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________________ पितादिक पटो जेनी संघाते मेळी दीक्षा लीधी छ । क० छ जीवणीयादी - सूत्राथै प्राप्ततो । से० तेने एटले आचार्यने । सं० | एटला दीवसनो । २० दीक्षानो छेद । वा० अथवा । प० तप प्रायश्चित पामे । वा० वळी ॥ १५ ॥ मळपाठ ॥ १५॥ आयरियउवज्काए' सरमाणे जावं घउरायपञ्चरायाओ कप्पागं जि खं नो उवट्ठावेइ. कप्पाए अत्थि याइं से केइ माणणिो कप्पाए, नत्थि से केइ छेए वा परिहारे वा. नत्थि याइं से केइ भाषणिो कप्पाए, से सन्तरा छेए वा परिहारे वा ॥ १५॥ भावार्य ॥ १५ ॥ आचार्य उपाध्याय जे नवदीक्षित एकठो करवा (एटले छेदोपस्थापनीय चारित्र आपवा) योग्य थयो H एम जाणतो धको चार रात्री पांच रात्री उपरांत ते नवदीक्षित जे छ जीवणीयादि सूत्रार्थ प्राप्त साधुने उवठाण न फरे एटले महानत दीए नहितो आचार्यने प्रायश्चित आवे पण जो ते साधुए पितादिक वडानी संघाते भेळी दीक्षा लीधी होय तेने ते भणाची पांच, दस के पंदर रात्री पछी बन्नेने साये उवठाण करे तो आचार्यने छेद। चारित्र के तप प्रायश्चित आवे नहि, Mण जो उपर मजव पितादिक वडेरासाथे नवदीक्षितने उवगण करवानुं न होय ने नवदीक्षितने उवठाण करे नहितो आचा- * ने जेटला दीन उवठाण न करे तेटला दीननो दीक्षानो छेद के परिहार तप आवे ॥१५॥ I adds ( एचमां वधारे ) य. २ H has (एचमां ) परं instead of जाव ( ने बदले ). ३ १ (एचमां) 1 चउरायाओ पश्चरायाणं. IPES
SR No.010798
Book TitleAgam 36 Chhed 03 Vyavahara Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages398
LanguagePrakrit
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_vyavahara
File Size14 MB
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