Book Title: Vasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Author(s): Shreeranjan Suridevi
Publisher: Prakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
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वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ
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कला-कौशल, लोकनृत्य-नाट्य आदि समस्त तत्त्व सम्मिलित हैं। डॉ. सत्येन्द्र ने इसी प्रकार की कथा को लोकवार्त्ता कहा है। रूढकथा में लोककथा के तत्त्वों का अन्तर्मिश्रण सहजभाव से रहता है, इसलिए 'वसुदेवहिण्डी' की मूलकथा और उपकथाओं में लोकमानस की सहज अभिव्यक्ति हुई है, जिसमें लोकसंस्कृति के वास्तविक प्रतिबिम्ब का बड़ा ही तीव्र उद्भव हुआ है 'वसुदेवहिण्डी' की रूढकथाओं की सर्वोपरि विशेषता यह है कि इनमें लोकचेतना की अन्तरंगता लोकमानस से गृहीत होकर भी इनका ऊपरी ढाँचा साहित्य की शास्त्रीय मार्मिकताओं पर आश्रित है । इनमें सार्वभौम स्तर पर समान रूढियों और अभिप्रायों का उपयोग हुआ है, फलत: लौकिक सौन्दर्यबोध, लोकचिन्ता की एकरूपता और सर्वसाधारण अभिव्यंजना - प्रणाली की दृष्टि से 'वसुदेवहिण्डी' की कथाएँ विश्व की लोककथाओं से भावसाम्य रखती हैं ।
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रूढकथा और कथारूढियाँ :
रूढकथाओं में बार-बार व्यवहृत होनेवाली एक जैसी घटनाओं अथवा एक जैसे विचारों को कथारूढि या कथानक रूढि की संज्ञा दी जाती है। कथानक के निर्माण और विकास में योग देनेवाली, भूयोभूयता के साथ आवृत्त, उक्त प्रकार की घटनाओं या विचारों की सुदीर्घ परम्परा होती है । उदाहरणार्थ, 'वसुदेवहिण्डी' के कथानायक वसुदेव को विद्याधरियों द्वारा आकाश में उड़ा जाना, अन्तरिक्ष में ही वसुदेव को पति बनाने के लिए विद्याधरियों का आपस में लड़ना और वसुदेव का उनके चंगुल से छूटकर कभी किसी बड़ी झील में या कभी किसी पुआल की टाल पर आ गिरना एक घटना है। किन्तु इस प्रकार की, कथानायक को या किसी राजकुमार को परियों द्वारा आकाश में उड़ा ले जाने की घटना 'वसुदेवहिण्डी' की ही नहीं है, अपितु, यह 'बृहत्कथा' की परम्परा से गृहीत है और यही घटना परम्परा-क्रम से अनेक कथाओं में, विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के निमित्त, एकाधिक बार प्रयुक्त होकर लोकप्रिय कथानक - रूढि में परिणत हो जाती है ।
'वसुदेवहिण्डी' ऐतिहासिक पौराणिक व्यक्ति के नाम से सम्बद्ध गद्यमय कथाकृति है । परन्तु, अन्यान्य ऐतिहासिक पौराणिक कथाओं की भाँति मूलतः इसमें भी ऐतिहासिक, पौराणिक और निजन्धरी कथाओं का मिश्रण हो गया है । कथानक रूढि का विवेचन करते हुए आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि " ऐतिहासिक चरित का लेखक सम्भावनाओं पर अधिक बल देता है । सम्भावनाओं पर बल देने का परिणाम यह हुआ है कि हमारे देश के साहित्य में कथानक को गति और घुमाव देने के लिए कुछ ऐसे अभिप्राय बहुत दीर्घकाल से व्यवहृत होते आये हैं, जो बहुत थोड़ी दूर तक यथार्थ होते हैं और जो आगे चलकर कथानक - रूढि में बदल गये हैं ।"२
इस सन्दर्भ में, संघदासगणी द्वारा भी ऐतिहासिक पौराणिक और निजन्धरी कथाओं में विशेष पार्थक्य न दिखलाकर केवल सम्भावनाओं पर बल दिया गया है। द्वारवती के दशार्ह वसुदेव का विवाह अंगदेश की श्रेष्ठिपालिता कलावती कन्या गन्धर्वदत्ता से हुआ था या नहीं, इसकी ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यात्मकता के प्रति कथाकार आग्रह नहीं रखता, वह तो वैसा होने की सम्भावना को मूल्य देता है । वसुदेव जैसे भ्रमणशील अभिजात शलाकापुरुष से, या फिर 'बृहत्कथाश्लोक
१. 'व्रजलोक-साहित्य का अध्ययन', पृ. ४
२. 'हिन्दी-साहित्य का आदिकाल' (द्वितीय संस्करण), चतुर्थ व्याख्यान, पृ. ८०