Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ
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उठीं । राजा और युवराज - सहित अन्तःपुर के लोग क्षुब्ध हो उठे । राजमाता स्वयम्प्रभा भी घबरा उठीं ।
उसी समय, उत्पात को देखकर शशबिन्दु नामक ज्योतिषी ने कहा: “ये जो उत्पात हो रहे हैं, वे राजा के भावी तीव्र भय की सूचना दे रहे हैं । सम्प्रति, श्रीविजय का जीवन संकट में पड़ गया है। शीघ्र ही उनकी खोज की जाय । "
ज्योतिषी की चेतावनी सुनकर राजाओं का हृदय भयकम्पित हो उठा । वे किंकर्तव्यविमूढसे रह गये। तभी ज्योतिस्तत्त्व का पारंगत शाण्डिल्यायन रथ पर चढ़कर आया और उसने सबको निर्भय होने का आश्वासन देते हुए श्रीविजय के संकटमुक्त रहने का समाचार दिया (केतुमतीलम्भ : पृ. ३१६-३१७) ।
वसुदेव द्वारा कथित हरिवंश - कुल की उत्पत्ति की कथा के प्रसंग में भी बिजली गिरने के दुर्निमित्त की चर्चा आई है। कौशाम्बी के राजा सम्मुख ने एक बार अपने आश्रित वीरक नामक बुनकर (जुलाहा ) की पत्नी वनमाला का अपहरण कर लिया। वीरक अपनी पत्नी वनमाला के वियोग में विलाप करने लगा। एक दिन राजा, वीरक की रूपवती पत्नी वनमाला के साथ झरोखे में बैठा वीरक को दयनीय अवस्था में देखकर सोचने लगा : ओह ! मैंने बड़ा अनर्थ किया ! तभी, उन दोनों पर बिजली आ गिरी, जिससे दोनों ही मर गये (पद्मावतीलम्भ: पृ. ३५७) ।
'वसुदेवहिण्डी' में भविष्यवाणी करनेवाले ज्योतिषियों में क्रौष्टुकि नैमित्तिक का भी नाम आया है । ऐसा प्रतीत होता है, यह सियार की आवाज सुनकर शकुन विचारनेवाला ज्योतिषी था । उसने जरासन्ध की पुत्री जीवयशा (जीवद्यशा) के विषय में बताया था कि यह बालिका दोनों कुलों का नाश करनेवाली है । इसीलिए, वसुदेव के बड़े भाई ने वह लड़की वसुदेव को न देकर कंस को दे दी । यद्यपि, जरासन्ध की सूचना के अनुसार, सिंहपुर के राजा सिंहरथ को बन्दी बनानेवाले वसुदेव को ही वह कन्या मिलनी चाहिए थी । किन्तु, ज्योतिषी की चेतावनी के कारण, वह कन्या वसुदेव के सहयोद्धा कंस की परिणीता बना दी गई ।
उपरिविवृत भविष्यवाणियों से सम्बद्ध समस्त ज्योतिस्तत्त्व ज्योतिषशास्त्र के 'प्रश्नविचार' प्रकरण के अन्तर्भूत हैं । प्रश्नविचार के विषयों में आयुर्ज्ञान, मृत्यु- प्रश्न, जय-पराजय का प्रश्न, विवाह से सम्बद्ध प्रश्न, कार्यसिद्धि का प्रश्न, इष्टानिष्ट का प्रश्न आदि परिगणित हैं । इस प्रकार, संघदासगणी ने भारतीय ज्योतिष के व्यावहारिक सिद्धान्तों का, जो वैदिक परम्परा के संहिता ग्रन्थों श्रमण परम्परा के आगम-ग्रन्थों तक में बहुश: चर्चित हैं, अतिशय रुचिरता के साथ नियोजन किया है।
शुभ तिथि, नक्षत्र, वार, योग, करण और मुहूर्त :
‘वसुदेवहिण्डी' में संघदासगणी ने ज्योतिस्तत्त्व के शुभ तिथि, करण और मुहूर्त की चर्चा बार-बार की है, यद्यपि उन्होंने उनका कोई सैद्धान्तिक गणित नहीं प्रस्तुत किया है । ज्ञातव्य है कि आत्मकल्याण के साथ ही लोक व्यवहार के निर्वाह के लिए ज्योतिष के दो क्रियात्मक सिद्धान्त हैं : गणित और फलित | गणित ज्योतिष के, शुद्ध गणित के अतिरिक्त करण, तन्त्र और सिद्धान्त ये तीन उपभेद हैं और फलित ज्योतिष के जातक, ताजिक, मुहूर्त, प्रश्न एवं शकुन ये पाँच उपभेद