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अ. मार्गाने । ५० भोगये अथया । १० छांडे ॥ २१ ॥ मृळपाठ ॥ २१ ॥ गामाणुगामं इइमाणे निक्खू य आहच्च वीसम्नेजा तं च सरीरगं
केइ साहम्मिए पासेजा, कप्पइ से तं सरीरगं से न सागारियमिति कट्टु थएिमल्ले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमङित्ता परिद्ववेत्तए. अस्थि याई थ केइ साहम्मियसन्तिए उवगरणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओ
गहं अणुनवेत्ता परिहारं परिहारेत्तए ॥२१॥ भावार्थ ॥ २१ ॥ एक गामथी बीजे गाम विहार करता साधु साध्वी कदाचित काळ करे तेहना शरीरने कोइएक सा. थर्मिक साधु देखे तो ते साधर्मिक साधुने ते साधु साध्वीना शरीरने वस्त्रादिके दांकीने ते शरीरने एकांते अचित निर्दोष थे-५ टोल भृमिने जाइ पूंजीने परठव कल्पे जो इहां कोइ उपगरणनी जाति ते वस्त्र पात्रादिक उपधि साधर्मिक साधुने भोगववा है. योग्य होय तो ते चीजो सागारिक लइने बीजीवार आचार्यनी आज्ञा मागीने भोगववी अथवा छांडवी कल्पे ॥ २१ ॥ हवे स्थानकनी विवि कहे ॥ ___अथे ॥ २२ ॥ सा० सेध्यांतर (जेना उपाश्रये साधु रहेता होय ते )। उ० उपाश्रय वेचे नहिं पण । व० भाडे । प० । ___ ॥ ( एचमा ) वीमु. २ H also T ( एच ने टीमां ) मा सागारियं । ति कट्ट तं सरीरगं एगन्ते अचित्ते बहु फामुए थण्डिले पनि