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बवहार० ॥१५३॥
बारसी कप ति दत्तीय भोयणस्स जाव णो आहारेका. तेरसीए कप्पइ दो दत्त भोयरस जाव णो आहारेका. चउदसीए कप्पइ एगादत्ती भोयएम्स जाव णो हारेद्धा. अमावासाए से य यत्तट्ठे भवइ एवं खलु एसा जवमज्जचंदपमिमा हासुतं श्रहाकप्पं जाव अणुपालित्ता भवइ ॥ १-२॥ भावार्थ ॥१-२॥ जवमझ चंद्रपडिमा अंगिकार करनार साधुने शुकल पक्षनी एकमनादीने एक दात भोजननी ने एक दात पाणीनी लेवी कल्पे ते केवे वखते लेवी कल्पे ते कहे छे. सर्वे वे पगा, चार पगा जे आहारनी इच्छावाळा छे तेमने आहार मळी चुक्यो छे ने आहार लइ परवार्या छे एटले भिक्षुकादिक आहार लइ गया पछी वे पोहोर वाद साधु गौचरी जाय ने घणा साक्यतापसादिक, शुकल ब्राह्मण जाति, अतिथी जे तीर्थ परने आये, कृपण दरिद्रि, याचक जे बंधीवाननी पेठे भीख मागे ते भीक्षा लइ गया पछी थोडो थोडो अने निर्दोष आहार लीए. ते साधुने एकलो जे घरमां जमनार छे तेमांथी आहार लेवो कल्पे पण बे जणना जमणमांथी, त्रण जण, चार जण, पांचजणना जमणमाथी लेवो कल्पे नहि. त्रीजा मास पछी गर्भवाळी खीना हाथ न ले, बाळकना जमणमांथी नहि के वाळकने विखुटो पाडी आपे तेम न ले, बाळकने धवरावतीने हाथे न ले, घरमा उंबरामांहि बे पग एकठा करीने दीए तो आहार लेवो कल्पे नहि. उंबरानी बहार बे पग एकटा राखीने दीएतो आहार न लेवो कल्पे, पण जो एम जाणे जे एक पग उंबरा मांहि छे ने एक पग बहार राखेल छे एटले वे पगनी बचे उंबरो राखीने दीए, एवी रीते उपर मुजब आहार गवेषतां (शोधतां ) मळे तो आहार लीए ने उपर मुजब आहार शोधतां न मळे
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उद्देसओ
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