________________
12-%-करनाल
उद्देसमोर ववहार स्स अन्तिए आलोएत्तए. अस्थि याई एहं केइ आलोयणारिहे, कप्पर एहं तस्स
५० ॥९॥
अन्तिए आलोइत्तए; नत्थि याई एहं केइ आलोयणारिहे, एव एहं कप्पइ
अन्नमन्नस्स अन्तिए आलोएत्तए ॥ १९॥ भावार्थ ॥१९॥जे कोइ साधु अथवा साध्वीने १२ प्रकारनी सेज्या उपधि आदिक चीजो एकवीजाने लेवा देवानो रीवाज छे तेने संभोग कहीए. ते संभोग करतां कांइ दोष लागे तो एक बीजाए माहोमांहि एक बीजानी समीपे आलोववं कल्पे नहि. जो त्यां कोइ आलोयणा आपवा योग्य होय तो तेनी पासे आलोयणा लेवी कल्पे. जो त्यां कोइ आलोयणा आ
पवा योग्य होय नहि तो एकवीजानी समर्मापे आलोववं कल्पे ॥ आलोयणा आपनार साधु केवो योग्यतावाळो होय ते कहे छे. न (१ ज्ञानादिक पांच आचार सहित आहार आलोवाना दोपनो धारणहार. २ आगमादिक ५ व्यवहार सहित प्रायश्चि। तनो जाण, बहु श्रुत जघन्य आचारंग निसीथनो धरणहार. मध्यम बृहत्कल्प व्यवहारनो धरणहार, उत्कृष्टो ९-१० पूर्वनो
धरणहार. ३ जघन्य त्रण वर्षनी प्रवानो धणी, मध्यम ५ वर्षनी प्रवर्ध्यावाळे, उत्कृष्टो २० वर्षनी प्रवानो धणी. १४ द्रव्यभावथी अचपल (स्थिवर ) व्रतनो धणी. ५ जे अतिचार गोपवावे नहि ने सम्यकप्रकारे आलोवावे. ६ प्रायश्चित
दइ शुद्ध करावे. ७ आलोच्या दोष अनेरा आगळ न कहे ८ घणा शास्त्रनो जाण, प्रबळ बुद्धिनो धणी, सुपात्र प्राप्ति छेद जेने, सत्यवादि, महाभाग्यवंत, सत्यभावी, आलोव्या दोष कहे नहि. वत्रीस जोग संग्रहना गुणे करी सहित)॥१९॥
M९० १ F (एच) या इत्य णं केइ. २ (एच) या इत्थ ण्हं केइ अन्ने आ...
जानAA
-
-