Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
संघदासगणी द्वारा प्रस्तुत इस कथाप्रसंग से 'वसुदेवहिण्डी' की कथा-विधा के सन्दर्भ में यह स्पष्ट धारणा बनती है कि 'वसुदेवहिण्डी' की कथा चरित - प्रधान है, जिसमें ऐसे स्त्री-पुरुषों कथा कही गई है, जो निरन्तर धर्म, अर्थ और काम के प्रयोजन की सिद्धि के लिए प्रयत्नशील हैं। इसके अतिरिक्त, यह भी कि इसके स्त्री और पुरुष - पात्र उत्तम, मध्यम और निकृष्ट तीनों कोटि के हैं। कथाकार ने इस चरितकथा को प्रत्यक्ष देखी हुई घटनाओं, शास्त्र द्वारा अर्जित जानकारियों एवं स्वयं अनुभव की गई बातों या स्वयं भोगी गई यथार्थताओं के आधार पर रचा है । यह ‘वसुदेवहिण्डी' न केवल चरित-कथा है, अपितु, कल्पित कथा भी है। इसलिए, इसमें कुशल व्यक्तियों द्वारा कथितपूर्व कथाओं को विपर्यय, अर्थात् तोड़-मरोड़ या उलट-फेर के साथ उपस्थापित किया गया है, साथ ही कथाकार ने इसमें अपनी मति से भी कुछ कथाएँ जोड़ दी हैं। इस प्रकार, चरित और कल्पना- प्रधान इस महाकथाग्रन्थ के आख्यानों में अद्भुत, शृंगार और हास्यरस के बाहुल्य का विपुल विनियोग हुआ है, अथवा ऐसा भी कहा जा सकता है कि इस कथाकृति में प्रतिपादित शृंगार और हास्यरस अतिशय अद्भुत हैं। कुल मिलाकर, इस ग्रन्थ की कथावस्तु में रसोच्छलित भावों की हृदयावर्जक अभिव्यंजना हुई है। ऐसे ही गद्यमय कथाग्रन्थों के लिए महापात्र विश्वनाथ-कृत कथालक्षण संगत होता है : कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम् ।' कहना न होगा कि 'वसुदेवहिण्डी' की कथाओं की सरसता ही उनके 'यत्परो नास्ति' वैशिष्ट्य का परिचायक तत्व है।
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'वसुदेवहिण्डी' में जिस प्रकार अनेक प्राकृतों का संगम हुआ है, उसी प्रकार कथाओं के विविध भेदों का भी समाहार उपलब्ध होता है । 'स्थानांग' (४,२४६) में कथा के चार भेद क गये हैं: आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी (संवेजनी) और निर्वेदनी । पुनः इन चारों प्रकार की कथाओं के चार-चार भेद और लक्षण कहे गये हैं। कहना न होगा कि संघदासगणी ने अपनी कथाओं के वर्ण्य विषय को इसी आगमिक कथा- सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में पल्लवित किया है। तदनुसार, 'वसुदेवहिण्डी' में ज्ञान और चारित्र्य के प्रति आकर्षण उत्पन्न करनेवली आक्षेपणी कथाएँ भी परिगुम्फित हुई हैं, तो सन्मार्ग की स्थापना करनेवाली विक्षेपणी कथाएँ भी समाविष्ट की गई हैं । इसी प्रकार, इस कथाग्रन्थ में जीवन की नश्वरता और दुःखबहुलता तथा शरीर की अशुचिता दिखाकर वैराग्य उत्पन्न करनेवाली संवेदनी कथाएँ भी आई हैं, तो कृत कर्मों के शुभाशुभ फल दिखलाकर संसार के प्रति उदासीन बनानेवाली निर्वेदनी कथाओं का भी विन्यास हुआ है।
'वसुदेवहिण्डी' में कुछ ऐसी आचाराक्षेपणी कथाएँ हैं, जिनमें आचार का निरूपण किया गया है, तो कुछ व्यवहाराक्षेपणी कथाएँ भी हैं, जिनके द्वारा व्यवहार या प्रायश्चित्त का निरूपण हुआ है । पुनः कुछ प्रज्ञप्त्याक्षेपणी कथाओं का विनियोग हुआ है, जिनमें संशयग्रस्त श्रोताओं के संशय का निवारण किया गया है, साथ ही दृष्टिवादाक्षेपणी कथाएँ भी कही गई हैं, जिनमें श्रोता की योग्यता के अनुसार विविध नयदृष्टियों से तत्त्व-निरूपण किया गया है। विक्षेपणी कथाओं के माध्यम से अपने सिद्धान्त के प्रतिपादन के साथ ही दूसरे के सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन हुआ है, पुनः दूसरे के सिद्धान्तों के प्रतिपादन के साथ ही अपने सिद्धान्त की स्थापना की गई है। इसी प्रकार, सम्यग्वाद और मिथ्यावाद के प्रतिपादनपूर्वक अन्त में सम्यग्वाद की स्थापना की गई है।
१. साहित्यदर्पण : ६. ३३२
२. स्थानांग : ४. २४७ - २५०