Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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कारक - निरूपरण
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१२
के अर्थ के विषय में भाट्ट-मतानुयायी मीमांसकों का विचार; नैयायिकों द्वारा उपर्युक्त भाट्ट मीमांसकों के मत का खण्डन, आचार्य प्रभाकर के अनुयायी मीमांसक विद्वानों के अनुसार 'विधि' शब्द का अर्थ केवल एक प्रकार के अर्थ की कल्पना से काम नहीं चल सकता; पाँचों प्रकार के अर्थों का उपपादन; 'विधि' शब्द के अर्थ के विषय में नैयायिकों का मत; 'स्वर्गकामो यजेत' इत्यादि प्रयोगों में नैयायिकों के सिद्धान्त मत के अनुसार 'प्रभेद' - सम्बन्ध से ही अन्वय सम्भव; 'ब्राह्मणो न हन्तव्य:' इस प्रयोग के अर्थ के विषय में, 'लिङ्' के अर्थ की दृष्टि से, विचार; "प्रत्ययानां प्रकृत्यर्थान्वित स्वार्थ- बोधकत्वम्" इस परिभाषा के प्रकाश में 'ब्राह्मणो न हन्तव्य:' इस वाक्य के अर्थ के विषय में पुन: विचार; 'लेट्' लकार के अर्थ के विषय विचार; 'लृङ्' लकार के अर्थ के विषय में विचार; 'लृङ' लकार के दोनों अर्थों से सम्बद्ध उदाहरणों का प्रदर्शन एवं विवेचन ।
३१५-३७७
कारक की परिभाषा; 'कर्तृत्व' की परिभाषा; सूत्रकार पाणिनि के अनुसार प्रथमा विभक्ति का अर्थ 'सम्बोधन' में होने वाली प्रथमा विभक्ति की 'कारकता'; प्रथमा तथा सम्बोधन की 'कारकता' में प्रमाण; कारक की दूसरी परिभाषाओं के विषय में विचार; 'कर्ता' की एक अन्य परिभाषा का खण्डन; 'कर्म' कारक की परिभाषा के विषय में विचार; 'कर्म' संज्ञा की परिभाषा के 'उद्देश्यत्व' पद के विषय में विचार; 'कर्म' कारक की परिभाषा में 'योग्यता- विशेष - शालित्वम्' और जोड़ना चाहिये; कुछ अन्य प्रयोगों में 'कर्मत्व' की उपपत्ति; 'योग्यता विशेष - शालित्वम्' में 'विशेष' पद का प्रयोजन; 'कर्म' कारक के कुछ अन्य प्रयोगों पर विचार; 'द्विकर्मक' धातुयों के विषय में विचार; 'कर्म' कारक की परिभाषा के विषय में नैयायिकों के सिद्धान्त पक्ष को प्रस्तुत करने के पहले, पूर्वपक्ष के रूप में, किन्हीं अन्य नैयायिक विद्वानों के ही तीन मतों का प्रदर्शन; इस प्रसंग में नैयायिकों की सिद्धान्तभूत परिभाषा; नैयायिकों द्वारा 'कर्म' कारक की परिभाषा के रूप में स्वीकृत सिद्धान्तभूत उपर्युक्त चतुर्थ मत का खण्डन 'वृक्षं त्यजति खगः ' प्रयोग के विषय मे विचार; 'सकर्मक' तथा 'अकर्मक' धातुयों की परिभाषाओं पर एक दृष्टि ; 'करण' कारक का लक्षण एवं उसका विवेचन; 'सम्प्रदान' कारक की परिभाषा; इस प्रसंग में वृत्तिकारों का भिन्न विचार; वृत्तिकारों के मत का अनौचित्य; 'सम्प्रदान' कारक में होने वाली चतुर्थी विभक्ति का अर्थ 'सम्प्रदान' कारक की एक दूसरी परिभाषा; " कर्मणा यम् अभिप्रेति " ० सूत्र की
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