Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
૬૪
वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
को हजारों राजा विनय के साथ पूजते हैं । उस व्यक्ति की पहचान के बारे में ज्योतिषी ने बताया था कि जो श्रीमाला बनाकर भेजेगा और हरिवंश की कथा सुनायगा, वही इसका पति होगा ।
ज्योतिषी के इस आदेश को सफल करने के लिए राजा ने अपनी पुत्री पद्मावती का वसुदेव से विवाह करा दिया। एक दिन सरोवर में पद्मावती के साथ जलक्रीड़ा करते हुए वसुदेव को काष्ठकलहंस के छद्मरूप में हेफ्फग पुनः आकाश में ले गया। वसुदेव ने जब उसपर प्रहार किया, तब वह असली रूप में आकर उन्हें छोड़कर भाग निकला। वसुदेव पुनः उसी सरोवर में आ गिरे, जिसमें पद्मावती के साथ जलक्रीड़ा कर रहे थे ।
इस प्रकार, पद्मावती के साथ विभिन्न प्रकार से रमण करते हुए वसुदेव सुख से समय बिताने लगे (चौबीसवाँ पद्मावती- लम्भ) ।
एक दिन वसुदेव मदनमोहित होकर प्रमदवन में चले गये। वहाँ पुष्करिणी के निकट कदली- लताजाल से घिरे मोहन - गृह में वह पद्मावती के पीछे-पीछे चल रहे थे। तभी, सहसा 'आर्यपुत्र ! मैं डूब रही हूँ' बोलती हुई पद्मावती ने वसुदेव को सरोवर में अपनी ओर खींच लिया । वह उन्हें पानी के अन्दर ले गई। वसुदेव को पानी की गहराई का अन्दाज समझ में नहीं रहा था। जब वह उन्हें पानी में बहुत दूर तक ले गई, तब उन्हें खयाल आया कि यह पद्मावती नहीं है । उसका रूप धरकर कोई उन्हें छलना चाहता है। उन्होंने उसपर कसकर प्रहार किया । आहत होते ही उसने अपने को हेफ्फग के रूप में बदल लिया और अन्तर्हित हो गया। इसके बाद ही वसुदेव ने अपने को वनलता के बीच पड़ा हुआ पाया।
वसुदेव को विश्वास हो गया कि पद्मावती का अपहरण कर लिया गया है। वह उसके वियोग प्रलाप करने लगे, तभी उन्हें वनेचरों ने देखा । वनेचरों ने वसुदेव को प्रणाम किया और उनसे कहा : “आइए, हम आपको पद्मावती दिखलाते हैं।” इसके बाद वे उन्हें अपनी पल्ली के राजा के भवन में ले गये । वहाँ उन्होंने परिणत वयवाली स्त्रियों के साथ थोड़ी दूर पर खड़ी एक कन्या की ओर वसुदेव का ध्यान आकृष्ट किया । कन्या को गौर से देखने पर वसुदेव को पता चल गया कि पद्मावती से इस कन्या की समानता तो है, लेकिन वह पद्मावती नहीं । वस्तुतः वह पल्ल की पुत्री पद्मश्री थी । पल्लीपति ने पद्मश्री के साथ वसुदेव का विवाह कर दिया। पद्मश्री वसुदेव की सेवा करने लगी ।
वसुदेव ने बड़े स्नेह से उस कन्या से पूछा : “प्रिये ! तुम्हारे पिता ने तुम्हें मेरे जैसे अज्ञातकुलशील को कैसे सौंप दिया ? " तब पद्मश्री ने बताया कि “मेरे पिता पल्लीराज के आदमियों (वनेचरों) ने जंगल में पद्मावती के वियोग में विलाप करते हुए आपको देखकर पहचान लिया था। इसीलिए वनेचरों की सूचना के आधार पर ही पल्लीराज ने मुझे आपको सौंप दिया।”
इस प्रकार, वहाँ पद्मश्री के साथ वसुदेव का समय सुखपूर्वक बीतने लगा। उसके पूछने पर वसुदेव ने उसे अपना वंश-परिचय दिया । कालक्रम से पद्मश्री गर्भवती हुई और यथासमय उसने शत्रुओं को जीर्ण करनेवाला 'जर' नाम के पुत्र को जन्म दिया (पच्चीसवाँ पद्मश्री -लम्भ) ।
एक दिन वसुदेव, पद्मश्री तथा उसकी पवित्र गोद में किलकते अपने पुत्र को छोड़कर जंगल की ओर निकल गये । चलते-चलते वह कंचनपुर नगर पहुँचे। वहाँ उन्होंने उपवन में आसन