगाहेत्तए ॥ ३४॥ __ भावार्थ ॥ ३४ ॥ बीजाना अन्नादिकनी रसोइ थाय छे तेमां सेजांतरनो भाग नथी ने तेमांथी साधुने अन्न वोहोराले | तो ते साधुने वोहोर कल्पे ॥ ३४॥ ___अर्थ ॥ ३५ ॥ वखारने विषे आंबा होय तेमां । सा० सेजांतरना । अं० आंबाना । फ० फळ साथे । सं० साधारण छे एटले भेगा छ । त० तेमांयी । दा० दीए तो। नो० न । से० तेने । क० कल्पे । प० लेवा ॥ ३५॥ मूळपाठ॥ ३५ ॥सारियस्स अम्बफला संथडा, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पनिगाहेत्तए॥३५॥ lect-- + + ॥१३॥ + Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ ॥ ३५ ॥ वखारमां आंबाना फल हे ते अथणा प्रमुखना अचित फळ छे अथवा पाकी केरीना कटका छे पण तेमां सेजांवरना आंबाना फळ छे तेमांधी वोहोरावे तो ते साधुने लेवा कल्पे नहिं ॥ ३५ ॥ अर्थ || ३६ || वखारमां आंबा होय तेमां । सा० सेजांतरना । अ० आवाना । फ० फल ( अथाणाना अचित ) । अ० ज नयी | सं० भेळा | त० तेमांधी | दा० आपे तो । ए० एम। से० ते साधुने । क० करपे । प० लेवा ॥ ३६ ॥ पाठ || ३६ || सारियस्स अम्बफला असंथमा, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ परिगाहेत्तए ।। ३६ ।। भावार्थ || ३६ || सेजांतरना आंबाना फळ अनेराना ( अथाणाना अचित अथवा पाकी केरीना कटका ) आंवाना फळ साधे भळेल नथी तेमांथी वोहोरावे तो ते साधुने ते फळ वोहोरवा कल्पे ॥ ३६ ॥ अर्थ ॥ ३६-१ ॥ सा० सेजांतरना । ना० स्वजन नातीला । सि० छे । सा० सेजांतरना । ए० एकज । व० घरमा । ए० एकज | दु० बार छे । ए० एक । नि० निकळवानो । प० पेसवानो मार्ग छे । सा० सेजांतरनो । ए० एक । व० चूलो छे । सा० सेजांतरथा । च० बळी | उ० पोतानी आजीविका चळावे छे । त० तेमांथीं । दा० दीए तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । प० लेबो ।। ३६-१ ।। ॐ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बषहार० ॥१३६॥ उद्देसओ. ॥९॥ मूळपाठ ३६-१॥ सागारियनायए सिया सागारियस्स एगवगडाए एगदुवाराए एग. निक्खमणपवेसाए सागारियस्स एगवयू, सागारियं च उवजीवश्, तम्हा दावए, नो से कप्पर पमिगाहेत्तए ॥ ३६-१॥ भावार्थ ॥ ३६-१ । सेजांतरना सगा सेजांतरना एकज घरमा रहे छे जेने एकज बारणुं छे. एकज निकळवानो तथा | ल एकज पेसवानो मार्ग छे, सेजांतरना घरमां रांधवानो एकज चुलो छे ने सेजांतरना उपर जेनी आजीवीका छे तेमांथी आहार | आपे तो ते आहार साधुने वोहरवो कल्पे नहीं ॥ ३६-२॥ अर्थ ॥ ३६-२॥ सा० सेजांतरना । ना० सगा। सि० छे। सा० सेजांतरना। ए० एकज । व० घरमां । ए० एकज। दु० बारणुं छे । ए० एक । नि० निकळचानो। प० पेसवानो मार्ग छे । सा० सेजांतरना । अ० जुदा जुदा । व० चुला छ । सा० सेजांतरना उपर । च० वळी । उ० जेनी आजीविका छे। त० तेमांथी। दा० दीए तो। नो० न। से० ते साधुन । क० कल्पे | प० लेवो ॥ ३६-२॥ मूळपाठ ॥ ३६-२ ॥ सागारियनायए सिया सागारियस्स एगवगडाए एगवाराए एग - निक्खमणपवेसाए सागारियस्त अनिनिवयू सागारियं च उवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पश् पनिगाहेत्तए ॥ ३६-२॥ १ Sutra ३६-१ to ३६-४ not in b T F (बी. टी. एचमा ३६-१ थी ३६-४ सूत्रो नथी.) वडाऊनल ॥१३६ Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ____ भावार्य ॥ ३६-२॥ सेजांतरना सगा सेजांतरना एकज घरमा रहे है जेने एफज बार[-छे, एकज निकळवानो पेसवानो । ४ मार्ग है तेमां सेजांतरना जुदा जुदा चुला छे, सेनांतरना उपर वळी जे सगानी आजीविका के तेमांथी आहार आपे तो ते.. , भादार साधुने वोहोरवो कल्पे नहिं ।। ३६-२॥ अर्थ ।। ३६-३॥सा० सेजांतरना । ना० सगा। सिकेसा० सेजांतरना। अ० जुदा जुदा । व० घरने वि।। । अ० जुदा जुदा । दु० द्वार (वारणां) छे । अ० जुदा जुदा । नि० निफळवाना। प० पेसवाना मार्ग छे । सा० सेजांत रना । ए० एकज । व० चूलो है। सा० सेजांतर उपर । च० वळी । उ० जेनी आजीविका छ । त• तेमांथी। दा० दीए । ।। तो । नो० न । से० ते साधुने । क० कल्पे । ५० लेवो ॥ ३६-३॥ मृळपाठ ॥ ३६-३ ॥ सागारियनायए सिया सागारियस्त अभिनिवगमाए अभिनिदु वाराए अनिनिक्खमणपवेसाए सागारियस्स एगवयू सागारियं च उपजीवश तम्हा दावए, नो से कप्पर पनिगाहेत्तए ॥ ३६-३॥ भावार्थ ।। ३६-३ ॥ सेजांतरना सगा छे. सेजांतरना जुदा जुदा घर छे तेने जुदां जुदा वारणां छे, जुदा जुदा निक- .. * रानाने पेसवाना मार्ग है तेमां सेजांतरनो एकज चुलो छ, सेजांनरना उपर तेना सगानी आजीविका चाले-ठे तेमाथी आ-, ॐ पर नहोराये तो साधुने ते आहार लेवो कल्पे नहि ॥ ३६-३॥ . Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PERCE INTE' अर्थ ॥ ३६-४ । सा० सेजांतरना । ना० सगा। सि० छ । सा० सेजांतरना। अ० जुदा जुदा । ५० घर छे । अ सो ११३७॥ जुदा जुदा । दु० वारणा छे । अ०- जुदा जुदा । नि० नीकळवा । प० पेसवाना माग छ । सा० सेजांतरना । अ० जुदा ४॥९॥ जुदा । २० चूला छ । सा० सेजांतरना उपर । च० वळी। उ० आजीविका छ। त० तेमांथी। दा० आपे तो। नोन। से० तेने । क० कल्पे । प० लेवो ।। ३६-४॥ मूळपाठ ॥ ३६-४ ॥ सागारियनायए सिया सागारियस्स अभिनिवगडाए अनिनिदुवा . राए अनिनिक्खमणपवेसाए सागारियस्स अनिनिवयू सागारियं च उव- जीव, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पमिगादेत्तए ॥ ३६-४॥ 'भावार्थ ॥ ३६-४ ॥ सेजांनरना सगा छे. सेनांतरना जुदा जुदा घर छे, ते घरोने जुदा जुदा वारणा छे अने जुदा । ६ जुदा नीकळवा पेसवाना मार्ग छे तेमां सेजांतरना जुदा जुदा चूला छे. उपला सगानी सेजांतरना उपर आजीविका चाले छे । तेमांधी आहार आपतो साधुने ते आहार वोहोरवो कल्पे नहि ॥ ३६-४ ।। उपर मुजब वस्तुनो लेणहार, तो प्रतिज्ञाधारी 5/ होय ते भणी हवे प्रतिज्ञानो अधिकार कहे छे. । 'अर्थ ॥ ३७॥ स०.सप्त ( सात )। स० सप्तमि काल ( एहवा सात ) तपोदीन ४९ दिवस तेमां पहेला साते एकदात | भावपाणीनी। बीजा साते बेदात भात पाणीनी । त्रीजा साते त्रण दात । चोथा साते चार दात । पांचमे साते पांच दात भात पाणीनी । छटे-साने छ छ दात भात पाणीनी । सातमे साते सात सात दात भात पाणीनी-लीए अथवा पहेला.सातनं १३७॥ Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पहले दाटे ? दात । वीजे दहाडे २ । ज्यांलगे सातमे दहाडे सात । वीजा सातना पहेले दहाडे १ जावन सातम दहाड ७ दात एम सातमा सातने पहेले दहाढे १ ज्यांलगे सातमे दहाडे ७ एम गणता सर्व दात १९६ थाय ए । ण० वळी । भि० साए धुनी । प० पटिमा (अभिग्रह विशेप जाणवो)। ए०४९ । प० पचास एटला । रा० रात्री । दि० दीवसलगे । ए० एक। 6 ० ९६ । उ० भात पाणीनी दात । भि० भिक्षानी। स०सो (एफसो छन । अ० जेम । सु० सुत्रमा कही तेमज करे ते यया मृन । अ० यथा । क. नथ्य ए सप्तम सप्तमिका ए प्रतिमानो कल्प आचार तेमां थवा योग्य । अ० यधा। म० मार्गे 1 ते एटले सानादिक मागेने धयोपशामिक भावने अतिक्रम्या विना ने उदय भावने टाळीने । अ० यथा । त० सत्य अनुष्टान । ६ अ० यथा । स० सम्यग प्रकारे कायाए करीने । फा० पटिवनवाना काळने वि विधिए करी सहित फरसीने । पा० वारंवार 8 उपयोग करीने पाळे पाळीने ( विधि सहित ) अतिचारने वर्जये करीने ( शोधीने )। ती तीर (पार ) पोचाडीने । कि० में गुरु सन्मुख अभिग्रह पुरो कयों में एम कहे कहीने ( कीर्तन करीने ) आताने । अ० पाळनारा । भ० होय ॥ ३७ ॥ * मूळपाठ ॥ ३७ ॥ सत्तसत्तामिया णं निक्खुपमिमा एगणपन्नाए रादिएहिं एगेण छन्न उएणं निक्खासएणं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्म फा लिया पालिया तीरिया किट्टिया अणुपालिया भवइ ॥ ३७॥ है ? adds ( पचमां वधारे ) f in sutras ३७ to ४०. (३७ थी ४० सूत्रोमां. २ H in. sutras ३७ to ४० (एचमा ३७ थी ४० सूत्रोमां) सम्मकाएणं फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किहिता आणाए अणुपालिचा भवइ ।। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार ० ॥१३८॥ भावार्थ ॥ ३७ ॥ सात सात दिवसनी सात पडिमा ते तपश्चर्या तेना दीवस ४९ एटले पहेले सात दिवसे १ दात भात, पा, बीजे वेदात भात पाणीनी, श्रीजे त्रण दात, चोथे चार, पांचमे पांच, छठे छ अने सातमे सात दात भात पाणीनी अथवा पहेला साना पहेले दहाडे १ दात, बीजे वे एम सातमे दहाडे ७ दात एम पहेला सातना बीजे दहाडे १ एम सात दहाडे सात एम सात दिवसने सात पढिमाना दहाडानी दाती गणता १९६ दात थाय तेनुं कोष्टक नीचे प्रमाणे दात दात २ दात ३ दात ४ दात ५ दात ६ दात ७ . कुल १ १ २ ३ ४ ५ ६ १. १ २ ३ ४ 61 २ ३ ४ ५. &; ५ ६ ७ 61TM १ .६ ७ २८ २८ २८ ૨૮ २८ २ 3 ४ १ ૨ ३ ४ ५ ६ ७ २८ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ २८ कुल ७ १४ २१ २८ ३५ ४२ ४९ कुल १९६ उद्देसओ. ॥ ९ ॥ । १३८IE Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधुनी पडिमा (अभिग्रह ) एम ४९ रात्रि दिवसनी १९६ भात पाणीनी दातीनी जाणवी. जेम सूत्रमां को छे, तेमज जेबो फल्प आचार है, जेवो जेवो मार्ग छे, जेवो सत्य अनुष्टान छे तेवो सम्यक प्रकारे कायाए फरसीने, पाळीने, अविचार शुद्ध करी, पार पहोचाहीने, किर्तन करीने ते साधु आझाने पाळनारा होय ॥ ३७ ॥ उपर सात दिवसनी सात भिक्षुनी पटिमा कही, हवे आठ दिवसना आठ अठवाडियानी पढिमा कहे छे || 1 अर्थ |! ३८ || अ० आठ आठ दिवसनी । अ० आठ । णं० घळी । भि० साधुनी । प० पडिमा एटले कुल ६४ दिवसनी पटिमा तेमां पहला आठ दहाडा १ दात । वीजा आठ दहाडा २ दात, श्रीजा आठ दहाडा ३ दात । चोथा आठ दहाटा ४ दात | पांचमा आठ दहाडा ५ दात | जावत आठमा आठ दहाडे आठ दात एम । च० ६४ । रा० रात्री । दि० दिवस कंगे | दो० । य० बळी | अ० ८८ दात भात पाणीनी । भि० भिक्षानी । स० सो ( वसो अठासी ) । अ० जेम । मु० सुत्रां छे ते अनुसारे करें । अ० यथा । क० कल्य आचार छे । अ० यथा । म० मार्गे । अ० यथा । त० तथ्य ( सत्य ) । अ० यथा | स० सम्यग प्रकारे । फा० फरसीने । पा० पाळीने । ती० पार पोचाडीने । कि० अभिग्रह कील पुरो कर्यो एम यदे | गुरुनी आज्ञाए | अ० ए अनुष्टान पाळनारो । भ० होय ॥ ३८ ॥ मृळपाठ ॥ ३८ ॥ श्रट्टअट्ठमिया णं निक्खुपडिमा च सट्ठीए राइदिएहिं दोहि य सीएहिं जिक्खा एहिं श्रहासुतं महाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्मं फासिया पालिया तीरिया किहिया अणुपालिया जवइ ॥ ३८ ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोष ओ. ववहार 1१३९॥ __ भावाथ ॥ ३८ ॥ आठ आठ दिवस आठ साधुनी पडिमा एटले ६४ रात्रि दिवसनी तेमां २८८ भिक्षानी दात भात पाणीनी याय तेनु कोष्टक नीचे प्रमाणे. | दात । १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | कुलद | दात | ४ | दात | ५ | दात | ६ ४ ५ ६ ساعه ما | ماه ४ ५ ६ ४ ५ ६ ४ ५ ६ ४ ५ ६ ४ ५ ६ ४ ५ ६ ३२ ४० ४८ FCIPEARE दात दात । ८ । ८ ८ । ६४ कुल | ३६ ३६ | ३६ । ३६ | ३६ । ३६ । ३६ | ३६ | २८८ 5 एम पडिमा सूत्रमा कही, जेवो कल्प आचार छे, जेवो मार्ग छे, जेवो सत्य अनुष्टान छे तेम सम्यक प्रकारे फरसीने, | ॥२३॥ Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Soota पाळीने, पार पहोचाडीने, फिर्तन करीने ते साधु आज्ञा मुजब पाळनारो होय ॥ ३८ ॥ 2 अर्थ ॥ ३९ ॥ न० नव दिवसनी । नः नव | ण. वळी । भि० साधुनी । ५० पडिमा । ( अभिग्रह ) विशेष । ए. P८१ । रा० रात्रि । दि० दिवसनी । च० चार । य० वळी । पं० पांच । उ० उपर । भि० भिक्षानी दात पाणीनी । स०, सो ( चारसे पांच ) । अ० जेम । सु० मूत्रमा कही । अ० जेम । क० आचार कल्प कह्यो । अ० जेम । म० मार्ग कह्यो।' अ० यया । त० तथ्य । अ० यया । स० सम्यगप्रकारे । फा० फरसीने । पा० पाळीने । ती० पार पोहोचाडीने । कि० कि6] तन करीने आया । अ० पाळतो । भ० विचरे ॥ ३९ ॥ मूळपाठ ॥ ३९ ॥ नवनवमिया णं भिक्खुपमिमा एगासीए राइंदिएहिं चनहि य प चुत्तरेहिं भिक्खासएहिं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्म फासिया पालिया तीरिया किट्टिया अणुपालिया नवइ ॥ ३९ ॥ भावार्थ ॥ ३९ ॥ नव दिवसनी नव भिक्षु ( साधुनी) पडिमा ८१ रात्रि दिवसनी, चारसे ने पांच (४०५) दात • भात पाणीनी जेम मूत्रमा कही, जेम कल्प आचार छे, जेम मार्ग छे, जेम यथा तथ्य छे तेम सम्यक प्रकारे फरसी, पाळी, ६ पार पदोचाटी, किर्तन करी आना ए साधु पाळनारो होय ते दातनुं कोष्टक ॥ ३९ ॥ LETECTRICRRRRRESSINE COM Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ ॥९॥ बबहार० ४ ॥१४॥ CISRAE+%-34-5 | दात । १ | दात | २ | दास ३ | दात ४ | दात | ५ | दात । ६ | दात । ७ | दात ८ | दात ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १ । १ कुल ९ २ २ १८ ३ ३ २७ ४ ४ ३६ ५ ५ | ४५ | ६ ६ । ५४ ७ ७ । ६३ ८ ८ ७२ ९ ९ ८१ कुल । ४५ । ४५ । ४५ ४५ ४५ ४५ ४५ ४५ ४५ ।४०५ अर्थ ।। ४० ॥ द० दस दहाडानी । द० दस । णं० वळी । भि० साधुनी । ५० पडिमा । ए० एक । रा० रात्रि । दि. 18 दिवसनी । सं० सो एटले १०० रात्रि दिवसनी। ते सोना । अ० अर्ध एटले ५० । छ० छ । हि० ओछा । य० वळी । ।१४०॥ Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CH-०५ मि० दात अन्नपाणीनी । स० सो ( एटले ६०० मांधी ५० ओछी एटले ५५० दात जाणवी ) । अ० जेम । मु० मुत्रमा छ । १० जेम । क० कल्प आचार छ । अ० जेग । म० मार्ग है। अ० जेम । त० यथातथ्य छ । अ० यथा । स० सम्यक प्रकारे । फा० फरसीने । पा० पाळीने । ती० पार पहोचाढीने । कि० किर्तन करीने आज्ञा गुरुनी । अ० पाळीने । भ० विचरे ॥४०॥ मृळपाठ ॥ ४० ॥ दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइंदियसएणं अद्धछटेहि य निक्खासएहिं अहासुत्तं यहाकप्पं अहामग्गं अहातचं अहासम्म फासिया पालिया तीरिया किहिया अणुपालिया भवइ ॥ ४० ॥ भावार्थ ॥ ४० ॥ दस दिवसनी दस एटले १०० रात दिवसनी भिक्षुनी पडिमा तेनो अर्ध एटले ५०, छसेमांथी ओछी एटरले ५५० दात भात पाणीनी नीचना कोटक मुजव जेम सूत्रमा कही, जेम आचार कल्प छे, जेम मार्ग छे, जेम यथातथ्य । ऐ तेम सम्यक प्रकारे फरसीने, पाळीने, पार पहोचाडीने, किर्तन करीने आशाए पाळीने विचरे ॥ ४० ॥ ? add ( वधारे ) आणाए. * % A%ECK Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार० ॥ १४१ ॥ १ २ ३ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ दात दात दात दात दात दात दात दात ८ दात ९ ९ दात १० १० कुल ५५ ५५ ४ ६ ७ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ५५ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ५५ १ २ ३ ४ ६ 19 ८ ९ १० ५५ १ २ ३ ४ ५ ६ 19 ८ ९ १० ५५ १ २ ३ 8 ५ ६ ७ ८ ९ ५५ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ५५ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ५५ १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ १० २० ३० ४० ५० ६० ७० ८० ९ ९० १० १०० ५५ ५५० पर पडिमा कही ते यथाशक्तिना साधु साध्वी वहे. हवे १० पूर्वनो धरणहार करे ते अधिकार कहे छे । उद्देसमो ॥ ९ ॥ ॥ १४१ ॥ Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ॥ ४१ ॥ दो० । ५० प्रतिमा । प० परुपी । तं० ते । ज० जेम छे तेम फ़हे छे । खु० नानी । वा० वळी । मो० १ मोक. ( मानु) । ५० पटिमा । म० मोटी । वा० वळी । मो० मात्रानी। प० पडिमा । खु० नानी । ण० वळी । मो० मा'प्रानी । १० पटिमा । प० पढीवर्जणहार । अ० साधुने । क. कल्पे ते पडिमा । प० प्रथम । नि० शरद (शियाळे ) । का० काल | स० समय एटले मागसर मासने विपे। वा० अथवा । च० छेला। नि० उनाळाना। का. काळ । स० समयने विप एटले आपाट मासे । वा० बळी । व० गामवहार स्थापवी। गा० गामने विषे । वा० अथवा । जा० ज्यांलगे। रा० राज्यधानीने विपे । सन्निवेश ( जनपद देश ) ने विपे। वा० अथवा । व० वनने विपे । वा० अथवा। व० वननी । दु० कठण विपम जम्याने विपे । वा० अथवा । प० पर्वतनी । वा० अथवा | प० पर्वतनी । दु० कठण जग्याने विषे । वा० वळी । भो० जमीने । आ० परिवर्जे (मांडे ) तो । चो० चार । द० दस एटले चौद भकत एटले छ उपवासे । पा० पुरी थाय (पारणं फरे ) । अ० अण । मो० जमीने । आ० पडिवर्ने तो । सो० सोळ । स० भक्ते करी पुरी थाय ते सात उपवासे । है पा० पारणं फरे । जा० जे । जा० जे । मो० मात्रु । आ० पीए । दि० दिवसने विषे । आ० आवे ते । आ० पीg अने। रा० रा । आ० आवे तो । नो० न । आ० (न) पीयूँ । स० सहित । पा० जीव सहित । म० मात्रु । आ० आवे तो। ६ नो० न । आ० पीएँ । अ० वगर । पा० जीववाळ । म० मात्रु । आ० आवेतो । आ० पीएँ । वळी विशेप कहे छ । स० ये । म० मात्र । आ० आवेतो । नो० न । आ० पीयूँ । अ० वगर । वी०वीय रहित । म० मात्र । आ० है आयेतो । आ० पीयूँ । स० सहित । स० चीगट ( सहित )। म० मात्रु । आ० आवेतो । नो० न । आ० पीई । म० विना । स० चीगट रहित । म० मात्रु । आ० आये तो । आ० पीयूँ । स० सहित । स० रज सहित । म० मात्रु । आ० Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब उद्देसमोर बबहार ॥