Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा द्वारा निर्देशित प्रतिभा आधुनिक काव्यालोचन की कल्पना से अत्यधिक साम्य रखती है। क्योंकि, कल्पना में अप्रत्यक्ष को प्रत्यक्ष कर देने की शक्ति रहती है। 'वसुदेवहिण्डी' में वर्णित कल्पवृक्ष, विभिन्न विद्याएँ, अनेक प्रकार के कल्प (स्वर्ग), साधुओं और विद्याधरों का आकाश-संचरण, अजपथ, शंकुपथ, वेत्रपथ, सुवर्णद्वीप, रलद्वीप, पशुओं का मनुष्यभाषा में बोलना, विभिन्न मिथक और कथारूढियाँ कथाकार की इसी प्रतिभा या कल्पना-शक्ति के उदाहरण हैं। __राजशेखर ने भी अप्रत्यक्ष देशान्तर, द्वीपान्तर एवं कथापुरुषों के प्रत्यक्षवत् सजीव वर्णन को उक्त मूर्त्तिविधायिनी और अदृश्यगोचरकारिणी प्रतिभा का परिणाम माना है। राजशेखर-पूर्ववर्ती आचार्यों ने प्राय: कविप्रतिभा, अर्थात् कारयित्री या रचनात्मक कल्पना पर ही विचार किया था, किन्तु राजशेखर ने प्रथम बार प्राचीन काव्यशास्त्र में उपेक्षित भावक, पाठक या आलोचक के पास रहनेवाली भावयित्री प्रतिभा, अर्थात् ग्राहिका कल्पना पर भी विचार किया है। डॉ. कुमार विमल ने कहा है कि राजशेखर द्वारा निरूपित सारस्वत कवि की सहजा कारयित्री प्रतिभा कॉलरिज, क्रोचे एवं अन्य अनेक आधुनिक विचारकों की बिम्बविधायिनी कल्पना से पृथुल साम्य रखती है। कहना न होगा कि प्राचीन संस्कृत-आचार्यों में मूर्धन्य भट्टतोत, कुन्तक अभिनवगुप्त, वामन, मम्मट और पण्डितराज जगन्नाथ ने भी 'प्रतिभा' के सन्दर्भ में उसके विभिन्न नामों और रूपों से अपना वाग्विस्तार किया है। शास्त्रदीक्षित कथाकार संघदासगणी ने जिस प्रतिभा का परिचय दिया है, वह अभिनवगुप्त की प्रतिभा, अर्थात् 'अपूर्ववस्तुनिर्माणक्षमा प्रज्ञा के अधिक निकटवर्ती है। तदनुसार, संघदासगणी ने अपनी प्रतिभा या कल्पना के द्वारा मानसिक रूपविधान, बिम्बविधान अथवा मूर्तविधान की अपूर्व शक्ति का प्रदर्शन किया है। निस्सन्देह, उन्होंने अपनी कथासृष्टि में रसात्मक परिवेश के साथ विशद सौन्दर्य के निरूपणपूर्वक विराट् कथा-प्रतिभा का प्रत्यभिज्ञान प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी चिन्तन-शक्ति और कल्पना की निपुणता तथा शास्त्रीय अभ्यास से परिपुष्ट 'व्युत्पत्ति' का आश्रय लेकर प्रस्तुत विषय 'वसुदेवचरित' को एक नूतन परिवेश और संयोजन प्रदान किया है, जिससे 'वसुदेवहिण्डी' जैसी 'बहुकालवण्णणिज्ज' अभिराम कथा की परम अद्भुत सृष्टि हुई है।
प्राचीन आचार्यों की प्रतिभा' और आधुनिक सौन्दर्यशास्त्र की 'कल्पना' में बहुश: साम्य है। संघदासगणी की मानसिक सर्जनाशक्ति और रचनात्मक कल्पनाशक्ति द्वारा 'वसुदेवहिण्डी' में एक विशाल नन्दतिक लोक ('एस्थेटिक युनिवर्स') की स्थापना हुई है। निष्कर्ष रूप में कहें, तो 'वसुदेवहिण्डी' संघदासगणी की एक ऐसी मानसिक कथासृष्टि है, जिसमें कल्पना की उदात्तता
और सौन्दर्यबोध की रमणीयता के साथ सम्मूर्तन की अपूर्व क्षमता और भावोद्बोधन के मोहक और विलक्षण गुणों का विपुल विनियोग हुआ है।
बिम्ब:
कल्पना, बिम्ब और प्रतीक में आनुक्रमिकता या पूर्वापरता का भाव निहित है। कल्पना से आविर्भूत होनेवाली बिम्बात्मकता ही प्रतीक-विधान की जननी होती है। कृतधी नव्यालोचक १. काव्यमीमांसा' : अ.४ २. सौन्दर्यशास्त्र के तत्त्व' (वही) : पृ.१२६ ३. ध्वन्यालोकलोचन', चौखम्बा-संस्करण : पृ.९२