Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व
५३.१
कृपापूर्वक एक देवी ने बछड़े के साथ गाय का रूप धारण करके उसके सामने अपने को प्रकट किया । गोपदारक, अपने गन्दे पैर को उस बछड़े पर रखकर पोंछने लगा । उस बछड़े ने मनुष्यवाणी में गाय से पूछा : 'माँ, यह कौन आदमी मुझपर अपने गन्दे पैर को रखकर पोंछ रहा है ?' गाय ने कहा : 'बेटे ! गुस्सा मत करो। यह अभागा अपनी माँ के पास अकृत्य करने जा रहा है । फिर, इसके लिए यह काम कोई बड़ी बात नहीं है।' यह कहकर देवी अदृश्य हो गई ।
गोपदारक ने सोचा : मेरी माँ को चोर हर ले गये थे, जाने वही कहीं गणिका तो नहीं हो गई है? उसने जाकर अपनी अभीप्सित वेश्या से वस्तुस्थिति की जिज्ञासा की, तो ज्ञात हुआ सचमुच वह वेश्या उसकी माँ ही है, जिसने अभिज्ञानपूर्वक अपना परिचय प्रस्तुत किया। इस प्रकार, देवी द्वारा प्रतिबोधित गोपदारक मातृगमन के अकृत्य से बच गया ।
दूसरी 'उदन्त'- संज्ञक कथा में एक नागरिक गन्धिपुत्र द्वारा गाड़ीवान के और फिर गाड़ीवान द्वारा उस नागरिक के छले जाने का वर्णन हुआ है। नागरिक ने वाक्छल से एक कार्षापण में तीतर-समेत उसकी गाड़ी ले ली और पुनः गाड़ीवान ने कुलपुत्र द्वारा प्रदर्शित उपाय से दो पैली सत्तू के साथ उसकी स्त्री को भी हथिया लिया । अन्त में मुकदमे के द्वारा दोनों में निबटारा हुआ ।
इस प्रकार, इन दोनों 'उदन्त' - संज्ञक कथाओं में गुप्त वार्त्ता की ओर संकेत किया गया है । कोशकार आप्टे महोदय ने 'उदन्त' का अर्थ गुप्तवार्त्ता भी किया है, इसीलिए शब्दशास्त्रज्ञ कथा संघदासगणी ने उक्त दोनों कथाओं को 'उदन्त' संज्ञा से अभिहित किया है ।
कथाकार ने ‘आख्यानक’- संज्ञक कथाओं का भी उपन्यास किया है। 'वसुदेवहिण्डी' में कुल तीन आख्यानक इस प्रकार है : 'लोकधम्मासंगययाए महेसरदत्तक्खाणयं ' (१४.११), 'चिंतयत्थविवज्जासे वसुभूईबं भणक्खाणयं' (३०.२१) और 'कयग्घाए वायसक्खाणयं' (३३.४) । प्रथम, महेश्वरदत्त के आख्यान में श्राद्ध आदि लोकधर्म की असंगति दिखाई गई है, अर्थात् मृत पिता की सद्गति के उद्देश्य से आयोजित श्राद्ध में महेश्वरदत्त, स्वयं (महिषयोनि में उत्पन्न) अपने पिता को ही -काटकर उसके मांस से भोज का आयोजन करता है ।
द्वितीय, वसुभूति ब्राह्मण के आख्यानक में यह बताया गया है कि मनुष्य सोचता कुछ और है, लेकिन हो जाता है कुछ और ही । वसुभूति ने खेत में धान रोपा, लेकिन देखरेख के अभाव में धान की जगह घास उग आई । उसकी रोहिणी नाम की गाय का गर्भ असमय ही गिरकर नष्ट हो गया, इसलिए वह बच्चा नहीं दे सकी । ब्राह्मण का बेटा सोमशर्मा नट की संगति में पड़कर नट हो गया और ब्राह्मणपुत्री सोमशर्माणी किसी धूर्त के फेरे में पड़कर क्वॉरेपन में ही गर्भिणी हो गई। इस प्रकार, ब्राह्मण के द्वारा चिन्तित अर्थ का विपर्यास या अन्यथात्व हो गया ।
तृतीय, कौए के आख्यानक में यह निर्देश किया गया है कि अकाल पड़ने के कारण चारे-दाने के अभाव में कौए अपने भांजे कपिंजलों के पास समुद्रतट पर चले गये। वहाँ कपिंजलों ने कौओं का हृदय से आतिथ्य किया और वे वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। जब कौओं को पता चला अपने जनपद में सुभिक्ष (सुकाल) लौट आया है, तब वे वापस जाने को तैयार हो गये । जब कौए लौट चले, तब कपिंजलों ने कहा : 'आप क्यों जा रहे हैं ?' कौओं ने उनसे कहा : 'प्रतिदिन सूर्य उगने से पहले हमें तुम्हारा अधोभाग देखना पड़ता है । यह स्थिति हमें बरदाश्त नहीं होती, इसीलिए हम जा रहे हैं।' इस प्रकार, कपिंजलों पर लांछन लगाकर कृतघ्न कौए लौट गये ।