Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा निष्कर्षः
यहाँ कथाकार संघदासगणी द्वारा निरूपित उदात्त सौन्दर्य के कतिपय प्रतिनिधि चित्र निदर्शन-स्वरूप प्रस्तुत किये गये हैं। कथाकार की उपर्युक्त रूपवर्णन-शैली में उदात्त की विद्यमानता सहज ही स्वीकार की जा सकती है। अर्थात्, कथाकार के रूप-वर्णन में असामान्य अभिव्यक्ति का चमत्कार उदात्त की सृष्टि करता है। पाश्चात्य और पौरस्त्य सौन्दर्यशास्त्रियों द्वारा विच्छित्तिपूर्ण वचोभंगी में ही उदात्त की सम्भावना मानी गई है। इस दृष्टि से वचोभंगी या वाग्मिताकुशल कथाकार के उक्त सौन्दर्य-वर्णन में आत्मोन्नयनकारी उदात्त शैली का साक्षात्कार होता है । कहना • होगा कि कथाकार द्वारा उपन्यस्त सौन्दर्यमूलक चित्रों में चिन्तन की गरिमा, भव्य आवेगों और संवेगों का स्फूर्त-उत्तेजित निर्वाह, वाक्यालंकारों का सम्यक् सुष्ठु प्रयोग, शब्द-चयन, सादृश्य-विधान एवं अलंकार-योजना तथा स्थापत्य-कौशल का महिमामण्डित प्रयोग आदि उदात्त के नियामक अन्तरंग और बहिरंग तत्त्वों का सनिवेश बड़ी ही समीचीनता से हुआ है।
उदात्त में भव्य आवेगों की महत्ता को स्वीकारते हुए डॉ. नगेन्द्र ने लिखा है कि भव्य आवेग से हमारी आत्मा जैसे अपने-आप ही उठकर गर्व से उच्चाकाश में विचरण करने लगती है तथा हर्ष और उल्लास से परिपूर्ण हो उठती है। इसी प्रकार का आवेग उदात्त की सृष्टि करता है। ' कहना न होगा कि उदात्त की भूमिकाएँ बहुकोणीय हैं। इसीलिए, प्रो. जगदीश पाण्डेय ने उदात्त की चर्चा के क्रम में सूक्ष्मोदात्त, श्रेयोदात्त, परोदात्त, विस्तारोदात्त आदि उदात्त के अनेक भेदों की परिकल्पना की है। अभिनवगुप्त की दृष्टि से कथाकार संघदासगणी की सौन्दर्यानुभूति सार्वभौम है और यही सौन्दर्यानुभूति कथाकार की कलानुभूति का पर्याय है, जिसमें यथार्थ के साथ आदर्श का भी अल्पाधिक समावेश दृष्टिगत होता है। कथाकार का सौन्दर्यबोध यदि ऐन्द्रिय प्रत्यक्ष से सम्बद्ध है, तो सौन्दर्य के ग्रहण में उसके अन्त:करण का योग भी आपेक्षिक महत्त्व रखता है। अवश्य ही, कथाकार संघदासगणी ने अपने सौन्दर्य-चित्रण में आध्यात्मिक वृत्ति, गहन आन्तरिकता और विभिन्न इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य प्रकृति के प्रेम को प्रचुर मूल्य प्रदान किया है। इसीलिए, सर्जना की ओर उन्मुख उनकी सौन्दर्यानुभूति सहज ही कलानुभूति में परिणत हो गई है।
कल्पना :
संघदासगणी की साहित्यिक कला-चेतना में कल्पना का सर्वोपरि स्थान है। कल्पनाशक्ति . के माध्यम से ही कथाकार ने नूतन सृष्टि और अभिनव रूप-विधान का सामर्थ्य प्राप्त किया है। कल्पना ही उनकी सर्जनाशक्ति का आधार है। कथाकार ने कल्पना द्वारा एक ओर जहाँ वस्तु-सन्निकर्ष के सामान्य प्रभावों को सुरक्षित रखा है, वहीं दूसरी ओर वस्तु-सन्निकर्ष के मानसिक प्रभावों से निर्मित बिम्बों को भी आकलित करने में सफलता आयत्त की है। चित्र या बिम्बविधायिनी शक्ति ही कल्पना का पर्याय है। पाश्चात्य कलाशास्त्री वेबस्टर के मत का अनुसरण करते हुए डॉ. कुमार विमल ने कहा है कि कल्पना का अर्थ यह है कि वह एक चित्रविधायिनी १. काव्य में उदात्त-तत्त्व': भूमिका : पृ. १० २. उदात्त : सिद्धान्त और शिल्पन' :प्र. मातृ प्रकाशन, पटना, सासाराम (बिहार) : पृ. १३ ३. सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व' (वहीं) : पृ.११०