Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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अध्ययन:४
'वसुदेवहिण्डी' में प्रतिबिम्बित लोकजीवन 'वसुदेवहिण्डी' प्राचीन भारतीय लोकचित्रों का विशाल संग्रह है, जिसमें तत्कालीन लोकजीवन की अनेक मोहक छवियाँ अपनी विविधता और विचित्रता के साथ प्रतिबिम्बित हैं। इन लोकचित्रों में संघदासगणी ने उस युग के भारतीय समाज के सत् और असत् पक्षों का अतिशय समुज्ज्वलता
और समीचीनता के साथ उद्भावन किया है। उन्होंने समाज की उन बुराइयों का भी परदाफाश किया है, जिन्हें पढ़कर पाठकों की नाक-भौंह सिकुड़ने लगती हैं और अच्छाइयों के भी ऐसे उत्कृष्ट चित्र प्रस्तुत किये हैं, जिनसे भारतीय समाज की महनीयता पर हृदय गर्वोद्ग्रीव हो उठता है । कुल मिलाकर, 'वसुदेवहिण्डी' में जन-जीवन के बहुरंगे आयामों का भव्य निरूपण करनेवाली असीम सामग्री समाहित है।
संघदासगणी ने लोकजीवन या सामाजिक जनजीवन के चित्रण में समाज की सूक्ष्मातिसूक्ष्म मानसिक संरचना का ध्यान रखा है। इसलिए, 'वसुदेवहिण्डी' में मानव-विकास की उस आरम्भिक दशा का प्रदीप्त चित्रण मिलता है, जो नृतत्त्वशास्त्र के मुख्य प्रतिपाद्य विषय का प्रस्थानबिन्दु है। कथाकार द्वारा प्रतिपादित आदिम समाज के उल्लेख से यह धारणा रूपायित होती है कि साधारण जनमानस या लोक चेतनापरवत्ती बौद्धिक समाज की तुलना में अधिक उर्वर थीं। इसलिए, 'वसुदेवहिण्डी' में तत्कालीन मानव-समाज की सर्जनात्मक प्रतिभा का अनायास ही उद्रिक्त और अकृत्रिम रूप उपलब्ध होता है। निस्सन्देह, इस महाघ कथाकृति में परवर्ती सामाजिक चेतना के विकास की सभी प्रवृत्तियाँ बीजरूप में विद्यमान हैं तथा आधुनिक समाज की अनेक विशिष्टताएँ उसमें पूर्वाशित हैं । संघदासगणी ने अपने युग की भावभूमि और मानसिकता के अनुरूप सामाजिक भावनाओं या लोकचेतनाओं के मल्यवान पक्षों को उभारकर सामने ले आने का प्रशंसनीय सारस्वत प्रयास किया है, साथ ही उसे अपनी विलक्षण वैचारिकी और अपूर्व कथा-कौशल द्वारा गहन मार्मिक भावों से मण्डित कर सर्वथा एक नये परिवेश में प्रतिष्ठित कर दिया है।
आगमोत्तर प्राकृत-कथा के महान् प्रवर्तक संघदासगणी ने लोकजीवन या मानव-समाज के चित्रण को रूढ़ियों या मिथकों या रोमांस-रंजित तथ्यों के अलावा समाज-मनोविज्ञान और काम-मनोविज्ञान के सिद्धान्तों से भी संवलित किया है। इस प्रकार, कथाकार ने समाजगत आर्थिक और धार्मिक चेतना के परिप्रेक्ष्य में कामकथा का अद्भुत कायाकल्प किया है। स्वच्छन्द और उद्दाम शृंगारिकता को वैराग्य के उत्कर्षण में पर्यवसित करने की कला के द्वारा कथाकार ने धर्म और समाज को मानव-अभ्युदय के कारण-घटक के रूप में उपन्यस्त किया है। इसलिए, सामाजिक परिप्रेक्ष्य में लिखी गई 'वसुदेवहिण्डी' की समग्र कथाओं की धर्म-भावना कामभोग की अकृत्रिम अथवा सहज प्रतिक्रिया का रसमय प्रतीक बन गई है।
संघदासगणी ने ऐतिहासिक परिवेश में समुज्जृम्भित लोकचेतना के सन्दर्भो का सामाजिक तथा सांस्कृतिक सार्थकता के साथ गहन परीक्षण किया है, साथ ही सामाजिक जीवन के उचित मूल्यांकन के लिए व्यक्ति के साथ युग की पृष्ठभूमि पर भी विचार किया है। इसलिए, 'वसुदेवहिण्डी' में सामाजिकों की अस्मितायुक्त व्यक्तिचेतना का आस्फालन भी यत्र-तत्र दृष्टिगत