Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ
१७५ सेठानी ने अपने पुत्र का नाम 'चारुदत्त' रखा (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १३३)। अमितगति विद्याधर ने एक बार विजयसेना देवी से उत्पन्न अपनी लड़की गन्धर्वदता के सम्बन्ध में नैमित्तिक से पूछा था, तो उसने भविष्यवाणी की थी : “लड़की श्रेष्ठ पुरुष की पत्नी होगी। वह श्रेष्ठ पुरुष विद्याधर-सहित दक्षिण भरत का राज्य करेगा और वही पुरुष चम्पापुरी में चारुदत्त के घर में स्थित लड़की को संगीत के द्वारा पराजित करेगा (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १५३)।"
एक बार राम (परशुराम) ने ज्योतिषियों से पूछा : “मेरी वंश-परम्परा चालू रहेगी?" ज्योतिषी ने कहा : “जिसके सामने तुम्हारा फरसा शिथिल पड़ जायगा और जो दाँतों का भोजन करेगा, उसी से तुम्हारा विनाश होगा (मदनवेगालम्भ : पृ. २३८-२३९)।"
एक बार नागराज धरण ने शान्त और प्रशान्त नामक साधुओं से प्रश्न किया कि “मैं वर्तमान भव से उद्वर्तित होकर कहाँ जन्म लूँगा?" साधुओं ने भविष्य-भाषण किया : “आप यहाँ के इन्द्रत्व से उद्वर्तित होकर ऐरवतवर्ष में, अवसर्पिणी काल में चौबीसवें तीर्थंकर होंगे। आपकी छह (अल्ला, अक्का, शतेरा, सौत्रामणि, इन्द्रा और घनविद्युता) पटरानियों में अल्ला को छोड़कर शेष पाँचों आपके गणधर होंगी और अल्ला देवी आज से सातवें दिन उद्वर्तित होकर इसी भारतवर्ष में राजा एणिक-पुत्र की पुत्री (प्रियंगुसुन्दरी) होकर जन्म लेगी, जो अर्द्धभरत के स्वामी (कृष्ण) के पिता (वसुदेव) के साथ (पत्नी के रूप में) विभिन्न भोगों का उपभोग करके, संयम का पालन करते हुए सिद्धि की अधिकारिणी होगी (प्रियंगुसुन्दरीलम्भ : पृ. ३०५) ।"
ऐन्द्रजालिक भी ज्योतिषी के निर्देश का पालन करते थे । 'वसुदेवहिण्डी' में इन्द्रशर्मा नाम के ऐन्द्रजालिक का साग्रह उल्लेख है। एक बार भृगु ज्योतिषी ने राजा कपिल से कहा कि आपकी कन्या कपिला शास्त्रकारों द्वारा अनुमत लक्षणों से युक्त है, इसलिए यह अर्द्धभरत के अधिपति के पिता की पत्नी होगी। राजा ने ज्योतिषी से पूछा: वह कहाँ होंगे? कैसे उन्हें जानेंगे?" ज्योतिषी ने कहा : “मैं ज्योतिष के बल से कहता हूँ, जो स्फुलिंगमुख घोड़े का दमन करेगा, उसे ही अर्द्धभरताधिप का पिता समझना। वह सम्प्रति, गिरितट (गिरकूट) ग्राम में देवदेव (सुरदेव) के घर में रहता है।" “ज्योतिषी की बात पर राजा कपिल ने जिज्ञासा की दृष्टि अपने सभासदों पर डाली : “कौन व्यक्ति अनजान गिरितट में जाकर उस पुरुष को ला सकता है ?” वहाँ उपस्थित ऐन्द्रजालिक इन्द्रशर्मा ने राजा की बात स्वीकार कर ली : “ज्योतिषी द्वारा निर्दिष्ट आपके जामाता (वसुदेव) को मैं ले आऊँगा।” यह कहकर ऐन्द्रजालिक इन्द्रशर्मा परिवार-सहित अपने स्वीकृत के परिपालन के निमित्त चला गया (कपिलालम्भ : पृ. १९९)।
एक बार, वसुदेव का साला (वसुदेव की पत्नी कपिला का भाई) अंशुमान् वसुदेव के लिए दोरसोइया (नन्द और सुनन्द) खोज लाया। उनके द्वारा बनाये गये भोजन से सन्तुष्ट होकर वसुदेव ने अंशुमान् से उन्हें एक लाख स्वर्णमुद्राएँ प्रीतिदान के रूप में देने का निर्देश किया। किन्तु, उन दोनों ने रुपये लेने की अपेक्षा बराबर वसुदेव की सेवा में रहने की इच्छा व्यक्त की। कारण पूछने पर उन्होंने ज्योतिषी की भविष्यवाणी की ओर संकेत किया : राजा सुषेण के यहाँ पितृपरम्परागत रूप से सेवा करते हुए उन्होंने एक मित्र से ज्योतिषी का पता लगाया और उसके पास जाकर अपने भविष्य के बारे में पूछा । ज्योतिषी ने सोचकर बताया कि 'तुम्हारी सेवा अर्द्धभरत के स्वामी