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________________ १ करतो थको. तीर्थकरनी आज्ञा अतिक्रमे नहिं (केमके तेमने एकज वखत बहार-ठंडीलदिके जइ शकाय. वारंवार जइ शकाय ॥९॥ नहि केमके ग्रहस्थादिक विनय वारंवार साचवी न शके ने जेथी जैन धर्मनी लघुता थाय)॥११॥ क्ष अर्थ ॥ १२ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । प० समर्थ होय । वे० वैयावच करवाने । इ० इच्छा होय तो। क० ६] वैयावच करे । इ० इच्छा न होय तो । नो० न । क. वैयावच करे ॥१२॥ मूळपाठ ॥ १२ ॥ (३) आयरियउवटाए पभू वेयावडियं श्वो करेजा इला नो करेजा ॥१२॥ ____ भावार्थ ॥ १२ ॥ आचार्य, उपाध्याय वैयावच करवाने समर्थ होय वो इच्छा होय तो वैयावच फरे ने इच्छा न होय । तो वैयावच करे नहिं ॥ १२॥ अर्थ ॥ १३ ॥ आ० आचार्य । उ० उपाध्याय । अ० मांहि । उ० उपाश्रय मांहि । एक एक । रा. रात्री । वा० अथवा । दुवे । रा० रात्री। वा० बळी । व० वसतो थको । नो० न । अ० आज्ञा अतिक्रमे (नहि.)॥१३॥ मूळपाठ ॥ १३ ॥ (४) आयरियउवजाए अन्तो उवस्सयस्त एगरायं वा दुरायं वा । वसमाणे नो अइक्कमइ ॥ १३ ॥ भावार्थ ॥ १३ ॥ आचार्य, उपाध्याय उपाश्रयमांहि एक रात्री के चे रात्री रहेतां मामा अतिक्रमे नहि ॥ १३ ॥ १ म. (एच) इच्छाए. frREADERS निस ॥१५॥
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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