१४२॥ ECECRUA% E आधे तो । नो० न । आ० पीवं । अविना । स. रजरहित । म० मात्र । आ० आवेतो। आ० पीयूँ । जा० जे । जा. जे। मो० मा । आ० आवे । तं ते । ज. कहे छे । अ० थोडं। वा० अथवा । व० घणु । वा० बळी । ए० एम। निश्चे । ए०ए । ख० नानी । मो० मात्रा । प० पडिमा ते खडिया मोक प्रतिज्ञा कहीए । अ० जेम । सु० सूत्रमा कहीं | तेमज करे । जा. पूर्वनी पेरे । अ०विशेषे पाळतो थको । भ० विचरे ॥ ४१ ।। मूळपाठ ॥ ४१ ॥ दो परिमायो पन्नत्ताओ तंजहा । खुमिया वा' मोयपमिमा महल्लिया वा' मोयपमिमा. खुमियमं मोयपमिमं पमिवन्नस्स अणगारस्स कप्पई पढमनिदाहकालसमयसि वा चरिमनिदाहकालसमयसि वा बहिया गामस्स वा (जाव) रायहाणीए" वा वर्णसि वा वणदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पचयपुगंसि वा. भोच्चा आरुभइ, चोदसमेणं पारेइ. अभोच्चा आरुलइ, सोलसमेणं पारेइ. जाए जाए मोए आईयवे, दिया थागबई' आईयवे, राइ आगलइ नो आई१H (एच) चेव. २ Hadds से (एचमां "से" वधारे), ३.(एच) पढमे सरदकाल.४ Hadda (एचमां वधार) हाइयव्वा. ५F (एच) संनिवेससि वा. ६ Hadda from (एचमां बधारे) "आईयव्वे to (थी) भवइ" (सुधी). 0२-CA ॥१४ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवे, सपाणे मत्ते यागबर नो आईयवे, अप्पाणं मत्त आगबर याश्यत्वे, सवीए मत्ते यागबश्नो आईयवे, अवीए मत्ते बागबइ ईयवे, ससणिद्धे मत्ते यागबर नो आश्यावे, अससणिद्धे मत्ते आगलइ आश्यवे, ससरखे मत्ते आगबइ नो याश्यत्वे, अससरख मत्ते आगह आईयवे. जाए जाए मोए आईयत्वे तंजहा अप्पे वा वहुए वा. एवं खलु एसा खुमिया मोयपमिमा अहा सुत्तं (जाव) अणुपालित्ता भव ॥४१॥ भावार्थ ॥ ४१ ॥ वे पडिमा कही ते कई छं. नानी मात्रा (पेशाव) नी पडिमा भने मोटी मात्रानी पडिमा. नानी माबानी पटिमा बहेनार साधुने कल्पे पहेली सरद (शीयाळाना ) ऋतुकाळ समयने विषे एटले मागसर मासे तथा छेल्ला उष्ण का (उनाळाना) काळ समयने विप एटले आपाटमासे गाम बहार गामने विषे अथवा ज्यांलगे सनिवेशने विषे, वनने विपे, व| ननी पठण जग्याने विप, पर्वतने विपे, पर्वतनी कठण जग्याने विपे पडिमा स्थापवी ( वहेवी) कल्पे. जमीने पडिमा पडिवर्जे हना १४ भक्त पुरी थाय एटले छ उपवास पछी पारणु करे. जो न जमीने पढिमा वहतो १६ भक्त एटले सात उपवासे पुरी 6 धाय. आ पटिमा बहेतां जे जे मात्र (पेशाव) दिवसे आवे ते ते पीइ जाय ने रात्रे आवे ते न पीए (एटले परठचे ), मात्रु जीव सहित होय तो परठये, जीव रहित आवेतो पीइ जाय, वीर्य सहित होयतो परवे, वीर्य रहित होयतो पीइ जाय, चिग जनजाम- लक Sixe Page #311 --------------------------------------------------------------------------  Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर SEN मूळपाट ॥ ४२ ॥ महल्लियमं मोयपमिमं पमिवन्नस्स अणगारस्त कप्पइ से पढमनि दाइकालसमयंसि वा चरिमनिदाहकाल समयंसि वा बदिया गामस्स वा ( जाव ) रायहाणीए वा वर्षसि वा वणगंसि वा पव्वयंसि वा पवयपुग्गसि वा. नोच्चा रुनश, सोलसमेणं पारेइ. अनोच्चा आरुन, अट्ठारसमेणं पारेइ. जाए जाए मोए आश्यत्वे, 'तहं चेव जाव अणुपालित्ता नवइ ॥ ४२ ॥ भावार्थ ॥ ४२ ॥ मोटी मात्रानी पडिमा अंगीकार करनार साधुने प्रथम शीयाळाना काळ समयने विषे एटले मागसर से मासे अने ठेला उनाळाना काळ समयने विपे एटले आपाढ मासे गाम वहार ज्यां लगे संनिवेशने विषे अथवा वनने विषे, अथवा बननी कटण भायने विपे अथवा पर्वतने विषे अथवा पर्वतनी कठण भोयने विषे पडिमा स्थापवी (वहेवी ) कल्पे. जो ६ जमीने पटिमा बहेतो १६ भक्ते एटले ७ उपवास करीने पारणुं करे. जम्याविना पडिवर्जे तो १८ भक्त एटले ८ उपवास करी । १ ( एच ) पढमे सरदकाल . २ H adds ( एचमां वधारे ) हाइयव्या. ३ H (एच) संनिवेसंसि वा. ४ | (एचमां ) त to (थी ) भवद (सुधी.) FOLLECRECCLOCALCCA Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ॥१४४॥ पारणं करे अने जे जे मात्रु दीवसे आवे ते पीए ने प्रथम नानी पडिमामां कडं तेम ज्यां लगे आशाए पदिमा पाळीने विचरे । उद्देसओ. पली पडिमा पूर्वधर वहे अने एवो बहेनार न होय तो शुं करे ते हवे सर्व साध आश्री कहे छे । अर्थ ॥ ४३ ॥ सं० संख्या। द० दात (भात-पाणी)नी। णं० वळी । ( साधुने पात्राना धरणहारने । ग्रहस्थना 13] कुल घरने विषे आहारने अर्थे पेठाने)। जा० जे । के० कोइ । अं० माहे । प० पात्रा (मांहे )। उ० (जमतां) उपाडयुं छे। S ० देवाभणी । ता० तेटली । इ० ते । द० दात । व० कहेची । सि० होय । त० ते वारे ते दात । से० ते साधुने । के० कोइ एक दातार । छ० वांसनी छाबडीए करी । वा० अथवा । दू० वस्त्र करी । वा० अथवा । वा. चालणीए करी । वा. वळी। अंक पात्रा मांहिथी। प० पात्राने विषे जमवानी वस्तु देवा भणी पात्र उपायुं छे । उ० (आणीने) । उंचे हाथे । द० दीए । (ज्यां लगे धार तूटे नहि त्यां लगे एक दात कहीए)।सा० ते सर्वने । वि० णं वळी । सा० तेहने । ए० एक। द० दात । ४० कहेवी । सि० होय ( उपलं एक आश्री कड्यु । हवे घणाजण आपणो भाग एकठो करीने दीए ते आश्री कहे छे)। त० त्यां । से० ते साधुने (भिक्षा अर्थे आव्या देखीने)।ब० घणाजण । भु० जमता होय । स० सर्वे । ते. ते । स० पोते पोतानो । पि० आहार लइ एकठो करी मेळीने एक पींड करीने । अं० मांहि । प० पात्रामांहि आंणीने मुके, केवी रीते मुके। उ० (पात्रा मांहि ) उंचा हाथे । द० दीए । (तेम देतां धार तुटे नहिं त्यां लगे एक दात होय)। स० ते सर्वने । वि० ० डावळी । सा० ते । ए० एक । द० दात । व० कहेवी । सि. होय ॥ ४३ ॥ 1४/१४४॥ RECE Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाठ ॥ ४३ ॥ संखादत्तियरस णं' जावइयं के अन्तो पमिग्गहसि उवइत्तु दलए जा तावश्याओं दत्तीयो वत्तवं सिया, तत्थ से केश बप्पएण वा दूसएण' वा वालएण वा अन्तो पमिग्गहसि उवित्ता दलएजा, सा वि एं सा एगा दत्ती वत्तवं सिया. तत्थ से वहवे भुञ्जमाणा सबे ते सर्व पिए; अन्तो पमिग्गहंसि उवित्ता दलएका, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तवं सिया ॥ ५३॥ भावार्थ ॥ ४३ ॥ भातपाणीनी दातनी अमुक संख्या लेनार साधुने पात्राना धरणहारने ग्रहस्थना घेरे आहारने अर्थे 18 पंटाने पात्रामांहि जेटली अन्ननी दातनी संख्या गृहस्थी आपे तेटली दात कहीए. अन्न नाखता ते धार तूटे नहिं त्यां सुधी | एफ. दात कहीए. हये दातनुं मान कहे छे. ते साधुने कोइ दातार वांसनी छावडीए करी, वस्खे करी, चालणीए करी, जमवानी || यस्तु पात्रमा थे ते पात्र उपाडी साधुना पात्रमा ऊंचा हाथे देतां धार तूटे नहिं त्यां सुधी ते सर्वेने एक दात कहीए. उपर । | एकना आपवा आश्री कयु. हये घणा जण पोतानो भाग एकठो करीने दीए ते आश्री कहे छे. त्यां ते साधु भिक्षाने अर्थे Pil adds ( एचमा वधारे ) भिखूस्स पटिग्गह धारिस्स गाहावकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविहस्स. २ H omita | ( एचमां नयी ) केइ. ३ H ( एच ) उवित्ता. ४ H adds ( एचमां वधारे ) ताओ. ५ T ( टी ) छब्बएण..६ F (एच) दंग्सपण. ७H. (एच) सन्चा.८H. (एचमां.) सयं २ पिण्डसाहणियं. KKe 4 % 1-- Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदेसओ. ॥९ ॥ वहार आव्यो देखीने घणा जण जमता होय ते सर्वे पोतपोतानो आहार एकठो करीने पात्रामांहि ते आहार मुके मुकीने ऊंचेथी Hदेवा भणी पा उपास्युं ने तेवी रीते ऊंचे हाथेथी देतां ते सर्वे आहारनी एकहीज दात कहीए ॥४३॥ उपर अश्नादिक आश्री का. हवे कोड साधु अनदातनी माफक पाणीनी दातनी पण संख्या लेवानुं नकी करे ते भणी इहां पाणीनी दातनी विधि कहे छे. अर्थ ॥४४॥ (संख्या पाणीनी दातनी नकी करी छे तेवा साधुने) पा० पाणीना । १० पात्रनो धरणहार (ग्रहस्यने Hघेर (आहार) पाणीने अर्थे पेठा थकाने)।० बळी। जाजे । के० कोइ। अं०मांहि । पा० पात्रामां पाणी छे ते । उ० उंचेथी। द० देतां यका । ता० तेटला । इ० सर्वेने तेने । द० दात । व० कहेवी । सि० होय । हवे पाणीनी दातनुं मान कहे छे । त० त्यां । से० ते साधुने । के० कोइ दातार । उ० वांसना छानडे करी। वा. अथवा । दू० वस्ने करी । वा० अथवा । वा० चालणीए करीने । वा० वळी । अं० माहे । पा० पात्र मांहे पाणी घालीने । उ० उंचेथी। द० देवा उपाडयु छ । सा० ते जेटले छाबडादिकनी धार तूटे नहिं तेटला लगे। वि० ० बळी। सा० ते सर्वने । ए० एक । द० दात । व० कहेवी । सि. होय । हवे घणा जण एकठा करीने दीए ते आश्री कहे छे । त. त्या । से० ते साधुने भिक्षाने अर्थे आव्या देखीने । ICI ब० घणा जणा। मुं० पाणी पीए छे । स० ते सर्व । तेते । स० पोते पोतानुं । पि० पाणी एकळं करी एक पिड करी आणीने । अं० मांहि । पा० पात्रा मांहि पाणी मुकीने । उ० उंचेथी। द०देवा पात्र उपाडयुं छे ते छाबडीनी धार न तुटै ला त्यां मुधी। स० ते सर्व पाणीनी । वि० ० चळी । सा०ते। एक एक । ददात । व० कहेवी । सि० होय ।। ४४ ।। CPECA A IRAGE ALOG ॥१४५॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृळपाठ ॥ ४४ ॥' पाणिपमिग्गहियस्स णं जावश्यं केई अन्तो पाणिसि जवश्नु दल एजा तावश्यायो' दत्तीओ वत्तव्वं सिया. तत्थ से के छप्पएण वा दूसएण वा वालपण वा अन्तो पाणिंसि उवित्ता दलएका, सा' वि णं सा एगा दत्ती वत्तवं सिया. तत्थ से वहवे भुञ्जमाणा सवे ते सयं पिए; अन्तो पाणिसि जवित्ता दलएका, सबा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया ॥ ४४ ॥ भावार्य ॥ ४४ ॥ जे साधुए पाणीनी दात नकी करी छे तेवा साधुने पाणीना पात्रने धरणहारने गृहस्थने घेर पाणीने * अर्थ पेठा धकाने एक साथे जेटलं पात्र उंचेथी पाणी आपवा उपाडयुं छे तेटला सर्वेने धार न तृटे त्यां सुधी एक दात कहीए, ये ते दातनुं मान कहे . ते साधुने कोइ दातार वासनी छावडीए करी, वस्त्रे करी, चारणीए करी, पाणीने वासणमां घा-६ । लीने उंची देवा वासण उपाढे ते छावहानी धार तुटे नहिं त्यां मुधी एक दात कहीए. उपर एक जणे पाणी आपवा आश्री द फ.यु. ये घणा जण पोतपोतार्नु पाणी एकटुं करीने साधुने पाणीनी भिक्षाने अर्थे आव्यो देखीने सर्वे पोतपोतानुं पीवानुं १ II Adda (एचमां वधारे) संखादत्तियस्स णं भिखुस्स. २ H adds ( एचमां वधारे ) गाहावइ कुलं पिंडवायपटियाए अणुप्पविट्टस्स. ३ H cmits ( एचमां नधी) केइ. ४ । (एचमां) उवित्तं. ५ H adds (एचमां वधारे) ताओ. ६11 (एच) सया, ७ 11 (एचमां) सयं २ पिण्ड साहणियं एग पिण्ड, SORRCRACHERE Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 पबहार० ॥१४६॥ ACCECTRESEREC GEOC% - पाणी एकटं वासणमां करीने उंचेथी देवा पात्र उपाडीने धार करे ते धार तुटे नहीं त्यां सुधी ते सर्वेने एक दात कहीए ॥४४॥ उद्देसओ. उपर प्रतिज्ञा कही ते अभिग्रह करनार होय ते भणी अभिग्रहनो अधिकार कहे छ । अर्थ ॥ ४५ ॥ ति० प्रण । वि० प्रकारे । उ० लेवानो अभिग्रह विशेष । पं० कह्या । तं० ते । ज० कहे छ । सु० शुद्ध घोळू धान । उ० लेवू । फ० काष्टना पानमां । उ० लेवें । सं० खरडे हाथे तथा भाजने वोहरावे ते । उ० लेवु ॥४५॥ मूळपाठ ॥४५॥ तिविहे उवहडे पन्नत्ते । तंजहा।सुद्धोवहमे फलियोवहडे संसट्ठोवहडे ॥४५॥ .... भावार्थ ॥ ४५ ॥ त्रण प्रकारे अभिग्रह कह्या ते कहे थे, १ धो धान्य दीए तो लेवु. २ काष्टना पात्रमा घाली आ-2 णीने दीए तो लेQ ३ खरडये हाथे के भाजने दीए तो लेवू ॥ ४५ ॥ अर्थ ॥ ४६॥ ति० त्रण प्रकारे। ओ० अभिग्रह । ५० कह्या । तते ।जकहे छ। जे । च० वळी । ओ० ग्रहे । जे. जे । च० वळी । सा० साहरे २। जं. जे । च० वळी । आ० मुखमां । प० नाखे ३ ते वस्तु लेवी। ए० एक । ए० एम । आ० कहे ॥ ४६॥ मूळपाठ ॥ ४६ ॥ तिविहे ओग्गहिए पन्नत्ते तंजहा । जं च योगिएह, जं च साहरइ, जं चासगंसि पंक्खिवइ, एगे एवमाहंसु ॥ ४६ ॥ भावार्थ ॥ ४६॥ त्रण प्रकारे अभिग्रह कह्या ते कहे छे, १ जे कोइ ग्रहे, २ जे कोइ साहरे, ३ जे कोइ वस्तुने मुखमां १ (एचमां ) फलिओ° before सुद्धोव (पहेला). जर्मन सूत्रमा ४६-४७ एक सूत्र छ. ११४क्षा -- O कर RD Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ sex - A ( + A ते बस्तु लेखी तथा अभिग्रह जाणवा, एक एम कहे ॥ ४६॥ अधे॥१७॥ (एक बळी एम कहे)। दवे। वि० प्रकारे । ओ० अभिग्रह । ५० कह्या । तं ते। ज जे । च० बळी । बी० ग्रहै । जं० जे । च० वळी । आ० मुखमां । ५० वस्तु नाखे अथवा मुखमाह मुके ते वस्तु लेवी ॥ १७ ॥ ति० एम । बे० ९ कहुं ।। मृळपाठ ॥ १७ ॥ 'दुविहे ओगहिए पन्नत्ते तंजहा। जं च ओगिएहइ, जं च आसगांस पविखवइ ॥ ४७ ॥ 'त्तिवेमि भावार्थ ।। ४७ ।। एक बळी एम कहे छ जे भगवते वे जातना अभिग्रह कह्या ते कहे छे १ जे ग्रहे, २ जे मुखमां नाखे अथवा गुके ते वस्तु लेवी ।। ४७ ॥ एम सुधर्मास्वामि जंयू स्वामिने कहे छे के हे जंबू , जेम मेंश्री महावीरदेव समिपे सांभ. च्यु तेम में तुम मत्ये कयु. अर्थ ॥ ९ ॥ ५० यवहार सूत्रनो । न० नवमो । उ० उदेसो । स० पुरो थयो ।। ९ ॥ मृळपाठ ॥ ९ ॥ ववहारस्त नवमो उद्देसओ समत्तो ॥ ९ ॥ भावार्थ ।। ९ ॥ व्यवहार सूत्रनो नवमो उदेसो पुरो थयो ॥ ९ ॥ - + -- -CASELCO-ON-% -& & - १ II adds ( एचमां धार ) एगे पुण एवमाइंसु. २ H adds ( एचमां वधारे ) तिबेमि. -- Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवहार० ॥१४७॥ ॥ दसमो उद्देसओ ॥ दसम उद्देस अर्थ ॥ १ ॥ दो० बे । प० पडिमा । प० कही भगवते । तं ते । ज० कहे छे । ज० जव । म० मध्य । य० बळी | चं० चंद्र । प० पडिमा ते जेम जव वचमां जाडो ने बे छेडे पातलो तेम तप जाणवो एटले पडवाए १ कवल । बीजे बे कवल । एम एकेक कवल वधारतां पुनमे १५ कवल एम हवे उतरतां पडवाए १४ कवल, बीजे १३ कवल एम उतरतां चौदसे १ कवल ए जब मध्य चंद्र पडिमा जाणवी । व० वज्रनी पेरे वचमां पातळी छेडे जाडी ते एम पडवाए १५ कवल । वीजे १४ एम उतरतां पुनमे १ कवल त्यांथी एक कवल बघता चौदसे १५ कवल लेवा ए वज्र । म० मध्य । य० वळी । चं० चंद्र । प० पडिमा जाणवी । ज० जब । म० मध्य । णं० वळी । चं० चंद्र । प० पडिमा । प० पडिवर्ज्या । अ० साधुने । नि० एक मास । वो० वोसरावी छे । का० कायाने । चि० छांडी छे वळी सुश्रुषा । दे० देहनी जेणे । जे० जे । के० कोइ । प० परिसह । उ० उपसर्ग । स० उपजे ते कहे छे । दि० देवताना कीधा । वा० अथवा | मा० मनुष्यना कीधा । वा० अथवा । ति० तिर्यच । जो० योनीना कीधा । वा० वळी | ( अ० मनने गमता परिसह । वा० अथवा । प० मनने अणगमता । वा० वळी । त० त्यां । अ० मनने गमता । वा० बळी | ता० एम। वं० वांदे | वा० बळी | न० नमस्कार करे । वा० अथवा | स० सत्कार करे । वा० अथवा । सं० सन्मान करे । वा० बळी । क० कल्याणकारी । मं० मांगलिकना करणहार । दे० देवतानी पेरे । चे० ज्ञानवंत साधुनी पेरे । प० सेवा करे छे । त०] त्यां । प० मनने अणगमता । अ० अनेरो कोइ । दं० दांडे करी । वा० अथवा । अ० हाडके करी । उद्देसमो ॥ १० ॥ ॥ १४७॥ Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 0 अथवा । जो जोत्रे करी । या० अथवा । वे० नेतरे करी । वा० अथवा । क० चावखे करी । वा० वळी । का० काया. १ नं ! आ० उपसर्ग दीए) । ते. ते सर्व । उ० उपनाने । स० भले प्रकारे । स० सहे । ख० खमे । ति० दीनपणारहित (तिर मागपणाविना ) । अ० खमे (कायाए अडोलपणे)॥१॥ मृळपाट ॥ १॥ दो पमिमाओ पन्ननायो तं जहा । जवमज्जा य चन्दपमिमा वइरम ज्जा य चन्दपमिमा. जवमज्जणं' चन्दपमिमं पमिवन्नस्स अणगारस्स निचं वोसटकाए चियत्तदेहे जे केइ परीसहोवसग्गा समुप्पऊन्ति दिवा वा माणुस्सगा वा तिरिक्खजोणिया वा', ते' उप्पन्ने सम्म सह खमइ तिइक्खेइ अहियासेइ ॥१॥ १]1 (एच) मञ्झचन्द.२H (एच) मासं.३ H उसग्गा without परी (एचमां एकल उपसगा). ४H है (एचमां ) उप्पजन्ति तं जहा. ५ I alds (एचमां वधारे) अणुलोमा वा पडिलोमा वा तत्थाणुलोमा वा ताव वंदेज वा नमं. सेन्ज वा सफारेज या मेमाणेज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा. तत्थ पडिलोमा अन्नयरेणं दंडेण वा अट्टीण वा ) जोतेण या वेण वा फसेण वा काए आउडेजा.६ Hadds (एचमां वधारे) सव्वे. ७ म (एचमां) सहेज्जा खमेज्जा ति2 तिखे जा अहियासेजा. ८ जर्मन मृत्रमा १ ने २ सूत्र भेगा छे. Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिहार ० १४८ ॥ भावार्थ || १ || भगवंते वे पडिमाओ कही ते जेम छे तेम कहुं छं. १ जब मध्य चंद्र पडिमा अने २ वज्र मध्य चंद्र पडिमा एटले जव मध्यम जाडो छे ने वे छेडे पातळो छे तेने जब मध्य पडिमा कहीए, एम पडिमा बहेनार तप करे ते नीचे मुजब, पडवाए एक कवल (कोळीयो ) आहार लीए, बीजे वे कवल एम चडतां पुनमे १५ कवल पछी उतरतां पडवाए १४ कवल, बीजे १३ कवल, एम चौदसे १ कवल, ए जब मध्य चंद्र पडिमा जाणवी. हये वज्रनी पेठे वचमां पातळी ने छेडे जाडी ते व मध्य पडिमा कही तेमां पडवाए १५ कवल, बीजे १४ कवल एम उतरतां पुनमे १ कवल, त्यांथी एक एक कवल वधतां चौदसे १५ कवल लेवा ए वज्र मध्य पढिमा जाणवी हवे जब मध्य पडिमा परिवर्जनार साधुने एक मास लगे वोसरावी काया जेणे, छांडी छे देहनी शुश्रुषा जेणे, तेने जे कोइ उपसर्ग उपजे ते कहे छे. देवताना, मनुष्यना, तिर्यचना ए उपसर्ग दे जाता है, १ मनने गमता, २ मनने अण गमता, मनने गमतामां तेने वांदे, नमस्कार करे, सत्कार दीए, सन्मान दीए, कल्याणकारी, मांगलिकना वरणहार, देवना जेवा, साधु ज्ञानवंतनीपेरे सेवा करे. हये जे अणगमतो ते अनेरो कोइ डांडेकरी, हाडके करी, जोतरे करी, वेतरे करी ( नेतरे ), चाबखे करी कायाने उपसर्ग दीए, ते सर्व उपसर्ग उपन्या ते भली प्रकारे सहे, खमे, दीनपणा रहित कायाने अडोलपणे राखी खमे ॥ १ ॥ अर्थ ॥ २ ॥ ज० जत्र | म० मध्य । णं० वळी | चं० चंद्र । प० पडिमा । (एटले जवनी माफक वचे जाडी, छेडे पातळी ) । प० परिवर्जनार | अ० साधुने । सु० सुकल । प० पक्षनी । से० जेने । पा० पढवाने दिवसे । क० कल्पे । ए० एक । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । ए० एक । पा० पाणीनी दात लेवी कल्पे । (स० सर्व । दु० दुपद ॥ च० चौपद । आ० ए आदि दइने हाथी आदिक । आ० आहारनी । क० कंखा वांछना | स० करणहार है । प० कोई जीव वांछे नहिं उद्देसओ ॥ १० ॥ ।।१४८ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में तेवो आहार मागे ने तेवो आहार लेवा भिक्षाचरनी भिक्षानी वेळा नथी एटले बे पोहोर पछी गोचरी जाय) । अ०। ॐ अमात ( अजाणा ) कुळे । उ० थोटो थोडो । मु० निर्दोप आहार । उ० अन्यने देता उगर्यो लेवो । नि० भिक्षा लइने | जाय । २० घणा। स० (श्रमण) साक्यतापसादिक । मा० (माहण) शुकल ब्राह्मण जाती। अ० अतिथि जे तीथे | परखे आये ते । कि० कृपण दरिद्री । व० याचक (बंधीवाननी पेठे) करगरीने । म० भीख मागे ते । क० कल्पे । से० ते है| साधुने । ए० एकलो । मुं० भोगवतो थको छे तेनी पासेथी । प० आहार लेवो कल्पे । नो० नहिं । दो० वे जणना जमणमाथी लेयो नहिं । नो० नहि । नि० त्रण जणना जमणमांधी लेवो नहिं । नो० न । च० चार जणना जमणमांथी नहि। नो० न । पं० पांच जणाना जमणमांधी नहिं । नो० न । गु० गर्भवतीने हाथे नहिं (त्रण मास पछी )। नो० न । वा० बाळकना जमणमांधी नहिं अधवा वाळकने विच्छेद पाडीने नहिं । नो० न । दा. बाळकने । पे० धवडावतीने हाथे नहि । * १ नो० न । ( से० तेने । फ० कल्पे )। अं० घरमांहि तथा । एक उंबराने मांहि । दो० । वि० वळी । पा० पग । सा० ४ एकठा करीने । द० देती थी । (५० लेवो न कल्पे ) । नो० नहीं । वा० वहार । ए० उंबरानी । दो० वे । वि० वळी । । पा० पग । सा. एकटा करीने । द० देती यकीन लीए । (अ० हये । पू० वळी । ए० एम । जा० जाणे)। ए० एक। * पा० पग। अं परा मांहि । कि० करीने बळी। ए० एक। पा० पग। वा०वहार । कि० राखीने । ए० उंबरानी । वि० ये बानु ये पग राखीनं । ( ए० एवी । ए० एपणा अभिग्रह विशेप । ए० गवेखतो थको । ल० लाभे तो । आ० आहार लीए । ) II ए० पदवी । ए० एपणा । ए० गदेखतो । णो० न । क. लाभे तो। णो न । आ० आहारने लीए)। ए० एम। द० * देना । ए० एम। से० तेने । क० कल्पे । प० लेवो । ए० एम | नोन। द० आपेतो। ए० एम । से० तेने। नो० न । असर Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व बबहार ॥२४९॥ ॥१० क० कल्पे । प० लेवो । बि० वीजे दीने । से० तेने । क० कल्पे । दो० बे। द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी। दो० उद्देसओबे दात । पा० पाणीनी लेवी । ( स० सर्वते । दुबे पद । च० चौपद । आ० ९ आदि दइने । आ० आहारना । कं० वाछणहार । स० होय । ५० कोइ लेवा इच्छे नहि तेवो आहार । अ० अजाणे घेर । उ० थोडो थोडो । मु० निर्दोष । उ० लेवो । क० कल्पे । से० ते साधुने । ए० एकज माणस । भुं० जमतो होय तेमांथी। प० लेवो । नो० नहिं । दो० जणामाथी नहिं । नो० नहि । तिव्रण जणामांथी नहिं । नो० नहि । च० चार जणामांथी नहि । नो० नहिं । प० पांच जणामांथी नहिं । नो० नहिं । वा० वाळकने विच्छेद पाडीने नहिं । नो० नहिं । गु० गर्भवंतीने हाथे । नो० नहिं । दा० बाळलकने । पे० धवरावतीने हाथे नहिं । नो० न । से० तेने । क० कल्पे । अं० मांहि । ए० उंबरामांहि । दो० बे। वि० वळी । पा० पग । सा० एकठा करीने । द० देती थकी। प० लेवो न कल्पे । अ० हवे । पु० बळी। ए० एम । जा० जाणे । ए. एक । पा० पग । अं० उंबरा मांहे । कि० करीने । ए० एक । पा० पग । बा० उंबरा वाहार । कि० करीने। एक उंबरानी बे बाजु । वि० वे पग राखे राखीने । ए० एहवी । ए० एखणाए । ए० गवेषता । ल० लाभेतो। आ० आहार ले। मा ए० एहवीं । ए० एखणाए । ए० गवेखतो थको । णो० न । ल० लाभेतो । णो० न । आ० आहार लीए)। तक बीजे दीने । से० तेने । क० कल्पे । ति० त्रण । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । ति० त्रण । पा० पा-M णीनी । (जा. ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए)॥ च० चोथे दीने । से तेने । क० कल्पे । च० चार । द० दांत । भो० भोजननी। प० लेवी । च० चार दात । पा. पाणीनी। (जा. ज्यांलगे। णो न । आ० आहार लीए)॥ X॥१९॥ 94CECRECE Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ + K- पं० पांचमे दीने । से० तेने । क० कल्पे । पं० पांच । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । पं० पांच दात । पा० पाणीनी लेबी। (जा. ज्यांलगे। णो० न। आ० आहार लीए)॥ छ. छटने दीने । से० तेने । क० कल्पे । छ० छ । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । छ० छ । पा० पाणीनी लेबी। (जा० ज्यांलगे । णो० न । भा० आहार लीए)॥ स० सातमने दीने । से० तेने । फ० कल्पे । स० सात । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । स० सात दात । * पा० पाणीनी लेवी । (जा. ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए) । ____ अ० आटमने दीने । से० तेने । क० य.ल्पे । अ० आठ । द० दात । भो० भोजननी। प० लेवी। अ० आठ दात । ६ पा० पाणीनी लेवी । (जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए)॥ न० नोमने दीने । से० तेने । फ० कल्पे । न० नव । द० दात । भोक भोजननी। प० लेवी। न० नव । पापा 3 णीनी । (जा. ज्यांलगे। णो० न । आ० आहार लीए)। द. दशमने दीने । से० तेने । क० कल्पे । द० दस । द० दात । भो० भोजननी। प० लेवी । द० दस । पा० पाणीनी । (जा. ज्यांलगे। णो० न । आ० आहार लीए)॥ ___ए० अगीयारसने दीने । से० तेने । क० कल्पे । ए० अगीयार । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । ए० अगीयार पा. पाणीनी लेबी। (जा. ज्यांलगे। णो० न। आ० आहार लीए)॥ या वारसने दीने । से० तेने । क. कल्पे । वा० वार । द० दात । भो० भोजननी। प० लेवी । वा० पार । पा० ~-A-Porno-n. CRECRUC -A 5% - Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार ॥१५०॥ उद्देसको ॥१०॥ 3675454537-%% पाणीनी । (जा० ज्यांलगे। णो न । आ० आहार लीए)॥ ते० तेरसने दीने । से० तेने । क. कल्पे । ते० तेर। द० दात । भो० भोजननी । १० लेवी । ते० तेर । पा० पा. णीनी । (जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए)॥ ___चो० चौदशने दीने । से० तेने । क० कल्पे । चो० चौद । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । चो० चौद । पा० पाणीनी । (जा. ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए.)॥ .५० पुनमने दीने । से० तेने। क. कल्पे। प० पन्नर । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । प० पनर । पा० पाणीनी । (जा. ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए)॥ व० अंधारीया। प० पक्षना । से० तेने । पा० पडवाने दीने । क० कल्पे । चो० चौद (द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । चो० चौद । पा० पाणीनी । स० सर्व । दु० द्विपद । जा. ज्यांलगे । णो० ना आ० आहार लीए)॥ वि० बीजने दीने । क. कल्पे । ते० तेर । द० दात । भो० भोजननी । १० लेवी । ते० तेर। पा० पाणीनी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए॥ तत्रीजने दिवसे । क. कल्पे । वा० बार । द० दात । भोक भोजननी । प० लेवी । बा० बार । पा० पाणीनी। जा० ज्यां लगे । णो० न । आ० आहारलीए ॥ च० चोथने दीने । क. कल्पे । एक अगीयार । द० दात । भो० भोजननी । जा. ज्यां लगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ RECयार Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० पांचपने दीने । फ० फल्पे । द० दस । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ छ० घटने दीने । क० फल्पे । न० नव । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यां लगे । णो० न । आ० आहार लीए ॥12 स० सातमने दीने । क० कल्पे । अ० आठ । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥5 अ० आठमने दीने । क० कल्पे । स० सात । द० दात । भो० भोजननीं । जा. ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ न० नोमने दीने । क० कल्पे । छ० छ । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यां लगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ द० दसमीने दीने । क० कल्पे । पं० पांच । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ ए० भग्यारसे । क० कल्पे । च० चार । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलमे । णो० न । आ० आहार लीए ॥ या० वारसने दीने । क० कल्पे । ति० प्रण । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए॥ ते० तेरसने दीने । क० कल्पे । दो० वे । दा० दात । भो० भोजननीं । जा. ज्यांलगे। णो न । आ० आहार लीए ॥ च० चौदसने दीने । क० कल्पे । ए० एक । द० दात । भो० भोजननी । १० लेवी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० * आहार लीए ॥ अ० अमावासने दीने । से० ते साधु । य० वळी । अ० आहार । भ० फरे नहिं । ए० एम । ख० निश्च । ए०ए। " ज० जब । म० मध्य । चं० चंद्र । प० पडिमा । अ० जेम । मु० सूत्रमा कही । अ० जेम। क० कल्प आचार छ। जा० क्यां लगे। म. माझा सहित पाळतो। भ० होय ॥१-२॥" Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोसमो. ॥ १०॥ अ % बबहार० मूळपाठ ॥१-२॥ जवमज्जमं चन्दपमिमं पमिवन्नस्स अणगारस्स सुकपकखस्स से पा॥१५॥ मिवए कप्पर एगा दत्ती जोयणस्स पनिगाहेत्तए, एगा पाणस्स. अन्नायउञ्छं सुद्धोवहडं निहित्ता बहवे समणमाहणअहिकिवणवणीमगा. कप्पर से एगस्स जुञ्जमाणस्स पनिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्डं नो चउण्डं नो पञ्चण्हं, नो गुविणीए' नो बालवत्थाए नो दारगं पेङमाणीए, नो अन्तो एव्यस्स दो वि पाए साहटु दलमाणीए", नो बाहिं एलयास दो वि पाए साहटु दलमाणीए. एगं पायं अन्तो किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा एलयं विक्खम्भइत्ता एवं १ H omits ( एचमां नथी ) से. २ F adds ( एचमां वधारे ) सव्वेहिं दुप्पयचउप्पयाइएहिं आहारकीहिं सत्तेहिं पहिणियत्तेहिं. ३ म ( एचमां) नो गु° after नो वा (पछी). ४ H adds (एचमां वधारे ) से कप्पइ. ५ F adds (एचमां वधारे) पडिगाहित्तए. ५-2 ( एचमां) अह पुण एवं जाणेज्जा preceds एगं पायं (नी पहेलां).६ Hadds (एचमां वधारे ) एयाए एसणाए एसमाणे लब्भेज्जा आहारेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे णो लम्भेजा णो आहारेज्जा. P६-१ एवं दलयइ to पहिगाहेत्तए ( सुधी) not in F (एचमां आ पाठ नथी). 4%AALONAR AE ॥१५॥ Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S HIKri दलयर, एवं से कप्पह पनिगाहेत्तए. एवं नो दलयइ एवं से नो कप्पर पमिगाहेत्तए. विइजाए से कप्पइ दोसि दत्तीयो भोयणस्स पनिगाहेत्तए, दोलि पाणस्स. तश्याएं से कप्पइ तिमि दत्तीओ जोयणस्स पमिगाहेत्तए, तिमि पाणस्स. पंचउत्थीए से कप्पइ चनदत्तीओ नोयणस्स पनिगाहेत्तए, चउपाणस्स. प. ञ्चमीए से कम्पइ पञ्चदत्तीओ नोयणस्त पमिगाहेत्तए, पञ्चपाणस्त. छट्ठीए से । कप्प३ छ दत्तीओ नोयणस्स पनिगाहेत्तए, छ पामस्स. सत्तमीए से कप्पर सत्त है ७ H adda (एचमां वधारे ) सव्येहिं दुप्पयचउप्पयाइएहिं आहारकङखीहिं सत्तहि पडिणियत्तेहिं अन्नायउञ्छ सुद्धोयहट, फापद से एगस्स भुञ्जमाणस्स पडिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पञ्चण्हं, नो वालवत्थाए नो गुन्विजीए नो दारगं पेजमाणीए, नो से कप्पइ अन्तो एलुयस्स दो वि पाए साह९ दलमाणीए पडिगाहित्तए, अह पुण एवं जाणेजा एगं पायं अन्तो फिचा एगं पायं याहि किच्चा एलुय विकखम्भइत्ता एयाए एसणाए एसमाणे लम्भेज्जा आहारेज्जा, एयाए एसणाए एसमाणे णो लमेज्जा णो आहारेजा. ८ From here the mss. use great abbreviations ( अत्रेथी सूत्रोमां। टुंफामां लखाण छे). ८-१ So alrays after पाणस्स hke ७ for the greater parb abbreviated (७नी माफक "पाणस्स" पछी टंकामां पाठ छे). . त्य Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ववहार० ॥१५२॥ दत्तीओ जोयणस्स पनिगाहेत्तर, सत्त पाएस्स. अट्टमीए से कप्पइ अट्ट दत्तीओ जोयणस्स पनिगाहेत्तए, अट्ट पाणस्स. नवमीए से कप्पड़ नव दत्तीओ जोयएस परिगात्तए, नव पाणस्स. दसमीए से कप्पइ दस दत्तीओ जोयणस्स पनिगाहेत्तए, दस पाणस्स. एगारसमीए से कप्पइ एगारस दत्तीयो जोयणस्स पमिगाहेत्तए, एगारस पाणस्स. बारसमीए से कप्पर बारस दसीओ भोयणस्स परिगात्तए, बारस पाणस्स. तेरसमीए से कप्पर तेरस दत्ती नोयणस्स परिगात्तए तेरस पास्स चोदसमीए से कप्पइ चोदस दत्तीओ जोयणस्स पमिगाहेत्तर चोइस पाणस्स. पन्नरसमीए" से कप्पइ पन्नरस दत्तीओ जोय - स परिगात्तए, पन्नरस पापस्स. बहुलपक्खस्स से" पाविए कप्पन्ति चो ९ (एम) सीए in-stead of 'समीए ( ने बदले ) १० HE (एचमां ) पुण्णिमाए कप्पर पं. ११H (एचमां ) से after पा° ( " पाडिवए " पछी " से " छे ). उद्देसओ. ॥ १० ॥ ॥१५२॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Erॐ-5Seri दस". "वितियाए, कप्पर तेरस दत्तीओ जोयणस्स पनिगाहेत्तए तेरस पाणस्स जावणो आहारेजा. ततियाए कप्पर वारस दत्तीयो जोयणस्त पमिगाहेत्तए वारस पाणस्स "जाव णो आहारेङा. चउत्थीए कप्प३ एकारस दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेजा. पञ्चमीए कप्पइ दस दत्तीयो भोयणस्स जाव णो आहारेजा. उट्ठीए कप्पइ नव दत्तीयो भोयणस्स जाव णो आहारेजा. सत्तमीए कप्पर अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा. अट्ठमीए कप्पइ सत्त दत्तीयो भोयणस्स जाव पो आहारेजा. नवमीए कप्पर छ दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा. दसमीए कप्प३ पञ्च दत्तीयो भोयणस्स जाव पो हारेजा. एकारसीए कप्पक्ष चउ दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेजा. १२ H adds ( एचमां वधारे) दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए चउद्दस पाणस्स सव्वेहिं दुप्पयं जाव णो आहारेज्जा. १२-२ now follows in r ( एचमां नीचेनो पाठ छे). १३ जाव. means the addition of सव्वेहिं &c. until एसमाणे नो लमेज्जा an above vido ७ ("जाव" पछी ७ ना मुजब पाठ मुकवो). EASABALIGURA c Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार० ॥१५३॥ बारसी कप ति दत्तीय भोयणस्स जाव णो आहारेका. तेरसीए कप्पइ दो दत्त भोयरस जाव णो आहारेका. चउदसीए कप्पइ एगादत्ती भोयएम्स जाव णो हारेद्धा. अमावासाए से य यत्तट्ठे भवइ एवं खलु एसा जवमज्जचंदपमिमा हासुतं श्रहाकप्पं जाव अणुपालित्ता भवइ ॥ १-२॥ भावार्थ ॥१-२॥ जवमझ चंद्रपडिमा अंगिकार करनार साधुने शुकल पक्षनी एकमनादीने एक दात भोजननी ने एक दात पाणीनी लेवी कल्पे ते केवे वखते लेवी कल्पे ते कहे छे. सर्वे वे पगा, चार पगा जे आहारनी इच्छावाळा छे तेमने आहार मळी चुक्यो छे ने आहार लइ परवार्या छे एटले भिक्षुकादिक आहार लइ गया पछी वे पोहोर वाद साधु गौचरी जाय ने घणा साक्यतापसादिक, शुकल ब्राह्मण जाति, अतिथी जे तीर्थ परने आये, कृपण दरिद्रि, याचक जे बंधीवाननी पेठे भीख मागे ते भीक्षा लइ गया पछी थोडो थोडो अने निर्दोष आहार लीए. ते साधुने एकलो जे घरमां जमनार छे तेमांथी आहार लेवो कल्पे पण बे जणना जमणमांथी, त्रण जण, चार जण, पांचजणना जमणमाथी लेवो कल्पे नहि. त्रीजा मास पछी गर्भवाळी खीना हाथ न ले, बाळकना जमणमांथी नहि के वाळकने विखुटो पाडी आपे तेम न ले, बाळकने धवरावतीने हाथे न ले, घरमा उंबरामांहि बे पग एकठा करीने दीए तो आहार लेवो कल्पे नहि. उंबरानी बहार बे पग एकटा राखीने दीएतो आहार न लेवो कल्पे, पण जो एम जाणे जे एक पग उंबरा मांहि छे ने एक पग बहार राखेल छे एटले वे पगनी बचे उंबरो राखीने दीए, एवी रीते उपर मुजब आहार गवेषतां (शोधतां ) मळे तो आहार लीए ने उपर मुजब आहार शोधतां न मळे 산 उद्देसओ ॥ १० ॥ | ॥ १५३ ॥ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ xxxx तो आहार न लीए, एम दीए तो तेने आहार लेवो कल्पे, एम न दीए तो तेने आहार न लेवो कल्पे. बीजने दिवसे वे दात अन्ननी ने वे पाणीनी लीए, ते आहार सर्व दुपद, चौपद जे आहारना अभीलाखी छे तेमने आ - दार मया पछी अजाणे घेर गोचरी जाय. थोडो थोडो निर्दोष आहार लीए, ते पण जे घरमा एकलो माणस जमतो होय त्यांथी कीए पण वे, त्रण, चार, पांच जमता होय ते घरमांधी न लीए. वाळकने विच्छेद पाठीने अथवा गर्भवती स्त्रीने हाथे, बाळक धवरावतीने हाथे आहार लीए नहि. घर तथा उंबरामांहि वे पग एकठा करीने कोइ स्त्री देती थकी साधु आहार न ले, पण एम जाणे जे एक पग उंबरा मांहि छे ने एक पग उंबरा वहार छे ने वे पग बच्चे उंबरो राखीने एवी रीते आहार गवेखे ने आधार काभे तो लीए. एम आहार मागता न मळे तो न हीए. त्रीजने दिवसे त्रण दात भोजननी ने ऋण पाणीनी लेवी फल्पे ज्यांलगे आहार लीए नहि. चोधने दिवसे चार दात आहार पाणीनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. पांचमने दिवसे पांच दात आहार पाणीनी लेवी कल्पे ज्यांलगे आहार न लीए छट्टने दिवसे छ दात भोजननी ने पाणीनी लेवी कल्पे ष्यांलंगे आहार लीए नहि. सातमने दिवसे सात दात आहार पाणीनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार लीए नहि. आठमने दिवसे आठ दात भोजननी ने आठ दात पाणीनी लेवी कल्पे ज्यांलगे आहार लीए नहि. नोमने दिवसे नत्र दात भोजननी ने नत्र पाणीनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. दशमने दिवसे दस दात भोजननी ने दस पाणीनी लीए, ज्यांलगे आहार नलीए. अगीयारसने दिवसे अगीयार दात भोजननी ने पाणीनी लीए, ज्यांलगे भाहार न लीए. वारसने दिवसे वार दात भोजननी ने पाणीनी लीए ज्यांलगे आहार न लीए. तेरसे तेर दात भोजननी ने पाणीनी लीए ज्यांलंगे आहार न लीए. उदसे चौद दात भोजननी ने पाणीनी लीए ज्यांलगे आहार नलीए. पुनमे पंदर दात भोजन ने पाणीनी लीए ज्यांलगे TXATX Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहार० १५४॥ उदेसमो॥१०॥ ALSHRESIDE आहार न लीए. अंधारीपक्षना पडवानेदिवसे चौद दात आहारपाणीनी लेवी कल्पे. सर्व दपदने आहार मळ्या पछी ज्यांलगे आहार न लीए. बीजने दिवसे तेर दात आहार पाणीनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. त्रीजने दिवसे बार दात भोजन ने पाणीनी लीए ज्यांलगे आहार न लीए. चोथने दिवसे अगियार दात भोजननी लीए. ज्यांलगे आहार न लीए. पांचमने दिवसे दस दात भोजननी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. छट्टने दिवसे नव दात आहारनी लीए. ज्यांलगे आहार न लीए. सातमने दिवसे आठ दात आहारनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. आठमने दिवसे सात दात आहारनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. नोमने दिवसे छ दात आहारनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. दशमने दिवसे पांच दात आहारनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. अगीयारसने दिवसे चार दात आहारनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. बारसने दिवसे त्रण दात आहारनी लीए, ज्यांलगे आहार न लीए. तेरसे बे दात आहारनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. चौदसे एक दात आहारनी ने एक दात पाणीनी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. अमासने दिवसे ते साधु आहार करें नहिं एम निश्चे कही एहवी जवमझचंद्रपडिमा जेम सूत्रमा कही. जेम कल्प आचार करो तेम ज्यांलगे आज्ञा सहित पाळे ४॥ १-२॥ जवमध्यचंद्रपडिमानो यंत्र नीचे प्रमाणे तेनी सर्व मळी २२५ दात थाय, ॥जवमध्यचंद्रपडिमा यंत्र ॥ 1 5 -5 SI १.२.३.४-५-६-७-८-९-१०-११-१२-१३-१४-१५ | १४-१३-१२-११-१०-९-८-७-६-५-४-३-२-१-०२२५ ॥१५४ अथे ॥१-३॥ व० बज । म० मध्य । ण० वळी । च०चंद्र । प० पडिमा। प० अंगीकार करनार । अ० साधुने । मा० Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक मास लगे । बो० बोसरावी है । का० काया जेणे । चि० छांडी छे जेणे । दे० शरीरनी वांछां । जे० जे । के० कोइ । प० परिसह । उ० उपसर्ग । स० उपजे । तं ते । ज० कहे छे । दि० देवताना कीधा । वा० अथवा । मा० मनुष्यना कीधा । वा० अथवा | ति० तिर्यचना । जो० योनिना किधा । वा० अथवा | अ० मनने गमता । वा० अथवा । प० मनने अणगमता । बा० बळी | त० त्यां । अ० मनने गमता । वा० बळी | ता० ते । व० वांदे । वा० अथवा । न० नमस्कार करे । वा० अथवा । स० सत्कार दीए । वा० अथवा | स० सन्मान दीए । वा० अथवा । क० कल्याणकारी । मं० मंगळीकना करणहार । दे० देवतानी गरे । चे० ज्ञानवंत साधुनी पेरे । प० सेवा करे | त० त्यां । प० मनने अणगमता ते । वा० वळी । अ० अनेराए । दं० दांडेकरी | बा० अथवा | अ० हाडके करी । वा० अथवा | मु० मुठीए करी । वा० अथवा | जो० जोतरे करी । वा० अथवा | वे० वेतरे- नेतर ( लाकडीए करी ) । वा० अथवा | क० चावखे करी । वा० वळी । का० कायाने । आ० उपसर्ग करीने | ते॰ ते | स० सवें । उ० उपना परिसहने । स० भलीपेरे । स० सदहे । ख० खमे । ति० दीनपणा रहित । अ० पायाने अडोलपणे राखी खमे ॥ १-३ ॥ मूलपाठ ॥ १-३ ॥ वइरमज्जसं चन्द्रपमिमं परिवन्नस्त अणगारस्स मासं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केइ परिसहोवसग्गा समुप्पतन्ति तं जहा दिवा वा माणुस्सगा 46 १ Now II gives tho description of the वइरमज्झ चन्द्रपडिमा wanting in tho other mss. ( एचमां हवे चइरमज्झ चन्दपडिमा " नुं वर्णन है जे बीजा सूत्रोमां नथी ) जर्मन बुकमां १-३-१-४ सूत्रो नयी. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥१५५॥ -C4%B1%25A5 वा तिरिकख जोणिया वा अणुलोमा वा पमिलोमा वा तत्थ अणुलोमा वा | उद्देसओ. ताव वन्देजा वा नमन्सेजा वा सकारेजा वा समाणेजा वा कहाणं मंगलं ॥१०॥ देवयं चेश्यं पडवासेजा तत्थ पमिलोमा वा अन्नयरेणं दंमेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा जोत्तेण वा वेत्तेण वा कसेण वा काए बाउट्टेडा ते सत्वे उप्पन्ने सम्मं सहेजा खमेजा तिखेका अहियासेजा ॥ १-३॥ भावार्थ ॥ १-३ ॥ वज्रमध्य चंद्रपडिमां अंगीकार करनार साधुने एक मास वोसरावी छे काया जेणे, छांडी छे देहनी 12 वांछा जेणे, जे कोह उपसर्ग उपजे ते कहे छे. देवताना, मनुष्यना, तिर्यंचना, मनने गमता के अणगमता. तेमां मनने गमता उपसर्गमां तेने वांदे, नमस्कार करे, सत्कार करे, सन्मान करे, कल्याणकारी, मंगळकारी, देवनी माफक, साधुनी माफक || तेनी सेवा करे, मनने अणगमता उपसर्गमा अनेराना डांडे करी, हाडके करी, मुठीए करी, जोतेरेकरी, वेतरे करी, चाबखे करी, कायाने उपसर्ग करे ते सर्व उपना परिसहने सम्यक रीते दीनपणा रहित कायाने अडोलपणे राखीने खमे ॥१-३॥ अर्थ ॥१-४॥ व० वज्र । म० मध्य । णं० वळी । चं० चंद्र । प० पडिमा। प० अंगीकार करनार । अ० साधुने । ब० अंधारुं ते वद । प० पक्षनी । पा० पडवेने दीवसे । क० कल्पे । प०१५ । द० दात । भो० भोजननी । ५० लेवी । प०१५ दात । पा० पाणीनी लेवी । स० सर्वे । दु० दुपद । च० चउपद । आ० ए आदि । आ० आहारनी। कं० इच्छावाळाने । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए । ॥१५५॥ SECR55555 Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिवीजने दिवसे । से० तेने । फ० कले। च० १४ । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । जा० ज्यांलगे। णो० ४ नमा० आहार लीए ।। त. त्रीजने दिवसे । क० कल्ले । ते० १३ । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ * च० चोथने दिवसे । क० कल्पे । वा. वार । द० दात । भो० भोजननी । जा. ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ ५० पांचमने दिवसे । क० फल्पे । ए० अगीयार । द० दात । भो भोजननी । जा० ज्यां लगे । णो० न । आ० आ-% महार लीए । छ० छट्टने दिवसे । क० फल्पे । द० दस । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे। णो० न । आ० आहार कीए । स० सातमने दिवसे । क० फल्पे । न० नव । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए॥ अ० आटमने दिवसे । क० फल्पे । अ० आठ । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए ॥४ न० नोमने दिवसे । क० फल्पे । स० सात । द० दात । भो० भोजननी । जा०व्यांलगे। णो० न । आ० आहार लीए । द० दसमने दिवसे । क० कल्पे । छ० छ । द० दात । भोक भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए। ए० अगियारसे । क० कल्पे । पं० पांच । द० दात । भो० भोजननी । जा. ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए॥ चा. बारसे । क० कल्पे । च० चार । द० दात । भो० भोजननी । जा० व्यांलगे । णो० न । आ० आहार कीए । त० तेरसे । क० कल्पे । तिव्रण । ददात । भो० भोजननी। जाज्यांलगे। णो० न। आ० आहार लीए। CREAS 4PM Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव उसमा यवहार च० चौदशे। क. कल्पे। दो बे। द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए ॥ ल॥१00 ॥१५६॥ अ० अमावासने दिवसे । क. कल्पे । एक एक । द० दात । भो० भोजननी । प० लेवी । जा. ज्यांलगे । णो० न। आ० आहार लीए। सु० शुकल । ५० पक्षना । पा० पडवाने दिवसे । से० ते साधुने । क० कल्पे । दो० चे । द० दात । भो० भोजननी ।। जा. ज्यांलगे। णो० न । आ० आहार लीए। वि० बीजने दिवसे । से० तेने । क. कल्पे । ति०त्रण | द० दात । भो० भोजननी । जा. ज्यांलगे। णो.न । आ० आहार लीए। __त० त्रीजने दिवसे । से० तेने । क० कल्पे । च० चार । द० दान । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० आहार लीए । च० चोथने दिवसे । से० तेने । क० कल्पे । पं० पांच । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो० न । आ० हूँ। । आहार लीए ॥ पं० पांचमने दिवसे । क. कल्पे । छ० छ। ६० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे। णो० न । आ० आहार लीए । छ० छट्टने दिवसे । क० फल्पे । स० सात । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए॥ स० सातमने दिवसे । क. कल्पे । अ० आठ । द० दात । भोक भोजननी जा० ज्यांलगे। णोन । आ० आहार लीए॥ अ० आठमने दिवसे । क. कल्पे । न० नव । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे। णो० न। आ० आहर लीए॥ ॥१५६ ब्दक- CAMECH RED Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न० नोमने दिवसे । क० कल्पे । द० दस । द० दात | भो० भोजननी । जा० ज्यांलगे । णो न । आ० आहार लीए ॥ । द० दसमने दिवसे । क० कल्पे । ए० अगियार। द० दात। भो० भोजननी । जा० ज्यां लगे। णो० न । आo आहार लीए। ए० अगियारशने दिवसे । क० कल्पै । वा० वार ।द० दात । भो० भोजननी। जा० ज्यांलगे । णो० न। आ० आहार लीए। वा० वारसने दिवसे । क० कल्पे । ते० तेर । द० दात । भो० भोजननी । जा० ज्यां लगे। णो न । आ० आहार लीए॥ ते० तेरसने दिवसे । क० कल्पे । च० चोद । द० दात । भो० भोजननी । जा. ज्यां लगे। णो० न । आ० आहार लीए। है च० चोदसने दिवसे । क० कल्पे । ५० १५ । द० दात । मो० भोजननी । प० लेवी । १० १५ दात । पा० पाणीनी।' ३५० लेवी । स सर्वे । दु० दुपद । च० चौपदने । जा० ज्यां लगे । णो न । ल० मळे । णो० न । आ० आहार लीए। हा पु० पुनमे । अ० उपवास । भ० करे । ए० एम । ख० निश्चे । ए० एव० वच । म० मध्य । चं० चंद्र । प० पडिमा। अ० जेम । मु० सूत्रगां कही । अ० जेम । क० कल्प आचार छ । जा० ज्यां लगे । अ० पाळीने । भ० विचरे ॥४॥ मूळपाठ ॥ ४॥ पइरमज्ज णं चन्दपमिमं पमिवन्नरस श्रषगारस्स बहुलपकखस्त. पा मिवए कप्पइ पन्नरस्स दत्तीयो भोयणस्स पमिगादेत्तए पन्नरस पाणगस्स: सहिं दुप्पय बउप्पयाश्एहि थाहार कॅखेहिं जाव पो थाहारेजाः बितियाए से कप्पश् चउद्दस दत्तीओ भोयणस्स पनिगाहेत्तए जाव णो आहारेजा. तइ २9 Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार० H१५७॥ याए कृप्पर तेरस दत्तीओ भोयणस्स जाव णो याहारेका. चथाए कप्प बारस दत्तीयो जोयणस्स जाव णो आहारेका. पञ्चमीए कप्पइ एगारत दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेका. बट्ठीए कप्पइ दस दत्तीयो जोयणस्स जाव णो आहारेका. सत्तर्माए कप्पड़ नव दत्तीओ जोयणस्स जाव पो आहारेका. अट्टमीए कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स जाव णो आहारेका. नवमीए कप्पइ सत्त दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेका. दसमीए कप्पइ छ दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेया. एगारसीए कप्पर पञ्च दत्तीओ जोयस्स जाव णो आहारेका. वारसीए कप्पश् च दत्तीओ जोयणस्स जाव पो आहारेका. तेरसीए कप्पर तिन्नि दत्तीओ जोयपस्स जाव णो श्राहारेका. उदसीए कप्पड़ दो दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेका अमावासाए कप एगा दत्त भोयणस्स पनिगाहेत्तए जाव णो आहारेका. सुकपक्खस्स - पामिव से कप्पड़ दो दत्तीओ जोयणस्स जाव णो व्याहारेका, बितियाए उद्देसओ, ॥ १० ॥ ॥ १५७ ॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . 5%8 से कप्पर तिन्नि दत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेजा. तइयाए से कप्पर चजदत्तीयो नोयणस्स जाव णो आहारेडा. चनत्थीए से कप्पश् पञ्चदत्तीओ जोयणस्स जाव णो आहारेजा. पञ्चाए कप्प ठ दत्तीयो जोयणस्स जाव णो याहारेजा. छट्ठीए कप्पइ सत्त दत्तीयो नोयणस्त जाव णो आहारेजा. सत्तमीए कप्पइ अट्ठ दत्तीओ लोयणस्स जाव णो आहारेजा. अट्ठमीए कप्पइ नव दत्तीयो नोयणस्स जाव णो आहारेजा. नवमीए कप्पइ दस दत्तीयो भोयणस्त जाव णो आहारेजा. दशमीए कप्पइ एगारस दत्तीयो नोयणस्स जाव णो आहारेजा. एगारसीए कप्पइ बारस दत्तीओ लोयणस्स जाव पो थाहारेजा. वारसीए कप्पइ तेरस दत्तीओ नोयणस्स जाव को याहारेजा. तेरसीए कप्पइ घउद्दस दत्तीयो नोयणस्स जाव णो आहारेजा. चउद्दसीए कप्पइ पन्नरस दत्तीयो नोयणस्त पमिगाहेत्तए, पन्नरस पाणगस्स पमिगाहेत्तए. सोहिं दुप्पय चउप्पय जाव णो लब्जेजा णो आहारेजा. पुलि CB2%r-OCT-N-SIS Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार माए अनत्तढे नवश्. एवं खलु एसा वइरमज्जा चंदपमिमा अहासुत्तं अ- उद्देसओ. ॥१५८॥ 8॥१०॥ हाकप्पं जाव अणुपालित्ता नवइ ॥ ४ ॥ भावार्थ ॥ ४ ॥ वज्र मध्य चंद्र पडिमा अंगीकार करनार साधुने अंधारीया चंद्र पक्षना पडवाने दिवसे पनर दात अननी ने पनर दात पाणीनी लेवी कल्पे. सर्वे दपद चौपद आहारनी इच्छावालाने आहार मळ्या पछी ज्यांलगे आहार न लीए. वीजने दिवसे चौद दात भोजननी लेवी कल्पे ज्यांलगे आहार न लीए. त्रीजने दिवसे तेर दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यां लगे आहार न लीए. चोथे बार दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. पांचमे अगीयार दात भोजननी लेवी Bा कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. छठे दस दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए: सातमे नव दात भोजननी | लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. आठमे आठ दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. नोमें सात दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. दसमे छ दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. अगीयारसे पांच दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. बारसे चार दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. तेरसे त्रण दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. चउदसे बे दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. अमासे एक दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. शुकलपक्षनी पडवाने दिवसे बे दात भोजननी लेवीं कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. बीजने दिवसे त्रण दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. त्रीजे चार दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. चोथे पांच दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. पांचमे छ 15॥