Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
अस्त्र-शस्त्र विकुर्वित कर परस्पर प्रहार करते हैं। असिपत्रवन नामक नरक में तो नारकी जीव तीखी तलवार और त्रिशूल जैसे पत्ते के चारों ओर चक्कर काटते हैं (पृ. २७१)।। ___एक बार मेघरथ देवोद्यान की ओर निकला। तभी, बहुत सारे भूत वहाँ आये। वे अपने हाथों में तलवार, त्रिशूल, भाला, बाण, मुद्गर (गदा) और फरसा लिये हुए थे (केतुमतीलम्भ : पृ. ३३६) । वृद्धशांर्गधरोक्त 'क्षुरप्र' बाण की चर्चा भी संघदासगणी ने की है। वज्रायुध के अस्त्रागार में चक्ररत्न नाम का अस्त्र उत्पन्न हुआ था, जिसे एक हजार यक्ष सँभालते थे। चक्ररत्न, चक्रवर्ती राजाओं को दिग्विजय करते समय मार्गनिर्देश (उपायनिर्देश) भी करता था। कुमार वज्रायुध ने चक्ररत्ल द्वारा निर्देशित मार्ग (उपाय) का अनुसरण करते हुए सम्पूर्ण मंगलावती विजय को जीत लिया था। चक्रवर्ती राजा भरत के आयुधागार में भी चक्ररत्न उत्पन्न हुआ था और उसने उनका, दिग्विजय के क्रम में, मार्गनिर्देशन किया था (तत्रैव : पृ. ३३०)
लक्ष्मण ने देवताधिष्ठित चक्र से ही रामण का वध किया था, और रामण के वध के बाद वह चक्र लक्ष्मण के पास लौट आया था (मदनवेगालम्भ : पृ. २४५) । प्रत्येक चक्रवर्ती के अस्त्रागार में चक्ररल के उत्पन्न होने की परम्परा थी । अधीनस्थ विद्याधर अपने राजा की आज्ञा से आयुधों की वर्षा भी करते थे। सभी शस्त्रास्त्र प्रायः देवताधिष्ठित होते थे। सुभौम की दृष्टि पड़ते ही राम (परशुराम) का फरसा शिथिल पड़ गया था और फरसे में अधिष्ठित देव निकल भागे थे (तत्रैव : पृ. २३९)। कभी-कभी लक्ष्यभ्रष्ट हो जाने पर बाण अपने धनुर्धर के पास लौट भी आता था। चेदिनगर के राजा वसु के राज्य में, एक बार एक व्याध ने जंगल में मृग मारने की इच्छा से बाण छोड़ा। किन्तु, मृग आकाशस्फटिक पत्थर (नेत्रेन्द्रिय की अपेक्षा स्पर्शेन्द्रिय से जानने योग्य पारदर्शी चामत्कारिक पत्थर) की आड़ में खड़ा था। फलतः, मृग को न बेध सकने के कारण बाण व्याध के पास लौट आया (सोमश्रीलम्भ : पृ. १९०)।
संघदासगणी ने शब्दवेधी बाण का भी उल्लेख किया है। भूतचैतन्यवादी दार्शनिक इन्द्रियों को ही आत्मा मानते हैं, किन्तु आत्मवादी दार्शनिक इन्द्रियों से आत्मा को भिन्न मानते हैं। इसी दार्शनिक प्रसंग के विवेचन के क्रम में कथाकार ने कहा है कि “शब्द सुनकर चक्षुरिन्द्रिय के विषय रूप पर कोई शब्दवेधी बाण नहीं छोड़ता ('सदं च सोऊण चक्खु विसए सहवेही न रूवे सरं णिवाएज्ज'; पद्मालम्भ : पृ. २०३) ।" शब्द या आवाज को लक्ष्य कर बाण छोड़ना और ठीक-ठीक लक्ष्यवेध करना बड़ी कठिन साधना का काम था। .
संघदासगणी की कथा के अनुसार, विद्याधर, अस्त्र के रूप में नागपाश का भी प्रयोग करते थे। ब्राह्मण-परम्परा के 'महाभारत', 'रामायण' तथा पुराणग्रन्थों में ब्रह्मपाश एवं नागपाश का भूरिशः उल्लेख हुआ है। ब्रह्मपाश, ब्रह्मशक्ति से परिचालित पाश (बन्धन-विशेष) था। यह ब्रह्मा द्वारा अधिष्ठित अस्त्रविशेष था। रावण से प्रेरित होकर मेघनाद ने हनुमान् पर ब्रह्मपाश या ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था। हनुमान् में ब्रह्मास्त्र की अवहेलना की भी क्षमता थी, किन्तु उसकी अपार महिमा के मिट जाने की आशंका से उन्होंने उसकी महिमा को मान लिया था। ब्रह्मबाण से जब हनुमान् मूर्च्छित हो गये, तब मेघनाद उनेको नागपाश से बाँधकर अशोकवाटिका से रावण के दरबार में ले गया था। नागपाश मूलतः बाँधनेवाला अस्त्र था । ऐसा भी कहा जाता है कि यह नागका पाश (फन्दा) था । नाग या साँप को ही अस्त्र बनाकर शत्रुओं को बाँधने के लिए फेंका जाता था। इसे वरुण का अस्त्र माना गया है । इसके फन्दे में ढाई फेरे होते थे। कोशकार आप्टे ने इसे वरुण