Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व
५५१ प्रत्यक्ष रूपविधान के अन्तर्गत म्यान से निकली तलवार का एक उदात्त कल्पनामूलक चाक्षुष बिम्ब दर्शनीय है : __"ट्ठिा य तिलतिल्लधारासच्छमा, अयसिकुसुमअच्छिनीलसप्पभा, अच्छेरयपेच्छणिज्जा, भमति व पसण्णयाए, उप्पयति व्व लहुययाए, विज्जुमिव दुप्पेच्छा दरिसणिज्जा य।" (धम्मिल्लचरित : पृ. ६७)
अर्थात्, म्यान से निकली तलवार तिल के तेल की धारा के समान चिकनी थी, तीसी के फूल और आँख के समान नीली थी और आश्चर्य के साथ प्रेक्षणीय थी। वह प्रसन्नता से मानों घूम रही थी, हल्केपन के कारण मानों उड़ रही थी और विद्युत् की भाँति दुष्प्रेक्ष्य होने पर भी .. दर्शनीय थी।
__ कहना न होगा कि प्रस्तुत चाक्षुष बिम्ब के अंकन में कथाकार ने अपने रंगबोध का मनोरम परिचय उपन्यस्त किया है। इस सन्दर्भ में, युवती के आँचल से निकले, जावकरस की भाँति पाण्डुर पयोधर के रंगबोधपरक बिम्ब का उदात्त सौन्दर्य द्रष्टव्य है : ‘पावरणंतरविणिग्गयमिव जावयरसपंडुरं जुवतिपओहरं।' इस प्रकार के अनेक रंगबोधक बिम्ब कथाकार ने अपनी भावप्रवण कल्पना के माध्यम से समुद्भावित किये हैं।
'रसमीमांसा' (पृ.३५८) में वर्णित आचार्य शुक्लजी के स्मृत रूप-विधान के अन्तर्गत उदाहर्तव्य है राजगृह नगर, जिसके चाक्षुष स्थापत्य-बिम्ब की मनोहारिता विस्मयजनक रूप में उपस्थापित की गई है :
_ “तत्य मगहाजणवए रायगिहं नाम नगरं दूरावगाढवित्थयसलिलखातोवगूढदढतरतुंगपराणीयभयदपागारपरिगयं, बहुविहनयणाभिरामजलभारगरुयजलहरगमणविघातकरभवणभरियं, अणेगवाहपरिमाणपव्वयं, दिव्वाचारपभवं, भंडसंगहविणियोगखमं, सुसीलमाहणसमणसुसयणअतिहिपूवनिरयवाणियजणोववेयं, रहतुरयजणोघजणियरेणुगं, मयगलमातंगदाणपाणियपसमियवित्थिन्नरायमगं।" (कथोत्पत्ति : पृ. २)
प्रस्तुत स्मृत रूप-विधान में राजगृह के अतीत स्थापत्य की स्मृति के सहारे नूतन वस्तुव्यापार-विधान किया गया है। वस्तु-व्यापार-विधान का यह क्रम स्मृति से अनुशासित रहकर अतीत का यथाक्रम अनुवर्द्धन करता है, जो मूलत: प्रत्यक्ष रूप-विधान पर ही आश्रित होता है। शुक्लजी ने केवल कल्पित रूप-विधान को ही विशुद्ध कल्पना का क्षेत्र माना है और इसी के अन्तर्गत काव्य के सम्पूर्ण रूप-विधान को स्वीकृत किया है। इस प्रकार, बिम्ब या रूप-विधान के लिए कल्पना का सातिशय महत्त्व सिद्ध होता है।
___ कथाकार संघदासगणी द्वारा उपन्यस्त कल्पित रूप-विधान के उदाहरणों में विद्याधर जाति के भूतों का बीभत्स बिम्ब यहाँ द्रष्टव्य है :
“तत्य य गयमयगणा गीयवाइयरवेण महया असि-सत्ति-कोंत-तोमर-मोग्गर-परसुहत्था भूईकयंगराया मिगचम्मणियंसणा फुट्ट-कविल-केसा कसिणभुयंगमपलंबवेगच्छिया अयकरकयपरिवारा लंबोदरोरुवयणा गोधुंदुर-नउल-सरडकण्णपूरा वारवरबहुरूवधरा सप्पभूया य से पुरतो पणच्चिया भूया।" (केतुमतीलम्भ : पृ.३३६)