१५॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. छट्टे सात दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न कीए. सातमे आठ दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. आठमे नव दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. नोमे दस दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. दसमे अगियार दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. अगियारसे वार दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. वारसे तेर दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यां लंग आहार न लीए. तेरसे चौद दात भोजननी लेवी कल्पे, ज्यांलगे आहार न लीए. चौदसे पन्नर दात भोजननी ने पन्नर दात पाणीनी लेवी कल्पे, सर्वे दुपद चौपदने, ज्यांलगे आहार न मळे त्यां सुधी आहार न लीए. पुनमे उपवास करे. एम निथे ए वन्त्रमध्यचंद्रपडिमां जेम सूत्रमां कही, जेम तेनो कल्प आचार कह्यो, ज्यांलगे पाळनारो होय ॥ ४ ॥ वज्रमध्यचंद्रपटिमानो यंत्र नीचे प्रमाणे तेनी सर्व मळीने २३९ दात थाय. ॥ वज्रमध्यचंद्रपडिमा यंत्र ॥ १५-१४-१३-१२-११-१ -४-३-२-१ | २-३-४-५-६ ८-९-१०-११-१२-१३-१४-१५-०२३९ अर्थ || ५ || पं० पांच | वि० प्रकारे । व० व्यवहार | पं० कला | तं० ते । ज० कहे छे । आ० (१) आगम व्यवहारी ते तीर्थकर १ | गणधर २ | अवधिज्ञानी ३ । मनपर्यवज्ञानी ४ । केवलज्ञानी ५ । चौदपूर्वधारी ६ । दसपूर्वधारी ७ । म्रु० (२) श्रुतव्यवहारी ते आचारंगादिक सूत्रधर । आ० (३) आज्ञा व्यवहारी ते कोइक वहु श्रुत गीतार्थ गुरुवादिक शास्त्र थकी Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार ।१५९॥ प्रायश्चित मोकली ते गुरुनी आज्ञाए प्रायश्चित दीए । धा० (४) धारणा व्यवहारी ते गीतार्थ प्रायश्चित देता होय ते सांभळीने # उद्देसमो. धारे ने तेम प्रायश्चित देवो ते । जी० (५) जीत व्यवहारी ए पूर्व आचार्य तेनी आचरणा कल्प आचारे करीने प्रायश्चित दीए। ॥१०॥ ज० जीहां । ए० वळी । त० त्यां तेमज । आ० आगमव्यवहारी । सि० होयतो । आ० आगमन्यवहारी ते केवळज्ञानादिक पूर्वधर तेनी उपर । व० व्यवहार । प० स्थापवो । नो० न । से० ते होय । त० त्यो । आ० आगमव्यवहारी। सि० होय नहि तो । ज० ज्यां । से० ते । त० त्यां। सु० सूत्र व्यवहारी ते आचारंगादिक सूत्र सिद्धांतना धरणहार । सि० होय त्यां । मु० सत्र व्यवहारी उपर । व० व्यवहार । प० स्थापवो । नो० नथी । से० ते । त. त्यां। सु० सुत्रज्ञानी। सि० होय नहिं 18 वो। ज० ज्यां । से० ते । त० त्यां। आ० आज्ञा व्यवहारी । सि० होय तो । आ० आज्ञाए । व० व्यवहार । ५० स्थापे । नो० नथी । से० ते । त. त्यां। आ० आज्ञा व्यवहार । सि० होय नहितो । ज० जेम । से० ते । त० त्यां। धा० धारणा व्यवहारी । सि० होयतो । धा० धारणा । व० व्यवहारे । प० स्थापे । नो० न । से० ते । त. त्यां। धा० धारणा व्यवहार । सि० होय नहितो । ज० ज्यां । से० ते । त० त्यां । जी०जीत व्यवहारी । सि. होय । जी० परंपरा वडेरानो मार्ग / | चाल्यो आवे ते जीत । व० व्यवहारे । प० स्थापे । ए० एहवा । पं० पांच । व० व्यवहारे करी । व० व्यवहारे । ५० स्थापे । तं. ते । ज० कहे छे । आ० आगम | सु० सूत्र | आ० आज्ञा | धा० धारणा अने । जी० जीत ते परंपरा । ज० जेम जेम ।। से० तेहने । आ• आगम । मु० सुत्र । आ० आज्ञा । धा० धारणा । जी० जीत । त० तेम । त० तेम । ३० व्यवहारे । १० स्थापे । से० ते । कि० केम शा माटे । आ० का । भ० हे भगवंत ? । तेवारे एवं कहे छे । आ० आगम । ब० बळीया ते । स० श्रमण साधु । नि० नियने । इ० ए पूर्वोक्त । पं. पांच । वि० प्रकारे । २० व्यवहारने । ज० जेवारे । ज. जेवारे । ॥१५९॥ *CHECK Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज० ज्यां । ज० ज्यां । त० त्यां । त० त्यां । त० तेवारे । त० तेवारे । अ० नहिं । णि० नेश्रा रहित । ओ० उपदेशने । २० व्यवहारने । व० राखतो यको । स० श्रमण । नि० निग्रंथ । आ० आज्ञानो । आ० आराधक । भ० होय ॥५॥ मुळपाठ ॥ ५॥ पञ्चविहे ववहारे पन्नत्ते, तंजहा । आगमे सुए आणा धारणा जीए, 'ज त्थेव तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्टवेडा. नो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्ठवेजा. नो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणासिया,आणाए ववहारं पट्ठवेजा. नो से तत्थ आणासिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणा ववहारं पट्ठवेजा. नो से तत्थ धारणा सिया, जहा से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्टवेजा. एएहिं पञ्चहिं ववहारेहिं ववहारं पट्ठवेजा तंजहा आगमेणं सुएणं आणाए धारणाए जीएणं, जहा से आगमे सुए आणा धारणा जीए तहा तहा ववहारे पट्टवेजा. से कि माहु जन्ते ? थागमवलिया समणा निग्गन्था. इच्चेयं पञ्चविहं ववहारं जया १H adds from जत्येव to भवइ. ( एचमां " जत्थेव" यी " भवइ " मुधीनो पाठ छे. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % +CERT +5 + पवहार जया जहिं जहिं तहा तहा तहिं तहिं अणिसिओवस्सियं ववहारं ववहारेमाणे है उद्देसओ हा ॥१६॥ ॥१०॥ समणे निग्गन्थे आणाए आराहए जवइ ॥५॥ भावार्थ ॥ ५ ॥ पांच प्रकारना व्यवहार कह्या ते कहे छे. १ आगम व्यवहार ते तीर्थकर, गणधर, अवधिज्ञानी, मनपहैर्यवज्ञानी, केवळज्ञानी, चौदपूर्वी अने सातमा दसपूर्वधारी कहीए, २ सूत्र व्यवहारी ते आचारंगादिक सूत्रधर. ३ आज्ञाव्यव हारी ते कोइ एक बहु श्रुत गीतार्थ गुरुवादिक शास्त्र थकी प्रायश्चित मोकली ते गुरुनी आज्ञाए प्रायश्चित दीए ते आज्ञाव्यवहारी, ४ धारणाव्यवहारी ते गीतार्थ प्रायश्चित देता होय ते सांभळीने धारे ने तेम प्रायश्चित देवो ते धारणा व्यवहारी, ५ जीत व्यवहारी ते पूर्व आचार्य तेनी आचरणा एटले कल्प आचारे करीने प्रायश्चित देवो ते जीत व्यवहारी. ज्यां आगमव्य. वहारी एटले केवळ ज्ञानादिक पूर्वधर होय तेना उपर आगमव्यवहार स्थापवो, पण ज्यां आगम व्यवहारी न होय त्यां सूत्रव्यवहारी ते आचारंगादिक सूत्र सिद्धांतना धरणहार होय तेना उपर सूत्रव्यवहार स्थापवो, पण ज्यां सूत्रज्ञानी न होय | त्यां आज्ञाव्यवहारी होय तेना उपर आज्ञाव्यवहार स्थापवो, ज्यां आज्ञाव्यवहारी न होय त्यां धारणान्यवहारी होय तेना. उपर धारणाव्यवहार स्थापे. ज्यां धारणा व्यवहारी न होय त्यां शुं करवू तो ज्यां जीतव्यवहारी होय एटले परंपराथी वडे रानो मागे चाल्यो आवे ते वडेराने जीत व्यवहारे स्थापे. एहवा, पांच व्यवहारे करी व्यवहारे स्थापे ते कहे छे. आगम, सूत्र, / आज्ञा, धारणा ने जीत व्यवहार. जेम जेम ज्यां आगम, सुत्र, आज्ञा, धारणा, जीत तेमतेम ते ते व्यवहारे स्थापे. हे | भगवंत ? तेम शा माटे का. ते वारे भगवंत एवं कहे छे, आगमबळीया श्रमण निगंथ साधुने ए पूर्वोक्त पांच प्रकारना व्यव.. ॥१६० REC रु55% +9 Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हारने जे वारे जे वारे जीहां जीहां, त्यां त्यां तेवारे तेवारे नेश्रा रहित उपदेशने व्यवहारने राखतो थको श्रमण निग्रंथ आज्ञानो आराधक होय || ५ || उपरनो व्यवहार तो गच्छना नायक जाणे तो हवे गच्छ नायकनी चौभंगी कहे छे. अर्थ ॥ ६ ॥ (१) च० चार। पु० पुरुष | जा० जाती । प० कही । तं० ते । ज० कहे छे । अ० उपगार । क० करे । ना० ए नामे । ए० एकेक । नो० न । मा० मान । क० करे १ । मा० मान । क० करे । ना० ए नामे । ए० एकेक पण । नो० न । अ० उपकार । क० करे २ । ए० एकेक । अ० उपकार । क० करे । वि० वळी । मा० मान । क० करे । वि० पण पटले उपकारने मान बन्ने करे ३ । ए० एक । नो० न । अ० उपकार । क० करे । नो० न । मा० मान | क० करे ४ ॥६॥ नो मूलपाठ ॥ ६ ॥ ( १ ) । चत्तारि पुरिसाया' पन्नत्ता, तं जहा । अट्ठकरे नामं एगे, माकरे, माणकरे नामं एगे, नो अट्टकरे, एगे अट्ठकरे विमाकरे वि, एगे नोहकरे नो माणकरे ॥ ६ ॥ भावार्थ || ६ || ( १ ) | चार जातना पुरुष कक्षा ते कहे छे. १ एक उपकार करे पण मान न करे, २ एक मान करे पण उपकार न करे, ३ एक उपकारने मान बन्ने करे. ४ एक उपकारने मान ए बेमांथी एके न करे ॥ ६ ॥ अर्थ || ७ || ( २ ) । च० चार । पु० पुरुष । जा० जाती । पं० कही । तं० ते। ज० कहे छे । ग० एकेक समुदायनो । अ० कार्य । क० करें ना० ए नामे । ए० एक । नो० पण न । मा० मान । क० करे १ । मा० मानने । क० करे । १ II Always ( एचमां हमेशा ) जाया. २ H often ( एचमां वारंवार ) णाममेगे. Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बबहार ॥१६१॥ ना० ए नामे । ए० एकेक करे पण । नो.नाग० गणनो । अ० अर्थ । क. करे २॥ ए. एकेक । ग० गणनो । अ० अर्थ । क० करे । वि० पण । मा० मान । क० करे । वि० वळी ३ । ए० एक । नो० न । ग० गणनो। अ० अर्थ । क मउद्देसओ. करे । नो० न । मा० मान । क. करे ४॥७॥ मूळपाठ ॥७॥२॥ चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तंजहा । गणट्ठकरे नामं एगे, नो माण करे, माणकरे नाम एगे, नो गणटकरे, एगे गणटुकरे वि माणकरे वि, एगे नो गणट्टकरे नो माणकरे ॥७॥ भावार्थ ॥ ७ ॥२॥ चार जातना पुरुष कह्या ते कहे छे. १ एक समुदायतुं काय करे पण मान न करे, २ एक मान करे पण समुदायतुं काम न करे, ३ एक समुदायतुं काम करे ने मान पण करे, ४ एक न समुदायतुं काम करे, न II मान करे ॥ ७॥ अर्थ ॥ ८॥३॥ च० चार । पु० पुरुष | जा० जाती । पं० कही। तं० ते । ज० कहे छे। ग० समुदाय माटे । सं० संग्रह । क० करे । ना० ए नामे । ए० एक पण । नो० न । मा० मान । क० करे (नहिं)१। मा० मान । क. करे। ना० ए नामे । ए. एकेक । नो० न । ग० टोळानो । सं० संग्रह । क० करे (नहीं)२। ए. एकेक । ग० टोळानो । सं० संग्रह । क० करे। वि० ने । मा० मान । क. करे । वि० वळी ३॥ ए. एकेक । नो० न । ग० गण (टोळा)नो। सं० संग्रह । क. करे । नो० न । मा० मान । क. करे ४॥८॥ & ॥१६॥ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपाठ ॥ ८ ॥ ३ ॥ चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा । गणसंगहकरे नाम एगे, नो माणकरे, माणकरे नामं एगे, नो गएसंगहकरे, एगे गएसंगहकरे वि माकरे वि, एगे नो गणसंगहकरे नो माणकरे ॥ ८ ॥ भावार्थ || ८ || ३ || चार जातना पुरुष कथा ते कहे छे, १ एकटोळा माटे संग्रह करे पण मान न करे, २ एक मान करे पण टोळा माटे संग्रह न करे, ३ एक टोळा माटे संग्रह करे ने मान पण करे, ४ एक संग्रह पण न करे ने मान पण न करे ॥ ८ ॥ अर्थ ॥ ९ ॥ ४ ॥ च० चार। पु० पुरुष । जा० जाती । पं० कही । तं० ते। ज० कहे छे । ग० गणनी । सो० शोभा । क० करे | ना० ए नामे । ए० एक । नो० न । मा० मान । क० करे ९ । मा० मान । क० करे । ना० ए नामे । ए० एक । नो० न । ग० गणनी । सो० शोभा । क० करे ( नहीं ) २ । ए० एकेक | ग० गणनी । सो० शोभा । क० करें । वि० बळी | मा० मान पण । क० करे । वि० बळी ३ । ए० एक । नो० न । ग० गणनी । मो० शोभा । क० करे । नो० न । मा० मान । क० करे ॥ ४ ॥ ९ ॥ I नो मूळपाठ ॥ ९ ॥ ४ ॥ वत्तारि पुरिसाया पन्नत्ता, तंजहा । गण सोहकरे नामं एगे, माणकरे, माणकरे नामं एगे, नो गणसोहकरे, एगे गण सोहकरे विमाकरे वि, एगे नो गणसोहकरे' नो माणकरे ॥ एए ॥ १ II ( एचमां ) 'सोभ, Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार -॥१६२॥ 5+ भावार्थ ॥९॥४॥ चार पुरुष जाती कही ते कहे छे, १ एक गणनी शोभा करे पण मान न करे, २ एक मानकरे उसओ. पण गणनी शोभा न करे, ३ एकगणनी शोभा पण करे ने मान पण करे, ४ एक गणनी शोभा करे नहिं ने मान ॥१०॥ पण करे नहि ॥९॥ A. अर्थ ॥१०॥५॥च० चार । पु० पुरुष । जा० जाती। पं० कही । तं ते। ज० कहे छे । ग. गणनी । सो० विशति । क करे (वधारे)। ना० ए नामे । ए० एक । नो० न । मा० मान । क. करे १ मा० मान | क० करे । ना० एनामे । ए० एक पण । नो० न । ग० गणनी । सो० विशुद्धि । क. करे (वधारे)२ ए. एक । ग० गणनी । सो. विशुद्धि । क. करे । वि० वळी । मा० मान । क० करे । वि० वळी ३॥ ए. एक । नो० न । ग० गणनी । सो० विशुद्धिमा क० करे (वधारे)। नो० न । मा० मान । क० करे ॥४॥१०॥ मूळपाठ ॥ १० ॥५ चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तंजहा । गणसोहिकरे नाम एगे, नो माणकरे, माणकरे नाम एगे, नो गणसोहिकरे, एगे गणसोहिकरे वि माणकरे वि, एगे नो गणसोहिकरे नो माण करे ॥ १० ॥ भावार्थ ॥ १० ॥ ५ चार जातना पुरुष कह्या ते कहे छे, १ गणनी विशुद्धि वधारे पण मान न करे, २ एक मान करे। पण गणनी विशुद्धि न वधारे, ३ एक गणनी विशुद्धि पण वधारे मान पण करे, ४ एक गणनी विशुद्धि वधारे नहिं तेमज | मान पण न करे ।। १०॥. P॥१६॥ 5 5+3+HERECE -MOFACHAR Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ E __ अर्थ ॥ ११ ॥ ६ ॥च. चार । पु० पुरुष । जा० जाति । पं. कही। तं० ते । ज० कहे छे। रू० साधुना रुप । ना० है ए नामे । ए. एकेक । जः छांडे पण । नो० न | ध० धर्म छांडे १ घ० धर्म । ना० ए नामे । ए० एकेक । ज० छांडे पण । नो० न । रु० रुप छांडे २ । ए० एक । रू० रुप । पि० वळी । ज० छांडे । घ० धर्म । पि० वळी । ज० छांडे ३।४ - ए० एक । नो० न । रू० रुप । ज० छांडे । नो० न । ध० धर्म । ज० छांडे ४ ॥ ११ ॥ मृळपाठ ॥ ११ ॥ ६ ॥ चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा । रूवं नामेगे जहइ नो धम्म, धम्म नामेगे जहइ नो रूवं, एगे रूवं पि जहइ धम्म पि जहइ, एगे नो रूवं जहर नो धम्मं जह ॥ ११ ॥ भावार्थ ॥ ११ ॥ ६ ॥ चार पुरुष जाती कही ते कहे छे, १ एक रुप छांडे पण धर्म न छांडे, २ एक धर्म छांडे पण 14 रुप न छांटे, ३ एफ रुप ने धर्म पन्ने छांडे, ४ एक रुप ने धर्म बन्ने न छांडे ॥ ११ ॥ ____ अर्थ ॥ १२ ॥ ७॥ च० चार । पु० पुरुष । जा० जाती। पं० कही । तं ते । ज० कहे छ। ध० धर्म । ना० ए १ नामे | ए० एक । ज० छांडे । नो० न । ग० गण (गच्छनी) कीधी । सं० मर्यादा छांडे (नहिं)१। ग० गच्छनी । सं० मयार्दा । ना० ए नामे । ए० एक । ज० छांडे पण । नो० न । ध० धर्म छांडे २ । ए० एक । ग० गच्छनी । सं० मर्यादा। पि० बळी । ज० छांडे । ध० धर्म । पि० वळी । ज० छांडे ३ । ए० एक । नो० न । ग० गण । सं० मर्यादा । ज० छांडे । नो० न । घ० धर्म । ज० छांढे ४ ॥ १२ ॥ 94%-- MARRI-- -- -- Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चवहार० मूळपाठ ॥ १२ ॥ ७ ॥ चत्तारि पुरिसझाया पन्नत्ता तंजहा। धम्म नामेगे जहइ नो ला उद्देसओ. ॥१०॥ . गणसंविई, गणसंठियं नामेगे जहइ नो धम्म, एगे गणसंठिई पि जहइ धम्म पि जहइ, एगे नो गणसंठिइं जहइ नो धम्म जहइ ॥ १२ ॥ भावार्थ ॥ १२ ॥७॥ चार पुरुष जाती कही ते कहे छे. १ एक धर्म छांडे पण गणनी मर्यादा न छांडे एटले वीजा गच्छनो योग्य साधु जणाय तेने सूत्रसिद्धांत तीर्थकरनी आज्ञा प्रमाणे भणावq कल्पे पण सूत्र विरुद्ध गच्छनी मर्यादा एवी है वांधी छे जे वीजा गच्छवाळाने भणाववो नहिं एम तीर्थकरनी आज्ञा रुप धर्म मूके पण गच्छनी मर्यादा न मुके, २ एक गण | म मर्यादा छांडे पण धर्म न छांडे, ३ एक गण मर्यादाने धर्म बन्ने छांडे, ४ एक गण मर्यादा के धर्म एकेने छांडे नहिं ॥ १२॥ | सा अर्थ ॥ १३ ॥८॥च० चार । पु० पुरुष । जा० जाती। पं० कही । तं० ते । ज० कहे छे । पि० प्रिय । ध० धर्मी । Mना० नामे । ए० एक । नो०न । द० द्रढ | ध० धर्मी १ द० द्रढ | ध० धर्मी । ना. नामे। ए. एक । नो० न । पि० | प्रिय । ध० धर्मी२। ए० एक । पिकप्रिय । घ. धर्मी। वि० वळी । द० द्रढ । ध० धर्मी। वि० वळी ३ | ए. एक । नो० न । पि०प्रिय । ध० धर्मी। नो० न । द० द्रढ । ध० धर्मी ४॥ १३ ॥ मूलपाठ ॥ १३ ॥ ८॥ चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता तंजहा । पियधरले नामेगे नो दढ धम्मे, दढधम्मे नामेगे नो पियधने, एगे पियधम्मे वि दढधम्ले वि, एगे नो पियधम्मे नो दढधम्मे ॥ १३ ॥ ॥१६३॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ || १३ || ८ || चार जातना पुरुष कला ते कहे छे, १ एक प्रिय धर्मी पण द्रढ धर्मी नहि, २ एक द्रढ घमा पण प्रिय धर्मी नहिं, ३ एक प्रिय ने द्रढ धर्मी, ४ एक प्रिय ने द्रढ धर्मी नहिं ॥ १३ ॥ । प० प्रवर्जाना देणअर्थ ॥ १४ ॥ ९ ॥ च० चार। आ० आचार्य । प० परुया । तं० ते। ज० जेम छे तेम कहे हार । आ० आचार्य | ना० ए नामे । ए० एकेक । नो० न । उ० तपने विषे उपस्थापना । आ० आचार्य नहि १ । उ० उपस्थापना । आ० आचार्य । ना० ए नामे । ए० एकेक पण । नो० न । प० प्रवर्गाना । आ० आचार्य ( नहि ) २ | ए० एक | प० प्रवना | आ० आचार्य । वि० बळी । उ० उपस्थापना । आ० आचार्य । वि० वळी ३ । ए० एकेक | नौ न । प० प्रवर्गाना । आ० आचार्य । नो० न । उ० उपस्थापना । आ० आचार्य ४ ॥ १४ ॥ मूलपाठ ॥ १४ ॥ ९ ॥ चत्तारि आयरिया पन्नत्ता तंजहा । पवावणायरिए नामेगे नो उवट्ठ।वणायरिए, उवट्ठावणायरिए नामेगे नो पव्वावणायरिए एगे पव्वावणायरिएवि उबट्टावणारिए वि, एगे जो पव्वावणायरिए नो उवद्वावणायरिए ॥