Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
View full book text
________________
वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन
३७३ तथा सवारियों के साधनों में खच्चर, ऊँट और गधे का भी मनोरंजक प्रसंग आया है। इस प्रकार, कथाकार ने 'वसुदेवहिण्डी' में भारतीय प्रतिनिधि पशुओं का यथावश्यक उल्लेख करके अपनी कथाशैली में ततोऽधिक सम्प्रेषणीयता उत्पन्न की है।
संघदासगणी ने लोकजीवन के परिचित पक्षियों में हंस, चक्रवाक, मयूर, कुक्कुट, कबूतर, सुग्गा, मैना और कौए का, कथारूढिपरक मिथकीय चेतना के परिप्रेक्ष्य में, रुचिकर चित्रण किया है। अपरिचित पक्षियों में भारुण्ड और कंकशकुन पक्षी विशेष रूप से उल्लेख्य हैं। मयूर पक्षी का तो विस्मयकारी मिथकीय वर्णन कथाकार ने किया है।
वसुदेव अपनी विद्याधरी पत्नी नीलयशा के साथ, उसके ही आग्रह पर, विद्याधरों से अपराजेयता के निमित्त, विद्या सीखने के लिए वैताढ्य पर्वत पर उतरे । वहाँ जब वह अपनी प्रिया के साथ घूम रहे थे, तभी नीलयशा ने एक ऐसे मयूरशावक को विचरते देखा, जिसके चन्द्रयुक्त पंख बड़े चिकने, चित्र-विचित्र और मनोहर थे। वह मयूरशावक क्रमश: वसुदेव के निकट ही आकर विचरने लगा। उसे देखकर नीलयशा बोली : “आर्यपुत्र, इस मयूरशावक को पकड़ लीजिए। यह मेरे लिए खिलौना होगा।" वसुदेव मयूरशावक के पीछे लग गये । वह मयूरशावक कभी घने पेड़ों के बीच, कभी जंगल-झाड़ी से भरी कन्दराओं से होकर बड़ी तेजी से चल रहा था। वसुदेव जब उसे पकड़ने से असमर्थ हो गये, तब उन्होंने नीलयशा से कहा कि अब तुम्हीं उसे अपने विद्याबल से पकड़ो। नीलयशा विद्याबल से मयूरशावक की पीठ पर जा बैठी। मयूरशावक नीलयशा को अपनी पीठ पर लिये दूर निकल गया और अवसर पाकर आकाश में उड़ गया। तब वसुदेव को सही वस्तुस्थिति का आभास हुआ। वह सोचने लगे : राम मृग के द्वारा छले गये थे और वह मयूरशावक के द्वारा। वस्तुस्थिति यह थी कि वसुदेव का प्रतिद्वन्द्वी छद्मरूप नीलकण्ठ नीलयशा को अपहृत करके ले गया था।
'वसुदेवहिण्डी' में कुक्कुटयुद्ध के बारे में भी उल्लेख हुआ है (प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. २८९)। यथाचित्रित कुक्कुट बड़े युद्धकुशल थे। बाज और कबूतर भी कथा (केतुमतीलम्भः पृ. ३३८) के व्याज से चित्रित हुए हैं। वस्तुतः, ये दोनों पूर्वभव में जम्बूद्वीप-स्थित ऐरवत वर्ष के पद्मिनीखेट नगर के सागरदत्त बनिया के धन और नन्दन नाम के पुत्र थे। एक बार वे दोनों व्यापार करते हुए नागपुर गये। शंखनदी के तट पर रत्नों के निमित्त उन दोनों के बीच झगड़ा हो गया। लड़ते हुए वे दोनों अथाह नदी में गिर पड़े। वहाँ मरकर दोनों ने कबूतर और बाज के रूप में पक्षी-भव प्राप्त किया।
इसी प्रकार, 'मुख' प्रकरण में कथाकार ने शाम्ब की मैना और भानु के सुग्गे का उल्लेख किया है। दोनों पक्षी नीतिपरक श्लोक पढ़ने में निपुण थे। भान और शाम्ब के बीच उक्त दोनों पक्षियों द्वारा नीतिश्लोक पढ़ने की बाजी लगी थी। शाम्ब ने मैना की देह में एक जगह रोआँ उखाड़कर क्षत कर दिया था और वहाँ क्षार पदार्थ लगा दिया था। भानु का सुग्गा दो नीतिश्लोक पढ़कर चुप हो गया, किन्तु बार-बार क्षतसिक्त अंगों को छूने से उद्वेजित शाम्ब की मैना को बरबस कई नीतिश्लोक पढ़ने पड़े। फलत:, शाम्ब की मैना एक करोड़ की बाजी जीत गई।
कौए की तो कई कथाएँ कथाकार ने लिखी हैं। इसी क्रम में कपिंजल पक्षी का भी उल्लेख हुआ है। कृतघ्न कौओं की एक कथा (धम्मिल्लहिण्डी : पृ. ३२) इस प्रकार है : एक बार बारह वर्ष का अकाल पड़ा था। उस स्थिति में कौओं ने मिलकर आपस में विचार किया : “हमें क्या