Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 517
________________ वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व । ९: ७ : मन्ने देवी पस्समाणी चित्तकम्म (जु) वई विव। (अनुष्टुप् के दो चरण) १९ : १६ : गया य आसमपयं रिसिणो च निवेइयं (मूल: निवेइयं च रिसिणो)। (अनुष्टुप् के दो चरण) २८ : १३ : उज्जाण-काणण-सभा (स) वणंतरेसु। (वसन्ततिलका का एक चरण) . ३१ : २१ : पिउमाउविपत्तिकारणं । (वियोगिनी का एक चरण) ३६ : १३ : पच्चक्खकडुयं टुं पिउ उवरमं च ते। (अनुष्टप् के दो चरण) ४८ : १७ : तस्स मज्जा (य) सप्पेण खइया, उवरया य सा। (अनुष्टुप् के दो चरण). ५७ : २७ : पाणेहि वि पिययरी सव्वालंकारभूसिया। (अनुष्टुप् के दो चरण) ७५ : १९ : महल्लदुग्गकंदरा। (पंचचामर का चरणांश) ७७ : ९ : सुवेसभूत-सीलसालिसज्जण (णा) समाउला। (पंचचामर का एक चरण) ८८ : २३ : पमाणं कुणंता निसीहे गया तं.... । (भुजंगप्रयात का एक चरण) १०६ : २९ : वच्छत्थलो सोभिओ : विज्जुल्लयालंकिओ। (शार्दूलविक्रीडित के चरणांश) ११३ : १४ : अपरिवडियवेरग्गस्स चत्तारि लद्धी । (मालिनी का एक चरण) १२३ : ८ : दाहिणाक्तनाही। (मन्दाक्रान्ता या मालिनी का चरणांश) १२८ : २३ : सटुिं वाससहस्साइं। परमं दुच्चरं तवं । (अनुष्टप् के दो चरण) १३६ : १४ : अवगासे (य) चत्तारि पदाणि दंसियाणि से। (अनुष्टुप् के दो चरण) १५० : २४ : विज्जाहररायसुया कण्णा नाम मणोरमा। (अनुष्टुप् के दो चरण) १५४ : ४ : चिंतिओ य मया देवो (स) णियमेणं उवागतो। (अनुष्टप् के दो चरण) १६१ : ५ : सीहासणसुहासीणो सहस्सणयणो ठितो। (अनुष्टुप् के दो चरण) १६७ : १५ : तहा रूवे रत्तो... रक्खणपरो... । (शिखरिणी का चरणांश) २३४ : २४ : कासे सासे जरे दाहे कुच्छिसूले भगंदरे । (अनुष्टप् के दो चरण) २३९ : ५ : सहस्सपरिवेसणं... । (पृथ्वी का चरणांश) २५२ : २३ : उप्पण्णं केवलं नाणं... मोहणीए खयंगए। (अनुष्टुप् के दो चरण) २६९ : २१ : जा वल्लहस्स आसस्स वित्ती तं. भद्दगस्स वि। (अनुष्टुप् के दो चरण) ३०० : १४ : तेसिं दोण्हं पि दुवे भज्जाओ विजया वेजयंती य। (गाथा की अर्द्धाली) ३०६ : १६ : जियाए मे परायाणो पुतं जुद्धे उवट्ठिया। (अनुष्टुप् के दो चरण) ३३४ : १८ : जंबुद्दीवे भरहे वेयड्रमुत्तरिल्लसेढीए । नयरं सुवण्णणाभं राया तत्य गरुलवेगो॥ (गाथा) ३३८ : ३ : एयम्मि देस-याले देवो दिव्वरूवधारी दरिसेइ। लाभा हु ते सुलद्धा जं सि एवं दयावंतो ॥ (गाथा)

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