Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व
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पकड़कर लटक गया। कुएँ में उसे निगलने को मुँह बाये विशालकाय अजगर पड़ा था। फिर, कुएँ में चारों ओर भयानक सर्प उसे डँसने को तैयार थे। ऊपर काले-काले दो चूहे बरोह को काट रहे थे और हाथी अपनी सूँड़ से उसके केशाग्र को छू रहा था । उस पेड़ पर मधुमक्खी के छत्ते में ढेर सारा मधु था । हाथी के झकझोरने या हवा से हिलने पर शहद की कुछ बूँदें उस पुरुष के मुँह में आ टपकती थीं, साथ ही उसे भौरै काट खाने को चारों ओर मँडरा रहे थे। इस प्रकार, मधुबिन्दु के आस्वाद-सुख के अतिरिक्त शेष सारी बातें उस पुरुष के लिए दुःख का कारण बनी हुई थीं ।
इस दृष्टान्त का उपसंहार है : मधु का आकांक्षी पुरुष संसारी जीव है। जंगल जन्म, जरा, रोग और मरण से व्याप्त संसार का प्रतीक है। बनैला हाथी मृत्यु का प्रतीक है और कुआँ देवभव एवं मनुष्य-भव का। अजगर नरक और तिर्यक् का प्रतीक है, तो सर्प क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार कषायों का प्रतीक है, जो दुर्गति की ओर ले जाता है। बरगद का बरोह जीवनकाल का प्रतीक है, तो चूहे कृष्ण-शुक्लपक्ष के प्रतीक हैं, जो रात और दिन-रूपी दाँतों से जीवन को कुतरते है; पेड़ कर्मबन्धन के कारणभूत अज्ञान, अविरति और मिथ्यात्व का प्रतीक है। मधुबिन्दु शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध जैसे इन्द्रिय-विषय के प्रतीक हैं तथा भौरे विभिन्न आगन्तुक शारीरिक रोग हैं ।
दूसरी 'दृष्टान्त' - कथा में मधुबिन्दु के लोभी पुरुष की भाँति, दुःख में सुख की कल्पना करनेवाले एक विलुप्तभाण्ड बनिये की कथा उपस्थापित की गई है। कथा है कि एक बनिया एक करोड़ का भाण्ड (माल) गाड़ियों में भरकर व्यापारियों के साथ घोर जंगल में प्रविष्ट हुआ । उसका एक खच्चर था, जिसपर सामान्य लेन-देन के लिए पैसे या सिक्के लदे थे। जंगल में खच्चर के ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने के झटके से बोरा फट गया और सिक्के गिरकर बिखर गये । यह देखकर उसने गाड़ियों को रोक दिया और वह बिखरे हुए सिक्के खोज - खोजकर बटोरने लगा । साथ चलनेवाले व्यापारी जब उसके पास आये, तब उन्होंने उससे कहा : 'गड़ियों पर माल तो हैं ही, कौड़ी के लिए करोड़ क्यों छोड़ रहे हो ? क्या चोरों का भय नहीं है ?' उस बनिये ने कहा : 'जब भविष्य का लाभ सन्दिग्ध है, तब वर्तमान को क्यों छोडूं ?' उसके ऐसा कहने पर शेष व्यापारी उसे छोड़कर चले गये और इधर चोरों ने उसके सारे भाण्ड (माल) चुरा लिये ।
इस प्रकार, दुःखपरिणामी वर्तमान सुख को ही सुख माननेवाले बनिये को अपने एक करोड़ के माल से हाथ धोना पड़ा । इसलिए नीति यही है कि भावी सुख के लिए वर्तमान में दुःख उठाना ही श्रेयस्कर है, अन्यथा वर्तमान सुख सही मानी में दुःख है, और वर्त्तमान दुःख में सुख की कल्पना भविष्य के लिए हानिकारक होती है। इस प्रकार, कथाकार द्वारा उपन्यस्त उक्त दोनों दृष्टान्त-कथाएँ विशुद्ध रूप से नीतिपरक कथाएँ हैं ।
संघदासगणी ने 'णाय' या 'ज्ञात' संज्ञा से भी कई कथाएँ प्रस्तुत की हैं। 'वसुदेवहिण्डी' में 'णाय’-संज्ञक कुल तीन कथाएं हैं: 'गब्भवासदुक्खे ललियंगयणायं' (९.४), 'दढसीलयाए धणसिरीणायं' (४९.२५) और 'सच्छंदयाए रिवुदमणनरवइणायं ' ( ६१.२४) । इस णाय या ज्ञात-संज्ञक कथाओं की गणना भी 'विकथा' में की जा सकती है; क्योंकि इनका सम्बन्ध भी कामकथा से जुड़ा हुआ है । कथाकार द्वारा प्रस्तुत अन्त:साक्ष्य के अनुसार 'णाय'- संज्ञक कथाएँ 'दृष्टान्त'- संज्ञक