Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन
३७१ वसुपालित ने सारी तैयारी की। वसुदेव मंगलविधि पूरी करके स्फुलिंगमुख घोड़े पर सवार हो गये । जंजीर से बँधे चारों टकुओं को पलान के चारों ओर लगा दिया। जब घोड़ा बैठना चाहता, तब शरीर में टकुओं के चुभने से वह खड़ा ही रहता। जब वह दौड़ने लगता, तब जंजीर खींचने से (टकुए चुभने के कारण) रुक जाता और इस प्रकार उसे विशेष कोई पीड़ा भी नहीं होती। जब वह खड़ा होना चाहता, वसुदेव उसे चलाना शुरू कर देते । राजा कपिल खुले हुए छतदार बरामदे में बैठे यह सब देख रहा था और प्रशंसा भी कर रहा था। घोड़े की चालं के विशेषज्ञ शिक्षाकुशल व्यक्ति विस्मित भाव से वसुदेव को शाबाशी दे रहे थे। अन्त में, वसुदेव ने स्फुलिंगमुख घोड़े को वश में कर लिया। राजा ने प्रसन्न होकर वह घोड़ा तो वसुदेव को सौंपा ही, अपनी कन्या कपिला भी उन्हें सौंप दिया। __ इस कथाप्रसंग से स्पष्ट है कि उस युग में तेज घोड़े का दमन करना बड़ी बहादुरी की बात तो थी ही, घोड़े को वश में करनेवाले की योग्यता के लिए पुरस्कार में घोड़े के साथ पत्नी भी प्राप्त होती थी और अश्व-संचालन के पूर्व मंगलविधि का अनुष्ठान भी सम्पन्न किया जाता था। राजाओं के राज्य में घोड़े और हाथी रखे जाने की प्राचीन परम्परा रही है। प्रत्येक राजा के राज्य में अश्वशाला और हस्तिशाला का प्रावधान रहता था। अश्वों के प्रभारी महाश्वपति कहलाते थे, जिनके अधीन अनेक अश्व-परिचारक होते थे। हाथियों के प्रभारी को संघदासगणी ने 'गणियारी' (महावत) की संज्ञा दी है। कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र के दूसरे अधिकरण में 'अश्वाध्यक्ष' (अ. ३०) और 'हस्त्यध्यक्ष' (अ. ३१) नामों से अलग-अलग दो अध्यायों की ही अवतारणा की है, जिनमें हाथी और घोड़ों के रख-रखाव के विषय में बड़ी सूक्ष्मता और विशदता के साथ वर्णन किया है।
'वसुदेवहिण्डी' में हाथी-घोड़ों के अतिरिक्त गाय, बैल और महिष (भैंसा) और मेष जैसे पशुओं का भी विशद उल्लेख किया गया है। कथा (प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २९७) है कि वसन्तपुर के राजा जितशत्रु के दो गोमण्डल थे। उनमें दो गोमाण्डलिक नियुक्त थे—चारुनन्दी और फल्गुनन्दी। उन दोनों गोमण्डलों में शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के लक्षणोंवाली गायें थीं। उत्कृष्ट गायें वर्ण, रूप, शारीरिक संरचना, सींग, आकृति आदि की दृष्टि से कल्याणकारिणी और मंगलमयी थीं। उनमें किसी प्रकार की खोट नहीं थी और वे उत्तम थनोंवाली थीं। निकृष्ट गायें वर्ण आदि की दृष्टि से अकल्याणकारिणी और अमंगलमयी थीं। वे खोटयुक्त, मरखण्डी और भयंकर तथा थर-विहीन थीं। बैल अक्सर गाड़ियों में जोते जाते थे। एक स्थल (केतुमतीलम्भ : पृ ३३४) पर कथाकार ने ऐसे बैलों की मार्मिक दशा का वर्णन किया है, जो अपने गाड़ीवानों की निर्दयता के शिकार थे। वे प्रचुर भार ढोने से श्रान्त और भूख-प्यास से क्लान्त रहते थे। सरदी
और गरमी से उनके शरीर कृश हो गये थे। डाँस और मच्छरों से पीड़ित एवं अंग-अंग से टूटे हुए वे, नाथ की रगड़ से चूर थे, फिर भी गाड़ीवान उन्हें हाँकते ही जा रहे थे। पूर्वभवजनित वैर के कारण भैंसों और भेड़ों के परस्पर लड़ने-भिड़ने का भी अनेकश: उल्लेख कथाकार ने किया है।
___ धम्मिल्लचरित (पृ. ५५) में एक क्रुद्ध भैसे का बड़ा ही सजीव और स्वाभाविक चित्रण उपलब्ध होता है। धम्मिल्ल के रथं को रोककर, रास्ते पर जो भैंसा आ खड़ा हुआ था, वह विपुल अन्धकार के ढेर की तरह लगता था; नदी के ऊबड़-खाबड़ कछारों और बाँबियों में ढूसा मारते