१४॥ भावार्थ || १४ || ९ || चार जातना आचार्य परुप्या ते कहे छे, १ एक प्रवर्ज्या देनार आचार्य पण तपने विषे उपस्थापना आचार्य नहि, (अथवा वढी दीक्षा देनार नहि ), २ उपस्थापना आचार्य एकेक पण प्रवर्ज्या आचार्य नहि, ३ एकेक वर्ज्या तथा उपस्थापना आचार्य है, ४ एकेक प्रवर्ज्या आचार्य ने उपस्थापना आचार्य नथी ॥ १४ ॥ अर्थ ॥ १५ ॥ १० ॥ च° चार जातना । आ० आचार्य । पं० का । तं ते । ज० कहे छे । उ० उपदेशना देण Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वहार० ४१६४॥ हार । मा० आचार्य । ना० नामे । ए. एकेक । नोन वा०वांचना दीए एहवा । आ० आचार्य १। वा० वांचना । | उद्देसओ. | आ० आचार्य । ना० नामे । ए० एकेक । नोन । उ० उपदेश दीए । आ० एकेक आचार्य २। ए. एक । उ० उपदेश |8|॥१०॥ दीए । आ० आचार्य । वि० अने। वा०वांचना पण दीए । आ० आचार्य । वि० वळी ३। ए० एकेक । नो० न। उ० उपदेशना दातार । आ० आचार्य । नो० न । वा० वांचनाना देणहार । आ० आचार्य ४ ॥ १५ ॥ मूळपाठ ॥ १५॥ १० ॥ चत्तारि आयरिया पन्नत्ता तंजहा । उद्देसणायरिए नामेगे नो वायणायरिए, वायणायरिए नामेगे नो उद्देसणायरिए, एगे उद्देसणायरिए वि वायणायरिए वि, एगे नो उद्देसणायरिए नो वायणायरिए ॥ १५ ॥ भावार्थ ।। १५॥१०॥ चार आचार्य कह्या ते कहे छे. १ एक उपदेशना देणहार आचार्य पण वांचणी न दीए, २ एक वांचणी दीए पण उपदेश न दीए. ३ एक उपदेश ने वांचणी वन्ने दीए. ४ एक उपदेश के वांचणी वन्ने दीए नहि ॥१५॥ अर्थे ॥ १६ ॥ ११ ॥ध० धर्म । आ० आचार्यना। च. चार । अं० सेवाना करणहार । पं० कह्या । तं० ते । ज० कहे छ । ५० प्रवर्जाना । अं० शिष्य । ना० ए नामे । ए० एकेक । नो० न । उ० उपस्थापना । अं० शिष्य (नहि)१। है। ए० एक । उ० उपस्थापना । अं० शिष्य । ना० ए नामे । ए० एकेक । नोन । प० प्रवर्जाना । अं० अंतोवासी नहि २। ए. एक । प० प्रवर्जा । अं० शिष्य । वि. होय । उ० उपस्थापना। अंशिष्य । वि० वळी ३ । ए० एक। नो० न ।।* 8 प० प्रवर्जा । अं० अंतेवासी । वि० वळी । नोन । उ० उपस्थापना । अं० अंतेवासी नहि ४ ॥१६॥ १६४॥ BESESEGIRottp%A5 % Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ % २rmoviextrem+ --- +6+ मूळपाठ ॥ १६ ॥ ११ ॥' धम्मारियस्स चत्तारि अन्तेवासी पन्नत्ता तंजहा । पव्वावण न्तेवासी नामेगे नो उवट्ठावणन्तेवासी, एगे उवट्ठावणन्तेवासी नामेगे नो पव्वावणन्तेवासी, एगे पव्वावणन्तेवासी वि उवट्ठावणन्तेवासी वि, एगे नो पव्वावणन्तेवासी वि नो उवट्ठावणन्तेवासी ॥ १६ ॥ भावार्थ ॥ १६ ॥ ११ ॥ धर्माचार्यना चार जातना सेवाना करणहार कह्या ते कहं छु. १ प्रवर्जाना शिष्य छे एकेक * पण उपरथापना एटले यही दिक्षानो शिष्य नहिं, २ एकेक उपस्थापना शिष्य छे पण प्रवर्ना शिष्य नहिं, ३ एकेक प्रवर्जा । शिष्य होय अने उपस्थापना शिष्य होय, ४ एकेक प्रवर्जा अंतेवासी न होय तेमज उपस्थापना अंतेवासी न होय ॥ १६॥ अर्थ ॥ १७ ॥ १२ ॥ च० चार जातना । अं० शिष्य । पं० कह्या । तं० ते । ज० कहे छे । उ० उपदेशनो । अं० शिष्य । * ना० नामे । ए० एकेक होय। नोन । वा०वांचनानो । अंशिष्य नहिं वा०वांचनानो । अं० शिष्य । ना० नामे।। * ए० एकक । मो० न । उ० उपदेशनो। अं० शिष्य २ ए. एक । उ० उपदेशनो। अं० शिष्य | वि० वळी होय । वा० । * यांचनानो । ६० शिष्य । वि० वळी होय ३ । ए० एकेक । नो० न । उ० उपदेशनो। अं० शिष्य । नो० न । वा० पांचनानो। अं० अंतेवासी शिप्य ४॥ १७॥ १11. adds ( एच) मा छे ने आ सूत्र १४ पछी मुक्युं छे. %%%EGetc Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यवहार०/- मूळपाठ ॥ १७ ॥ १२ ॥ चत्तारि अन्तेवासी पन्नत्ता तंजहा । उद्देसणन्तेवासी नामेगे नो उद्देसओ. वायणन्तेवासी, वायणन्तेवासी नामगे नो उद्देसणन्तेवासी, एगे उद्देसणन्ते. वासी वि वायणन्तेवासी वि, एगे नो उद्देसणन्तवासी नो वायणन्तेवासी ॥१७॥ भावार्थ ॥ १७ ॥ १२ ॥ चार जातना शिष्य कह्या ते कहे छ, ? एक उपदेश आपे एवो शिष्य होय पण वांचना आपी शके नहि. २ एक वांचना आपे एवो शिष्य होय पण उपदेश आपी शके नहि, ३ एक उपदेश ने वांचना ए बन्नेनो शिष्य | होय, ४ एक उपदेश ने वांचना बन्नेनो शिष्य नहिं ॥१७॥ है| अर्थ ॥ १८ ॥ १३ ॥ च. चार । ध० धौ । आ० आचार्य । पं. कहा। तं० ते । ज. कहे छे । प० प्रवाना दे[2] नार । ध० धर्म । आ० आचार्य । ना० ए नामे । ए० एक । नो० नहिं । उ० तपने विषे उपस्थापनाना । ध० धर्म । आ० । 19/ आचार्य १। उ० उपस्थापनाना । ध० धर्म । आ० आचार्य । ना० ए नामे । ए० एक । नो० नहिं । १० प्रवर्जाना देनार । लध० धर्म । आ० आचार्य २ । ए० एक । प० प्रवाना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य । वि० वळी । उ० उपस्थाप| नाना । ध० धर्म | आ० आचार्य । वि० वळी ३ । ए० एक । नो० नहि । प० प्रवाना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य। नो० नहिं । उ० उपस्थापनाना । आ० आचार्य । घ० धर्माचार्य ४ ॥१८॥ मूळपाठ ॥ १८ ॥ १३ ॥ चत्तारि धम्मारिया पन्नत्ता तंजहा । पव्वावणधम्मायरिए नामेगे नो उवट्ठावणधम्मायरिए, उवट्ठावणधम्मायरिए नामेगे नो पव्वावणधम्मा- &॥१६५॥ -BANG-SCREC4--बार Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यरिए, एगे पव्वावणधम्मायरिए वि उवद्वावणधम्मायरिए वि, एगे नो पatara मारिए नो उवट्टावणायरिए धम्मायरिए ॥ १८ ॥ भावार्थ || १८ || १३ || चार धर्माचार्य कह्या ते कहे छे, १ एक प्रवर्ज्याना देनार धर्माचार्य पण तपने विषे उपस्थापनाना धर्माचार्य नर्हि, २ एक उपस्थापनाना धर्माचार्य पण वर्ज्याना देनार धर्माचार्य नहि, ३ एक प्रवर्ज्याना देनार धर्माचार्य अने उपस्थापनाना धर्माचार्य वळी, ४ एक प्रवर्ज्याना देनार धर्माचार्य नर्हि अने उपस्थापनाना धर्माचार्य पण नहि ॥ १८ ॥ 1 अर्थ || १९ ॥ १४ ॥ च० चार । ध० धर्म । आ० आचार्य | पं० कह्या । तं० ते । ज० कहे छे । उ० उपदेशना देना । प० धर्म | आ० आचार्य । ना० ए नामे । ए० एक । नो० नहि । वा० वांचनाना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य १ | वा० वांचनाना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य । ना० नामे । ए० एक । नो० नहिं । उ० उपदेशना देनार | घ० धर्म | आ० आचार्य २ । ए० एक । उ० उपदेशना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य । वि० वळी । वा० वांचनाना देनार । ध० धर्म | आ० आचार्य । वि० बळी ३ । ए० एक । नो० न । उ० उपदेशना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य | नो० नहि । वा० वांचनाना देनार । ध० धर्म । आ० आचार्य ॥ १९ ॥ भूळपाठ ॥ १९ ॥ १४ ॥ चत्तारि धम्मायरिया पन्नत्ता तंजढ़ा | उद्देसण धम्मायरिए नामेगे नो वायणधम्मायरिए, वायणधम्मायरिए नामेगे नो उद्देसण धम्माय( १८ थी २१ H. एचमां छे ) Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पबहार. १९६६॥ उद्देसओ 5-30 रिए, एगे उद्देसणधम्मायरिए वि वायणधम्मायरिए वि, एगे नो उद्देसण धम्मायरिए नो वायणधम्मायरिए ॥ १९ ॥ भावार्थ ॥ १९ ॥ १४ ॥ चार धर्माचार्य का ते कहे छे १ उपदेशना देनार धर्माचार्य पण वांचनाना देनार धर्माचार्य नहि. २ वांचनाना देनार धर्माचार्य पण उपदेशना देनार धर्माचार्य नहि. ३ एक उपदेशना ने वांचना बन्नेना देनार धर्माचार्य वळी, ४ एक उपदेश ने वांचना बन्नेना देनार धर्माचार्य नहिं ॥ १९ ॥ अर्थ ॥ २० ॥ १५ ॥ च० चार । ध० धमेना। अंशिष्य । पं. कह्या । त० ते । ज. कहे छे । ५० प्रवाना । ध० धर्मना । अं० अंतेवासी । ना० ए नामे । ए० एक। नो० नहिं । उ० उपस्थापनाना । घ० धर्मना। अं० शिष्य १ । उ. उपस्थापनाना । ध. धर्मना । अं० अंतेवासी । ना० ए नामे । एक एक । नो० न । ५० प्रवाना । ध० धर्मना । अं० अंतेवासी २ । ए० एक । ५० प्रवाना । घ. धर्मना । अंशिष्य । वि०वळी । उ० उपस्थापनाना। ध० धर्मना । अं. शिष्य । वि० बळी ३। एक एक । नो० नहिं । १० प्रवाना। ध० धर्मना । अं अंतेवासी एटले शिष्य । नो० न । उ० उपस्थापनाना । ध० धर्मना । अं० शिष्य ४॥ २०॥ मूळपाठ ॥ २० ॥१५॥ चत्तारि धम्मन्तेवासी पन्नत्ता तंजहा । पचावणधम्मन्तेवासी नामेगे नो उवट्ठावणधम्मन्तेवासी, उवट्ठावणधम्मन्तेवासी नामेगे नो पवावणधम्मन्तेवासी, एगे पव्वावणधम्मन्तेवासी वि उवट्ठावणधम्मन्तेवासी वि, ॥१६६ Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -1- एगे नो पव्वावणधम्मन्तेवासी, नो उवट्ठावणधम्मन्तेवासी ॥ २० ॥ * भावार्थ ॥ २० ॥ १५ ॥ चार धर्मना शिष्य कह्या ते कहे छे. १ एक प्रवाना धर्मना अंतेवासी पण उपस्थापनाना है धर्मना शिष्य नदि, २ एफ उपस्थापनाना धर्मना अंतेवासी पण प्रवाना धर्मना शिष्य नहि, ३ एक प्रवर्ध्याने उपस्थापना में बनेना धर्मना शिष्य, ४ एक प्रवा ने उपस्थापना वनेना धर्मना शिष्य नहिं ॥ २० ॥ ____ अर्थ ॥ २१ ॥ १६ ॥ च० चार । ध० धर्मना । अं० शिष्य । पं० कह्या । तं० ते । ज० कहे छे । उ० उपदेश । ध० हूँ * धर्मना । अं० शिष्य । ना० ए नामे । ए० एक । नो० न । वा० वांचनाना । ध० धर्मना । अं० शिष्य १ । वा० वांच नाना । ध० धर्मना । अं० शिप्य । ना० ए नामे । ए. एक । नो० नहि । उ० उपदेश । ध० धर्मना । अ० शिष्य २ । ए. एक । उ० उपदेश । ध० धर्मना । अं० शिष्य । वि० वळी । वा० वांचना । ध० धर्मना । अं० शिष्य । वि० वळी ३ । ए०% एक । नो० नदि । उ० उपदेश | ध० धर्मना । अं० शिप्य । नो० नहिं । वा०वांचना | ध० धर्मना । अं० शिप्य ॥ २१ ॥ * मूळपाट ॥ २१ ॥ १६ ॥ चत्तारि धम्मन्तेवासी पन्नत्ता तंजहा । उद्देसणधम्मन्तेवासी नामेगे नो वायणधम्मन्तेवासी, वायणधम्मन्तेवासी नामेगे नो उद्देसणधम्मन्तेवासी, एगे उद्देसणधम्मन्तेवासी वि वायणधम्मन्तेवासी वि, एगे नो उद्देसणधम्मन्तेवासी नो वायणधम्मन्तेवासी ॥२१॥ mar diar+AREKALI-STREAMERIES Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाहार उद्देसओ म क %EGECACADA भावार्थ ॥ २१ ॥ १६॥ चार धर्मना शिष्य कह्या ते कहे छे, १ उपदेशना देनार धर्मना शिष्य पण वांचना देनार धर्मना शिष्य नहि, २ एक वांचना देनार धर्मना शिष्य पण उपदेशना देनार धर्मना शिष्य नहि ३ एक उपदेश ने वांचना आपे तेवा धर्मना शिष्य, ४ एक उपदेश ने वांचना बनेना आपनार धर्मना शिष्य नहि ॥ २१॥ . अर्थ ॥ २२ ॥ त० त्रण । थे. स्थिवर । भू० भूमी । पं० कही । तं ते । ज० कहे छे । जा० जाति । थे० स्थिवर १ । मु० सूत्र । थे० स्थिवर २ । ५० प्रवर्जा । थे० स्थिवर ३ । स० साठ | वा० वरस । जा० थया होय ते श्रमण निग्रंथ ते । जा० जाती । थे० स्थिवर एटले वय स्थिवर १। ठाणांग । स० समवायंगनो धरणहार श्रमण नियंथते । जा. ज्यांलगे। मु० सूत्र । धा० धारनार । सु० श्रुत । थे० स्थिवर २ । वी० वीस । वा० वर्ष । १० प्रवर्ना लीधा ने थया ते श्रमण नियंथ। प० ते प्रवर्जा । थे० स्थिवर कहीए ३ ॥ २२ ॥ मूळपाठ ॥ २२ ॥ तो थेरभूमीओ पन्ननायो तंजहा । जाइथेरे सुयथेरे परियायथेरे'. सट्ठिवासजाए जाइथेरे, 'समवायङ्गं जाव' सुयधारए' सुयथेरे, वीसवासप रियाए परियायथेरे ॥ २२ ॥ भावार्थ ।। १२॥त्रण स्थिवर भूमि कही ते कहे छे, १ जाति (वय) स्थिवर, २ सूत्र स्थिवर, ३ पर्याय स्थिवर. १ ( एचमां) पवजाथेरे. २ परिस'. ३ म adds (एचमां वधारे) समणिग्गन्थे. ४ T. H. ठाणसम. not in H. ( एचमां नथी'). 18499937ACCIRCTC - 5 REK ॥१६॥ Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ca से श्रमण साधने साठ वर्ष थया होय तेने जाती (वय ) स्थिवर कहीए, २ ठाणांग समवायंगना धरणहार होय ते श्रमण 8 निग्रंथने श्रुतस्थिवर कहीए, ३ वीस वर्ष थयां प्रवर्जा लोधी होय तेवा श्रषण निथ साधुने प्रवर्जा स्थिवर कहीए ॥ २२ ॥ ई ___अर्थ ॥ २३ ॥ त० जण । से० शिष्यनी । भू० भूपी । पं. कहीं। तं० ते । ज. कहे छ । स. सात । रा. रात्रीनी है शिप्यनी भूपी १ । चा० चार । मा० मासनी शिष्यनी भूमी २ । छ० छ । मा० मासनी शिष्यनी भूमी ३। छ० छ । मा० मासनी । उ० उत्कृष्टी १ । चा० चार । मा० मापनी । म० मध्यन भूमी २ । स० सान । रा० रात्री नी । ज० जघन्य भूमी ३ । ए छेदोपस्थापनीय विधि कही ॥ २३ ॥ हा मूळपाठ ॥ २३ ॥ तो सेहनूमीयो पन्नत्तायो तंजहा । सत्तराईदिया चानम्मासिया छम्मासिया. छम्मासिया उकोसिया, चाजम्मासिया मज्जमिया सत्तराश्णो जहन्निया ॥ २३ ॥ भावार्थ ॥ २३ ॥ त्रण शिष्यनी भूमिका कही ते कहे छे. १ सात रात्रीनी, २ चार मासनी, ३ छ मासनी, छ मासनी हूँ 3/ उस्कृष्टि १, चार मासनी मध्यम २, सात रात्रिनी जघन्य ३, ए छेदोपस्थापनीयनी विधि कही ॥ २३ ॥ अर्थ ॥ २४ ॥ नो० न । क० कल्पे । नि० साधु । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । खु० लघु साधु । वा० अथवा । गु० लघु साध्वी । वा० वळी। ऊ० काइक उणा । अ० आठ । वा० वरस । जा० थया । उ० तेने उपस्थापवो। वा० अथवा । सं० एकठा जमवो । वा० वळी ॥२४॥ KAMALA-09 अम्ल Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बवहार ॥१६८॥ मूळपाठ ॥ २४ ॥ नो कप्पर निग्गन्थाण वा निग्गन्धीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वाऊण?- उद्देसओ वासजाय उवद्यावेत्तए वा संजुञ्जित्तए वा ॥ २४ ॥ भावार्थ ॥ २४ ॥ साधुने अथवा साध्वीने लघु साधु अथवा लघु साध्वी जेने आठ वरसमां कांइक उणुं छे तेने उपस्थापवो के तेने साथे एकठा जमवु कल्पे नहि ॥ २४ ॥ अर्थ ॥ २५ ॥ क. कल्पे । नि० साधुने । वा० अथवा । नि. साध्वीने । वा. वळी । खु० बाळकने । वा० अथवा । खु० बाळकीने । वा० वळी । सा० झाझेरा । अ० आठ । वा० वरस । जा० थया होय तेने । उ० उपस्थापवू । वा० अथवा। सं० एकठा जमवू । वा० वळी कल्पे ।। २५॥ मूळपाठ ॥ १५॥ कप्पर निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा सारेगट्ठ वासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुञ्जित्तए वा ॥ २५॥ __ भावार्थ ॥ २५ ॥ साधु अथवा साध्वीने बाळक साधुने अथवा वाळीका साध्वीने आठ वर्षंथी झाझेरा थया होय तेने उपस्थापवो अथवा तेनी साथे एकठा जमवं कल्पे ॥ २५॥ अर्थ ॥ २६ ॥ नो० न । क. कल्पे । नि० साधुने । वा० अथवा । नि० साध्वीने । वा० वळी । खु० बाळकने । वा० अथवा । खु० बाळीका आश्रीने । वा० बळी । अ० नथी । वं० कक्षादिके (बगलमां) रोम (वाळ)। जा० उग्या नथी (अथवा १६ वर्पनो न होय ने ३ बरस प्रवर्जाने न थया होय) तेने । आ० आचार । ५० कल्प । ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावq वळी । (न कल्पे)॥२६॥ 18॥१६॥ BHASHA Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलपाठ ॥ २६ ॥ नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्यीण वा खुमगस्स वा खुनियाए वा अव्वअणजायस्स आयारपकप्पे नामं अज्जयणे उद्दिसित्तए ॥ २६ ॥ भावार्थ ॥ २६ ॥ साधु अथवा साध्वीने वाळक साधु के वाळीका साध्वीने हजी वगलमां वाळ उग्या नथी त्यांसुधी आचार कल्प नामे अध्ययन भणाववुं कल्पे नहिं ॥ २६ ॥ अर्थ || २७ ॥ क० कल्पे | नि० साधुने । वा० अथवा | नि० साध्वीने । वा० वळी । खु० बाळक साधुने । वा० अथवा | खु० बाळक साध्वीने । वा० वळी । वं वगलमांचाळ । जा० उग्या होय ( अथवा १६ वरसनी वयनाने अथवा त्रण बरस दीक्षा लीधाने ययाहोय तेने ) । आ० आचार । प० कल्प | ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणाववुं वळी कल्पे॥२७॥ मूलपाठ ॥ २७ ॥ कप्पइ निग्गन्थाप वा निग्गन्थी वा खुकुगस्स वा खुनियाए वा वजायस्स आयारपकप्पे' नामं अज्जयणे उद्दिसित्तए ॥ २७ ॥ भावार्थ || २७ || साधुने साध्वीने वाक साधु साध्वीने वगलमां वाळ उग्या होय तो आचार कल्प नामे अध्ययन भणावं कल्पे ॥ २७ ॥ अर्थ ॥ २८ ॥ ति० त्रण | वा० वरसनी । प० प्रवर्णाना घणीने । स० श्रमण । नि० निग्रंथने । क० कल्पे । आ० आचार | प० कल्प | ना० नामे | अ० अध्ययन । उ० भणाववुं ( कल्पे ) ॥ २८ ॥ १ 11 ( एचमां ) आयारकप्पे. २: Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देसओ. ॥१०॥ RSSESECREC नवहार० मूळपाठ ॥ २८ ॥ तिवासपरियायस्त समणस्स निग्गन्थस्त कप्पइ आयारपकप्पे नामं ॥१६॥ अज्जयणे उद्दिसित्तए ॥ २८॥ भावार्थ ॥ २८ ॥त्रण वरसनी दीक्षा थइ होय तेवा श्रमण साधुने आचार कल्प नामे अध्ययन ( आचारंग ) भणावq कल्पे ॥२८॥ अर्थ ॥ २९ ॥ च० चार । वा० वरसनी। प० प्रवर्जा लीधाने श्रमण निग्रंथने । क० कल्पे । सू० सुयगडांग । ना० 18 नामे । अं० अंग । उ० भणावतुं कल्पे ॥२९॥ मूळपाठ ॥ २९ ॥ चउवासपरियाए' कप्पइ सूयगमे नामं अङ्गे उदिसित्तए ॥ २९ ॥ भावाथ ॥ २९ ॥ चार वरसनी दीक्षावाळा श्रमण निग्रंथने मुयगडांग नामे अंग भणावq कल्पे ॥२९॥ अथ ॥ ३० ॥ पं० पांच । वा० वरसनी । १० दीक्षा लीधाने श्रमण नियंथने । क. कल्पे । द० दशाश्रुतस्कंध । क० वेदकल्प । व० व्यवहार । नामे अध्ययन । उ० भणावq ॥ ३० ॥ मूळपाठ ॥ ३० ॥ पञ्चवासपरियाए कप्पश् दसकप्पववहारे उद्दिसित्तए ॥ ३०॥ भावार्थे ॥ ३० ॥ पांच वरसनी दीक्षावाळा साधुने दशाश्रुतस्कंध, बृहत कल्प ने व्यवहारसूत्र भणावq कल्पे ॥ ३० ॥ १ F always (एचमां हमेशां) यायस्स समणस्स णिग्गन्थस्स. २F (एचमां ) दसाकप्पववहारे णामं अज्झयणे. AHAR-MARमयाब -%A4. te Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * CLOCK __ अर्थ ॥ ३१ ॥ अ० आठ । वा० वरस । ५० प्रवर्जा लीधेल श्रमण साधुने । क० कल्पे । ठा० ठाणांग । स० समवायंग नामे अंग | उ० भणाववं कल्पे ॥ ३१ ॥ मृळपाठ ॥ ३१ ॥ अट्ठवासपरियाए कप्पश् गणसमवाए उद्दिसित्तए ॥ ३१॥ भावार्थ ॥ ३१ ।। आठ वरसनी दिक्षावाळा श्रमण निगंथने ठाणांग, समवायंग नामे अंग भणावq कल्पे ॥ ३१॥ अर्ध ॥ ३२ ॥ द० दस । वा० वरसनी । प० प्रवर्जावाळा श्रमण नियंथने । क० कल्पे । वि० भगवती । ना० नामे । अं० अंग । उ० भणावयु (कल्पे ) ॥ ३२॥ है मूळपाठ ॥ ३२ ॥ दसवासपरियाए कप्पर वियाहे' नाम अङ्गे उद्दिसित्तए ॥ ३२ ॥ भावार्य ॥ ३२ ।। दस वरसनी दीक्षावाला श्रमण नियांथने भगवती अंग भणावq कल्पे ॥ ३२ ॥ ___ अर्थ ॥ ३३ ॥ ए० अग्यार । वा० वरसनी । प० प्रवर्जावाळा श्रमण निग्रंथने । क० कल्पे । खु० लघु । वि० विमान । 2 प० प्रविभक्ति एटले कालिकसूत्र विशेप तेना त्रण वर्ग । पेहेले वर्गे ३७ उपदेशन काळ अध्ययन एटले उपदेशना काळ अवसर का ठे। चीजे वगें ३८ उपदेशन काळ अध्ययन एटले उपदेशना काळ अवसर कह्या । त्रीजे वर्गे ४० उपदेशन काळ अध्ययन फया । एम ११५ उपदेशना काळ अवसर कह्या तेटला अध्ययन कह्याम मोटी । वि० विमान | प० प्रविभक्ति तेना पांच वर्ग । पहेले वर्ग ४१ उपदेसन काळ अध्ययन दीठ उपदेशना काळ अवसर फह्या । वीजे वर्गे ४२ उपदेसन काळ अध्ययन । त्रीजे ?ll hdds ( एचमां वधारे) णामं अङ्गे. २ H ( एचमां ) विवाहे ( printed विवहे ). CROR Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 वर्गे ४३ । चोथे वर्गे ४४। पांचमे ४५ उपदेशन काळ अध्ययन कया। एम सर्व मळी २१५ थया । अं० अंग। चू० चलिका नामा उद्देसमोर पवार सूत्र । व० वंग । चू० चूलिका नामा सूत्र । वि० विवाह । चू० चूलिका । ना० नामा। अ० अध्ययन । उ० भणावयू कल्पे ॥३३॥ SIMPOR ॥१७०॥ ॐ मूळपाठ ॥३३॥ एकारसवासपरियाए कप्पर खुमिया विमाणपविजत्ती महाबिया विमाणप विजत्ती अङ्गचूलिया वग्गचूलिया' वियाहचूलिया नामं अज्जयणे उदिसित्तए ॥३३॥ ही भावार्थ ॥ ३३ ॥ ११ वरसनी प्रवर्जावाळा श्रमण निग्रंथने नानी तथा मोटी विमान पविभक्ति ( कालिकसूत्र ), अंग- 11 मालिया, वंगचूलिया, विवाहच लिया ए नामे अध्ययन भणाववा कल्पे ॥ ३३ ॥ म अर्थ ॥ ३४ ॥ वा० बार । वा. वरसनी। प० पर्यायना श्रमण नियांथने । क. कल्पे । अ० अरुणोपपात । ग. गरुडो * पपात । ध० धरणोपपात । वे० वेसमणोपपात । वे० वेलंधरोपपात । ना० ए नामे । अ० अध्ययन । उ० भणाववा कल्पे॥३४॥ हूँ मूळपाठ ॥ ३४ ॥ बारसवासपरियाए कप्पइ अरुणोववाए गरूलोववाए धरणोववाए वेसमणोववाए वेलंधरोववाए नामं अज्जयणे उदिसित्तए ॥३४॥ भावार्थ ॥ ३४ ॥ वार वरसनी दीक्षावाला साधुने अरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैसमणोपपात, वेलंधरोपपात ए नामे अध्ययन भणाववा कल्पे ॥ ३४ ॥ १ म (एचमां) वङ्ग ॥१७॥ C+C+CHUAESARGAHRESERSARE - 5 Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CRACCE ___अर्थ ॥ ३५ ॥ ते० तेर । वा० वरसनी । ५० दीक्षावाला श्रमण साधुने । क० कल्पे । उ० उपस्थापना। ५० पारवघा गाया सूत्र । स० समुठाणनामा । सु० सत्र । दे० देवि । दो० द्रोपपात सूत्र । ना० नाग । ५० परिया । व० वणीयासूत्र ।। ना० एहये नामे । अ० अध्ययन । उ० भणाववा कल्पे ॥ ३५ ॥ __ मृळपाठ ॥ ३५ ॥ तेरसवासपरियाए कप्पइ' उट्ठाणपरियावणिए समुट्ठाणसुए देविन्दो ववाए नागपरियावणिए नामं अज्जयणे उद्दिसित्तए ॥ ३५ ॥ . भावार्थ ॥ ३५ ॥ तेर वरसनी पर्यायवाला श्रमण साधुने उपस्थापना परियावणीयासूत्र, समुठाण नामासूत्र, देविद्रोपपात सत्र, नागपरियावणीया सत्र ए नामे अध्ययन भणाववा कल्पे ॥ ३५॥ | अर्थ ।। ३६ ॥ ची० चउद । वा० वर्पनी । १० प्रवर्जाना धणीने श्रमणनियांथने । क० कल्पे । सि० स्वप्न | भा० भा. का पना । ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावयु ( कल्पे ) ॥ ३६ ॥ । मूळपाठ ॥३६|| चोदसवासपरियाए' कप्पइ सिमिणनावणा' नामं अज्जयणे उदिसित्तए॥३६॥ भावार्थ ॥ ३६ ॥ चौद वर्षनी पर्यायवाला श्रमण साधुने स्वम भावना नामे अध्ययन भणावq कल्पे ।। ३६ ॥ अर्थ ।। ३७ ।। प० १५ । वा० वर्पनी । १० प्रवर्भावाला श्रमण निगंधने । क० कल्पे । चा० चारण । भा० भावना । ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावq कल्पे ।। ३७ ॥ १ . II ( टी. एचमा ) उटाणसुए. २ म. (एच ) चउदस. ३ T F ( टी. एचयां ) सुमिण. SAACHARLARRESHE Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :56RECCL उद्देसओ. ॥१०॥ 9 मूळपाठ ॥३७॥ पन्नरसवासपरियाए कप्पइ चारणभावणानामं अज्जयणे उदिसित्तए ॥३७॥ भावार्थ ॥ ३७॥ पंदर वर्षनी दीक्षावाळा साधुने चारणा भावना न अध्ययन भणावq कल्पे ॥ ३७॥ ॥१७॥ ॐ अर्थ ॥ ३८ ॥ सो० सोल । वा० वर्षनी । प० पर्यायवाळा श्रमणनिथने । क० कल्पे । ते० तेयणी । सं० सतक । ६ ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावq कल्पे ॥ ३८॥ 4. मूळपाठ ॥३७॥ सोलसवासपरियाए कप्पर तेयणीसंगे नामं अज्जयणे उदिसित्तए ॥३८॥ भावार्थ ॥ ३८ ॥ सोळ वर्षनी दीक्षावाला साधुने तेयणीसतक नामे अध्ययन भणावq कल्पे ॥ ३८ ॥ अर्थ ॥ ३९ ॥ स० सतर । वा० वर्षनी। प० प्रवर्जावाळा श्रमण नियंथने । क. कल्पे । आ० आसीविष । भा० भावना । ना० नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावq कल्पे ॥ ३९ ॥ मूळपाठ ॥३९॥ सत्तरसवासपरियाए कप्पर आसीविसनावणा नाम अज्जयणे उदिसित्तए॥३९॥ भावार्थ ॥ ३९ ॥ १७ वर्षनी दीक्षावाळा साधने आसीविष भावना नामे अध्ययन भणावq कल्पे ॥ ३९ ॥ अर्थ ।। ४० । अ०१८ । वा० वषनी । प० पर्यायना । स० श्रमण । नि0निग्रंथने । क. कल्पे । दि०ष्टि । वि० विष । भा० भावना । ना० ए नामे । अ० अध्ययन । उ० भणावq कल्पे ॥ ४०॥ १H. ( एच) चारणा. २ InH (एचमां) तेयणीसंगे ( printed वेयंणीसंग) In G. Edition (जर्मनमां) आसीविसमावणा. ३H (बी. एचमां) आसीविस In GEliticn (जरमनमां) दिट्टीविसभावणा. 555555755 H॥१७॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है मूळपाठ ॥ ४० ॥' अट्ठारसवासपरियागस्त समणस्स निग्गन्थस्स कप्पइ दिट्टीविसनावणा नाम अज्जयणे उद्दिसित्तए ॥ ४० ॥ भावार्थ ।। ४० ॥ १८ वर्षनी दीक्षावाला साधुने द्रष्टि विप भावना नामे अध्ययन भणावq कल्पे ॥ ४० ॥ अर्थ ॥ ४१ ॥ ए० ओगणीस । वा० वरसनी । प० पर्यायना श्रमण निग्रंथने । क० कल्पे । दि० द्रष्टि । वा० वाद । * ना० नामे । अं० अंग । उ० भणावयु कल्पे ॥ ४१॥ मूळपाठ ॥ ४१ ॥ एगूणवीसवासपरियाए कप्पइ दिद्विवाए नामं अड़े उद्दिसित्तए। ॥४१॥ भावार्य ॥ ४१ ।। १९ वर्पनी पर्यायवाळा साधुने द्रष्टि वाद नामे अंग भणावq कल्पे ॥ ४१॥ है अर्थ ॥ ४२ ॥ वी० २० । वा० वर्षनी । प० पर्यायवाळा । स० श्रमण । नि० निग्रंथने कल्पे । स० सर्व । सु० सूत्र । ६ वा० भणावया । भ० कल्पे ॥ ४२ ॥ ___ मूळपाठ ॥ ४२ ॥ वीसवासपरियाए समणे निग्गन्थे सबसुयाणुवाई नवइ ॥ ४२ ॥ भावार्य ॥ ४२ ॥ २० वर्षेनी पर्यायवाळा साधुने सर्वे सूत्र भणाववा कल्पे ॥४२॥ अर्थ ॥ ४३ ॥ द० दस । वि० विध । वे० वैयावच । पं० कही । तं० ते । ज० कहे छे । आ० आचार्यनी । वे० वैया६ पच परे १ । १० उपाध्यायनी । ये वैयावच करे २ । थे० स्थिवरनी । घे० वैयावच करे ३ । से० शिष्यनी । वे० वैयावची १ H. adds this sutra ( आ सूत्र एचमां छे) Rece । SECCU akosileys Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महार० ११७२॥ GRESCOREGeocit-ECIAL करे ४ । गि० ग्लाननी । वे वैयावच करे ५। त० तपस्वीनी । वे० वैयावच करे ६। सा० साधर्मिकनी । वे० वैयावच IPउद्देसमो... करे ७ । कु० कुलनी । वे० वैयावच करे ८ । ग० गणनी। वे. वैयावच करे ९। सं० साधुना संधनी । वे० वैयावच ॥१०॥ करे १०॥४३॥ मूळपाठ ॥ ४३ ॥ दसविहे वेयावच्चे पन्नत्ते तंजहा । आयरियवेयावच्चे उवज्कायवेया. वच्चे थेरवेयावच्चे' सेहवेयावच्चे गिलाणवेयावच्चे तवस्सिवेयावच्चे साहम्मियवेया वच्चे कुलवेयावच्चे गणवेयावच्चे सङ्कवेयावच्चे ॥ ४३ ॥ है भावार्थ ॥ ४३ ॥ दस प्रकारनी वैयावच कही ते कहे छे. १ आचार्यनी, २ उपाध्यायनी, ३ स्थिवरनी, ४ शिष्यनी, 5 ५ गिलाणनी, ६ तपस्वीनी, ७ साधर्मिकनी, ८ कुळनी, ९ गणनी, १० साधुना संघनीं ॥ ४३॥ अर्थ ॥ ४४ ॥ आ० आचार्यनी । वे० वैयावच । क० करतो थको । स० श्रमण । नि० निनांथने । म० मोटी । नि० है निर्जरा । म० मोटो । ५० फळ ( लाभ )। भ० होय ( पामे)॥४४॥ मूळपाठ ॥ १४ ॥आयरियवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिहारे महापड़ाव साणे नव ॥४४॥ भावार्थ ॥ ४४ ॥ आचार्यनी वैयावच करनार साधु महा निर्जरा महा फळ ( लाभ ) पामे ॥ ४४ ॥ १ T. E. have now. (टी. एचमां हमणां छे) तवस्सि ', ला॥१७२ CONCE+%AGECHOCAX Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थ ॥ ४५ ॥ उ० उपाध्यायनी । वे० वैयावच । क० करनार । स० श्रमण । नि० निगंय । म० महा । न० नज।। 12 म० महा । ५० लाभ । भ० पामे ॥ ४५ ॥ मूळपाठ ॥ ४५ ॥ उवज्कायवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिहारे महापडावसाणे नवइ ॥ ४५॥ भावार्थ ॥ ४५ ॥ उपाध्यायनी वैयावच करनार श्रमण निग्रंथ मोटी निर्जरा महा लाभ पामे ॥ ४५ ॥ अर्थ ॥ ४६ ॥ थे० स्थिवरनी । वे० वैयावच । क० करनार । स० श्रमण । नि० निथ । म० मोटी । नि० निर्जरा । है म० मोटो । ५० फळ । भ० पामे ॥ ४६ ।। मृळपाठ ॥ १६ ॥ थेरवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिकारे महापड़ावसाणे . नव३॥४६॥ भावार्थ ॥ ४६ ॥ स्थिवरनी वैयावचनो करनार श्रमण निग्रंथ महा निर्जरा मोटो लाभ पामे ॥ ४६॥ अर्थ ॥ ४७ ॥ त० तपस्वीनी । वे० वैयावच । क० करनार । स० श्रमण । नि० निग्रंथ । म० मोटी । नि० निर्जरा । म. मोटो। प० फळ | भ० पामे ॥४७॥ मूळपाठ ॥ ४७ ॥ तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिङरे महापड़ावसाणे नव॥४७॥ KesCExt+CCESST FORDARSHASHI RRecex Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . DISABSE भावार्थ ॥४७॥ तपस्वीनी वैयावच करनार श्रमण नियंथ मोटी निर्जरा मोठो फळ पामे ॥४७॥ उद्देसमो. बबहार ___ अर्थ ॥ ४८ ॥ से० शिष्यनी । वे० वैयावच । क० करतो थको । स० श्रमण । नि. निग्रंथ । म० मोटी । नि० निर्जरा । PIPorn ॥१७३॥ म० मोटो । १० फळ | भ० पामे ॥ ४८॥ मूळपाठ ॥४८॥ सेहवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिकारे महापड़ाव ___ साणे भव ॥४८॥ ए भावार्थ ॥ ४८ ॥ शिष्यनी वैयावच करतो थको श्रमण साधु मोटी निर्जरा महा लाभ पामे ॥४८॥ अर्थ ॥ ४९ ॥ गि० ग्लान । ( रोगी) नी । वे वैयावच । क० करतो थको । स० श्रमण । नि० साधु । म० मोटी । नि.निर्जरा । म० मोटो । प० फळ | भ० पामे ॥ ४९ ॥ है मूळपाठ ॥ ४९ ॥ गिलाणवेयावच्चं करेमाणे समणे निगन्थे महानिकारे महापजाव साणे भवइ ॥४९॥ भावार्थ ।। ४९ ।। रोगोनी वैयावच करनार साधु मोटी निर्जरा मोटो लाभ पामे ॥ ४९ ॥ अर्थ ॥ ५० ॥ सा० (साधुना) साधर्मिकनी । वे० वैयावच । क० करनार । स० श्रमण | नि. साधु । म मोटी। नि० निर्जरा । म० मोटो। ५० फळ । भ० पामे ॥५०॥ Dn१७३n Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूळपाठ ॥ ५० ॥ साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिङरे महाप ___ावसाणे जवइ ॥ ५० ॥ भावार्थ ॥ ५० ॥ ( साधुना ) साधर्मिकनी वैयावच करनार श्रमण साधु महा निर्जरा, मोटो फळ पामे ॥ ५० ॥ अर्थ ॥ ५१ ॥ कु० साधुना कुळनी । वे० वैयावच । क० करतो धको । स० श्रमण । नि० साधु । म० महा । नि० ५ निर्जरा। म० महा । प० फळ । भ० पामे ॥ ५१ ।। मृळपाठ ॥ ५१ ॥ कुलवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिकारे महापडाव साणे भव ॥ ५१ ॥ भावार्थ ।। ५१ ॥ साधुना कुळनी वैयावच करनार श्रमण साधु महा निर्जरा, महा फळ पामे ॥ ११ ॥ अर्थ ।। ५२ ॥ ग० साधुना गणनी। वे वैयावच । फ० करनार । स० श्रमण | नि० साधु । म मोटी । नि० निर्जरा। म० मोटो । ५० लाभ । भ० पामे ॥ ५२ ॥ मूळपाठ ॥ ५२ ॥ गणवेयावचं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिकारे महापड़ाव . साणे भव॥ ५२॥ भावार्थ ।। ५२ ॥ साधुना गणनी यावच करनार श्रमण साधु मोटी निर्जरा मोटो फळ पामे ॥ ५२ ॥ अर्थ ॥ ५३ ॥ स० साधुना संघनी । वे वैयावच । क० करनार । स० श्रमण । नि० साधु । म० मोटी । नि० नि-: FCICALCREGI-BANDAR Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवहार जरा । म० मोटो । ५० फळ । भ० पामे ॥ ५३ ॥ त्ति० एम। बे० हुं कहुं छु ॥ उद्देसमो. ॥१७४॥ * मूळपाठ ॥ ५३॥ सङ्घवेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गन्थे महानिकारे महापड़ाव साणे नव ॥ ५३ ॥ त्ति बेमि.. भावार्थ ॥ ५३ ॥ साधुना संघनी वैयावच करनार श्रमण साधु मोटी निर्जरा मोटो फल पामे ॥५३॥ एम हुं कहुं हुं ॥४ उपर दस प्रकारनी वैयावच कही ते वैयावच कहेवे प्रकारे होय ते कहे छ । १पाणीनी वैयावच, २ सेजा संथारानी, ३ आसन देवू, ४ क्षेत्र तथा उपधिर्नु पडिलेहण करवु, ५ पग पुंजवा, ६ * औषध लावी देवं, ७ ग्लानने चालता पगदाबे मसळे, ८ आहार लावी दीए तथा उपाडे, ९ राजा चगेरे तरफथी थएल कष्टमाथी काढे, १० शरीरादि वोसरावे रक्षा करे, ११ थडिल जातानो पात्रो, डांडो तथा उपगरण वडा कनेथी लइ पोते राखे, १२ रात्रे तथा दिवसे रोगी, ग्लान उपर सावधान रहे, १३ उचार, पासवण, खेल एटले जाजरु, पेशाब तथा बडखानु भाजन वावत सावधान रहे एम तेर बोल दसे प्रकारे कहेवा. ए सर्व मळी १३० बोल वैयावचना कह्या. अर्थ ॥१०॥व० व्यवहार सुत्रनो । द० दसमो । उ० उद्देसो । स० पुरो थयो ॥१०॥ मूळपाठ ॥ १० ॥ ववहारस्स दसमो उद्देसो समत्तो॥१०॥ भावार्थ ॥ १० ॥ व्यवहार सूत्रनो दसमो उदेसो पुरो थयो ।। १० ।। ॥ इति ववहार सूत्र समाप्तं ॥ ॥१७॥ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धमागधी शब्द, संस्कृत शब्द अतिरेक अतिशेष अइरेग असेस अक्रियट्टाण अगटसुय अमिलाए अग चलिया अजलि अनुजाय अणचटुप्प अणुग्वाइय ३० ८ ६ अकृत्यस्थाण १ २ ६ अकृतश्रुत अग्लात्वा ०का उद्देसो. सूत्रो. - व्यवहार सूत्रनो कोष. ६ १५ १०-१५ ३४ २ १० ३३ १ अर्थजात २ अनवस्थाप्य २ अनुद्वातिक १-१७-२४ १७-१८ ६-१७ ३९ १७ ७-१८-१९ २२ २१-२२ अर्धमागधी शब्द अणुदिसा अणुपरिहारिय अनुलोम नोहाय अन्तेवासि अन्नाय उच्छ अपलिउञ्चिय संस्कृत शब्द, अनुदिश उद्देसो. २ अनु० अनपधावित वासिन् अज्ञातोञ्छ अपरिकुच्य २६ २३-२४ १-३ ६-११ अनुपरिहारिक २ -अथवा ५/१ ६ 60 सत्रो. ८ २ १० १० bes १-२० Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9%-- -k%7-% आएस तु अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सूत्रो. | अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सूत्रो. अपलिच्छग अहालहुसग यथा-लघुशस्+क २ ६-१७ अप्पिणई अर्पयति ८ ८ ८ २-४ अभिणिचारिया अभिनिचारिका ४ १२-१३ * अभिणिसीहिया अभिनषेधिकी १ २१ आईयव्व आपातव्य अभिणिसेज्जा अभिनिशथ्या १ आवेश Malayagiri आयारपकप्प आचारप्रकल्प अभिनिषद्या १५-१८ अमुग २ २४ १७-१८ अम्ब आम्र ३५-३६ २६-२७-२८ अरुणोववाय ०णोपपात १० ३४ आरुभइ। आरुह्यति १७-२० अवराह अपराध . आरुह अहाछन्द यथाछन्द २९ अहाराइणियाए ४ २६-३२ आलोएइ आरोचयति अदालन्द यथा० २०-२३ २५-३२-३४ असौ EX ccc ww Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धमागधी शब्द. संस्कृत शब्द उद्देसो. सूत्रो. २ ५ ६ ४ आलोयणा आरोचना आसीवसभावणा आशीविषभावना १० उम्मायपत्त आहाराइणियाए ८ उवगरण इच्छा ४ उवद्वावणा ६ १२ अथवा १२ / ३ उबट्टावणिया ३ वे उवलित्तए इचरिय उचार परियाणिय - २ * লম6 নम ६ २४ १९ १० २३-२४ २०-२३ ३९ १ २५ ७ १ २६ २३-२४ अर्धमागधी शब्द संस्कृत शब्द. उत्ताणय उत्तानक उदू उद्देसणा उद्धहु ऋतु ०शन उद्धृत्य उन्मादमाप्त उपकरण उपस्थापन उपस्थापनिका उपस्थापयितुम् उपजातुम् उसों. सूत्रो. ५ ८ १० २ २ ८ १० १ २ १० १ ४ ५ १८ १ १५-१७ २९-३० १२ १२-१४ १४ ३३ १८-२३ २४-२५ २२ ११-१२ ११-१२ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धमागधी शब्द अर्घ मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सत्रो. उववाय उपपात ४ २४ उवसग्गपत्त उपसर्गमाप्त उपसंपन्जणा उपसंपदन संस्कृत शब्द, उद्दसो. एडुफ १० एल्लय 456 अथवा १/२७ एवं कृत्वसू Mor एवइकखुत्र एवइय ओग्गह उवस्सय उपाश्रय ६ १०-१२-१३-१६ अवग्रह २०-२३ २१.