Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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आवश्यकता पर विचार; 'अपादान' कारक की परिभाषा; 'अपादान' कारक की परिभाषा के 'प्रकृतधात्ववाच्य' तथा 'तत्तत्कर्तृ' इन अंशों के प्रयोजन के विषय में विचार; 'औपाधिक' भेद से उत्पन्न अर्थ-भेद के द्वारा 'अपादान' संज्ञा की सिद्धि हो जाने पर परिभाषा में 'तत्तत्कर्तृसमवेत' इस ग्रंश की अवश्यकता पर विचार; 'वृक्षात् पर्ण पतति' इस प्रयोग के विषय में विचार: 'अपादान' कारक की एक दूसरी परिभाषा का विवेचन; 'अपादान' की उपर्युक्त परिभाषा को मानने वाले किसी विद्वान् के, 'परस्परस्मान् मेषावपसरतः' इस प्रयोग-विषयक, वक्तव्य का खण्डन ; पंचमी विभक्ति का अर्थ; 'अधिकरण' कारक की परिभाषा; 'अधिकरण' के तीन प्रकार; भावसप्तमी या सत्सप्तमी का अर्थ; षष्ठी विभक्ति का अर्थ; 'राज्ञः पुरुषः' जैसे प्रयोग में, सम्बन्ध 'राजा' तथा 'पुरुष' दोनों में है इसलिये, 'राज्ञः' के समान 'पुरुष' शब्द में भी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग प्राप्त है-इस शंका का समाधान ।
नामार्थ
३७८-४०३
मीमांसकों के अनुसार शब्द की शक्ति जाति में है; मीमांसकों के 'जातिशक्तिवाद' के सिद्धान्त का खण्डन तथा नैयायिकों के व्यक्तिशक्तिवाद' के सिद्धान्त का प्रतिपादन; वस्तुत: 'जाति'विशिष्ट व्यक्ति' अथवा 'व्यक्ति'-विशिष्ट 'जाति' ही शब्द का वाच्य अर्थ होता है; 'प्रातिपदिक' अथवा 'नाम' शब्दों का अर्थ 'जाति' तथा 'व्यक्ति' के साथ साथ '
लिङ्ग' भी है; 'संङख्या' अथवा 'वचन' भी 'प्रातिपदिक' शब्दों का अर्थ है; 'कारक' भी 'प्रातिपदिक' शब्द का ही अर्थ है; शब्द अपने स्वरूप का भी बोधक होता है; शाब्द बोध में शब्द के अपने रूप के भी भासित होने के कारण ही 'अनुकरण' से 'अनुकार्य' के स्वरूप का ज्ञान होता है; 'भू सत्तायाम्' इत्यादि प्रयोगों में 'भू' जैसे विभक्तिरहित प्रयोग असाधु नही है; अभेद पक्ष में 'अनुकरण' तथा 'अनुकार्य' के सर्वथा अभिन्न होने पर 'अनुकरण'-भूत शब्द से 'अनुकार्य-भूत शब्द के स्वरूप का ज्ञान कैसे होता है इस प्रश्न का उत्तर ।
समासादि-वृत्यर्थ
४०४-४३८
दो प्रकार की वृत्तियां; व्यपेक्षावादी नैयायिकों तथा मीमांसकों का मत; 'व्यपेक्षा' पक्ष का खण्डन; लाक्षणिक अर्थवत्ता के आधार पर भी समासयुक्त पदों को 'प्रातिपदिक' संज्ञा उपपन्न नहीं हो पाती; समासयुक्त पदों की 'प्रातिपदिक' संज्ञा के उपपादन का एक अन्य उपाय तथा उसका निराकरण;
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