२४-२७ २२-२३ ४५ arr9 vr05.. अवगृहीत उपहड उवासन्तर एगपक्खिय एगराइय ४६ उपहृत अवकाशा एकपक्षिक एकरात्रिक ओग्गहिय ओमावेइ ओमोयरिया ओवास mr025090. २१ अवमौदर्य अवकाश २२-२३. २२-२४ ११-१२ ११-१२ २५-२७ एगल्ल एक ओसन्न ओसहि भवसन्न औषधि ३१ ३३-३४ ॐ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रो. क्षिप्त तु अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. 2 ओहाणुप्पेहि अपघावनानुसिन् २ ओदाय अपधावति ३ ४ ५ पक्ष्य ऋयिक फवल सूत्रो. २५ १८-२२ १४ १४ अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. कृसील. कशील खित्तचित्त २ क्षुद्रक ९ खुयायार क्षुताचार ९ २४-२७ ४१ २३-२४ खुडिया ९ २९-३० फउल कपाग कल्पक गन्धिय गरुलोववाय ११-१२१५-१८-२५ ०क गरुढोपपाद ग्राम १ ३९ फवळ कायसंफास 20ruror७ १७-२० ३५ कायसंस्पर्श २१-२३ १६ oटी ३ ३-७ । गाहा कुशल Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ अर्ब मागधी शब्द. : संस्कृत शब्द. उद्देसो. सत्रो. गिलायमाणा ग्लायन् अर्ष मागधी शब्द.. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सूत्रो. चारए चारणभावणा ०मीण ) .ना गिहि गृहिन् २ १८-२३ छत्रक छचग छप्पग १/२ ४३-४४ २१.२५-३३ १९-२० गुर्विणी ०क पृहीतष्य चक्रिक छेद and परिहार ९ ८ १७ २-४ गुन्विणी गोलिय घेयव चकिय चकिया चन्दपढिमा चम्म चरिए चरिया चाउलोदण - 0mnurrfor ११-१६ १९-२१-२३ ११-१४ १७-१८ चन्द्रमतिमा 04 चरितम् जकखाइट जिणकप्पिय ठवणिज्ज यक्षाविष्ट जिनकल्पिक स्थापनीय २१ चर्या । १७-२० - . .६ २०-२३ ४. Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रो.. अर्ध मागधी शन्द. संस्कृत शन्द. उद्देसो. टाण स्थान अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. असो. सूत्रो. ९ ४५-४४ तत्तिय दसकप्पववहार दशाकस व्यवहार ३ तृतीय तत्सत्पपम् तप्पत्तियं १३-१७ ४ १३-१४ १३-१६ त्रिसंगृहीत स्थण्डिल तिसंगहिय है पण्टिल, है परफप्पिय * धेरभूमि ३ ७ ka x x a & on intern २१ २१ १२-१४ दास ९ ५-८ दिटिवाय दष्टिवाद दिट्टी विस भावणाष्टि विष भावना १० दिवचित्त दिसा १ २२ २ २६ ४ ११-१२ ५ ११-१२ ६ २३-२४ ७ १.६-७.१०.१११ २१ १७-१८ or पद्र »tr ....1 Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धमागधी शब्द. दुसंगहिय दुइज्जनइ दूसग देविन्दोववाय दोसिय धरणोववाय नागपरियावणिय नायकुळ नायविहि नायग निग्धाएइ संस्कृत शब्द. उद्देसो. द्विसंगृहीत दूतीयते देवेन्द्रोपपाद दौषिक णोपपाद - ज्ञातं० ज्ञातविधि ज्ञातक निर्घातयति mr 0039 ७ ३ ४ ७ ९ १० ९ १० १० ७ ६ ११ ११ ११ ९ सूत्रो. २१ १४ ४३-४४ ३५ २३-२४ ३४ ३५ २४. १ ३६-१ ६ २१-२२ अर्धमागधी शब्द. निज्जुत्तिए निय निरुद्ध (घास ) परियाय निव्विसर नो काम लोइ पएस पज्जो सविय पटुवणा परिग्गद्द संस्कृत शब्द निर्यथयितुम् निज • ( वर्ष ) पर्याथ निर्विशति प्रस्थापना प्रतिग्रह उद्देसो, सूत्रो. २ . १० ३ ૨ न प्रकाम लोगिन ८ प्रदेश ८ पर्युषित ४ १ ८ १ २ ६ १/२ ३ ९-१० १७-२०- २३ २४ २-४ १६ १ १२ १२ १ १७-२० २९-३० : Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२-१३ परियाय 6.5 * पहिणिजाए परिहरणा पणावर पत्तिय ॐERE-Rs भर्घ मागधी अन, संस्कृत शब्द. उसो. सत्रो. | अर्घ मागधी बन्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सूत्रो. ८ १५ ९ ४३-४४ पर्याय ७ १९-२० २८-४२ प्रतिनिर्यापयति ८ १२-१३ पटितप्पड़ प्रतितप्यते प्रस्तापयति २४-२५ परिहार २१-२२ See छेय ५ २१ प्रत्यय २२-२४ २ २२-२३.२६ २३-२४ ६ १० कप्प ५-६-२८२४-२५ अयू ९ ९-२६ परिहारहाण' १ १-२० ६ .२१-२२ परिहारिय क २ २७ । ''भ्रष्ट ५ १५-१८ | पलासगं क . २ २९-३० ७.rr.00PM 45* (पत्तिया) ११-१२ परिहार २९-३० पप्फोडेर सा:पमाण 'स्थान पया (वयू) (पचा) परिन्भट्ट Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ س + o900 ۸ س 5 م 15 अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उद्देसो. सत्रो. | मर्ष मागधी शब्द. संस्कृत चन्द. उसो. सूत्रो. पलिउश्चिय परिकुच्य १ पारशिय १-२० २ पाराश्चिक ८-२० पलिच्छम २१-२३ ४ २४-२५ पारिहारिय २१. पलिच्छेयणग परिच्छेदनक २२-२३ पवचिणी प्रवर्तिनी पारेइ पारयति पासत्य पार्श्वस्थ २८ - पासवण मस्रवण ११ पन्वावणा मनाजन पासिल्लय पवावेत्तए प्रव्राजयितुम् पाहुड प्राभृत. १२-१३ पहिय पथिक पिण्डवाय ५-१२ पाउणइ प्राप्नोति पुरिसज्जाय पुरुषजात १०६-१३ पाडिहारिय प्रातिहारिक भइन्नग ५-८ १-४ भगवं भगवान पाणिपडिग्गहिय प्रतिग्रहक +C ه 'पात م م PN+ و م م ४४ 5 * Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवक्रयिक अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उहेसो. सूत्रो. ९ अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. जोसो. सूत्रो. लूमइ लूपयति मण्डग भाण्टक लेख लेप भत्तपाणपटियाह. भत्तपानमत्याख्यान २ वह (Tor वई) वयम् । दिखत्त । ९ वकइय ५-८ भृतक भयग २२ भवक्रय वक्रय २४-२५ भिक्खा १७-२० भिक्षुप्रतिमा भिक्खुपटिमा ३७-४० चगडा (ग) &0 मचग मात्रक माई मायिन् २३-२९ मेहुण मैथुन १३ थी १७ ६ २२ ९ ३५ घर्गचूलिका वग्गलिया मोय १० ३३ रजपरियह राज्यपरिवत २६-२७ वयू So पया राइणिय रात्रिक व्यव १८-२४-२५ | ववहार लहिया यटिका MATTERNE* "0 मोक mrro,०० " Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्धमागधी शब्द संस्कृत शब्द. उद्देसो, वायणा वाचना ७ वालग वासावास विकि हिय विवोसवे विकिणाड़ विमाणपविभति बियाह विवाह विवाय 'क वर्षवास १० ९ " ४ ५ ८ ७ ७ व्यति कृष्ट १२-१३ वितोषयितुम् विक्रीणाति विमानमविभत्ति १० ३३ २३ व्याख्याप्रति व्याख्याचूलिका १० विवाद * * * 6 4 सूत्रो. ७ १८ १५-१७ ४३-४४ ५.८-१०-१२ ५-८ ३ १०-१५ १० ३२ ३३ २ २५ 1 अर्धमागधी शब्द संस्कृत शब्द. विसंभोग विश्वधूया वीसंभई मुट्ठ य यावच arrafor - उदेसो. सूत्रो. ७ 8-4 ७ २४ विधवादुहित विश्रम्यति ३ हद वैयावृत्य वैयात्य mo ४ ७ ८ ४ ५ १० १ २ ११-१२ ११ ११ २१ ४ २१-२३ २० ४३ १७-२० १-३-५-१७ २९-३० १२ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ अर्ध मागधी शब्द. संस्कृत शब्द. उपसो. ५ पलंधराबवाय रोपपाद १० सूत्रो. ३४ | अर्ध मागधी भन्द. संस्कृत शब्द. उदेसा. ५ सूत्रा. १९-२० वश वैश्रमणोपपाद ३४ समवाय १० २१-२२ ३१ १३-१४ १३-१४ समुत्कर्षण समकसणा PER ३२ ४३ समुच्छेय! समुच्छेद। कप्प । पेसमणो बवाय घोधिय संसत्त संखादत्तिय सज्झाइय सम्झाय सपन्न संटये संपरह सपायच्छित संमुन्ना संभाइय संख्यादत्तिक स्वाध्यायिक स्वाध्याय सत्यपतिज्ञ संस्थापयति संस्तरति सप्रायश्चित संभुनक्ति सांभोयिक १६-१७ १४-१७ २४-२५ १५-१७ कल्प समुत्थानश्रत संम्यग्भाविक समुट्ठाणसुय सम्मंभाविय सर ५ स्मरति १ २२-२४ २ २ १५ २७ सन्वराइणिय सागारकर सर्वरात्मिक सागारकृत ७ ११ r ૩ Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्रो. अर्ध मागधी शब्द, संस्कृत शब्द. उद्देसो. सूत्रो. ८ १२-१४ सागारिय क ८ ६-७-८ | अर्धमागधी शब्द, संस्कृत शब्द. उद्दसो. शक्ष ४ सेहतर ४ सेहभमि হষমুমি १० इत्थकम्म हस्तकर्मन् हेमन्त गिम्हा ग्रीष्मी ४ शैक्षतर २४-२५ २४-२५ २३ सारिय सागारिक २२-२३ .5cmo १-४-९ सरुपिक संहत्य RECEDEOCESSORRECIC २ सारुविय साहणिय साहिगरण & सिमिण भावणा मुक्कपोगल्ल सूयगड सेज्जासंयारग १४ स्वमभावना ३६ २१-२२ सूत्रकृताङ्ग शय्या संस्तारक ८ १-४ ६८ Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * वा व्यवहार सूत्रनुं शुद्धिपत्रक. पार्नु. छीटी. अशुद्ध. शुद्ध. पार्नु लीटी. अशुद्ध ४-१ ५ पार चार १२-२ ३ ओलोवती ५ ८ मा , ८ प्रक्षेपवो * ६ ६ यां १४ ११ चितव ६-२ १ मासनु मासनुं १४-१ फुटनोट f for से " ९ , छम्मासिय वा उम्मासियं वा , १५ वा , ७ मासनु | * १७ २ जण्ण वा ॐ शुद्ध. ओलोवती प्रक्षेपवो चितवे से ( नथी) पुरु वा जणं CRECRETARDHAKc+ मासन दि. संपूर्ण ९-१ , ११ १२ ८ संपूर्ण १० षा ३ कम ६. साध्वी फर्म १९-२ *२०-१ २१-१ ] * , ९ कहे छे ते कहे छे ३ भिकखु भिकखू १ विचरबुं विचर, ५' भिकखु भिकखू . साध्वी -- Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्नु लीटी. अशुद्ध शुद्ध. ३७-१ ६ संजम संजम भाचार्य न आचार्यने पार्नु कीटी. अशुद्ध शुद्ध. ६/ २३-१ ५ विधिए विधिए बहुस्सुयं बहुस्सुयं सभोग संभोग एगयओ एगयओ ३० ३ घणी धणी ३०-१ २ पुरु पुरु बळ आरवादे आस्वादे संपूण संपूर्ण ३१-१ १. अगिलाए= F. (एचमां) अगिलाए= साजा साधु निरोगी न थाय त्यां पासे सुधी. ४* ३३ ७ भिकखू भिकखं वळ RXIN-RRHEAFRIP अमतिसेवी अप्रतिसेवी * ४० १२ आयरिय आयरियउवज्झायाण उवझायाण ४१-१ २ स्थिवरनी स्थिवरनी ४३ ६ जमशु जमशुं ४५ फुटनोट जे०जे । ते० म. (एचपां) नीचे मु. ते । साहम्मि- जब अर्थ छे. तेणे जेटया. साधर्मिक । का साधर्मिक साधुओने उहाए. आ- उठाडि पोतानी साथे झाए । विहरं- कीधा ने जेओ तेनी ति. विचरे साथे विचर्या तेने चा मात्र Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवावे स्सु. पार्नु लीटी. अशुद्ध. शुद्ध. रित्रनो छेद के तपy मायश्चित पण न आवे (जुओ भगवती जमा 'लीना शिष्यनी माफक) ४५-१ ४ जो " १३ रह. संग्रह करवामां संग्रह करवामां कुशळ ने कुशळ, आहार पाणीनी एख णामां कुशळ. ७ ३ वस्तु ना वस्तुना ११ आयरिय उव- आयरियउवज्झायचाए ज्झायत्ताए १९४७-१ १३ आयरिय आयरिय __पार्नु लीटी. अशुद्ध शुद्ध. ४८-१ ७ प्रवतावे " ८ पवर्तादिक प्रवर्तकादिक क्रीधादिके क्रोधादिके ५०-१ १४ पदवी लइ पछी H. ( एचमां) भणीश न भणे एम कही न भणे * ५१ २ अवट्टिए अवहिए' पदवी लइने प- H. ( एचमां ) भणीछी भणे नही. श एम कही न भणे अणायरिय उ- अणायरियउवज्झायघज्झायरस स्स बहुना कप्पड़, कप्पा पछा पच्छा * ५३ ५ उदिसि० उहिसि बेहना 3. 5*50*5RECICIAL Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पानु लोटी. ** ५६ १ ५७-१ ९ ५९ १० ११ सत्र ६०-६१ मार्जीनमां ववहर ܕܪ ६१ ६१-१ ६३-१ १ # १० " ६३ - १ फुटनोट १ #६६-१ *. ६ ६ " ६७ *६७-१ ४ १ ३ अशुद्ध. पहियंसि कछे जावजी णा हु वसे ते कपड़ B b तसि परिहारे रोग वर्ण शुद्ध. पट्टियंसि कछे जावजीव सूत्र ववहार घणां हुं वसे ते ) कप्पड़ Bb ( तंसि परिहारे रोगा 'वर्ण पानुं लीटी अशुद्ध. ममंसि *६८-१ १ ममंसि *६९-१ ३ च पञ्च च पञ्चरायाओ ७०-१ ७१ ७३-१ 27 35 17 ७४ ७४-१ ५ १२ " ७७-१ ދޮ १० १२ ९ २ * ७५ १ ४ ६ ? ४ राया पीता काइ उपरांत श्रीजु भिकखू शुद्ध. " अणुजाण स्थिवर तेने वडेराने पिता कोइ उपरांत त्रीजुं भिकखु काय कायस स्थिवर तेने स्थिरने 35 अणुजाणह स्थिवरने वढेरो Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐशरुत्त्व from BR-15 . पार्नु लीटी. अशुद्ध. शुद्ध. पार्नु लीटी. अशुद्ध. ८४-१ फुटनोट C. E. 3G. E. ९७-१ ५ भणनर भणनार *८५-१ ३ मए म ए ९ अगीताय । अगीतार्थ * , ७ समुष्टिाए समुकिटाए सूत्रादिकनी सूत्रादिकनी १ इयत्तं च्छेइयत्तं ८९ फुटनोट क्षेण पणेण | * १०१ २ तस तस्स * ८९ ११ संतुयहाण G. E. (जर्मनमा) सं- * , ६ तिमि पत्ति बेमि तुयहाण फुटनोट निग्गन्थ निगगन्धं ५०-१ ६ भांहोमांहि माहोमांहि १०१-१ ३ सूत्र वंचावई सूत्र वंचाव,) P* ८ निग्गन्यीओ निग्गन्धीओ १०२ ६ ० चि० , फुटनोट अतिए अंतिए * , ११ सिया. सिया, " " तेण तेणं १०३-१ ७ सवळो सवळो * ९१ ११ एव एवं १०५ फुटनोट पाडियक पाडियक ९४-२ २ सव * १०६ ५ आ० उवज्झा आयरियउवज्झाए विगिञ्च विगिश्च * १०७ ७ पवावेतए पवावेत्तए 06 5 %* उप CRE Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R नहि EC-W5----- पार्नु लीटी. अशुद्ध शुद्ध. | पार्नु. लीटी. अशुद्ध शुद्ध. १०८ १० त्यां वेठो ख- H. (एच) मां कोइ | * ११२ ३ वएज्जा वएज्जा, १२ मावईं कल्पे साधुने कठोर वचनादी- ११४-१ ८. आहाराइणि- H. (एचमां) आ० कना प्रायश्चित उपजे तो याए-आ० दी हवे । रा० रत्नादीक तेणे विकट देशमां ज्यां वस । रा० रा- गुरुए सेज्जासंथारो लीसाधु रहेता होय त्यां नइ घा वाद सेज्जा संखमावतुं कल्पे थारो ग्रहण करे , १४ त्यां वेसी ख- H. (एचमां ) साध्वीने | ११५-१ ९ भारे मावq कलपे कठोर वचनादीक प्राय- | * भविस्सइ भविस्सइ श्चित उपजे तो तेणे वि वर्षास्तु वर्षास्तुमा कट देशमां ज्यां साधु बु० वधती म. (एचमां) .. रहेता होय, त्यां जइ द्ध कायाने खमावq कल्पे नहिं प पा० वर्षास्तुमां वा० वर्षास्तुमा ण स्वस्थानके बेसी ख आश्रयभूत थाशे (स्थिर मावq कल्पे वासने माटे) मारे Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्ध. मां ७ " १२० ५ 1 पार्नु. लीटी. अशुद्ध. शुद्ध. पार्नु. लीटी. अशुद्ध. ११६-१ ६ पधती वर्षास्तु- H. (एचमां) वृद्ध का गाळी पात्रमा नाखे. ___ याने वारुतुमा आश्र- १४४ ८ वि० णं वि०णं. यभूत थाशे (स्थिर वा-- *१४४-१ १ केइ सने माटे) नाखता नाखतां नारवी नाखी चालणीए करी जुओ १४४ (६ निदोप निदोप , फुटनोट १ भिखूस्स भिखूस्स १२१ ३ वियार H (एचमां) स्वाध्याय १४५ ९ चालणीए करी जुओ १४४ (६) ४ विहार सज्ञायभूमी H. (एच- १४५-१ ८ चारणीए करी जुओ १४४ (६) मां ) यंडील भूमी १४६ ८ ओ० ग्रहे म. (एचमां)भाजनमांथी २१२४-१ ३ भुकृत भुक्त वस्तु काढीने दीए १२५ ३ घर १४६ ९-१३ साहरे H.(एचमां) भाजनमां"फुटनोट १ सागरि सागारि थी वस्तु नाखता दीए " , १ हमेशा हमेशा १४६ १३ जे कोइ ग्रहे जुओ १४६ (८) • १४२ ७ पहिया पहिया १४७-१ फुटनोट१ उपसग्गा उवसग्गा १४४ ६ चालणीए करी H. (एचमां) चालणीमां । १४८ १२ २ करन्टकट घर Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्ध. पान. लीटी. अशुद्ध, पार्नु. लीटी. अशुद्ध. शुद्ध. ४/१५१-१ फुटनोट७ सत्ताह सत्तेहि. १६७ १ उपदेशना दे- म. (एचमां) एक उ१५६-१ ४ नारधर्मना शि पदेशथी शिष्य थयो प* १५७ ८ वारसीए वारसीए ष्य पण वांच- ण वांचना देवाथी नहि १६०-१ ३ पूरुष ना देनार ध१६२ ६ पण पण मैना शिष्य नहि * १० माणकरे माणकरे १६७-१ ५ भूमी भूमी * *१६३-१ ८ पब्बा पवा उत्कृष्टि उत्कृष्टि १६४ १२ नहि नहि १६८ ४ तेने तेनी १६५ ४ एक उपदेश (एचमां) एक उ । १६९ ८ भावाथ भावार्थ आपे एवो शि- पदेशथीं शिष्य थयो प अथ ष्य होय पण ण वांचना देवाथी नहिं । चूलिका चूलिका वांचना आपी नामे शके नहि वप १६६-१ ४ वनेना बनेना ष्टिाद्र 36456-9CREARRICUCIESELECORAGAR अर्थ १३ "११ रोगी नहि द्रष्टि रोगी Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G * जाहर खबर. 1 - 2 - 4 -6 अमाग तरफपी मे सूत्रो घहार पाडयामां आवे छे तेनो मुख्य उद्देश जैन धर्मना ज्ञाननो फेलाबो करयो. भमे 2 पीस्ताळीसे आगमोनो मूळपाट बामनीमा अमारे वरचे शुध्ध करायषा तजयीज करी छे. जर्मनीना प्रोफेसर रा. हर्मन योपो में मागधी भापाना अभ्यासी छे तेमनी पासे तथा तेमनी देखरेख नीचे आ काम चाले छे. आगमोनो मूळपाठ पकज झा ना घणा आगमो साथे सरखायो शुध्ध मूळ पाठान्तर साथे कखाथी छपाषषामां आवे छे. उपरनी हकीकतथी भणारी कमळपाट वगेरे शुध्ध थशे. जर्मनीमां फराधेल शुध्ध मूळपाठ धाळांज सूत्री वायत प्रथम खातरी करी ते सत्रो परोदया ध्यानमा रासवानी जरर छे माटे अमारा तरफयी छपावेल शुध्ध मूळयाळां सत्रो खरीद करशो. अमारा तरफथो से सपो छपाषपामां आये छे तेना घेवाणनी उपज तेज फाममां पपरोय छे. अमारा तरकथी नीचेना सूत्रो देवनागरी ढोपीमां उपार यहार पदेलां हैं. स-3RSA AN-CIAAAAAE6%9CREATEGREATER रु. ६-८-० का १ उसराध्ययन सत्र शुध्ध मूळ अर्थ पावार्थ साथे पाफा पुंठान. २ उपासक दशा सत्र शुध्ध मूळ अर्थ भावार्थ साथे पाका पुठानु के छुटा पानानु ३ फालिफ सत्र शुध्ध मूळ अर्थ भावार्थ साधे पाफा पुंठान के छुटा पानानु. ४ मृतकल्प सूत्र शुध्ध मूळ अर्थ भावार्थ साथे छुटा पानानु. ५ दशौका लिक शुध्ध मूळ बांधेका पुठान पाठान्तर साथे. Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रु. ०-१२-० RERECE% B ६ बृहत कल्प शुध्ध मूळ बांधेला पुंठावाळु पाठान्तर साथे. ७ उत्तराध्ययन शुध्ध मूळ बांधेल पुठान पाठान्तर साथे ८ सामायक सत्र अर्थ सहित गुजराती लीपीमां. व्यषहार सूत्र शुध्ध मूळ अर्थ भावार्थ साथे पाका मुठानु के छुटा पानान. रु. ३-०-० A BASABRE आ सूत्रो अमदावादमां मळवानां ठेकाणां: डा. जीवराज घेलाभाइ दोशी नघेदरधामे. शा. बालाभाइ छगनलाल कीकाभटनी पोळ. शा. त्रीभोवनदास रुगनाथदास आकाशेठना कुषानी पोळ. संघवी वाडीलाल काकुभाइ, सारंगपुर-तळायानी पोळ. वधा बुकसेलरोने सर कमीशन मळे छे. ___ डाक्टर जीवराज घेखाभाइ दोशी-नवादरवाजा अमदावाद. Page #398 -------------------------------------------------------------------------- _